long biography of mahatma gandhi in hindi

सत्य और अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जीवनी

Mahatma Gandhi Biography in Hindi

आप उन्हें बापू कहो या महात्मा दुनिया उन्हें इसी नाम से जानती हैं। अहिंसा और सत्याग्रह के संघर्ष से उन्होंने भारत को अंग्रेजो से स्वतंत्रता दिलाई। उनका ये काम पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया। वो हमेशा कहते थे

“बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो!”

और उनका ये भी मानना था की सच्चाई कभी नहीं हारती। इस महान इन्सान को भारत ने राष्ट्रपिता घोषित कर दिया। उनका पूरा नाम था ‘ मोहनदास करमचंद गांधी ‘ –  Mahatma Gandhi.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जीवनी – Mahatma Gandhi Biography in Hindi

Mahatma Gandhi Biography

महात्मा गांधी जी के बारेमें – Mahatma Gandhi Information in Hindi

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जीवनी – mahatma gandhi in hindi.

आज हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं, वो इसलिए क्योंकि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi ने अपने अथक प्रयासों के बल पर अंग्रेजो से भारत को आजाद कराया यही नहीं इस महापुरुष ने अपना पूरा जीवन राष्ट्रहित में लगा दिया। महात्मा गांधी की कुर्बानी की मिसाल आज भी दी जाती है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी  – Mahatma Gandhi के पास सत्य और अहिंसा दो हथियार थे जिन्होनें इसे भयावह और बेहद कठिन परिस्थितयों में अपनाया शांति के मार्ग पर चलकर इन्होनें न सिर्फ बड़े से बड़े आंदोलनों में आसानी से जीत हासिल की बल्कि बाकी लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बने।

महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता और बापू जी के नामों से भी पुकारा जाता है। वे सादा जीवन, उच्च विचार की सोच वाली शख्सियत थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन सदाचार में गुजारा और अपनी पूरी जिंदगी राष्ट्रहित में कुर्बान कर दी। उन्होनें अपने व्यक्तित्व का प्रभाव न सिर्फ भारत में ही बल्कि पूरी दुनिया में डाला।

महात्मा गांधी महानायक थे जिनके कार्यों की जितनी भी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। Mahatma Gandhi- महात्मा गांधी कोई भी फॉर्मुला पहले खुद पर अपनाते थे और फिर अपनी गलतियों से सीख लेने की कोशिश करते थे।

महात्मा गांधी जी का जन्म, बचपन, परिवार एवं प्रारंभिक जीवन – Mahatma Gandhi Childhood

देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबन्दर में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता करमचन्द गांधी ब्रिटिश हुकूमत के समय राजकोट के ‘दीवान’ थे। उनकी माता का नाम पुतलीबाई था जो कि धार्मिक विचारों वाली एक कर्तव्यपरायण महिला थी, उनके महान विचारों का गांधी जी पर गहरा प्रभाव पड़ा था।

महात्मा गांधी जी का विवाह एवं बच्चे – Mahatma Gandhi Marriage And Family

महात्मा गांधी जी जब 13 साल के थे, तब बाल विवाह की कुप्रथा के तहत उनका विवाह एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा मनकजी के साथ कर दिया गया था। कस्तूरबा जी भी एक बेहद शांत और सौम्य स्वभाव की महिला थी। शादी के बाद उन दोनो को चार पुत्र हुए थे, जिनका नाम हरिलाल गांधी , रामदास गांधी, देवदास गांधी एवं मणिलाल गांधी था।

महात्मा गाधी जी की शिक्षा – Mahatma Gandhi Education

महात्मा गांधी जी शुरु से ही एक अनुशासित छात्र थे, जिनकी शुरुआती शिक्षा गुजरात के राजकोट में ही हुई थी। इसके बाद उन्होंने 1887 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। फिर अपने परिवार वालों के कहने पर वे अपने बैरिस्टर की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए।

इसके करीब चार साल बाद 1891 में वे अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने स्वदेश भारत वापस लौट आए। इसी दौरान उनकी माता का देहांत हो गया था, हालांकि उन्होंने इस दुख की घड़ी में भी हिम्मत नहीं हारी और वकालत का काम शुरु किया। वकालत के क्षेत्र में उन्हें कुछ ज्यादा कामयाबी तो नहीं मिली लेकिन जब वे एक केस के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए तो उन्हें रंगभेद का सामना करना पड़ा।

इस दौरान उनके साथ कई ऐसी घटनाएं घटीं जिसके बाद गांधी जी ने रंगभेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और इससे लड़ने के लिए 1894 में नेटल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। इस तरह गांधी जी ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर रंगभेदभाव के मुद्दे को उठाया।

जब इंग्लेंड से वापस लौटे महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi Returned from England

साल 1891 में गांधी जी बरिस्ट्रर होकर भारत वापस लौटे इसी समय उन्होनें अपनी मां को भी खो दिया था लेकिन इस कठिन समय का भी गांधी जी ने हिम्मत से सामना किया और गांधी जी ने इसके बाद वकालत का काम शुरु किया लेकिन उन्हें इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली।

गांधी जी की दक्षिण अफ्रीका की यात्रा – Mahatma Gandhi Visit to South Africa

Mahatma Gandhi – महात्मा गांधी जी को वकालत के दौरान दादा अब्दुल्ला एण्ड अब्दुल्ला नामक मुस्लिम व्यापारिक संस्था के मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। इस यात्रा में गांधी जी का भेदभाव और रंगभेद की भावना से सामना हुआ। आपको बता दें कि गांधी जी दक्षिण अफ्रीका पहुंचने वाले पहले भारतीय महामानव थे जिन्हें अपमानजनक तरीके से ट्रेन से बाहर उतार दिया गया। इसके साथ ही वहां की ब्रिटिश उनके साथ बहुत भेदभाव करती थी यहां उनके साथ अश्वेत नीति के तहत बेहद बुरा बर्ताव भी किया गया था।

जिसके बाद गांधी जी के सब्र की सीमा टूट गई और उन्होनें इस रंगभेद के खिलाफ संघर्ष का फैसला लिया।

जब गांधी जी ने रंगभेद के खिलाफ लिया संघर्ष का संकल्प –

रंगभेद के अत्याचारों के खिलाफ गांधी जी ने यहां रह रहे प्रवासी भारतीयों के साथ मिलकर 1894 में नटाल भारतीय कांग्रेस का गठन किया और इंडियन ओपिनियन अखबार निकालना शुरु किया।

इसके बाद 1906 में दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों के लिए अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की इस आंदोलन को सत्याग्रह का नाम दिया गया।

गांधी जी की दक्षिणा अफ्रीका से वापस भारत लौटने पर स्वागत – Mahatma Gandhi Return to India from South Africa

1915 में दक्षिण अफ्रीका में तमाम संघर्षों के बाद वे वापस भारत लौटे इस दौरान भारत अंग्रेजो की गुलामी का दंश सह रहा था। अंग्रेजों के अत्याचार से यहां की जनता गरीबी और भुखमरी से तड़प रही थी। यहां हो रहे अत्याचारों को देख गांधी – Mahatma Gandhi जी ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जंग लड़ने का फैसला लिया और एक बार फिर कर्तव्यनिष्ठा के साथ वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।

स्वतंत्रता सेनानी के रुप में महात्मा गांधी जी – Mahatma Gandhi as a Freedom Fighter

महात्मा गांधी जी ने जब अपनी दक्षिण अफ्रीका की यात्रा से लौटने के बाद क्रूर ब्रिटिश शासकों द्धारा भारतवासियों के साथ हो रहे अमानवीय अत्याचारों को देखा, तब उन्होंने देश से अंग्रेजों को बाहर खदेड़ने का संकल्प लिया और गुलाम भारत को अंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र करवाने के उद्देश्य से खुद को पूरी तरह स्वतंत्रता संग्राम में झोंक दिया।

उन्होंने देश की आजादी के लिए तमाम संघर्ष और लड़ाईयां लड़ी एवं सत्य और अहिंसा को अपना सशक्त हथियार बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ कई बड़े आंदोलन लड़े और अंतत: अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। वे न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य सूत्रधार थे, बल्कि उन्हें आजादी के महानायक के तौर पर भी जाना जाता है।

हमारा पूरा भारत देश आज भी उनके द्धारा आजादी की लड़ाई में दिए गए  त्याग, बलिदान की गाथा गाता है एवं उनके प्रति सम्मान प्रकट करता है।

गांधी जी के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन – Mahatma Gandhi Movements List

महात्मा गांधी के आंदोलनों की सूची निचे दी गयी हैं – 

  • महात्मा गांधी का चंपारण और खेड़ा आंदोलन – Mahatma Gandhi Champaran and Kheda Andolan

चम्पारण और खेडा में जब अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे। तब जमीदार किसानों से ज्यादा कर लेकर उनका शोषण कर रहे थे। ऐसे में यहां भूखमरी और गरीबी के हालात पैदा हो गए थे। जिसके बाद गांधी जी ने चंपारण के रहने वाले किसानों के हक के लिए आंदोलन किया। जो चंपारण सत्याग्रह के नाम से जाना गया और इस आंदोलन में किसानों को 25 फीसदी से धनराशि वापस दिलाने में कामयाब रही।

इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और वे जीत गए। इससे लोगों के बीच उनकी एक अलग छवि बन गई।

इसके बाद खेड़ा के किसानों पर अकाली का पहाड़ टूट पड़ा जिसके चलते किसान अपनों करों का भुगतान करने में असमर्थ थे। इस मामले को गांधी जी ने अंग्रेज सरकार के सामने रखा और गरीब किसानों का लगान माफ करने का प्रस्ताव रखा। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने प्रखर और तेजस्वी गांधी जी का ये प्रस्ताव मान लिया और गरीब किसानों की लगान को माफ कर दिया।

  • महात्मा गांधी का खिलाफत आंदोलन (1919-1924) – Mahatma Gandhi Khilafat Andolan

गरीब, मजदूरों के बाद गांधी जी ने मुसलमानों द्दारा चलाए गए खिलाफत आंदोलन को भी समर्थन दिया था। ये आंदोलन तुर्की के खलीफा पद की दोबारा स्थापना करने के लिए चलाया गया था। इस आंदोलन के बाद गांधी जी ने हिंदू-मुस्लिम एकता का भरोसा भी जीत लिया था। वहीं ये आगे चलकर गांधी – Mahatma Gandhi जी के असहयोग आंदोलन की नींव बना।

  • महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन (1919-1920) – Mahatma Gandhi Asahyog Andolan

रोलेक्ट एक्ट के विरोध करने के लिए अमृतसर के जलियां वाला बाग में सभा के दौरान ब्रिटिश ऑफिस ने बिना वजह निर्दोष लोगों पर गोलियां चलवा दी जिसमें वहां मौजूद 1000 लोग मारे गए थे जबकि 2000 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस घटना से महात्मा गांधी को काफी आघात पहुंचा था जिसके बाद महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलकर आंदोलन करने का फैसला लिया था। इसके तहत गांधी जी ने ब्रिटिश भारत में राजनैतिक, समाजिक संस्थाओं का बहिष्कार करने की मांग की।

इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने प्रस्ताव की रुप रेखा तैयार की वो इस प्रकार है –

  • सरकारी कॉलेजों का बहिष्कार
  • सरकारी अदालतों का बहिष्कार
  • विदेशी मॉल का बहिष्कार
  • 1919 अधिनियम के तहत होने वाले चुनाव का बहिष्कार
  • महात्मा गांधी का चौरी-चौरा काण्ड (1922) – Mahatma Gandhi Chauri Chaura Andolan

5 फरवरी को चौरा-चौरी गांव में कांग्रेस ने जुलूस निकाला था जिसमें हिंसा भड़क गई थी दरअसल इस जुलूस को पुलिस ने रोकने की कोशिश की थी लेकिन भीड़ बेकाबू होती जा रही थी। इसी दौरान प्रदर्शनकारियों ने एक थानेदार और 21 सिपाहियों को थाने में बंद कर आग लगा ली। इस आग में झुलसकर सभी लोगों की मौत हो गई थी इस घटना से महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi का ह्रद्य कांप उठा था। इसके बाद यंग इंडिया अखबार में उन्होनें लिखा था कि,

“आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मै हर एक अपमान, यातनापूर्ण बहिष्कार, यहां तक की मौत भी सहने को तैयार हूं”
  • महात्मा गांधी का सविनय अवज्ञा आंदोलन/डंडी यात्रा/नमक आंदोलन (1930) – Mahatma Gandhi Savinay Avagya Andolan/ Dandi March / Namak Andolan

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महात्मा गांधी ने ये आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चलाया था इसके तहत ब्रिटिश सरकार ने जो भी नियम लागू किए थे उन्हें नहीं मानना का फैसला लिया गया था अथवा इन नियमों की खिलाफत करने का भी निर्णय लिया था। आपको बता दें कि ब्रिटिश सरकार ने नियम बनाया था की कोई अन्य व्यक्ति या फिर कंपनी नमक नहीं बनाएगी।

12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा द्धारा नमक बनाकर इस कानून को तोड़ दिया था उन्होनें दांडी नामक स्थान पर पहुंचकर नमक बनाया था और कानून की अवहेलना की थी।

Mahatma Gandhi – गांधी जी की दांडी यात्रा 12 मार्च 1930 से लेकर 6 अप्रैल 1930 तक चली। दांडी यात्रा साबरमति आश्रम से निकाली गई। वहीं इस आंदोलन को बढ़ते देख सरकार ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन को समझौते के लिए भेजा था जिसके बाद गांधी जी ने समझौता स्वीकार कर लिया था।

  • महात्मा गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन- (1942) – Mahatma Gandhi Bharat Chhodo Andolan

ब्रिटिश शासन के खिलाफ महात्मा गांधी ने तीसरा सबसे बड़ा आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ों’ का नाम दिया गया था।

हालांकि इस आंदोलन में गांधी जी को जेल भी जाना पड़ा था। लेकिन देश के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फोड़ के माध्यम से इस आंदोलन को चलाते रहे उस समय देश का बच्चा-बच्चा गुलाम भारत से परेशान हो चुका था और आजाद भारत में जीना चाहता था। हालांकि ये आंदोलन असफल रहा था।

महात्मा गांधी के आंदोलन के असफल होने की कुथ मुख्य वजह नीचे दी गई हैं –

ये आंदोलन एक साथ पूरे देश में शुरु नहीं किया गया। अलग-अलग तारीख में ये आंदोलन शुरु किया गया था जिससे इसका प्रभाव कम हो गया हालांकि इस आंदोलन में बड़े स्तर पर किसानों और विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया था।

भारत छोड़ों आंदोलन में बहुत से भारतीय यह सोच रहे थे कि स्वतंत्रता संग्राम के बाद उन्हें आजादी मिल ही जाएगी इसलिए भी ये आंदोलन कमजोर पड़ गया।

गांधी जी का भारत छोड़ो आंदोलन सफल जरूर नहीं हुआ था लेकिन इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासकों को इस बात का एहसास जरूर दिला दिया था कि अब और भारत उनका शासन अब और नहीं चल पाएगा और उन्हें भारत छोड़ कर जाना ही होगा।

Mahatma Gandhi- गांधी जी के शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलाए गए आंदोलनो ने गुलाम भारत को आजाद करवाने में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभाई है और हर किसी के जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ा है।

महात्मा गांधी के आंदोलनों की खास बातें – Important things about Mahatma Gandhi’s movements

महात्मा गांधी -Mahatma Gandhi की तरफ से चलाए गए सभी आंदोलनों में कुछ चीजें एक सामान थी जो कि निम्न प्रकार हैं –

  • गांधी जी के सभी आंदोलन शांति से चलाए गए।
  • आंदोलन के दौरान किसी की तरह की हिंसात्मक गतिविधि होने की वजह से ये आंदोलन रद्द कर दिए जाते थे।
  • आंदोलन सत्य और अहिंसा के बल पर चलाए जाते थे।

समाजसेवक के रुप में महात्मा गांधी जी – Mahatma Gandhi as a Social Reformer

महात्मा गांधी जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता होने के साथ-साथ एक महान समाज सेवक भी थे। जिन्होंने देश में जातिवाद, छूआछूत जैसी तमाम कुरोतियों को दूर करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका सभी जाति, धर्म, वर्ग एवं लिंग के लोगों के प्रति एक नजरिया था।

उन्होंने जातिगत भेदभाव से आजाद भारत का सपना देखा था। गांधी जी ने निम्न, पिछड़ी एवं दलित वर्ग को ईश्वर के नाम पर ”हरि”जन कहा था और समाज में उन्हें बराबरी का हक दिलवाने के लिए अथक प्रयास किए थे।  

”राष्ट्रपिता” (फादर ऑफ नेशन) के रुप में महात्मा गांधी जी – Mahatma Gandhi as Father of Nation

सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता की उपाधि भी दी गई थी। उनके आदर्शों और महान व्यक्तित्व के चलते नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने सर्वप्रथम 4 जून, 1944 को सिंगापुर रेडियो से एक प्रसारण के दौरान गांधी जी को ”देश का पिता” कहकर संबोधित किया था।

इसके बाद नेता जी ने 6 जुलाई 1944 को रेडियो रंगून से एक संदेश प्रसारित करते हुए गांधी जी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था।  वहीं 30 जनवरी, 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी ने भारतवासियों को रेडियो पर उनकी मौत का दुखद समाचार देते हुए कहा था कि ”भारत के राष्ट्रपिता अब नहीं रहे”।

महात्मा गांधी का शिक्षा मे योगदान – Mahatma Gandhi Contribution In To Education.

महात्मा गांधी के शिक्षा मे योगदान को समझने से पहले उनके शिक्षा के प्रती विचार को समझना अत्यंत आवश्यक है, जैसा के;

१. ६ साल से १४ साल तक के बच्चो को अनिवार्य तथा निशुल्क शिक्षा प्रदान की जायेगी। २. शिल्प केंद्रित शिक्षा दी जायेगी। ३. शिक्षा का माध्यम केवल मातृभाषा होगी, अंग्रेजी नही। ४. करघा उद्योग, हस्तकला इत्यादी की शिक्षा दी जायेगी, जिसमे कृषी, लकडी का काम, कताई, बुनाई, ,मछली पालन, उद्यान कार्य, मिट्टी का कार्य, चरखा इत्यादी शामिल होगा।

गांधीजी ने आत्मनिर्भर बनाने की शिक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित किया, जिससे व्यक्ती का सर्वांगीण विकास हो और खुद्के बलबुते इंसान जीवन मे आगे बढ पाये। इसिलिये उन्हे मुलभूत शिक्षा प्रणाली के जनक के तौर पर देखा जाता है।

शिक्षा संबंधी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य गांधीजी ने सबके सामने रखे,जैसा के ;

१. स्वयं के अनुभव से सिखना और करके देखना: – किसी भी चीज को सिखने के साथ खुद्से करके देखने पर गांधीजी का ज्यादा झुकाव था, उनका मानना था स्वयं से करके देखकर सिखना ही उत्तम शिक्षा होती है।आपस मे चर्चा एवं प्रश्न उत्तर के माध्यम को उनके नजर मे काफी सराहनिय माना गया है, वे किताबी शिक्षा से ज्यादा क्राफ्ट/शिल्प इत्यादी को अधिक महत्व देते थे

२. शारीरिक क्रियाकलाप द्वारा शिक्षा पर गांधीजी ने अधिक बल दिया जिसमे सभी आयु वर्ग के बच्चो को उनके क्षमता अनुसार कार्य दिया जाये।जिससे वो जीवन मे आगे बढते समय अधिक मजबूत विचार और शारीरिक बल अर्जित कर सके।

३. सिखने की अनेक क्रिया और प्रकार का समन्वय कर शिक्षा देने पर गांधीजी का अधिक झुकाव था, जैसे के चित्रकला, हस्तकला और शिल्पकला इनका एक दुसरे से नजदिकी संबंध आता है।तो इस तरह से विभिन्न कलाओ का आपस मे तालमेल साध कर शिक्षा दी जाये।

१४ साल से उपर के आयु के बच्चो को पूर्णतः रोजगार पूरक शिक्षा देने पर गांधीजी का अधिक बल था, जिससे वो बच्चे आगे चलकर रोजगार हेतू सक्षम बन पाये।

गांधीजी ने शिक्षा पद्धती मे सहयोगी क्रिया पर पहल तथा व्यक्तिगत उत्तरदायित्व पर अधिक कार्य किया, ये निष्कर्ष शिक्षा के लिये स्थापित “झाकीर हुसैन समिति” द्वारा दिया गया है।

गांधीजी शिक्षा मे अनुशासन को बहूत अधिक महत्व देते थे, इसके अलावा छात्रो को आत्मबल अधिक बढाने के साथ, वो अध्यापक वर्ग को ब्रह्मचर्य एवं संयमित जीवन जिने की सलाह देते थे।जिससे के छात्रो के सामने आदर्श एवं उच्च आदर्श का उदाहरण प्रस्तुत किया जा सके।

गांधीजी छात्रो मे एवं अध्यापको मे सत्य, अहिंसा, सहिष्णुता, प्रेम, न्याय और परिश्रम इत्यादी गुणो को विकसित करने पर अधिक बल देते थे।

महात्मा गांधी जी द्धारा लिखी गईं किताबें – Mahatma Gandhi Books

महात्मा गांधी जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी, अच्छे राजनेता ही नहीं बल्कि एक बेहतरीन लेखक भी थे। उन्होंने अपने लेखन कौशल से देश के स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के संघर्ष का बेहद शानदार वर्णन किया है। उन्होंने अपनी किताबों में स्वास्थ्य, धर्म, समाजिक सुधार, ग्रामीण सुधार जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर लिखा है।

आपको बता दें कि महात्मा गांधी जी ने  इंडियन ओपनियन, हरिजन, यंग इंडिया, नवजीवन आदि पत्रिकाओं में एडिटर के रुप में भी कार्य किया है। उनके द्धारा लिखी गईं कुछ प्रमुख किताबों के नाम निम्नलिखित हैं-

  • हिन्दी स्वराज (1909)
  • मेरे सपनों का भारत (India of my Dreams)
  • ग्राम स्वराज (Village Swaraj by Mahatma Gandhi)
  • दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह (Satyagraha in South Africa)
  • एक आत्मकथा या सत्य के साथ मेरे प्रयोग की कहानी (An Autobiography or The Story of My Experiments with Truth (1927) 
  • स्वास्थ्य की कुंजी (Key To Health)
  • हे भगवान (My God)
  • मेरा धर्म(My Religion)
  • सच्चाई भगवान है( Truth is God)

इसके अलावा गांधी जी ने कई और किताबें लिखी हैं, जो न सिर्फ समाज की सच्चाई को बयां करती हैं, बल्कि उनकी दूरदर्शिता को भी प्रदर्शित करती हैं।

महात्मा गांधी जी के स्लोगन – Mahatma Gandhi Slogan

सादा जीवन, उच्च विचार वाले महान व्यक्तित्व महात्मा गांधी जी के ने अपने कुछ महान विचारों से प्रभावशाली स्लोगन दिए हैं। जिनसे देशवासियों के अंदर न सिर्फ देश-प्रेम की भावना विकिसत होती है, बल्कि उन्हें सच्चाई के मार्ग पर चलने की भी प्रेरणा मिलती है, महात्मा गांधी जी के कुछ लोकप्रिय स्लोगन इस प्रकार हैं-

  • आपका भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि आज आप क्या कर रहे हैं- महात्मा गांधी
  • करो या मरो- महात्मा गांधी
  • शक्ति शारीरिक क्षमता से नहीं आती है, यह एक अदम्य इच्छा शक्ति से आती है- महात्मा गांधी
  • पहले वो आप पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देंगे, फिर वो आप पर हंसेगें, और फिर वो आपसे लड़ेंगे तब आप निश्चय ही जीत जाएंगे – महात्मा गांधी
  • अपना जीवन कुछ इस तरह जियो जैसे की तुम कल मरने वाले हो, कुछ ऐसे सीखो जैसे कि तुम हमेशा के लिए जीने वाले हो- महात्मा गांधी
  • कानों का दुरुपयोग मन को दूषित एवं अशांत करता है- महात्मा गांधी
  • सत्य कभी भी ऐसे कारण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता जो कि उचित हो-महात्मा गांधी
  • भगवान का कोई धर्म नहीं है- महात्मा गांधी
  • ख़ुशी तब ही मिलेगी जब आप, जो भी सोचते हैं, जो भी कहते हैं और जो भी करते हैं, वो सब एक सामंजस्य में हों- महात्मा गांधी

महात्मा गांधी जी की जयंती – Mahatma Gandhi Jayanti

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2 अक्टूबर को पूरे देश में गांधी जयंती ( Gandhi Jayanti ) के रुप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी 1869 में गुजरात के पोरबंदर शहर में जन्में थे। गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे, इसलिए 2 अक्टूबर के दिन को पूरे विश्व में विश्व अहिंसा दिवस के रुप में भी मनाया जाता है।

गांधी जयंती के मौके पर स्कूल, कॉलेजों में अन्य शैक्षणिक संस्थानों में तमाम तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत कई बड़े राजनेता दिल्ली के राजघाट पर बनी गांधी प्रतिमा पर सच्चे मन से श्रद्धांजली अर्पित करते हैं। वहीं गांधी जयंती को राष्ट्रीय अवकाश भी घोषित किया गया है।

महात्मा गांधी की कुछ खास बातें – Some special things of Mahatma Gandhi

  • सादा जीवन, उच्च विचार –

राष्ट्रपति महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi सादा जीवन उच्च विचार में भरोसा रखते थे उनके इसी स्वभाव की वजह से उन्हें ‘महात्मा’ कहकर बुलाते थे।

  • सत्य और अहिंसा –

महात्मा गांधी के जीवन के 2 हथियार थे सत्य और अहिंसा। इन्हीं के बल पर उन्होनें भारत को गुलामी से आजाद कराया और अंग्रेजो को भारत छोड़ने पर मजबूर किया।

  • छूआछूत को दूर करना था गांधी जी का मकसद

Mahatma Gandhi – महात्मा गांधी का मुख्य उद्देश्य समाज में फैली छुआछूत जैसी कुरोतियों को दूर करना था इसके लिए उन्होनें काफी कोशिश की और पिछड़ी जातियों को उन्होनें ईश्वर के नाम पर हरि ‘जन’ नाम दिया।

महात्मा गांधी जी की मृत्यु – Death of Mahatma Gandhi

नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने 30 जनवरी 1948 को बिरला हाउस में गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

एक नजर में महात्मा गांधीजी की जीवन कार्य – Mahatma Gandhi Short Biography

  • 1893 में दादा अब्दुला के कंपनी का मुकदमा चलाने के लिये दक्षिण आफ्रिका को जाना पड़ा। महात्मा गांधी जब दक्षिण आफ्रिका में थे तब उन्हें भी अन्याय-अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उनका प्रतिकार करने के लिये भारतीय लोगों को संघटित करके उन्होंने 1894 में “ नेशनल इंडियन कॉग्रेस ” की स्थापना की।
  • 1906 में वहा के शासन के आदेश के अनुसार पहचान पत्र साथ में रखना जरुरी था। इसके अलावा रंग भेद नीती के खिलाफ उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया।
  • 1915 में महात्मा गांधीजी भारत लौट आये और उन्होंने सबसे पहले साबरमती में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की।
  • 1919 में उन्होंने ‘सविनय अवज्ञा’ आंदोलन शुरु किया।
  • 1920 में असहयोग आंदोलन शुरु किया।
  • 1920 में लोकमान्य तिलक के मौत के बाद राष्ट्रिय सभा का नेवृत्त्व महात्मा गांधी के पास आया।
  • 1920 में नागपूर के अधिवेशन में राष्ट्रिय सभा ने असहकार के देशव्यापी आंदोलन अनुमोदन देनेवाला संकल्प पारित किया। असहकार आंदोलन की सभी सूत्रे महात्मा गांधी पास दिये गये।
  • 1924 में बेळगाव यहा राष्ट्रिय सभा के अधिवेशन का अध्यक्षपद।
  • 1930 में सविनय अवज्ञा आदोलन शुरु हुआ। नमक के उपर कर और नमक बनाने की सरकार एकाधिकार रद्द की जाये। ऐसी व्हाइसरॉय से मांग की, व्हाइसरॉय ने उस मांग को नहीं माना तब गांधीजी ने नमक का कानून तोड़कर सत्याग्रह करने की ठान ली।
  • 1931 में राष्ट्रिय सभा के प्रतिनिधि बनकर गांधीजी दूसरी गोलमेज परिषद को उपस्थित थे।
  • 1932 में उन्होंने अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की।
  • 1933 में उन्होंने ‘हरिजन’ नाम का अखबार शुरु किया।
  • 1934 में गांधीजीने वर्धा के पास ‘सेवाग्राम’ इस आश्रम की स्थापना की। हरिजन सेवा, ग्रामोद्योग, ग्रामसुधार, आदी।
  • 1942 में चले जाव आंदोलन शुरु हुआ। ‘करेगे या मरेगे’ ये नया मंत्र गांधीजी ने लोगों को दिया।
  • व्दितीय विश्वयुध्द में महात्मा गांधीजी – Mahatma Gandhi ने अपने देशवासियों से ब्रिटेन के लिये न लड़ने का आग्रह किया था। जिसके लिये उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। युध्द के उपरान्त उन्होंने पुन: स्वतंत्रता आदोलन की बागडोर संभाल ली। अंततः 15 अगस्त 1947 में हमारे देश को स्वतंत्रता प्राप्त हो गई। गांधीजीने सदैव विभिन्न धर्मो के प्रति सहिष्णुता का संदेश दिया।
  • 1948 में नाथूराम गोडसे ने अपनी गोली से उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। इस दुर्घटना से सारा विश्व शोकमग्न हो गया था।

महात्मा गांधी महान पुरुष थे उन्होनें अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण काम किए वहीं गांधी जी के आंदोलनों की सबसे खास बात यह रही कि उन्हें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर सभी संघर्षों का डटकर सामना किया।

उन्होनें अपने जीवन में हिंदू-मुस्लिम को एक करने के भी कई कोशिश की। इसके साथ ही गांधी जी का व्यक्तित्व ऐसा था कि हर कोई उनसे मिलने के लिए आतुर रहता था और उनसे मिलकर प्रभावित हो जाता था।

मोहनदास करमचंद गांधी – Mahatma Gandhi   भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के निदेशक थे। उन्ही की प्रेरणा से 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हो सकी। अपनी अदभुत आध्यात्मिक शक्ति से मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों को उदभाषित करने वाले। विश्व इतिहास के महान तथा अमर नायक महात्मा गांधी आजीवन सत्य, अहिंसा और प्रेम का पथ प्रदर्शित करते रहे।

महात्मा गांधी जी पर बनी फिल्में – Mahatma Gandhi Movie

महात्मा गांधी जी आदर्शों और सिद्धान्तों पर चलने वाले महानायक थे, उनके प्रेरणादायक जीवन पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं। इसके अलावा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अन्य देशप्रेमियों और स्वतंत्रता सेनानियों पर भी बनी फिल्मों में गांधी जी का अहम किरदार दिखाया गया है। यहां हम आपको गांधी जी बनी कुछ प्रमुख फिल्मों की सूची उपलब्ध करवा रहे हैं, जो कि इस प्रकार है-

  • फिल्म- ‘गांधी’ (1982)

डायरेक्शन-   रिचर्ड एटनबरो

गांधी जी का किरदार निभाया- हॉलीवुड कलाकार बने किंस्ले

2- फिल्म- ”गांधी माइ फादर”(2007)

डायरेक्टर- फिरोज अब्बास मस्तान

गांधी जी का किरदार निभाया- दर्शन जरीवाला

3- फिल्म- ”हे राम” (2000)

डायरेक्टर-कमल हसन

गांधी जी का किरदार निभाया- नसीरुद्दीन शाह

4- फिल्म- ”लगे रहो मुन्नाभाई”

डायरेक्टर- राजकुमार हिरानी (2006)

गांधी जी का किरदार निभाया- दिलीप प्रभावलकर

5- फिल्म- ”द मेकिंग ऑफ गांधी”(1996)

डायरेक्टर- श्याम बेनेगल

गांधी जी का किरदार निभाया-रजित कपूर

6- फिल्म- ”मैंने गांधी को नहीं मारा”(2005)

डायरेक्शन- जहनु बरुआ

इसके अलावा भी कई अन्य फिल्में भी गांधी जी के जीवन पर प्रदर्शित की गई हैं।

महात्मा गांधी जी के भजन – Mahatma Gandhi Bhajan

महात्मा गांधी जी के प्रिय भजन जिसे वह अक्सर गुनगुनाते थे-

भजन नंबर 1-

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।। पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।। सकल लोक माँ सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।। वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।। वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।। समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।। जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।। मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।। राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।। वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।। भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।।

आपको बता दें कि महात्मा गांधी जी का यह भजन साल 2018 में वैश्विव हो गया था, इस भजन को 124 देशों के कलाकरों ने एक साथ गाकर बापू जी को श्रद्धांजली अर्पित की थी।

भजन नंबर 2-

रघुपति राघव राजाराम,

पतित पावन सीताराम

सीताराम सीताराम,

भज प्यारे तू सीताराम

रघुपति राघव राजाराम ।।

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,

सब को सन्मति दे भगवान

रात का निंदिया दिन तो काम

कभी भजोगे प्रभु का नाम

करते रहिए अपने काम

लेते रहिए हरि का नाम

रघुपति राघव राजा राम ।।

इस भजन के अलावा भी गांधी जी ”साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।।।।……..” आदि भजन भी गुनगुनाते थे ।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के बारे में कई रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य हैं, जो हम आपको यहाँ बतायेंगे …

महात्मा गांधी के बारे में रोचक और अनसुने कुछ तथ्य – Fact about Mahatma Gandhi

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के बारे में कई ऐसे रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य हैं, जिनके बारे में शायद ही आप जानते हों। जिनके बारे में आज हम आपको अपने इस लेख के द्धारा बताएंगे, जो कि निम्नलिखित हैं –

1) गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था, इनके पिता करम चंद गांधी कट्टर हिंदू थे और जाति से मोध बनिया थे। गांधी जी गुजारात की राजधानी पोरबंदर के दीवान थे, इसके अलावा वे राजकोट और बांकानेर के दीवान भी रह चुके थे। उनकी मातृभाषा गुजराती थी।

2) आजादी के महानायक महात्मा गांधी को एक बहादुर, साहसी और बोल्ड नेता के रुप में तो सभी जानते हैं, लेकिन आपको बता दें कि उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वह बचपन में काफी शर्मीलें स्वभाव के व्यक्ति थे, यहां तक कि वे अपने सहपाठियों से बात करने में भी हिचकिचाते थे।

3) 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पूरे देश में मनाई जाती है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को विश्व अंहिसा दिवस के रुप में घोषित किया है, इसलिए उनकी जन्मदिन को अंतराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में भी मनाया जाता है।

4) महात्मा गांधी, पुतलीबाई और करमचंद गाधी जी की सबसे छोटी संतान थे, उनके दो भाई और एक बहन भी थी।

Mahatma Gandhi old photo

5) ऐसा माना जाता है कि 12 अप्रैल साल 1919 को रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने गांधीजी को ‘महात्मा’ कहकर संबोधित किया था। हालांकि इसको लेकर भी विद्धानों के अलग-अलग मत हैं।

6) महात्मा गांधी के बारे मे यह भी काफी रोचक है कि, उन्हें 5 बार नोबल पीस प्राइज के लिए नोमिनेट किया गया, लेकिन यह पुरस्कार कभी वह हासिल नहीं कर सके। क्योंकि साल 1948 में यह पुरस्कार मिलने से पहले ही उनकी गोडसे द्दारा हत्या कर दी गई थी। हालांकि नोबल कमेटी ने यह पुरस्कार उस साल किसी को नहीं दिया था।

7) भारत के राष्ट्रपिता को अमेरिका की टाइम मैग्जीन द्धारा साल 1930 में “Man of the year” पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

8) महात्मा गांधी के बारे में यह अति रोचक तथ्य है कि वे अपने पूरे जीवनकाल में कभी अमेरिका नहीं गए और यह भी कहा जाता है कि 24 साल विदेश में रहने के बाद भी वह कभी एयर प्लेन में भी नहीं बैठे।

9) सादा जीवन, उच्च विचार की सोच वाले गांधी जी हर रोज 18 किलोमीटर पैदल चलते थे, उनके जीवनकाल ने इस यात्रा के मुताबिक यह आकलन लगाया जाता है, उनकी पैदलयात्रा पूरी दुनिया के दो चक्कर लगाने के बराबर थी। वहीं साल 1939 में 70 साल की आयु में भी गांधी जी का वजन 46 किलोग्राम था।

10) देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने जीवन के 6 साल 5 महीने जेल में बिताए थे। आपको बता दें कि कि गांधी जी को 13 बार गिरफ्तार किया गया था।

11) महात्मा गांधी के प्रभावशाली व्यक्तित्व का प्रभाव पूरी दुनिया में है, इसलिए उनके सम्मान में उनके नाम के 53 मुख्य मार्ग भारत में और 48 सड़कें विदेशों में है।

12) जब 15 अगस्त, 1947 को हमारा भारत देश आजाद हुआ तो उस रात भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी का भाषण सुनने के लिए महात्मा गांधी मौजूद नहीं थे, वे उस दिन उपवास पर थे। आपको बता दें कि 1921 में महात्मा गांधी से देश के आजादी तक हर सोमवार को व्रत रखने का संकल्प लिया था और उन्होंने अपने जीवन में करीब 1 हजार 41 दिन उपवास रखा।

13) आजादी के आदर्श महानायक गांधी जी ने देश के लिए कई आंदोलन किए, कई बार उन्हें राजनीतिक पद अपनाने के लिए भी प्रस्ताव रखा गया, लेकिन गांधी जी ने अपने पूरे जीवन काल में कभी भी राजनीति पद को नहीं अपनाया।

long biography of mahatma gandhi in hindi

14) देश को आजादी करवाने के लिए गांधी जी ने तमाम आंदोलन किए और अंग्रेजी के खिलाफ कई सालों तक लड़ाई भी लड़ी, लेकिन अंग्रेजी सरकार ने ही महात्मा की मौत के 21 साल बाद उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया था, जो कि सराहनीय है।

15) महात्मा गांधी ने अपने पूरे जीवनकाल में तमाम संघर्ष और आंदोलन किए और सफलता भी हासिल की। इसके अलावा वे 4 महाद्दीप और 12 देशों में नागरिक अधिकार आंदोलन के लिए भी जिम्मेदार थे।

16) गांधी जी के बारे में यह भी कहा जाता है कि जब लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने वकालत करना शुरु किया था तो, वे कोर्ट में ठीक तरीके से अपना पक्ष भी नहीं रख पाते थे, यहां तक कि पहला केस लड़ते वक्त वह कांपने लगे और बहस बीच में ही छोड़कर बैठ गए, जिससे वह शुरुआती दौर में वकालत करने में फेल हो गए थे।

long biography of mahatma gandhi in hindi

हालांकि बाद में वह एक कुख्यात और सफल वकील भी बने। वहीं दक्षिण अफ्रीका में उन्हें वकालत के लिए 15 हजार डॉलर सालाना मिलते थे, जो आज के करीब 10 लाख रुपए के बराबर हैं, वहीं कई भारतीयों की सालाना आय आज भी इससे कम है।

17) गांधी जी के जीवन के आदर्शों और उनके महान विचारों की वजह से उनके तमाम प्रशंसक थे, लेकिन एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स भी महात्मा गांधी जी के सम्मान में गोल चश्मा पहनते थे।

18) महात्मा गांधी जी के बारे में एक अति रोचक तथ्य है कि वे नकली दांत लगाते थे, जिसे वह अपने कपड़े के बीच में रखते थे और इसका इस्तेमाल सिर्फ खाना खाते वक्त ही करते थे।

19) महात्मा गांधी जी के बारे में यह भी कहा जाता है कि उन्हें फोटो खिंचवाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था, लेकिन आजादी की लड़ाई के दौरान वह एक ऐसे महानायक थे, जिनकी सबसे ज्यादा फोटो खींची गई थी।

20) महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी, 1948 को गोडसे द्धारा बिरला भवन के बगीचे में कर दी गई थी। उनकी अंतिम यात्रा में काफी लोगों का हुजुम उमड़ा था, उनकी शवयात्रा करीब 8 किलोमीटर लंबी थी, जिसमें पैदल चलने वालों की संख्या करीब 10 लाख थी, जबकि 15 लाख से भी ज्यादा लोग रास्ते में खड़े होकर उनके अंतिम दर्शन कर रहे थे।

आपको बता दें कि महापुरुष महात्मा गांधी जी की शवयात्रा को आजाद भारत की सबसे बड़ी शवयात्रा भी कहा गया है।

इनके अलावा भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के बारे में कई ऐसे तथ्य हैं जो कि बेहद रोचक और महत्वपूर्ण है। हालांकि, महात्मा गांधी द्धारा राष्ट्र के लिए दिए गए योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। महात्मा गांधी जैसे शख्सियत का भारतभूमि पर जन्म लेना गौरव की बात है।

अगले पेज पर पढ़िए – राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बार में पुछे गये सवाल…

165 thoughts on “सत्य और अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जीवनी”

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महात्मा गाँधी ने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश कर दिया। बहुत ही अच्छा लेख लगा एक महान नेता को नमन, धन्यवाद।

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बहुत ही अच्छा लेख लिखा है आपने थैंक यू

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gandhi ji ka sampoorn parichay hindi me

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Mahatma Gandhi Biography In Hindi – महात्मा गाँधी सम्पूर्ण जीवन परिचय

Mahatma Gandhi Biography In Hindi – महात्मा गाँधी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक महान और प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। इनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869, को पोरबंदर, काठियावाड़ (भारत के प्रान्त गुजरात) जगह पर हुआ था, इनके पिता का नाम करमचन्द गाँधी जो सनातन धर्म की पंसारी जाति से संबध रखते थे, और ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान अर्थात् प्रधान मन्त्री थे।

इनकी माता पुतलीबाई परनामी वैश्य समुदाय की थीं। जो करमचन्द की चौथी पत्नी थी। करमचन्द की पहली तीन पत्नियाँ प्रसव के समय मर गयीं थीं। भक्ति करने वाली माता की देखरेख और प्रभाव के कारण गाँधी जी जैन परम्पराओं के प्रभाव में रहे और बाद में चलकर वही मोहनदास महात्मा गाँधी के नाम से पूरी दुनिया में विख्यात हो गए। दुर्बलों में जोश की भावना, शाकाहारी जीवन, आत्मशुद्धि के लिये उपवास तथा विभिन्न जातियों के लोगों के बीच सहिष्णुता ये महात्मा गाँधी के कुछ अच्छे विचार थे जिनको वो सभी का बताया करते थे।

Mahatma Gandhi Biography In Hindi – संछिप्त परिचय – 1869-1948

Mahatma Gandhi Biography In Hindi

पूरा नाम – मोहन दास करमचंद गाँधी अन्य नाम – राष्ट्रपिता, महात्मा, बापू जन्म – 2 अक्टूबर, 1869, को पोरबंदर, काठियावाड़ (भारत के प्रान्त गुजरात) पिता – करमचन्द गाँधी माता – पुतलीबाई परनामी स्कूली शिक्षा – पोरबंदर और राजकोट कॉलेज – शामलदास कॉलेज, यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन, कैरियर – दक्षिण अफ्रीका, प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के सलाहकार के रूप में आंदोलन – चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन, स्वराज और नमक सत्याग्रह (नमक मार्च), भारत छोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भी बहुत सारे आंदोंलन में गाँधी जी ने भाग लिया।

कम उम्र में शादी विवाह –

1883 में साढे 13 साल की उम्र में ही गाँधी जी का विवाह 14 साल की कस्तूरबा से करा दिया गया। जब गाँधी जी 15 साल के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया, जिसके बाद कुछ ही दिनों में उनकी पत्नी चल बसी उसी साल गाँधी जी के पिता जी भी चल बसे। बाद में गाँधी जी की चार संताने और हुई जिनके बारे में जानकारी हरीलाल गान्धी (1888), मणिलाल गान्धी (1892), रामदास गान्धी (1897) और देवदास गांधी (1900) इस प्रकार है।

महात्मा गाँधी की शिक्षा दीक्षा –

गाँधी जी ने स्कूली शिक्षा पोरबंदर में और हाई स्कूल की शिक्षा राजकोट में पूरी की, उसके बाद वो भावनगर के शामलदास कॉलेज में दाखिला लिए गाँधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा सन 1887 में अहमदाबाद से उत्तीर्ण की थी। ख़राब स्वास्थ्य और गृह वियोग के कारण वह अप्रसन्न ही रहे और कॉलेज छोड़कर पोरबंदर वापस चले गए।

विदेश में शिक्षा और वकालत –

गाँधी जी अपने परिवारक मित्र मावजी दवे की सलाह पर लन्दन से बैरिस्टर की पढाई करने का फैसला किया और वो वर्ष 1888 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये। वहां गाँधी जी को शाकाहारी खाने से सम्बंधित बहुत कठिनाई हुई क्योंकि वहां ज्यादातर लोग मांसाहार पसंद करते थे ऐसे में गाँधी जी को कई दिन भूखे सोना पड़ जाता था। धीरे – धीरे गाँधी जी वहां पर शाकाहारी भोजनालय के बारे में पता किया उसके बाद उनकी खाने पीने की समस्या का समाधान हो पाया। बाद में उन्होंने ‘वेजीटेरियन सोसाइटी’ की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। जून 1891 में गाँधी भारत लौट आये। उसी समय उनकी माँ का स्वर्गवास हुआ था बाद में गाँधी जी बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की मगर उसमे उनको कुछ खास सफलता नहीं मिली, इसके बाद वो राजकोट वापस आ गए। जहाँ उन्होंने जरूरतमन्दों के लिये मुकदमे की अर्जियाँ लिखने का काम किया मगर उसमे भी उनको सफलता नहीं मिली उसके बाद गाँधी जी को सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल (दक्षिण अफ्रीका) में एक वर्ष के करार पर वकालत करने का मौका मिला।

गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में (1893-1914)

गाँधी जी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका गए। पहली बार वो प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के सलाहकार के रूप में उनका चयन किया गया। उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताये, वहां उन्होंने अपने जीवन में राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल को विकसित किया वहां उनको गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना भी करना पड़ा एक बार Gandhi Ji ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार कर दिया था जिसके बाद उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था। यह सब बातें उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ ले ली उसके बाद उन्होंने सामाजिक और राजनैतिक अन्याय के प्रति जागरुकता के लिए काम करने का फैसला लेने का मन बना लिया फिर वे दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए कुछ अच्छे कदम उठाने और उनको न्याय दिलाने के बारे में सोचने लगे।

भारतियों को अपने राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के बारे में गाँधी को वहीँ से बिचार आने लगा उस समय हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था गाँधी जी साउथ अफ्रीका में ही मन बना लिए थे की वो अब अपने देश जाकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे और अपने देश को आजाद करवाएंगे।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष (1916-1945)

1914 में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आये। वहां से वापस आने के बाद गाँधी जी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। उस समय कांग्रेस के एक नेता हुआ करते थे जिनका नाम गोपाल कृष्ण गोखले था, उन्हीं के कहने पर गाँधी जी साउथ अफ्रीका से वापस आये थे। दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आने के बाद गाँधी जी ने सबसे पहले देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की।

Sabarmati-Ashram

साबरमती आश्रम: गुजरात में गांधी का घर जैसा 

Mahatma Gandhi Biography In Hindi – चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह –

गांधी जी बिहार के चम्पारण और गुजरात के खेड़ा में हुए आंदोलनों में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। बिहार के चंपारण में ब्रिटिश ज़मींदार किसानों को खाद्य फसलों की जगह नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे, और सस्ते मूल्य पर उनसे फसल खरीद लेते थे, जिससे किसानों की हालत दिन बा दिन बिगड़ती जा रही थी, कारण वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। उसी समय एक विनाशकारी अकाल के बाद अंग्रेजी सरकार ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया जिसके बाद गरीब और किसानों की मांगों को माना गया।

