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कैसे एक शोधपत्र (Research Paper) लिखें

इस आर्टिकल के सहायक लेखक (co-author) हमारी बहुत ही अनुभवी एडिटर और रिसर्चर्स (researchers) टीम से हैं जो इस आर्टिकल में शामिल प्रत्येक जानकारी की सटीकता और व्यापकता की अच्छी तरह से जाँच करते हैं। wikiHow's Content Management Team बहुत ही सावधानी से हमारे एडिटोरियल स्टाफ (editorial staff) द्वारा किये गए कार्य को मॉनिटर करती है ये सुनिश्चित करने के लिए कि सभी आर्टिकल्स में दी गई जानकारी उच्च गुणवत्ता की है कि नहीं। यहाँ पर 8 रेफरेन्स दिए गए हैं जिन्हे आप आर्टिकल में नीचे देख सकते हैं। यह आर्टिकल १,३७,६८६ बार देखा गया है।

स्कूल की ऊंची कक्षाओं में पढ़ने के दौरान और कॉलेज पीरियड में हमेशा ही, आपको शोध-पत्र तैयार करने के लिए कहा जाएगा। एक शोध-पत्र का इस्तेमाल वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक मुद्दों की ख़ोज-बीन और पहचान में किया जा सकता है। यदि शोध-पत्र लेखन का आपका यह पहला अवसर है, तो बेशक कुछ डरावना भी लग सकता है, पर मस्तिष्क को अच्छी तरह से संयोजित और एकाग्र करें, तो आप खुद के लिए इस प्रक्रिया को आसान बना सकते हैं। शोध-पत्र तो स्वयं नहीं लिख जाएगा, पर आप इस प्रकार से योजना बना सकते हैं, और ऐसी तैयारी कर सकते हैं कि लेखन व्यावहारिक रूप में खुद-ब-खुद जेहन में उतरता चला जाए।

अपने विषयवस्तु का चयन

Step 1 अपने आप से महत्वपूर्ण प्रश्न कीजिए:

  • आम तौर पर, वेबसाइट जिनके नाम के अंत में .edu, .gov, या .org होता है, ऎसी सूचनाएं रखती हैं जिन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है कि ये वेबसाइट स्कूलों, सरकार या उन संगठनों की होती हैं जो आपके विषय से सम्बंधित हैं।
  • अपनी खोज का प्रश्न बार-बार बदलें ताकि आपके विषय पर अलग-अलग तरह के खोज परिणाम मिलें। अगर कुछ भी मिलता नज़र न आये तो ऐसा हो सकता है कि आपकी खोज का प्रश्न अधिकाँश लेखों के शीर्षक से मेल नहीं खा रहा है जो आपके विषय पर हैं।

Step 5 एकेडमिक डेटाबेस का इस्तेमाल कीजिये:

  • ऐसे डेटाबेस ढूंढ़िए जो आपके विषय को ही सम्मिलित करते हों। उदहारण के लिए PsycINFO एक ऐसा डेटाबेस है जो कि केवल मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के क्षेत्र में ही विद्वानों द्वारा किये काम को सम्मिलित करता है। एक सामान्य खोज के मुकाबले यह आपको अपने अनुरूप शोध सामग्री पाने में मदद करेगा। [२] X रिसर्च सोर्स
  • पूछताछ के एकाधिक खोज-बॉक्स या केवल केवल एक ही प्रकार के स्रोत वाले आर्काइव के साथ अधिकाँश अकादमिक डेटाबेस आपको ये सुविधा देते हैं कि आप बेहद विशिष्ट सूचना मांग सकें (जैसे केवल जर्नल आलेख या केवल समाचार पत्र)। इस सुविधा का लाभ उठाकर जितने अधिक खोज बॉक्स आप इस्तेमाल कर सकते हैं उतना करें।
  • अपने विभाग के पुस्तकालय जाएँ और लाइब्रेरियन से अकादमिक डेटाबेस, जिनकी सदस्यता ली गयी है, की पूरी सूची और उनके पासवर्ड ले लें।

Step 6 अपने शोध में रचनात्मक हो जाएँ:

एक रूपरेखा का निर्माण

Step 1 किताब पर टीका-टिप्पणी,...

  • रूपरेखा बनाने और शोधपत्र लिखने का काम आखिरकार आसान करने के लिए टीका-टिप्पणी का काम गहनता से कीजिये। जिस चीज़ के महत्वपूर्ण होने का आपको ज़रा भी अंदेशा हो या जो आपके शोधपत्र में इस्तेमाल हो सकता है, उसकी निशानदेही कर लीजिए।
  • जैसे-जैसे आप अपने शोध में महत्वपूर्ण हिस्सों को चिन्हित करते जाएँ, अपनी टिप्पणी और नोट जोड़ते जाएँ कि इन्हें आप अपने शोध-पत्र में कहाँ इस्तेमाल करेंगे। अपने विचारों को लिखना जैसे-जैसे वे आते जाएँ, आपके शोधपत्र लेखन को कहीं आसान बना देगा और ऎसी सामग्री के रूप में रहेगा जिसे आप सन्दर्भ के लिए फिर-फिर इस्तेमाल कर सकें।

Step 2 अपने नोट्स को सुनियोजित करें:

  • हर उद्धरण या विषय जिसे आपने चिन्हित किया है उसे अलग-अलग नोट कार्ड पर लिखने की कोशिश कीजिए। इस तरह से आप अपने कार्डों को मनचाहे ढंग से पुनर्व्यवस्थित कर सकेंगे।
  • अपने नोट का रंगों में कोड बना लें, ताकि वे आसान हो जाएँ। अलग-अलग स्रोतों से जो भी नोट आप ले रहे हैं, उन्हें सूची बद्ध कर लें, और फिर सूचना के अलग-अलग वर्गों को अलग-अलग रंगों में चिन्हित कर लें। उदाहरण के लिए, जो कुछ भी आप किसी विशेष किताब या जर्नल से ले रहे हैं उन्हें एक कागज़ पर लिख लें ताकि नोट्स को सुगठित किया जा सके, और फिर जो कुछ भी चरित्रों से सम्बंधित है उसे हरे से चिन्हित करें, कथानक से जुड़े सबकुछ को नारंगी रंग में चिन्हित करें, आदि-आदि।

Step 3 सन्दर्भों का पन्ना बना लें:

  • एक तार्किक शोधपत्र विवादित विषयों पर एक पक्ष लेता है और एक दृष्टिकोण के लिए तर्क प्रस्तुत करता है। मुद्दे पर एक तर्कसंगत प्रतिपक्ष के साथ बहस की जानी चाहिए।
  • एक विश्लेषणात्मक शोधपत्र किसी महत्त्वपूर्ण विषय पर नए सिरे से दृष्टिपात करता है। विषय आवश्यक नहीं है कि विवादित हो, पर आपको अपने पाठकों को सहमत करना पड़ेगा कि आपके विचारों में गुणवत्ता है। यह महज आपके शोध से विचारों की उबकाई भर नहीं, बल्कि अपने उन विशिष्ट अद्वितीय विचारों की प्रस्तुति है जिन्हें आपने गहन शोध से सीखा है।

Step 5 आपके पाठक कौन होंगे यह निर्धारित कर लीजिये:

  • थीसिस विकसित करने का आसान तरीका है कि उसे एक प्रश्न के रूप में ढालिए जिसका आपका निबंध उत्तर देगा। वह मुख्य प्रश्न या हाइपोथीसिस क्या है जिसको आप अपने शोधपत्र में प्रमाणित करना चाहते हैं? उदाहरण के लिए आपकी थीसिस का प्रश्न हो सकता है, “मानसिक बीमारियों के इलाज की सफलता को सांस्कृतिक स्वीकृति कैसे प्रभावित करती है?” यह प्रश्न आपकी थीसिस क्या होगी उसे निर्धारित कर सकता है – इस प्रश्न के लिए आपका जो भी उत्तर होगा, वही आपका थीसिस-कथन होगा।
  • शोधपत्र के सभी तर्कों को दिए बिना या उसकी रूपरेखा बताये बिना ही आपकी थीसिस को आपके शोध के मुख्य विचार को व्यक्त करना होगा। यह एक सरल कथन होना चाहिए, न कि कई सहायक वाक्यों का एक समूह, आपका बाक़ी शोधपत्र तो इस काम के लिए है ही!

