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हिन्दी सिनेमा का समाज पर प्रभाव पर निबंध | Impact Of Cinema On Society Essay In Hindi

आज का निबंध हिन्दी सिनेमा का समाज पर प्रभाव Impact Of Cinema On Society Essay In Hindi पर दिया गया हैं. भारतीय समाज और जीवन (Life) पर फ़िल्मी दुनिया ने आइडियल की तरह रोल अदा किया हैं.

फैशन से लेकर लोगों की जीवन शैली भी सिनेमा से प्रभावित हुई हैं इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं समाज पर सिनेमा के प्रभाव को इस निबंध में जानेगे.

सिनेमा का समाज पर प्रभाव पर निबंध Impact Of Cinema On Society Essay In Hindi

सिनेमा का समाज पर प्रभाव पर निबंध Impact Of Cinema On Society Essay In Hindi

सिनेमा जनसंचार एवं मनोरंजन का एक लोकप्रिय माध्यम हैं. जिस तरह साहित्य समाज का दर्पण होता है, उसी तरह सिनेमा भी समाज को प्रतिबिम्बित करता हैं.

भारतीय युवाओं में प्रेम के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने की बात हो या सिनेमा के कलाकारों के पहनावे के अनुरूप फैशन का प्रचलन, ये सभी सिनेमा के समाज पर प्रभाव ही हैं.

सिनेमा का अर्थ चलचित्र का आविष्कार उन्नीसवी शताब्दी के उतराध में हुआ. चित्रों को संयोजित कर उन्हें दिखाने को ही चलचित्र कहते हैं.

इसके लिए प्रयास तो 1870 के आस पास शुरू हो गया था किन्तु इस स्वप्न को साकार करने में विश्व विख्यात वैज्ञानिक एडिसन एवं फ़्रांस के ल्युमिर बन्धुओं का प्रमुख योगदान था.

ल्युमिर बन्धुओं ने 1895 में एडिसन के सिनेमैटोग्राफी यंत्र पर आधारित एक यंत्र की सहायता से चित्रों को चलते हुए प्रदर्शित करने में सफलता पाई. इस तरह सिनेमा का आविष्कार हुआ.

अपने आविष्कार के बाद लगभग तीन दशकों तक सिनेमा मूक बना रहा. सन 1927 ई में वार्नर ब्रदर्स ने आंशिक रूप से सवाक् फिल्म जाज सिंगर बनाने में सफलता अर्जित की. इसके बाद 1928 में पहली पूर्ण सवाक् फिल्म लाइट्स ऑफ न्यूयार्क का निर्माण हुआ.

सिनेमा के आविष्कार के बाद से इसमें कई परिवर्तन होते रहे और इसमें नवीन तकनीकों का प्रयोग होता रहा. अब फिल्म निर्माण तकनीक अत्यधिक विकसित हो चुकी हैं. इसलिए आधुनिक समय में निर्मित सिनेमा के द्रश्य और ध्वनि बिलकुल स्पष्ट होते हैं.

सिनेमा की शुरुआत से ही इसका समाज के साथ गहरा सम्बन्ध रहा हैं. प्रारम्भ में इसका उद्देश्य मात्र लोगों का मनोरंजन करना था. अभी भी अधिकतर फ़िल्में इसी उद्देश्य को लेकर बनाई जाती हैं.

लेकिन मूल उद्देश्य मनोरंजन होने के बावजूद सिनेमा का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता हैं. कुछ लोगों का मानना है कि सिनेमा का समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है एवं इसके कारण अपसंस्कृति को बढ़ावा मिलता हैं.

समाज में फिल्मो के प्रभाव से फैली अश्लीलता एवं फैशन के नाम पर नंगेपन को इसके उदहारण के रूप में प्रस्तुत किया जाता हैं.

किन्तु सिनेमा के बारे में यह कहना कि यह केवल बुराई फैलाता है, सिनेमा के साथ अन्याय करने जैसा ही होगा. सिनेमा का प्रभाव समाज पर कैसा पड़ता हैं.

यह समाज की मानसिकता पर निर्भर करता हैं, सिनेमा में प्रायः अच्छे एवं बुरे दोनों पहलुओं को दर्शाया जाता हैं. समाज यदि बुरे पहलुओं को आत्मसात करे, तो इसमें भला सिनेमा का क्या दोष हैं.

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ऐसी फिल्मो का निर्माण हुआ, जो युद्ध की त्रासदी को प्रदर्शित करने में सक्षम थी. ऐसी फिल्मों से समाज को एक सार्थक संदेश मिलता हैं. सामाजिक बुराइयों को दूर करने में सिनेमा सक्षम हैं.