1918 में गुजरात की एक जगह खेड़ा बाढ़ और सूखे की चपेट में आ गया था जिसके कारण किसानों की हालत बहुत ख़राब हो गयी थी, लोग कर माफ़ी की मांग करने लगे खेड़ा में गाँधी जी के मार्गदर्शन में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ इस समस्या पर विचार विमर्श करने के लिए गए, अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया। इस प्रकार चंपारण और खेड़ा के बाद गांधी की ख्याति देश भर खूब फैली और गाँधी के महान नेता के रूप में पूरे भारत में प्रचलित होने लगे।

Mahatma Gandhi Biography In Hindi – खिलाफत आन्दोलन

कांग्रेस के अन्दर और मुस्लिमों के बीच अपनी लोकप्रियता बढ़ाने का मौका गाँधी जी को खिलाफत आन्दोलन के जरिये मिला। यह एक विश्वव्यापी आन्दोलन था, जिसके द्वारा खलीफा के गिरते प्रभुत्व का विरोध सारी दुनिया के मुसलमानों द्वारा किया जा रहा था। प्रथम विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद ओटोमन साम्राज्य विखंडित कर दिया गया था जिसके कारण मुसलमानों को अपने धर्म और धार्मिक स्थलों के सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई थी। खिलाफत का नेतृत्व ‘आल इंडिया मुस्लिम कांफ्रेंस’ द्वारा किया गया।

असहयोग आन्दोलन –

असहयोग आन्दोलन में गाँधी जी ने अनेकों कार्य किये जिसके बारे में अधिक जानकारी के लिए आप mahatma gandhi in hindi wikipedia पर जाकर पूरी जानकारी ले सकते है।

स्वराज और नमक सत्याग्रह –

असहयोग आन्दोलन के समय गिरफ्तार गाँधी जी वर्ष 1924 में रिहा हुए और सन 1928 तक सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे। इस दौरान वह स्वराज पार्टी और कांग्रेस के बीच मन मुटाव को कम करने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त अस्पृश्यता, शराब, अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ भी लड़ते रहे। दिसम्बर 1928 के कलकत्ता अधिवेशन में गांधी जी ने अंग्रेजी हुकुमत को भारतीय साम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा और ऐसा न करने पर देश की आजादी के लिए असहयोग आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा। अंग्रेजी हुकुमत से कोई जबाब न मिलने पर 31 दिसम्बर 1929 को लाहौर में भारत का झंडा फहराया गया कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 को भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया।

बाद में गाँधी जी ने सरकार के खिलाफ नमक पर कर लगाने के कारण नमक सत्याग्रह चलाया उन्होंने 12 मार्च से 6 अप्रेल तक अहमदाबाद से दांडी, गुजरात, तक लगभग 388 किलोमीटर की यात्रा की। जिसका उद्देश्य था स्वयं द्वारा नमक बनाना जिसके चलते उस समय सरकार ने 60 हजार से अधिक लोगों को गिरप्तार कर लिया। बाद में लार्ड इरविन के प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया, फलस्वरूप गांधी-इरविन संधि पर मार्च 1931 में हस्ताक्षर हुए। इस संधि से ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने पर सहमति जता दी उसके बाद सबको रिहा कर दिया।

उसके बाद कांग्रेस का एक प्रतिनिधि लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया, लेकिन इसमें कुछ खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद गांधी फिर से गिरफ्तार कर लिए गए, सरकार फिर से राष्ट्रवादी आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की। 1934 में गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया उसके बाद गाँधी जी ने भारत को शिक्षित करने, छुआछूत के ख़िलाफ़ आन्दोलन जारी रखने, कताई, बुनाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने और लोगों की आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाने का काम शुरू किया।

हरिजन आंदोलन –

दलित नेता बी आर अम्बेडकर के अथक प्रयासों के बाद भी ब्रिटिश सरकार ने अछूतों के लिए एक नए संविधान के अंतर्गत पृथक निर्वाचन कराने को मंजूरी दे दी जिसके खिलाफ येरवडा जेल में बंद गांधीजी ने इसका विरोध किया 1932 की सुबह से छ: दिन का उपवास गाँधी जी ने किया। सरकार को एक समान व्यवस्था (पूना पैक्ट) अपनाने पर मजबूर किया। 8 May 1933 को गांधी जी ने आत्म-शुद्धि के लिए फिर से 21 दिन का उपवास किया और हरिजन आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए एक-वर्षीय अभियान की शुरुआत की। अम्बेडकर जैसे नेता इस आंदोलन से खुश नहीं थे

द्वितीय विश्व युद्ध और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ –

अंग्रेजी सरकार ने गांधी जी और कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को मुबंई में 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया और गांधी जी को पुणे के आंगा खां महल ले जाया गया जहाँ उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया। इसी समय उनकी पत्नी का देहांत 22 फरवरी 1944 को हो गया। उसके बाद गाँधी जी को मलेरिया हो गया, ऐसे में अंग्रेजी हुकूमत उनको जेल में नहीं रखी और रिहा कर दिया। भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत को संगठित कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया था की जल्द ही सत्ता भारतीयों के हाँथ सौंप दी जाएगी।

उसके बाद गाँधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन ख़तम कर दिया और सरकार ने लाखों कैदियों को रिहा कर दिया। उस समय से अंग्रेजों को लगने लगा था की अब भारत को छोड़ देना चाहिए उनके कुछ अफसर और जर्नल ने भारतियों को बताया था की बहुत जल्द भारत को आजादी मिलने वाली है।

देश का विभाजन और आजादी –

Mahatma Gandhi Biography In Hindi, 2nd World War के समाप्त होते-होते ब्रिटिश सरकार ने देश को आज़ाद करने का संकेत दे दिया था। भारत की आजादी में साथ – साथ योग्यदान देने वाले मुस्लिम नेता जिन्ना ने एक अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग करने लगे जिसको आप आज पाकिस्तान के नाम से जानतें है गाँधी जी देश का बंटवारा नहीं चाहते थे पर ऐसा हो न सका। और अंग्रेजों ने देश को दो टुकड़ों – भारत और पाकिस्तान – में विभाजित कर दिया।

गाँधी जी की हत्या –

Mahatma Gandhi Biography In Hindi, 30 Jan 1948 को महात्मा गाँधी की दिल्ली के ‘ बिरला हाउस ’ में शाम के समय 5:17 पर हत्या कर दी गयी। उस समय गाँधी जी एक सभा को सम्बोधित करने जा रहे थे। उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे ने उबके सीने में 3 गोलियां दाग दी। इस तरह एक महान नेता का अंत हो गया ऐसा माना जाता है की गाँधी जी में मुख से अंतिम समय में ‘हे राम’ शब्द निकला था। महात्मा गाँधी की मौत के बाद नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया गया बाद में 1949 में में उनको फांसी की सजा सुनाई गयी।

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महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही सत्य और अहिंसा का स्मरण होता है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिन्होंने किसी दूसरे को सलाह देने से पहले उसका प्रयोग स्वंय पर किया। जिन्होंने बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी अहिंसा का मार्ग नहीं छोङा। महात्मा गाँधी महान व्यक्तित्व के राजनैतिक नेता थे। इन्होंने भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था। गाँधी जी सादा जीवन उच्च विचार के समर्थक थे, और इसे वे पूरी तरह अपने जीवन में लागू भी करते थे। उनके सम्पूर्णं जीवन में उनके इसी विचार की छवि प्रतिबिम्बित होती है। यहीं कारण है कि उन्हें 1944 में नेताजी सुभाष चन्द्र ने राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था।

महात्मा गाँधी से संबंधित तथ्य:

पूरा नाम – मोहनदास करमचन्द गाँधी अन्य नाम – बापू, महात्मा, राष्ट्र-पिता जन्म-तिथि व स्थान – 2 अक्टूबर 1869, पोरबन्दर (गुजरात) माता-पिता का नाम – पुतलीबाई, करमचंद गाँधी पत्नी – कस्तूरबा गाँधी शिक्षा – 1887 मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की,

  • विद्यालय – बंबई यूनिवर्सिटी, सामलदास कॉलेज
  • इंग्लैण्ड यात्रा – 1888-91, बैरिस्टर की पढाई, लंदन युनिवर्सिटी

बच्चों के नाम (संतान) – हरीलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास प्रसिद्धि का कारण – भारतीय स्वतंत्रता संग्राम राजनैतिक पार्टी – भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस स्मारक – राजघाट, बिरला हाऊस (दिल्ली) मृत्यु – 30 जनवरी 1948, नई दिल्ली मृत्यु का कारण – हत्या

महात्मा गाँधी की जीवनी (जीवन-परिचय)

महात्मा गाँधी (2 अक्टूबर 1869 – 30 जनवरी 1948)

जन्म, जन्म-स्थान व प्रारम्भिक जीवन

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर, गुजरात में करमचंद गाँधी के घर पर हुआ था। यह स्थान (पोरबंदर) पश्चिमी भारत में गुजरात राज्य का एक तटीय शहर है। ये अपनी माता पुतलीबाई के अन्तिम संतान थे, जो करमचंद गाँधी की चौथी पत्नी थी। करमचंद गाँधी की पहली तीन पत्नियों की मृत्यु प्रसव के दौरान हो गई थी। ब्रिटिश शासन के दौरान इनके पिता पहले पोरबंदर और बाद में क्रमशः राजकोट व बांकानेर के दीवान रहें।

महात्मा गाँधी जी का असली नाम मोहनदास था और इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी। इसी कारण इनका नाम पूरा नाम मोहन दास करमचंद गाँधी पङा। ये अपने तीन भाईयों में सबसे छोटे थे। इनकी माता पुतलीबाई, बहुत ही धार्मिक महिला थी, जिस का गाँधी जी के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पङा। जिसे उन्होंने स्वंय पुणे की यरवदा जेल में अपने मित्र और सचिव महादेव देसाई को कहा था, ‘‘तुम्हें मेरे अंदर जो भी शुद्धता दिखाई देती हो वह मैंने अपने पिता से नहीं, अपनी माता से पाई है…उन्होंने मेरे मन पर जो एकमात्र प्रभाव छोड़ा वह साधुता का प्रभाव था।’’

गाँधी जी का पालन-पोषण वैष्णव मत को मानने वाले परिवार में हुआ, और उनके जीवन पर भारतीय जैन धर्म का गहरा प्रभाव पङा। यही कारण है कि वे सत्य और अहिंसा में बहुत विश्वास करते थे और उनका अनुसरण अपने पूरे जीवन काल में किया।

गाँधी जी का विवाह (शादी)/ गाँधी जी का वैवाहिक जीवन

गाँधी जी की शादी सन् 1883, मई में 13 वर्ष की आयु पूरी करते ही 14 साल की कस्तूरबा माखन जी से हुई। गाँधी जी ने इनका नाम छोटा करके कस्तूरबा रख दिया और बाद में लोग उन्हें प्यार से बा कहने लगे। कस्तूरबा गाँधी जी के पिता एक धनी व्यवसायी थे। कस्तूरबा गाँधी शादी से पहले तक अनपढ़ थीं। शादी के बाद गाँधीजी ने उन्हें लिखना एवं पढ़ना सिखाया। ये एक आदर्श पत्नी थी और गाँधी जी के हर कार्य में दृढता से उनके साथ खङी रही। इन्होंने गाँधी जी के सभी कार्यों में उनका साथ दिया।

1885 में गाँधी जी जब 15 साल के थे तब इनकी पहली संतान ने जन्म लिया। लेकिन वह कुछ ही समय जीवित रहीं। इसी वर्ष इनके पिताजी करमचंद गाँधी की भी मृत्यु हो गयी। गाँधी जी के 4 सन्तानें थी और सभी पुत्र थे:- हरीलाल गाँधी (1888), मणिलाल गाँधी (1892), रामदास गाँधी (1897) और देवदास गाँधी (1900)।

गाँधी जी की शिक्षा- दीक्षा

प्रारम्भिक शिक्षा

गाँधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबंदर में हुई थी। पोरबंदर से उन्होंने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की। इनके पिता की बदली राजकोट होने के कारण गाँधी जी की आगे की शिक्षा राजकोट में हुई। गाँधी जी अपने विद्यार्थी जीवन में सर्वश्रेष्ठ स्तर के विद्यार्थी नहीं थे। इनकी पढाई में कोई विशेष रुचि नहीं थी। हालांकि गाँधी जी एक एक औसत दर्जें के विद्यार्थी रहे, किन्तु किसी किसी प्रतियोगिता और खेल में उन्होंने पुरुस्कार और छात्रवृतियॉ भी जीती। 21 जनवरी 1879 में राजकोट के एक स्थानीय स्कूल में दाखिला लिया। यहाँ उन्होंने अंकगणित, इतिहास और गुजराती भाषा का अध्यन किया।

साल 1887 में जैसे-तैसे उन्होंने राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे की पढ़ाई के लिये भावनगर के सामलदास कॉलेज में प्रवेश लिया। घर से दूर रहने के कारण वे पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाये और अस्वस्थ होकर पोरबंदर वापस लौट आये। यदि आगे की पढ़ाई का निर्णय गाँधी जी पर छोड़ा जाता तो वह डॉक्टरी की पढ़ाई करके डॉक्टर बनना चाहते थे, किन्तु उन्हें घर से इसकी अनुमति नहीं मिली।

इंग्लैण्ड में उच्च स्तर की पढाई

गाँधी जी के पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार के एक करीबी मित्र भावजी दवे ने उन्हें वकालत करने की सलाह दी और कहा कि बैरिस्टर की पढ़ाई करने के बाद उन्हें अपने पिता का उत्तराधिकारी होने के कारण उनका दीवानी का पद मिल जायेगा।

उनकी माता पुतलीबाई और परिवार के कुछ सदस्यों ने उनके विदेश जाने के फैसले का विरोध किया, किन्तु गाँधी जी ने अपनी माँ से वादा किया कि वे शाकाहारी भोजन करेगें। इस प्रकार अपनी माँ को आश्वस्त करने के बाद उन्हें इंग्लैण्ड जाने की आज्ञा मिली।

4 सितम्बर 1888 को गाँधी जी इंग्लैण्ड के लिये रवाना हुये। यहाँ आने के बाद इन्होंने पढ़ाई को गम्भीरता से लिया और मन लगाकर अध्ययन करने लगे। हालांकि, इंग्लैण्ड में गाँधी जी का शुरुआती जीवन परेशानियों से भरा हुआ था। उन्हें अपने खान-पान और पहनावे के कारण कई बार शर्मिदा भी होना पड़ा। किन्तु उन्होंने हर एक परिस्थिति में अपनी माँ को दिये वचन का पालन किया।

बाद में इन्होंने लंदन शाकाहारी समाज (लंदन वेजीटेरियन सोसायटी) की सदस्यता ग्रहण की और इसके कार्यकारी सदस्य बन गये। यहाँ इनकी मुलाकात थियोसोफिकल सोसायटी के कुछ लोगों से हुई जिन्होंने गाँधी जी को भगवत् गीता पढ़ने को दी। गाँधी जी लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के सम्मेलनों में भाग लेने लगे और उसकी पत्रिका में लेख लिखने लगे। यहाँ तीन वर्षों (1888-1891) तक रहकर अपनी बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी की और 1891 में ये भारत लौट आये।

गाँधी जी का 1891-1893 तक का समय

1891 में जब गाँधी जी भारत लौटकर आये तो उन्हें अपनी माँ की मृत्यु का दुखद समाचार प्राप्त हुआ। उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि वकालत एक स्थिर व्यवसायी जीवन का आधार नहीं है। गाँधी जी ने बंबई जाकर वकालत का अभ्यास किया किन्तु स्वंय को स्थापित नहीं कर पाये और वापस राजकोट आ गये। यहाँ इन्होंने लागों की अर्जियाँ लिखने का कार्य शुरु कर दिया। एक ब्रिटिश अधिकारी को नाराज कर देने के कारण इनका यह काम भी बन्द हो गया।

गाँधी जी की अफ्रीका यात्रा

एक वर्ष के कानून के असफल अभ्यास के बाद, गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका के व्यापारी दादा अब्दुला का कानूनी सलाहकार बनने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 1883 में गाँधी जी ने अफ्रीका (डरबन) के लिये प्रस्थान किया। इस यात्रा और वहाँ के अनुभवों ने गाँधी जी के जीवन को एक महत्वपूर्ण मोङ दिया। इस यात्रा के दौरान गाँधी जी को भारतियों के साथ हो रहें भेदभाव को देखा।

ऐसी कुछ घटनाऐं उनके साथ घटित हुई जिससे उन्हें भारतियों और अश्वेतों के साथ हो रहे अत्याचारों का अनुभव हुआ जैसे: 31 मई 1883 को प्रिटोरिया जाने के दौरान प्रथम श्रेणी की टिकट के बावजूद उन्हें एक श्वेत अधिकारी ने गाडी से धक्का दे दिया और उन्होंने ठिठुरते हुये रात बिताई क्योंकि वे किसी से पुनः अपमानित होने के डर से कुछ पूछ नहीं सकते थे, एक अन्य घटना में एक घोङा चालक ने उन्हें पीटा क्योंकि उन्होंने एक श्वेत अंग्रेज को सीट देकर पायदान पर बैठकर यात्रा करने से इंकार कर दिया था, यूरोपियों के लिये सुरक्षित होटलों पर जाने से रोक आदि कुछ ऐसी घटनाऐं थी जिन्होंने गाँधी जी के जीवन का रुख ही बदल दिया।

नटाल (अफ्रीका) में भारतीय व्यापारियों और श्रमिकों के लिये यह अपमान आम बात थी और गाँधी जी के लिये एक नया अनुभव। यहीं से गाँधी जी के जीवन में एक नये अध्याय की शुरुआत हुई। गाँधी जी ने सोचा कि यहाँ से भारत वापस लौटना कायरता होगी अतः वहीं रह कर इस अन्याय का विरोध करने का निश्चय किया। इस संकल्प के बाद वे अगले 20 वर्षों (1893-1894) तक दक्षिण अफ्रीका में ही रहें और भारतियों के अधिकारों और सम्मान के लिये संघर्ष किया।

दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष का प्रथम चरण (1884-1904) –

  • संघर्ष के इस प्रथम चरण के दौरान गाँधी जी की राजनैतिक गतिविधियाँ नरम रही। इस दौरान उन्होंने केवल सरकार को अपनी समस्याओं और कार्यों से संबंधित याचिकाएँ भेजते थे।
  • भारतियों को एक सूत्र में बाँधने के लिये 22 अगस्त 1894 में “नेटाल भारतीय काग्रेंस का” गठन किया।
  • “इण्डियन ओपिनियन” नामक अखबार के प्रकाशन की प्रक्रिया शुरु की।
  • इस संघर्ष को व्यापारियों और वकीलों के आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।

संघर्ष का दूसरा चरण –

  • अफ्रीका में संघर्ष के दूसरे चरण की शुरुआत 1906 में हुई।
  • इस समय उपनिवेशों की राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन हो चुका था, तो गाँधी जी ने नये स्तर से आन्दोलन को प्रारम्भ किया। यहीं से मूल गाँधीवादी प्राणाली की शुरुआत मानी जाती है।
  • 30 मई 1910 में जोहान्सवर्ग में टाल्सटाय और फिनिक्स सेंटमेंट की स्थापना।
  • काग्रेंस के कार्यकर्ताओं को अहिंसा और सत्याग्रह का प्रशिक्षण।

महात्मा गाँधी का भारत आगमन

1915 में 46 वर्ष की उम्र में गाँधी जी भारत लौट आये, और भारत की स्थिति का सूक्ष्म अध्ययन किया। गोपाल कृष्ण गोखले (गाँधी जी के राजनीतिक गुरु) की सलाह पर गाँधी जी नें एक वर्ष शान्तिपूर्ण बिना किसी आन्दोलन के व्यतीत किया। इस समय में उन्होंने भारत की वास्तविक स्थिति से रूबरू होने के लिये पूरे भारत का भ्रमण किया। 1916 में गाँधी जी नें अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। फरवरी 1916 में गाँधी जी ने पहली बार बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में मंच पर भाषण दिया। जिसकी चर्चा पूरे भारत में हुई।

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका

चम्पारण और खेडा आन्दोलन (1917-1918)

साल 1917 में बिहार के चम्पारण जिले में रहने वाले किसानों के हक के लिये गाँधी जी ने आन्दोलन किया। यह गाँधी जी का भारत में प्रथम सक्रिय आन्दोलन था, जिसनें गाँधी जी को पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। इस आन्दोलन में उन्होंने अहिंसात्मक सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और इस प्रयोग में प्रत्याशित सफलता भी अर्जित की।

19 वीं शताब्दी के अन्त में गुजरात के खेड़ा जिले के किसान अकाल पड़ने के कारण असहाय हो गये और उस समय उपभोग की वस्तुओं के भी दाम बहुत बढ़ गये थे। ऐसे में किसान करों का भुगतान करने में बिल्कुल असमर्थ थे। इस मामले को गाँधी जी ने अपने हाथ में लिया और सर्वेंट ऑफ इण्डिया सोसायटी के सदस्यों के साथ पूरी जाँच-पड़ताल के बाद अंग्रेज सरकार से बात की और कहा कि जो किसान लगान देने की स्थिति में है वे स्वतः ही दे देंगे बशर्तें सरकार गरीब किसानों का लगान माफ कर दें। ब्रिटिश सरकार ने यह प्रस्ताव मान लिया और गरीब किसानों का लगान माफ कर दिया।

1918 में अहमदाबाद मिल मजदूरों के हक के लिये भूख हङताल

1918 में अहमदाबाद के मिल मालिक कीमत बढने के बाद भी 1917 से दिये जाने वाले बोनस को कम बंद कर करना चाहते थे। मजदूरों ने माँग की बोनस के स्थान पर मजदूरी में 35% की वृद्धि की जाये, जबकि मिल मालिक 20% से अधिक वृद्धि करना नहीं चाहते थे। गाँधी जी ने इस मामले को सौंपने की माँग की। किन्तु मिल मालिकों ने वादा खिलाफी करते हुये 20% वृद्धि की। जिसके खिलाफ गाँधी जी नें पहली बार भूख हङताल की। यह इस हङताल की सबसे खास बात थी। भूख हङताल के कारण मिल मालिकों को मजदूरों की माँग माननी पङी।

इन आन्दोलनों ने गँधी जी को जनप्रिय नेता तथा भारतीय राजनीति के प्रमुख स्तम्भ के रुप में स्थापित कर दिया।

खिलाफत आन्दोलन (1919-1924)

तुर्की के खलीफा के पद की दोबारा स्थापना करने के लिये देश भर में मुसलमानों द्वारा चलाया गया आन्दोलन था। यह एक राजनीतिक-धार्मिक आन्दोलन था, जो अंग्रेजों पर दबाव डालने के लिये चलाया गया था। गाँधी जी ने इस आन्दोलन का समर्थन किया। इस आन्दोलन का समर्थन करने का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता आन्दोलन में मुसलिमों का सहयोग प्राप्त करना था।

असहयोग आन्दोलन (1919-1920)

प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान प्रेस पर लगे प्रतिबंधों और बिना जाँच के गिरफ्तारी वे आदेश को सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता वाली समिति ने इन कडे नियमों को जारी रखा। जिसे रोलेट एक्ट के नाम से जाना गया। जिसका पूरे भारत में व्यापक स्तर पर विरोध हुआ। उस विरोधी आन्दोलन को असहयोग आन्दोलन का नाम दिया गया। असहयोग आन्दोलन के जन्म का मुख्य कारण रोलट एक्ट और जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड (1919) था।

गाँघी जी अध्यक्षता में 30 मार्च 1919 और 6 अप्रैल 1919 को देश व्यापी हङताल का आयोजन किया गया। चारों तरफ देखते ही देखते सभी सरकारी कार्य ठप्प हो गये। अंग्रेज अधिकारी इस असहयोग के हथियार के आगे बेवस हो गये। 1920 में गाँधी जी कांग्रेस के अध्यक्ष बने और इस आन्दोलन में भाग लेने के लिये भारतीय जनमानस को प्रेरित किया। गाँधी जी की प्रेरणा से प्रेरित होकर प्रत्येक भारतीय ने इसमें बढ-चढ कर भाग लिया।

इस आन्दोलन को और अधिक प्रभावी करने के लिये और हिन्दू- मुसलिम एकता को मजबूती देने के उद्देश्य से गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन से जोङ दिया।

सरकारी आकडों के अनुसार साल 1921 में 396 हडतालें आयोजित की गयी जिसमें 6 लाख श्रमिकों ने भाग लिया था और इस दौरान लगभग 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ था। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कालेजों में जाना बन्द कर दिया, वकीलों ने वकालात करने से मना कर दिया और श्रमिक वर्ग हङताल पर चला गया। इस प्रकार प्रत्येक भारतीय नागरिक ने अपने अपने ढंग से गाँधी जी के इस आन्दोलन को सफल बनाने में सहयोग किया। 1857 की क्रान्ति के बाद यह सबसे बङा आन्दोलन था जिसने भारत में ब्रिटिश शासन के अस्तित्व को खतरें में डाल दिया था।

चौरी-चौरा काण्ड (1922)

1922 तक आते आते यह देश का सबसे बङा आन्दोलन बन गया था। एक हङताल की शान्तिपूर्ण विरोध रैली के दौरान यह अचानक हिंसात्मक रुप में परिणित हो गया। विरोध रैली के दौरान पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करके जेल में डालने से भीङ आक्रोशित हो गयी। और किसानों के एक समूह ने फरवरी 1922 में चौरी-चौरा नामक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी। इस घटना में कई निहत्थे पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गयी।

इस घटना से गाँधी जी बहुत आहत हुये और उन्होंने इस आन्दोलन को वापस ले लिया। गांधी जी ने यंग इण्डिया में लिखा था कि, “आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।”

सविनय अवज्ञा आन्दोलन (12 मार्च 1930)

इस आनदोलन का उद्देश्य पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना था। गाँधी जी और अन्य अग्रणी नेताओं को अंग्रेजों के इरादों पर शक होने लगा था कि वे अपनी औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की घोषणा को पूरी करेगें भी या नहीं। गाँधी जी ने अपनी इसी माँग का दबाव अंग्रेजी सरकार पर डालने के लिये 6 अप्रैल 1930 को एक और आन्दोलन का नेतृत्व किया जिसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।

इसे दांङी मार्च या नमक कानून भी कहा जाता है। यह दांङी मार्च गाँधी जी ने साबरमती आश्रम से निकाली। इस आन्दोलन का उद्देश्य सामूहिक रुप से कुछ विशिष्ट गैर-कानूनी कार्यों को करके सरकार को झुकाना था। इस आन्दोलन की प्रबलता को देखते हुये सरकार ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन को समझौते के लिये भेजा। गाँधी जी ने यह समझौता स्वीकार कर लिया और आन्दोलन वापस ले लिया।

भारत छोडो आन्दोलन (अगस्त 1942)

क्रिप्श मिशन की विफलता के बाद गाँधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपना तीसरा बङा आन्दोलन छेङने का निर्णय लिया। इस आन्दोलन का उद्देश्य तुरन्त स्वतंत्रता प्राप्त करना था। 8 अगस्त 1942 काग्रेंस के बम्बई अधिवेशन में अंग्रेजों भारत छोङों का नारा दिया गया और 9 अगस्त 1942 को गाँधी जी के कहने पर पूरा देश आन्दोलन में शामिल हो गया। ब्रिटिश सरकार ने इस आन्दोलन के खिलाफ काफी सख्त रवैया अपनाया। इस आन्दोलन को दबाने में सरकार को एक वर्ष से अधिक समय लगा।

भारत का विभाजन और आजादी

अंग्रेजों ने जाते जाते भी भारत को दो टुकङों में बाँट दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की स्थिति बहुत कमजोर हो गयी थी। उन्होंने भारत को आजाद करने के संकेत दे दिये थे। भारत की आजादी के साथ ही जिन्ना के नेतृत्व में एक अलग राज्य पाकिस्तान की भी माँग होने लगी। गाँधी जी देश का बँटवारा नहीं होने देना चाहते थे। किन्तु उस समय परिस्थितियों के प्रतिकूल होने के कारण देश दो भागों में बँट गया।

महात्मा गाँधी की मृत्यु (30 जनवरी 1948)

नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने 30 जनवरी 1948 को शाम 5 बजकर 17 मिनट पर बिरला हाउस में गाँधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी। जवाहर लाल नेहरु ने गाँधी जी की हत्या की सूचना इन शब्दों में दी, ‘हमारे जीवन से प्रकाश चला गया और आज चारों तरफ़ अंधकार छा गया है। मैं नहीं जानता कि मैं आपको क्या बताऊँ और कैसे बताऊँ। हमारे प्यारे नेता, राष्ट्रपिता बापू अब नहीं रहे।’

गाँधी जी का जीवन-चक्र (टाईम-लाइन) एक नजर मेः-

1879 – जन्म – 2 अक्टूबर, पोरबंदर (गुजरात)।

1876 – गाँधी जी के पिता करमचंद गाँधी की राजकोट में बदली, परिवार सहित राजकोट आना और कस्तूरबा माखन जी से सगाई।

1879 – 21 जनवरी 1879 को राजकोट के स्थानीय स्कूल में दाखिला।

1881 – राजकोट हाई स्कूल में पढाई।

1883 – कस्तूरबा माखन जी से विवाह।

1885 – गाँधी जी के पिता की मृत्यु, इसी वर्ष इनके पहले पुत्र का जन्म और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु।

1887 – राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की, सामलदास कॉलेज (भावनगर) में प्रवेश।

1888 – पहले पुत्र हरीलाल का जन्म, बैरिस्टर की पढाई के लिये इंग्लैण्ड के लिये प्रस्थान।

1891 – बैरिस्टर की पढाई करके भारत लौटे, अपनी अनुपस्थिति में माता पुतलीबाई के निधन का समाचार, पहले बम्बई बाद में राजकोट में वकालात की असफल शुरुआत।

1892 – दूसरे पुत्र मणिलाल गाँधी का जन्म।

1893 – अफ्रीकी व्यापारी दादा अब्दुला के कानूनी सलाहकार का प्रस्ताव को स्वीकार कर अफ्रीका (डरबन) के लिये प्रस्थान, 31 मई 1893 को प्रिटोरिया रेल हादसा, रंग-भेद का सामना।

1894 – दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष के प्रथम चरण का प्रारम्भ, नेटाल इण्डियन कांग्रेस की स्थापना।

1896 – भारत आगमन (6 महीने के लिये) और पत्नी और एक पुत्र को लेकर अफ्रीका वापस गये।

1897 – तीसरे पुत्र रामदास का जन्म।

1899 – बोअर युद्ध में ब्रिटिश की मदद के लिये भारतीय एम्बुलेंस सेवा प्रदान की।

1900 – चौथे और अन्तिम पुत्र देवदास का जन्म।

1901 – अफ्रीकी भारतियों को आवश्यकता के समय मदद करने के लिये वापस आने का आश्वासन देकर परिवार सहित स्वदेश आगमन, भारत का दौरा, कांग्रेस अधिवेशन में भाग और बबंई में वकालात का दफ्तर खोला।

1902 – अफ्रीका में भारतियों द्वारा बुलाये जाने पर अफ्रीका के लिये प्रस्थान।

1903 – जोहान्सवर्ग में वकालात दफ्तर खोला।

1904 – इण्डियन ओपिनियन सप्ताहिक पत्र का प्रकाशन।

1906 – जुल्लु युद्ध के दौरान भारतियों को मदद के लिये प्रोत्साहन, आजीवन ब्रह्मचर्य का संकल्प, एशियाटिक ऑर्डिनेन्स के विरोध में प्रथम सत्याग्रह।

1907 – ब्लैक एक्ट (भारतियों और अन्य एशियाई लोगों का जबरदस्ती पंजीयन) के विरोध में सत्याग्रह।

1908 – दक्षिण अफ्रीका (जोहान्सवर्ग) में पहली जेल यात्रा, दूसरा सत्याग्रह (पुनः जेल यात्रा)।

1909 – दक्षिण अफ्रीकी भारतियों की ओर से पक्ष रखने के इंग्लैण्ड यात्रा, नवम्बर (13-22 तारीख के बीच) में वापसी के दौरान हिन्द स्वराज पुस्तक की रचना।

1910 – 30 मई को जोहान्सवर्ग में टाल्सटाय और फिनिक्स सेंटमेंट की स्थापना।

1913 – द ग्रेट मार्च का नेतृत्व, 2000 भारतीय खदान कर्मियों की न्युकासल से नेटाल तक की पदयात्रा।

1915 – 21 वर्ष बाद भारत वापसी।

1916 – साबरमती नदी के किनारे (अहमदाबाद में) आश्रम की स्थापना, बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय की स्थापना पर प्रथम बार गाँधी जी का मंच से भाषण।

1917 – बिहार के चम्पारन जिले में नील किसानों के हक के लिये सत्याग्रह आन्दोलन।

1918 – अहमदाबाद में मिल मजदूरों की हक की लङाई में मध्यस्था

1919 – रोलेट एक्ट और जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में सत्याग्रह छेङा, जो आगे चलकर असहयोग आन्दोलन (1920) के नाम से प्रसिद्ध हुआ, यंग इण्डिया (अंग्रेजी) और नवजीवन (गुजराती) सप्ताहिक पत्रिका का संपादन।

1920 – जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में केसर-ए-हिन्द की उपाधि वापस की, होमरुल लीग के अध्यक्ष निर्वाचित हुये।

1921 – असहयोग आन्दोलन के अन्तर्गत बंबई में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई, साम्प्रदायिक हिंसा के विरोध में 5 दिन का उपवास।

1922 – चौरी-चौरा कांड के कारण असहयोग आन्दोलन को वापस लिया, राजद्रोह का मुकदमा और 6 वर्ष का कारावास।

1924 – बेलगाम कांग्रेस अधिवेसन में अध्यक्ष चुने गये, साम्प्रदायिक एकता के लिये 21 दिन का उपवास।

1928 – कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में भाग, पूर्ण स्वराज का आह्वान।

1929 – कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस घोषित करके राष्ट्रव्यापी आन्दोलन आरम्भ।

1930 – नमक कानून तोङने के लिये साबरमती आश्रम से दांङी यात्रा जिसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन का नाम दिया।

1931 – गाँधी इरविन समझौता, गाँधी जी ने दूसरे गोलमाज सम्मेलन में भाग लेने को तैयार।

1932 – यरवदा पैक्ट को ब्रिटिश स्वीकृति।

1933 – साबरमती तट पर बने आश्रम का नाम हरिजन आश्रम रखकर देश में अस्पृश्यता विरोधी आन्दोलन छेङा, हरिजन नामक सप्ताहिक पत्र का प्रकाशन।

1934 – अखिल भारतीय ग्रामोद्योग की स्थापना।

1936 – वर्धा में सेवाश्रम की स्थापना।

1937 – दक्षिण भारत की यात्रा।

1940 – विनोबा भावे को पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही के रुप में चुना गया।

1942 – क्रिप्स मिशन की असफलता, भारत छोङो अभियान की शुरुआत, सचिव मित्र महादेव देसाई का निधन।

1944 – 22 फरवरी को गाँधी जी की पत्नी कस्तूरबा गाँधी जी की मृत्यु।

1946 – बंगाल के साम्प्रदायिक दंगो के संबंध में कैबिनेट मिशन से भेंट।

1947 – साम्प्रदायिक शान्ति के लिये बिहार यात्रा, जिन्ना और गवर्नल जनरल माउन्टबैटेन से भेंट, देश विभाजन का विरोध।

1948 – बिङला हाउस में जीवन का अन्तिम 5 दिन का उपवास, 20 जनवरी को प्रार्थना सभा में विस्फोट, 30 जनवरी को प्रार्थना के लिये जाते समय नाथूराम गोडसे द्वारा हत्या।

गाँधी जी के अनमोल वचन

  • “पाप से घृणा करो, पापी से नहीं”।
  • “जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते है, वह पहले स्वंय में लाये।”
  • “वास्तविक सौन्दर्य ह्रदय की पवित्रता में है|”
  • “अहिंसा ही धर्म है, वही जिंदगी का एक रास्ता है|”
  • “गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है।”
  • “चरित्र की शुद्धि ही सारे ज्ञान का ध्येय होनी चाहिए|”
  • “जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है|”
  • “जब भी आप एक प्रतिद्वंद्वी के साथ सामना कर रहे हैं। प्यार के साथ उसे जीतना।”
  • “अहिंसा, किसी भी प्राणी को विचार, शब्द या कर्म से चोट नहीं पहुंचाना है, यहाँ तक कि किसी प्राणी के लाभ के लिए भी नहीं।”
  • “जहाँ प्यार है, वहाँ जीवन है।”
  • “मैं आपके मसीहा (ईशा) को पसन्द करता हूँ, मैं आपके ईसाइयों को पसंद नहीं करता। आपके ईसाई आपके मसीहा (ईशा) के बहुत विपरीत हैं।”
  • “सबसे पहले आपकी उपेक्षा करते है, तब वे आप पर हंसते हैं, तब वे आप से लड़ते हैं, तब आप जीतते है।”
  • “मैं खुद के लिए कोई पूर्णता का दावा नहीं करता। लेकिन मैं सच्चाई के पीछे एक भावुक साधक का दावा करता हूँ, जो भगवान का दूसरा नाम हैं।”
  • “मेरे पास दुनिया को पढ़ाने के लिए कोई नई बात नहीं है। सत्य और अहिंसा पहाड़ियों के जैसे पुराने हैं। मैंनें पूर्ण प्रयास के साथ विशाल पैमाने पर दोनों में प्रयोगों की कोशिश है, जितना मैं कर सकता था।”
  • “कमज़ोर कभी माफ नहीं कर सकते। क्षमा ताकतवर की विशेषता है।”
  • “आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।”
  • “खुशी जब मिलेगी जब जो आप सोचते है, कहते है, और जो करते है, सामंजस्य में हों।”
  • “ऐसे जियो जैसे कि तुम कल मरने वाले हो। ऐसे सीखो की तुम हमेशा के लिए जीने वाले हो।”
  • “किसी राष्ट्र की संस्कृति उसके लोगों के दिलों और आत्माओं में बसती है|”
  • “कुछ लोग सफलता के सपने देखते हैं जबकि अन्य व्यक्ति जागते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं|”
  • “जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता | दुःख के बिना सुख नहीं होता|”
  • “विश्वास करना एक गुण है, अविश्वास दुर्बलता कि जननी है|”
  • “यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी हर भूल उसे कुछ शिक्षा दे सकती है।”
  • “राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है|”
  • “चिंता के समान शरीर का क्षय और कुछ नहीं करता, और जिसे ईश्वर में जरा भी विश्वास है उसे किसी भी विषय में चिंता करने में ग्लानि होनी चाहिए।”
  • “हंसी मन की गांठें बड़ी आसानी से खोल देती है|”
  • “काम की अधिकता नहीं, अनियमितता आदमी को मार डालती है|”
  • “लम्बे-लम्बे भाषणों से कहीं अधिक मूल्यवान इंच भर कदम उठाना है।”
  • “आपका कोई काम महत्वहीन हो सकता है, किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।”
  • “मेरी आज्ञा के बिना मुझे कोई नुकसान नहीं पहुँचा करता।”
  • “क्रोध एक किस्म का क्षणिक पागलपन है।”
  • “क्षणभर भी बिना काम के रहना ईश्वर से चोरी समझो। मैं आन्तरिक और बाहरी सुख का दूसरा कोई भी रास्ता नहीं जानता।”
  • “अहिंसा में इतनी ताकत है कि वह विरोधियों को भी अपना मित्र बना लेती है और उनका प्रेम प्राप्त कर लेती है।”
  • “मैं हिन्दी के जरिये प्रांतीय भाषाओं को दबाना नहीं चाहता बल्कि उनके साथ हिन्दी को भी मिला देना चाहता हूँ।”
  • “एक धर्म सभी भाषणों से परे है।”
  • “किसी में विश्वास करना और उसे ना जीना बेईमानी है।”
  • “बिना उपवास के कोई प्रार्थना नहीं और बिना प्रार्थना के कोई उपवास नहीं।”
  • “मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।”
  • “मानवता का सबसे बङा हथियार शान्ति है।”

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महात्मा गांधी की जीवनी: Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay

Information About Mahatma Gandhi in Hindi:  श्री मोहनदास करमचंद गांधी जी (महात्मा गांधी) – (02 अक्टूबर 1869 – 30 जनवरी 1948) – महात्मा गांधी का जीवन परिचय आपको नीचे पढ़ने को मिलेगा।⇓

महात्मा गांधी जी को राष्ट्रीय पिता, बापू जी, महात्मा गांधी भी कहा जाता है। पूरे भारत वर्ष में महात्मा गांधी जी को सुपर फाइटर के नाम से भी जाना जाता है। जिन्होंने कई आंदोलन किये और जीते भी। इन्हे कौन नहीं जानता? पूरे भारत वर्ष में शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो इन्हे नहीं जानता होगा। आज के इस लेख में हम बात केवल  महात्मा गांधी की जीवनी की ही नहीं उनसे जुड़ी घटनाओं की भी बात करेंगे।

मैं आपको कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहा हूँ जिन्हें आपको जानने में बहुत आनंद आयेगा।

महात्मा गांधी का जीवन परिचय पर निबंध

महात्मा गांधी जी भारत के मात्र एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हे सम्पूर्ण भारत “बापू जी” के नाम से बुलाता है। बापू जी ने हमेशा एक सदाचार जीवन व्यतीत किया था। महात्मा गांधी जी एक साधारण परिवार में जन्मे थे और उन्होने अपना जीवन अपनी जनता के लिए बिताया। साधारण जीवन जीना बेहद ही मुश्किल होता है और ऐसे साधारण जीवन में बड़े बड़े काम कर देना भी कोई आसान काम नहीं है।

अगर मैं बात करू की गांधी जी ने ऐसा किया क्या जिसकी वजह से भारत की सम्पूर्ण जनसंख्या उन्हे “बापू जी” के नाम से बुलाते है। तो इसे जानने के लिए सम्पूर्ण लेख पढ़ना होगा। बेहद ही आसान शब्दों में  महात्मा गांधी का जीवन परिचय लिखा गया है कृपया ध्यानपूर्वक पढ़ें।

About Gandhiji in Hindi ( Short Bio )

महात्मा गांधी जी का जन्म गुजरात राज्य के पोरबंदर जिला में 02 अक्तूबर 1869 को एक साधारण से परिवार में उनका जन्म हुआ था। गांधी जी के पिता करमचंद गांधी , कट्टर हिन्दू एवं ब्रिटिश सरकार के अधीन गुजरात में पोरबंदर रियासत के प्रधानमंत्री थे। गांधी जी की माता अत्यधिक धार्मिक महिला थी, अत: उनका पालन पोषण वैष्णव माता को मानने वाले परिवार में हुआ और उन पर जैन धर्म का भी अधिक गहरा प्रभाव रहा। जिसकी वजह से इसके मुख्य सिद्धांतों जैसे- अहिंसा, आत्म शुद्धि और शाकाहार को उन्होंने अपने जीवन में उतारा था और गांधी जी भी इस नियम को मानते थे।

गांधी जी की शिक्षा अल्फ्रेड हाई स्कूल, राजकोट , यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन से पूरी हुई। पढ़ाई के बाद वो अपने देश भारत वापस लौट आए। गांधी जी का विवाह 13 वर्ष की आयु में ही कर दिया गया। विद्यालय में पढ़ने वाले गांधी जी का विवाह पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा माखनजी से कर दिया गया था। अब हम Mahatma Gandhi Ke Bare Mein (महात्मा गांधी हिस्ट्री हिंदी) विस्तार से जानते हैं।

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Essay on Mahatma Gandhi in Hindi

महात्मा गांधी हिस्ट्री हिंदी निबंध

गांधी जी का जन्म पश्चिमी भारत में गुजरात के एक तटीय पोरबंदर नामक स्थान पर 02 अक्टूबर 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी जी कट्टर हिन्दू एवं ब्रिटिश सरकार के अधीन गुजरात में काठियावाड़ की छोटी रियासत पोरबंदर के प्रधानमंत्री थे। बाद में वो उनके पिता जी सनातन धर्म की पंसारी जाती से सम्बन्ध रखते थे। वैसे गुजराती भाषा में गांधी का मतलब पंसारी से होता है। इसका मतलब इत्र (perfume) बेचने वाला भी होता है।

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महात्मा गांधी की माता का नाम पुतलीबाई था और वो परनामी वैश्य समुदाय की थी। महात्मा गांधी जी के पिता की पहले तीन पत्नियां थी और प्रसव पीड़ा के कारण उनकी मृत्यु हुई थी जिस कारण करमचंद गांधी जी का चौथा विवाह करना पड़ा था। उनकी माता पहले से ही भगवान की पूजा पाठ में व्यस्त रहती थी तो उनका ये सकारात्मक प्रभाव गांधी जी पर भी पड़ा। जिसकी वजह से गांधी जी हमेशा कमजोरों में ताकत व ऊर्जा की भावना जगाते रहते थे, शाकाहारी खाना, आत्मा की शुद्धि के लिए व्रत भी किया करते थे।

महात्मा गांधी की शिक्षा: Mahatma Gandhi Education in Hindi

बम्बई यूनिवर्सिटी से मेट्रिक 1887 ई में पास किया और उसके आगे की शिक्षा भावनगर के शामलदास स्कूल से ग्रहण की। दोनों ही परीक्षाओं में वह शैक्षणिक स्तर वह एक औसत छात्र रहे। उनका परिवार उन्हें बैरिस्टरी बनाना चाहता था। 4 सितम्बर 1888 ई, को गांधी जी बैरिस्टरी की शिक्षा के लिए लंदन गए जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन ( University College London ) में दाखिला (ADMISSION) लिया।

गांधी जी शुरू से ही शाकाहारी थे और उन्होंने लंदन में भी इस नियम को बनाए रखा। जिस रवैये ने गांधी जी के व्यक्तित्व को लंदन में एक अलग छवि प्रदान की। गांधी जी ने शाकाहारी मित्रों की खोज की और थियोसोफिकल नामक सोसाइटी के कुछ मुख्य सदस्यों से मिले। इस सोसाइटी की स्थापना विश्व बंधुत्व (संपूर्ण एकता) के लिए 1875 ई में हुई थी और तो और इसमें बोध धर्म सनातन धर्म के ग्रंथों का संकलन भी था।

About Mahatma Gandhi in Hindi | ( वकालत का आरम्भ )

  • 👉 इंग्लैंड और वेल्स बार एसोसिएशन द्वारा बुलाये जाने पर गांधी जी वापस मुंबई लौट आये और यहां अपनी वकालत शुरू की।
  • 👉 मुंबई (बम्बई) में गांधी जी को सफलता नहीं मिली जिसके कारण गांधी जी को अंशकालिक शिक्षक के पद पर काम करने के लिए अर्जी दाखिल की किन्तु वो भी अस्वीकार हो गयी।
  • 👉 जीविका के लिए गांधी जी को मुकदमों की अर्जियां लिखने का कार्य आरम्भ करना पड़ा। परन्तु कुछ कारणवश उनको यह काम भी छोड़ना पड़ा।
  • 👉 1893 ई में गांधी जी एक वर्ष के करार के साथ दक्षिण अफ्रीका गए।
  • 👉 दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश सरकार की फर्म नेटल से यह वकालत करार हुआ था।

Mahatma Gandhi Biography in Hindi Short

महात्मा गांधी जी का विवाह

महात्मा गांधी जी का विवाह कब और किसके साथ हुआ?