Step 7 अपने मुख्य बिन्दुओं को निर्धारित कर दें:

  • जब आप अपने मुख्य विचारों की रूप-रेखा बनाएं, उनको एक विशिष्ट क्रम में रखना अहम है। अपने सबसे मज़बूत तर्कों को निबंध के सबसे पहले और सबसे अंत में रखिये। जबकि ज्यादा औसत बिन्दुओं को निबंध के बीचोंबीच या अंत की तरफ रखिये।
  • सबसे मुख्य बिन्दुओं को एक ही पैराग्राफ में समेटना ज़रूरी नहीं है, विशेष करके अगर आप एक अपेक्षाकृत लंबा शोधपत्र लिख रहे हैं। प्रमुख विचारों को जितने पैराग्राफ में आप ज़रूरी समझें फैलाकर लिख सकते हैं।

Step 8 फॉरमैटिंग के दिशानिर्देशों को ध्यान में रखिये:

  • अपनी हर बात को साक्ष्यों से पुष्ट करें। क्योंकि यह एक शोधपत्र है इसलिए ऐसी टिप्पणी न करें जिसकी पुष्टि सीधे आपके शोध के तथ्यों से न हो।
  • अपने शोध में पर्याप्त व्याख्याएं दीजिये। बिना तथ्यों के अपने मत के बखान का विलोम बगैर किसी व्याख्या के बिना तथ्यों को देना होगा। यद्यपि आप निश्चित ही पर्याप्त प्रमाण देना चाहते हैं, तो भी जहां भी संभव हो अपनी टिप्पणी जोड़ते हुए यह सुनिश्चित कीजिए कि शोधपत्र पर आपकी मौलिक और विशिष्ट छाप हो।
  • बहुत सारे सीधे लम्बे उद्धरण देने से बचें। यद्यपि आपका निबंध शोध पर आधारित है, फिर भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको अपने विचार प्रस्तुत करने हैं। जिस उद्धरण का आप इस्तेमाल करना चाहते हैं, जब तक वह बेहद अनिवार्य न हो, उसे अपने ही शब्दों में व्यक्त और विश्लेषित करने की कोशिश कीजिए।
  • अपने पेपर में साफ़-सुथरे और संतुलित गति से एक बिंदु से दूसरे तक जाने का प्रयास करें। निबंध में स्वछन्द तारतम्य और प्रवाह होना चाहिए, इसके बजाय कि अनाड़ी की तरह रुक-रुक कर क्रम टूटे और फिर अचानक शुरू हो जाए। यह ध्यान रखें कि लेख के मुख्य भाग वाला हर पैरा अपने बाद वाले से जाकर मिलता हो।

Step 2 निष्कर्ष लिखें:

  • आपके निष्कर्ष का लक्ष्य, साधारण शब्दों में, इस प्रश्न का उत्तर देना है, “तो क्या?” ध्यान रखें कि पाठक आख़िरकार महसूस करे कि उसे कुछ प्राप्त हुआ है।
  • कई कारणों से अच्छा नुस्खा तो यह है कि, निष्कर्ष को भूमिका के पहले लिख लिया जाये। पहली बात तो यह है कि जब प्रमाण आपके दिमाग में ताज़ा हों तो निष्कर्ष लिखना ज्यादा आसान होता है। उससे भी बड़ी बात यह है, सलाह दी जाती है कि आप निष्कर्ष में अपने सबसे चुनिन्दा शब्द और भाषा का मजबूती से इस्तेमाल करें और फिर उन्हीं विचारों को भिन्न शब्दों में अपेक्षाकृत कम वेग के साथ भूमिका में रख दें, न कि इसका उल्टा करें; यह पाठकों पर ज्यादा स्थायी प्रभाव छोड़ेगा।

Step 3 निबंध की प्रस्तावना लिखें:

  • MLA फॉर्मेट को विशेष रूप से साहित्यिक शोध-पत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें ‘उद्धृत सामग्री’ की एक सूची अंत में जोड़नी होती है, इस विधि में अंतरपाठीय उद्धरण प्रयोग किये जाते हैं।
  • APA फॉर्मेट का इस्तेमाल सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में शोधपत्रों के लिए शोधकर्त्ताओं द्वारा किया जाता है, और इसमें भी अंतरपाठीय उद्धरण देने होते हैं। इसमें निबंध का अंत “सन्दर्भ” पृष्ठ के साथ होता है, और इसमें मुख्य भाग के पैराग्राफों के बीच में अनुच्छेद शीर्षक का प्रयोग भी किया जा सकता है।
  • शिकागो फोर्मटिंग को प्रमुखतः ऐतिहासिक शोधपत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें अंतरपाठीय उद्धरण के स्थान पर पृष्ठ के नीचे फुटनोट का प्रयोग होता है और साथ में एक ‘उद्धृत सामग्री’ और सन्दर्भों का पृष्ठ जुड़ता है। [७] X रिसर्च सोर्स

Step 5 अपने कच्चे प्रारूप...

  • अपने पेपर का सम्पादन यदि खुद आपने किया है, तो उस पर वापस आने से पहले कम से कम तीन दिन प्रतीक्षा कीजिए। अध्ययन दिखाते हैं कि, लेख समाप्त करने के बाद भी दो-तीन दिन तक यह आपके जेहन में ताज़ा बना रहता है, और इसलिए ज्यादा संभावना यह रहेगी कि आम तौर पर आप जिन बुनियादी त्रुटियों को पकड़ पाते, उन्हें भी अपनी सरसरी नज़र में नजरअंदाज कर जाएँगे।
  • दूसरों के द्वारा संपादन को महज इसलिए नजरअंदाज न करें कि उनसे आपका काम बढ़ जाएगा। अगर वे आपके पेपर के किसी अंश को दोबारा लिखे जाने की सलाह दे रहे हों तो उनके इस आग्रह का संभवतया उचित कारण है। अपने पेपर के सघन सम्पादन पर समय दीजिए। [८] X रिसर्च सोर्स

Step 6 अंतिम ड्राफ्ट को लिखिए:

  • रिसर्च के दौरान महत्वपूर्ण थीम, प्रश्नों और केन्द्रीय मुद्दों को ढूँढ़ें।
  • यह समझने की कोशिश करें कि, आप वास्तव में निर्दिष्ट रूप में किस चीज़ का अन्वेषण करना चाहते हैं, इसके बजाय कि पेपर में ढेर सारे व्यापक विचारों को ठूस दिया जाए।
  • ऐसा करने के लिये अंतिम क्षण तक प्रतीक्षा मत कीजिए।
  • अपने असाइंमेंट को समयानुसार पूरा करना सुनिश्चित कीजिए।

संबंधित लेखों

इंटर्नशिप के बाद रिपोर्ट लिखें (Write a Report After an Internship)

  • ↑ http://www.infoplease.com/homework/t3sourcesofinfo.html
  • ↑ http://www.ebscohost.com/academic
  • ↑ http://owl.english.purdue.edu/owl/resource/552/03/
  • ↑ http://owl.english.purdue.edu/owl/resource/544/02/
  • ↑ http://www.indiana.edu/~wts/pamphlets/thesis_statement.shtml
  • ↑ http://libguides.jcu.edu.au/content.php?pid=83923&sid=3619280
  • ↑ http://writing.yalecollege.yale.edu/why-are-there-different-citation-styles
  • ↑ http://professionalonlineediting.com/how-to-edit-your-essay-or-research-paper-fast.asp

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Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य

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Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य

Synopsis / शोध प्रारूपिका (लघु शोध व शोध के विद्यार्थियों हेतु)

किसी भी क्षेत्र में शोध करने से पूर्व मनोमष्तिष्क में एक तूफ़ान एक हलचल महसूस होती है, शोध परिक्षेत्र की तलाश प्रारम्भ होती है, विषय की तलाश से लेकर परिणति तक का आयाम मुखर होने लगता है और इसी मनोवेग वैचारिक तूफ़ान को शोध एक सृजनात्मक आयाम देता है एवं अस्तित्व में आता है शोध प्रोपोज़ल या शोध प्रारूपिका। हमारे शोधार्थियों में इसके लिए शब्द प्रचलन में है: —- Synopsis.