दहेज प्रथा और इस जैसी अन्य सामाजिक समस्याओं का फिल्मों में चित्रण कर कई बार परम्परागत बुराइयों का विरोध किया गया हैं. समसामयिक विषयों को लेकर भी सिनेमा निर्माण सामान्यतया होता रहा हैं.

भारत की पहली फिल्म राजा हरिश्चन्द्र थी, प्रारम्भिक दौर में पौराणिक एवं रोमांटिक फिल्मों का बोलबाला रहा, किन्तु समय के साथ ऐसे सिनेमा भी बनाए गये जो साहित्य पर आधारित थे एवं जिन्होंने समाज पर व्यापक प्रभाव डाला.

उन्नीसवीं सदी के साठ सत्तर एवं उसके बाद के कुछ दशकों में अनेक ऐसे भारतीय फिल्मकार हुए जिन्होंने सार्थक एवं समाजोपयोगी फिल्मों का निर्माण किया.

सत्यजीत राय (पाथेर पाचाली, चारुलता, शतरंज के खिलाड़ी) ऋत्विक घटक (मेघा ढाके तारा), मृगाल सेन (ओकी उरी कथा), अडूर गोपाल कृष्णन (स्वयंवरम), श्याम बेनेगल (अंकुर, निशांत, सूरज का सांतवा घोड़ा), बासु भट्टाचार्य (तीसरी कसम), गुरुदत्त (प्यासा, कागज के फूल, साहब, बीबी और गुलाम), विमल राय (दो बीघा जमीन, बन्दिनी, मधुमती) भारत के कुछ ऐसे ही फिल्मकार थे.

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उम्मीद करता हूँ दोस्तों हिन्दी सिनेमा का समाज पर प्रभाव पर निबंध Impact Of Cinema On Society Essay In Hindi का यह छोटा सा निबंध आपको पसंद आया होगा. यदि आपको समाज पर सिनेमा के प्रभाव का यह निबंध पसंद आया हो तो अपने फ्रेड्स के साथ भी इसे शेयर करें.

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चलचित्र के लाभ और हानियाँ पर निबंध | Essay on Advantages and Disadvantages of Movie in Hindi

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चलचित्र के लाभ और हानियाँ पर निबंध | Essay on Advantages and Disadvantages of Movie in Hindi!

चलचित्र मनुष्य की एक अद्‌भुत उपलब्धि है । चलचित्र के आविष्कार ने मानव जीवन में क्रांति ला दी है । यह मानव समाज के विभिन्न पहलुओं का सजीव चित्रांकन है जिसे देखकर मनुष्य सुख का अनुभव करता है ।

इस प्रकार यह मनुष्य के मनोरंजन का एक प्रमुख साधन है । चलचित्र या सिनेमा, साहित्य और कला का अद्‌भुत संगम है । सिनेमा भावों की अभिव्यक्ति का एक सशक्त साधन है । सिनेमा का वर्तमान में प्रचार-प्रसार अत्यधिक बढ़ा है ।

इतना प्रचार-प्रसार शायद ही किसी अन्य वैज्ञानिक आविष्कार का हुआ हो जितनी लोकप्रियता सिनेमा को प्राप्त हुई । स्त्री-पुरुष, अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित, हिंदू-मुस्लिम आदि लगभग सभी वर्गों पर सिनेमा का प्रभाव पड़ा है । सभी वर्गों के लोग चलचित्र अथवा सिनेमा की लय में झूमते-गाते दिखाई देते हैं ।

दैनिक, मासिक व साप्ताहिक आदि सभी समाचार-पत्र सिनेमा जगत् की खबरों को प्राथमिकता देते हैं । इसके अतिरिक्त सिनेमा संबंधी अनेक पत्रिकाएँ जिनमें सिनेमा अथवा चलचित्र से संबंधित रोचक तथ्य होते हैं उनसे बाजार भरे पड़े हैं ।

ADVERTISEMENTS:

चलचित्र की लोकप्रियता का प्रमुख कारण उसकी संवाद सहित सचल फोटोग्राफी है जो कथानक में इतनी अधिक सजीवता ला देती है कि उनमें मानव के वास्तविक जगत की झलक प्रतिबिंबित होने लगती है । कथानक के साथ सुंदर व मधुर गीतों का समावेश उसकी रोचकता में चार चाँद लगा देते हैं ।

चलचित्र मनुष्य के मनोरंजन का एक प्रमुख साधन है । चलचित्र में प्रमुख मनोहारी प्राकृतिक दृश्य, सुंदर एवं सुमधुर गीतों का समावेश, स्वाभाविक अभिनय एवं कथानक की रोचकता आदि मनुष्य को अत्यधिक आकर्षित करते हैं । वह इन्हें देखने में इतना अधिक लीन हो जाता है कि उन क्षणों में वह स्वयं को उसका अंग मान लेता है ।