सन् 1883 में उनका विवाह कस्तूरबा माखनजी से हुआ। उस समय गांधी जी की उम्र केवल साढ़े तेरह वर्ष थी (13.5 years) और कस्तूरबा मखंजी जी 14 वर्ष की थी। गांधी जी, “कस्तूरबा”  जी को “बा” कह कर बुलाते थे। यह बाल विवाह उनके माता पिता द्वारा तय करा गया था| गाँधी जी और कस्तूरबा जी की उम्र कम थी और उस समय बाल किशोरी दुल्हन को अपने माता पिता के घर रहने का नियम था। कुछ 2 साल बाद सन् 1885 में गांधी जी 15 साल के हो गये थे और तभी उन्हें पहली संतान ने जन्म लिया था, लेकिन कुछ ही समय पश्चात उसकी मृत्यु हो गयी और उसी वर्ष गांधी जी के पिता करमचंद गांधी जी की मृत्यु हो गयी।

महात्मा गांधी के बेटे का नाम क्या था

  • हरिलाल गांधी (1888 ई)
  • मणिलाल गांधी (1892 ई)
  • रामदास गांधी (1897 ई)
  • देवदास गांधी (1900 ई)

विदेश में वकालत व शिक्षा: महात्मा गांधी का जीवन परिचय

4 सितम्बर 1888 ई को गांधी जी यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में कानून (law) की शिक्षा ग्रहण करने व बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड चले गये। भारत छोड़ते वक्त जैन भिक्षु बेचारजी की दी गयी।

सिख व अपनी माता को दिए गये वचन की “मास मदिरा” का सेवन न करने को लंदन में काफी सक्षम रखा।

हांलाकि, महात्मा गांधी जी ने लंदन में रह कर वहां की सभी रीति रिवाजों को अपनाया व अनुभव किया। उदाहरण के लिए गांधी जी वहां पर नृत्य कक्षाओं में भी जाया करते थे। मगर फिर भी उन्होंने कभी भी अपनी मकान मालकिन द्वारा बनाये मास एवं पत्ता गोभी को नहीं खाते थे। वे शाकाहारी भोजन खाने के लिए शाकाहारी भोजनालय जाते थे। उनकी माता से उन्हें काफी लगाव था वो अपनी माता की कही बातों पर बहुत अमल करते थे। इसी वजह से उन्होंने बौद्धिकता से शाकाहारी भोजन को ही अपनाया।

उन्होंने शाकाहारी समाज की सदस्यता अपनाई और इस कार्यकारी समिति के लिए उनका चयन भी हो गया। जहाँ उन्होंने एक स्थानीय अध्याय की नीव भी रखी। बाद में उन्होंने संस्थाए भी गठित की तभी उनकी मुलाकात कुछ शकाहारी लोगों से हुई जो थिओसोफिकल सोसाइटी के सदस्य थे। इस सोसाइटी की स्थापना 1875ई विश्व बंधुत्व को प्रबल करने के लिए बनाई गयी थी और बौध धर्म एवं सनातन धर्म के साहित्य के अध्यन के लिए समर्पित किया गया था।

उन लोगों के विशेष रूप से कहे जाने पर गांधी जी ने श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ा और जाना। लेकिन गांधी जी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई में और अन्य प्रकार की जाती में विशेष रूचि नहीं रखते थे। इंग्लैंड और वेल्स एसोसिएशन में वापस बुलावे पर वे भारत लौट आये किन्तु बम्बई में वकालत करने में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद अंशकालिक नौकरी वो भी एक स्कूल में प्रार्थना पत्र भेजा वो भी आस्विकर हो गया जिसके कारण उन्हें जरूरतमंदों के लिए राजकोट को अपने मुकाम बना लिया। मगर एक अंग्रेज अधिकारी की बेवकूफी के कारण उन्हें यह पद भी छोड़ना पड़ा।

अपनी आत्मकथा में उन्होंने इस घटना का वर्णन अपने बड़े भाई की और से परोपकार की असफल कोशिश के रूप में किया है। इसी कारणवश उन्होंने 1893ई में एक भारतीय फर्म से नेटाल दक्षिण अफ्रीका में, जो उन दिनों ब्रिटिश का भाग होता था, एक वर्ष के करार पर वकालत का कारोवार स्वीकार किया।

महात्मा गांधी पर निबंध 10 लाइन

Mahatma Gandhi History in Hindi

महात्मा गांधी जी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा

  • महात्मा गांधी साउथ अफ्रीका कब गए थे
  • दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी के आश्रम का नाम
  • दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों को क्या कहते हैं
  • दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास PDF

दक्षिण अफ्रिका में गांधीजी को भारतीयों पर हो रहे भेदभाव का सामना करना पड़ा।

प्रथम श्रेणी कोच की वैध (VALID) टिकट होने के बाद भी उन्हें तीसरी श्रेणी (3rd category) के डिब्बे में भी जाने से मना कर दिया था और तो और पायदान पर बची हुई यात्रा पर एक यूरोपियन यात्री के अन्दर आने पर चालक द्वारा मार भी खानी पड़ी। उन्होंने अपनी इस यात्रा में कई तरह की बेइज्जती सही और और कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, अफ्रीका के कई होटलों को उनके लिए बंद कर दिया गया।

इन घटनाओं में एक घटना ये भी थी जिसमें एक न्यायधीश ने उन्हें अपनी पगड़ी उतारने के लिए भी कहा। दक्षिण में हो रहे अन्याय को गांधी जी दिल और दिमाग पर ले गये जिस कारण आगे गांधी जी ने अपना जीवन भारतीयों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ कदम उठाये।

भारत का स्वतंत्रता संघर्ष : महत्वपूर्ण तथ्य

सन् 1916 ई में गांधी जी अपने भारत के लिए वापस भारत आये और अपनी कोशिशों में लग गए।

कांग्रेस के लीडर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु हो गयी थी। मगर पहले हम बात करेंगे चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह आंदोलन के बारें में।

चंपारण और खेड़ा आंदोलन | महात्मा गांधी का जीवन परिचय

1918 ई गांधी जी की पहली उपलब्धि चंपारण (CHAMPARAN) और खेडा सत्याग्रह आन्दोलन में मिली। नील की खेती जैसी खेती जिसे करने से किसानों को कोई फायदा नहीं हो रहा था। अपने खाने पीने तक का कोई खेती नहीं हो पा रही थी बस कुछ घर पर आता और बाकि पैसा कर्ज में काट लिया जाता था। कम पैसे कमाना और ज्यादा कर भरना किसानों पर जुल्म था जो की गांधी जी देखा नहीं गया।

गाँव में गंदगी, अस्वस्थता और अन्य कई तरह की बीमारियां भी फैलाने लगी थी। खेड़ा (KHEDA), गुजरात (GUJARAT) में भी यही समस्या थी। गांधी जी ने वहां एक आश्रम बनाया, वहां पर गांधी जी के सभी साथी और अपनी इच्छा से कई लोग आकर समर्थक के रूप में कार्य करने लगे। सबसे पहले तो गांधी जी ने वहां पर सफाई करवाई और स्कूल और अस्पताल बनवाए जिससे ग्रामीण लोगों में विश्वास उत्पन्न हुआ।

उस समय हुए शोर शराबे के कारण गांधी जी को पुलिस ने शोर शराबे से हुई परेशानी के कारण थाने में बंद कर दिया जिसका विरोध पूरे गांव वालों ने किया, बिना किसी कानूनी कारवाही के थाने से छुड़ाने को लेकर गांव वालों ने थाने के आगे धरना प्रदर्शन भी किया। गांधी जी ने अदालत में जमीदारों के खिलाफ टिप्पणी और हड़ताल का नेतृत्व भी किया और गांव के लोगों पर हुए कर वसूली व खेती पर नियंत्रण, राजस्व में बढ़ोतरी को रद्द करने जैसे कई मुद्दों पर एक समझौते पर हस्ताक्षर करवाए।

Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay

महात्मा गांधी के आंदोलन के नाम

खिलाफत आंदोलन कब हुआ | महात्मा गांधी के आंदोलन के नाम

अब गांधी जी को ऐसा लगने लगा था कि कांग्रेस कहीं न कहीं हिन्दू व मुस्लिम समाज में एकता की कमी की वजह से कमजोर पड़ रही हैं जो की कांग्रेस की नैया डूब भी सकती है तो गांधी जी ने दोनों समाजों हिन्दू व मुस्लिम समाज की एकता की ताकत के बल पर ब्रिटिश की सरकार को बाहर भगाने के प्रयास में जुट गए। इस उम्मीद में वे मुस्लिम समाज के पास गए और इस आन्दोलन को विश्वस्तरीय रूप में चलाया गया जो की मुस्लिम के कालिफ [CALIPH] के खिलाफ चलाया गया था।

गांधी जी सम्पूर्ण राष्ट्रीय के मुस्लिमों की कांफ्रेंस  [ALL INDIA MUSLIM CONFERENCE] रखी थी और वो खुद इस कॉन्फ्रेंस के प्रमुख व्यक्ति भी बने। गांधी जी की इस कोशिश ने उन्हें राष्ट्रीय नेता बना दिया और कांग्रेस में उनकी एक खास जगह बन गयी। कुछ समय बाद ही गांधी जी की बनाई एकता की दीवार पर दरार पड़ने लग गई जिस कारण सन् 1922 ई में खिलाफत आन्दोलन पूरी तरह से बंद हो गया | गांधी जी सम्पूर्ण जीवन ‘हिन्दू मुस्लिम की एकता के लिए’, कार्य करते रहे मगर गांधी जी असफल रहे।

असहयोग आन्दोलन सन् 1920 ई | NON COOPERATION MOVEMENT IN HINDI

गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे और शांतिपूर्ण जीवन जीना पसंद करते थे। पंजाब में जब जलियांवाला नरसंहार जिसे सब अमृतसर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता हैं। उस घटना ने लोगों के बीच काफी क्रोध और हिंसा की आग लगा दी थी।

दरअसल बात ये थी कि अंग्रेजी सरकार ने सन् 1919 ई रॉयल एक्ट लागू किया। उसी दौरान गांधी जी कुछ सभाएं भी आयोजित करते थे। एक दिन गांधी जी ने शांति पूर्ण एक सभा पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में एक आयोजित की थी और उस शांतिपूर्ण सभा को अंग्रेजों ने बहुत ही बुरी तरह रौंदा था जिसका वर्णन करते भी आंखों से आंसू आता है।

सन् 1920 ई में असहयोग आन्दोलन आरंभ किया गया । इस आन्दोलन का अर्थ था की किसी भी प्रकार से अंग्रेजों की सहायता न करना और किसी भी प्रकार की हिंसा का प्रयोग न की जाये। इस आन्दोलन को गांधी जी का प्रमुख आन्दोलन भी कहा जाता है।  असहयोग आन्दोलन सितम्बर 1920ई – फरवरी 1922 तक चला। गांधी जी को पता था कि ब्रिटिश सरकार भारत में राज करना चाहती है और वो भारत के सपोर्ट के बिना असंभव है। गांधी जी को ये भी पता था कि ब्रिटिश सरकार को कहीं न कहीं भारत के लोगों की सहायता ही पड़ती हैं यदि इस सहायता को बंद करा दिया जाये तो ब्रिटिश सरकार अपने आप ही वापस चली जायेगी या फिर भारतीयों पर जुल्म नहीं करेगी।

गांधी जी ने ऐसा ही किया उन्होंने सभी भारतीयों को बुलाया और अपनी बात को स्पष्ट रूप से समझाया और सभी भारतीयों को गांधी जी की बात पर विश्वास भी हुआ और उन्होंने गांधी जी की कही हुई बातों को गांठ बांध ली, सभी लोग बड़ी मात्रा में शामिल हुए और इस आन्दोलन में अपना योगदान दिया।

सभी भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की सहायता करने से मना कर दिया, उन्होंने अपनी नौकरी त्याग दी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल और कॉलेजों से निकाल लिया, सरकारी नौकरियां, फैक्ट्री, कार्यालय भी छोड़ दिया। लोगों के उस फैसले से कुछ लोग गरीबी व अनपड की मार से झुलसने लगे थे, स्थिति तो ऐसी उत्पन्न हो गयी थी की भारत तभी आजाद हो जाता परन्तु एक घटना जिसे हम चौरा-चौरी के नाम से जानते हैं। जिसकी वजह से गांधी जी को अपना आन्दोलन वापस लेना पड़ा और आन्दोलन को वहीं समाप्त करना पड़ा।

चोरा चोरी की घटना कब हुई थी? चौरी चौरा की घटना का क्या महत्व था?

उत्तर प्रदेश के चौरा चौरी नामक स्थान पर जब भारतीय शांतिपूर्ण रूप से रैलियां निकाल रहे थे तब अंग्रेजों ने उन पर गोलियां चला दी और कई भारतीयों की मृत्यु भी हो गयी, जिसके कारण भारतीयों ने गुस्से में पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और 22 पुलिस सैनिकों को मार दिया।

गांधी जी का कहना था की “ हमें सम्पूर्ण आन्दोलन के दौरान किसी भी हिंसात्मक प्रकिया का प्रयोग नहीं करना था और हम अभी किसी भी प्रकार से आज़ादी के लायक नहीं हैं “ जिस के कारण गांधी जी ने अपने आन्दोलन को वापस ले लिया था।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन/ डंडी यात्रा / नमक आन्दोलन सन् 1930 – CIVIL DISOBEDIENCE MOVEMENT / DANDI MARCH / SALT MOVEMENT

सविनय अवज्ञा का अर्थ होता है किसी भी बात को ना मानना और उस बात की अवहेलना करना। सविनय अवज्ञा आन्दोलन भी गांधी  जी ने लागू किया था| ब्रिटिश सरकार के खिलाफ ये आन्दोलन था।

इस आन्दोलन में मुख्य कार्य यही था की ब्रिटिश सरकार जो भी नियम लागू करेगी उसे नहीं मानना और उसके खिलाफ जाना जैसे: ब्रिटिश सरकार ने नियम बनाया था की कोई नहीं अन्य व्यक्ति या फिर कोई कंपनी नमक नहीं बनाएगी। तब 12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा द्वारा नमक बनाकर इस कानून को तोड़ दिया था। वे दांडी नामक स्थान पर पहुंच कर नमक बनाया था और कानून का उल्लंघन किया था।

गांधी जी ने साबरमती आश्रम जो की गुजरात के अहमदाबाद नामक शहर के पास ही है 12 मार्च, सन् 1930 से 6 अप्रैल 1930 तक ये यात्रा चलती रही। 31 जनवरी 1929 को भारत का झंडा लाहौर में फहराया गया था। इस दिन को भारतीय नेशनल कांग्रेस ने आजादी का दिन समझ कर मनाया था। यह दिन लगभग सभी भारतीय संगठनों द्वारा भी माना गया था। इसके बाद ही नमक आन्दोलन हुआ था। 400 किलोमीटर (248 मील) तक का सफ़र अहमदाबाद से दांडी, गुजरात तक चलाया गया था।

गांधी जी सुभाष चन्द्र बोस और पंडित जवाहरलाल नेहरू के आजादी की मांग के विचारों को भी सिद्ध किया और अपने विचारों को 2 सालों की वजह 1 साल के लिए रोक दिया। इस आन्दोलन की वजह से 80000 लोगों को जेल जाना पड़ा। लार्ड एडवर्ड इरविन ने गांधी जी के साथ विचार विमर्श किया। इस इरविन गांधी जी की संधि 1931 में हुई। सविनय अवज्ञा आन्दोलन को बंद करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने अपनी रजामंदी दे दी थी।

गांधी जी को भारत के राष्ट्रीय कांग्रेस के एक मात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। यह सम्मेलन निराशाजनक रहा। इस आयोजन का कारण भारतीय कीमतों व अल्पसंख्यकों पर केंद्रित होना था। लार्ड विलिंगटन ने भारतीय राष्ट्रवादियों को नियंत्रित और कुचलने के लिए नया अभियान आरम्भ किया और गांधी जी को फिर से गिरफ्तार भी कर लिया गया था और उनके अनुयायियों को उनसे मिलने तक भी नहीं जाने दिया। मगर ये युक्ति भी बेकार गयी।

Mahatma Gandhi History in Hindi | हरिजन आंदोलन और निश्चय दिवस क्या है?

1932, डा० बाबा साहेब आंबेडकर जी के चुनाव प्रचार के माध्यम से, सरकार ने अछूत लोगों को एक नए संविधान में अलग निर्वाचन दे दिया। इसके विरुद्ध गांधी जी ने 1932 में 6 दिन का अनशन ले लिया था जिसने सफलतापूर्वक दलित से राजनैतिक नेता पलवंकर बालू द्वारा की गयी। मध्यस्थता वाली एक सामान्य व्यवस्था को अपनाया गांधी जी ने अछूत लोगों को हरिजन का नाम दिया।

डॉ० बाबासाहेब आंबेडकर ने गांधी जी की हरिजान वाली बात की निंदा की और कहा की दलित अपरिपक्व है और सुविधासंपन्न जाती वाले भारतीयों ने पितृसत्तात्मक भूमिका निभाई है।

अम्बेडकर और उनके सहयोगी दलों को महसूस हुआ की गांधी जी दलितों के अधिकार को समझ नहीं पा रहे हैं या फिर दलित अधिकार को कम आंक रहे हैं। गांधी जी ने ये भी बाते आंकी की वो दलितों के लिए आवाज उठा रहे हैं। पुन संधि में ये साबित हो गया की गांधी जी नहीं अम्बेडकर ही हैं दलितों के असली नेता। उस समय छुआछूत सबसे बड़ी समस्या थी। हरिजन लोगों को मंदिरों में जाने भी नहीं दिया जाता था। केरल राज्य का जनपद त्रिशूर दक्षिण भारत की एक प्रमुख नगरी है, जनपद में एक प्रतिष्ठित मंदिर भी हैं। गुरुवायुर मंदिर जिसमें  कृष्ण भगवान बल रूप के दर्शन कराती मूर्तियां है परंतु वहां पे भी हरिजन लोगों को जाने नहीं दिया जाता था।

भारत छोड़ो आन्दोलन कब शुरू हुआ | QUIT INDIA MOVEMENT IN HINDI

अभी तक के आंदोलनों में ये सबसे ज्यादा प्रभावी आन्दोलन था। सन् 1940 के दशक तक सभी लोग बड़े हो या फिर बच्चा सभी अपने देश की आजादी के लिए लड़ने मरने को तैयार थे। उनमें बहुत गुस्सा भरा था और ये गुस्सा सन् 1942ई में बहुत ही प्रभावशाली रहा, परंतु इस आंदोलन को संचालन करने में हुई कुछ गलतियों के कारण ये आन्दोलन भी असफल रहा। प्रमुख बात ये थी कुछ लोग अपने काम और विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में लगे रहे उस समय उन्हें लगा की अब तो भारत आजाद हो ही जायेगा तो उन्होंने अपने कदम धीरे कर लिए मगर यही बहुत बड़ी गलती थी। इस प्रयास से ब्रिटिश सरकार को ये तो पता चल ही गया था की अब भारत पर उनका राज नहीं चल सकता और भारत फिर आजाद होने के लिए फिर प्रयास करेगा।

महात्मा गांधी जी की मृत्यु कब और किस प्रकार हुई थी?

महात्मा गांधी जी की हत्या कब और कैसे हुई थी

Mahatma Gandhi Death Information in Hindi

30 जनवरी 1948 को गांधी जी अपने बिड़ला भवन में चहलकदमी (walking) कर रहे थे और उनको गोली मार दी गयी थी।

गांधी जी के हत्यारे का नाम नाथूराम गोडसे था। ये राष्ट्रवादी थे जिनके कट्टर पंथी हिन्दू महासभा के साथ सम्बन्ध थे जिसने गांधी जी को पाकिस्तान को भुगतान करने के मुद्दे पर भारत को कमजोर बनाने के लिए दोषी करार दिया। गौडसे और उनके सह् षड्यंत्रकारी नारायण आप्टे को केस चला कर जेल भेज कर सजा दी गयी थी। नाथूराम गोड से  को 15 नवम्बर 1949 को फांसी दी गयी थी।

राजघाट जो की NEW DELHI में है, यहां पर गांधी जी के स्मारक पर देवनागरी भाषा में हे राम लिखा हुआ है कहा जाता है की गांधी जी को जब गोली लगी थी तब उनके मुख से ‘हे राम’ निकला था। ऐसा जवाहर लाल नेहरू जी ने रेडियो के माध्यम से देश को बताया था।

गांधी जी की अस्थियों को रख दिया गया और उनकी सेवाओं की याद में पूरे देश में घुमाया गया। महात्मा गांधी की अस्थियों को इलाहाबाद में संगम नदी में 12 फरवरी 1948 ई को जल में प्रवाह कर दिया था। शेष अस्थियों को 1997 में तुषार गांधी जी ने बैंक में नपाए गए एक अस्थि – कलश की कुछ सामग्री को अदालत के माध्यम से इलाहबाद के संगम नामक नदी में प्रवाह कर दिया था। 30 जनवरी 2008 को दुबई में रहने वाले एक व्यापारी ने गांधी जी के अर्थी वाले एक अन्य कलश को मुंबई संग्रहालय में भेजने के उपरांत उन्हें गिरगाम चौपाटी नामक स्थान पर जल में विसर्जित कर दिया गया।

एक अन्य अस्थि कलश आगा खान जो पुणे में है (जहाँ उन्होंने 1942 से कैद किया गया था 1944 तक) वहां समाप्त हो गया था और दूसरा आत्मबोध फेल्लोशीप झील में मंदिर में लॉस एंजिल्स रखा हुआ है। इस परिवार को पता था कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस पवित्र रख का दुरूपयोग भी हो सकता था लेकिन उन्हें यहां से हटाना नहीं चाहती थी क्यूंकि इससे मंदिरों को तोड़ने का खतरा पैदा हो सकता था।

Recommended Books For Mahatma Gandhi Ji in Hindi and English

महात्मा गांधी का जीवन परिचय.

महात्मा गांधी जी का जीवन बहुत ही सीधा और सरल था। उन्हे अहिंसा में विश्वास था उनका मानना था की अगर कोई गाल पर एक चांटा लगा दे तो उसके आगे दूसरा गाल भी कर दो जिससे मरने वाला शर्म के मारे मर जाए और आपसे माफी मांगे। अहिंसा परमों धर्मा गांधी जी का मानना था की अगर किसी समस्या का हल निकालना है तो उसे ठन्डे दिमाग से बिना क्रोध किए निकालने की कोशिश करनी चाहिए। अगर आप अपने गुस्से से किसी समस्या का हल निकलेंगे तो आप ओर भी ज्यादा उस समस्या में फंसते चले जाएंगे।

गांधी जी ने स्वतंत्रता की लड़ाई बिना किसी अस्त्र शस्त्र के जीत के दिखाई थी। अपनी बेइज्जती होने के बाद भी गुस्से में गलत कदम नहीं उठाया था उन्होने अपने शिष्यों को भी ऐसी ही सलाह दी थी की जिससे उनका जीवन सफल हो जाए। दोस्तों, गांधी जी के जीतने भी आंदोलन थे सब के सब बिना किसी हिंसा, बिना किसी शोर शराबे के चलाये गए थे।

महात्मा गांधी के अनमोल विचार

महात्मा गांधी का नारा था

“कारों या मारो”
“अहिंसा परमो धर्म”
“आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, यतनापूर्ण बहिष्कार, यहां तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।”
“बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो”
“सादा जीवन उच्च विचार”
बनना है तो गांधी जी के जैसा बनने की कोशिश करो बिना लड़ाई झगड़े के अपने जीवन को बदल के रख दो.

Speech on Mahatma Gandhi in Hindi (महात्मा गांधी पर भाषण)

2 October Speech in Hindi: महात्मा गांधी जी का जन्म 02 अक्टूबर सन् 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है। महात्मा गांधी जी के पिता करमचंद गांधी जी राजकोट के दीवान हुआ करते थे। महात्मा गांधी जी की माता श्रीमती पुतलीबाई एक साधारण से जीवन को जीने वाली भारतीय नारी थी। महात्मा गांधी जी की माता बड़े ही सीधे स्वभाव की शांत रहने वाली महिला थी जिनकी वजह से महात्मा गांधी जी का स्वभाव भी ठीक उनकी ही तरह रहा। महात्मा गांधी जी के माता पिता बहुत साधारण व्यक्तित्व के लोग थे उनका जीवन साधारण लोगों की ही तरह था।

महात्मा गांधी जी की शुरुआती शिक्षा पोरबंदर में पूर्ण हुई थी जिसके बाद महात्मा गांधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद अपनी वकालत की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए। जब महात्मा गांधी जी की वकालत की पढ़ाई पूरी हो गयी तो उन्होने भारत वापस आ कर अपनी वकालत शुरू की।

महात्मा गांधी जी को एक मुकदमे के चलते भारत छोड़ कर कुछ दिनों के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा और वहां उन्होंने भारतीय लोगों की दूरदसा देखी जिस पर उन्हे ये एहसास हुआ की ये बहुत ही गलत हो रहा है। हम भारतीय लोगों के साथ इसे बदला जाना चाहिए नहीं तो हमारे आने वाले वंश इसी तरह रंग भेद और छुआछूत की बीमारी से ग्रसित रहेंगे।

गांधी जी ने बड़े बड़े आंदोलन चलाए और जीते भी, इन आन्दोलन को जीतने की सबसे बड़ी वजह मानव कल्याण के हित में था। गांधी जी ने सब आंदोलन जीते बिना किसी हथियार के इस्तेमाल से और ना बिना किसी दुर्व्यवहार के ये युद्ध जीता। दोस्तों कहने वाली नहीं मानने वाली बात है की महात्मा गांधी जी ही ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने सादे व्यवहार के साथ ब्रिटिशों को भगाया था और भारत में आजादी का तिरंगा फहराया था।

भारत की आजादी के लिए बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों ने लोहे के चने चबाये थे। कहा जाए तो आज हिंदुस्तान आजाद हुआ है तो केवल हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के चलते। देश की आजादी के लिए कभी अंग्रेजों की मार खानी पड़ी तो कभी उनकी divide and rule की वजह से अपने हिन्दू मुस्लिम भाइयों में लड़ाई दंगे होते देखे। गांधी जी को केवल अपने स्वतंत्र भारत की ही सूची है हमेशा।

गांधी जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई में लगा दिया। किसी वजह से इनको भारत के राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया हैं।

10 Lines on Mahatma Gandhi in Hindi

आप सभी की जरूरतों को समझते हुए महात्मा गांधी जी के जीवन परिचय में कम शब्दों में जानकारी दी गयी है।

गांधी जी सदा जीवन जीने में बहुत विश्वास करते थे। गांधी जी के जीवन में बहुत से संघर्षों से उनका सामना हुआ लेकिन वो बिना रुके आगे बढ़ते गए और आज उनको राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया है।

गांधी जी अपना सारा जीवन लोगों की भलाई में लगा देना तो कोई बाबूजी से सीखें और उनके जीवन की तरह अपना जीवन जरूरत मंदों के नाम करें।

  • हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी हैं।
  • महात्मा गांधी जी का जन्म 02 अक्तूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक शहर में हुआ था।
  • महात्मा गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है।
  • महात्मा गांधी जी के माता पिता का नाम पुतलीबाई और करम चन्द्र गांधी था।
  • महात्मा गांधी जी को बापू और राष्ट्र पिता के नाम से जाना जाता है।
  • महात्मा गांधी जी को सदा जीवन उच्च विचार पसंद था।
  • महात्मा गांधी जी ने अन्य सभी क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर हमारे देश को ब्रिटिश शासन से छुटकारा दिलाया था।
  • महात्मा गांधी जी ने भारतीय लोगों को सादा जीवन और स्वदेशी अपनाने का विचार दिया था।
  • महात्मा गांधी जी ने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक आंदोलन,और दांडी मार्च जैसे कई महान कार्य किए।
  • महात्मा गांधी जी की हत्या 30 जनवरी, 1948 मे नाथूराम गोडसे द्वारा कर दी गयी थी।
महात्मा गांधी जी की मृत्यु के बाद उनकी याद में और राष्ट्रपिता होने की वजह से उनका चित्र भारत की मुद्रा में देखने को मिलता है।

10 Lines on Mahatma Gandhi in English for Class 1 to 12

Mahatma gandhi essay in english in 500 words: Realizing the needs of all of you, the life introduction of Mahatma Gandhi has given less information.

Gandhi always believed in living life. He faced many struggles in the life of Gandhi Ji, but he kept moving without stopping and today he has been given the status of Father of the Nation.

If you spend your whole life in the well-being of the people, then one should learn from Bapuji and like his life, make his life in the name of the needy.

  • Our Father of the Nation is Mahatma Gandhi.
  • Mahatma Gandhi was born on 02 October 1869 in a city called Porbandar in Gujarat.
  • Mahatma Gandhi’s full name is Mohandas Karamchand Gandhi.
  • Mahatma Gandhi’s parent’s names were Putlibai and Karam Chandra Gandhi.
  • Mahatma Gandhi is known as Bapu and Father of the Nation. Mahatma Gandhi always loved high thoughts.
  • Mahatma Gandhi along with all other revolutionary freedom fighters got rid of our country from British rule.
  • Mahatma Gandhi had given the idea to the Indian people to adopt a simple life and Swadeshi.
  • Mahatma Gandhi Ji did many great works like the Non-Cooperation Movement, Civil Disobedience Movement, Salt Movement, and Dandi March.
  • Mahatma Gandhi was assassinated on 30 January 1948 by Nathuram Godse.
After the death of Mahatma Gandhi, in the memory of him and being the father of the nation, his picture is seen in the currency of India.

Mahatma Gandhi Poem in Hindi for Students

ऊपर मैंने आपको महात्मा गांधी का जीवन परिचय बताया हैं, अब मैं आपके साथ महात्मा गांधी पर कविताएं  अपडेट करूँगा जो किसी ने ना सुनी हो वो में आपको देने वाला हूँ। कृपया करके इसे पढ़े और अपने मित्रों आदि में शेयर करना ना भूले।

Poem on Mahatma Gandhi in Hindi

महात्मा गांधी जी की वो कविता जिसे दुनिया सबसे ज्यादा प्रिय समझती है।

महात्मा गांधी पर कविता हिंदी में

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर हिन्दी कविता, महात्मा गांधी जयंती पर कविता, gandhi jayanti poem in hindi.

मैं उम्मीद करूंगा की आपको ये लेख अच्छा लगा होगा, अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो देरी ना कीजिए, इस लेख को इतना शेयर कर दीजिये की दुनिया 02 अक्टूबर गांधी जी के जन्मदिन कविताएं को पढ़ कर रो पड़े।

– धन्यवाद

महात्मा गांधी का जीवन परिचय (Mahatma Gandhi Essay in Hindi) का यह लेख यही समाप्त होता है। मुझे उम्मीद है की आपको सभी जानकारी मिली होगी। अगर आपको लेख पसंद आया हो तो इसे शेयर जरुर करें और कमेंट के माध्यम से अपने विचार हमारे साथ व्यक्त करें।

– Biography of Mahatma Gandhi in Hindi

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22 Comments

महात्मा गांधी के बारे में बहुत ही जबरदस्त जानकारी मिली आपकी वेबसाइट को धन्यवाद इतना विस्तार में गांधीजी के बारे में मैंने पहली बार पढ़ा है|

THANK YOU SIR

मुझे बहोत अच्छा लगा मय तुमको गांधी जैसा बनके दिकाउगा ये मेरा आपको वादा है कमसे कम हमारे गावमे तो जररूर बनुगा

अधिक जानकारी मिली। धन्यवाद। ।।।। रामराज सावन

कुछ सही लिखा है कुछ गलत लीखा गया है।

कृपया करके हमे बताये की क्या गलत लिखा है| हम उसको जल्द से जल्द ठीक करेंगे|

Very best news of

Thank-you so much

SAhi ha shaanu

Thank you SIR

Bahut vdia jivan parchey hai

nice blog sir, aapne bhut acha blog likha hai information sari sahi hai & kuch mujhe pata nahi ya bhul gaya tha but aapka blog padhkr aisa laga jaise fir se update ho gaya ho thank you sir kal mujhe apni branch me bolna hai some words about Gandhi g really this artical help me

मुझे ख़ुशी है की आपको जानकारी पसंद आई…!

महात्मागाँधी के जीवनपरिचय एवं सम्पुर्ण्ं ईतिहास सम्बन्धी पुस्तक चाईय

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महात्मा गाँधी की प्रेरणादायी जीवनी | Mahatma Gandhi Biography in Hindi

Mahatma Gandhi in Hindi / सत्य और अहिंसा के रास्ते चलते हुए उन्होंने भारत को अंग्रेजो से स्वतंत्रता दिलाई। उनका ये काम पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया। वो हमेशा कहते थे बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो। और उनका मानना था की सच्चाई कभी नहीं हारती। इस महान इन्सान को भारत में राष्ट्रपिता घोषित कर दिया। उनका पूरा नाम है ‘ मोहनदास करमचंद गांधी ‘ आप उन्हें बापू कहो या महात्मा दुनिया उन्हें इसी नाम से जानती हैं।

गाँधी जी अबतक भारतीय राजनितिक के सबसे पावरफुल लीडर थे। उन्हें भारत में ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा प्राप्त हैं। ये नाम सबसे पहले सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1944 में रंगून रेडियो से जारी प्रसारण में कहकर सम्बोधित किया था। गाँधी जी सत्‍य और अहिंसा के पुजारी थे। सफ़ेद धोती, चश्मा और हाथ में लाठी लिए गांधी ने देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराया था। महात्मा गाँधी समुच्च मानव जाति के लिए मिशाल हैं। उनके बताये सिद्धांत को मानने वाला इंसान कभी भी अपने रास्ते से भटक नहीं सकता है।

Mahatma Gandhi Biography In Hindi

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का संक्षिप्त परिचय – Mahatma Gandhi Biography in Hindi

उन्‍होंने हमेशा सत्‍य और अहिंसा के लिए आंदोलन किए और इसी मार्ग मे चलने की सलाह दी। 24 साल की उम्र में गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका गए थे और 21 साल रहे। वहां अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर अत्‍याचार देख बहुत दुखी हुए। उनके साथ भी दक्षिण अफ्रीका में नस्ली भेदभाव हुवा। इन सारी घटनाएं उनके के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुवा। जिसके बाद वे अंग्रेजो से भारत की आजादी ठान ली थी।

महात्मा गाँधी की प्रारंभिक जीवन – Early Life Of Mahatma Gandhi in Hindi

मोहनदास करमचन्द गान्धी का जन्म पश्चिमी भारत में वर्तमान गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर सन् 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचन्द गान्धी सनातन धर्म की  पंसारी  जाति से सम्बन्ध रखते थे और ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान अर्थात् प्रधान मन्त्री थे।

उनकी माता वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखती थीं और एक धार्मिक प्रवित्ति की थीं जिसका असर गाँधी जी पर भी हुआ। जिस घर में गाँधी पैदा हुवे थे आज उसे कीर्ति मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस घर का पुनर्निर्माण से तीन मंजिल का ईमारत बनाया गया हैं, जिसमे 22 कमरे हैं। इस घर में गांधीजी की यादें सहेजी गई हैं। पांच साल तक मोहनदास का बचपन इसी घर में बीता। हर दिन शाम पांच बजे यहां गांधीजी का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो जेने कहिए रे…’ गाया जाता है। गांधीजी अंतिम बार 1928 में पोरबंदर आए थे।

महात्‍मा गांधी की आत्‍मकथा – Gandhi ji Autobiography in Hindi

महात्‍मा गांधी की आत्‍मकथा में उल्‍लेख मिलता है कि वे पढाई- लिखाई में कोई विशेष अच्‍छे नहीं थे। केवल अपनी स्‍कूल की किताबें ठीक से पढ लें और अध्‍यापकों द्वारा याद करने के लिए दिए गए सबकों को याद कर लें, इतना भी उनसे ठीक से नहीं हो पाता था, इसलिए स्‍कूल के अलावा किसी अन्‍य किताब को पढने की उनकी कभी कोई इच्‍छा नहीं होती थी न ही कभी किसी अन्‍य पुस्‍तक को पढने का उन्‍होंने कोई प्रयास किया।

लेकिन एक बार उन्‍होंने  श्रृवण पितृ भक्ति नाटक  नाम की एक पुस्‍तक पढी जो कि उनके पिताजी की थी। वे उस पुस्‍तक से  श्रृवण  के पात्र से इतना प्रभावित हुए कि जिन्‍दगी भर श्रृवण की तरह मातृ-पितृ भक्‍त बनने की न केवल स्‍वयं कोशिश करते रहे, बल्कि अपने सम्‍पर्क में आने वाले सभी लोगों को ऐसा बनाने का भी प्रयास करते रहे। इसी प्रकार से बचपन में उन्‍होंने “ सत्‍यवादी राजा हरीशचन्‍द्र ” का भी एक दृश्‍य नाटक देखा और उस नाटक के राजा हरीशचन्‍द्र के पात्र से वे इतना प्रभावित हुए कि जिन्‍दगी भर राजा हरीशचन्‍द्र की तरह सत्‍य बोलने का व्रत ले लिया।

राजा हरीशचन्‍द्र के पात्र से उन्‍होंने बालकपन में ही अच्‍छी तरह से समझ लिया था कि सत्‍य के मार्ग पर चलने में हमेंशा तकलीफें आती ही हैं लेकिन फिर भी सत्‍य का मार्ग नहीं छोडना चाहिए और राजा हरीशचन्‍द्र के नाटक के इस पात्र ने ही गांधीजी के सत्‍यान्‍वेषी बनने की नींव रखी।

गांधीजी ने अपनी आत्‍मकथा में लिखा है कि यदि कोई उन्‍हें आत्‍महत्‍या करने की धमकी देता था, तो उन्‍हें उसकी धमकी पर कोई भरोसा नहीं होता था क्‍योंकि एक बार स्‍वयं गाधीजी आत्‍महत्‍या करने पर उतारू थे। उन्‍होंने कोशिश भी की लेकिन उन्‍होंने पाया कि आत्‍महत्‍या की बात कहना और आत्‍महत्‍या की कोशिश करना, दोनों में काफी अन्‍तर होता है।

गांधीजी इस सन्‍दर्भ में जिस घटना का उल्‍लेख करते हैं, उसके अनुसार एक बार गांधीजी को अपने एक रिश्‍तेदार के साथ बीडी पीने का शौक लग गया। क्‍योंकि उनके पास बीडी खरीदने के लिए पैसे तो होते नहीं थे, इसलिए उनके काकाजी बीडी पीकर जो ठूठ छोड दिया करते थे। गांधीजी उसी को चुरा लिया करते थे और अकेले में छिप-छिप कर अपने उस रिश्‍तेदार के साथ पिया करते थे। लेकिन बीडी की ठूठ हर समय तो मिल नहीं सकती थी, इसलिए उन्‍होंने उनके घर के नौकर की जेब से कुछ पैसे चुराने शुरू किए।

अब एक नई समस्‍या आने लगी कि चुराए गए पैसों से जो बीडी वे लाते थे, उसे छिपाऐं कहां। चुराए हुए पैसों से लाई गई बीडी भी कुछ ही दिन चली। फिर उन्‍हे पता चला कि एक ऐसा पौधा होता है, जिसके डण्‍ठल को बीडी की तरह पिया जा सकता है। उन्‍हें बहुत खुशी हुई कि चलो अब न तो बीडी की ठूंठ उठानी पडेगी न ही किसी के पैसे चुराने पडेंगे। लेकिन जब उन्‍होंने उस डण्‍ठल को बीडी की तरह पिया, तो उन्‍हें कोई संतोष नहीं हुआ।

इसके बाद उन्‍हें अपनी पराधीनता अखरने लगी। उन्‍हें लगा कि उन्‍हें कुछ भी करना हो, उनके बडों की ईजाजत के बिना वे कुछ भी नहीं कर सकते। इसलिए उन दोनों ने सोंचा कि ऐसे पराधीन जीवन को जीने से कोई फायदा नहीं है, सो जहर खाकर आत्‍महत्‍या ही कर ली जाए। लेकिन फिर एक समस्‍या पैदा हो गई कि अब जहर खाकर आत्‍महत्‍या करने के लिए जहर कहां से लाया जाए? चूंकि उन्‍होंने कहीं सुना था कि धतूरे के बीज को ज्‍यादा मात्रा में खा लिया जाए, तो मृत्‍यु हो जाती है, सो एक दिन वे दोनों जंगल में गए और धतूरे के बीच ले आए और आत्‍महत्‍या करने के लिए शाम का समय निश्चित किया। मरने से पहले वे केदारनाथ जी के मंदिर गए और दीपमाला में घी चढाया, केदारनाथ जी के दर्शन किए और एकान्‍त खोज लिया लेकिन जहर खाने की हिम्‍मत न हुई। उनके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे:

¤    अगर तुरन्‍त ही मृत्‍यु न हुर्इ तो ? ¤    मरने से लाभ क्‍या है ? ¤    क्‍यों न पराधीनता ही सह ली जाए ?

आदि… आदि। लेकिन फिर भी दो-चार बीज खाए। अधिक खाने की हिम्‍मत न हुर्इ क्‍योंकि दोनों ही मौत से डरे हुए थे सो, दोनों ने निश्‍चय किया कि रामजी के मन्दिर जाकर दर्शन करके मन शान्‍त करें और आत्‍महत्‍या की बात भूल जाए।

गांधीजी के जीवन की इसी घटना जिसे स्‍वयं गांधीजी ने अनुभव किया था, के कारण ही उन्‍होंने जाना कि आत्‍महत्‍या करना सरल नहीं है और इसीलिए किसी के आत्‍महत्‍या करने की धमकी देने का उन पर कोई प्रभाव नहीं पडता था क्‍योंकि उन्‍हें अपने आत्‍महत्‍या करने की पूरी घटना याद आ जाती थी। आत्‍महत्‍या से सम्‍बंधित इस पूरी घटना का परिणाम ये हुआ कि दोनों जूठी बीडी चुराकर पीने अथवा नौकर के पैसे चुराकर बीडी खरीदने व फूंकने की आदत हमेंशा के लिए भूल गए।

इस घटना के संदर्भ में गांधीजी का अनुभव ये रहा कि नशा कई अन्‍य अपराधों का कारण बनता है। यदि गांधीजी को बीडी पीने की इच्‍छा न होती, तो न तो उन्‍हें काकाजी की बीडी की ठूंठ चुरानी पडती न ही वे कभी बीडी के लिए नौकर की जेब से पैसे चुराते। उनकी नजर में बीडी पीने से ज्‍यादा बुरा उनका चोरी करना था जो कि उन्‍हें नैतिक रूप से नीचे गिरा रहा था।

इसी तरह से गांधीजी के जीवन में चोरी करने की एक और घटना है, जिसके अन्‍तर्गत 15 साल की उम्र में उन पर कुछ कर्जा हो गया था, जिसे चुकाने के लिए उन्‍होंने अपने भाई के हाथ में पहने हुए सोने के कडे से 1 तोला सोना कटवाकर सुनार को बेचकर अपना कर्जा चुकाया था। इस बात का किसी को कोई पता नहीं था, लेकिन ये बात उनके लिए असह्य हो गई। उन्‍हें लगा कि यदि पिताजी के सामने अपनी इस चोरी की बात को बता देंगे, तो ही उनका मन शान्‍त होगा।

लेकिन पिता के सामने ये बात स्‍वीकार करने की उनकी हिम्‍मत न हुई। सो उन्‍होंने एक पत्र लिखा, जिसमें सम्‍पूर्ण घटना का उल्‍लेख था और अपने किए गए कार्य का पछतावा व किए गए अपराध के बदले सजा देने का आग्रह था। वह पत्र अपने पिता को देकर वे उनके सामने बैठ गए। पिता ने पत्र पढा और पढते-पढते उनकी आंखें नम हो गईं। उन्‍होंने गांधीजी को कुछ नहीं कहा। पत्र को फाड़ दिया और फिर से लौट गए।

उसी दिन गांधीजी को पहली बार अहिंसा की ताकत का अहसास हुआ क्‍योंकि यद्धपि उनके पिता ने उन्‍हें उनकी गलती के लिए कुछ भी नहीं कहा न ही कोई दण्‍ड दिया, बल्कि केवल अपने आंसुओं से उस पत्र को गीला कर दिया, जिसे गांधीजी ने लिखा था, और इसी एक घटना ने गांधीजी पर ऐसा प्रभाव डाला कि उन्‍होंने ऐसा कोई अपराध दुबारा नहीं करने की प्रतिज्ञा ले ली। यदि उस दिन, उस घटना के लिए गांधीजी के पिताजी ने गांधीजी के साथ मारपीट, डांट-डपट जैसी कोई हिंसा की होती, तो शायद हम आज उस गांधी को याद नहीं कर रहे होते, जिसे याद कर रहे हैं।

महात्मा गाँधी की विवाह – Mahatma Gandhi Married 

मई 1883 में साढे 13 साल की आयु पूर्ण करते ही उनका विवाह 14 साल की  कस्तूरबा माखनजी  से कर दिया गया। पत्नी का पहला नाम छोटा करके  कस्तूरबा  कर दिया गया और उसे लोग प्यार से  बा  कहते थे। यह विवाह उनके माता पिता द्वारा तय किया गया व्यवस्थित बाल विवाह था जो उस समय उस क्षेत्र में प्रचलित था। लेकिन उस क्षेत्र में यही रीति थी कि किशोर दुल्हन को अपने माता पिता के घर और अपने पति से अलग अधिक समय तक रहना पड़ता था। 1885 में जब गान्धी जी 15 वर्ष के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया। लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। और इसी साल उनके पिता करमचन्द गन्धी भी चल बसे। मोहनदास और कस्तूरबा के चार सन्तान हुईं जो सभी पुत्र थे। हरीलाल गान्धी 1888 में, मणिलाल गान्धी 1892 में, रामदास गान्धी 1897 में और देवदास गांधी 1900 में जन्मे।

महात्मा गाँधी की शिक्षा और कार्य – Mahatma Gandhi Career History in Hindi

पोरबंदर से उन्होंने मिडिल और राजकोट से हाई स्कूल किया। दोनों परीक्षाओं में शैक्षणिक स्तर वह एक औसत छात्र रहे। मैट्रिक के बाद की परीक्षा उन्होंने भावनगर के शामलदास कॉलेज से कुछ परेशानी के साथ उत्तीर्ण की। जब तक वे वहाँ रहे अप्रसन्न ही रहे क्योंकि उनका परिवार उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहता था। बाद में लंदन में विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वह भारत में आकर अपनी वकालत की अभ्यास करने लगे, लेकिन सफल नहीं हुए। उसी समय दक्षिण अफ्रीका से उन्हें एक कंपनी में क़ानूनी सलाहकार के रूप में काम मिला, वहा महात्मा गांधीजी लगभग 20 साल तक रहे।

वहा भारतीयों के मुलभुत अधिकारों के लिए लड़ते हुए कई बार जेल भी गए। अफ्रीका में उस समय बहुत ज्यादा नस्लवाद हो रहा था, उसके बारे में एक किस्सा भी है, जब गांधीजी अग्रेजों के स्पेशल कंपार्टमेंट में चढ़े उन्हें गाँधीजी को बहुत बेईजत कर के ढकेल दिया। उन्होंने अपनी इस यात्रा में अन्य भी कई कठिनाइयों का सामना किया। अफ्रीका में कई होटलों को उनके लिए वर्जित कर दिया गया। इसी तरह ही बहुत सी घटनाओं में से एक यह भी थी जिसमें अदालत के न्यायाधीश ने उन्हें अपनी पगड़ी उतारने का आदेश दिया था जिसे उन्होंने नहीं माना। ये सारी घटनाएँ गान्धी के जीवन में एक मोड़ बन गईं और विद्यमान सामाजिक अन्याय के प्रति जागरुकता का कारण बनीं तथा सामाजिक सक्रियता की व्याख्या करने में मददगार सिद्ध हुईं।

दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए गान्धी ने अंग्रेजी साम्राज्य के अन्तर्गत अपने देशवासियों के सम्मान तथा देश में स्वयं अपनी स्थिति के लिए प्रश्न उठाये। वहा उन्होंने सरकार विरूद्ध असहयोग आंदोलन संगठित किया. वे एक अमेरिकन लेखक हेनरी डेविड थोरो लेखो से और निबंधो से बेहद प्रभावित थे। आखिर उन्होंने अनेक विचारो ओर अनुभवों से सत्याग्रह का मार्ग चुना, जिस पर गाँधीजी पूरी जिंदगी चले, पहले विश्वयुद्ध के बाद भारत में ‘होम रुल’ का अभियान तेज हो गया, 1919 में रौलेट एक्ट पास करके ब्रिटिश संसद ने भारतीय उपनिवेश के अधिकारियों को कुछ आपातकालींन अधिकार दिये तो गांधीजीने लाखो लोगो के साथ सत्याग्रह आंदोलन किया।