शोध को क्रमबद्ध वैज्ञानिक स्वरुप देने हेतु लघुशोध व शोध के विद्यार्थी सरलता से कार्य कर सहजता से इस परिणति तक ले जा सकते हैं, Synopsis के चरणों(Steps) को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है –

1. प्रस्तावना 2. आवश्यकता क्यों? 3. समस्या 4.उद्देश्य 5.परिकल्पना 6. प्रतिदर्श 7. शोध विधि 8. शोध उपकरण 9. प्रयुक्त सांख्यिकीय विधि 10. परिणाम, निष्कर्ष एवं सुझाव 11. प्रस्तावित रूपरेखा (शोध स्वरूपानुसार)

1. प्रस्तावना(Introduction)-

जिस तरह रत्नगर्भा पृथ्वी के गर्भ से प्राप्त अयस्क परिशोधन से शुद्ध धात्वीय स्वरुप प्राप्त करते हैं उसी प्रकार हमारे मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते तथ्य प्रगटन के लिए अपने परिशुद्ध स्वरुप को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं और हम अपनी क्षमता के अनुसार उसे बोधगम्य बनाकर उसका प्रारम्भिक स्वरुप प्रस्तुत करते हैं जो मूलतः हमारे विषय से सम्बन्ध रखता है, शीर्षक से जुड़ाव का यह मुखड़ा, भूमिका या प्रस्तावना का स्वरुप लेता है इसके शब्द हमारी क्षमता अधिगम स्तर और प्रस्तुति कौशल के अनुसार अलग-अलग परिलक्षित होता है इसमें वह आलोक होता है जो हमारे शोध का उद्गार बनने की क्षमता रखता है।

2. आवश्यकता क्यों?(Importance)-

यह बिंदु विषय-वस्तु के महत्त्व को प्रतिपादित करता है और उस पर कार्य करने के औचित्य को सिद्ध करता है कि आखिर अमुक चर को या अमुक पात्र या विषय वस्तु को ही हमने अपने अध्ययन का आधार क्यों बनाया? हमें देश, काल, परिस्थितियों के आलोक में अपने विषय और उसी परिक्षेत्र पर कार्य करने की तीव्रता का परिचय कराना होता है इसे ऐसे शब्दों में लिखा जाना चाहिए कि पढ़ने वाला उसकी तीव्रता को महसूस कर सके और उसका मानस सहज रूप से आपके तर्कों का कायल हो जाए।

3. समस्या(Problem)-

यहाँ समस्या या समस्या कथन से आशय शोध के ‘शीर्षक’ से है। शीर्षक संक्षिप्त, सरल, सहज बोधगम्य व सार्थक भाव युक्त होना चाहिए अनावश्यक विस्तार या अत्यधिक कठिन शब्दों के प्रयोग से बचकर उसे अधिक पाठकों की बोधगम्यता परिधि में लाया जा सकता है यह शुद्ध व भाव स्पष्ट करने में समर्थ होना चाहिए। शोध स्वरूपानुसार इसका उपयुक्त चयन व शुद्ध निरूपण होना चाहिए।

4. उद्देश्य(Objectives)-

उद्देश्य बहुत सधे शब्दों में बिन्दुवार दिए जाने चाहिए। तुलनात्मक अध्ययन में निर्धारित चर के आधार पर न्यादर्श के प्रत्येक वर्ग का दुसरे से तुलनात्मक अध्ययन करना, उद्देश्य का अभीप्सित होगा यह शोधानुसार क्रमिक रूप से व्यवस्थित किए जा सकते हैं।

5. परिकल्पनाएं(Hypothesis)-

परिकल्पनाओं का स्वरुप शोध के स्वरुप पर अवलम्बित होता है। सकारात्मक, नकारात्मक और शून्य परिकल्पना अस्तित्व में है लेकिन शोध हेतु शून्य परिकल्पना सर्वाधिक उत्तम रहती है, इसको भी क्रमवार तुलना के स्वरुप के आधार पर व्यवस्थित करते हैं। यदि ग्रुप ‘A’ और ग्रुप ‘B’ के लड़कों की ‘कम्प्यूटर के प्रति भय’ के आधार पर तुलना करनी हो तो इसे इस प्रकार लिखेंगे :

ग्रुप ‘A’ और ग्रुप ‘B’ के लड़कों में कम्प्यूटर के प्रति भय के आधार पर कोई सार्थक अन्तर नहीं है।

6. प्रतिदर्श(Sample)-

प्रतिदर्श या न्यादर्श शोध की प्रतिनिधिकारी जनसंख्या होती है यह समस्या के स्वरुप, शोधार्थी की क्षमता, समय व साधनों द्वारा निर्धारित होती है। शोध हेतु चयनित जनसंख्या का शोध स्वरूपानुसार विभिन्न वर्गों में वितरण कर लेते हैं जिससे परस्पर तुलना सुगम हो जाती है यह भी परिकल्पना निर्धारण में सहायक होती है।

7. शोध विधि(Research Method)-

इसका निर्धारण शोध शीर्षक के स्वरुप पर अवलम्बित होता है हिस्टॉरिकल रिसर्च या सर्वेक्षण आधारित शोध Synopsis के पूरे स्वरुप को प्रभावित करते हैं। शोध विधि, शोध की दिशा तय करने में सक्षम है।

8. शोध उपकरण(Research Tools)-

शोध स्वरूपानुसार ही इसकी आवश्यकता होती है कुछ प्रामाणिक शोध उपकरण मौजूद हैं एवं कभी आवश्यकता अनुसार खुद भी स्व आवाश्यक्तानुसार शोध उपकरण विकसित करना होता है। वर्णनात्मक शोध प्रबन्ध में इसकी आवश्यकता नहीं होती।

9. प्रयुक्त सांख्यिकीय विधि(Used Statistical Method)-

जिन शोध के प्राप्य समंक होते हैं उनसे किसी निष्कर्ष तक पहुँचने में शोध की प्रवृत्ति के अनुसार सांख्यिकी का प्रयोग करना होता है यहां केवल प्रयुक्त सूत्र एवं उसमे प्रयुक्त अक्षर का आशय लिखना समीचीन होगा।

10. परिणाम, निष्कर्ष एवं सुझाव(Result, Outcome & Suggestion)-

इस भाग में केवल इतना लिखना पर्याप्त होगा कि ‘प्रदत्तों का सांख्यकीय विश्लेषण से प्राप्त परिणामों के आधार पर निष्कर्ष निकाला जायेगा एवं भविष्य हेतु सुझाव सुनिश्चित किए जाएंगे।

11. प्रस्तावित रूपरेखा (शोध स्वरूपानुसार)(Proposed Framework)-

  • सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन
  • अध्ययन की योजना का प्रारूप
  • आकङों का विश्लेषण एवं विवेचन
  • शोध निष्कर्ष एवं सुझाव
जहां सांख्यिकीय विश्लेषण आवश्यक नहीं है उन वर्णनात्मक, ऐतिहासिक या विवेकनात्मक शोध में चतुर्थ अध्याय आवश्यकतानुसार परिवर्तनीय होगा।

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  • शोधप्रारूप(synopsis) कैसे बनाएँ ? how to create a research design ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI

  जब हम अपने रिसर्च कार्य का प्रारम्भ करते है तो सबसे पहले शोध विषय(research topic) का चयन करते है । शोध विषय का निश्चय करने के तुरन्त बाद यह प्रश्न आता है कि इस शोधकार्य का प्रयोजन क्या है ? तथा कैसे इस शोध कार्य को पूर्ण करना है? यही तथ्य एक प्रक्रिया के द्वारा लिखित रूप में अपने गाइड और कमेटी के समक्ष प्रस्तुत करना होता है जिसे हम शोधप्रारूप या सिनॉप्सिस(synopsis) कहते हैं।

     शोधप्रारूप या सिनॉप्सिस(synopsis) सही ढंग से न प्रस्तुत करने के कारण वर्षों तक यहाँ-वहाँ भटकना पड़ता है तथा शोधकार्य पिछड़ता चला जाता है।दोस्तों यदि आपने शोधप्रारूप का निर्माण सही ढंग से कर लिया याकि एक बेहतर तरीके से चरणबद्ध शोधप्रारूप सिनॉप्सिस(synopsis)  निर्मित कर ली तो यह कमेटी से शीघ्र ही पास हो जाता है । इसलिए कभी भी शोधप्रारूप का निर्माण चरणबद्ध तरीके से करें । शोधप्रारूप निर्माण के कुछ चरण निर्धारित किये गये हैं जिससे शोधप्रारूप बनकर तैयार होता है ।

शोधप्रारूप के 10 चरण(ten stages of research design)

1. परिचय पृष्ठ(introduction page), 2. प्रस्तावना(preface).