चलचित्र के कथानक का सीधा संबंध मानवीय संवेदनाओं, अनुभूतियों आदि से होता है । अत: यह मनुष्य के मनोमस्तिष्क पर सीधा प्रभाव डालती है । चलचित्र के माध्यम से मानव समाज के विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व चारित्रिक पहलुओं के वास्तविक व उन्नत रूप का छायांकन कर हम इसका उपयोग समाजोत्थान की दिशा में कर सकते हैं । अत: चलचित्र समाज-सुधारक की भाँति कार्य करता है ।

उदाहरणार्थ फिल्म ‘ उपकार ‘ के गाने का यह टुकड़ा देश के किसानों का उत्साहवर्धन करने वाला है:

” बैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते हैं । गम कोसों दूर हो जाता है , खुशियों के कमल मुसकाते हैं । ”

एक समाज सुधारक व मनोरंजन के उत्तम साधन के अतिरिक्त चलचित्र का व्यापारिक दृष्टि से भी विशेष महत्व है । आधुनिक युग में चलचित्र के माध्यम से प्रदत्त व्यवसाय व व्यापार संबंधी विज्ञापन दर्शकों पर सीधा प्रभाव डालते हैं । राजनीतिक व धार्मिक संस्थाओं के अतिरिक्त सरकारी तौर पर विभिन्न योजनाओं व परियोजनाओं के प्रचार-प्रसार हेतु चलचित्र शिक्षा का प्रयोग किया जाता है ।

भारत फिल्में बनाने में आज विश्व की अग्रणी पंक्ति के देशों के समकक्ष खड़ा है । भारतीय फिल्में पड़ोसी देशों, खाड़ी देशों तथा उन देशों में जहाँ प्रवासीय भारतीय बड़ी संख्या में हैं अच्छा व्यवसाय कर रही हैं । चलचित्र बनाने में भारतीय अथक श्रम कर रहे हैं और यही कारण है कि भव्यता और गुणवत्ता की दृष्टि से भारतीय फिल्मों की सराहना पूरी दुनिया में हो रही है ।

उक्त लाभों के अतिरिक्त चलचित्र शिक्षा का एक सशक्त माध्यम भी है । चलचित्र की रोचकता के कारण मनुष्य इनमें प्रयुक्त ऐतिहासिक, धार्मिक व वैज्ञानिक तथ्यों को आसानी से समझ सकता है तथा उसे याद रख सकता है । इसके माध्यम से अशिक्षित व्यक्तियों में भी शिक्षा का प्रचार संभव है ।

सिक्के के दो पहलुओं की भांति चलचित्र के यदि अनगिनत लाभ हैं तो उसके नुकसान भी हैं । चलचित्र मनुष्य के मनोमस्तिष्क पर सीधा प्रभाव डालती है । इस परिस्थिति में इसके दुरुपयोग की संभावना भी अधिक रहती है । भारत जैसे देश में इसके दुरुपयोग की संभावना अधिक बढ़ गई है ।

आजकल निर्मातागण धन प्राप्ति की लालसा में अभद्र व अश्लील फिल्मों का चित्रांकन कर रहे हैं जिसका दुष्प्रभाव बच्चों व नवयुवकों पर स्पष्ट देखा जा सकता है । आज के नवयुवकों के चारित्रिक पतन के लिए चलचित्र प्रमुख रूप से उत्तरदायी है । चलचित्र में प्रयुक्त अश्लील गानों व चित्रों को देखकर वे उसी का अनुसरण करते हैं जो धीरे- धीरे उन्हें पतन की ओर उन्मुख करता है ।

भारत में चलचित्र बृहत् रूप में प्रचलित होने के कारण इसमें पूँजीपतियों व अनेक अराजक तत्वों की भागीदारी अधिक है जिसका मूल उद्‌देश्य इसके माध्यम से धन अर्जित करना है । मनुष्य के इस दृष्टिकोण ने सदैव ही राष्ट्रहितों की अनदेखी की है।

चलचित्र विज्ञान की एक अद्‌भुत व अनुपम देन है । बुराई चलचित्र में नहीं, अपितु मनुष्य की नकारात्मक व विध्वंसक सोच में है । यदि चलचित्र का उपयोग लोक कल्याण, स्वस्थ मनोरंजन व राष्ट्रहित के लिए किया जाए तो यह संपूर्ण मानव जाति के लिए वरदान का ही एक रूप है । चलचित्र का सदुपयोग एक व्यक्ति से नहीं अपितु पूरे समाज व राष्ट्र के सभी वर्गों के सामूहिक व स्वस्थ दृष्टिकोण से ही संभव है ।

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सिनेमा का जीवन पर प्रभाव निबंध Essay on Impact of Cinema in Life Hindi