उसी समय एक और चंद्रशेखर आज़ाद और  भगत सिंह  क्रांतिकारी देश की स्वतंत्रता के लिए हिंसक आंदोलन कर रहे थे। लेकीन गांधीजी का अपने पूर्ण विश्वास अहिंसा के मार्ग पर चलने पर था। और वो पूरी जिंदगी अहिंसा का संदेश देते रहे।

महात्मा गांधी की मृत्यु – Death of Mahatma Gandhi

मृत्यु : 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की दिल्ली के ‘बिरला हाउस’ में शाम 5:17 पर हत्या कर दी गयी। गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे जब उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे ने उबके सीने में 3 गोलियां दाग दी। ऐसे माना जाता है की ‘हे राम’ उनके मुँह से निकले अंतिम शब्द थे। नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया और 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गयी। महात्मा गांधी जी 79 साल की उम्र में वे सभी देश वासियों को अलविदा कहकर चले गए।

महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गये आंदोलन – Mahatma Gandhi ke Andolan

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष (1916-1945) – bhartiya swatantrata sangram.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष 1916 से 1945 तक चला। यह संघर्ष भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उपमहाद्वीप से जड़ से उखाड़ फेंकना था। जब गाँधी जी अफ्रीका से लौटे थे उस समय तक वे राष्ट्रवादी नेता के तौर पर प्रचलित हो चुके थे। उन्होंने इस आंदोलन में किसानों, मजदूरों, शहरी श्रमिकों को एकजुट किया।

चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह (1918-1919) – Champaran Satyagraha in Hindi

गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् 1918 में एक सत्याग्रह हुआ। यह गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। यह आंदोलन किसानो पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ था। खेड़ा सत्याग्रह भी गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों का अंग्रेज सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध आंदोलन था।

खिलाफत आन्दोलन (1919-1924) – Khilafat Andolan in Hindi

ख़िलाफ़त आन्दोलन (1919-1922) भारत में मुख्य तौर पर मुसलमानों द्वारा चलाया गया राजनीतिक-धार्मिक आन्दोलन था। गाँधी जी इस आंदोलन में भाग लिए और मुस्लिम-हिन्दू को एकजुट करने में सहयोग किये।

असहयोग आन्दोलन – Asahyog Andolan in Hindi

गांधी जी का मानना था की भारत में अंग्रेजी हुकुमत भारतियों के सहयोग से ही संभव हो पाई थी और अगर हम सब मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ हर बात पर असहयोग करें तो आजादी संभव है। गाँधी जी के नेतृत्व मे चलाया जाने वाला यह प्रथम जन आंदोलन था। इस आंदोलन का मकशद था अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना।

स्वराज और नमक सत्याग्रह – Namak Satyagrah

गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में 1930 में नमक सत्याग्रह जिसे दांडी मार्च भी कहा जाता हैं। ये ऐतिहासिक सत्याग्रह कार्यक्रम गाँधीजी समेत 78 लोगों के द्वारा अहमदाबाद साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गाँव दांडी तक पैदल यात्रा करके 12 मार्च 1930 को नमक हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून का भंग किया गया था।

  • हरिजन आंदोलन
  • द्वितीय विश्व युद्ध और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’
  • देश का विभाजन और भारत की आजादी

महात्मा गांधीजी की जीवन कार्य – Mahatma Gandhi History

  • 1893 में उन्हें दादा अब्दुला इनका व्यापार कंपनी का मुकदमा चलाने के लिये दक्षिण आफ्रिका को जाना पड़ा। जब दक्षिण आफ्रिका में थे तब उन्हें भी अन्याय-अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उनका प्रतिकार करने के लिये भारतीय लोगोंका संघटित करके उन्होंने 1894 में ‘नेशनल इंडियन कॉग्रेस की स्थापना की।
  • 1906 में वहा के शासन के आदेश के अनुसार पहचान पत्र साथ में रखना सक्त किया था। इसके अलावा रंग भेद नीती के विरोध में उन्होंने ब्रिटिश शासन विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया।
  • 1915 में महात्मा गांधीजी भारत लौट आये और उन्होंने सबसे पहले साबरमती यहा सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की.तथा 1919 में उन्होंने ‘सविनय अवज्ञा’ आंदोलन में शुरु किया।
  • 1920 में असहयोग आंदोलन शुरु किया।
  •  1920 में लोकमान्य तिलक के मौत के बाद राष्ट्रिय सभा का नेवृत्त्व महात्मा गांधी के पास आया।
  • 1920 में के नागपूर के अधिवेशन में राष्ट्रिय सभा ने असहकार के देशव्यापी आंदोलन अनुमोदन देनेवाला संकल्प पारित किया. असहकार आंदोलन की सभी सूत्रे महात्मा गांधी पास दिये गये।
  • 1924 में बेळगाव यहा राष्ट्रिय सभा के अधिवेशन का अध्यक्ष पद।
  • 1930 में सविनय अवज्ञा आदोलन शुरु हुवा. नमक के उपर कर और नमक बनाने की सरकार एकाधिकार रद्द की जाये. ऐसी व्हाइसरॉय से मांग की, व्हाइसरॉय ने उस मांग को नहीं माना तब गांधीजी ने नमक का कानून तोड़कर सत्याग्रह करने की ठान ली।
  • 1932 में उन्होंने अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की।
  • 1933 में उन्होंने ‘हरिजन’ नाम का अखबार शुरु किया।
  • 1934 में गांधी जी ने वर्धा के पास ‘सेवाग्राम’ इस आश्रम की स्थापना की. हरिजन सेवा, ग्रामोद्योग, ग्रामसुधार, आदी विधायक कार्यक्रम करके उन्होंने प्रयास किया।
  • 1942 में चले जाव आंदोलन शुरु हुआ। ‘करेगे या मरेगे’ ये नया मंत्र गांधीजी ने लोगों को दिया।
  • व्दितीय विश्वयुध्द में महात्मा गांधीजी ने अपने देशवासियों से ब्रिटेन के लिये न लड़ने का आग्रह किया था, जिसके लिये उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। युध्द के उपरान्त उन्होंने पुन: स्वतंत्रता आदोलन की बागडोर संभाल ली. अंततः 1947 में हमारे देश को स्वतंत्रता प्राप्त हो गई। गांधीजीने सदैव विभिन्न धर्मो के प्रति सहिष्णुता का संदेश दिया, 1948 मेंनाथूराम गोडसे ने अपनी गोली से उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। इस दुर्घटना से सारा विश्व शोकमग्न हो गया था. वर्ष 1999 में बी.बी.सी. द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में गांधी जी को बीते मिलेनियम का सर्वश्रेष्ट पुरुष घोषित किया गया।
  • गांधीजी ने समाज में फैली छुआछूत की भावना को दूर करने के लिए बहुत प्रयास किये। उन्होंने पिछड़ी जातियों को ईश्वर के नाम पर ‘हरि – जन’ नाम दिया और जीवन पर्यन्त उनके उत्थान के लिए प्रयासरत रहें।

महात्मा गांधी की पुस्तकों के नाम – Mahatma Gandhi Book’s –

  • माय एक्सपेरिमेंट वुईथ ट्रुथ ( My Experiment With Truth ).
  • हिन्द स्वराज – सन 1909 में
  • दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह – सन 1924 में
  • मेरे सपनों का भारत
  • ग्राम स्वराज
  • ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ एक आत्मकथा
  • रचनात्मक कार्यक्रम – इसका अर्थ और स्थान

Mahatma Gandhi – मोहनदास करमचंद गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के निदेशक थे। उन्ही की प्रेरणा से 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हो सकी। अपनी अदभुत आध्यात्मिक शक्ति से मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों को उदभाषित करने वाले, विश्व इतिहास के महान तथा अमर नायक महात्मा गांधी आजीवन सत्य, अहिंसा और प्रेम का पथ प्रदर्शित करते रहे।

गांधीजी ने समाज में फैली छुआछूत की भावना को दूर करने के लिए बहुत प्रयास किये। उन्होंने पिछड़ी जातियों को ईश्वर के नाम पर ‘हरि – जन’ नाम दिया और जीवन पर्यन्त उनके उत्थान के लिए प्रयासरत रहें।

गाँधी जी की आलोचना 

गांधी के सिद्धान्तों और करनी को लेकर प्रयः उनकी आलोचना भी की जाती है। उनकी आलोचना के मुख्य बिन्दु हैं-

  • दोनो विश्वयुद्धों में अंग्रेजों का साथ देना ।
  • खिलाफत आन्दोलनजैसे साम्प्रदायिक आन्दोलन को राष्ट्रीय आन्दोलन बनाना।
  • सशस्त्र क्रान्तिकारियों के अंग्रेजों के विरुद्ध हिंसात्मक कार्यों की निन्दा करना।
  • गांधी-इरविन समझौता- जिससे भारतीय क्रन्तिकारी आन्दोलन को बहुत धक्का लगा।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष पद पर  सुभाष चन्द्र बोस  के चुनाव पर नाखुश होना।
  • चौरी चौरा काण्ड के बाद असहयोग आन्दोलन को सहसा रोक देना।
  • भारत की स्वतंत्रता के बाद पंडित नेहरू  को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाना।
  • स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को 55 करोड़ रूपये देने की जिद पर अनशन करना।

Ans : 2 अक्टूबर 1869 को

Ans : गुजराती

Q : महात्मा गांधी किस धर्म के थे?

Ans : गान्धी सनातन धर्म की  पंसारी  जाति से सम्बन्ध रखते थे।

Ans : श्रीमद राजचंद्र जी

Ans : राजकुमारी अमृत

Ans : भारत को आजादी दिलाने में विशेष योगदान रहा था।

Ans : गुजरात के पोरबंदर में हुआ था।

Ans : 30 जनवरी 1948 को

Q : गांधी जी भारत कब वापस आये?

Ans : गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत में रहने के लिए लौट आए।

Ans : हिन्द स्वराज : सन 1909 में, माय एक्सपेरिमेंट वुईथ ट्रुथ

Ans : सत्य से संयोग नामक आत्मकथा महात्मा गांधी द्वारा लिखी गई है।

Q : गांधी जी के पत्नी का क्या नाम था?

Ans : कस्तूरबा गांधी

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9 thoughts on “महात्मा गाँधी की प्रेरणादायी जीवनी | mahatma gandhi biography in hindi”.

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Nice information. ..

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आपने महात्मा गांधी के बारे में बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है। कृपया आगे भी ऐसे ही जानकारी देते रहिएगा। धन्यवाद

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गाँधी जी के विचार में ताकत थी. उनकी जीवनी हमें स्कूल के जीवन की याद दिलाती है. आपके लेख का मै बहुत ही अभारी हूँ. धन्यवाद

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pagal aashu roy

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बहुत ही शानदार लेख है हमें बहुत अच्छी लगी |

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Very bad information.Mahatma Gandhi ne afrika men to kale gore ke bhed bhav ko door krne ka pryas kiya lekin bharat me nahin.

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महात्मा गांधी की जीवनी- Mahatma Gandhi Biography Hindi

आज हम इस आर्टिकल में आपको महात्मा गांधी की जीवनी- Mahatma Gandhi Biography Hindi के बारे बताएंगे।

Mahatma Gandhi जी भारत और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे और वे सत्याग्रह के माध्यम से प्रतिकार के अग्रणी नेता थे।

उनकी इस अवधारणा की नींव संपूर्ण अहिंसा के सिद्धांत पर रखी रखी गई थी।

महात्मा गांधी जी ने भारत को स्वतंत्र कराने में अपनी अहम भूमिका निभाई।

उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन, नमक सत्याग्रह आंदोलन आदि आन्दोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया।

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ थ।

उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।

उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था जो कि सनातन धर्म के पंसारी जाति से संबंध रखते थे।

इनके पिता कट्टर हिंदू एवं ब्रिटिश सरकार के अधीन गुजरात में काठियावाड़ की रियासत पोरबंदर के प्रधानमंत्री थे।

इनकी माता का नाम पुतलीबाई थाऔर वे परनामी वैश्य समुदाय की थी।

महात्मा गाँधी के अन्य नाम बापू, राष्ट्रपति, गांधी जी थ।

गांधी जी का विवाह 1883 में 13.5 वर्ष की आयु में कस्तूरबा से हुआ था।

गांधीजी ” कस्तूरबा” को “बा” कह कर बुलाते थे।

उनका यह बाल विवाह उनके माता -पिता के द्वारा तय किया गया था।

महात्मागांधी के चार पुत्र थे जिनके नाम इस प्रकार है –

  • हरिलाल गांधी (1888ई .)
  • मणिलाल गांधी (1892ई. )
  • रामदास गांधी (1897 ई.)
  • देवदास गांधी (1900ई.)

महात्मा गांधी के शिक्षा

मोहनदास करमचंद गांधी ने 1887 मैट्रिक की परीक्षा मुंबई यूनिवर्सिटी से पुरी की और इसके आगे की परीक्षा के लिए भी भावनगर के शामलदास स्कूल में गए।

महात्मा गांधी का परिवार उन्हें बारिस्टर बनाना चाहता था।

सितंबर 1818 ई. को गांधी जी बारिस्टर पढ़ाई के लिए लंदन गए जहां पर उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में दाखिला लिया ।

गांधी जी ने अपनी मां को दिए हुए वचन के अनुसार अपने  शाकाहारी भोजन ही किया।

गांधीजी शुरू से ही शाकाहारी थे और उन्होंने लंदन में भी अपने इस नियम को बनाए रखा।

गांधीजी के व्यक्तित्व ने उसकी लंदन में एक अलग ही छवि प्रदान की। गांधीजी ने लंदन में थियोसोफिकल नामक सोसाइटी के मुख्य सदस्यों से मिले। सोसायटी की स्थापना विश्व बंधुत्व के लिए 1875 में हुई थी और तो और इसमें बौद्ध धर्म, सनातन धर्म के ग्रंथों का संकलन भी था।

वकालत का आरंभ – महात्मा गांधी की जीवनी

इंग्लैंड और वेल्स बार एसोसिएशन द्वारा बुलाए जाने पर गांधीजी वापस मुंबई लौट आए और उन्होंने यही पर अपनी वकालत की पढ़ाई शुरू की।

मुंबई में गांधी जी को सफलता नहीं मिली जिसके कारण गांधी जी गांधी जी ने कुछ समय के लिए शिक्षक के पद पर काम करने के लिए एक अर्जी दी लेकिन उसे भी अस्वीकार कर दिया गया।अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए गांधी जी को मुकदमों की अर्जी लिखने का काम शुरू करना पड़ा परंतु कुछ समय बाद ही उन्हें यह काम भी छोड़ना पड़ा।

1893 ई. में  महात्मा गांधी जी एक वर्ष  के करार के साथ दक्षिण अफ्रीका गए।

दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश सरकार की फर्म नेटल से यह वकालत करार हुआ था।

महात्मा गांधी जी की दक्षिण अफ्रीका की यात्रा

दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी को भारतीयों पर हो रहे भेदभाव का सामना करना पड़ा।

उन्हें प्रथम श्रेणी उसकी वेध टिकट होने के बाद भी तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इंकार कर दिया गया और उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था।इतना ही नहीं यात्रा करते समय पायदान पर एक अन्य यूरोपीय यात्री के अंदर आने पर उन्हें चालक से मार भी खानी पड़ी। इन्हें अपनी इस यात्रा के दौरान कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

अफ्रीका के कई होटलों में उनको आने के लिए मना कर दिया गया। इसी तरह ही कई घटनाओं में से यह एक भी थी जिसमें अदालत के न्यायधीश ने उन्हें अपने पगड़ी उतारने का आदेश दे दिया था जिसे उन्होंने मानने से मना कर दिया।

गांधी जी के साथ हुई यही सारी घटनाएं उनके जीवन में एक नया मोड़ ले कर आई और विद्यमान सामाजिक अन्याय के प्रति जागरूकता का कारण बने तथा सामाजिक सक्रियता की व्याख्या करने में मददगार साबित हुई।अफ्रीका में भारतीयों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देखते हुए गांधी जी ने अंग्रेजी साम्राज्य के अंतर्गत अपने देशवासियों के सम्मान तथा अपने देश में स्वयं अपनी स्थिति के लिए प्रश्न उठाए।

भारतीयों के आजादी के लिए संघर्ष

1916 ई. गांधी जी अपने भारत के लिए वापस भारत आए और अपनी कोशिशों में लग गए।

उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन पर अपने विचार व्यक्त किए लेकिन उनके विचार भारत के मुख्य मुद्दों, राजनीति तथा उस समय के कांग्रेस दल के प्रमुख भारतीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले पर आधारित थे, जो कि एक सम्मानित नेता थे।

चंपारण और खेड़ा – महात्मा गांधी की जीवनी

गांधी जी को सब अपनी पहली बड़ी उपलब्धि 1918 में चंपारण सत्याग्रह और खेड़ा सत्याग्रह में मिली हालांकि अपने निर्वाह के लिए नील की खेती की खेती करने के बजाय नगद पैसा देने वाली खाद्य फसलों की खेती करने वाली आंदोलन भी महत्वपूर्ण रहे।

जमीदारों की ताकत का दमन करते हुए भारतीयों के नाम पत्र भरपाई बता दिया गया, जिससे वे अत्यधिक गरीबी से गिर गए। गांव में गंदगी अस्वस्थता और अन्य कई तरह की बीमारियां फैलाने लगी थी।

खेड़ा, गुजरात में भी यही समस्या थी।

पहले तो गांधीजी ने वहां पर सफाई करवाई और स्कूल और अस्पताल बनवाए जिससे ग्रामीण लोगों को उन पर विश्वास हुआ। उस समय हुए शोर शराबे के कारण गांधी जी को शोर-शराबे से हुई परेशानियों के लिए थाने में बंद कर दिया गया जिसका विरोध पूरे गांव वालों ने किया।बिना किसी कानूनी कार्रवाई के गांधी जी को थाने में बंद करने के लिए और उन्हें वहां से छुड़वाने के लिए गांव के लोगों ने थाने के आगे धरना प्रदर्शन भी किया।

गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हड़ताल का नेतृत्व किया जिन्होंने अंग्रेजी सरकार के मार्गदर्शन में उस क्षेत्र के गरीब किसानों को अधिक क्षतिपूर्ति मंजूर करने तथा खेती पर नियंत्रण राजसव में बढ़ोतरी को रद्द करना तथा इसे संग्रहित करने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

महात्मा गांधी को सबसे पहले पलवल स्टेशन से गिरफ्तार किया गया था

गांधी जी के नेतृत्व में दिए गए आंदोलन

  • असहयोग आंदोलन(1920)
  • स्वराज और नमक सत्याग्रह, डंडी यात्रा (1930)
  • दलित आंदोलन (1932)
  • द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन(1942)

महात्मा गांधी के नारे

  • “करो या मरो”
  • “हिंसा परमो धर्म”
  • “आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान यतना पूर्ण बहिष्कार यहां तक की मौत भी सहने को तैयार हूं।”
  • “बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, और बुरा मत कहो”
  • “सादा जीवन उच्च विचार”

महात्मा गांधी की मृत्यु – महात्मा गांधी की जीवनी

30 जनवरी 1948 को गांधी जी अपने बिड़ला भवन में घूम रहे थे और उनको गोली मार दी गई थी।

हत्यारे का नाम नाथु राम गोडसे था यह एक राष्ट्रवादी थे जिनके कट्टरपंथी हिंदू महासभा के के साथ संबंध थे।

जिसने गांधी जी को पाकिस्तान को भुगतान करने के मुद्दे पर भारत को कमजोर बनाने के लिए दोषी करार दिया था।

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It's Hindi

महात्मा गांधी.

जन्म : 2 अक्टूबर, 1869, पोरबंदर, काठियावाड़ एजेंसी (अब गुजरात)

मृत्यु : 30 जनवरी 1948, दिल्ली

कार्य/उपलब्धियां: सतंत्रता आन्दोलन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

महात्मा गांधी के नाम से मशहूर मोहनदास करमचंद गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक नेता थे। सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धान्तो पर चलकर उन्होंने भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इन सिद्धांतों ने पूरी दुनिया में लोगों को नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1944 में रंगून रेडियो से गान्धी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहकर सम्बोधित किया था।

महात्मा गाँधी समुच्च मानव जाति के लिए मिशाल हैं। उन्होंने हर परिस्थिति में अहिंसा और सत्य का पालन किया और लोगों से भी इनका पालन करने के लिये कहा। उन्होंने अपना जीवन सदाचार में गुजारा। वह सदैव परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनते थे। सदैव शाकाहारी भोजन खाने वाले इस महापुरुष ने आत्मशुद्धि के लिये कई बार लम्बे उपवास भी रक्खे।

सन 1915 में भारत वापस आने से पहले गान्धी ने एक प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष किया। भारत आकर उन्होंने समूचे देश का भ्रमण किया और  किसानों, मजदूरों और श्रमिकों को भारी भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष करने के लिये एकजुट किया। सन 1921 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभाली और अपने कार्यों से देश के राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित किया। उन्होंने सन 1930 में नमक सत्याग्रह और इसके बाद 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान कई मौकों पर गाँधी जी कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहे।

प्रारंभिक जीवन

मोहनदास करमचन्द गान्धी का जन्म भारत में गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर में 2 अक्टूबर सन् 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचन्द गान्धी ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान थे। मोहनदास की माता पुतलीबाई परनामी वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखती थीं और अत्यधिक धार्मिक प्रवित्ति की थीं जिसका प्रभाव युवा मोहनदास पड़ा और इन्ही मूल्यों ने आगे चलकर उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। वह नियमित रूप से व्रत रखती थीं और परिवार में किसी के बीमार पड़ने पर उसकी सेवा सुश्रुषा में दिन-रात एक कर देती थीं। इस प्रकार मोहनदास ने स्वाभाविक रूप से अहिंसा,  शाकाहार,  आत्मशुद्धि के लिए व्रत और विभिन्न धर्मों और पंथों को मानने वालों के बीच परस्पर सहिष्णुता को अपनाया।

सन 1883 में साढे 13 साल की उम्र में ही उनका विवाह 14 साल की कस्तूरबा से करा दिया गया। जब मोहनदास 15 वर्ष के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। उनके पिता करमचन्द गाँधी भी इसी साल (1885) में चल बसे। बाद में मोहनदास और कस्तूरबा के चार सन्तान हुईं – हरीलाल गान्धी (1888), मणिलाल गान्धी (1892), रामदास गान्धी (1897) और देवदास गांधी (1900)।

उनकी मिडिल स्कूल की शिक्षा पोरबंदर में और हाई स्कूल की शिक्षा राजकोट में हुई। शैक्षणिक स्तर पर मोहनदास एक औसत छात्र ही रहे। सन 1887 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अहमदाबाद से उत्तीर्ण की। इसके बाद मोहनदास ने भावनगर के शामलदास कॉलेज में दाखिला लिया पर ख़राब स्वास्थ्य और गृह वियोग के कारण वह अप्रसन्न ही रहे और कॉलेज छोड़कर पोरबंदर वापस चले गए।

विदेश में शिक्षा और वकालत

मोहनदास अपने परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे थे इसलिए उनके परिवार वाले ऐसा मानते थे कि वह अपने पिता और चाचा का उत्तराधिकारी (दीवान) बन सकते थे। उनके एक परिवारक मित्र मावजी दवे ने ऐसी सलाह दी कि एक बार मोहनदास लन्दन से बैरिस्टर बन जाएँ तो उनको आसानी से दीवान की पदवी मिल सकती थी। उनकी माता पुतलीबाई और परिवार के अन्य सदस्यों ने उनके विदेश जाने के विचार का विरोध किया पर मोहनदास के आस्वासन पर राज़ी हो गए। वर्ष 1888 में मोहनदास यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये। अपने माँ को दिए गए वचन के अनुसार ही उन्होंने लन्दन में अपना वक़्त गुजारा। वहां उन्हें शाकाहारी खाने से सम्बंधित बहुत कठिनाई हुई और शुरूआती दिनो में कई बार भूखे ही रहना पड़ता था। धीरे-धीरे उन्होंने शाकाहारी भोजन वाले रेस्टोरेंट्स के बारे में पता लगा लिया। इसके बाद उन्होंने ‘वेजीटेरियन सोसाइटी’ की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। इस सोसाइटी के कुछ सदस्य थियोसोफिकल सोसाइटी के सदस्य भी थे और उन्होंने मोहनदास को गीता पढने का सुझाव दिया।

जून 1891 में गाँधी भारत लौट गए और वहां जाकर उन्हें अपनी मां के मौत के बारे में पता चला। उन्होंने बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की पर उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद वो राजकोट चले गए जहाँ उन्होंने जरूरतमन्दों के लिये मुकदमे की अर्जियाँ लिखने का कार्य शुरू कर दिया परन्तु कुछ समय बाद उन्हें यह काम भी छोड़ना पड़ा।

आख़िरकार सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल (दक्षिण अफ्रीका) में एक वर्ष के करार पर वकालत का कार्य  स्वीकार कर लिया।

गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में (1893-1914)

गाँधी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। वह प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकार के तौर पर वहां गए थे। उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताये जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ। दक्षिण अफ्रीका में उनको गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक बार ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने के कारण उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया। ये सारी घटनाएँ उनके के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ बन गईं और मौजूदा सामाजिक और राजनैतिक अन्याय के प्रति जागरुकता का कारण बनीं। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए उनके मन में ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत भारतियों के सम्मान तथा स्वयं अपनी पहचान से सम्बंधित प्रश्न उठने लगे।

दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी ने भारतियों को अपने राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने भारतियों की नागरिकता सम्बंधित मुद्दे को भी दक्षिण अफ़्रीकी सरकार के सामने उठाया और सन 1906 के ज़ुलु युद्ध में भारतीयों को भर्ती करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों को सक्रिय रूप से प्रेरित किया। गाँधी के अनुसार अपनी नागरिकता के दावों को कानूनी जामा पहनाने के लिए भारतीयों को ब्रिटिश युद्ध प्रयासों में सहयोग देना चाहिए।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष (1916-1945)

वर्ष 1914 में गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आये। इस समय तक गांधी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। वह उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत आये थे और शुरूआती दौर में गाँधी के विचार बहुत हद तक गोखले के विचारों से प्रभावित थे। प्रारंभ में गाँधी ने देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की।

चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह

बिहार के चम्पारण और गुजरात के खेड़ा में हुए आंदोलनों ने गाँधी को भारत में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। चंपारण में ब्रिटिश ज़मींदार किसानों को खाद्य फसलों की बजाए नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे और सस्ते मूल्य पर फसल खरीदते थे जिससे किसानों की स्थिति बदतर होती जा रही थी।  इस कारण वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। एक विनाशकारी अकाल के बाद अंग्रेजी सरकार ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। कुल मिलाकर  स्थिति बहुत निराशाजनक थी। गांधीजी ने गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया जिसके बाद गरीब और किसानों की मांगों को माना गया।

सन 1918 में गुजरात स्थित खेड़ा बाढ़ और सूखे की चपेट में आ गया था जिसके कारण किसान और गरीबों की स्थिति बद्तर हो गयी और लोग कर माफ़ी की मांग करने लगे। खेड़ा में गाँधी जी के मार्गदर्शन में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ इस समस्या पर विचार विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया। इसके बाद अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया। इस प्रकार चंपारण और खेड़ा के बाद गांधी की ख्याति देश भर में फैल गई और वह स्वतंत्रता आन्दोलन के एक महत्वपूर्ण नेता बनकर उभरे।

खिलाफत आन्दोलन

कांग्रेस के अन्दर और मुस्लिमों के बीच अपनी लोकप्रियता बढ़ाने का मौका गाँधी जी को खिलाफत आन्दोलन के जरिये मिला। खिलाफत एक विश्वव्यापी आन्दोलन था जिसके द्वारा खलीफा के गिरते प्रभुत्व का विरोध सारी दुनिया के मुसलमानों द्वारा किया जा रहा था। प्रथम विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद ओटोमन साम्राज्य विखंडित कर दिया गया था जिसके कारण मुसलमानों को अपने धर्म और धार्मिक स्थलों के सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई थी। भारत में खिलाफत का नेतृत्व ‘आल इंडिया मुस्लिम कांफ्रेंस’ द्वारा किया जा रहा था। धीरे-धीरे गाँधी इसके मुख्य प्रवक्ता बन गए। भारतीय मुसलमानों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दिए सम्मान और मैडल वापस कर दिया। इसके बाद गाँधी न सिर्फ कांग्रेस बल्कि देश के एकमात्र ऐसे नेता बन गए जिसका प्रभाव विभिन्न समुदायों के लोगों पर था।

असहयोग आन्दोलन

गाँधी जी का मानना था की भारत में अंग्रेजी हुकुमत भारतियों के सहयोग से ही संभव हो पाई थी और अगर हम सब मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ हर बात पर असहयोग करें तो आजादी संभव है। गाँधी जी की बढती लोकप्रियता ने उन्हें कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता बना दिया था और अब वह इस स्थिति में थे कि अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार जैसे अस्त्रों का प्रयोग कर सकें। इसी बीच जलियावांला नरसंहार ने देश को भारी आघात पहुंचाया जिससे जनता में क्रोध और हिंसा की ज्वाला भड़क उठी थी।

गांधी जी ने स्वदेशी नीति का आह्वान किया जिसमें विदेशी वस्तुओं विशेषकर अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना था। उनका कहना था कि सभी भारतीय अंग्रेजों द्वारा बनाए वस्त्रों की अपेक्षा हमारे अपने लोगों द्वारा हाथ से बनाई गई खादी पहनें। उन्होंने पुरूषों और महिलाओं को प्रतिदिन सूत कातने के लिए कहा। इसके अलावा महात्मा गाँधी ने ब्रिटेन की शैक्षिक संस्थाओं और अदालतों का बहिष्कार, सरकारी नौकरियों को छोड़ने तथा अंग्रेजी सरकार से मिले तमगों और सम्मान को वापस लौटाने का भी अनुरोध किया।

असहयोग आन्दोलन को अपार सफलता मिल रही थी जिससे समाज के सभी वर्गों में जोश और भागीदारी बढ गई लेकिन फरवरी 1922 में इसका अंत चौरी-चौरा कांड के साथ हो गया। इस हिंसक घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया। उन्हें गिरफ्तार कर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया जिसमें उन्हें छह साल कैद की सजा सुनाई गयी। ख़राब स्वास्थ्य के चलते उन्हें फरवरी 1924 में सरकार ने रिहा कर दिया।

स्वराज और नमक सत्याग्रह

असहयोग आन्दोलन के दौरान गिरफ़्तारी के बाद गांधी जी फरवरी 1924 में रिहा हुए और सन 1928 तक सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे। इस दौरान वह स्वराज पार्टी और कांग्रेस के बीच मनमुटाव को कम करने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त अस्पृश्यता, शराब, अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ भी लड़ते रहे।

इसी समय अंग्रेजी सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत के लिए एक नया संवेधानिक सुधार आयोग बनाया पर उसका एक भी सदस्य भारतीय नहीं था जिसके कारण भारतीय राजनैतिक दलों ने इसका बहिष्कार किया। इसके पश्चात दिसम्बर 1928 के कलकत्ता अधिवेशन में गांधी जी ने अंग्रेजी हुकुमत को भारतीय साम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा और ऐसा न करने पर देश की आजादी के लिए असहयोग आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा। अंग्रेजों द्वारा कोई जवाब नहीं मिलने पर 31 दिसम्बर 1929 को लाहौर में भारत का झंडा फहराया गया और कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 का दिन भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया। इसके पश्चात गांधी जी ने सरकार द्वारा नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में नमक सत्याग्रह चलाया जिसके अंतर्गत उन्होंने 12 मार्च से 6 अप्रेल तक अहमदाबाद से दांडी, गुजरात, तक लगभग 388 किलोमीटर की यात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य स्वयं नमक उत्पन्न करना था। इस यात्रा में हजारों की संख्‍या में भारतीयों ने भाग लिया और अंग्रेजी सरकार को विचलित करने में सफल रहे। इस दौरान सरकार ने लगभग 60 हज़ार से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा।

इसके बाद लार्ड इरविन के प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप गांधी-इरविन संधि पर मार्च 1931 में हस्ताक्षर हुए। गांधी-इरविन संधि के तहत ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने के लिए सहमति दे दी। इस समझौते के परिणामस्वरूप गांधी कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया परन्तु यह सम्मेलन कांग्रेस और दूसरे राष्ट्रवादियों के लिए घोर निराशाजनक रहा। इसके बाद गांधी फिर से गिरफ्तार कर लिए गए और सरकार ने राष्ट्रवादी आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की।

1934 में गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों के स्थान पर अब ‘रचनात्मक कार्यक्रमों’ के माध्यम से ‘सबसे निचले स्तर से’ राष्ट्र के निर्माण पर अपना ध्यान लगाया। उन्होंने ग्रामीण भारत को शिक्षित करने, छुआछूत के ख़िलाफ़ आन्दोलन जारी रखने, कताई, बुनाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने और लोगों की आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाने का काम शुरू किया।

हरिजन आंदोलन

दलित नेता बी आर अम्बेडकर की कोशिशों के परिणामस्वरूप अँगरेज़ सरकार ने अछूतों के लिए एक नए संविधान के अंतर्गत पृथक निर्वाचन मंजूर कर दिया था। येरवडा जेल में बंद गांधीजी ने इसके विरोध में सितंबर 1932 में छ: दिन का उपवास किया और सरकार को एक समान व्यवस्था (पूना पैक्ट) अपनाने पर मजबूर किया। अछूतों के जीवन को सुधारने के लिए गांधी जी द्वारा चलाए गए अभियान की यह शुरूआत थी। 8 मई 1933 को गांधी जी ने आत्म-शुद्धि के लिए 21 दिन का उपवास किया और हरिजन आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए एक-वर्षीय अभियान की शुरुआत की। अमबेडकर जैसे दलित नेता इस आन्दोलन से प्रसन्न नहीं थे और गांधी जी द्वारा दलितों के लिए हरिजन शब्द का उपयोग करने की निंदा की।

द्वितीय विश्व युद्ध और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’

द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ में गांधी जी अंग्रेजों को ‘अहिंसात्मक नैतिक सहयोग’ देने के पक्षधर थे परन्तु कांग्रेस के बहुत से नेता इस बात से नाखुश थे कि जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना ही सरकार ने देश को युद्ध में झोंक दिया था। गांधी ने घोषणा की कि एक तरफ भारत को आजादी देने से इंकार किया जा रहा था और दूसरी  तरफ लोकतांत्रिक शक्तियों की जीत के लिए भारत को युद्ध में शामिल किया जा रहा था। जैसे-जैसे युद्ध बढता गया गांधी जी और कांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो” आन्दोलन की मांग को तीव्र कर दिया।

‘भारत छोड़ो’ स्वतंत्रता आन्दोलन के संघर्ष का सर्वाधिक शक्तिशाली आंदोलन बन गया जिसमें व्यापक हिंसा और गिरफ्तारी हुई। इस संघर्ष में हजारों की संख्‍या में स्वतंत्रता सेनानी या तो मारे गए या घायल हो गए और हजारों गिरफ्तार भी कर लिए गए। गांधी जी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह ब्रिटिश युद्ध प्रयासों को समर्थन तब तक नहीं देंगे जब तक भारत को तत्‍काल आजादी न दे दी जाए। उन्होंने यह भी कह दिया था कि व्यक्तिगत हिंसा के बावजूद यह आन्दोलन बन्द नहीं होगा। उनका मानना था की देश में व्याप्त सरकारी अराजकता असली अराजकता से भी खतरनाक है। गाँधी जी ने सभी कांग्रेसियों और भारतीयों को अहिंसा के साथ करो या मरो (डू ऑर डाय) के साथ अनुशासन बनाए रखने को कहा।

जैसा कि सबको अनुमान था अंग्रेजी सरकार ने गांधी जी और कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को मुबंई में 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया और गांधी जी को पुणे के आंगा खां महल ले जाया गया जहाँ उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया। इसी दौरान उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी का देहांत बाद 22 फरवरी 1944 को हो गया और कुछ समय बाद गांधी जी भी मलेरिया से पीड़ित हो गए। अंग्रेज़ उन्हें इस हालत में जेल में नहीं छोड़ सकते थे इसलिए जरूरी उपचार के लिए 6 मई 1944 को उन्हें रिहा कर दिया गया। आशिंक सफलता के बावजूद भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत को संगठित कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया था की जल्द ही सत्ता भारतीयों के हाँथ सौंप दी जाएगी। गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन समाप्त कर दिया और सरकार ने लगभग 1 लाख राजनैतिक कैदियों को रिहा कर दिया।

देश का विभाजन और आजादी

जैसा कि पहले कहा जा चुका है, द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होते-होते ब्रिटिश सरकार ने देश को आज़ाद करने का संकेत दे दिया था। भारत की आजादी के आन्दोलन के साथ-साथ, जिन्ना के नेतृत्व में एक ‘अलग मुसलमान बाहुल्य देश’ (पाकिस्तान) की भी मांग तीव्र हो गयी थी और 40 के दशक में इन ताकतों ने एक अलग राष्ट्र  ‘पाकिस्तान’ की मांग को वास्तविकता में बदल दिया था। गाँधी जी देश का बंटवारा नहीं चाहते थे क्योंकि यह उनके धार्मिक एकता के सिद्धांत से बिलकुल अलग था पर ऐसा हो न पाया और अंग्रेजों ने देश को दो टुकड़ों – भारत और पाकिस्तान – में विभाजित कर दिया।

गाँधी जी की हत्या

30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की दिल्ली के ‘बिरला हाउस’ में शाम 5:17 पर हत्या कर दी गयी। गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे जब उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे ने उबके सीने में 3 गोलियां दाग दी। ऐसे माना जाता है की ‘हे राम’ उनके मुख से निकले अंतिम शब्द थे। नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया और 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गयी।

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Mahatma Gandhi Biography I महात्मा गांधी की जीवनी

Mahatma Gandhi Biography: महात्मा गांधी की जीवनी- सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले महात्मा गांधी ने पूरी दुनिया को इस मार्ग की ओर प्रोत्साहित किया। उनके विचारों और कार्यों के माध्यम से, गांधी ने मानवता को एक सजीव उदाहरण प्रस्तुत किया।

इसी संदर्भ में, महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक बार कहा था कि “आने वाली पीढ़ियों को शायद यह अजीब लगेगा कि हमारे महात्मा गांधी जैसे महान आदमी ने इस प्राचीन दुनिया में अपने विचारों के साथ एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया।” आइंस्टीन की इस कथन में छिपी हुई बात सही साबित हो चुकी है, क्योंकि उनके बाद किसी और गांधी जैसा व्यक्ति का जन्म नहीं हुआ और आगामी में भी नहीं होगा।

Mahatma Gandhi During His Youth

Table of Contents

महात्मा गांधी की जीवनी – Biography Of Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी के जीवन का सफर कठिनाइयों और संघर्षों से भरा था। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ अपना जीवन समर्पित किया और भारतीय जनता को स्वतंत्रता प्राप्त कराने के लिए अनगिनत कठिनाइयों का सामना किया।

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था और उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। महात्मा गांधी ने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की और असहमति के बावजूद अहिंसा के माध्यम से स्वतंत्रता की ओर अग्रसर हुए।

उनके राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले थे जिन्होंने महात्मा गांधी को गांधी जी के संघर्ष की ओर मार्गदर्शन किया। महात्मा गांधी की मृत्यु 30 जनवरी 1948 को हुई, जब उन्हें नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति द्वारा गोली मार दिया गया।

उनका जीवन और कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण हैं और वे आज भी हमारे दिलों में एक महान व्यक्ति के रूप में बसे हुए हैं।

महात्मा गांधी का परिचय : एक अद्वितीय जीवन की कहानी

मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से अधिक जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अद्भुत नेता थे। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के छोटे से शहर पोरबंदर में हुआ था, और उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था, जबकि माता का नाम पुतलीबाई गांधी था।

महात्मा गांधी एक अद्भुत राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, भारतीय वकील, और लेखक थे। वे भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ देशव्यापी स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता बने। उन्हें राष्ट्रपिता के रूप में सम्मानित किया जाता है, और उनकी जयंती को 2 अक्टूबर को मनाया जाता है, जिसे दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस और भारत में गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है।

महात्मा गांधी ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध अहिंसक सत्याग्रह के माध्यम से स्वतंत्रता हासिल करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने सिखाया हैं कि समस्याओं का समाधान अहिंसा के माध्यम से, यानी शांति और समझदारी से किया जा सकता है। उनकी विचारधारा ने उन्हें एक श्रेष्ठ आदर्श बना दिया, जिसने लोगों को संघर्षों और समस्याओं के समाधान में अहिंसा के महत्व को समझाया।

महात्मा गांधी के जीवन और विचारों का प्रभाव दुनिया भर में फैला और उन्हें ‘महान आत्मा’ या ‘महात्मा’ के रूप में पुकारा जाता है। उनकी प्रसिद्धि उनके जीवनकाल में ही पूरी दुनिया में फैल गई और उनके निधन के बाद भी बढ़ गई। इस तरह, महात्मा गांधी पृथ्वी पर सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति हैं।

महात्मा गांधी की शिक्षा- Education of Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी की शैक्षिक यात्रा ने उन्हें इतिहास की सबसे उल्लेखनीय शख्सियतों में से एक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालाँकि शुरुआत में उन्होंने पोरबंदर के एक प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाई की, जहाँ उन्होंने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और पुरस्कार और छात्रवृत्तियाँ अर्जित की, लेकिन शिक्षा के प्रति उनका प्रारंभिक दृष्टिकोण काफी सामान्य था।

1887 में बॉम्बे विश्वविद्यालय में अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद, गांधी ने भावनगर के सामलदास कॉलेज में दाखिला लेकर एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। हालाँकि, चिकित्सा में करियर बनाने की गांधी की मूल इच्छा के बावजूद, उनके पिता के वकील बनने के आग्रह के कारण उनकी शैक्षिक आकांक्षाओं में अप्रत्याशित मोड़ आ गया।

उस युग के दौरान, इंग्लैंड को ज्ञान का केंद्र माना जाता था, और अपने पिता की इच्छा का पालन करते हुए, गांधी ने सामलदास कॉलेज छोड़ने और इंग्लैंड की यात्रा करने का कठिन निर्णय लिया। उनके सीमित वित्तीय संसाधनों और उनकी मां की आपत्तियों ने इस विकल्प को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया था। बहरहाल, सितंबर 1888 में, गांधी ने इंग्लैंड की यात्रा शुरू की और चार प्रतिष्ठित लंदन लॉ स्कूलों में से एक, इनर टेम्पल में शामिल हो गए।

1890 में, उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय में मैट्रिक की परीक्षा देकर शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाया। लंदन में अपने समय के दौरान, गांधी ने अपनी पढ़ाई के प्रति एक नया समर्पण प्रदर्शित किया और एक सार्वजनिक भाषण अभ्यास समूह में शामिल होकर अपने कौशल को निखारा। इस प्रयास ने न केवल उन्हें अपनी शुरुआती घबराहट से उबरने में मदद की बल्कि उन्हें कानून के क्षेत्र में भविष्य के लिए भी तैयार किया।

अपनी शैक्षिक यात्रा के दौरान, गरीबों और हाशिये पर पड़े लोगों की मदद करने का गांधी का जुनून निरंतर प्रेरक शक्ति बना रहा। सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और उनका अटूट दृढ़ संकल्प बाद में उनके शानदार जीवन और करियर की परिभाषित विशेषताएं बन गईं।

महात्मा गांधी अपनी युवावस्था के दौरान- Mahatma Gandhi During His Youth

गांधी जी अपने पिता की चौथी पत्नी की सबसे छोटी संतान थे। मोहनदास करमचंद गांधी के पिता ब्रिटिश निर्वाचन क्षेत्र के तहत पश्चिमी भारत (अब गुजरात राज्य) में एक छोटी नगर पालिका की पोरबंदर के दीवान और प्राचीन मुख्यमंत्री थे। गांधी की मां पुतलीबाई, एक धार्मिक और पवित्र महिला थीं।

मोहनदास वैष्णववाद में बड़े हुए, एक प्रथा इसके बाद हिंदू भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ जैन धर्म की मजबूत उपस्थिति भी हुई, जिसमें अहिंसा की एक मजबूत भावना है। इसलिए, उन्होंने अहिंसा (सभी जीवित प्राणियों के प्रति अहिंसा) का अभ्यास किया, स्वयं के लिए उपवास किया। -शुद्धि, शाकाहार, और विभिन्न जातियों और रंगों के प्रतिबंधों के बीच पारस्परिक सहिष्णुता।

उनकी किशोरावस्था शायद उनकी उम्र और वर्ग के अधिकांश बच्चों की तुलना में अधिक तूफानी नहीं थी। 18 साल की उम्र तक गांधीजी ने एक भी अखबार नहीं पढ़ा था। न तो भारत में एक उभरते बैरिस्टर के रूप में, न इंग्लैंड में एक छात्र के रूप में और न ही उन्होंने राजनीति में अधिक रुचि दिखाई। वास्तव में, जब भी उन्होंने सभा में या अदालत में उच्चारण करते वक्त या किसी मुकदमेबाज के पक्षपात को दूर करते समय अगर वे मंच पर खड़े होते तो उन्हें भयानक डर महसूस होता।

लंदन में, गांधीजी का शाकाहार मिशन एक महत्त्वपूर्ण घटना था। वे लंदन वेजीटेरियन सोसाइटी के कार्यकारी सदस्य बने थे। उन्होंने कई सम्मेलनों में शामिल होकर इसके जर्नल में भी योगदान और पत्र प्रकाशित किये। इंग्लैंड में शाकाहारी रेस्तरां में भोजन करते समय गांधी की मुलाकात एडवर्ड कारपेंटर, जॉर्ज बर्नार्ड शॉ और एनी बेसेंट जैसे प्रमुख समाजवादियों, फैबियन और थियोसोफिस्टों से हुई।

महात्मा गांधी का राजनीतिक करियर- Political Career of Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी ने जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों में अपनी माता जी के वचनों का सम्मान किया, जिन्होंने उन्हें शाकाहारी भोजन पर आदान प्रदान करने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने इंग्लैंड में अपने अंग्रेजी रीति-रिवाजों का अनुभव किया और वहां के समाज में शाकाहार की सदस्यता ग्रहण की। वे भारत में वापस आकर न्याय के लिए संघर्ष किया, जो किसी अंग्रेज अधिकारी की मूर्खता के कारण असफल हो गया। इसके बाद, उन्होंने वकीलत छोड़कर राजकोट में एक शिक्षक बनने का फैसला किया, लेकिन एक अधिकारी की गलती के कारण उन्हें यह नौकरी भी छोड़नी पड़ी।

उन्होंने फिर सन् 1893 में दक्षिण अफ्रीका जाकर वकीलत का कार्य शुरू किया, जहां उन्होंने नेतृत्व और समाजसेवा के माध्यम से अपने आपको साबित किया।

दक्षिण अफ्रीका में नागरिक अधिकारों की आन्दोलन यात्रा (1893-1914)

दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी को भारतीयों पर भेदभाव का सामना करना पड़ा। उन्होंने ट्रेन सफर के दौरान कई कठिनाइयों का सामना किया, जैसे कि तीसरी श्रेणी के डिब्बे में सफर करना और यूरोपियन यात्री के साथ यात्रा करते समय मार का सामना करना। उन्होंने अफ्रीका में भारतीयों के लिए अन्याय को देखा और इसके प्रति जागरूकता फैलाई, जिससे वह समाजिक सक्रियता में भी सहयोग कर सके।

ज़ुलु युद्ध में भागीदारी(1906)