3. औचित्य(justification)

4. प्रयोजन(purpuse of research)

5. प्राक्कल्पना(hypothesis)

6. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि(historical background).

7. शोध सर्वेक्षण(research survey)

8. शोध प्रकृति(nature of research)

9. अध्याय विभाजन(chapter division)

10. सन्दर्भ-ग्रन्थ सूची(reference bibliography)

शोधप्रारूप या सिनॉप्सिस(synopsis) के यही दस चरण हैं जिससे शोधप्रारूप का निर्माण होता है । अब हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे ।

   यह सिनॉप्सिस(synopsis) का पहला पेज(front page) होता है जिसमें निम्नलिखित सूचनाएँ देते हैं-

- युनिवर्सिटी का लोगो(logo) तथा युनिवर्सिटी का नाम(name of university)

- शोध-विषय(research topic)

- सत्र(year)

- शोधनिर्देशक/निर्देशिका (name of superviser or guide)

- अपना नाम(your name)

  प्रस्तावना वह भाग होता है जिसमें अपने शोध शीर्षक के विषय में सामान्य जानकारी देनी पड़ती है । एक तरह से यह आपके शीर्षक का सामान्य परिचय होता है । प्रस्तावना बहुत लम्बी नहीं होनी चाहिए । एक-एक शब्द को अच्छी तरह से जाँच-परखकर रखना चाहिए । प्रस्तावना में 300 से 500 शब्द होने चाहिए । आवश्यकतानुसार इसे घटाया बढ़ाया जा सकता है । परन्तु ध्यान रहे प्रस्तावना में व्यर्थ बातें नहीं भरनी चाहिए । जो आवश्यक बातें हो वही इस भाग में लिखें । 

3. औचित्य(justification) 

 आप जिस शीर्षक पर कार्य करने जा रहे हैं उस शीर्षक का औचित्य क्या है ? इसके बारे में यहाँ लिखना होता है। औचित्य का आशय यह है कि जिस विषय का आपने चयन किया है उस पर शोधकार्य करने की आवश्यकता क्या है । आपके इस शोधकार्य के करने से कौन-कौन सी नई बातें निकलकर आएंगी जिसके बारे में जानना जरूरी है। कभी-कभी हमें लगता है कि औचित्य और प्रयोजन एक ही बात है पर ऐसा नहीं है, इसमें अन्तर है । औचित्य भाग में केवल आपके शोध कार्य की आवश्यकता से सम्बन्धित बातों का जिक्र होता है जबकि प्रयोजन भाग में शोधकार्य के फल या परिणाम की जानकारी दी जाती है। अतः इन दोनों का अन्तर समझकर पृथक-पृथक जानकारी लिखनी चाहिए । इस भाग में यह भी बताना होता है कि इस विषय पर कितना कार्य हुआ है और क्या बाकी है । जो भाग शेष है उसकी भी पूर्ण जानकारी इसमें लिखनी चाहिए । क्योंकि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिस विषय पर आप कार्य करने जा रहे हैं उस पर कार्य हुआ होता है परन्तु आपको लगता है कि नहीं यह कार्य अभी पूर्ण नहीं है , इसमें इतना भाग बचा है जिस पर शोधकार्य होना चाहिए। इसी बात की जानकारी इस भाग में देनी पड़ती है ।

4. प्रयोजन(Purpose of research)

    आपके शोधकार्य का कोई न कोई प्रयोजन होना चाहिए । जैसा कि कहा गया है -

प्रयोजनमनुद्दिश्य मन्दोपि न प्रवर्तते॥

अतः आपके शोधशीर्षक में एक अच्छा परिणाम, फल या प्रयोजन छुपा होना चाहिए । बिना प्रयोजन के शोध शीर्षक का चयन नहीं करना चाहिए । इस भाग में यह लिखना होता है कि आपने जो शोध शीर्षक चुना है उसका प्रयोजन क्या है ? इस शोधकार्य का परिणाम क्या होगा ? इसका जिक्र इस भाग में करना चाहिए । ध्यान रहे आपके शोध शीर्षक के विस्तार के आधार पर ही प्रयोजन का निश्चय करना चाहिए । ऐसा न हो कि जो प्रयोजन आप दिखा रहे हों वहाँ तक आपके शोध शीर्षक की पहुँच ही न हो । जैसे आपने किसी एक साहित्यिक पुस्तक पर शोधकार्य  आरम्भ किया तथा प्रयोजन में लिखा कि इस शोधकार्य से सम्पूर्ण साहित्य जगत् का कल्याण होगा । यह गलत है । साहित्य जगत् बहु-विस्तृत शब्द है । एक पुस्तक पर किया गया कार्य समग्र साहित्य का कल्याण नहीं कर सकता अतः आपके द्वारा दिखाया गया यह प्रयोजन निरर्थक है । इस विषय का सही प्रयोजन यह है कि प्रस्तुत पुस्तक पर शोध कार्य करने से इस पुस्तक से सम्बन्धित तथ्य अध्येताओं के सम्मुख आयेंगे तथा इस पुस्तक के महत्त्व का आकलन  हो सकेगा । अब आप समझ गये होंगे कि इस भाग में हमें क्या दर्शाना है । शोध शीर्षक के अनुरूप शोधकार्य का फल भी होना चाहिए । 

   शोध प्रारूप का यह भी बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है । प्राक्कल्पना का अर्थ होता है पूर्व में कल्पना करना । अपने शोध शीर्षक के विषय में हम यह बताते हैं कि यह शोधकार्य किस प्रकार से अपने मूलभूत विषय का उपस्थापन करेगा अथवा इस विषय पर हमारे शोधकार्य से किस प्रकार के प्रतिफल के आने की सम्भावना है । इस बात का वर्णन भी इस शोधप्रारूप में करना पड़ता है ।

  इस भाग में यह लिखना होता है कि आपके शोध-शीर्षक की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है ? इस शीर्षक से सम्बन्धित तथ्यों का इतिहास क्या रहा है ? आपके शीर्षक को प्रभावित करने वाले कैसे-कैसे ग्रन्थ या कैसी-कैसी साहित्यिक सामग्री पूर्वकाल से ही उपलब्ध है अथवा प्राचीनकाल में आपके शोधविषय का प्रारूप क्या था ? इस भाग में शोध शीर्षक का ऐतिहासिक विवरण देना चाहिए । 

7. शोध-सर्वेक्षण(research survey)

    शोधप्रारूप का यह भाग अतीव महत्त्वपूर्ण होता है । आपने कोई भी शोध शीर्षक चुन तो लिया, शोध प्रारूप भी बना लिया , सब कुछ निश्चित हो गया कि इसी शोध विषय पर हमें कार्य करना है परन्तु बाद में कमेटी में जाकर खारिज हो गया तथा पत्र में लिखकर आ गया कि जिस विषय पर आप शोधकार्य करने जा रहे हैं उस विषय पर तो कार्य हो चुका है । तब आपका मुंह देखने लायक होता है । तो यह घटना आपके साथ घटे इससे पूर्व ही यह निरीक्षण कर लें कि जिस विषय का आपने चुनाव किया है वह अकर्तृक है अर्थात् उस पर किसी ने शोध कार्य नहीं किया है । अपने शोध प्रारूप के इस भाग में आप यही बताएंगे कि जिस विषय पर मैं शोध कार्य करने जा रहा हूँ उस विषय पर मेरे संज्ञान में कोई शोधकार्य नहीं हुआ है । इसका सर्वेक्षण हमने कर लिया है तथा यह शोध शीर्षक शोधकार्य हेतु अर्ह है ।