गांधी जी ने 1906 में जूलू युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की अवधारणा प्रस्तुत की, जहां भारतीयों को सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने सत्याग्रह की भावना को जगह दी और समाज में समानता की मांग की। इससे गांधी का समर्थन और भारतीयों के आत्मगौरव में वृद्धि हुई।

भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई (1916- 1945)

1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आने के बाद गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों में अपने विचार रखे, लेकिन उनके दृष्टिकोण उस समय के भारतीय राजनीतिक मुद्दों और कांग्रेस के मुख्य नेता गोपाल कृष्ण गोखले पर आधारित थे। गोखले एक सम्मानित नेता थे जिनपर गांधी ने अपने विचार स्थापित किए थे।

चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह(1918)

गांधी की महत्वपूर्ण पहली उपलब्धि 1918 में हुई, जब उन्होंने चम्पारन और खेड़ा सत्याग्रह की शुरुआत की। वे नील (इंडिगो) की जगह नकद पैसे मांगने वाली खाद्य फसलों के खिलाफ सत्याग्रह की शुरुआत की। यह सत्याग्रह जमींदारों की अत्याचारी शासन से बचाव के लिए था। गाँवों में स्वच्छता और शिक्षा की व्यवस्था के लिए भी उन्होंने जोर दिया।

इसके परिणामस्वरूप, गांधी को जेल से रिहा करने की मांग में लोगों ने उनका साथ दिया। उन्होंने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया जिससे अंग्रेजों ने किसानों के हित में कई फैसले किए। गांधी की ख्याति इस संघर्ष से बढ़ी।

असहयोग आन्दोलन(अगस्त 1920)

गांधी जी ने ब्रिटिश शासन के विरोध में असहयोग, अहिंसा, और शांतिपूर्ण प्रतिक्रिया का साथ दिया। जलियांवाला बाग नरसंहार ने लोगों में आक्रोश और हिंसा बढ़ाई। उन्होंने ब्रिटिश और भारतीय विरोधी रवैये का विरोध किया और शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन चलाया। उन्होंने सभी हिंसा को न्यायाधीन नहीं ठहराने की बात की। उनका मकसद था कि स्वराज की प्राप्ति और सम्पूर्ण आज़ादी मिलनी चाहिए।

गांधी जी ने कांग्रेस को नया उद्देश्य दिया और संगठित किया और समाज में सहयोग और जोश फैलाया। उन्होंने भारतीय वस्त्रों का प्रचार किया, अंग्रेजी वस्त्रों का विरोध किया और सबको खादी पहनने का समर्थन किया। उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा और अदालतों का विरोध किया और सरकारी पदों को छोड़ने की अपील की। उनकी असहयोग आंदोलन में उन्हें व्यापक समर्थन मिला।

हिंसा और असहयोग के बाद वे अपने आंदोलन को वापस ले आए और जेल गए। कांग्रेस ने उनके नेतृत्व में एकीकृत नहीं रही, लेकिन वे समस्याओं का समाधान ढूंढने में लगे रहे। गांधी जी ने अहिंसा की महत्ता को समझाने के लिए कई प्रयास किए और सफलता भी हासिल की।

स्वराज और नमक सत्याग्रह (नमक मार्च) के रूप में(मार्च 1930)

गांधी जी ने अपनी सक्रिय राजनीति से अलग रहकर 1920 तक स्वराज पार्टी और इंडियन नेशनल कांग्रेस के बीच ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन किया। 1928 में, उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सर जॉन साइमन के नेतृत्व में बनाए गए संविधान सुधार आयोग का विरोध किया और दिसम्बर 1928 में कलकत्ता में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में भारतीय स्वायत्तता के लिए असहयोग या संपूर्ण आजादी की मांग की।

उन्होंने मार्च 1930 में नमक पर कर लगाने के खिलाफ सत्याग्रह शुरू किया, जो एक सफल आंदोलन बना, जिससे ब्रिटिश सरकार ने 80,000 से अधिक लोगों को जेल भेजा। इसके बाद, 1931 में गांधी जी और लार्ड इरविन के बीच हस्ताक्षर होकर सविनय अवज्ञा आंदोलन को समाप्त किया गया। इसके परिणामस्वरूप, गांधी को लंदन के गोलमेज सम्मेलन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधित्व के लिए आमंत्रित किया गया।

यह सम्मेलन भारतीय कीमतों और अल्पसंख्यकों को नजरअंदाज करके गांधी और राष्ट्रवादियों के लिए निराशाजनक रहा। ब्रिटिश सरकार ने गांधी और उनके अनुयाईयों को अलग रखने की कोशिश की, लेकिन यह युक्ति कारगर नहीं थी।

दलित आंदोलन और संकल्प दिवस(1932)

1932 में, डॉ॰ बाबासाहेब अम्बेडकर ने दलितों के लिए अलग निर्वाचन मंजूर करवाने के लिए संघर्ष किया। गांधीजी ने भी इन बदलावों का समर्थन किया, लेकिन अम्बेडकर को हरिजन शब्द का विरोध था। गांधीजी ने हरिजनों के लिए उपवास भी किया, लेकिन यह अभियान उन्हें पूरी तरह से पसंद नहीं आया। इसके बावजूद, यह उन्हें एक प्रमुख नेता बनाया। गांधीजी और अम्बेडकर के बीच राजनीतिक अधिकारों का मुद्दा भी था।

गुरुवायुर मंदिर में भी हरिजनों को प्रवेश मिलने का अभियान सफलतापूर्वक चलाया गया। गांधीजी ने अपनी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दिया ताकि वे राजनीतिक व्यवस्था को बदल सकें। उन्होंने नेहरू के नेतृत्व में भारत लौटने का निर्णय लिया।

अंततः, बोस के साथ मतभेदों के बाद वह पार्टी छोड़ दी। यह चुनौतीपूर्ण समय था, जहाँ गांधीजी ने अपने विचारों को संघर्षपूर्ण तरीके से साझा किया।

द्वितीय विश्व युद्ध(1939 – 1945) और भारत छोड़ो आन्दोलन(1942)

द्वितीय विश्व युद्ध, जिसे वर्ल्ड वॉर II कहा जाता है, 1939 से 1945 तक चला। इस युद्ध की मुख्य वजह थी नाजी जर्मनी की आक्रमण की कोशिश और उसके साथ में जापान, इटली, और अन्य देशों के साथ मिलकर युद्ध में शामिल होने की कोशिश।

इस युद्ध के दौरान, भारत भी ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता और विभिन्न स्वतंत्रता संगठनों ने द्वितीय विश्व युद्ध का लाभ उठाया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपनी मांगों को उजागर किया।

1942 में प्रारंभ हुआ ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता की मांग को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। इस आंदोलन का उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार को भारत को स्वतंत्रता देने की मांग थी, और यह सब गांधीजी के नेतृत्व में किया गया था। इस आन्दोलन के दौरान, भारतीय नागरिकों ने सिपाही आंदोलन, व्यापार बंद, और सड़क पर उतरकर विरोध किया, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की।

यह आन्दोलन द्वितीय विश्व युद्ध के समय और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिशा में महत्वपूर्ण घटना थी, जो बाद में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण प्रेरणास्त्रोत बनी। इसके बाद, भारत स्वतंत्र हुआ और 1947 में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के तहत अलगाव का अधिकार प्राप्त किया।

आजादी और भारत का बंटवारा(अगस्त 1947)

गांधी जी ने 1946 में ब्रिटिश केबिनेट मिशन के प्रस्ताव को ठुकराया। उन्हें मुस्लिम बाहुलता वाले प्रांतों के लिए प्रस्तावित समूहीकरण पर गहन संदेह था। इसे विभाजन का पूर्वाभ्यास माना गया। गांधी जी के अनुमोदन के बिना सरकार का नियंत्रण मुस्लिम लीग के पास चला जाता। हिंसा के दौरान लाखों लोगों की मौत हुई। गांधी जी भारत को दो अलग देशों में विभाजित करने के खिलाफ थे।

बहुमत के पक्ष में हिंदू, सिख और मुस्लिमों की बड़ी संख्या थी। मुस्लिम लीग के नेता ने व्यापक सहयोग का परिचय दिया। बंटवारे को रोकने के लिए कांग्रेस योजना को स्वीकार किया। गांधीजी को लगा कि यह एक उपाय हो सकता है ताकि साम्प्रदायिक हिंसा रुके। उन्होंने उत्तर भारत और बंगाल में समुदायों के बीच तनाव को दूर करने के लिए प्रयास किया।

माउंटबेटन योजना के आधार पर तैयार किया गया भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 ने भारत का विभाजन किया। 14 अगस्त 1947 की रात को, भारत और पाकिस्तान दो अलग स्वतंत्र राष्ट्र बने।

भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद, हिंसा को रोकने और साम्प्रदायिक विवादों को दूर करने के लिए, गांधीजी ने दिल्ली में अपना पहला आमरण अनशन शुरू किया। उन्होंने इस अनशन में निर्णय लिया कि पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा ताकि हिंसा को रोका जा सके और शांति लाई जा सके। गांधीजी ने वादा किया था कि शांति की धारा को अपनाया जाएगा। गांधीजी ने अपना उपवास तब तोड़ा जब उन्हें विश्वास हुआ कि समुदायों ने एक साथ शांति की दिशा में कदम बढ़ाया है।

महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु- Political Teacher of Mahatma Gandhi

गोपाल कृष्ण गोखले और महात्मा गांधी के बीच के यह संबंध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण हैं। गोखले ने गांधी को नैतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण में मार्गदर्शन दिया और उन्होंने गांधी को अपने आदर्शों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया, अहिंसा और सत्याग्रह के महत्व के बारे में जागरूक किया, और सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में मार्गदर्शन किया।

महात्मा गांधी ने गोखले के सिद्धांतों का पालन किया और उनके मार्गदर्शन में चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। गोखले के विचारों और उपदेशों ने गांधी को व्यापक रूप से प्रभावित किया और उन्हें एक महान नेता और सत्याग्रह के प्रेरणास्त्रोत बनाया जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नया दिशा देने में मदद की।

इन दो महान नेताओं के संवाद ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक मजबूत और आदर्शिक दिशा में आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसे एक सफल आंदोलन बनाने में मदद की।

महात्मा गांधी की मृत्यु- Death of Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी की हत्या एक अत्यंत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी जो भारतीय इतिहास में गहरी छाप छोड़ी। उनका निधन 1948 में हुआ था। गांधीजी का सपना था कि भारत एक ऐसा राष्ट्र बने जो अहिंसा, सत्य और समर्पण के माध्यम से समृद्धि की ओर बढ़े। उनकी विचारधारा और दृढ़ निष्ठा ने लाखों लोगों को प्रेरित किया था।

उनकी हत्या नाथूराम गोडसे द्वारा की गई थी, जो उनके विचारों से असहमत थे। गोडसे की इस हत्या के बाद, पूरे देश में शोक की लहर छाई और लोगों में गहरा दुख था। गांधीजी की आत्मा को शांति मिले, और उनके विचारों का पालन करने का कार्य हम सभी को साझा करना चाहिए।

गांधी के महत्त्वपूर्ण विचार

सत्य और अहिंसा.

गांधीजी के लिए अहिंसा मार्ग का परम धर्म था और सत्य को अपने जीवन का आदर्श मानते थे। उन्होंने यह माना कि वे सत्य की खोज में अहिंसा का माध्यम बना दिया है। उनका कहना था, “मेरे लिए, अहिंसा स्वराज से पहले आता है।” इसका मतलब था कि वे स्वतंत्रता के लिए अहिंसा का महत्व स्वीकार करते थे।

गांधीजी के लिए सत्य किसी अंतिम लक्ष्य की तरह नहीं था। वे सत्य को एक अनवरत अभ्यास का विषय मानते थे। उनका मानना था कि सत्य को समझने के लिए हमें अपने अनुभव और बुद्धि पर भरोसा करना चाहिए। उन्होंने कहा था, “मेरे निरंतर अनुभव ने साबित किया कि सत्य के अलावा कोई अद्भुतता नहीं है।”

गांधीजी के लिए सत्याग्रह एक माध्यम था जिसके माध्यम से वे स्वराज प्राप्ति का परिपूर्ण मार्ग देखते थे। इस मार्ग पर चलते समय, वे नैतिक दबाव वाली तकनीकों जैसे असहयोग और सविनय अवज्ञा का प्रयोग करते थे। उन्होंने सत्य के प्रति अपनी पूरी प्रतिष्ठा बनाई रखी और इसके लिए वे हृदय परिवर्तन की दिशा में कठिनाइयों का सामना किया। हम कह सकते हैं कि सत्याग्रह एक प्रकार की सामाजिक क्रांति का गांधीवादी उपाय था।

गांधीजी के लिए सत्य किसी अंतिम लक्ष्य की तरह नहीं था। वे सत्य को एक अनवरत अभ्यास का विषय मानते थे। वे मानते थे कि सत्य को समझने के लिए हमें अपने अनुभव और समझ का सहारा लेना चाहिए। व्यक्ति के अनुसार, “मेरे निरंतर अनुभव से प्रकट होता है कि सत्य के अतिरिक्त कुछ भी दिव्य नहीं है।” उन्होंने अपनी कहानी में अपने अनुभवों को साझा करने का रास्ता चुना था, जिसका शीर्षक “सत्य के साथ मेरा अनुभव” था।

गांधी जी के लिए स्वराज का अर्थ अद्वितीय रूप में है, न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का प्राप्ति, बल्कि यह एक व्यापक दृष्टिकोण का भी प्रतीक है। यह स्वामाजिक, स्वार्थ, स्वराज्य, और नैतिक स्वतंत्रता का सम्पूर्ण सार है। व्यक्तिगत स्तर पर, यह व्यक्ति के अपने जीवन को आत्म-नियंत्रित और स्वतंत्र बनाने का प्रयास है। महात्मा गांधी कहते हैं – “मैं एक ऐसा भारत बनाने का प्रयास करूँगा जिसमें हर व्यक्ति, विनाशात्मक गरीबी के बावजूद, यह अनुभव करेगा कि यह उसका स्वयं का देश है और इसके निर्माण में उसका सहयोग महत्वपूर्ण है।

गांधीजी, औद्योगिकीकरण के खिलाफ खड़े होकर स्वदेशी के महत्व को बताते हैं, और इसका समर्थन करके आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। इस औद्योगिक युग में, गांधीजी का स्वदेशी विचार भारतीय अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत साबित होता है। उन्होंने भारतीय समाज के धर्म, संस्कृति और गरीबी को समझने के लिए कई प्रतीक दिए, जिनमें चरखा, खादी, गाय, और गांधी टोपी शामिल हैं।

सर्वोदय का अर्थ है ‘सबका सामृद्धि का उदय’। यह एक प्रकार से गांधीवादी समाजवाद की धारा को दर्शाता है। सर्वोदय सोच ने दिखाया कि समृद्धि का मार्ग ऊपर से नीचे नहीं, बल्कि नीचे से ऊपर जाने वाला है। समाज की बुनाई गई इकाइयों और संरचनाओं से इसकी शुरुआत होती है। गांधीजी ने सभी वर्गों, खासकर अछूतों, महिलाओं, श्रमिकों और किसानों के सामाजिक उत्थान के लिए सक्रिय कार्यक्रमों का आयोजन किया। सर्वोदय की अवधारणा से ही भूदान आंदोलन की शुरुआत हुई।

गांधी जी का दृढ़ विश्वास था कि भारत के अधिकारों की सुरक्षा करना उनका पवित्र कर्तव्य है। वे मानते थे कि भारत को अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्त कराने में महात्मा गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उनका प्रभाव केवल भारत के अंदर ही नहीं, बल्कि विश्व भर के कई व्यक्तियों और स्थानों पर था। गांधी जी ने मार्टिन लूथर किंग को भी प्रभावित किया, और उसके परिणामस्वरूप, अफ्रीकी-अमेरिकी लोगों को अब समान अधिकार प्राप्त हैं। शांतिपूर्वक भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई जीतकर, उन्होंने दुनिया भर में इतिहास की दिशा को बदल दिया।

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Mahatma Gandhi Biography in Hindi – महात्मा गांधी | जीवन परिचय | Gandhi ji

Author: Exam GK Study | On:2nd Feb, 2022 | Comments: 0

Table of Contents

आज के आर्टिकल में हम महात्मा गांधी के बारे में पूरी जानकारी पढ़ेंगे (Mahatma Gandhi Biography in Hindi) । इसके अन्तर्गत  हम महात्मा गांधी का जीवन परिचय (Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay), महात्मा गांधी की पुस्तकें (Mahatma Gandhi Books), गांधी जी दक्षिण अफ्रीका यात्रा (Gandhi ji Ki South Africa Yatra), भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी का योगदान (Bhartiya Rashtriya Andolan Mein Mahatma Gandhi Ka Yogdan) के बारे में जानेंगे।

महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi

mahatma gandhi

गांधी जी का जन्म कब हुआ था (Gandhi Ji Ka Janm Kab Hua Tha)

महात्मा गांधी का जन्म (Mahatma Gandhi ka Janam) 2 अक्टूबर, 1869 ई. को गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान (Gandhi ji Ka Janm Kahan Hua Tha) पर हुआ।

Mahatma Gandhi Family History in Hindi

  • महात्मा गांधी के पिता का नाम (Mahatma Gandhi Father Name) करमचंद गांधी था, जो राजकोट (पोरबंदर) के दीवान थे।
  • माता का नाम पुतली बाई था, जो करमचंद गांधी की चौथी पत्नी थी। उनकी माता धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। इनकी माता पुतलीबाई का महात्मा गांधी के जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पङा।
  • महात्मा गांधी के बचपन का नाम ’मोहनदास’ था।
  • महात्मा गांधी का पूरा नाम (Mahatma Gandhi ka Pura Naam) ’मोहनदास करमचंद गांधी’ (Mohandas Karamchand Gandhi) था।
  • हम सभी उन्हें प्यार से बापू बुलाते है।
  • इनके भाई का नाम लक्ष्मीदास और करसन दास था।
  • इनकी एक बहन रालियातबेन थी।

महात्मा गांधी का विवाह (Mahatma Gandhi Ka Vivah Kab Hua)

मई 1883 में गांधी जी (Gandhi Life Story in Hindi) जब मात्र 13 वर्ष के थे, तब उनका विवाह पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा बाई माखनजी कपाङिया के साथ हो गया। कस्तूरबा विवाह के समय गांधी जी से एक वर्ष बङी यानी 14 वर्ष की थी। कस्तूरबा (Kasturba) को लोग प्यार से ’बा’ कहते थे। 1885 ई. में गांधीजी की पहली संतान की अल्प समय में ही मृत्यु हो गयी। इसी समय 1885 में जब गांधी 15 वर्ष के थे, तभी उनके पिता करमचंद गांधी का भी निधन हो गया।

उसके बाद महात्मा गांधी (About Mahatma Gandhi) के चार बेटे हुए – हरीलाल गांधी (1888 ई.), मणिलाल गांधी (1892 ई.) , रामदास गांधी (1897 ई.) व देवदास गांधी (1900 ई.)। कस्तूरबा गाँधी (Kasturba Gandhi) शादी से पहले अनपढ़ थी, विवाह के बाद गांधीजी ने उन्हें लिखना-पढ़ना सिखाया। कस्तूरबा गांधी ने गांधी के प्रत्येक कार्य में उनका साथ दिया। गांधीजी की पत्नी (gandhiji wife) कस्तूरबा गाँधी की 1944 में पूना में मृत्यु हो गयी।

’’हमेशा अपने विचारों, शब्दों और कर्म के पूर्ण सामंजस्य का लक्ष्य रखें और सब कुछ ठीक हो जायेगा।’’

गांधी जी की उपाधियाँ (Gandhi ji Ki Upadhi)

महात्मा गांधी को अनेक विद्वानों द्वारा अनेक उपाधियाँ प्रदान की गई थी। जो निम्न हैं –

महात्मा गांधी की पुस्तकें (Mahatma Gandhi Books)

महात्मा गांधी की आत्मकथा किस भाषा में है (mahatma gandhi ki atmakatha kis bhasha mein hai).

  • सत्य के साथ मेरे प्रयोग गांधीजी की आत्मकथा (Gandhiji ki Atmakatha) है। ये आत्मकथा गांधीजी ने गुजराती भाषा में लिखी थी, जो पहली बार 1927 में प्रकाशित हुई थी, जिसका बाद में अंग्रेजी भाषा में अनुवाद महादेव देसाई ने किया था।

गांधी जी एक अच्छे लेखक भी थे, उनके द्वारा लिखी गयी कुछ पुस्तकें निम्न है –

  • हिन्द स्वराज (1908)
  • दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह
  • द वर्ड्स ऑफ गांधी
  • इंडियन होमरुल
  • माइ अर्ली लाइफ
  • संपूर्ण गांधी वाङ्गय
  • शांति और युद्ध में अहिंसा
  • सत्य ही ईश्वर है
  • साम्प्रदायिक एकता
  • अस्पृश्यता निवारण
  • मेरे सपनों का भारत
  • ग्राम स्वराज
  • स्वास्थ्य की कुंजी।

महात्मा गांधी के समाचार पत्र (Mahatma Gandhi Ke Samachar Patra)

गांधी जी की शिक्षा कहाँ हुई थी (gandhiji ki shiksha kahan hui thi).

गांधी जी (Gandhi ji) की आरंभिक शिक्षा पोरबन्दर में हुई थी। 1881 में उन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा राजकोट से प्राप्त की। 1887 में मैट्रिक की परीक्षा अहमदाबाद से उत्तीर्ण की। 12 वीं कक्षा पास करने के बाद 1887 गांधी ने गुजरात के भावनगर के ’सामलदास काॅलेज’ में दाखिला लिया। लेकिन शामलदास काॅलेज में उनका मन नहीं लगा इसलिए एक वर्ष बाद वे वापस अपने गाँव पोरबंदर लौट आये। 4 सितम्बर 1888 ई. को गांधी जी (Gandhi in Hindi Language) बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए लंदन गए जहाँ उन्होंने ’यूनिवर्सिटी काॅलेज ऑफ लंदन’ में दाखिला लिया।

long biography of mahatma gandhi in hindi

लंदन में गांधी का जीवन समस्याओं से भरा हुआ था। गांधीजी शाकाहारी थे, वे मांसहारी पदार्थों – मांस मदिरा, शराब का सेवन नहीं करते थे। लेकिन लंदन में अधिकांश जगह मांसाहारी भोजन ही मिलता था। जिस कारण उन्हें लंदन में काफी परेशानियों का सामना करना पङा क्योंकि वहां शाकाहारी भोजन बहुत मुश्किल से मिलता था। साथ ही अपने पहनावे के कारण भी उन्हें कई बार शर्मिदा होना पङता था। लेकिन उन्होंने सभी परिस्थितियों का डटकर सामना किया।

Mahatma Gandhi in Hindi

गांधी जी (Gandhi ji) ने लंदन में ’लंदन वेजीटेरियन सोसायटी’ की सदस्या ग्रहण की और इसके कार्यकारी सदस्य बने। यहीं पर उनकी मुलाकात थियोसोफिकल सोसायटी के कुछ लोगों से हुई थी जिन्होंने गांधीजी (Gandhiji in Hindi)  को भगवत् गीता पढ़ने के लिए दी। फिर गांधीजी ने ’लंदन वेजीटेरियन सोसायटी’ के सम्मेलनों में भाग लेना शुरू कर दिया और पत्रिका में भी कई लेख लिखे। लंदन में गांधी जी ने तीन वर्ष (1888-1891) तक बैरिस्टर की पढ़ाई की और फिर 1891 में गांधी जी बैरिस्टर बनकर भारत लौट आये। तभी उनकी माता पुतलीबाई का निधन हो गया। उसके बाद गांधी जी ने बम्बई तथा राजकोट में वकालत प्रारम्भ कर दी। इस दौरान महात्मा गांधी जी (Mahatma Gandhi ji) ’दादा अब्दुल्ला’ नामक एक व्यापारिक संस्था से जुङे थे। लेकिन भारत में उन्हें वकालत में कोई खास सफलता नहीं मिली।

गांधी जी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा (Gandhi ji Ki South Africa Yatra)

इसलिए महात्मा गांधी सन् 1893 में ’दादा अब्दुल्ला’ नामक व्यापारिक संस्था का मुकदमा लङने के लिए पैरवी करने हेतु बैरिस्टर के रूप में पहली बार दक्षिणी अफ्रीका के ट्रांसवाल की राजधानी प्रिटोरिया पहुँचे। साथ ही दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी को लीगल सर्विस का एक साल का कॉन्ट्रेक्ट मिला था इस कारण अप्रैल 1893 में वो साउथ अफ्रीकन स्टेट ऑफ नेटल के डरबन के लिए रवाना हो गए। वहाँ की श्वेत सरकार के नस्ल भेदभावी रवैये व नस्ल के आधार पर अश्वेतों पर अनेकों प्रतिबन्ध एवं अत्याचारों ने गांधीजी के मन को उद्वेलित कर दिया। डरबन के कोर्ट रूम में गाँधी जी को न्यायाधीश के द्वारा पगङी उतारने के लिए कहा गया जिसको गाँधी जी ने नहीं माना।

7 जून, 1893 जब गांधीजी प्रिटोरिया जा रहे थे, तभी एक अंग्रेज ने उनके प्रथम श्रेणी रेलवे कम्पार्टमेंट में बैठने पर आपत्ति की। जब गांधी के पास प्रथम श्रेणी का टिकट होने पर भी ’पिटरमार्टिजबर्ग स्टेशन’ पर ट्रेन से नीचे फैंक दिया गया, क्योंकि वह केवल गोरे लोगों के लिए आरक्षित था। किसी भी भारतीय या अश्वेत का प्रथम श्रेणी में यात्रा करना प्रतिबंधित था। कई होटलों में गांधी (Gadhi) के प्रवेश को भी निषेध कर दिया गया। इस घटना ने गांधी जी पर बहुत गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने इसके विरुद्ध संघर्ष करने की ठान ली।

About Gandhiji in Hindi

गांधी जी (Gandhi ji) ने सितम्बर 1906 में दक्षिण अफ्रीका में सर्वप्रथम सत्याग्रह शब्द का प्रयोग किया। सरकार ने भारतीयों के पंजीकरण के सम्बन्ध में एक अपमान जनक अध्यादेश पेश किया। सितम्बर 1906 ई. में एशियाटिक ऑर्डिनेन्स के विरुद्ध महात्मा गांधी जी (Mahatma Gandhi ji) के नेतृत्व में जोहन्सबर्ग में भारतीयों ने प्रथम सत्याग्रह अभियान आरम्भ किया और सरकार ने अध्यादेश का उल्लंघन और दंड के लिए तत्पर रहने के लिए तत्पर रहने की शपथ ली। इस सत्याग्रह के द्वारा गाँधी जी ने अहिंसा की शक्ति का मूल महसूस किया जिसे कालांतर में भारत आकर अंग्रेजों के विरुद्ध उपयोग किया।

गाँधीजी (Gandhiji Information in Hindi) ने वहाँ ’सत्याग्रह’ का प्रयोग कर वहां के अश्वेतों, विभिन्न समुदाय के लोगों एवं भारतीयों को संगठित कर सरकारी नीतियों का व्यापक विरोध किया। वहाँ इन्हें कुछ सफलताएँ भी हासिल हुई। उनके साथ इस प्रयोग में सभी धर्मों एवं सम्प्रदायों के लोग शामिल हुए। दक्षिणी अफ्रीका में इसी राजनीतिक प्रयोग के कारण गाँधीजी को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त हुई।

22 मई 1894 को गाँधी जी ने ’नटाल भारतीय कांग्रेस’ की स्थापना की। साथ ही प्रवासी भारतीयों के अधिकारों और ब्रिटिश शासकों की रंगभेद नीति के खिलाफ सफल आंदोलन किए। गांधी जी लियो टाॅलस्टाॅय की रचनाओं से प्रभावित थे। गांधी (Gadhi) ने दक्षिण अफ्रीका में 1910 में ’टाॅलस्टाय फार्म’ की स्थापना की। महात्मा गांधी (A Paragraph on Mahatma Gandhi in Hindi) अपना आध्यात्मिक गुरु ’लियो टाॅलस्टाॅय’ को मानते थे। गांधी जी ने 1904 में फीनिक्स फार्म की स्थापना की।

1904 में दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गाँधी द्वारा ने ’इंडियन ओपेनियन’ पत्रिका प्रकाशित की। 1896 में गांधी जी 6 महीने के लिए भारत लौटे तथा पत्नी, दो पुत्रों को नेटाल (अफ्रीका) ले गए। 1909 में ’सिविल डिसओबिडियन्स’ से प्रभावित होकर ’लियो टाॅल्सटाॅय’ से पत्राचार शुरू किया। जिनके ’किंगडम ऑफ गाॅड इज विदिन यू’ से गाँधी काफी प्रभावित थे। दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी (Gadhiji) 21 वर्षों तक रहे।

1906 ई. का जुलु युद्ध (Zulu War 1906)

  • जुलू के द्वारा नए चुनाव कर के विरोध में दो अंग्रेजी अधिकारियों की हत्या की गयी जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों ने भी जुलू के खिलाफ युद्ध छेङ दिया।
  • गाँधी जी ने इस युद्ध में भारतीयों की भर्ती की अपील की किन्तु अंग्रेजों ने अपनी सेना में भारतीय पद से इनकार कर दिया।
  • इसके बाद भी गाँधी जी (Gandhi ji)  ने घायल अंग्रेजों को भारतीयों के द्वारा स्ट्रेचर पर ले जाने के कार्य का नेतृत्व किया। ’जुलू’ विद्रोह के दौरान ’भारतीय एम्बुलेंस सेवा’ तैयार की।
  • 21 जुलाई को गाँधी (Gandhi in Hindi) जी ने इंडियन ओपिनियन में अपनी राय लिखी और भारतीयों से इस युद्ध में शामिल होने की अपील की।

महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत कब लौटे (Mahatma Gandhi Dakshin Africa Se Bharat kab Laute)

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi Hindi) 46 वर्ष की आयु में 9 जनवरी, 1915 को दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत आये। 9 जनवरी  को भारत में ’प्रवासी भारतीय दिवस’ मनाया जाता है। उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में सरकार के युद्ध प्रयासों में मदद की जिसके लिए सरकार ने गांधी जी को ’केसर-ए-हिन्द’ की उपाधि से सम्मानित किया।

गांधी जी के राजनीतिक गुरु कौन थे (Gandhi ji Ke Raajnitik Guru Kaun The)

भारत में गोपाल कृष्ण गोखले के विचार ने गांधी जी को सर्वाधिक प्रभावित किया, गांधी जी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले थे।

गोपाल कृष्ण गोखले की सलाह से भारत की वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्राप्त करने हेतु कुछ समय शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत करने का निश्चय किया। गांधी जी ने स्वदेश लौटने के बाद सर्वप्रथम सम्पूर्ण देश का भ्रमण किया। उनका आम भारतीयों की तरह रहना-सहना, बोलना-चालना, आचार-विचार, सर्वधर्म समभाव एवं नैतिकता के प्रति गहरी आस्था जैसी उनकी खूबियों ने उनकी जनता के बीच गहरी पैठ बना दी। गांधी जी ने मई, 1915 में गुजरात के अहमदाबाद के समीप साबरमती नदी के किनारे ’साबरमती आश्रम’ की स्थापना की। गांधी जी ने 1909 में लिखी अपनी पुस्तक ’हिन्द स्वराज्य’ में स्वराज (स्वशासन) की विस्तृत व्याख्या की। महात्मा गांधी को दार्शनिक अराजकतावादी माना जाता है।

’’ऐसे जियो जैसे कि तुम कल मरने वाले हो, ऐसे सीखो की तुम हमेशा के लिए जीने वाले हो।’’

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी का योगदान (Bhartiya Rashtriya Andolan Mein Mahatma Gandhi Ka Yogdan)

महात्मा गांधी के आंदोलन (mahatma gandhi ke andolan in hindi).

  • गिरमिटिया प्रथा की समाप्ति
  • चम्पारण आन्दोलन
  • अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन
  • खेङा सत्याग्रह
  • खिलाफत आन्दोलन
  • असहयोग आन्दोलन
  • सविनय अवज्ञा आन्दोलन
  • भारत छोङो आन्दोलन

गिरमिटिया प्रथा की समाप्ति – Girmitiya Pratha Ki Samapti

  • महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi in Hindi) का भारत आगमन के बाद राजनीतिक क्षेत्र में सर्वप्रथम कार्य अँग्रेजी उपनिवेशों की सहायतार्थ भारतीय मजदूरी की भर्ती करने की घृणित ’गिरिमिटिया प्रथा’ के विरुद्ध सशक्त आवाज उठाना तथा उसे पूरी तरह समाप्त करवाना था।

चम्पारण सत्याग्रह (Champaran Satyagraha)

  • महात्मा गाँधी (About Mahatma Gandhi in Hindi) ने भारत में सबसे पहला एवं महत्त्वपूर्ण सत्याग्रह बिहार के चम्पारण क्षेत्र में किया।
  • चम्पारण में यूरोपीय नील उत्पादकों द्वारा स्थानीय किसानों का अंतहीन शोषण किया जा रहा था।
  • राजकुमार शुक्ल द्वारा कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन (1917) में गाँधीजी को चम्पारण के नील किसानों की समस्याओं से अवगत कराया गया एवं उन्हें एक बार उनकी समस्याओं को सुनने हेतु वहाँ भ्रमण करने का आग्रह किया।
  • महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi Essay in Hindi) कुछ समय बाद जाँच हेतु चम्पारण क्षेत्र में गये परन्तु चम्पारण के जिलाधिकारी ने उन्हें अतिशीघ्र वहाँ से वापस चले जाने का आदेश दिया। गाँधीजी ने इस आदेश को मानने से इन्कार कर दिया।
  • अन्ततः बिहार सरकार के प्रयासों से उन्हें वहाँ जाँच करने की अनुमति मिल गई।
  • गाँधीजी (Gandhiji Thoughts in Hindi) ने जुलाई, 1917 में एक खुली जाँच बैठाई एवं चम्पारण के किसानों की शिकायतों को सारे देश के सम्मुख प्रस्तुत किया।
  • अंततः अँग्रेज सरकार ने श्वेत नील प्लांटरों द्वारा किसानों पर की जा रही ज्यादतियों की शिकायत को स्वीकार कर लिया फलतः चम्पारण में ’तीनकठिया पद्धति’ को समाप्त कर दिया गया।
  • चम्पारण सत्याग्रह में गांधी का साथ देने वाले नेता – राजेन्द्र प्रसाद, मजहरूल हक, जे.बी. कृपलानी, महादेव देसाई, अनुग्रह नारायण सिंह एवं श्रीकृष्ण सिंह।
  • चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी जी को रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा ’महात्मा’ (Mahatma) की उपाधि दी गयी।

अहमदाबाद मील मजदूर आंदोलन (Ahmedabad Mill Mazdoor Andolan)

  • अहमदाबाद उन्नीसवीं सदी के अन्त में एक औद्योगिक केन्द्र के रूप में विकसित होने लगा।
  • 1917 ई. में यहाँ के मिल मालिकों ने मजदूरों को दिया जा रहा प्लेग बोनस बन्द करने का निर्णय लिया। इसके विपरीत बाजार में वस्तुओं की कीमतें बढ़ती जा रही थी।
  • श्रमिकों ने प्लेग बोनस समाप्त करने के एवज में उनकी मजदूरी में 50 प्रतिशत वृद्धि करने की माँग की जबकि मालिक 20 प्रतिशत वृद्धि पर ही राजी हुए। फलतः मिल मजदूरों ने महात्मा गाँधी से सहायता एवं मार्गदर्शन का आग्रह किया।
  • फरवरी-मार्च, 1918 में गाँधीजी ने मिल मालिकों एवं मजदूरों के बीच मध्यस्थता करना प्रारंभ किया।
  • गाँधीजी के कहने पर हङताल की गई परंतु शीघ्र ही स्थिति ने विकट रूप धारण कर लिया।
  • फलस्वरूप गाँधी जी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम ऐतिहासिक भूख हङताल प्रारंभ की। अंततः गाँधीजी के प्रयासों से मिल मालिक मजदूरों को मजदूरी में 35 प्रतिशत वृद्धि देने के लिए राजी हो गये।
  • इसके बाद गाँधी जी ने श्रम-विवादों को शान्तिपूर्ण ढंग से निपटाने तथा श्रमिकों में चेतना उत्पन्न करने हेतु ’अहमदाबाद टैक्सटाइल लेबर एसोसिएशन’ की स्थापना की।

खेड़ा सत्याग्रह (Kheda Satyagraha of 1918)

  • स्वदेश वापसी के पश्चात् महात्मा गाँधी का तीसरा महत्त्वपूर्ण आंदोलन गुजरात के खेङा क्षेत्र के किसानों की समस्याओं के निपटारे हेतु किया गया सत्याग्रह था।
  • खेङा में उस समय फसल बर्बाद हो जाने के कारण किसान मालगुजारी देने में असमर्थ थे। छोटे पाटीदारों (किसानों) की स्थिति समृद्ध किसानों (कम्बी पाटीदारों) की तुलना में अधिक खराब थी।
  • साथ ही ’बरइया’ नामक निम्न जाति के खेतीहर मजदूर भी बढ़ती कीमतों की वजह से त्रस्त थी। गाँधी जी ने मार्च, 1918 में खेङा सत्याग्रह का नेतृत्व संभाला।
  • इससे पूर्व मोहनलाल पाण्ड्या आदि स्थानीय नेता किसानों की समस्याओं को उठा रहे थे।
  • जून, 1918 में सरकार द्वारा कुछ रियायतें देने के बाद यह आंदोलन स्थगित कर दिया गया।
  • इस आंदोलन का क्षेत्र सीमित था। खेङा आंदोलन से गाँधीजी का प्रभाव गुजरात में फैल गया। गाँधीजी के अहिंसा के सिद्धान्त एवं वैष्णव भक्ति के कारण पाटीदार किसानों ने महात्मा गाँधी का सदैव समर्थन किया।
  • इस सत्याग्रह में इन्दुलाल याज्ञनिक ने गाँधीजी को पूरा सहयोग दिया। वल्लभभाई पटेल एवं शंकरलाल बैंकट ने भी गांधी जी का सहयोग किया।

रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act)

  • बढ़ रही क्रांतिकारी गतिविधियों को कुचलने के लिए सरकार ने 1917 में न्यायाधीश सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक समिति को नियुक्त किया जिसे आतंकवाद को कुचलने के लिए एक प्रभावी योजना का निर्माण करना था।
  • रॉलेट समिति के सुझावों के आधार पर फरवरी, 1919 को केन्द्रीय विधान परिषद् में दो विधेयक पेश किये गये, जिसमें एक विधेयक परिषद् के भारतीय सदस्यों के विरोध के बाद भी पास हो गया।
  • 18 मार्च, 1919 को केन्द्रीय विधान परिषद् से पास हुआ विेधेयक रॉलेट एक्ट या रॉलेट अधिनियम के नाम से जाना गया।
  • गांधीजी ने रॉलेट एक्ट को ’काला कानून’ कहकर इसकी आलोचना की। गांधी जी ने रॉलेट एक्ट की आलोचना करते हुए इसके विरुद्ध अखिल भारतीय स्तर पर सत्याग्रह करने के लिए सत्याग्रह सभा की स्थापना की।
  • गांधीजी के नेतृत्व में 30 मार्च, 1919 की तिथि रॉलेट एक्ट के विरोध में एक अखिल भारतीय सत्याग्रह आन्दोलन के लिए निर्धारित की गई बाद में इसे बढ़ाकर 6 अप्रैल, 1919 कर दिया गया।
  • गाँधीजी ने वायसराय को पत्र द्वारा हङताल की चेतावनी दी गई। राष्ट्रीय आंदोलन में ’हङताल’ शब्द का पहली बार प्रयोग किया गया।
  • 6 अप्रैल, 1919 को सम्पूर्ण देश में हङताल रखी गई। यह सत्याग्रह सम्पूर्ण देश में पूरे जोर-शोर से आयोजित किया जा रहा था। 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर (पंजाब) में वैशाखी के दिन जनरल डायर ने जलियाँवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre)  को अंजाम दे दिया।
  • गांधी जी (Gandhi ji) ने 18 अप्रैल को रोलेट सत्याग्रह स्थगित कर दिया। सत्याग्रह का सुफल यह हुआ कि रॉलेट एक्ट के तहत कोई कार्यवाही नहीं की गई एवं 3 वर्ष बाद उसे वापस ले लिया गया।

’’बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो।’’

खिलाफत आन्दोलन (Khilafat Movement)

  • भारत के मुसलमान तुर्की (टर्की) के सुल्तान को इस्लाम का ’खलीफा’ मानते थे। प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की मित्र देशों के विरुद्ध लङ रहा था, युद्ध के समय ब्रिटिश राजनीतिज्ञों ने भारतीय मुसलमानों को वचन दिया था कि वे तुर्की साम्राज्य को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचायेंगे लेकिन युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार ने तुर्की साम्राज्य का विघटन करने का निश्चय किया, जिससे भारतीय मुसलमानों की सहानुभूति तुर्की के प्रति हो गई।
  • अली बंधुओं (मोहम्मद और शौकात) ने अपने पत्र ’कामरेड’ में तुर्की एवं इस्लाम की परम्पराओं के प्रति सहानुभूति व्यक्त की।
  • तुर्की साम्राज्य के विभाजन के विरुद्ध शुरू हुए खिलाफत आंदोलन ने उस समय अधिक जोर पकङ लिया जब उसमें राष्ट्रपति महात्मा गांधी (Rashtrapita Mahatma Gandhi) जी ने हिस्सेदारी की। गांधी ने खिलाफत आंदोलन को हिन्दू-मुस्लिम एकता का एक सुनहरा अवसर माना।
  • 17 अक्टूबर, 1919 को अखिल भारतीय स्तर पर खिलाफत दिवस मनाया गया।
  • सितम्बर, 1919 में ’अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी’ का गठन किया गया।
  • दिल्ली में 24 नवम्बर, 1919 को होने वाले खिलाफत कमेटी के सम्मेलन की अध्यक्षता महात्मा गांधी को प्रदान की गई।
  • सितम्बर, 1920 में लाला लाजपतराय की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुए कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध सीधी कार्यवाही करने, विधानपरिषदों का बहिष्कार करने तथा असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ करने का निर्णय लिया।
  • इस आंदोलन में अली बन्धु, हकीम अजमल खाँ, डाॅ. अन्सारी, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, हसरत मोहानी आदि प्रमुख तुर्की समर्थक व खिलाफत नेता थे।

असहयोग आन्दोलन (Non-Cooperation Movement )

  • खिलाफत आंदोलन एवं भारत में उत्तरदायी शासन न करने के विरोध में गाँधीजी ने भारत में असहयोग आन्दोलन करने की घोषणा की।
  • दिसम्बर, 1920 ई. नागपुर में कांग्रेस के वार्षिक सम्मेलन में इसका प्रस्ताव रखा तथा सितम्बर, 1920 ई. में कलकत्ता के विशेष अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन के प्रस्ताव की पुष्टि कर दी। असहयोग आन्दोलन 1 अगस्त, 1920 ई. से शुरू किया गया। इसी दिन प्रातःकाल तिलक का देहान्त हो गया।
  • यह महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया पहला अखिल भारतीय स्तर का जन आंदोलन था।

यह आंदोलन निम्न मुख्य माँगों पर बल देने हेतु प्रारंभ किया गया था –

  • खिलाफत मुद्दा
  • पंजाब में जलियावाला बाग एवं उसके बाद के उत्पीङन के विरुद्ध न्याय की मांग
  • स्वराज्य प्राप्ति।

असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम के दो मुख्य पक्ष थे –

  • नकारात्मक (विरोधात्मक)

कार्यक्रम के विरोधात्मक पक्ष –

  • उपाधियों एवं अवैतनिक पदों का परित्याग करना।
  • सरकारी शिक्षण संस्थाओं से बच्चों को निकालना। विद्यार्थियों ने स्कूल, काॅलेज छोङ दिये।
  • वकीलों द्वारा अँग्रेज न्यायालयों का बहिष्कार। वकीलोें ने वकालात छोङ दी।
  • विधान परिषदों के चुनावों के बहिष्कार एवं विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।

कार्यक्रम के रचनात्मक पक्ष –

  • न्यायालयों के स्थान पर पंच फैसला पीठों का गठन।
  • राष्ट्रीय विद्यालयों व काॅलेजों की स्थापना।
  • स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देना।
  • चरखा एवं खादी को लोकप्रिय बनाना।
  • सम्पूर्ण देश विशेषतः पश्चिमी भारत, बंगाल एवं उत्तरी भारत में असहयोग आन्दोलन को अभूतपूर्व सफलता मिली।
  • अलीगढ़ में जामिया मिलिया इस्लामिया एवं काशी विद्यापीठ जैसी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना हुई।

चौरी चौरा कांड (Chauri Chaura Incident)

  • 17 नवम्बर, 1921 ई. को प्रिन्स ऑफ वेल्स के भारत आगमन के दिन पूरे देश में हङताल का आयोजन किया गया।
  • दिसम्बर, 1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने की अनुमति दी गई।
  • असहयोग आन्दोलन अपने चरम सीमा पर था लेकिन अचानक 5 फरवरी, 1922 ई. में ’चौरी चौरा’ (गोरखपुर उत्तरप्रदेश) नामक स्थान पर हिंसक भीङ ने पुलिस थाने को जला दिया, जिसमें 22 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गई। इसे ‘चौरी चौरा कांड’ कहा जाता है।
  • इन हिंसक घटनाओं के कारण गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा कर दी तथा 12 फरवरी, 1922 को बारदोली आंदोलन गांधी जी के द्वारा वापस ले लिया गया।
  • महात्मा गांधी (Information About Mahatma Gandhi in Hindi) के आन्दोलन को वापिस लेने के निर्णय का तीव्र एवं व्यापक विरोध हुआ, तो वहीं जिन्ना ने असहयोग आन्दोलन को गांधी की ’हिमालयी भूल’ कहा।
  • असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi Introduction in Hindi) ने अंग्रेजों द्वारा दी गई ’केसर-ए-हिन्द’ की उपाधि वापस लौटा दी थी।
  • गांधीजी के असहयोग आन्दोलन का सबसे सफल प्रभाव विदेशी कपङों का बहिष्कार कार्यक्रम था। कांग्रेस ने हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया।
  • खादी का प्रयोग एवं स्वदेशी का प्रचार आगामी आन्दोलन का भाग बन गया। कांग्रेस अब राष्ट्रव्यापी संस्था बन चुकी थी।
  • 1924 में कांग्रेस के ’बेलगाँव अधिवेशन’ की अध्यक्षता पहली बार महात्मा गांधी ने की थी। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) केवल एक बार ही कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन (Civil Disobedience Movement)

  • जनवरी, 1930 में महात्मा गाँधी ने 11 सूत्रीय माँगपत्र प्रस्ताव रखा, जिस पर वायसराय लाॅर्ड इरविन द्वारा कोई सकारात्मक जवाब न मिलने के कारण महात्मा गाँधी ने ’सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ शुरू करने की धमकी दी, जिसका प्रमुख उद्देश्य ’नमक कानून’ को तोङना था। क्योंकि अंग्रेजी सरकार ने उस समय नमक पर कर लगा दिया था, जो आम जनता की एक जरूरत थी।
  • महात्मा गांधी ने लाॅर्ड इरविन को पत्र लिखा ’’मैंने घुटने टेककर रोटी माँगी थी और बदले में मुझे पत्थर मिला।’’ इसके बाद गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने का निर्णय लिया।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम थे  –

  • नमक कानून का उल्लंघन करना।
  • स्कूलों का परित्याग एवं सरकारी नौकरियों से इस्तीफा।
  • विदेशी कपङों की होली जलाना।
  • स्त्रियों का शराब की दुकानों के आगे धरना देना।

दांडी मार्च (Salt March)