8. शोध-प्रकृति(nature of research)

  इस भाग में आप यह बताते हैं कि आपने अपने शोधकार्य में किस विधि या किस शोध पद्धति का इस्तेमाल किया है । आपके शोध की प्रकृति क्या है ? इस विषय में आप निश्चय करते हैं कि हमने शोधकार्य की परिपूर्णता एवं स्पष्टता हेतु किन-किन विधियों का समावेश किया है । यह प्रकृति अनेक प्रकार की हो सकती है । शोधकार्य में कहीं तुलनात्मक, कहीं विश्लेषणात्मक या कहीं विमर्शात्मक या कहीं-कहीं अन्यान्य शोध-प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है । इन्हीं विषयों की सम्भावना प्रस्तुत भाग में करनी चाहिए ।

शोध-प्रविधियों की जानकारी के लिए देखें- शोध-प्रविधियाँ ।

9. अध्याय-विभाजन(chapter division)

   इस भाग में आप अपने शोधकार्य का प्रबन्ध भाग दर्शाने हेतु अध्याय विभाजन करते हैं । आपके शोध- प्रबन्ध के अध्यायों का प्रारूप कैसा रहेगा उन बातों का विवरण आप इस भाग में लिखेंगे । आपके शोध प्रबन्ध में 5,6,7,8,9, या 10 कितने अध्याय होंगे इसका स्पष्ट उल्लेख यहां होना चाहिए । 

  अध्याय विभाजन में ध्यातव्य बातें-

- अध्यायों की संख्या आपके शोध प्रबन्ध के अनुरूप होनी चाहिए ।

- फालतू अध्याय न जोड़ें जिसका आपके शोध प्रबन्ध में कोई महत्त्व न हो ।

- अध्यायों में विशिष्ट  तथ्यों से सम्बन्धित सब-टाइटल(sub-title) का प्रयोग करें ।जैसे-

अध्याय.1 के अन्तर्गत 1.1,1.2,1.3,...आदि या(क),(ख),(ग)... इत्यादि ।

- अध्याय विभाजन में सर्वप्रथम भूमिका फिर अध्यायों का क्रम पुनः उपसंहार अन्त में परिशिष्ट की योजना करनी चाहिए । 

10. सन्दर्भ ग्रन्थ सूची(reference bibliography)

   शोध प्रारूप का यह अन्तिम भाग है । इस भाग में आपके शोध विषय में प्रयुक्त ग्रन्थों की जानकारी यहाँ देनी पड़ती है । सन्दर्भ ग्रन्थ सूची में ग्रन्थ के लेखक, रचयिता या सम्पादक का नाम, ग्रन्थ का नाम या शीर्षक, प्रकाशक का नाम , प्रकाशन स्थल , संस्करण एवं वर्ष का क्रमशः उल्लेख करना चाहिए । पत्र-पत्रिकाओं या इन्टरनेट की भी यदि सहायता ली गई है तो इसका भी उल्लेख आप यहाँ कर सकते हैं ।

  सबसे अन्त में नीचे बाएँ दिनाङ्क एवं स्थान का सङ्केत करना चाहिए तत्पश्चात् उसके नीचे बाँए ही साइड मार्गदर्शक का नाम एवं  दायें अपना नाम एवं हस्ताक्षर अङ्कित करना चाहिए ।

हमें आशा है आपको यह लेख पसन्द आयेगा । आपको यह लेख कैसा लगा इसके बारे में कमेन्ट बॉक्स में लिखकर हमें प्रेषित करें । यदि सम्बन्धित विषय में किसी प्रकार की आशंका है तो भी कॉमेन्ट करके अवश्य सूचित करें ।  

शोध प्रारूप

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 यह भी पढ़ें>>>

  • शोध का अर्थ, परिभाषा, तत्व, महत्व, प्रकार, चरण और शोध प्रारूप/design , 
  • शोध प्रबन्ध(Thesis) कैसे लिखें ?, शोध प्रबन्ध की रूपरेखा और महत्व
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SOORAJ KRISHNA SHASTRI

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22टिप्पणियाँ

महादय: शोधप्रारूपस्य उत्तमम् रित्याम् विवरणं दत्तवान्। शोधर्थि कृत्ते उपयोगि भवेत्।

dissertation kaise likhe

धन्यवाद, यदि आप सभी के काम आ सकूँ तो स्वयं को सफल मानूँगा। यदि आप इससे लाभान्वित हुए हों तो और मित्रों को भी प्रेरित करें ।

Thank you sir ek synopsis bhej dijiye koi ho apke pass toh

Koi AK synopsis bhejen sir

Thanks Sir 🙏

dissertation kaise likhe

बहुत अच्छा विवरण। इस सम्बन्ध में आपसे सम्पर्क किया जा सकता है?

जी हाँ हमसे सम्पर्क करने के लिए हमारे ईमेल आईडी [email protected] या फोन नंबर 7376572355 पर सम्पर्क कर सकते हैं धन्यवाद 🙏🙏

बहुत बहुत धन्यवाद सर आपने एक एक चरण को बेहतर ढंग से समझाया हैं 🙏🙏

धन्यवाद भाई 🙏🙏

Bahut hi sundar prasentation sir..

Babu ki sundar lekh dhanyavad

बहुत ही सुंदर जानकारी

Thank you for giving this a beautiful information for synopsis of PhD

अतिउत्तम प्रस्तुति एवं बहुपयोगी लेख

It's very useful and helpful for my synopsis 🙏

Thank you🙏🙏

Sir readymade शोधप्रारूप Ka pdf mil Sakta h 5 September last date

Thanks for sharing

very informative post for research. thanks for shering

Bharat mein madhyamik Shiksha ki samasya per shodh

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PhD kaise kare: जानिए स्टेप बाय स्टेप गाइड

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  • Updated on  
  • मई 17, 2023

Ph.D. रीसर्च के आधार पर की जाने वाली डिग्री है। जिसमे विद्यार्थी अपनी पसंद के मुताबिक़ विषय चुनकर उसपर विस्तार से ज्ञान हासिल कर सारी जानकारी को एक जगह एकत्रित करता है जिसे थीसिस कहा जाता है। इसका मकसद यह रहता की आगे उस विषय पर जान्ने के लिए उस थीसिस का इस्तमाल किया जा सकता है और विषय पर जानकारी ली जा सकती है। एक Ph.D. होल्डर ज़्यादातर प्रोफेसर , असिस्टेंट प्रोफेसर , लेखक आदि के रूप में अपने भविष्य को आकार देते है । लेकिन स्कोप बेहद है। PhD kaise kare इसके लिए योग्यता, आवेदन प्रक्रिया, टॉप यूनिवर्सिटीज आदि के बारे में इस ब्लॉग में विस्तार से बताया गया है।

This Blog Includes:

Phd क्या है, phd क्यों करें, प्रोफेशनल डॉक्टरेटस, उच्च डॉक्टरेटस, न्यू रूट phd, टॉप पीएचडी कोर्सेज, phd होल्डर की ज़िम्मेदारीयां, phd kaise kare स्टेप बाय स्टेप गाइड, phd के लिए दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटीज़, टॉप भारतीय यूनिवर्सिटीज़ , पीएचडी की फीस, phd के लिए योग्यता , आवेदन प्रक्रिया, phd के लिए एंट्रेंस एग्जाम, phd के लिए छात्रवृत्तियां, phd के बाद करियर और सैलरी.

PhD की फुल फॉर्म Doctor of Philosophy है। PhD विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदान की जाने वाली विद्या-संबंधी डिग्री में सबसे ऊंची डिग्री मानी जाती हैं । PhD साथ-साथ एक पोस्ट ग्रेजुएट कि डॉक्टरेट डिग्री हैं जिसकी पूर्ती के बाद PhD करने वाले के नाम से पहले डॉ लग जाता हैं। वो विद्यार्थी जो अपने पसंद के विषय में महारथ हासिल करना चाहतें हैं। पीएचडी को चुनते हैं जिसमें उन्हें उस विषय पर रीसर्च कर उसकी बेहतर जानकारी होना और उस पर लिखना शामिल होता हैं। एक पीएचडी होल्डर अपना करियर किसी भी तरह से शुरू कर सकता हैं। मूलतः विद्यार्थीओ का पीएचडी करने का उद्देश्य प्रोफेसर बनना या रिसर्चर बनना होता हैं। 

PhD शिक्षा प्रणाली का एक महत्पूर्व अंग हैं। PhD का मूल उद्देश्य ही नई खोज को जन्म देना और अलग अलग विषयो के बारे में गहरायी से ज्ञान अर्जित कर उसे सब तक पहुँचाना हैं। नई स्किल्स को उभारना और विकसित करना, नई चीज़ो को जान पाना और समझ पाना इसकी असल परिभाषा हैं। तो अगर आप वे व्यक्ति हैं जो किसी विषय कि गहराई में जाने में दिलचस्पी रखता हैं तो पीएचडी आपके लिए हैं।

PhD के प्रकार

एक समय था जब PhD कि महत्वता को कम बढ़ावा दिया जाता था या कह लीजिये कि PhD कम प्रचलित हुआ करती थी। लेकिन समय के साथ PhD होल्डर्स के लिए कई द्वार खुले और PhD कि महत्वता बढ़गयी। अब PhD सिर्फ ज्ञान अर्जित करने स्त्रोत नहीं हैं। कई नौकरिया और प्रोफेशंस PhD होल्डर्स को ही प्राथमिकता देते हैं जोकि PhD होल्डर्स के करियर को बेहतरी कि और ले जाता हैं और नए विकल्प प्रदान करता हैं। Ph.D. कैसे करें, के इस ब्लॉग में PhD के कुछ प्रकार विस्तार में दिए गए हैं: 

एक प्रोफेशनल डॉक्टरेट का मूल उद्देश्य वास्तविक समस्याओं पर रिसर्च कर उसे लागू करना हैं। जटिल परिस्तिथ्यो का उपाय निकालना और उसको डिज़ाइन करना ताकि प्रोफेशनल कार्यो में विपदा आने पर उसका निवारण हो सके। वो प्रोफेशन कोई भी हो सकता हैं। लेकिन किन कार्यो से उस समस्या का उपाय निकलेगा ये रिसर्च करके ही मालूम चल सकता हैं। इस प्रकार के PhD कोर्स को इंजीनियरिंग, मेडिसिन जैसे विषयों पर रिसर्च करने के लिए विद्यार्थियों द्वारा चुना जाता है। PhD के इस प्रकार को उन विद्यार्थियों द्वारा चुना जाता है, जो डिग्री पूरी करने के बाद एक विशेष प्रोफेशनल करियर विकल्प को चुनना चाहते हैं।

उच्च डॉक्टरेट एक प्रकार हैं जिसमे स्कॉलर्स को औपचारिक रूप से सार्वजनिक मान्यता दी जाती हैं। वो PhD होल्डर्स जिन्होंने अपने विषय में सामाजिक तौर पर एक अलग छाप छोड़ी हैं उन्हें ये डिग्री देकर सम्मानित किया जाता हैं। इस प्रकार की डिग्री के लिए कैंडिडेट को इंटरनल और एक्सटर्नल एग्ज़ामीनर कमिटी की सिफ़ारिश पर विशेष ग्रांट्स की आवश्यकता होती है। Ph.D. के इस प्रकार में Doctor of Divinity (DD), Doctor of Literature/ Letters (DLit/D’Litt/LitD/LittD), Doctor of Science (DS/SD/DSc/ScD), Doctor of Civil Law (DCL), Doctor of Music (DMus/MusD) और Doctor of Law (LLD) जैसे कई पुरस्कार शामिल हैं।

PhD के इस प्रकार में एडमिशन लेने के लिए विद्यार्थियों को PhD शुरू करने से एक वर्ष पहले MRes यानी एक साल रिसर्च में मास्टर डिग्री लेना अनिवार्य है। इस कोर्स में पढ़ाए गए सभी आयामों को प्रैक्टिकल अनुभव और इंडिपेंडेंट रिसर्च के साथ मिलाकर परिणाम पर आया जाता हैं।। विद्यार्थियों के पास एजुकेशन, मीडिया, एडवांस IT, भाषाओ और बिज़नेस जैसे क्षेत्र में रिसर्च करने के लिए विस्तृत तरीके और बेहतर स्किल्स कि ज़रूरत होती है।

कई बार कुछ कारण वर्श ऑफलाइन PhD करना और क्लास लेना मुमकिन नहीं हो पाता हैं। ऐसे विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन PhD एक अच्छा विकल्प हैं। जैसा कि आप नाम से समझ पा रहे होंगे इस कोर्स में आपको यूनिवर्सिटी जाकर अपनी डिग्री पूरी करना अनिवार्य नहीं हैं। दुनिया कि वो आबादी जो काम करती हैं और डॉक्टरेट डिग्री चाहती हैं वो इस विकल्प के माध्यम से डिग्री पा सकते हैं। नीचे कुछ PhD कोर्सेज़ की लिस्ट दी गई है:

टॉप पीएचडी कोर्सेज की लिस्ट नीचे दी गई है:

साइंस स्ट्रीम में बेस्ट पीएचडी कोर्स

  • PhD in physics
  • PhD in Chemistry
  • PhD in Mathematics
  • PhD in Bioscience
  • PhD in Clinical Research
  • PhD in Biotechnology
  • PhD in zoology
  • PhD in Bioinformatics
  • PhD in Environmental Science and Engineering

ह्यूमैनिटी में बेस्ट पीएचडी कोर्स

  • PhD Economics
  • PhD in Humanity
  • PhD in Geography
  • PhD in English
  • PhD in Psychology
  • PhD in Physiology
  • PhD in Arts
  • PhD in social work
  • PhD in Public Policy

इंजीनियरिंग में बेस्ट पीएचडी कोर्स

  • PhD in Civil Engineering
  • PhD in Engineering and Technology
  • PhD Computer Science Engineering
  • PhD in Information Technology
  • PhD in Chemical Engineering
  • PhD in Mechanical Engineering
  • PhD in Electronics and Communication Engineering

बिजनेस और मैनेजमेंट में बेस्ट पीएचडी कोर्स

  • PhD in Business Administration
  • PhD in Management
  • PhD in Commerce
  • PhD in Marketing/Brand Management
  • PhD in Accounting and Financial Management

मेडिकल में बेस्ट पीएचडी कोर्स

  • PhD in Paramedical
  • Doctorate of Medicine (Cardiology)
  • PhD in Medicine
  • PhD in Radiology
  • PhD in Medical Physics
  • PhD in Pathology
  • PhD in Neuroscience
  • Doctor of Medicine in Homeopathy

PhD होल्डर की ज़िम्मेदारीयां विस्तार से नीचे दिए टेबल में दी गयीं हैं:

PhD kaise kare के लिए step-by-step guide नीचे दिया गया है:

  • Step 1: कैंडिडेट को 12 साल की बुनियादी शिक्षा ( कक्षा 1st -12th ) पूरी होना अनिवार्य हैं।
  • Step 2: PhD करने के लिए किसी भी विषय से बैचलर डिग्री में पास होना अनिवार्य हैं।
  • Step 3: आपको कम से कम 50%-55% के साथ मास्टर डिग्री में पास होना ज़रूरी है। मास्टर डिग्री में पास होने के बाद ही आप PhD के लिए योग्य साबित होते हैं। 
  • Step 4:   मास्टर डिग्री के बाद PhD में एडमिशन लेने के लिए आपको UGC-NET, TIFR,JRF-GATE या स्टेट लेवल के एंट्रेंस एग्ज़ाम पास करने होंगे।
  • Step 4: एंट्रेंस एग्ज़ाम पास करने के बाद आप अपनी पसंद और कोर्स के अनुसार PhD के लिए अप्लाई कर सकते हैं।
  • Step 5: अधिकतर PhD कॉलेजेस में एडमिशन लेने के लिए व्यक्तिगत इंटरव्यू आयोजित किया जाता है। वह क्लियर करने के बाद ही आपको PhD में एडमिशन मिलता है।