  • 12 मार्च, 1930 में गांधी जी ने नमक कानून तोङने हेतु अपने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम (अहमदाबाद) से गुजरात तट के दाण्डी नामक स्थान के लिए 240 मील (लगभग 400 किलोमीटर) की पैदल यात्रा ’दांडी मार्च’ प्रारंभ किया।
  • 6 अप्रैल, 1930 को गांधी जी ने एक मुट्ठी नमक हाथ में लेकर नमक कानून का उल्लंघन किया और इसी के साथ सम्पूर्ण देश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारंभ हुआ।
  • गांधीजी एवं कई बङे कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। जुलाई, 1930 तक आन्दोलन देशव्यापी हो गया। स्थान-स्थान पर ’मार्शल-लाॅ’ लगाया गया।
  • इस आन्दोलन में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। नमक सत्याग्रह के दौरान धरसाणा में महिलाओं का नेतृत्व सरोजिनी नायडू  के द्वारा किया गया।

प्रथम गोलमेज सम्मेलन (First Round Table Conference)

  • प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवम्बर, 1930 से 13 जनवरी, 1931 तक लंदन में ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड की अध्यक्षता में आयोजित किया गया।
  • प्रथम गोलमेज सम्मेलन में प्रमुख भारतीय नेताओं ने हिस्सा लिया था – तेजबहादुर सप्रु, श्रीनिवास शास्त्री, बीकानेर के गंगासिंह, अलवर के महाराजा जयसिंह, मुहम्मद अली, मुहम्मद शफी, आगा खाँ।
  • यह ऐसी पहली वार्ता थी जिसमें ब्रिटिश शासकों द्वारा भारतीयों को बराबर का दर्जा दिया गया।

गांधी-इरविन समझौता

  • गांधी और इरविन के बीच लम्बी बातचीत के बाद 5 मार्च 1931 एक समझौता हुआ जिसे गांधी-इरविन समझौते के नाम से जाना गया।
  • इस वार्ता के बाद गांधीजी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस ले लिया एवं द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार कर लिया गया था।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (Second Round Table Conference)

  • दूसरा गोलमेज सम्मेलन लंदन में 7 सितम्बर, 1931 से 1 दिसम्बर, 1931 तक चला। इसमें कांग्रेस के एक मात्र प्रतिनिधि के रूप में गांधी जी (Gandhi ji) ने हिस्सा लिया। भारतीय महिलाओं के प्रतिनिधि के रूप में सरोजनी नायडू ने भाग लिया।
  • इस सम्मेलन का आयोजन लंदन के ’सेंट पैलेस’ में किया गया।
  • दक्षिणपंथी नेता विंस्टन चर्चिल ने ब्रिटिश सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि वह (सरकार) ’देशद्रोही फकीर’ (गांधी जी) को बराबर का दर्जा देकर बात कर रही है।
  • फ्रेंकमोरेस नामक ब्रिटिश नागरिक ने गांधी जी के बारे में इसी समय कहा कि ’’अर्ध नंगे फकीर’’ के ब्रिटिश प्रधानमंत्री से वार्ता हेतु सेण्टपाल पैलेस की सीढ़िया चढ़ने का दृश्य अपने आप में एक अनोखा और दिव्य प्रभाव उत्पन्न कर रहा था।
  • इस सम्मेलन में सर आगा खाँ द्वारा मुस्लिम लीग के लिए साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को स्थायी बनाने और डाॅ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा दलित वर्ग के लिए पृथक् निर्वाचन मण्डल की मांग की गई। अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण मुद्दे पर मोहम्मद अली जिन्ना एवं अन्य साम्प्रदायिक दलों के प्रतिनिधियों की हठधर्मिता से सम्मेलन असफल हो गया।

द्वितीय सविनय अवज्ञा आंदोलन (Second civil disobedience movement)

  • 1 जनवरी, 1932 को कांग्रेस कार्यसमिति ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को दोबारा शुरू करने का निर्णय लिया। आंदोलन शुरू होने के शीघ्र बाद चोटी के नेता गांधी, नेहरू, खान अब्दुल गफ्फार आदि को गिरफ्तार कर सरकार ने कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर उसकी सम्पत्ति को जब्त कर लिया।
  • जिस समय आंदोलन अपने चरम पर था उसी समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री ’रैम्जे मैकडोनाल्ड’ ने अपना प्रसिद्ध ’साम्प्रदायिक पंचाट’ की घोषणा कर आंदोलन की दिशा बदल ली।

साम्प्रदायिक पंचाट (Saampradaayik Panchaat)

  • ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने 16 अगस्त, 1932 को विभिन्न सम्प्रदायों के प्रतिनिधित्व के विषय पर एक पंचाट जारी किया जिसे ’साम्प्रदायिक पंचाट ’ (कम्युनल एवार्ड) कहा गया।
  • इस पंचाट में पृथक निर्वाचक पद्धति को न केवल मुसलमानों के लिए जारी रखा गया बल्कि इसे दलित वर्गों पर भी लागू कर दिया गया।
  • दलित वर्ग को पृथक् निर्वाचक मण्डल की सुविधा दिये जाने के विरोध में महात्मा गांधी ने जेल में ही 20 सितम्बर, 1932 को आमरण अनशन शुरू कर दिया।

पूना समझौता (Puna Samjhauta)

  • मदनमोहन मालवीय, डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद, पुरूषोत्तम दास, सी. राजगोपालचारी आदि के प्रयत्नों से गांधी जी (Gandhi ji) के उपवास के 5 दिन बाद 26 सितम्बर, 1932 को गांधी जी और दलित नेता अम्बेडकर में ’पूना समझौता’ हुआ।
  • पूना पैक्ट के अनुसार दलितों के लिए पृथक निर्वाचन व्यवस्था समाप्त कर दी गई तथा विभिन्न प्रांतीय विधान मण्डलों में दलित वर्ग के लिए 148 सीटें आरक्षित की गई, दूसरे केन्द्रीय विधानमण्डल में 18 प्रतिशत सीटें दलित वर्ग के लिए आरक्षित की गई।

द्वितीय सविनय अवज्ञा आंदोलन का स्थगन

  • अक्टूबर, 1934 को गांधी जी ने अपने को सक्रिय राजनीति से अलग कर हरिजनोत्थान से जोङ लिया।
  • सरोजिनी नायडू ने इरविन और गांधीजी को ’दो महात्मा’ कहा।

तृतीय गोलमेज सम्मेलन (Third Round Table Conference)

  • 17 नवम्बर, 1932 से 24 दिसम्बर, 1932 तक तृतीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया।
  • इसमें केवल राजभक्तों और साम्प्रदायिकतावादियों ने ही भाग लिया।
  • कांग्रेस ने इस सम्मेलन में अपनी ओर से कोई प्रतिनिधि नहीं भेजा।
  • तीनों गोलमेज सम्मेलनों के आधार पर ब्रिटिश सरकार ने मार्च, 1933 में एक ’श्वेत पत्र’ प्रकाशित किया, जिसके आधार पर ’भारत सरकार अधिनियम’ 1935 पारित किया गया।

भारत छोड़ो आन्दोलन (Quit India Movement)

  • क्रिप्स मिशन के असफल होने के कारण कांग्रेस एवं सरकार में कोई समझौता न हो पाने के कारण तथा अन्ततः कांग्रेस ने एक ठोस व प्रभावी आन्दोलन करने का निर्णय लिया।
  • 14 जुलाई, 1942 को कांग्रेस कार्यसमिति ने वर्धा में अपनी बैठक में आंदोलन प्रारंभ करने हेतु गांधीजी को अधिकृत कर दिया। वर्धा बैठक में गांधीजी ने कहा कि ’’भारतीय समस्या का हल अँग्रेजों द्वारा भारत छोङ देने में ही है।’’ गांधीजी के इस प्रस्ताव को ’वर्धा प्रस्ताव’ कहते हैं।
  • महात्मा गांधी ने कांग्रेस अधिवेशन के दौरान भारत छोङो आंदोलन प्रारम्भ करने का प्रस्ताव रखा और नहीं मनाने पर धमकी दी, कि ”मैं बालू से भी कांग्रेस से बङा आंदोलन खङा कर सकता हूँ।”
  • 8 अगस्त, 1942 की अर्द्धरात्रि को बंबई में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में महात्मा गांधी द्वारा ’भारत छोङो प्रस्ताव’ पारित किया गया। गांधीजी ने कहा कि या तो हम भारत को पूर्ण स्वतंत्र करायेंगे या फिर इस प्रयास में मर मिटेंगे। इसी अधिवेशन में महात्मा गांधी ने ’करो या मरो’ का नारा दिया एवं कहा कि अब कांग्रेस पूर्ण स्वराज्य से कम के किसी भी सरकारी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगी।
  • अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बम्बई के ’ग्वालियर टैंक मैदान ’ में मौलाना आजाद की अध्यक्षता में हुई। जवाहरलाल नेहरू द्वारा ’भारत छोङो आन्दोलन’ का प्रस्ताव रखा गया। प्रस्ताव में कहा गया कि ’’भारत में ब्रिटिश शासन का तत्काल अंत, भारत के लिए एवं मित्र राष्ट्रों के आदर्श के लिए अत्यंत आवश्यक है। इस पर ही युद्ध का भविष्य एवं स्वतंत्रता और प्रजातंत्र की सफलता निर्भर है।’’
  • भारत छोङो आन्दोलन की शुरूआत 8 अगस्त 1942 हो चुकी थी, लेकिन भारत छोङो आन्दोलन का प्रारंभ 9 अगस्त 1942 को बारदोली से महात्मा गांधी ने किया था।
  • इस आन्दोलन का मुस्लिम लीग, यूनियनिस्ट पार्टी, कम्यूनिस्ट पार्टी और भीमराव अम्बेडकर ने विरोध किया। डाॅ. अम्बेडकर ने इस आंदोलन को अनुत्तरदायित्त्वपूर्ण कार्य बताया।

भारत छोङो आन्दोलन के उद्देश्य –

  • सार्वजनिक सभाएँ करना।
  • लगान नहीं देना।
  • हङतालें करना।
  • सरकार के कार्यों में असहयोग देना।

भारत छोड़ो आन्दोलन की सफलता (Quit India Movement Successful)

  • इस आंदोलन के दूसरे ही दिन कांग्रेस के नेता महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू को गिरफ्तार कर लिया गया। महात्मा गांधी को पुणे के आगा खाँ महल में बन्दी बनाकर रखा गया और ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन का दमन तेज कर दिया।
  • इस दमन के विरोध में महात्मा गांधी ने अनशन करने का निर्णय लिया। सम्पूर्ण देश में गाँधीजी के प्रति सहानुभूति जाग गयी और आंदोलन हिंसक होने लगा।
  • भारत छोङो आन्दोलन अब तक का सबसे बङा अहिंसक आन्दोलन नहीं, बल्कि हिंसक आन्दोलन था जिसमें अंग्रेजी सरकार ने भी हिंसक दमन चक्र ‘Operation Zero Hour’ चलाया।
  • इस आन्दोलन के फलस्वरूप गांधीजी सहित सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
  • जयप्रकाश नारायण को हजारी बाग सेन्ट्रल जेल में रखा गया। कालान्तर में जयप्रकाश नारायण जले की दीवार फाँदकर फरार हो गये तथा उन्होंने ’आजाद दस्ता’ का गठन किया।
  • इसी दौरान उषा मेहता, राम मनोहर लोहिया, प्रिंटर व अन्य ने एक भूमिगत रेडियो स्टेशन का संचालन किया, जिसके माध्यम से आंदोलन का प्रचार एवं रूपरेखा आम जनता तक पहुँचाते थे।
  • इसी दौरान बलिया (उत्तरप्रदेश), सतारा (महाराष्ट्र), तामलुक (प. बंगाल) में समानांतर सरकारें स्थापित हुई। वहाँ अंग्रेजी शासन को समाप्त कर स्थानीय शासन को लागू किया गया।
  • यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता के लिए किया गया सबसे महान प्रयास था। भारत छोङो आन्दोलन के बाद इस तरह का कोई वृहद् स्तर का जन आन्दोलन नहीं हुआ। परन्तु धीरे-धीरे की गई राजनीतिक कार्यवाहियों एवं प्रयासों से अन्ततः 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ जिसमें महात्मा गांधी के निःस्वार्थ एवं अविस्मरणीय योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

गांधी जी के पुरस्कार (Gandhi ji Ke Award)

  • टाईम मैगजीन ने गांधी जी (Gandhi ji) को वर्ष 1930 में ’मैन ऑफ द ईयर’ चुना।
  • 2011 में टाईम मैगजीन ने इन्हें विश्व के लिए हमेशा प्रेरणा स्रोत रहे 25 राजनीतिक व्यक्तियों में से एक चुना।
  • गांधीजी को कभी नोबल पुरस्कार नहीं मिला परन्तु 1937 से लेकर 1948 तक पाँच बार इन्हें ’नोबल पुरस्कार’ के लिए नामित किया गया।
  • 2 अक्टूबर को अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है।
  • 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है।
  • 30 जनवरी को शहीद दिवस मनाया जाता है।
  • महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को ‘’भर्ती करने वाले सार्जेण्ट’’ कहा जाता है।

’’मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है, सत्य मेरा भगवान है, अहिंसा उसे पाने का साधन।’’

महात्मा गांधी का सत्याग्रह (Mahatma Gandhi Ka Satyagraha)

  • सत्याग्रह (Satyagraha) की प्रेरणा गांधीजी ने डेविड थोरो के लेख ’ सिवल डिसओबिडियन्स’, लियो टाॅलस्टाय के ’किंगडम ऑफ गाॅड इज विदिन यू’, जाॅन रस्किन की ’अनटू दि लास्ट’ के विचारों से ली थी।
  • सत्याग्रह सत्य और अहिंसा पर आधरित था।
  • सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ सत्य के लिए आग्रह (सत्य के प्रति समर्पण) होता है।
  • गांधी जी इस बात से चिंतित थे कि सत्याग्रह को कैसे निष्क्रिय प्रतिरोध से अलग किया जाए क्योंकि सत्याग्रह एक अलग तकनीक पर आधारित था जिसमें उपवास, हिजरत तथा हङताल प्रमुख था।
  • गांधी जी खादी को आर्थिक स्वतंत्रता का प्रतीक मानते थे।

गांधी जी और हरिजनोत्थान

  • सितम्बर, 1932 में गांधी जी ने हरिजन कल्याण हेतु ’अखिल भारतीय हरिजन संघ’ की स्थापना की।
  • अछूतों को गांधी जी ने ’हरिजन’ नाम दिया।
  • जनवरी, 1933 में ’हरिजन’ नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया।
  • हरिजन उत्थान कार्यक्रम को अपना मुख्य लक्ष्य बना लिया।
  • महात्मा गांधी ने गौ रक्षा के अति महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए गोरक्षा संघ बनाया।

महात्मा गांधी की मृत्यु कब हुई (Mahatma Gandhi ki Mrityu kab Hui)

  • 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपति महात्मा गांधी ने (Rashtrapita Mahatma Gandhi) नई दिल्ली के ’बिरला हाउस’ से प्रेयर मीटिंग के लिए प्रस्थान किया।
  • उसी दिन शाम 5 बजकर 17 मिनट पर नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) और उनके सहयोगी गोपालदास ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी। गोडसे ने गांधी जी (Gandhi ji) पर 3 गोलियाँ चलायी।
  • गोडसे एक हिन्दू राष्ट्रवादी और हिन्दू महासभा का सदस्य था। वह गांधी जी के अहिंसावादी सिद्धान्त का विरोधी था।
  • गांधी जी की हत्या के आरोप में नाथू राम गोडसे (Nathu Ram Godse) को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया और नाथूराम गोडसे पर गांधी जी की हत्या का केस चलाया गया। इस मुकदमे में गोडसे (Godse) को दोषी ठहराया गया और उनको मृत्यु की सजा सुनाई गई। नाथूराम गोडसे को 1949 ई. में फांसी लगाई गई।
  • अपने जीवन के अंतिम समय में गांधी के मुख से ’हे राम’ शब्द निकले। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का समाधि स्थल नई दिल्ली के राजघाट में बनाया गया।
  • जब महात्मा गांधी की हत्या हुई तब अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, ’’कोई विश्वास नहीं करेगा कि ऐसे शरीर और आत्मा वाला कोई आदमी कभी इस धरती पर चला था।’’

महात्मा गांधी से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (Mahatma Gandhi Questions in Hindi)

1. महात्मा गांधी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ? उत्तर – 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में

2. महात्मा गांधी के पिता का नाम क्या था ? उत्तर – करमचंद गांधी

3. करमचंद गांधी कहां ही रियासत के दीवान थे ? उत्तर – राजकोट (पोरबंदर)

4. महात्मा गांधी की माता का नाम क्या था ? उत्तर – पुतलीबाई

5. महात्मा गांधी के जीवन पर किसका बहुत गहरा प्रभाव पङा ? उत्तर – माता पुतलीबाई

6. गांधीजी के बचपन का नाम क्या था ? उत्तर – मोहनदास

7. महात्मा गांधी का पूरा नाम क्या था ? उत्तर – मोहनदास करमचंद गांधी

8. गांधीजी का जब विवाह हुआ तो, उस समय उनकी उम्र क्या थी ? उत्तर – 13 वर्ष

9. गांधी जी की पत्नी का क्या नाम था ? उत्तर – कस्तूरबा गांधी

10. महात्मा गांधी बैरिस्टर (वकालत) की पढ़ाई करने के लिए लंदन कब गए थे ? उत्तर – 4 सितम्बर 1888 ई.

11. महात्मा गांधी को किन नामों से जाना जाता है ? उत्तर – बापू, महात्मा जी, गाँधी जी

12. गांधीजी को ’महात्मा’ की उपाधि किसने दी ? उत्तर – रवीन्द्रनाथ टैगोर

13. महात्मा गांधी को सबसे पहले ’राष्ट्रपिता’ किसने बुलाया था ? उत्तर – सुभाष चंद्र बोस

14. महात्मा गांधी को ’अर्द्धनग्न फकीर’ किसने कहा था ? उत्तर – विंस्टन चर्चिल

15. गांधी जी को क्या माना जाता है ? उत्तर – दार्शनिक अराजकतावादी

16. गांधी जी के जन्मदिवस को किस दिवस के रूप में मनाया जाता है ? उत्तर – अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस

17. महात्मा गांधी के कितने बेटेे थे ? उत्तर – चार बेटे – हरीलाल गांधी (1888 ई.), मणिलाल गांधी (1892 ई.) , रामदास गांधी (1897 ई.) व देवदास गांधी (1900 ई.)।

18. महात्मा गांधी किसकी कृतियों से अत्यधिक प्रभावित थे ? उत्तर – लियो टाॅलस्टाॅय

19. गांधी ने टाॅलस्टाॅय फार्म दक्षिण अफ्रीका में कब शुरू किया था ? उत्तर – 1910 में

20. टाइम मैगजीन ने किस वर्ष में महात्मा गांधी को ’मैन ऑफ द ईयर’ घोषित किया था ? उत्तर – 1930

21. महात्मा गांधी ने किस आश्रम की स्थापना की ? उत्तर – मई, 1915 में साबरमती आश्रम

22. साबरमती आश्रम कहाँ पर स्थित है ? उत्तर – अहमदाबाद (गुजरात)

23. महात्मा गांधी को किसकी कंपनी का मुकदमा चलाने के लिये दक्षिण अफ्रीका जाना पङा था? उत्तर – दादा अब्दुल्ला

24. गांधीजी दक्षिण अफ्रीका कब गए ? उत्तर – 1893

25. महात्मा गांधी ने सर्वप्रथम सत्याग्रह का प्रयोग कब और कहाँ किया? उत्तर – सितम्बर 1906 में दक्षिण अफ्रीका में

26. नटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना गांधीजी ने कहां की थी ? उत्तर – दक्षिण अफ्रीका में

27. नटाल भारतीय कांग्रेस की स्थापना गांधीजी ने कब की थी ? उत्तर – 22 मई 1894

28. गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत कब लौटे ? उत्तर – 9 जनवरी 1915

29. प्रवासी भारतीय दिवस कब मनाया जाता है ? उत्तर – 9 जनवरी को

30. 1915 में गांधी जी को ब्रिटिश सरकार ने किस उपाधि से सम्मानित किया था ? उत्तर – केसर-ए-हिन्द

31. किस आंदोलन के साथ महात्मा गांधी ने भारतीय राजनीति में पदार्पण किया था ? उत्तर – चंपारण आंदोलन

32. भारत में गांधीजी ने पहला सत्याग्रह का प्रयोग कहां किया ? उत्तर – चम्पारण आन्दोलन

33. चंपारण सत्याग्रह कब शुरू किया गया था ? उत्तर – 1917 में बिहार के चंपारण जिले में

34. बिहार के किस नेता ने गांधीजी के साथ किसान आंदोलन का नेतृत्व किया ? उत्तर – राजेन्द्र प्रसाद

35. चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी के साथ कौन शामिल थे ? उत्तर – राजेंद्र प्रसाद, मजहरूल हक, जे.बी. कृपलानी, महादेव देसाई, अनुग्रह नारायण सिंह एवं श्रीकृष्ण सिंह।

36. गांधीजी के नाम के साथ महात्मा कब जोङा गया था ? उत्तर – चंपारण सत्याग्रह के दौरान

37. भारत में गांधी जी का तीसरा सत्याग्रह कौनसा था ? उत्तर – खेङा सत्याग्रह

38. खेङा सत्याग्रह कब हुआ था ? उत्तर – 1918

39. महात्मा गांधी ने दांडी मार्च नमक यात्रा कब और कहाँ से शुरू की ? उत्तर – 12 मार्च, 1930 को अहमदाबाद से

40. महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम से दांडी तक की यात्रा को कितने दिनों में तय किया था ? उत्तर – 24 दिन

41. गांधीजी ने नमक कानून कब तोङा ? उत्तर – 6 अप्रैल, 1930

42. दांडी यात्रा में गांधीजी ने कितनी दूरी तय करके नमक कानून का विरोध किया था ? उत्तर – 240 मील (लगभग 400 किलोमीटर)

43. नमक कानून तोङने के लिए गांधी के द्वारा कौन-सा आंदोलन चलाया गया था ? उत्तर – सविनय अवज्ञा आन्दोलन

44. गांधीजी के साथ नमक सत्याग्रह का नेतृत्व किसने किया ? उत्तर – सरोजिनी नायडू

45. सविनय अवज्ञा आंदोलन कब शुरू किया गया था ? उत्तर – 1930

46. महात्मा गांधी ने वर्ष 1906 में किस विद्रोह के दरमियान भारतीय एंबुलेंस सेवा शुरू की थी ? उत्तर – जुलू विद्रोह

47. महात्मा गांधी के राजनैतिक गुरु कौन थे ? उत्तर – गोपाल कृष्ण गोखले

48. महात्मा गांधी के द्वारा शुरू की गई साप्ताहिक पत्रिकाएँ कौनसी है ? उत्तर – यंग इंडिया, इंडियन ओपिनियन, नवजीवन

49. गांधीजी ने यंग इंडिया और नवजीवन समाचार पत्र की शुरुआत कब की थी ? उत्तर – यंग इण्डिया – 1919, नवजीवन – 1 नवंबर 1947

50. महात्मा गांधी की आत्मकथा का क्या नाम है ? उत्तर – सत्य के साथ मेरे प्रयोग

51. गांधी जी ने अपनी आत्मकथा किस भाषा में लिखी ? उत्तर – गुजराती भाषा में

52. गांधी जी की आत्मकथा प्रथम बार कब प्रकाशित हुई ? उत्तर – 1927

53. गांधी जी की आत्मकथा का अंग्रेजी में अनुवाद किसने किया था ? उत्तर – महादेव देसाई

54. महात्मा गांधी को दक्षिण अफ्रीका के किस रेलवे स्टेशन से बाहर कर दिया गया ? उत्तर – पिटरमार्टिजबर्ग रेलवे स्टेशन से

55. गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में कितने वर्ष रहें ? उत्तर – 21 वर्ष

56. दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी द्वारा प्रकाशित पत्रिका का नाम क्या था ? उत्तर – इंडियन ओपिनियन (1904)

57. ’सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ पुस्तक किसने लिखी थी ? उत्तर – महात्मा गांधी

58. गांधीजी ने ’हिन्द स्वराज’ का प्रकाशन कब किया ? उत्तर – 1908

59. कौनसा आंदोलन मुस्लिमों द्वारा तुर्की के खलीफा पद की दोबारा स्थापना करने के लिए चलाया गया था ? उत्तर – खिलाफत आंदोलन (1919-1924)

60. गांधी जी ने किस कानून को काला कानून कहा था ? उत्तर – रॉलेट एक्ट

61. रॉलेट एक्ट कब पास हुआ था जिसमें भारतीयों के आम अधिकार छीने गए थे ? उत्तर – 18 मार्च, 1919

62. महात्मा गांधी किस गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए गए थे ? उत्तर – द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 1931

63. महात्मा गांधी का प्रसिद्ध नारा किया था ? उत्तर – करो या मरो

64. ’द वर्ड्स ऑफ गांधी’ पुस्तक के लेखक कौन है ? उत्तर – महात्मा गांधी

65. महात्मा गांधी ने किस साल अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की ? उत्तर – सितम्बर, 1932

66. महात्मा गांधी ने हरिजन समाचार-पत्र का प्रकाशन कब किया था ? उत्तर – 1933 में

67. गांधी-इरविन समझौता कब हुआ ? उत्तर – 5 मार्च 1931

68. गांधी-इरविन समझौता किसके सम्बन्ध में हुआ ? उत्तर – सविनय अवज्ञा आन्दोलन

69. गांधीजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष कितनी बार बने ? उत्तर – एक बार

70. किस एकमात्र कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता गांधी जी ने की थी ? उत्तर – बेलगाँव अधिवेशन (1924)़

71. फीनिक्स फार्म की स्थापना किसने की ? उत्तर – महात्मा गांधी ने

72. असहयोग आन्दोलन की शुरूआत किसने और कब की ? उत्तर – महात्मा गांधी ने, 1 अगस्त 1920 ई.

73. असहयोग आंदोलन को क्यों बीच में बंद करना पङा ? उत्तर – चौरी-चौरी में हुई हिंसक घटना के कारण

74. चौरी-चौरी काण्ड कब हुआ था ? उत्तर – 5 फरवरी 1922 ई.

75. महात्मा गांधी ने अपनी ’केसर-ए-हिन्द’ की उपाधि कब वापस लौटा दी थी ? उत्तर – असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधी ने अंग्रेजों द्वारा दी गई ’केसर-ए-हिन्द’ की उपाधि वापस लौटा दी थी।

76. महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को कब समाप्त कर दिया था ? उत्तर – 12 फरवरी, 1922

77. 1942 में भारत छोङो आंदोलन आरंभ करने के बाद कौन-सा मुख्य कारण था ? उत्तर – क्रिप्स मिशन की विफलता

78. ’भारत छोङो आंदोलन’ का नारा किसने दिया था ? उत्तर – महात्मा गांधी

79. भारत छोङो आन्दोलन के समय इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री कौन था ? उत्तर – विंस्टन चर्चिल

80. भारत छोङो आंदोलन कब प्रारंभ हुआ ? उत्तर – 9 अगस्त 1942

81. भारत छोङो आन्दोलन कहाँ शुरू किया गया ? उत्तर – बारदोली

82. महात्मा गांधी ने किस आंदोलन में करो या मरो का नारा दिया था ? उत्तर – भारत छोङो आन्दोलन के दौरान

83. भारत छोङो आंदोलन के दौरान ’समांतर सरकार’ का गठन कहाँ किया गया था? उत्तर – बलिया

84. भारत छोङो प्रस्ताव पारित होने के बाद गांधी जी को कैद करके कहाँ रखा गया उत्तर – आगा खां पैलेस

85. गांधीजी का सत्याग्रह किन सिद्धांतों पर आधारित था ? उत्तर – सत्य और अहिंसा पर

86. गांधीजी को कितनी बार नोबल पुरस्कार के लिए नामित किया गया ? उत्तर – 5 बार (1937-1948)

87. महात्मा गांधी की हत्या किसने की ? उत्तर – नाथूराम गोडसे ने

88. महात्मा गांधी की मृत्यु कब व कहाँ हुई ? उत्तर – 30 जनवरी 1948 नई दिल्ली के ’बिरला हाउस’ में

89. महात्मा गांधी ने मरते समय किस शब्द का प्रयोग किया था ? उत्तर – हे राम!

90. महात्मा गांधी की समाधि कहाँ पर है ? उत्तर – नई दिल्ली के राजघाट

91. शहीद दिवस कब मनाया जाता है ? उत्तर – 30 जनवरी (महात्मा गांधी के मृत्युदिवस पर)

92. यह कथन किसने कहा ’ऐसे जियो जैसे कि तुम कल मरने वाले हो, ऐसे सीखो की तुम हमेशा के लिए जीने वाले हो’? उत्तर – महात्मा गांधी

93. महात्मा गांधी को मलंग बाबा की उपाधि किसने दी थी ? उत्तर – खुदाई खिदमतगार ने

94. महात्मा गांधी को ’बापू’ किसने कहा था ? उत्तर – जवाहरलाल नेहरू

95. महात्मा गांधी को ’जादूगर’ की उपाधि किसने दी थी ? उत्तर – शेख मुजीब उर रहमान

96. महात्मा गांधी को ’वन-मैन बाउंड्री फोर्स’ किसने कहा था ? उत्तर – लार्ड माउंटबेटन

97. ’’भर्ती करने वाले सार्जेण्ट’’ किन्हें कहा गया है ? उत्तर – महात्मा गांधी को

98. ’साम्प्रदायिक पंचाट’ की घोषणा कब और किसने की ? उत्तर – ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने 16 अगस्त, 1932 को

99. ’पूना समझौता’ कब और किनके बीच हुआ ? उत्तर – 26 सितम्बर, 1932 को गांधी जी और दलित नेता अम्बेडकर के बीच ’पूना समझौता’ हुआ।

100. ’’मैं बालू से भी कांग्रेस से बङा आंदोलन खङा कर सकता हूँ।’’ यह कथन महात्मा गांधी ने किस आंदोलन के दौरान दिया था? उत्तर – भारत छोङो आन्दोलन

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long biography of mahatma gandhi in hindi

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महात्मा गाँधी और चरखा

महात्मा गाँधी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी, जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। महात्मा गाँधी के साथ चरखे का नाम भी विशेषतौर पर जोड़ा जाता है। भारत में चरखे का इतिहास बहुत प्राचीन होते हुए भी इसमें उल्लेखनीय सुधार का काम महात्मा गाँधी के जीवनकाल का ही मानना चाहिए। सबसे पहले सन 1908 में गाँधी जी को चरखे की बात सूझी थी, जब वे इंग्लैंड में थे। उसके बाद वे बराबर इस दिशा में सोचते रहे। वे चाहते थे कि चरखा कहीं न कहीं से लाना चाहिए।

गाँधी जी का सेवा भाव

गाँधी जी ने चरखे की तलाश की थी। एक गंगा बहन थीं। उनसे उन्होंने चरखा बड़ौदा के किसी गांव से मंगवाया था। इससे पहले गाँधी जी ने चरखा कभी देखा भी नहीं था, सिर्फ सुना था उसके बारे में। बाद में उस चरखे में उन्होंने काफ़ी सुधार भी किए। दरअसल गाँधी जी के चरखे और खादी के पीछे सेवा का भाव था। उनका चरखा एक वैकल्पिक आर्थिक व्यवस्था का प्रतीक भी था। महिलाओं की आर्थिक स्थिति के लिए भी, उनकी आजादी के लिए भी। आर्थिक स्वतंत्रता के लिए भी और उस किसान के लिए भी, जो 6 महीने ख़ाली रहता था। इसलिए उस समय चरखा इतना प्रभावी हुआ कि अच्छे-अच्छे घरों की महिलाएं चरखा चलाने लगीं, सूत कातने लगीं; लेकिन धीरे-धीरे यह सब समाप्त हो गया। कांग्रेस की सरकार ने उनका इस्तेमाल किया या नहीं, इसकी एक अलग कहानी है। [1]

गाँधी-नेहरू संवाद

1945 में गाँधी जी ने जवाहरलाल नेहरू को एक चिट्ठी में लिखा था-

"आप हिंद स्वराज के हिसाब से काम करिये। गांव की तरफ हम को चलना चाहिये।"

नेहरू ने उनको जवाब में लिखा-

"गांव हमें क्या देंगे, वह क्या हमें प्रकाश देंगे। वह तो खुद अंधेरे में हैं।"

नेहरू के इस वाक्य से गाँधी जी को बहुत आधात लगा। उन्हें बहुत तकलीफ हुई थी। फिर गाँधी जी ने नेहरू को भी लिख दिया था-

"तो फिर अब से तुम्हारा रास्ता मेरा रास्ता अलग-अलग है।"

खादी का महत्त्व

महात्मा गाँधी ने लिखा है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिये खादी पहनना सर्वोच्च अनिवार्यता है। गाँधी जी का प्रत्येक भारतीय से आग्रह था कि वह रोज कताई करें और घर में कताई कर बुने वस्त्र ही पहनें। उनका यह आग्रह अनुचित या अत्युत्साही राष्टभक्ति से नहीं उपजा था बल्कि भारत की नैतिक और आर्थिक स्थितियों के यथार्थवादी मूल्यांकन पर आधारित था। कुछ लोग गाँधी जी की अवधारणा को गलत संदर्भ में प्रचारित करते हैं कि उन्होंने हाथ से काते वस्त्र पहनने पर इसलिए जोर दिया, क्योंकि वे मशीनों के खिलाफ थे। यथार्थ से हटकर उनकी आलोचना नहीं की जा सकती। वे मानते थे कि दरिद्रता दूर भगाने और काम तथा धन का संकट कभी पैदा न होने देने के लिये हाथ से कताई कर बने वस्त्र पहनना ही तात्कालिक उपाय है। उनका कहना था- "चरखा स्वयं ही एक बहुमूल्य मशीन है…।"

long biography of mahatma gandhi in hindi

एकमात्र सवाल यह है कि भारत की ग़रीबी और तंगहाली दूर करने के उत्कृष्ट व्यावहारिक साधन कैसे विकसित किये जा सकते हैं। कल्पना कीजिए एक राष्ट्र की, जो प्रतिदिन औसतन पॉंच घंटे काम करता है, कौन-सा ऐसा काम है जो लोग अपने दुर्लभ संसाधनों के पूरक के रूप में आसानी से कर सकते हैं? क्या किसी को अब भी संदेह है कि हाथ से कताई करने का कोई विकल्प नहीं है? गाँधी जी का व्यावहारिक अर्थव्यवस्था में पूरा विश्र्वास था, क्योंकि उनका लक्ष्य किसी एक सिद्धांत या प्रणाली की श्रेष्ठता सिद्ध करना नहीं था, बल्कि उन ग़रीबों की कठिनाइयों का व्यावहारिक समाधान तलाश करना था, जो आधिपत्यपूर्ण आर्थिक सिद्धांतों के दुष्परिणाम झेल रहे थे। करोड़ों लोगों की ग़रीबी दूर करने के साधन के रूप में चरखे को प्रचारित करने की गाँधी जी की बुद्धिमत्ता के बारे में अनेक लोगों ने सवाल उठाये, किन्तु गाँधी जी स्वयं अमल में लाये बिना किसी भी सिद्धांत का प्रतिपादन नहीं करते थे और पहले किसी भी सिद्धांत की व्यावहारिकता और गुणकारिता स्वयं सुनिश्चित करते थे। [2]

गाँधी जी का आग्रह था कि चरखे अथवा स्थानीय महत्व के अन्य उपकरणों पर आधारित और आधुनिक तकनीकी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए कुटीर उद्योग विकसित किये जायें। आज के संदर्भ में इलेक्टॉनिक सेक्टर, खेती के औजारों का निर्माण, कार्बनिक उर्वरक, बायोगैस और कचरे से बिजली उत्पादन जैसी गतिविधियों को कुटीर उद्योगों से जोड़ा जा सकता है। गाँधी जी ने अनेक नाम गिनाये थे, जिन्हें ग्राम स्तर पर सहकारी आधार पर चलाया जा सकता है। चरखे और घर में कताई कर बुने वस्त्र पहनने के प्रति गाँधी जी के आग्रह के पीछे निर्धनतम व्यक्ति के बारे में उनकी चिंता झलकती है। उन्हें करोड़ों लोगों की भूख की चिंता थी। उनका कहना था-

"हमें उन करोड़ों लोगों के बारे में सोचना चाहिए, जो पशुओं से भी बदतर जीवन जीने के लिये अभिशप्त हैं, जो अकाल की आशंका से ग्रस्त रहते हैं और जो लोग भुखमरी की अवस्था में हैं।"

चरखे की नीलामी

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान यरवडा जेल में जिस चरखे का इस्तेमाल महात्मा गाँधी ने किया था, वह नीलामी के दौरान ब्रिटेन में एक लाख दस हजार पौंड का बिका। गाँधी जी की आखिरी वसीयत ऐतिहासिक दस्तावेजों की नीलामी के दौरान 20,000 पौंड में बिकी थी। चरखे और इस वसीयत की नीलामी श्रॉपशर के मलॉक ऑक्शन हाउस ने करवाई। मलॉक के एक अधिकारी माइकल मॉरिस ने के अनुसार- "गाँधी जी का चरखा 110,000 पाउंड में नीलाम हुआ और उनकी वसीयत 20,000 पाउंड में।" चरखे की न्यूनतम बोली 60,000 लगाई गई थी। पुणे की यरवडा जेल में गाँधी जी ने इसे इस्तेमाल किया था। बाद में यह चरखा उन्होंने एक अमेरिकी मिशनरी रेव्ड फ्लॉयड ए पफर को भेंट कर दिया। पफर भारत में शैक्षणिक और औद्योगिक सहकारी संघ बनाने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने बाँस का एक हल बनाया था, जिसे गाँधी जी ने बाद में इस्तेमाल भी किया। औपनिवेशिक काल के दौरान पफर के काम के लिए गाँधी जी ने उन्हें यह चरखा भेंट किया था। [3]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ↑ थोड़ा-सा इतिहास, अमर उजाला, 22 जनवरी-2017
  • ↑ गाँधी जी और चरखा (हिंदी) hindimilap.com। अभिगमन तिथि: 09 फ़रवरी, 2017।
  • ↑ गाँधी जी का चरखा एक लाख पौंड का (हिंदी) dw.com। अभिगमन तिथि: 09 फ़रवरी, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

  • महात्मा गाँधी साक्षात्कार विडियो
  • महात्मा गाँधी भाषण विडियो
  • डाक टिकटों में गाँधी
  • डाक-टिकटों पर भी छाये गाँधी जी
  • डाक टिकटों में मोहन से महात्मा तक का सफर
  • गाँधी दर्शन की प्रासंगिकता - प्रोफ्सर महावीर सरन जैन

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महात्मा गांधी की जीवनी – Biography of mahatma Gandhi in Hindi

महात्मा गांधी की जीवनी (Biography of mahatma Gandhi in Hindi): भारत महान व्यक्ति की महान भूमि है. भारत की भूमि ऋषियों, संतों, कवियों, लेखकों, दार्शनिकों, सुधारकों, परोपकारियों और योग महापुरुषों को युगों-युगों तक लाभान्वित करके धन्य रही है. इस भूमि के बुरे समय में कई सारे महान व्यक्तियों का जन्म हुआ है. उन महापुरुषों में से एक अमर, परोपकारी, युग-निर्माता महात्मा गांधी हैं. तो चलिए महात्मा गांधी की जीवनी (Biography of mahatma gandhi in Hindi) के बारे में विस्तार रूप से जानते हैं.

प्रस्तावना     

देश और राष्ट्र के बुरे समय में महापुरुष प्रकट होते हैं. व्यक्तिगत सुख और आत्मग्लानि को अनदेखा करते हुए, वे सभी महापुरुष मानव समाज के हित के लिए स्वयं को समर्पित करते हैं. कई प्रतिकूल वातावरण और स्थितियों में, वे अपने जीवन के साथ आगे बढ़ते हैं. निस्वार्थ सेवा, बलिदान और समर्पित जीवन के लिए, उन्हें सार्वजनिक रूप से महापुरुष कहा जाता है. अपने स्वयं के सिद्धांतों और आदर्शों के आधार पर, वे जन-कल्याण को जीवन के संकल्प के रूप में लेते हैं. लंबे समय तक विदेशी शासन में रहे भारतीयों का सार्वजनिक जीवन बाधित हो गया था. भारत के इतने बुरे समय में एक महान व्यक्ति का जन्म हुआ. वे भारतमाता के एक योग्य संतान, जो सत्य और अहिंसा के संरक्षक, शांति और दोस्ती के सर्वोच्च साधक और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महान नेता महामहिम महात्मा गांधी थे. यह आदर्श पुरुष पूरे भारत में ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में प्रतिष्ठित है. वह उसी समय एक ईमानदार राजनीतिज्ञ, प्रख्यात समाज सुधारक, प्रख्यात लोक सेवक, कुशल वकील और मजबूत मानवतावादी नेता थे.

संक्षिप्त जीवनी

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था. उनका असली नाम मोहनदास करमचंद गांधी था. लेकिन दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान, उन्हें ‘महात्मा गांधी’ के रूप में जाना जाता था. उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और  माता का नाम पुतुलीबाई गांधी था. उनका परिवार वैष्णव धर्म का अनुसरण करता था. गांधी कम उम्र से ही अपने धार्मिक माता-पिता से प्रभावित थे. वह अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थे. इसलिए उनका बचपन काफी आनंद में बीता था. उस समय समाज में बाल विवाह का प्रचलन था. महज तेरह साल की उम्र में उन्होंने कस्तूरबा से शादी कर ली. राजकोट में स्कूल से शिक्षा समाप्त करने के बाद, उन्होंने सत्रह वर्ष की आयु में प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके बाद वह लंदन चले गए, जहाँ उन्होंने अपनी कानून की शिक्षा पूरी की और भारत लौट आए. भारत में कुछ दिनों की वकालत करके, वह दक्षिण अफ्रीका चले गए. वह दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे कर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए. आजादी के कुछ महीने बाद 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे नाम के एक व्यक्ति ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी. इस प्रकार 79 वर्ष की आयु में उनका जीवन समाप्त हो गया था.

mahatma gandhi ki jivani

दक्षिण अफ्रीका में गांधी   

उस समय, बहुत सारे भारतीय दक्षिण अफ्रीका में रह रहे थे. गांधीजी ने 1893 में दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले एक भारतीय व्यापारी के पक्ष में मुकदमा लड़ने के लिए दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की. अपने प्रवास के दौरान, उन्होंने देखा कि गोरे लोग अश्वेत अफ्रीकियों और भारतीयों से घृणा कर रहे थे. उनकी नस्लवादी नीतियों ने गांधीजी को बहुत परेशान किया था. अफ्रीकियों के खिलाफ श्वेत सरकार का उत्पीड़न और दुराचार धीरे धीरे बढ़ने लगा था. इसलिए अफ्रीकियों और भारतीयों को संगठित करके, गांधीजी ने सत्य और अहिंसा के माध्यम से गोरों के खिलाफ एक आंदोलन चलाया. गांधीजी द्वारा इस तरह के आंदोलन को उस दिन के बाद से ‘सत्याग्रह’ के रूप में जाना जाता है. गांधीजी इस आंदोलन में सफल रहे. तब भारतीयों ने उन्हें “महात्मा” का ताज पहनाया. दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह ने बाद में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया. इससे दुनिया के राजनीतिक इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई.

स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे आगे

गांधीजी के भारत लौटने से बहुत पहले, अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे. उस समय की ब्रिटिश सरकार के अन्याय और अत्याचार के कारण भारतीय बहुत दयनीय जीवन जी रहे थे. इसलिए गांधीजी ने भारतीय लोगों का प्रतिनिधित्व किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई. बिहार के चंपारण में उत्पीड़ित किसानों का आंदोलन, अहमदाबाद में मजदूर आंदोलन, पंजाब के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और गांधीजी ने इन सभी आंदोलनों का नेतृत्व किया था. उन्होंने अहमदाबाद के पास साबरमती नदी के पास एक आश्रम स्थापित किये और उस ‘साबरमती’ आश्रम से सत्याग्रह की रूपरेखा तैयार की. उनके मजबूत नेतृत्व में, 1921 में असहयोग आंदोलन, 1930 में नमक सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का गठन किया गया. उन्हें इसके लिए बार-बार कैद किया गया, लेकिन वह निराश नहीं हुए और न ही अपने रास्ते से भटक गए. अपने दुःख-दर्द से भरे शरीर और अपनी पत्नी के खोने के दुःख के बावजूद, वह अपने मार्ग में बने रहे. जब उन्हें कैद किया गया था, तब भी उनके इशारे और प्रेरणा पर सत्याग्रह जारी रहा. आंदोलन के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सरकार की नींव कमजोर पड़ने लगी. आखिरकार, 15 अगस्त 1947, को भारत को स्वतंत्रता मिली.

जीवन के सिद्धांत और आदर्श

महात्मा गांधी का जीवन दर्शन उच्चतम क्रम का था. वह सत्य और अहिंसा के पुजारी थे,  बलिदान और निस्वार्थता के प्रतीक थे. चरित्र निर्माण उनके जीवन की कुंजी थी. समानता और दोस्ती के साथ वह जीवन के लिए प्रसिद्ध थे, उनकी राय में, सभी मानव जाति, धर्म या रंग की परवाह किए बिना समान हैं. वह कर्म में विश्वास करते थे. इसलिए, उन्हें एक कार्यकर्ता के रूप में दुनिया भर में जाना जाता है. उनके आदर्श कुटीर उद्योग के विकास और आत्मनिर्भरता थे. वह बड़े या छोटे, अमीर या गरीब, के साथ भेदभाव से दूर थे. धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सद्भाव उनके जीवन के अंतिम लक्ष्य थे. गांधीजी के सरल और सहज जीवन यात्रा, निर्भरता और चरित्र के लिए हमेशा याद किया जाता है.

महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद, भारत ने एक नि: स्वार्थ लोक सेवक को खो दिया. हम आज भी उनके योजनाबद्ध राम राज्य  से बहुत दूर हैं. हालांकि महात्मा गांधी के भौतिक शरीर नहीं है फिर भी उनके आदर्श भारतीय लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं. उनकी अहिंसक सोच और सिद्धांत, यथार्थवादी विचार और न्यायसंगत निर्णय आज भी भारत के लोगों को प्रेरित कर रहा है. अतिवादी राष्ट्रवाद और निम्न नस्लीय दृष्टिकोण गांधीवाद के विपरीत हैं. यदि हम सभी भारतीय सत्य और अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, तो गांधीजी की आत्मा को शांति मिलेगी.

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ये था हमारा लेख महात्मा गांधी की जीवनी (Biography of mahatma Gandhi in Hindi ). उम्मीद करता हूँ की आपको पसंद आया होगा. अगर आपको गांधीजी की बारे में और कुछ पता है, तो हमे comment करके बताएं. मिलते हैं.

1 thought on “महात्मा गांधी की जीवनी – Biography of mahatma Gandhi in Hindi”

Bohot lamba tha agee se please thora chota likhiyega .by the way thanks for your essay.

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Mahatma Gandhi Biography in Hindi

admin

अंग्रेजों से हमें 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली थी और दोस्तों देश को आजाद करने के लिए ना जाने कितने ही लोगों ने अपना जीवन तक न्योशावर कर दिया था उनमें से एक की चर्चा हम इस ब्लॉग में करेंगे यानि मोहन दस करमचंद गाँधी जी हां इस Mahatma Gandhi Biography in Hindi में हम आपको गाँधी जी के बारे में विस्तार पूर्वक बताते है तो आइये शुरू करते है

About mahatma Gandhi in Hindi

महात्मा गांधी (जन्म 2 अक्टूबर, 1869, पोरबंदर, भारत – मृत्यु 30 जनवरी, 1948, दिल्ली) भारतीय वकील, राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक जो भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्रवादी आंदोलन के नेता बने। इस प्रकार, उन्हें अपने देश का पिता माना जाने लगा। गांधीजी को राजनीतिक और सामाजिक प्रगति हासिल करने के लिए उनके अहिंसक विरोध (सत्याग्रह) सत्य ग्रह के लिए आदर दिया जाने लगा

Mahatma Gandhi family

बापू अपने परिवार में सबसे छोटे थे। उनकी एक बड़ी बहन रलियत और दो बड़े भाई लक्ष्मीदास और कृष्णदास थे। इसके अलावा दो ननदें नंदकुंवरबेन और गंगा भी थीं।

  • गांधीजी के परिवार में 4 बेटे और 13 पोते-पोतियां हैं। गांधी जी के परिवार की बात करें तो उनके पोते-पोतियां और उनके 154 वंशज आज 6 देशों में रह रहे हैं।
  • इनमें 12 डॉक्टर, 12 प्रोफेसर, 5 इंजीनियर, 4 वकील, 3 पत्रकार, 2 आईएएस, 1 वैज्ञानिक, 1 चार्टर्ड अकाउंटेंट, 5 प्राइवेट कंपनियों में अच्छे पदों पर कार्यरत हैं। इसके अलावा इस परिवार में 4 पीएचडी धारक भी हैं.
  • परिवार में लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक होती है।

-महात्मा गांधी को इस बात का भी अफसोस था कि उनकी कोई बेटी नहीं है। लेकिन उनकी पीढ़ी में बेटों से ज्यादा बेटियां हैं.