PhD kaise kare और कहाँ से करें के लिए दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटीज़ की लिस्ट नीचे दी गई है:

PhD kaise kare और कहाँ से करें के लिए टॉप भारतीय यूनिवर्सिटीज़ की लिस्ट नीचे दी गई है:

  • दिल्ली विश्वविद्यालय
  • JNU, दिल्ली
  • बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी
  • महाऋषि दयानन्द यूनिवर्सिटी
  • अन्नामलाई यूनिवर्सिटी
  • एडम्स यूनिवर्सिटी
  • अलाहबाद स्टेट यूनिवर्सिटी
  • बनस्थली विद्यापीठ
  • डॉ बी.आर.आंबेडकर यूनिवर्सिटी ऑफ़ सोशल साइंस
  • जैन यूनिवर्सिटी
  • गुरु घासीदास विश्वविद्यालय
  • अरुणाचल यूनिवर्सिटी ऑफ़ स्टडीज़

किसी भी कॉलेज में पीएचडी की फीस बहुत से फैक्टर्स पर निर्भर करती है। सरकारी कॉलेज में PhD की फीस लगभग ₹20,000 से ₹60,000 तक हो सकती है। जबकि प्राइवेट कॉलेज में ₹30,000 से ₹1,50,000 तक हो सकती है।

  • आईआईटी बॉम्बे (IIT B) – लगभग ₹60,000
  • आईआईटी दिल्ली – लगभग ₹45,000
  • आईआईटी कानपुर – लगभग ₹65,000
  • यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली – लगभग ₹10,000
  • आईआईटी मद्रास – लगभग ₹20,000

योग्यताओ से अर्थ है , वो बातें जो PhD करने से पहले आपको रखनी होंगी ध्यान में। जिनकी पूर्ती ना होने पर आप PhD में एडमिशन नहीं ले पाएंगे। विश्विद्यालयों की बात करें तो सभी विश्विद्यालयों का माप दंड एक सा नहीं होता। सामान्य तौर पर हर यूनिवर्सिटी में निम्नलिखित योग्यताओ का होना आवश्यक है।

  • PhD कोर्स में अप्लाई करने के लिए विद्यार्थीयों को 10+2 में कम से कम 50% अंकों के साथ पास होना आवश्यक है।
  • PhD के लिए आपको संबंधित कोर्स में मास्टर डिग्री कम से कम 50%-55% अंकों के साथ पास करनी ज़रूरी है।
  • भारत में PhD कोर्स में एडमिशन लेने के लिए आपको UGC-NET , TIFR, JRF-GATE या स्टेट लेवल के एंट्रेंस परीक्षा पास करने होंगे।
  • विदेश में PhD करने के लिए कोई विशेष एंट्रेंस परीक्षा नहीं है, हालाँकि कुछ यूनिवर्सिटीज़ द्वारा एंट्रेंस परीक्षा संचालित करवाई भी जाती है।
  • इंटरनेशनल विद्यार्थियों को भी PhD में एडमिशन लेने के लिए एक रिसर्च प्रपोज़ल,  रिसर्च इंटरेस्ट एंड मेथोडोलॉजी की आवश्यकता होती है।  जिससे आपके रिसर्च में आपकी दिलचस्पी और कार्य की गंभीरता का माप दंड लगाया जाएगा।
  • आपकी अंग्रेजी में कुशलता को मापने के लिए एक अच्छा IELTS/ TOEFL स्कोर महत्व रखता है।
  • स्टेटमेंट ऑफ़ पर्पस यह एक लिखित स्टेटमेंट होती है जो आपके व्यक्तित्व को दर्शाती है।
  • अंग्रेजी में निबंध
  • लेटर ऑफ़ रिकमेन्डेशन या LOR s
  • अपडेटेड प्रोफेशनल रज़ूमे

किसी भी कोर्स में प्रवेश के लिए हर यूनिवर्सिटी की एक निर्धारित आवेदन प्रक्रिया होती है। सभी छात्रों का एडमिशन इसी प्रक्रिया के आधार पर होता हैं और जो इस प्रक्रिया को सफलता से पूर्ण कर लेते हैं उनका एडमिशन हो जाता हैं। भारत में आने वाली यूनिवर्सिटीज़ की आवेदन प्रक्रिया और विदेश में आने वाली यूनिवर्सिटीज़ की आवेदन प्रक्रिया में अंतर हैं। आइए इन्हे विस्तार से समझते हैं।

विदेश के विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए आवेदन प्रक्रिया इस प्रकार है–

  • आपकी आवेदन प्रक्रिया का फर्स्ट स्टेप सही कोर्स चुनना है, जिसके लिए आप  AI Course Finder की सहायता लेकर अपने पसंदीदा कोर्सेज को शॉर्टलिस्ट कर सकते हैं। 
  • एक्सपर्ट्स से कॉन्टैक्ट के पश्चात वे कॉमन डैशबोर्ड प्लेटफॉर्म के माध्यम से कई विश्वविद्यालयों की आपकी आवेदन प्रक्रिया शुरू करेंगे। 
  • अगला कदम अपने सभी दस्तावेजों जैसे SOP , निबंध, सर्टिफिकेट्स और  LOR  और आवश्यक टेस्ट स्कोर जैसे IELTS ,  TOEFL ,  SAT ,  ACT  आदि को इकट्ठा करना और सुव्यवस्थित करना है। 
  • यदि आपने अभी तक अपनी  IELTS ,  TOEFL ,  PTE , आदि परीक्षा के लिए तैयारी नहीं की है, जो निश्चित रूप से विदेश में अध्ययन करने का एक महत्वपूर्ण कारक है, तो आप  Leverage Live कक्षाओं में शामिल हो सकते हैं। ये कक्षाएं आपको अपने टेस्ट में उच्च स्कोर प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण कारक साबित हो सकती हैं।
  • आपका एप्लीकेशन और सभी आवश्यक दस्तावेज जमा करने के बाद, एक्सपर्ट्स आवास,  छात्र वीजा और छात्रवृत्ति / छात्र लोन के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू करेंगे । 
  • अब आपके प्रस्ताव पत्र की प्रतीक्षा करने का समय है जिसमें लगभग 4-6 सप्ताह या उससे अधिक समय लग सकता है। ऑफर लेटर आने के बाद उसे स्वीकार करके आवश्यक सेमेस्टर शुल्क का भुगतान करना आपकी आवेदन प्रक्रिया का अंतिम चरण है। 

भारत के विश्वविद्यालयों में आवेदन प्रक्रिया, इस प्रकार है–

  • सबसे पहले अपनी चुनी हुई यूनिवर्सिटी की ऑफिशियल वेबसाइट में जाकर रजिस्ट्रेशन करें।
  • यूनिवर्सिटी की वेबसाइट में रजिस्ट्रेशन के बाद आपको एक यूजर नेम और पासवर्ड प्राप्त होगा।
  • फिर वेबसाइट में साइन इन के बाद अपने चुने हुए कोर्स का चयन करें जिसे आप करना चाहते हैं।
  • अब शैक्षिक योग्यता, वर्ग आदि के साथ आवेदन फॉर्म भरें।
  • इसके बाद आवेदन फॉर्म जमा करें और आवश्यक आवेदन शुल्क का भुगतान करें। 
  • यदि एडमिशन, प्रवेश परीक्षा पर आधारित है तो पहले प्रवेश परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन करें और फिर रिजल्ट के बाद काउंसलिंग की प्रतीक्षा करें। प्रवेश परीक्षा के अंको के आधार पर आपका चयन किया जाएगा और लिस्ट जारी की जाएगी।

PhD के लिए आवश्यक दस्तावेज

PhD kaise kare के लिए आवश्यक दस्तावेज नीचे दिए गए हैं:

  • आपका शैक्षणिक रिकॉर्ड (12th,बैचलर डिग्री,मास्टर डिग्री)
  • अंग्रेजी में कुशलता का प्रमाण पत्र ( मुख्य रूप से IELTS/ TOEFL स्कोर )
  • लेटर ऑफ़ रिकमेन्डेशन या LOR s
  • स्टेटमेंट ऑफ़ पर्पस यह एक लिखित स्टेटमेंट होती है जो आपके व्यक्तित्व को दर्शाती है।
  • अपडेटेड प्रोफेशनल रिज्यूमे