  • रामदास (परिवार में 19 सदस्य)
  • देवदास (परिवार में 28 सदस्य)
  • हरिलाल (परिवार में 68 सदस्य)
  • मणिलाल (परिवार में 39 सदस्य)

Speech on mahatma Gandhi

महात्मा गांधी उन राष्ट्रीय नेताओं में से एक थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी। दरअसल, वह वही व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी के लिए सफल अभियान का नेतृत्व किया था। गांधीजी कानून के छात्र थे, लेकिन उन्होंने अपना पेशा छोड़ दिया और अपने देश के लिए लड़ने का फैसला किया। उनके अनुसार, “आँख के बदले आँख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।” उन्होंने अहिंसा का पालन किया और माना कि हिंसा हर चीज़ का उत्तर नहीं है।

उन्होंने कहा, “खुद वह बदलाव बनें जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं”, और यही उन्होंने अपने जीवन में किया। यही बदलाव था. उन्होंने वही किया जो अपने साथी नागरिकों की स्वतंत्रता के लिए आवश्यक था और अपने जीवन की बिल्कुल भी परवाह नहीं की। उन्होंने कई आंदोलनों का नेतृत्व किया जिसके कारण उनकी गिरफ्तारी हुई और कई अन्य जीवन-घातक स्थितियाँ उत्पन्न हुईं।

Also read Rabindranath tagore biography in hindi

गांधी को एक कारण से ‘महात्मा’ कहा जाता था। अपने साथी भारतीयों की नजर में वह एक महान आत्मा थे। उनके निरंतर प्रयासों और दृढ़ता ने सभी नेताओं और लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़े होने के लिए एक साथ ला दिया। उन्होंने सभी को आश्वस्त किया कि, मिलकर, वे अपने देश को वापस जीत सकते हैं। ऐसे कई लोग हैं जिन्हें हम रोल मॉडल के रूप में देखते हैं

Why Nathuram Godse killed Mahatma Gandhi?

गोडसे का मानना था कि यदि गांधी और भारत सरकार ने पश्चिम और पूर्वी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों (हिंदुओं और सिखों) की हत्या को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया होता, तो विभाजन के कारण होने वाले नरसंहार और पीड़ा से बचा जा सकता था। गोडसे के अनुसार, गांधी ने अपराधों की निंदा नहीं की।

Mahatma Gandhi father name

गोडसे का मानना था कि यदि गांधी और भारत सरकार ने पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों (हिंदुओं और सिखों) की हत्या को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया होता, तो विभाजन के कारण होने वाले नरसंहार और पीड़ा से बचा जा सकता था। गोडसे के अनुसार गांधी ने अपराधों की निंदा नहीं की।

Mahatma Gandhi Jayanti

हैप्पी गांधी जयंती 2023: 2 अक्टूबर को, भारत गांधी जयंती मनाता है, जो उस व्यक्ति की जयंती है जो देश के स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख खिलाड़ी और अहिंसा और शांति का एक सार्वभौमिक प्रतीक था। यह गंभीर आयोजन न्याय, सत्य और सविनय अवज्ञा के मुद्दों में उनके स्थायी योगदान का सम्मान करता है। भारतीय इस दिन प्रार्थना सभाओं में भाग लेकर, अहिंसक विरोध प्रदर्शनों में भाग लेकर और उनके दर्शन के बारे में बात करके गांधीजी का सम्मान करते हैं। यह भारतीय इतिहास में उनके महत्वपूर्ण योगदान और उनके शाश्वत अहिंसक संदेश की याद दिलाता है, जो दुनिया भर में शांति, न्याय और समानता के लिए आंदोलनों को प्रेरित करता रहता है। गांधी जयंती उनके आदर्शों पर विचार करने और एक अधिक समतापूर्ण समाज बनाने के संकल्प का दिन है।

Mahatma Gandhi history in Hindi

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को भारत के पश्चिमी तट पर एक तटीय शहर पोरबंदर में हुआ था। पोरबंदर उस समय काठियावाड़ के कई छोटे राज्यों में से एक था, जो ब्रिटिश भारत के बॉम्बे प्रेसीडेंसी के तहत एक छोटी रियासत थी। उनका जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था।

Mahatma Gandhi ke Rajnitik guru Kaun the

गांधीजी गोखले का बहुत सम्मान करते थे और वे उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। वह अक्सर कहते थे कि गोखले ने उन्हें राजनीति का सही अर्थ सिखाया है। 1915 में गोखले की मृत्यु हो गई, लेकिन गांधीजी पर उनका प्रभाव जारी रहा। गांधीजी बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेता और राष्ट्रपिता बने।27 सितंबर 2023

Mahatma Gandhi Books

महात्मा गाँधी द्वारा लिखी गई कुछ पुस्तक के नाम कुछ इस प्रकार निम्नलिखित है

  • हिंद स्वराज या भारतीय स्वायत्तता
  • सत्य ही ईश्वर है
  • मेरे सपनों का भारत
  • कानून और वकील
  • गोखले: मेरे राजनीतिक गुरु
  • भोजन एवं आहार में सुधार.
  • दक्षिण अफ़्रीका में सत्याग्रह
  • आश्रम की रस्में पूरी हुईं

प्रश्न: हमारे राष्ट्र के पिता कौन हैं? उत्तर: मोहनदास करमचंद गांधी

प्रश्न: महात्मा गांधी बच्चों को हस्तशिल्प क्यों सिखाना चाहते थे? उत्तर: उनकी दिमागी शक्ति को बढ़ाने के लिए

प्रश्न: महात्मा गांधी की मृत्यु कैसे हुई? उत्तर: नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी।

प्रश्न: महात्मा गांधी का जन्म कहाँ हुआ था? उत्तर पोरबंदर

प्रश्न: गांधीजी कितने वर्ष जीवित रहे? उत्तर : 79 वर्ष

प्रश्न: महात्मा गांधी के कितने पुत्र थे? उत्तर-4 पुत्र

प्रश्न: गांधीजी के पिता की कितनी पत्नियाँ थीं? उत्तर- 4 पत्नियाँ

प्रश्न: महात्मा गांधी की माता का क्या नाम है? उत्तर: पुतली बाई गांधी

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महात्मा गांधी की जीवनी इन हिंदी (गांधी जी का जीवन परिचय हिंदी में) - Biography Of Mahatma Gandhi In Hindi) - Mahatma Gandhi Biography In Hindi

महात्मा गांधी की जीवनी इन हिंदी (गांधी जी का जीवन परिचय हिंदी में) – Biography Of Mahatma Gandhi In Hindi)

Mahatma Gandhi Biography In Hindi – महात्मा गांधी भारत देश के इतिहास में एक ऐसे इंसान हैं जिन्होंने देशहित के लिए आखरी सांस तक लड़ाई करी। वे स्वतंत्रता के आंदोलन में ऐसे नेता थे जिन्होंने अहिंसा के रास्ते पर चलकर अंग्रेजी शासकों के नाक में दम कर दिया था।

गांधी जी को राष्ट्रपिता के नाम से भी याद किया जाता है। जिनकी सत्य एवं अहिंसा की विचारधारा से मार्टिन लूथर किंग एवं नेलसन मंडेला भी बहुत प्रभावित थे। महात्मा गांधी ने अफ्रीका में रहते हुए भी लगातार 21 सालों तक अन्याय तथा नस्लीभेद टिप्पणी के विरुद्ध अहिंसक रहकर संघर्ष किया, यह अंग्रेजों को अफ्रीका में ही नहीं बल्कि भारत में भी महंगा पड़ गया था।

आज इस लेख के द्वारा हम आपको महात्मा गाँधी की सम्पूर्ण जीवनी बताएगे। तो चलिए जानते है गाँधी जी के बारे में महात्मा गांधी जी का जीवन परिचय हिंदी में (Mahatma Gandhi Ji Ka Jivan Parichay Hindi Mein)

महात्मा गांधी की जीवनी इन हिंदी (Mahatma Gandhi Ki Jivani In Hindi)

हात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर वर्ष 1869 में गुजरात के पोरबंदर शहर में हिन्दू परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतलीबाई था | महात्मा गाँधी का नाम इनके माता पिता ने मोहनदास रखा था, इसलिए इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी बना।

महात्मा गांधी की मां बहुत धार्मिक महिला थी, इसलिए उनका पालन-पोषण वैष्णव मत को मानने वाले परिजनों में हुआ और उन पर जैन धर्म का भी अत्यधिक प्रभाव रहा। इसी कारण से महात्मा गाँधी ने मुख्य सिद्धांतों जैसे- अहिंसा, आत्मशुद्ध तथा शाकाहार को खुद के जीवन में उतारा था।

गांधीजी शिक्षा के दृष्टिकोण से एक औसत दर्जे के छात्र रहे, किन्तु समय-समय पर उनको पुरस्कार और छात्रवृतियां भी मिलीं। वे अंग्रेजी विषय में बहुत होनहार थे, किन्तु भूगोल जैसे विषयों की पढ़ाई में थोड़े कमजोर थे। अंक गणित की पढ़ाई में औसत छात्र थे और लिखावट के मामले में भी ज्यादा अच्छे नहीं थे।

हालांकि गांधी जी, अपने मां बाप की सेवा, घर के कामों में मां का सहयोग करना , आज्ञा मानना , सैर पर जाना, यह सब किया करते थे किन्तु आपको यह जानकर आश्चर्य होगा के महात्मा गांधी ने अपने जीवन के विद्रोह के वक्त में गुप्त नास्तिकवाद को भी अपनाया, धूम्रपान तथा मांस आहार का सेवन भी किया। किन्तु उसके पश्चात् उन्होंने इन सभी चीजों को जीवन में कभी न दोहराने का दृढ़ संकल्प कर वापस कभी नहीं दोहराया। गांधी जी ने प्रहृलाद और राजा हरिश्चंद्र को आदर्श के रूप माना।

महात्मा गांधी की शादी केवल 13 साल की आयु में ही कर दी थी । जब वे विद्यालय में पढ़ते थे, उसी समय पोरबंदर के एक व्यापारी की बेटी कस्तूरबा माखनजी से उनकी शादी हुई और केवल 15 साल की उम्र में गांधी जी एक बेटे के पिता बन गए। किन्तु वह बेटा जीवित न रह सका। इस तरह गांधी जी के कुल चार बेटे हरिलाल, मनिलाल, रामदास तथा देवदास हुए।

विवाह के बाद और विद्यालय का जीवन ख़त्म होने पर मुंबई के एक महाविद्यालय में कुछ दिन पढ़ने के पश्चात् वे लंदन चले गए और उनकी आगे की पढ़ाई लंदन में हुई। 3 साल की पढ़ाई के पश्चात् वे बैरिस्टर बने।

वर्ष 1914 में गांधी जी भारत वापस आए। देश की जनता ने उनका भव्य स्वागत किया तथा उन्हें महात्मा बोलना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने आगे के चार साल भारत की स्थिति का अध्ययन करने एवं उन लोगों को तैयार करने में लगाए जो सत्याग्रह के द्वारा भारत में चल रही सामाजिक व राजनीतिक बुराइयों को समाप्त करने में उनका सहयोग दे सकें।

इस सफलता से प्रेरणा प्राप्त करके महात्मा गांधी ने भारत देश की आजादी के लिए किए जाने वाले दूसरे अभियानों में सत्याग्रह तथा अहिंसा के विरोध जारी रखे, जैसे कि असहयोग आंदोलन,सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी मार्च एवं भारत छोड़ो आंदोलन । गांधी जी की इन सभी कोशिशों से भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिल गई। ऐसी महान आत्मा महात्मा गांधी की 30 जनवरी, 1948 को नई दिल्ली के बिड़ला भवन पर नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर डाली।

महात्मा गांधी के पहले भी शांति और अहिंसा की के विषय में जनता जानती थी , किन्तु उन्होंने जिस तरीके से सत्याग्रह, शांति व अहिंसा के मार्ग पर चलकर अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश कर दिया, ऐसा कोई दूसरा उदाहरण दुनिया के इतिहास में देखने को नहीं मिला।उनकी यह यात्रा अहिंसा आंदोलन से शुरू हुई तथा उनके राष्ट्रपिता बनने तक चलती रही और उनके सम्पूर्ण जीवन में चलती रही।

सारांश (Summary)

अब हमे उम्मीद है आपको यह लेख महात्मा गांधी की जीवनी इन हिंदी (गांधी जी का जीवन परिचय हिंदी में) – Biography Of Mahatma Gandhi In Hindi अच्छा लगा होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है तो इसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर शेयर करे।

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Mahatma Gandhi Biography in Hindi | महात्मा गांधी जीवन परिचय

महात्मा गांधी

महात्मा गांधी से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ

  • क्या महात्मा गांधी धूम्रपान करते हैं ? नहीं (युवावस्था में करते थे)
  • क्या महात्मा गांधी शराब पीते हैं ? नहीं
  • मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म पश्चिमी भारत में गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर (जिसे सुदामापुरी के नाम से भी जाना जाता है) नामक स्थान पर एक हिंदू मोध बनिये के परिवार में हुआ था।
  • उनके पिता करमचंद गांधी की शैक्षणिक योग्यता सिर्फ प्राथमिक स्तर की थी। फिर भी वह पोरबंदर राज्य के एक कुशल मुख्यमंत्री रहे। पहले, उन्हें राज्य प्रशासन में क्लर्क के रूप में तैनात किया गया था।
  • पोरबंदर के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, करमचंद ने 4 बार शादी की (पहली दो पत्नियों की मृत्यु 1-1 पुत्री को जन्म देने के बाद हो गई थी) करमचंद की तीसरी शादी से कोई संतान नहीं हुई। इसके बाद 1857 में, करमचंद का चौथा विवाह पुतलीबाई (1841-1891) के साथ हुआ।
  • महात्मा गांधी जी की मां, पुतलीबाई, जुनागढ़ के प्रणामी वैष्णव परिवार से थीं।
  • मोहनदास (महात्मा गांधी) के जन्म से पहले करमचंद और पुतलीबाई के तीन बच्चे थे – बेटा लक्ष्मीदास (1860-1914), बेटी रालियताबेन (1862-1960) और एक बेटा करनदास (1866-1913) ।
  • 2 अक्टूबर 1869 को, पोरबंदर के एक बिना खिड़की वाले अंधेरे कमरे में, पुतलीबाई ने अपनी अंतिम संतान मोहनदास (महात्मा गांधी) को जन्म दिया।
  • गांधी जी की बहन के अनुसार, “गांधी शांत स्वभाव के व्यक्ति थे, उन्हें घूमना बहुत पसंद था, और अपने खाली समय में वह कुत्तों के कानों के साथ खेलते थे।”
  • राजा हरिश्चंद्र और श्रवण कुमार की पारंपरिक भारतीय कहानियों का गांधीजी के बचपन पर काफी प्रभाव पड़ा। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि, “मैंने बचपन से ही हरिश्चंद्र के व्यक्तित्व को अपने जीवन में ढाला है, और इन कहानियों से ही मैंने सच्चाई, प्रेम और बलिदान की प्रेरणा प्राप्त की है।”
  • महात्मा गांधी की मां एक पवित्र महिला थीं, वह अपनी माँ से बहुत प्रभावित थे। वह दैनिक प्रार्थनाओं के बिना कभी भी भोजन ग्रहण नहीं करती थीं और लगातार दो तीन उपवास रखना उनके लिए सामान्य था। शायद, उनकी मां के यही गुण थे जिन्होंने गांधी जी को लंबे समय तक उपवास के लिए प्रेरित किया था।
  • वर्ष 1874 में, उनके पिता करमचंद ने पोरबंदर को छोड़ दिया और राजकोट में उन्हें शासक (ठाकुर साहिब) के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया।
  • 9 वर्ष की आयु में, उन्होंने राजकोट में अपने घर के पास एक स्थानीय स्कूल में प्रवेश लिया।

 महात्मा गांधी बाल्यावस्था में

  • हाई स्कूल के दौरान उनकी दोस्ती एक मुस्लिम लड़के से हुई , जिसका नाम शेख मेहताब था। शेख मेहताब का व्यक्तित्व काफी आश्चर्यजनक था। एक दिन शेख मेहताब ने मोहनदास को ऊंचाई बढ़ाने के लिए मांस के सेवन के लिए आग्रह किया और उन्हें वेश्यालय ले गया। वह दिन मोहनदास के लिए काफी परेशानी भरा रहा। जिसके चलते मोहनदास का मेहताब के साथ अनुभव अच्छा नहीं रहा और परिणामस्वरूप उन्होंने मेहताब की संगति से दरकिनार कर लिया।
  • मई 1883 में, महज 13 साल की उम्र में उनका विवाह 14 वर्षीय कस्तूरबा माखनजी कपाड़िया (जिन्हें कस्तुरबा और बा कहकर भी पुकारा जाता था) से हुआ। अपने विवाह के दिन को याद करते हुए महात्मा गांधी जी ने कहा कि,” मुझे शादी के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था, हमारे लिए शादी का मतलब सिर्फ नए कपड़े पहनना, मिठाई खाना और रिश्तेदारों के साथ मौज – मस्ती करना है।” उन्होंने खेद प्रकट करते हुए कहा कि अपनी पत्नी के प्रति उनके अंदर वासना की भावनाएं भी उत्पन्न होती थीं।
  • वर्ष 1885 में, उनके पिता का निधन हो गया, उस समय महात्मा गांधी 16 वर्ष के थे और उसी वर्ष, उनके पहले बच्चे की भी मृत्यु हो गई थी, वह बच्चा कुछ ही दिन जीवत रहा था। बाद में, उनके घर चार बच्चों का जन्म हुआ : हरिलाल (जन्म तिथि 1888), मणिलाल (जन्म तिथि 1892), रामदास (जन्म तिथि 1897), और देवदास (जन्म तिथि 1900)।
  • नवंबर 1887 में, महज 18 साल की उम्र में, उन्होंने अहमदाबाद के हाई स्कूल से स्नातक की डिग्री हासिल की।

युवा महात्मा गांधी

  • 10 अगस्त 1888 को, माविजी दवे जोशीजी (एक ब्राह्मण पुजारी और परिवार मित्र) की सलाह पर, मोहनदास ने लंदन में लॉ स्टडीज के उद्देश्य से पोरबंदर को छोड़ दिया और बॉम्बे चले गए। लोगों ने उन्हें चेतावनी दी कि इंग्लैंड में उन्हें मांस खाने और शराब पीने के लिए उकसाया जाएगा, गांधी जी ने अपनी मां को एक वचन दिया, कि वह शराब, मांस और महिलाओं से दूर रहेंगे।
  • 4 सितंबर 1888 को, वह मुंबई से लंदन के लिए रवाना हुए।
  • महात्मा गांधी जी ने बैरिस्टर बनने के लिए, उन्होंने लंदन स्थित इनर टेम्प्लेट (Inner Temple) में दाखिला लिया और वहां कानून और न्यायशास्त्र का अध्ययन किया। गांधी जी का बचपन वाला शर्मीलापन लंदन में भी जारी रहा। हालांकि, उन्होंने धीरे-धीरे लंदन में पाश्चात्य संस्कृति को अपनाना शुरू कर दिया था जैसे :- अंग्रेजी बोलना, क्लबों में जाना, पाश्चात्य नृत्य सीखना इत्यादि।

महात्मा गांधी "शाकाहारी सभा" के सद्स्य के रूप में

  • 12 जनवरी 1891 को, उन्होंने कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की।

महात्मा गांधी लंदन में

  • भारत लौटने पर गांधी जी की मुलाकात रायचंदभाई (जिन्हे गांधीजी के गुरु के रूप में जाना जाता है) से हुई।
  • मोहनदास गांधी ने बॉम्बे से कानून का अभ्यास करना प्रारंम्भ किया, हालांकि उनमे गवाहों की पारस्परिक जाँच के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से रणनीति का अभाव था। जिसके कारण वह राजकोट लौट आए। जहां उन्होंने दावेदारों के लिए याचिकाओं का प्रारूप तैयार करके मामूली जीवन जीना शुरू किया। हालांकि, एक ब्रिटिश अधिकारी के साथ विवाद होने के कारण उन्हें अपने काम को बीच में ही बंद करना पड़ा।
  • वर्ष 1893 में, मोहनदास गांधी की मुलाकात एक मुस्लिम व्यापारी दादा अब्दुल्ला से हुई। जिसका दक्षिण अफ्रीका में बहुत बड़ा पोत परिवहन (shipping) का व्यापार था। अब्दुल्ला का चचेरा भाई जोहान्सबर्ग में रहता था, जिसे एक वकील की जरुरत थी। अब्दुल्ला ने उन्हें लगभग 9000 रुपए और अधिक यात्रा खर्च देने पेशकश की, जिसे उन्होंने खुशी से स्वीकार किया।
  • अप्रैल 1893 में, 23 साल की उम्र में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका (जहां उन्होंने 21 साल बिताते हुए, अपने नैतिक मूल्यों और राजनीतिक विचारों को विकसित किया) की यात्रा पर गए।

महात्मा गांधी पीटरमरेट्ज़बर्ग स्टेशन

  • मई 1894 में वह अब्दुल्ला केस के फैसले के लिए दक्षिण अफ्रीका आए।

महात्मा गांधी नटल भारतीय कांग्रेस के संस्थापक

  • 9 जनवरी 1915 को गांधी जी भारत लौटे और वर्ष 2003 से वह दिन (9 जनवरी 1915) भारत में प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

महात्मा गांधी (बाएं) गोपाल कृष्ण गोखले के साथ

  • वर्ष 1918 में, “खेड़ा सत्याग्रह” गुजरात के खेड़ा जिले में ब्रिटिश सरकार के द्वारा किसानों पर कर-वसूली के विरुद्ध एक सत्याग्रह हुआ। यह महात्मा गांधी की प्रेरणा के आधार पर वल्लभ भाई पटेल एवं अन्य नेताओं की अगुवाई में हुआ था। इस सत्याग्रह के फलस्वरूप गुजरात के जनजीवन में एक नया तेज और उत्साह उत्पन्न हुआ। यह सत्याग्रह यद्यपि साधारण सा था परन्तु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में इसका महत्व चंपारन के सत्याग्रह से कम नहीं था।

गांधी जी के संपादन में "यंग इंडिया" समाचार पत्र

  • वर्ष 1919 में, प्रथम विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद, महात्मा गांधी ने तुर्क साम्राज्य का समर्थन किया और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई में मुसलमानों से राजनीतिक सहयोग मांगा।
  • वर्ष 1920-1921 के दौरान, गांधी जी ने खिलाफत और गैर-सहकारिता आंदोलन का नेतृत्व किया।
  • फरवरी 1922 में, चौरी-चौरा घटना के बाद, गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।

महात्मा गांधी यरवदा जेल में

  • 12 मार्च 1930 को, उन्होंने प्रसिद्ध दांडी मार्च आंदोलन (अहमदाबाद से दांडी तक 388 किलोमीटर) की शुरुआत की। यह आंदोलन नमक कानून तोड़ने के लिए शुरू किया गया था।

महात्मा गांधी के नाम से टाइम पत्रिका

  • विंस्टन चर्चिल (तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री) महात्मा गांधी जी के कट्टर आलोचक थे और उन्होंने गांधी जी को एक तानाशाह एवं एक हिन्दू मुसोलिनी की संज्ञा दी।

  • 28 अक्टूबर 1934 को उन्होंने कांग्रेस पार्टी से सन्यास लेने की घोषणा की।
  • वर्ष 1936 में, महात्मा गांधी ने वर्धा में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना की।

महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू के साथ

  • 8 मार्च 1942 को, बॉम्बे की अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को संबोधित करते हुए, गांधी जी ने अपना प्रसिद्ध उद्धरण कहा,”भारतीयों करो या मरो”।

 महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी का पार्थिव शरीर

  • वर्ष 1948 में, महात्मा गांधी ने धर्म के आधार पर भारत के विभाजन का विरोध किया।
  • 30 जनवरी 1948 के दिन शाम को महात्मा गांधी जी जब बिरला हाउस (गांधी स्मृति स्थल) में प्रार्थना करने जा रहे थे, उसी समय दक्षिण पंथ के एक कट्टरवादी व्यक्ति – नाथूराम विनायक गोडसे ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी।

  • वर्ष 1994 में, जब काले दक्षिण अफ्रीकीयों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ, तब गांधी जी को राष्ट्र नायक घोषित किया गया और तब उनके कई स्मारक बनाए गए।

 महात्मा गांधी और नोबेल पुरस्कार

  • Richard Attenborough की फिल्म “Gandhi 1982” को सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।

  • सम्पूर्ण भारत उन्हें “राष्ट्र के पिता” के रूप में वर्णित करता है, लेकिन भारत सरकार द्वारा उन्हें आधिकारिक रूप से यह शीर्षक नहीं दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक, 6 जुलाई 1944 को सुभाष चंद्र बोस ने एक रेडियो एड्रेस में (सिंगापुर रेडियो पर) पहली बार इस शीर्षक “राष्ट्रपिता” का इस्तेमाल किया था।

गांधी श्रृंखला बैंक नोट

  • वर्ष 2006 में आई बॉलीवुड कॉमेडी फिल्म “लगे रहो मुन्ना भाई (2006)” में महात्मा गांधी जी के सिद्धांतों को प्रदर्शित किया गया।
  • वर्ष 2007 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने 2 अक्टूबर (गांधी के जन्मदिन) को ‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया।

Rohit Sharma Biography in Hindi | रोहित शर्मा जीवन परिचय

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महात्मा गांधी का जीवन परिचय | Mahatma Gandhi Biography in Hindi

महात्मा गांधी का जीवन परिचय | mahatma gandhi biography in hindi | mahatma gandhi ki jivani | महात्मा गांधी का जन्म, मृत्यु, पिता का नाम, माता का नाम, बेटों के नाम, बेटी का नाम.

भारत को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने में महात्मा गांधी का अहम योगदान था। वे सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक थे। विभिन्न जाति और धर्म वाले भारत की जनता में एकता स्थापित करने तथा उनमें राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न करने में महात्मा गांधी की एक महत्वपूर्ण भूमिका थी। वे मरते दम तक हिंदू मुस्लिम एकता की कोशिश करते रहे। सत्य और अहिंसा का समर्थक होने के कारण ही उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई थी। भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने में उनकी अहम भूमिका को देखते हुए उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि दी गई थी। इस पोस्ट में हम महात्मा गांधी की जीवनी तथा इनका स्वतंत्रता आंदोलन में क्या-क्या योगदान रहा, पढ़ेंगे। इसमें हम यह भी पढ़ेंगे कि इनकी छूत वर्गों (non-touchable classes) के प्रति क्या सोच थी तथा इनके  बी आर अंबेडकर के साथ संबंध कैसे थे।

महात्मा गांधी का पारिवारिक परिचय

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 ईस्वी में गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। यह एक बनिया परिवार से संबंध रखते थे। इनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर, राजकोट और कुछ काठियावाड़ी राज्यों के दीवान थे। इनकी माता पुतलीबाई एक कट्टर धार्मिक महिला थी। महात्मा गांधी के ऊपर उनकी माता का बहुत प्रभाव था। 13 वर्ष की आयु में इनका विवाह कस्तूरबा गांधी के साथ हो गया। विवाह के समय कस्तूरबा गांधी की आयु 14 वर्ष थी। महात्मा गांधी के चार पुत्र थे – हरिलाल, मणिलाल, देवदास, रामदास। इनकी कोई बेटी नहीं थी।

शैक्षिक परिचय

महात्मा गांधी की प्रारंभिक शिक्षा काठियावाड़ के हाई स्कूल में हुई। नवंबर 1987 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। जनवरी 1988 में उन्होंने भावनगर के सामल दास कॉलेज में एडमिशन लिया और अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई कंप्लीट की। उच्च शिक्षा के लिए लंदन और इनर टेंपल गए। लंदन में उन्होंने बैरिस्टर की डिग्री हासिल की। लंदन से वापस आने के बाद उन्होंने मुंबई हाईकोर्ट में वकालत करना शुरू किया। क्वकालत के दौरान अपने मिशन के लिए वह नटाल और तत्पश्चात ट्रांसवाल सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने के लिए प्रवेश लिया और वहीं पर बसने का इरादा किया।

महात्मा गांधी का दक्षिण अफ्रीका प्रस्थान

ब्रिटेन में कानून की शिक्षा लेने के बाद में महात्मा गांधी वकालत करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए। दक्षिण अफ्रीका के विभिन्न ब्रिटिश उपनिवेशों में भारतीयों की स्थिति ठीक नहीं थी। उन्हें नस्लवाद ,भेदभाव, और हीन भावना का शिकार होना पड़ता था तथा  अफ्रीकी  व अश्वेत एशियाई लोगों के साथ में गंदी बस्तियों में रहना पड़ता था। उन्हें 9:00 PM बजे के बाद घर से निकलने की अनुमति नही थी। उन्हें सार्वजनिक फुटपाथ पर भी चलने की अनुमति नहीं थी।

उन्होंने सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह चलाएं तथा नस्लवादी अधिकारियों के विरुद्ध संघर्ष किया। ट्रांसवाल सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी के रूप में नामित होने के बाद ट्रांसवाल ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की महात्मा गांधी ने नीव डाली। वे इस संगठन के सेक्रेटरी और मुख्य कानूनी सलाहकार बने। वर्ष 1903 में इंडियन ओपिनियन और फिनिक्स बस्ती की नई डाली। 1906 में स्ट्रेचर वाही कोर का नेतृत्व किया। एशियाई विरोधी कानून, 1906 के विरोध में आंदोलन किया। अधिनियम वापसी के बारे में प्रतिनिधित्व मॉडल में इंग्लैंड गए।

अफ्रीका में सविनय अवज्ञा आंदोलन

एक्ट के विरोध में सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया। जनरल स्मार्ट्स और गांधी के मंदिर वार्ता हुई और समझौता हुआ। बाद में स्मार्ट्स ने समझौते को ना मंजूर कर दिया और कानून वापस लेने के वायदे से मुकर गये। सविनय अवज्ञा आंदोलन को पुन चालू किया। कानून तोड़ने के अपराध में इन्हें दो बार बंदी बनाया गया। वर्ष 1909 में पुणे इंग्लैंड में ब्रिटिश जनता के समक्ष भारतीय पक्ष प्रस्तुत करने गए। ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा और उनके साथ समझौता करना पड़ा।  इस प्रकार उन्होंने  अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों को की रक्षा की।  महात्मा गांधी 1894 से लेकर 1915 तक दक्षिण अफ्रीका में रहे।

महात्मा गांधी का भारत में आगमन

गांधीजी 40 वर्ष की आयु में 1915 में भारत लौटे। पूरे 1 वर्ष तक उन्होंने देश का भ्रमण किया और भारतीय जनता की दशा को समझा। फिर उन्होंने 1916 में अहमदाबाद के पास साबरमती आश्रम की स्थापना की। उनके मित्रों और अनुयायियों ने वहां रहकर सत्य तथा अहिंसा को समझा  तथा इसका प्रयोग भी करना शुरू किया।

उनके द्वारा चलाए गए आंदोलन

महात्मा गांधी ने भारत में आकर सर्वप्रथम अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की। सन 1917 में चंपारण की खेती और श्रमिकों की समस्या को हल किया। 1918 में खेड़ा अकाल और अहमदाबाद में मिल हड़ताल की समस्या के समाधान में मदद की और कार्यकर्ता भर्ती अभियान चलाया। सन 1919 में रोलर एक्ट के खिलाफ आंदोलन में भाग लिया। जब वे दिल्ली जा रहे थे तो रास्ते में कोसी में गिरफ्तार कर लिये गए । उन्हे मुंबई वापस भेज दिया गया।

सन 1919 में ही पंजाब में अशांति फैली और पंजाब की जनता के ऊपर  ब्रिटिश अधिकारियों के द्वारा  अत्याचार किया गया। इसकी जांच करने के लिए कांग्रेस के द्वारा एक कमेटी बनायी गयी। इस कमेटी के वे सदस्य बनाए गए । खिलाफत आंदोलन में भाग लिया। 1920 में असहयोग आंदोलन आरंभ किया। 1921 में लोर्ड रीडिंग के साथ साक्षात्कार हुआ। सन 1921 में हुए कांग्रेस अधिवेशन में मुख्य कार्य संचालक बनाए गए। 1922 में चोरी चोरा आंदोलन के कारण सविनय होगा आंदोलन स्थगित कर दिया। मार्च 10 1922 गिरफ्तार हुए और 6 वर्ष के साधारण कारावास की सजा हुई।

महात्मा गांधी का चंपारण सत्याग्रह

गांधी जी ने अपनी सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग भारत में 1917 में किया। ब्रिटिश अधिकारी किसानों से जबरदस्ती नील की खेती कराते थे तथा किसानों को अपनी उपज कम दामों पर बेचने के के लिए विवश करते थे। अंग्रेज अधिकारियों के ऐसे रूपों के चलते किसान बहुत परेशान थे। महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत में लौटने पर किसानों ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह के बारे में सुना था। किसान अपनी समस्या को लेकर महात्मा गांधी के पास पहुंचे। महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन में उन्हें सफलता मिली। यह ‘महात्मा गांधी का जीवन परिचय’ में उनका प्रथम आन्दोलन है।

अहमदाबाद में मजदूरों की हड़ताल

1917 में अहमदाबाद के मील मालिकों तथा श्रमिकों के बीच में विवाद चल रहा था। मजदूर मालिकों से अपनी मजदूरी बढ़ाने के लिए कह रहे थे। लेकिन मील मलिक उनकी मजदूरी नहीं बढ़ा रहे थे।  मजदूर लोग महात्मा गांधी के पास गए। महात्मा गांधी ने उन्हें राय दी कि वें 35% वृद्धि के लिए मांग करें और हड़ताल पर चले जाए और याद रखें कि हड़ताल के दौरान मिल मालिकों के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा न हो। महात्मा गांधी जी ने उनका साथ देने के लिए आमरण अनशन किया। मील मालिकों पर प्रेशर पड़ने पर उन्होंने श्रमिकों की मजदूरी में 35% की वृद्धि की। इस प्रकार यह महात्मा गांधी के सत्याग्रह की दूसरी सफलता थी। यह ‘महात्मा गाँधी का जीवन परिचय’ में उनका द्वितीय आन्दोलन है।

खेड़ा सत्याग्रह

1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में बाढ़ के कारण किसानों की फसले बर्बाद हो गई। वें लगान देने के में अक्षम हो गए। लेकिन सरकार उनसे किसी भी हालत में लगान वसूल करना चाहती थी। महात्मा गांधी ने उन किसानों की मदद की और उन्हें सत्याग्रह करने के लिए कहा। लेकिन बाद में जब पता चला कि सरकार उन्ही किसानों से लगन दे रही है जों इसके सक्षम हैं। यह जानने के बाद महात्मा गांधी ने इस सत्याग्रह को वापस ले लिया। इसी सत्याग्रह में वल्लभभाई पटेल उनके अनुयाई बने।

रोलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह

अंग्रेजी सरकार ने रोलेट एक्ट बनाया जिसके अनुसार पुलिस शक के आधार पर बिना मुकदमा चलाएं किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती थी और जेल में बंद कर सकती थी। इस एक्ट का सभी राष्ट्रवादियों ने विरोध किया। महात्मा गांधी ने भी इसका विरोध किया। उन्होंने एक सत्याग्रह सभा बनाई। इसके सदस्य को इस कानून का पालन न करने की राय दी गई। सभी सदस्यों को गांव-गांव में जाकर राष्ट्रवाद का प्रचार करने के लिए कहा गया। महात्मा गांधी के आह्वान पर 1919 में मार्च और अप्रैल महीना में देशभर से लोग इस आन्दोलन में कूद पड़े। पूरा देश एक नए जोश से गया। लोग सड़कों पर निकल पड़े और प्रदर्शन करने लगे। हिंदू मुस्लिम एकता के नारे लगने लगे। भारतीय जनता विदेशी शासन के अपमान को और अधिक सहन नहीं करना चाहती थी।

जलियांवाला बाग

रॉलेट एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी जी ने 6 अप्रैल 1919 को  एक व्यापक हड़ताल का आह्वान किया था।  इस आह्वान के परिणामस्वरूप उमड़े जन सैलाब को दबाने के लिए अंग्रेजी सरकार ने दमन की नीति अपनाई। देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शनकारियों पर लाठियां बजाई गई। अपने प्रिय नेता सैफुद्दीन किचलू और डॉक्टर सत्यपाल की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल 1919 को  भारी भीड़ जलियांवाला बाग में इकट्ठी हुई थी। यह बाग तीन ओर से मकान से गिरा हुआ है और इसमें बाहर निकलने का रास्ता भी एक ही है। अमृतसर के फौजी कमांडर जनरल डायर ने जलियांवाला बाग का मुख्य द्वार बंद कर कराकर निहत्थी जनता पर गोली चलवा दी। जनता के ऊपर मशीन गन से गोलियां बरसाई गई। इधर-उधर भागती हुई जनता को कोड़ों से से पीटा गया। इस घटना के बाद पूरे पंजाब में मार्शल ला लगा दिया गया।

खिलाफत आन्दोलन

शब्द खिलाफत का अर्थ विरोध करना होता है। यह आन्दोलन अंग्रेजों का विरोध करने तथा खलीफा को पुनः उनका पद दिलाने के लिए हुआ था।  खलीफा ऑटोमन साम्राज्य ( तुर्की साम्राज्य)  का सुल्तान होता था।  यह पद विश्वभर के मुसलमानों के लिए उच्चतम राजनातिक तथा आध्यात्मिक पद होता था। 1914 से 1918 तक प्रथम विश्न युद्ध हुआ। इसमे एक तरफ मित्र राष्ट (ब्रिटेन, फ्रास आदि) थे और  दूसरी तरफ सेन्टृल पॉवर ( ऑस्टृिया और हंगरी, जर्मनी, ट्रकी साम्राज्य)। ट्रकी का सुल्तान जर्मनी का साथ दे रहा था।

युद्ध के समय ट्रकी की जनता का साथ लेने के लिए अंग्रेजों ने घोषणा की कि इस विश्व  युद्ध के बाद ट्रकी से बदला नही लिया जायेगा और वे ट्रकी साम्राज्य को भी छिन्न-भिन्न नही होने देंगे। 28 जून, 1919 को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर के साथ प्रथम विश्व युद्ध आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया।

लेकिन इस युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकारअपने वायदों को भूल गई। उन्होंने वर्साय की संधि के अनुसार टर्की के सुल्तान को बंदी बना लिया। तुर्की के साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया। ब्रिटिश सरकार के इस विश्वासघास के करण दुनिया भर के मुसलमान नाराज हो गए। उन सब ने अंग्रेजों का विरोध करना शुरू कर दिया।

भारत में खिलाफत आन्दोलन

भारत में भी मुसलमानों ने अंग्रेजों का विरोध करना शुरू कर दिया। खलीफा के पद को बनाये रखने के लिए तथा अंग्रेजों के विरोध करने के लिए भारत में जो आंदोलन हुआ, उसे खिलाफत आन्दोलन कहा गया।

खिलाफत आन्दोलन  को संचारित करने के लिए  1919 में एक खिलाफत कमेटी बनायी गयी। इस कमेटी के सदस्य थे-  मौहम्मद अली, शौकत अली, हकीम अजमल खान, हजरत मोहानी और मौलाना अब्दुल कलाम अजाद। इस आन्दोलन के लिए दिल्ली में अखिल भारतीय सम्मेलन किया गया। महात्मा गांधी को इस सम्मेलन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। महात्मा गाँधी ने हिन्दू मुस्लिम एकता को स्थापित करने के लिए  इस आन्दोलन की अध्यक्षता को स्वीकार किया।

1922 में तुर्की  के लोगों के द्वारा युवा नेता मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृव्य में खलीफा को उसके पद से पूर्णतया हटा दिया गया। इसके साथ ही भारत में भी यह आन्दोलन बन्द हो गया। अप्रत्यक्ष रूप से यह आन्दोलन अपने उद्देश्य को प्राप्त नही कर सका लेकिन भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता को स्थापित करने तथा राष्ट्रवाद को बढ़ाने में यह आन्दोलन सफल हुआ।

असहयोग आन्दोलन

महात्मा गांधी का यह प्रथम महत्वपूर्ण  राष्ट्रव्यापी आन्दोलन था। पंजाब में अंग्रेजों के द्वारा जनता पर किया जाने वाला अत्याचार, माण्ट-फोर्ड सुधार, रौलेट एक्ट, जलियावाला बाग जैसी घटनाओं ने भारतीय जनता के मन में अत्यधिक रोष उत्पन्न कर दिया था। महात्मा गाँधी ने प्रथम विश्व यूद्ध के दौरान अंग्रेजों के साथ सहयोग किया था। इस सहयोग के लिए उन्हे केसर-ए-हिन्द की उपाधि से सम्मानित किया गया था। लेकिन इन उपरोक्त घटनाओं को देखकर अंग्रेजों को वे शैतान कहने लगे। देश की जनता में लगी गुस्से की जवाला को देखकर उन्होने भांप लिया कि यह आन्दोलन करने का सही समय है।

देश में उत्पन्न हुई भयावह स्थिति पर विचार करने के लिए सितम्बर 1920 में कांग्रेस के अधिवेशन को आहुत किया गया। इस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। अंग्रेजों को शैतान कहते हुए उन्होंने कहा कि अब इनके साथ सहयोग करना नितान्त असम्भव है। उन्होंने कहा कि हम इनके विरूध्द तब तक असहयोग आन्दोलन चलायेंगे जब तक स्वराज्य प्राप्त नही कर लेते। लाला लाजपत राय ने इस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। पंडित मदन मोहन मालवीय, चितरंजन दास, श्रीमती एनी बेसेण्ट तथा खारपड़े ने इस आन्दोलन का विरोध किया था। महात्मा गांधी के पक्ष में 2728 और विरोध में 1855 मत पड़े। 873 मतों से यह प्रस्ताव स्वीकृत हो गया।

दिसम्बर 1920 में कलकत्ता अधिवेशन में पुनः यह प्रस्ताव स्वीकृत हुआ।  महात्मा गाँधी ने जनता के सामने निम्न कार्यक्रम रखे –

  • विदेशी वस्तुओं का बहिस्कार
  • सरकारी न्यायालयों का बहिस्कार
  • सरकारी स्कूल/कॉलेजों का बहिस्कार
  • सरकार द्वारा दी गई उपाधियों का परित्याग
  • सरकारी नौकरियों का परित्याग
  • भारतीयों को मेसापोटामिया में जाकर नौकरी करने से इंकार

महात्मा गाँधी ने इस आन्दोलन की शुरूआत केसर-ए-हिन्द की उपाधि को त्यागकर की। यह आन्दोलन देशभर में जोर-शोर से चला। हजारों छात्रों ने अपने स्कूल-कॉलेजों का बहिस्कार किया। कर्मचारियों ने अपनी-अपनी नौकरियों को छोड़ दिया। वकीलों ने अपनी-अपनी वकालते छोड़ दी। इन वकीलों में बंगाल के देशबंधु चितरंजन दास, पंजाब के लाला लाजपत राय, गुजरात के विट्ठल भाई पटेल तथा वल्लभभाई पटेल, मद्रास के चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, उत्तर प्रदेश के मोतीलाल नेहरू तथा जवाहरलाल नेहरू तथा बिहार के डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद आदि प्रमुख थे। विदेशी वस्त्रों का भी आम जनता द्वारा बहिष्कार किया गया। सन 1919 के अधिनियम के अंतर्गत गठित होने वाली विधानसभा का बहिष्कार किया गया।

इसी आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना की गई। गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, बनारस विद्यापीठ, राष्ट्रीय मुस्लिम विद्यालय अलीगढ़, जामिया मिलिया, दिल्ली, काशी विद्यापीठ आदि इसी दौरान स्थापित किए गए।

कांग्रेस में इस आंदोलन के बीच में सरकार के साथ समझौता करने की कोशिश की। लेकिन सरकार के अड़ियल रवैये के चलते समझौता नहीं हो सका। सरकार ने भी आंदोलन को कुचलने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी। कांग्रेस स्वयंसेवक दल को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया। देशभर में 50000 आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी हुई। गांधी जी को छोड़कर कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया। विभिन्न स्थानों पर होने वाली सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 4 मार्च 1930 ई को ननकाना साहिब के गुरुद्वारे में सिक्खों पर गोलियां चलाई गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस कार्रवाई में 70 व्यक्ति मारे गए।

चौरी-चौरा कांड एवं आंदोलन का स्थगन

5 फरवरी 1922 ई को गोरखपुर जिले में चौरी-चोरा नामक स्थान पर एक घटना हुई। कुछ व्यक्ति शांतिपूर्ण तरीके से अपना जुलूस निकाल रहे थे। तभी पुलिस ने आकर उनके ऊपर गोली चला दी। गोली चलाने के कारण भीड़ क्रोधित होकर हिंसक हो गई। उन्होंने  थाने को घेर लिया और उसमें आग लगा दी। इस घटना में 21 सिपाहियों और एक दरोगा की मौके पर ही मौत हो गई। इस घटना से गांधीजी बहुत दुखी हुए और उन्होंने 5 फरवरी 1922 को आंदोलन को वापस ले लिया।

10 मार्च 1922 ई को महात्मा गांधी को पुलिस के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और उनको 6 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई।लेकिन गांधी जी के बीमारी के कारण उन्हें 5 फरवरी 1924 ई को जेल से रिहा कर दिया गया।

आंदोलन के स्थगित किए जाने पर प्रतिक्रियाएं

इस आंदोलन को स्थगित किए जाने के कारण राजगोपालाचारी, मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, शौकत अली, मुहम्मद अली जिन्ना, सुभाष चन्द्र बोस तथा लाला लाजपत राय महात्मा गाँधी से असंतुष्ट हो गये। मोतीलाल नेहरू और लाला लाजपत राय ने जेल में ही महात्मा गांधी को पत्र लिखा कि जब आन्दोलन सफल होने की स्थिति में था तो इसे बन्द करने की जरूरत क्या थी। किसी एक स्थान पर हुए दंगे के कारण संपूर्ण देश को दंड देना  क्या उचित है। यदि जुम्मू कश्मीर में कोई हिंसक घटना हो जाती है तो क्या इसकी सजा कन्या कुमारी के लोगों को मिलेगी।

यह आन्दोलन सफल हुआ या असफल

प्रत्यक्ष रूप से यह आन्दोलन सफल नही हुआ परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से यह आन्दोलन सफल हुआ। इस आन्दोलन की निम्नलिखित सफलताए है-

  • भारतीय जनता में राष्टृवाद की भावना उत्पन्न की।
  • ब्रिटिश सरकार की नीव हिला दी।
  • स्वराज्य का संदेश घर-घर पहुँचाया।
  • भारत के विभिन्न वर्गों के बीच एकता स्थापित की।

सविनय अवज्ञा आंदोलन

यह महात्मा गांधी का दूसरा बड़ा राष्ट्रव्यापी आंदोलन था। साइमन कमीशन के बाद में ऐसी बहुत सी परिस्थितियां बन गई थी जिसके कारण एक देशव्यापी आंदोलन को चलाया जाना आवश्यक हो गया था। सरकार ने नेहरू रिपोर्ट को मानने से मना कर दिया था। महात्मा गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को चलाने की घोषणा कर दी। उन्होंने इस आंदोलन को शान्ति, विनम्रता और अहिंसक तरीके से संचारित करने के लिए कहा। इस आंदोलन की शुरुआत गांधी जी की दांडी यात्रा से हुई। इसमें गांधी जी ने नमक बनाकर सरकारी कानून को तोड़ा।

दांडी यात्रा

सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ दांडी यात्रा की ऐतिहासिक घटना से हुआ है। इसमें गुजरात के साबरमती आश्रम के 79 सदस्यों ने भाग लिया। 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने अपने 79 सदस्यों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा के लिए प्रस्थान किया। 200 मील की दूरी पैदल ही 24 दिन में तय की गई। यात्रा को मैन रोड से न होकर गांव के बीच से होकर जाने की प्लानिंग की गई। ताकि इसमें अधिक से अधिक व्यक्ति को जोड़ा जा सके। जहाँ-जहाँ यह यात्रा रूकी, वंही पर हजारों लोग उसमे शामिल हो गये।

महात्मा गांधी जन समुदाय के साथ 5 अप्रैल 1930 को समुद्र किनारे दांडी नामक स्थान पर पहुंचे। 6 अप्रैल 1930 को आत्म शुद्धि के बाद उनहोंने समुद्र के पानी से नमक बनाया और इस तरह से नमक बनाकर अंग्रेजों के कानून को तोड़ा और इस तरह से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई।

सविनय अवज्ञा आंदोलन का कार्यक्रम

दांडी नामक स्थान पर गांधी जी ने निम्न कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई –

  • विदेशी कपड़ों को जला देना।
  • अस्पृश्यता का त्याग करना।
  • विद्यार्थी तथा शिक्षक अपना स्कूल छोड़ दे।
  • सरकारी नौकर अपनी नौकरी छोड़ दे।
  • मादक पदार्थों का विरोध करें।

महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन की गति बढ़ गई है।

गोलमेज सम्मेलन

प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर 1930 को ब्रिटेन में लंदन में संपन्न हुआ कांग्रेस और महात्मा गांधी ने इस आंदोलन में भाग नहीं लिया। दूसरा गोलमेज सम्मेलन सितंबर 1931 में हुआ। इसमें कांग्रेस के  एकल प्रतिनिधि के रूप में गांधीजी सम्मिलित हुए। तृतीय गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर 1932 को हुआ। बाबा साहेब आंबेडकर इन तीनों सम्मेलनों में शामिल हुए।

कांग्रेस इसमे शामिल नही हुई। सरकारी की दमनकारी नीति के कारण सविनय अवज्ञा आंदोलन धीरे-धीरे स्वयं समाप्त होता चला गया। 8 में 1935 को गांधी जी को जेल से मुक्त कर दिया गया महात्मा गांधी जी का विचार था कि जनता के वह आतंक को दूर करने के लिए आंदोलन स्थापित किया जाए अतः मार्ग 1934 में आंदोलन में स्थगित कर दिया गया।

प्रथम् गोलमेज सम्मेलन में सम्मेलन में बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेड़कर ने दलित समाज के पक्ष में एक जोरदार भाषण दिया। इसमे दलितो के लिए अलग कम्युनल अवार्ड देने की मांग की। उन्होंने कहा कि जैसे सिख और मुस्लिम हिन्दुओं से अलग है, वैसे ही दलित भी। दलितों को हिन्दु समाज से बहिस्कृत करके रखा है। वें हिन्दु ब्रिटिश सरकार को सोचने पर मजहबूर कर दिया। उस समय एक तरफ भारतीयों हिन्दुओं का अंग्रजों की गुलामी से मुक्ति का आन्दोलन चल रहा था, तो वहीं दूसरी तरफ निम्न जातियों का उच्च जातियों की गुलामी से मुक्ति के लिए आन्दोलन चल रहा था। अंग्रेजों के द्वारा भारतीयों पर किया जाने वाले अत्याचार की  अपेक्षा उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों पर किया जाने वाला जाने वाला अत्याचार बहुत अधिक था। पहले मुक्ति  आन्दोलन का नेतृव्य करनेे वाले बहुत नेता थे जबकि दुसरे मुक्ति आन्दोलन का नेतृव्य करने वाला एक ही नेता था – डॉ. भीमराव अम्बेड़कर।

बाबा साहेब डॉ. भामराव अम्बेड़कर की द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में की गई माँग को अमलीजामा पहनाते हुए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने 16 अगस्ट 1932 को कम्युनल अवार्ड की घोषणा की। इस घोषणा में निम्नलिखित प्रावधान किए गये-

  • इसमे मुस्लिमोंं, सिक्खों, ईसाईयों,एंग्लों-इंडियन, यूरोपियनों तथा दलितों को पृथक निर्वाचक पध्दति ( separate electorate) दिया गया।
  • इसमे यह व्यवस्था की गई कि दलितों का अपना अलग निर्वाचक मंंडल होगा। इसमे प्रतिनिधि भी दलित होगा और वोट भी दलित होगा। इस प्रकार जो प्रधिनिधि होगा, वह पूर्णतया अपने दलित समाज के प्रति जिम्मेदार होगा।
  • दलितों को दो वोट देने का अधिकार दिया गया। एक वोट अपने प्रतिनिधि के लिए तथा दूसरी वोट सामन्य प्रतिनिधि के लिए।
  • प्रान्तों की व्यवस्थापिकाओं में सीटों की संख्या को दुगना कर दिया गया। दलितों के लिए 71 सीटों को आरक्षित कर दिया गया।
  • विश्वविद्यालयों, जमीनदारों, उद्योग. व्यापार तथा श्रम में भी  पृथक निर्वाचक पध्दति की व्यवस्था की गई तथा सीटे आरक्षित की गई।

महात्मा गांधी कट्टर हिन्दु नेता थे। वे हर हाल में वर्ण व्यवस्था को बनाये रखना चाहते थे। उनका विचार था कि सभी जातियों को अपने वर्ण के अनुसार काम करना चाहिए। कम्युनल अवार्ड की घोषणा के समय वे पुणे की यरवदी जेल में थे। इसके विरोध में उन्होंने आमरण अनशण शुरू कि दिया। गाँधी जी उस समय बहुत बडे नेता थे। उनके आमरण करने से पूरे देश की जनता भड़क गयी और बाबा साहेब के विरोध में आन्दोलन करने लगी। बाबा साहेब को धमकी मिलने लगी कि गाँधी जी कुछ हो गया दलित समाज के साथ बुरे से बुरा व्यवहार करेंगे।

पंडित मदन मोहन मालवीय, सर तेज बहादुर सप्रू तथा राजगोपालाचारी separate electorate demand  को वापस लेने के लिए उनसे मिले। कस्तूरबा गांधी ने भी उनसे अपने सुहाग की भीख माँगी। उनके ऊपर अत्यधिक दबाव पड़ने पर वे गाँधी के साथ बात करने पर राजी हो गये। 24 सितम्बर 1932 को दोनों के मध्य जो समझौता हुआ, उसे ही पना पैैक्ट के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार गाँधी जी ने बाबा साहेब की पाँच की मेहनत के ऊपर पानी फेर दिया। बाबा साहेब  ने भी गाँधी जी के ऊपर दबाव बना कर अपने समाज के लिए सीटे आरक्षित करने के लिए कहा।

पुना पैक्ट के अनुसार पृथक निर्वाचक मंडल के प्रावधान के समाप्त कर दिया गया। इसके स्थान पर दलितों के लिए  प्रातीय व्यवस्थापिकाओं में सीटों की संख्या को दुगना करके 148 कर दिया।  केन्द्रीय विधानमंडल  में भी 18%  सीटे दलितों के लिए सुरक्षित कर दी गयी। इसके साथ ही स्थानीय निकायों तथी अन्य सेवाओं में भी इसके लिए सीटे सुरक्षित की गयी।

भारत छोड़ो आंदोलन

वर्धा प्रस्ताव के निर्णय के अनुसार 7 अगस्त 1942 ई को मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमीशन का अधिवेशन प्रारंभ हुआ इस अधिवेशन में भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गया।

1942 तक कांग्रेस यह जान गई थी कि अंग्रेज आसानी से भारत को छोड़कर जाने वाले नहीं थे। इसलिए उन्होंने एक बड़ा आंदोलन करने का निश्चय किया। लेकिन इस आंदोलन की तिथि की घोषणा नहीं की गई क्योंकि गांधी जी पहले अंग्रेजों के साथ वार्ता करना चाहते थे। गांधी जी ने कांग्रेस कार्य समिति के सामने 70 मिनट का ओजस्वी भाषण दिया। इसी भाषण में उन्होंने करो या मरो का संदेश दिया। 8 अगस्त 1942 को रात 10:30 बजे भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित हुआ।

इस प्रस्ताव की प्रमुख बातें निम्न है

  • भारत को अब अंग्रेजों को हर हाल में स्वतंत्र कर देना चाहिए।
  • ब्रिटिश सरकार भारत को शीघ्र छोड़ दें।
  • देश के प्रमुख दलों और समूह का सहयोग प्राप्त करने वाली एक अस्थाई सरकार की स्थापना की जाए।
  •  भारत का संविधान संघात्मक होगा जिसमें इकाइयों को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की जाएगी।
  • यदि प्रस्ताव की मांगों को नही माना गया तो गांधी जी के नेतृत्व में जनता आंदोलन आरंभ करेंगी।

8 अगस्त 1942 को कांग्रेस द्वारा यह स्वीकृत किया गया कि इस आंदोलन को शुरू करने से पहले महात्मा गांधी वायसराय से बात करेंगे। लेकिन सरकार ने गांधी जी को वायसराय से बात करने का अवसर नहीं दिया। 9 अगस्त 1942 की सुबह ही महात्मा गांधी और कार्य समिति के सभी सदस्यों को सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। कांग्रेस के सभी नेताओं को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। इस गिरफ्तार की खबर सुनकर के जनता में आक्रोश का तूफान उमर पाड़ा

अब आंदोलन को नेतृव्य  प्रदान करने वाला कोई नेता नहीं रहा। महात्मा गांधी ने 70 मिनट के अपने भाषण के दौरान 12 सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी। इन 12 सूत्री कार्यक्रम में संपूर्ण देश में हड़ताल करने, सार्वजनिक सभा करने, नमक बनाने और लगान देने से मना करने के लिए कहा गया था। आंदोलन के कार्यक्रम के प्रमुख बिंदु थे-

  • महात्मा गांधी द्वारा दिया गया करो या मरो का नारा
  • सार्वजनिक सभा करने, नमक बनाने तथा लगान  देने से मना करने पर विशेष बल दिया गया।
  • पुलिस थाना, तहसीलों को अहिंसक तरीके से घेरने पर बल दिया गया।

शुरू मैं यह आंदोलन बहुत तीव्र गति से चला। लेकिन बाद में सरकार की दमनकारी नीति के चलते यह आंदोलन धीमा पड़ता  चला गया और 9 मई 1944 ई तक चला।

गाँ धी जी की यह आन्दोलन भी असफल हुआ।

महात्मा गांधी की   पुस्तकें (Mahatma Gandhi Books)

  • हिन्द स्वराज – सन 1909 में
  • दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह – सन 1924 में
  • मेरे सपनों का भारत
  • ग्राम स्वराज
  • ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ एक आत्मकथा
  • रचनात्मक कार्यक्रम – इसका अर्थ और स्थान

30 जनवरी सन 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर महात्मा गांधी की हत्या कर दी गयी थी। उन्हें 3 गोलियां मारी गयी थी और उनके मुँह से निकले अंतिम शब्द थे -‘हे राम’। उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली में राज घाट पर उनका समाधी स्थल बनाया गया हैं। महात्मा गांधी जी 79 साल की उम्र में  सभी देश वासियों को अलविदा कहकर चले गए.

यह भी पढ़े-

सुभाष चन्द्र बोस का जीवन परिचय

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महात्मा गांधी का जीवन परिचय Mahatma Gandhi Biography In Hindi

महात्मा गांधी का जीवन परिचय Mahatma Gandhi Biography In Hindi -परम पूज्य राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को कोन नही जानता हैं | सत्य और अहिंसा को वो मूरत जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी भारत की आजादी में लगा दी|

एक लकड़ी के सहारे चलने वाले गाँधीबाबा ने सत्य अहिंसा को अपना शस्त्र बनाकर करोड़ो हिन्दुस्थानियो के साथ जंग-ए-आजादी लड़ी| उनकी कुर्बानियों की वजह से ही आज हम खुले वातावरण में सांस ले रहे हैं|

ऐसी महान आत्मा के जन्म के लिए धरती स्वय तरस जाती हैं| मानवता और हिन्दू मुस्लिम एकता की मिशाल बने महात्मा गांधी के जीवन में विपतियों के सिवाय कुछ नही था| जिन्हें सता प्राप्ति का कोई लोभ न था|

प्यारा था तो वतन और उसकी आजादी| ऐसें प्रेरणादायक महापुरुष महात्मा गांधी का जीवन परिचय जीवनी और इतिहास में उनके जीवन से जुड़ीं मुख्य घटनाओं पर प्रकाश डालने की छोटी सी कोशिश की गईं हैं|

गांधी जी की जीवनी व इतिहास (Gandhiji’s biography and history)

आज इस हस्ती के बारे में कोन नही जानता देश का बच्चा-बच्चा महात्मा गांधी की ऑटोबायो ग्राफी से वाकिफ हैं, गांधीजी का पूरा नाम मोहनदास कर्मचन्द गाँधी था| इनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबन्दर शहर में हुआ था| उस समय यह प्रान्त बम्बई प्रेजिडेंसी के अंतर्गत आता था|

इनके पिता का नाम करमचन्द गाँधी जो पंसारी जाति के थे| अग्रेज सरकार में वो दीवान के पद पर सेवारत थे| इनकी माँ का नाम पुतलीबाई था | जो मध्यम वर्ग से आती थी |

गृहणी का काम किया करती थी| दरअसल पुतलीबाई करमचन्द गांधी की चौथी पत्नी थी| इनसे पूर्व की तीन पत्नियों का देहांत हो चूका था|

महात्मा गांधी का आरंभिक जीवन (Early life of Mahatma Gandhi)

कट्टर हिंदूवादी विचारधारा के परिवार में जन्मे गाँधी के जीवन पर भी धार्मिक परवर्तियो का प्रभाव पड़ा| इनकी माता धार्मिक विचारो वाली महिला था| इनके पिताजी करमचंद गाँधी को कबा गाँधी उपनाम से भी जाना जाता हैं|

हालाँकि वे शिक्षित तो नही थे| मगर जीवन के कड़े अनुभवो ने उनमे ऐसी शिक्षा का प्रदुभाव कर दिया था| जिससे वे हित और अहित को भली भांति जानते थे|

वे नही चाहते थे उनका बेटा मोहनचंद इसी अंग्रेजी हुकूमत का बाशिंदा बने| इसी पर इन्होने मोहनदास का दाखिला स्थानीय सामलाल कॉलेज में दिलाया| जहा से स्कूली शिक्षा पूरी करने के त्त्पश्तात गाँधी को बम्बई विश्विद्यालय में आगे की पढ़ाई के लिए भेज दिया|

उन्हें शुरुआत से पढ़ाई में मन नही लगता था इसकी वजह अंग्रेजी भाषा थी| वे अग्रेंजी और अपनी मातृभाषा गुजराती में पूर्णत सामजस्य नही बिठा पाते थे| गाँधी बचपन से अपनी लिखावट में अच्छे नही थे|

उनका मन और कही था| मगर परिवार तो कुछ और ही चाहता था| महात्मा गांधी शुरू से ही बेहद सवेदनशील इंसान थे| मानव पीड़ा उनके लिए सबसे बड़ा दर्द था| इसमे कमी लाने के लिए वे डोक्टर बनना चाहते थे|

मगर कट्टर ब्रह्मण वादी सोच अपने कुल में चिर फाड़ और ऐसे कार्यो को बिलकुल इजाजत नही देती थी| अपनी कुल परम्परा के मुताबिक उन्हें वकील बनने की हिदायत दी गईं|

ब्रिटिश भारत में उस समय लो की शिक्षा का स्तर न्यून था| इसलिए माता-पिता ने महात्मा गांधी को इंग्लैंड भेजने का निश्चय किया गया|

गांधी जी की अफ्रीका यात्रा व भारत लौटना (Gandhiji’s visit to Africa and returning to India)

गांधी जब 19 वर्ष के थे तो कॉलेज में मन ना लगने के कारण इन्हे इंग्लैंड जाने का ऑफर मिला| जिन्हें गांधी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया| कानून की पढ़ाई करने जाने से पूर्व इनकी मुलाकात एक जैन भिक्षु के साथ हुई|

कुछ दिन साथ रहने के बाद इनका काफी प्रभाव पड़ा| इसके अतिरिक्त इनकी जीवनचर्या पर माँ के विचारो का प्रभाव पड़ा| लन्दन में रहने के दोरान उनके शाकाहारी जीवन प्रवर्ती में बड़ा बदलाव आया|

अग्रेंजी रीती-रिवाज और शैली से बिलकुल अलग और शाकाहारी और साधू के रूप में जीवन व्यतीत करने लगे| बोध धर्म की एक संस्था थियोसोफिकल सोसायटी की सदस्यता ग्रहण की और इसके साथ काम करते रहे

लन्दन से बेरिस्टर की डिग्री हासिल करने के बाद मुंबई लौट आए| यहाँ उन्होंने कई बार वकालत की| मगर उन्हें यहाँ इतनी सफलता नही मिली| एक अग्रेज अधिकारी की लापरवाही के कारण गांधी को इस जॉब से हाथ धोना पड़ा फिर उन्हें एक शिक्षक के रूप में एक संस्था द्वारा आमत्रित किया गया| मगर गांधी ने इच्छा न जताते हुए अनिच्छा जाहिर की|

उस समय अग्रेंजी हुकूमत दक्षिण अफ्रीका में भी थी| अत: रिश्तेदारों के बुलावे पर महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर गये| मगर यहाँ उन्हें जो कुछ झेलना पड़ा  Mahatma Gandhi Biography  में इसका वर्णन आगे दिया जा रहा हैं|

जीवन की घटनाएं

यदि मोहनदास कर्मचन्द गाँधी दक्षिण अफ्रीका की यात्रा नही करते तो शायद वो महात्मा गांधी  भी नही बनते | जब 1895 में गांधीजी ने अफ्रीका की यात्रा की तो उस समय वहा ब्रिटिश हुकूमत थी| जो वहा के निवासियों और अग्रेंजो के बिच रंगभेद की दीवार खड़ी कर चुके थे|

काले और गोरे लोगों के बिच हर क्षेत्र में भेदभाव किया जाता था| यहाँ तक कि वे एक ही बस्ती में नही रह सकते थे| गांधीजी ने जब दक्षिण अफ्रीका में पहला ही कदम रखा| तो उन्हें रंगभेद का शिकार होना पड़ा|

एक घटना जिन्होंने अग्रेंजो के प्रति गुस्सा भर दिया | जब वे रेल मे यात्रा कर रहे थे| तब उनके पास फरिस्त क्लास की वैध्य टिकट होने के बावजूद डिब्बे में सवार गोरे लोगों ने उन्हें थर्ड क्लास में जाना को कहा गया| महात्मा गाँधी ने जब इसका विरोध किया तो कुछ गोरे लोगों ने उठाकर उन्हें चलती गाड़ी से बाहर फेक दिया|

उस समय गांधी की वेशभूषा एक धोती कुर्ता और पगड़ी पहने थी| गोरे लोगों ने उन्हें अपनी बस्ती के आस-पास आने जाने रेस्टोरेंट में रुकने से पाबंदी लगा दी| साथ ही जब वे एक मुकदमें को लेकर कोर्ट गये तो अग्रेंजी कोर्ट ने उन्हें पगड़ी तक उतारने का आदेश दिया|

उस समय दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की तादाद बड़ी संख्या में थी, उनके साथ रंगभेद का घोर अपमान किया जाता था| गांधी ने भारतीयों को जाग्रत कर जुलू से अग्रेंजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया| इन्होने भारतीय जनमत इंडियन ओपिनियन के जरिए भारतीयों को न्याय दिलाने की कोशिश भी की|

दक्षिण अफ्रीका से भारत आना

कई सफल और विफल प्रयासों के बाद महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका छोड़कर 1915 में अपने वतन हिंदुस्तान लौट आए| भारत आकर इन्होने भारतीयों की अपने ही देश में राजनितिक आर्थिक दुर्दशा देखी|

अग्रेजो की फुट डालो और राज करो की निति का पूर्ण अध्ययन करने के बाद उन्होंने कई सभाओ को सम्बोधित किया| उस समय भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) थे| जो महात्मा गांधी के विचारों से सहमत थे|

गांधीजी उस समय प्रत्येक क्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे ताकि वास्तविक स्थति का पता लगाया जाए| तभी उनसे गुजरात के खेड़ा और बिहार के चम्पारण के किसान अपनी परेशानियों को लेकर पहुचे|

अंग्रेजी हुकूमत उन से अन्यायपूर्ण तरीके से नील और अफीम की खेती करवाती थी| गाँधी जी ने बहुत सोच-विचार के बाद इन किसान की आवाज बनने का निर्णय किया और हजारो किसानो और किसान नेताओ के साथ 1918 में खेड़ा चम्पारण का आन्दोलन आरम्भ कर दिया|

यह पहला अवसर था जब मोहनदास कर्मचन्द गांधी को लोगों ने बापू और महात्मा गांधी  के नाम से पुकारना शुरू किया| इस आन्दोलन में किसानो की तरफ से रखी गईं मांगो में बढे हुए राजस्व में कमी, कृषक का उनके खेत पर पूर्ण स्वामित्व, साथ ही सभी अन्यायपूर्ण सहमती पत्र रद्द किये गये|

अंग्रेजी हुकूमत ने खेड़ा और चम्पारण के किसानो की आवाज दबाने की पूरी कोशिश की महात्मा गांधी को जेल में भी डाला गया| मगर किसानो के आन्दोलन की बढती लोकप्रियता और दवाब के कारण सरकार को अपने कदम वापिस लेने पड़े|

इस आन्दोलन से बिखरे समाज में न केवल एकता लाने का काम किया बल्कि महात्मा गांधी की लोकप्रियता भी बढ़ी| लोगों में यह विश्वास जगा कि शांतिपूर्ण तरीको से भी सरकार पर दवाब बनाकर अपनी मांगे मनवाई जा सकती हैं|

महात्मा गांधी के आंदोलन नमक सत्याग्रह (Salt satyagraha)

दांडी नमक यात्रा गांधीजी की एक विरोधात्मक रैली और आन्दोलन था| जिनमे हजारो लोगों ने भाग लिया था| 5 अप्रैल 1930 को गुजरात की दांडी नामक स्थल से आरम्भ की गईं|

लगभग 450 किलोमीटर की इस यात्रा को पूरी कर महात्मा गांधी ने सत्याग्रहियों के साथ मिलकर नमक बनाकर अंग्रेजी सरकार के उस नमक कानून का उल्लघंन किया| इस आन्दोलन से अंग्रेजी सरकार की नीव पूर्णत हिलाकर रख दी थी|

12 मार्च के दिन लगभग 1 लाख से अधिक लोगों ने सरकार के नामक निर्माण और उसकी बिक्री के एकाधिकार का हनन कर सरकार को कड़ा संदेश देने का कार्य किया| महात्मा गांधी के इस आन्दोलन के बाद तकरीबन 70 हजार लोगों को जेल में डाला गया|

आखिर मार्च 1931 को इरविन गांधी समझोते के बाद सभी कैदियों को रिहा करने के साथ सरकार ने सभी सत्याग्रहियों की मांग को स्वीकार कर लिया| जिसके बाद गांधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को रोक दिया|

दांडी नमक यात्रा और खेड़ा चम्पारण के अतिरिक्त महात्मा गांधी ने कई बड़े राजनितिक और सामाजिक आन्दोलन किये जिसकी वजह से अंग्रेजी सता को कमजोर और भारतीय आंदोलनकारियो के विशवास को मजबूत करने में मदद मिली| आएये Mahatma Gandhi Biography में जानते हैं उनके कुछ प्रभावशाली जन-आंदोलनों के बारे में सक्षिप्त में|

अन्य आंदोलन

असहयोग आन्दोलन -गांधीजी के सबसे लोकप्रिय जनआंदोलनों में से एक था| पहले विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद अंग्रेजी सरकार ने भारत में समाचार पत्रों पर पूर्णत पाबंदी लगा दी|

साथ ही इसका उलघंन करने पर बिना कोई न्याय प्रक्रिया के कठोर कारावास का प्रावधान कर दिया| महात्मा गांधी ने इस रोलेट एक्ट के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया| इस विरोध का सबसे अधिक प्रभाव पंजाब में पड़ा|

वहा पर सालो से अंग्रेजी हुकूमत की सेवा करने वाले लोगों को भी जेलों में डाला गया| महात्मा गांधी के आव्हान पर हजारो युवको ने अम्रतसर और आस-पास के सभी शहरों में हड़ताल पर चले गये| बाजार पूरी तरफ ठप हो गये थे|

सभी सत्याग्रही पंजाब के जलियावाला बाग़ नामक स्थान पर एकत्रित होकर शांति पूर्ण सभा कर रहे थे| अंग्रेजी सरकार को इसकी सुचना मिलने पर जनरल डायर के आदेश पर उन बेकसूर लोगों को गोलियों से भुन दिया गया| 

भारतीय इतिहास में इस हत्याकांड को जालियाँवाला बाग हत्याकांड Jallianwala Bagh massacre के नाम से जाना गया|

सरकारी आकड़ो के अनुसार इस में चार सो लोग मारे गये| मगर मरने की वास्तविक संख्या 2 हजार से अधिक थी| सरकार के इस दमनकारी रवैये के बाद महात्मा गांधी ने देशभर में सविनय आन्दोलन आरम्भ कर दिया|

1921 तक चले इस प्रोटेस्ट के लिए सभी भारतीय लोगों की अंग्रेजी नौकरी और सेना सहित किसी कार्य में सहयोग न करने की अपील की गईं|

तक़रीबन चार सौ हडतालों में 10 लाख से अधिक मजदूर और किसान सम्मलित हुए थे| इस आन्दोलन से भले ही भारत को आजादी नही मिल पाई हो मगर अंग्रेजो को यह एहसास हो चूका था| कि अब भारत को अधिक वर्षो तक दबाकर नही रखा जा सकता|

भारत छोड़ो आन्दोलन ( Quit India Movement ) -अभी तक के महात्मा गांधी के सभी आंदोलनों में सबसे व्यापक और शक्तिशाली आंदोलनों में से भारत छोड़ो आन्दोलन सबसे अधिक प्रभावकारी था|

सरकार के दमनकारी रेवैये के कारण गाँधी को दुश्मन बना चुके थे| इस आन्दोलन की शुरुआत तो दुसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत से ही हो गईं|

महात्मा गांधी इस विश्व युद्ध का फायदा उठाना चाहते थे| सरकार की शक्ति दोनों तरफ बटी होने के कारण इस आन्दोलन को राष्ट्रव्यापी रूप से शुरू किया गया|

1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के बाद यह पहला अवसर था जब वतन की आजादी की खातिर सभी वर्ग जिनमे बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी इस जन आन्दोलन में हिस्सा लिया|

महात्मा गांधी ने अब तक सरकार के खिलाफ उपयोग किये गये सभी उपक्रमों का एक साथ प्रयोग किया| जिनमे अहिंसा सत्याग्रह अवज्ञा के साथ-साथ हिंसा भी बड़े पैमाने में इस आन्दोलन में शामिल रही| गाँधी के लिए यह आन्दोलन उनकी पराकाष्टा थी| वर्ष 1942 में ही इन्होने करो या मरो का नारा दिया था|

इसी दोरान उन्हें दो वर्ष तक की कठोर कारावास में भी रहना पड़ा| जेल से छुटने के बाद उनकी पत्नी कस्तूरबा गाँधी और परम मित्र और सहयोगी महादेव देसाई का निधन हो चूका था|  डू ऑर डाय के नारे के बाद लाखो की संख्या में आंदोलनकारी सड़को पर उतर आए थे|

कही सरकार की सेना पर हमला हो रहा था तो कही लुट मार मची थी| बड़ी संख्या में जेल भरो निति से अपनी गिरफ्तारी दे रहे थे| 1943 तक भारत छोड़ो आन्दोलन को सरकार ने दबा भी दिया था| मगर सभी कैदियों की रिहाई के साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के संकेत भी दे दिए|

हरिजन आंदोलन (Harijan movement) -डॉ॰ बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा भारत के नए सविधान में मुस्लिम और हिन्दू निर्वाचन क्षेत्रो के अतिरिक्त दलित समुदाय के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र में आरक्षण की माग की|

इस पर अंग्रेजी सरकार भी सहमत थी| मगर सितम्बर में महात्मा गांधी ने इस जातीय विभाजन को रोकने के लिए 6 दिनों तक भूख हड़ताल की|

आखिर तीनो पक्षों ने मिलकर इस नई व्यवस्था को छोड़कर पुन: पुरानी व्यवस्था को अपनाए रखा| महात्मा गांधी दिन हिन् और पिछड़े वर्ग के उद्दारक थे| इन्होने सामाजिक आन्दोलन द्वारा समाज में दलितों की स्थति सुधारने के कई अथक प्रयास किये|

जिनमे से एक था अछूत वर्ग के लोगों को अब से हरिजन नाम से बुलाए जाने की व्यवस्था की शुरुआत की|इन्ही के प्रयासों की बदोलत नीची जाति के लोगों का धार्मिक स्थलों में प्रवेश संभव हो पाया|

महात्मा गांधी की आलोचना (Criticism of Mahatma Gandhi)

एक महान देश नायक और राष्ट्रपिता होने के बावजूद उनके काम करने का तौर तरीका और किसी सम्प्रदाय के प्रति नजदीकी और किसी के साथ दुरी बनाए रखने के विषय पर महात्मा गांधी पर कई तरह के आरोप और आलोचनाए हुई हैं|

  • शुरुआत के दोनों वर्ल्ड वॉर में ब्रिटिश राज्य को समर्थन देना|
  • अग्रेंजो की दमनकारी निति के आगे सत्य और अहिंसा बेकार हैं|
  • देश को आजादी मिलने के बाद प्रधानमन्त्री पद के लिए नेहरु को समर्थन देना|
  • जब असहयोग आन्दोलन पुरे उफान पर था अग्रेंजी पुलिस थाने पर हमले से आन्दोलन वापिस ले लेना|
  • भारत की आजादी के बाद पाकिस्तान का विभाजन
  • विभाजन में पाकिस्तान को 55 करोड़ की आर्थिक मदद मज़बूरी से दिलाने के लिए भूख हड़ताल पर बैठना|
  • कांग्रेस के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार नेताजी सुभाषचंद्र बोस को समर्थन ना देना|
  • गांधी-इरविन समझौता जो पूर्णत अंग्रेजी हुकूमत के फायदे की शर्तो पर था इसे मंजूरी देना|
  • सशस्त्र क्रान्तिकारियों को हताश करना उनकी राह में रोड़ा बनना|

महात्मा गांधी की बेटी का नाम

बहुत से लोग महात्मा गांधी की बायोग्राफी में जानना चाहते हैं कि बापू की बेटी का क्या नाम था. मगर उनको संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाता हैं. इसका कारण यह है कि बापू की कोई बेटी नहीं थी. उनके चार बेटे थे जिनका नाम हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास.

गांधी अपने दो भाइयों और एक बहिन में सबसे छोटे थे. इनकी बहिन का नाम रलियत और दो भाइयों के नाम लक्ष्मीदास और कृष्णदास था. नंद कुंवरबेन, गंगा ये गांधीजी की भाभियाँ थी.

आज के समय में हम महात्मा गाँधी के वंशजों की बात करें तो उनके 154 परिवार के सदस्य हैं जो दुनियां के 6 देशों में रह रहे हैं. जिनमें 12 चिकित्सक और इतने ही प्रोफेसर हैं. इनके अलावा इंजीनियर, पत्रकार, वकील, प्रशासनिक अधिकारी, चार्टेड एकाउंटेंट और 4 पीएचडी डिग्री धारी भी शामिल हैं.

महात्मा गांधी की मृत्यु हत्या Death of Mahatma Gandhi

30 जनवरी 1948 का दिन शाम पांच बजकर 20 मिनट का समय हो रहा था. आज बापू रोजाना की प्रार्थना सभा में कुछ देरी से जा रहे थे. बिरला भवन में उनकी सरदार पटेल के साथ एक अहम बैठक थी इसी वजह से उनकी देरी हो गई थी.

आभा और मनु के कंधे पर हाथ रखे महात्मा गांधी तेजी से बिडला भवन की तरफ निकल रहे थे उनके साथ कुछ अनुयायी थे. तभी उनके सामने नाथूराम गोडसे नामक एक शख्स आकर प्रणाम मुद्रा में झुकता है तथा उन्हें आगे बढने से रोक देता हैं.

इस पर मनु उन्हें सामने से हटने के लिए कहती है मगर वो मनु को धक्का देकर अपने कपड़ों में छिपाई गई बैरेटा पिस्टल निकालकर गांधी जी पर एक के बाद एक तीन फायर करते हैं. दो गोलियां उनके शरीर के आर पार निकल जाती हैं वहीँ एक गोली शरीर में ही अटक जाती हैं.

उस मौके पर बेटा देवदास भी आ पहुचे थे. 78 साल के महात्मा गांधी की इस तरह हत्या से भारत ही नहीं दुनियां भर में शोक की लहर फ़ैल गई.

बापू पर हुए इस हमलें में नाथूराम गोडसे मुख्य अभियुक्त समेत आठ आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया जिसमें वीर सावरकर का भी नाम थे जिन्हें अदालत ने बेगुनाह पाया था. गांधी हत्या प्रकरण में नारायण आप्टे और नाथूराम विनायक गोडसे को फांसी दे दी गई.

महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी कहानियाँ प्रेरक प्रसंग Gandhi Story

Story Of Mahatma Gandhi  in hindi:  शीर्षक के इस लेख में पूज्य राष्ट्रपिता गांधीजी के जीवन से जुड़ी एक कहानी दी जा रही हैं.सत्य और अहिंसा की प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले  महात्मा गांधी की इस कहानी में हम जान जाएगे,

वो कितने अपने सिद्दांतो के पक्के और परिश्रमी थे, लोगों का उनके प्रति क्या नजरिया और रुझान था. यह बतलाने की जरुरत नही हैं, कि महात्मा गांधी अत्यंत परिश्रमी थे.

कभी-कभी वे तो रात के ठाई बजे उठ बैठते और दिन में आधे घंटे तक विश्राम करके रात के दस बजे तक काम करते रहते, उनके सिर पर काम का बोझ निरंतर बना रहता था. समस्त देश की चिंता महात्मा गांधी को इतना व्यस्त रखती थी.

उनके लिए हँसना हंसाना अत्यंत आवश्यक हो गया था. एक बार किसी विलायती सवाददाता ने उनसे पूछा- गांधीजी क्या आपमें हास्य की प्रवृति भी हैं, उन्होंने तुरंत जवाब दिया’ यदि मुझमे हास्य प्रवृति ना होती तो मैंने कभी का आत्मघात कर लिया होता.

महात्मा गांधी का मजाक छोटे-बड़े सभी के साथ चलता था. मन-बहलाव के लिए खास तौर पर बच्चों के साथ खूब दिल्लगी करते थे. एक बार महात्मा गांधी ने आश्रम की सभी महिलाओं की मीटिंग अपने कमरे में की. बातचीत का विषय था,

उनकी गोद ली हुई अछूत कन्या को अपने चौके में बिठला कर रसोई बनाना कोई सिखाएगा. डेढ़ घंटे तक गंभीर वार्तालाप होता रहा. एकत्रित स्त्रिओ में से कोई भी इस पुण्य कार्य के लिए तैयार नही हुई. सभी ने एक स्वर में ना कह दिया.

स्नान कराने, सिर के बाल काढ देने इत्यादि छोटी-छोटी सेवा के लिए स्त्रियाँ तैयार हो गईं परन्तु अपने चौके में उस बालिका को ना घुसने देना को स्वीकार नही था. वातावरण कुछ गम्भीर सा हो गया.महात्मा गांधी जी ने उस समय मुस्करा कर इतना ही कहा- ” तब मुझे अभी लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ेगी”

इसके तुरंत बाद इन्होने छोटे-छोटे बच्चों पर, जो अपनी माताओ के साथ बापू के पास गये थे. निगाह फेकी. एक बच्चे के हाथ में उन्हें एक पैसा दिख पड़ा.

बापू को बस मौका मिल गया. उन्होंने उस बालक से कहा “अरे भाई पैसा मुझे दे दे”

बालक ने कहा- “मलाई बर्फ खाइये”

बापू ने कहा-“हमको तो मलाई की बर्फ मिलती नही”

बालक ने कहा-“हमारे घर चलो हम तुम्हे खूब खवावेगे”

इसके बाद बापू ने कुछ, जिसमे “शु” गुजरती शब्द आया था, जिसकी मानी हैं क्या”

वह बच्चा ”शु”न सनझ सका और सब महिलाएं हंस पड़ी, बापू भी हंस पड़े.

दुसरे दिन जब उस लड़के के पिता ने बापू की सेवा में उपस्थित होकर माफ़ी मांगी तो हसते हुए महात्मा गांधी ने सिर्फ इतना ही कहा” अरे यह बच्चा तो मेरा पुराना दोस्त हैं” बापू की इस स्वभाविक कोमलता के साथ-साथ कठोर नियन्त्रण वृति भी काम करती थी.

महात्मा गांधी ने अन्य महिलाओं से तो कुछ नही कहा, पर अपनी भतीजे मगनलाल गाँधी की धर्मपत्नी को हुक्म दिया” आप अपने मायके चली जाएं.

पर बच्चों को यही छोडती जाए, मुझे ऐसी बहु नही चाहिए. जो मेरी लड़की को चौके में घुसने न दे. श्री मगनलाल की धर्मपत्नी को अपने पिताजी के यहाँ जाना पड़ा और छ; सात महीने वही रहना पड़ा.

यह बतलाने की आवश्यकता नही हैं कि अतत उस तथाकथित अछूत बालिका को रसोई में ले जाना स्वीकार कर लिया.एक बार बापू की सवेरे की प्रार्थना में शामिल होने के लिए सवेरे चार बजे मै भी गया था.

मेरे हाथ में हॉकी स्टिक थी. उसे प्रार्थना स्थल के बाहर रखकर मै बैठ गया. प्रार्थना समाप्त होने पर ज्यो ही अपने हाथ में ली बापू उधर से आ निकले.

हंसकर कहा- ये लाठी आपने बड़ी मजबूत बाँधी हैं. मैंने उतर दिया” इसका नाम माखनलाल चतुर्वेदी ने मस्तक भजन रख दिया हैं”

बापू बोले-हाँ और सत्याग्रह आश्रम में मस्तक-भंजन रखनी ही चाहिए, आस-पास खड़े व्यक्ति हंस पड़े.

एक बार महात्मा गांधी ने मुझे सवेरे सात बजे और सवा सात बजे का टाइम बातचीत के लिए दिया.

मै उन दिनों नया-नया आश्रम में गया था. मन में सोचा कि बापू जाते थोड़े ही हैं, दो-चार मिनट की देरी भी हो जाएं तो क्या? सात बजकर दस बारह मिनट पर पंहुचा. बापू मुस्कराकर बोले-तुम्हारा टाइम तो बीत गया. अब भाग जाओ,

फिर कभी वक्त तय करके आना” मुझे बहुत लज्जित होना पड़ा. एक बार फिर ऐसी घटना घट गईं, परन्तु उसमे मेरा कोई अपराध नही था. बापू ने एक राजा साहब को शाम को तीन बजे का टाइम दिया था.

और मेरे सुपुर्द का काम यह था कि उनको लाऊ. उन्हें अहमदाबाद से आना था, बस एक मिनट की देरी हो गईं. मै राजा साहब को लेकर बापू की सेवा में पंहुचा तो वे बोले” मै तो मिनट भर से आपका इन्तजार कर रहा हु.  

महात्मा गांधी चाय को स्वास्थ्य के लिए सबसे हानिकारक मानते थे. परन्तु जिनको चाय पीने की आदत पड चुकी थी, उनके लिए चाय का प्रबंध भी अवश्य कर देते हैं.

एक बार मिस आगेथा हैरिसन नामक महिला अंग्रेज उनके साथ यात्रा पर आ रही थी और उन्हें इस बात की चिंता थी,कि प्रातकालीन चाय का इंतजाम कैसे होगा. 

महात्मा गांधी जी को जब यह पता लगा तो वे बोले ” आप फ़िक्र ना करिए आपके लिए मैंने आधा पौंड जहर रख दिया हैं. एक बार बापू ने मेरे साथ भी चाय के बारे में कई मजाक किये.

कलकता से चलकर वर्धा में उनकी सेवा में उपस्थित हुआ था. रात के साढ़े आठ से नौ बजे तक तक का टाइम मुझे दिया.

ठीक वक्त पर पंहुचा, आधे घंटे तक बातचीत होती रही.चलते वक्त महात्मा गांधी जी कहा-”खूब आराम से चाय पीना” मैंने कहा- क्या बापू आपकों मेरे चाय पीने का पता लग गया हैं? उन्होंने कहा- हाँ काका साह्ब मुझे बतला दिया हैं कि तुम कलकते में चाय पीने लग गये हो.

मुझे भी उसी वक्त मजाक सुझा, मैंने कहा-बापू आप मि. एंड्रयूज को छोटा भाई मानते हैं?

उन्होंने कहा- हाँ.

” और वे आपकों बड़ा भाई मानते हैं”

बापू ने कहा- हाँ.

मैंने तुरंत ही कहा-तो मै बड़े भाई की बात न मानकर छोटे भाई की बात मानता हु,

बापू हंसकर बोले- ” तब तो मै एंड्रयूज को लिख दू कि तुमको कितना अच्छा शिष्य मिल गया हैं.

फिर बापू ने गम्भीरतापूर्वक कहा-‘ रात के ढाई बजे से उठा हुआ हुआ हु,अब नौ बज रहे हैं, दिन में बीस मिनट आराम मिला हैं. मै चकित रह गया. अठारह घंटे मेहनत के बाद भी बापू कितने सजीव हैं. मानो वे हमारी काहिली का प्रायश्चित कर रहे थे.

संध्या समय जब महात्मा गांधीडच-गायना प्रवासी भारतीयों के लिए संदेश लिखाने बैठे तो मैंने अपनी जेब से फाउन्टेन पैन निकाला, तुरंत ही महात्मा गांधी जी ने कहा- कब से फाउन्टेन पेन से लिखते हो?

मैंने कहा- कई साल हो गये”

“कितने साल”

मैंने कहा-ठीक-ठीक नही बतला सकता”

तब महात्मा गांधी जी ने कहा-दक्षिण अफ्रीका में जब मेरे पास फाउन्टेन पैन था, परन्तु अब तो कलम से लिखता हु. डच गायना वाले भी क्या कहेगे कि इनके पास घर की कलम भी नही हैं” तुरंत चाक़ू और कलम मंगाई गईं. परन्तु मै जिस कागज पर लिखने चला था, वह था बढ़िया बैक पेपर.

महात्मा गांधी जी ने कहाँ यह बढ़िया कागज हम लोगों को कहा से मिल सकता हैं?

यह तुम्हारे ऑफिस वालों को ही मिलता हैं, जहाँ चाय भी मिलती हैं,

हम तो कोरा पानी पीने वाले गरीब आदमी ठहरे. मै लज्जित हो गया,

फिर महात्मा गांधी जी गम्भीर होकर बोले -मेरा संदेश स्वदेशी कागज पर लिखो. आज तो हम लोगों ने आश्रम में कार्ड और लिफ़ाफ़े भी बनवाएं हैं हाथ का बना कागज लाया गया और मैंने नेजे की कलम से और घर की स्याही से महात्मा गांधी का वो संदेश लिखा.

महात्मा गांधी अपने अधिनस्थो को पूरी-पूरी स्वाधीनता देते थे. और वे भी उनसे मजाक करने से नही चुकते थे. मै भी यह ध्रष्टता कर बैठता था.

जब श्री पदमजा नायडू के लिए कॉफ़ी का सब सामान लाया गया.

तो बापू ने हंसकर कहा- यह सब तुम्हारा साज-समान हैं.

मैंने कहा- ”देखिए बापू , मेरी वोट हो रही हैं”

”कैसे”

मैंने कहा- महादेव भाई चाय पीते हैं, बां काफी पीती हैं और पदमजा जी भी कोफ़ी पीती हैं और मै चाय, चार वोट हो गयी.

बापू ने तुरंत उत्तर दिया-बुरी चीजों के प्रचार के लिए वोट की जरुरत थोड़े ही पड़ती हैं, वे तो अपने आप फैलती हैं.

महात्मा गांधी जी मजाक में पीछे रहने वाले आदमी नही थे. वे बड़े हाजिर जवाब थे.

एक बार विद्यापीठ के प्रिंसिपल कृपलानीजी बोले- जब हम लोग आपस में दूर रहते हैं, तो हमारी अक्ल ठीक रहती हैं, परन्तु पास होते ही खराब हो जाती हैं’

बापू हंसकर बोले-”तब तो मै आपकी खराब अक्ल का जिम्मेदार मै अकेला ठहरा”

खूब हंसी हुई, कलकत्ते में बापू ने बीस मिनट का टाइम दिया-सवेरे पौने चार बजे का.

अकेले जाने की बजाय में 16-17 आदमियों के साथ गया. जब जीने पर चढने लगा, तब महादेव भाई नाराज हुए और बोले” आप तो आश्रम में रह चुके हैं, यह क्या बे-नियम कार्यवाही करते हैं. परन्तु महात्मा गांधी जी ने इतना ही कहा- तुम तो पूरी की पूरी फोज ले आए.

मैंने कहा- क्या करता, ये लोग माने ही नही, मैंने इन्हे वचन दे रखा था कि बापू के दर्शन निकट से कराउगा.

बीस मिनट तक वार्तालाप होता रहा जब प्रार्थना के लिए महात्मा गांधी जी उठे तो मैंने कहा-बापू मै तो ,मासिक पत्र में आपके खिलाफ बहुत कुछ लिखा करता हु” पर बापू बोले- सो तो ठीक हैं, पर कोई सुनता भी हैं? ”सब हंस पड़े”

मुनि श्री जिनविजय ने महात्मा गांधी का एक किस्सा सुनाया था. महात्मा गांधी पहले मोटर से बाहर निकले परन्तु थोड़ी दूर चलकर कोने में अपनी मोटर खड़ी कर ली. इसके दो मिनट बाद ही पंडित मोतीलाल जी नेहरु और मुनि जी की मोटर निकली, मोतीलाल जी ने मुनि से कहा- देखा आपने? 

महात्मा गांधी जी ने मेरे ख्याल से अपनी मोटर रोक रखी हैं.चलकर उनसे कारण पूछे, पंडितजी ने जब पूछा तो महात्मा गांधी जी बोले” मै नही चाहता था कि आपकों धुल फाक्नी पड़े, मै तो आपकों ज्यादा दिन जिन्दा देखना चाहता हु.

महात्मा गांधी जी के मजाक, हाजिर-जवाबी और उनकी जागरूकता के सैकड़ो किससे हैं, जो उनके भक्तो को सैम-समय पर याद आ जाते हैं. साथ ही अपनी घ्रष्टता का ख्याल करके लज्जा का बोध भी होता हैं.

ऐसे अवतारी महापुरुष मर्यादा पुरुषोतम के किसी भी प्रकार के मजाक की हिमाकत तो था, ही परन्तु वे अत्यंत क्षमाशील थे और सबको पूर्ण स्वाधीनता देने के पक्षपाती. उनकी पावन स्मृति में सहस्त्र बार प्रणाम! -बनारसीदास चतुर्वेदी

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