पीएचडी के लिए एंट्रेंस एग्जाम की लिस्ट नीचे दी गई है:

  • CSIR – UGC NET
  • JNU Entrance Examination
  • AIIMS PhD Entrance Exam

PhD kaise kare इसके लिए आप नीचे दी गई टॉप स्कॉलरशिप के लिए अप्लाई कर सकते हैं :

PhD के बाद आप प्रोफेस्सर के अलावा राइटर, रिसर्चर, बैंक इन्वेस्टर आदि क्षेत्रों में भी अपना करियर बना सकते हैं। आपकी सैलरी में आपके स्किल्स और एक्सपीरियंस के अनुसार उतार-चढ़ाव आते हैं। PhD के बाद कुछ प्रसिद्ध जॉब प्रोफाइल और उनकी सैलरी glassdoor.co.in के अनुसार नीचे दी गई है:

जी नहीं, PhD करने के लिए कोई age limit नहीं होती।

-आपका शैक्षणिक रिकॉर्ड (12th,बैचलर डिग्री,मास्टर डिग्री) -अंग्रेजी में कुशलता का प्रमाण पत्र ( मुख्य रूप से IELTS/ TOEFL स्कोर ) -लेटर ऑफ़ रिकमेन्डेशन या LOR s – स्टेटमेंट ऑफ़ पर्पस यह एक लिखित स्टेटमेंट होती है जो आपके व्यक्तित्व को दर्शाती है। -अंग्रेजी में निबंध -अपडेटेड प्रोफेशनल रज़ूमे

जी, हाँ भारत में PhD के लिए UGC-NET, स्टेट लेवल या यूनिवर्सिटी लेवल के एंट्रेंस एग्ज़ाम पास करना आवश्यक है। 

PhD  Admission 2021: नई शिक्षा नीति के तहत फैसला किया गया है कि  PhD  कोर्स में एडमिशन के लिए अभ्यर्थियों का  NET  क्वालीफाई करना जरूरी है.

-केमिस्ट्री में  P hD- केमिकल रिसर्च सेंटर्स एंड लेबोरेटरीज में एनालिस्ट -जियोलॉजी में  p hd- जियोलॉजिकल सेंटर्स में हेड ऑफ़ सर्विस -न्यूट्रीशन में phd- साइंटिफिक एडवाइजर -बायोकेमिस्ट्री में  p hd- पेटेंट लॉयर -लॉ में  p hd- गवर्नमेंट सेक्टर्स में एडवाइजरी पोजीशन्स -इंग्लिश लिटरेचर में  p hd- कॉलेज प्रोफेसर आदि।

Phd में आप अपनी मर्ज़ी से विषय का चुनाव कर सकते है। यह आप पर निर्भर करता है। कुछ प्रमुख phd के विषय निम्नलिखित हैं। हिंदी , अंग्रेजी , होम साइंस , एग्रीकल्चर , इतिहास , फाइन आर्ट्स , सर्जरी , जियोलॉजी , जियोग्राफी , अकॉउंटिंग , बायोमिस्ट्री , फार्मेसी आदि।

हमें उम्मीद है कि इस ब्लॉग में आपको PhD kaise kare के बारे में सभी जानकारी मिल गई होगी। यदि आप भी विदेश में पढ़ना चाहते है तो हमारे Leverage Edu के एक्सपर्ट्स से 1800572000 पर कांटेक्ट कर आज ही 30 मिनट्स का फ्री सेशन बुक कीजिय।

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हिमानी महर्षि

A writer with more than 3 years of experience in various fields of communication, I takes great pleasure in helping students and their parents by addressing their queries regarding their journey to study abroad via blogs, News and Quora.

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एक अच्छा निबंध कैसे लिखते हैं? निबंध लेखन का तरीक़ा/प्रारूप

निबंध वह रचना है जो किसी विषय पर विचारपूर्वक एवं क्रमबद्ध रूप से लिखी जाती है।  निबंध-लेखन एक कला है। किसी अन्य कला में प्रवीण होने के लिए जिस तरह निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है, ठीक उसी तरह विभिन्न विषयों पर अपने विचारों को लिखित रूप में अभिव्यक्त करने के लिए निरंतर अभ्यास द्वारा ही कोई अच्छा निबंध लिख सकता है। और आज हम इसी के बारे में बात करेंगे कि निबंध लेखन का तरीक़ा क्या है और एक अच्छा निबंध कैसे लिखें?

निबंध लेखन का तरीक़ा

निबंध लेखन का एक विस्तृत भाग होता है जो किसी विशेष दृष्टिकोण, विश्लेषण, व्याख्या, तथ्य अथवा प्रक्रियाओं के समुच्चय की वैधता के लिए एक प्रकरण का निर्माण करता है। किसी विषय पर निबंध लिखने से पहले अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर ही एक प्रारूप बनाना चाहिए।

निबंध तर्कपूर्ण, वर्णात्मक, विश्लेषणात्मक, अन्वेषणात्मक अथवा समीक्षात्मक हो सकते हैं; लेकिन उन सभी का एक विषय प्रस्तुत करने, संरक्षण प्रदान करने एवं पाठक के लिए एक दृष्टिकोण रखने का सामान्य उद्देश्य होता है। अतः एक निबंध की श्रेष्ठता न केवल प्रस्तुत तथ्यों की वैधता में निहित होती है, बल्कि इन तथ्यों के चयन, समालोचनात्मक मूल्यांकन, संगठन तथा प्रस्तुति पर भी निर्भर होती है।

एक अच्छा निबंध कैसे लिखें?

  • अच्छा निबंध लिखने के लिए सबसे पहले तो उस विषय पर अपने ज्ञान एवं अनुभव के बारे में सोचना चाहिए।
  • एक अच्छे निबंध में विचारों में क्रमबद्धता होती है और यही क्रमबद्धता किसी भी निबंध को प्रभावी बनाती है।
  • निबंध को हर हाल में विषय-केंद्रित होना चाहिए। विषय से भटकाव किसी भी निबंध का सबसे बड़ा दोष माना जाता है।
  • निबंध का प्रारम्भ हमेशा विषयवस्तु के परिचय से करें।
  • परिचय के बाद निबंध के मध्य भाग को लिखें, इसमें विषयवस्तु को अनावश्यक विस्तार न दें।
  • उपसंहार में सारांश के साथ निबंध को समाप्त करें।
  • निबंध उसी विषय पर लिखना अधिक अच्छा होता है, जिसकी अच्छी जानकारी हो।
  • वर्तनी की दृष्टि से शुद्ध शब्दों का प्रयोग करना चाहिए तथा इनकी अनावश्यक आवृत्ति से बचना चाहिए।
  • वाक्य-विन्यास ठीक रखते हुए विराम-चिन्हों का उचित प्रयोग करना चाहिए।
  • व्याकरण-सम्मत स्पष्ट भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
  • निबंध की भाषा-शैली सीधी, सरल, सुबोध तथा विषय के अनुकूल रखनी चाहिए।
  • लम्बे-लम्बे क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से यथासंभव बचना चाहिए, क्योंकि इनसे भाषा प्रवाह में बाधा पहुँचती है और निबंध अस्वाभाविक लगने लगता है।
  • निबंध का आकार न बहुत छोटा और न ही बहुत लम्बा होना चाहिए।
  • सभी विचारों को पूर्णता के साथ स्पष्ट रूप से व्यक्त करना चाहिए।
  • मध्य-भाग लिखते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि एक अनुच्छेद में एक ही भाव हो। विभिन्न अनुच्छेदों को भी विचारों की भाँति सही क्रम में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • विषयवस्तु का वास्तविक प्रसार मध्य-भाग में ही करना चाहिए।
  • निबंध का सारांश उपसंहार में ही लिखना चाहिए तथा इसमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अंतिम वाक्य के साथ निबंध की पूर्णता का आभास हो।

इसे भी पढ़ें: निबंध कितने प्रकार के होते हैं?

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