सिनेमा का जीवन पर प्रभाव निबंध Essay Impact of Cinema in Life Hindi

इस लेख में हिंदी में सिनेमा का जीवन पर प्रभाव निबंध (Essay on Impact of Cinema in Life Hindi) को बेहतरीन ढंग से समझाया गया है। 

इसमें सिनेमा का जीवन पर प्रभाव, सिनेमा का बच्चों पर प्रभाव, सिनेमा का युवाओं पर प्रभाव, सिनेमा देखने के फायदे व नुकसान और किस प्रकार के सिनेमा बनाए जाने चाहिए इत्यादि के विषय में चर्चा किया गया है। 

Table of Content

आज के आधुनिक जमाने में सिनेमा का हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव बढ़ गया है। अब हर दिन नये नये मल्टीप्लेक्स, माल्स खुल रहे है जिसमे हर हफ्ते नई नई फिल्मे दिखाई जाती है।

इंटरनेट तकनीक सुलभ हो जाने से और नये नये स्मार्टफोन आ जाने की वजह से आज हर बच्चा, बूढ़ा या जवान अपने मोबाइल फोन में ही सिनेमा देख सकता है। आज हम अपने टीवी , कम्प्यूटर , लैपटॉप , फोन में सिनेमा देख सकते हैं। इस तरह इसका प्रभाव और भी व्यापक हो गया है।

पिछले 50 सालों में यह देश में मनोरंजन का सशक्त साधन बनकर उभरा है। अब भारत में सिनेमा का व्यवसाय हर साल 13800 करोड़ से अधिक रुपये का है। इसमें लाखो लोगो को रोजगार मिला हुआ है।

पूरे विश्व में भारत का सिनेमा उद्द्योग अमेरिका के उद्द्योग के बाद दूसरे नम्बर पर आता है। सब तरफ इसकी तारीफ़ हो रही है।

सिनेमा का जीवन पर प्रभाव Effect of Cinema on Life in Hindi

आज का दौर नवीनता के उत्थान का समय है। जहां कल्पना से निर्मित चीजों को लोगों के बीच एक मनोरंजन की तरह परोसा जा रहा है। 

सिनेमा यह समाज का एक दर्पण स्वरूप होता है, जो कलात्मक ही सही लेकिन समाज में रही हर एक छोटी से छोटी प्रतिबिंब को दर्शाता है। आज के दौर में सिनेमा हर इंसान के जीवन पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डाल रहा है।

जिस तरह एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार सिनेमा भी समाज पर नकारात्मक व सकारात्मक दोनों ही तरह से प्रभाव छोड़ता है। आधुनिक समय में दूषित तथा अच्छी दोनों ही तरह की फिल्में बनाई जाती हैं, लेकिन यह दर्शकों पर निर्भर करता है कि वह कैसी फिल्मों को देखें। 

सिनेमा का बच्चों पर प्रभाव Effect of Cinema on Children in Hindi

जब भी इंडस्ट्री में कोई नई फिल्म आने वाली होती है, तो ज्यादातर बच्चे ही इसके लिए बड़े उत्सुक होते हैं। इतना उत्साह तो बच्चों को पढ़ाई लिखाई में भी नहीं आता जितना कि सिनेमा देखने में मिलता है। 

लेकिन मनोरंजन के प्रति यह व्यवहार जीवन का आदत बन सकता है, जिससे शिक्षा पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

बच्चे किसी भी नई चीज को सीखने में बड़े माहिर होते हैं। सिनेमा जगत में ऐसी केवल गिनती भर की फिल्में है, जो बच्चों के लिए अच्छी मानी जा सकती हैं। 

ऐसे कई संवेदनशील दृश्यों को फिल्मों में प्रदर्शित किया जाता है, जो बच्चों को कतई नहीं देखनी चाहिए। माता पिता को हमेशा अपने मौजूदगी में ही बच्चों को सिनेमा देखने देना चाहिए।

बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं। वे नहीं जानते कि उन्हें क्या देखना चाहिए और क्या नहीं लेकिन सिनेमा जगत आज बुरी तरह से दूषित हो चुका है, इसीलिए बच्चे किसी भी कीमत पर ऐसी फिल्मों के प्रभाव के दायरे में नहीं आने चाहिए। 

सिनेमा का युवाओं पर प्रभाव Impact of Cinema on Youth in Hindi

यह एक दुखद सच है कि आज की युवा पीढ़ी चकाचौंध से भरे पड़े सिनेमा जगत के सितारों को अपना आदर्श मान रही है। उठते-बैठते, सोते-जागते हर समय लोग इन्हीं आदर्शों की तरह व्यवहार करना चाहते हैं।

इस बात से यह अंदाजा लगाया जा सकता है, कि सिनेमा युवाओं के मस्तिष्क तक कितना घर कर गई है, कि यह उनके रोजमर्रा के आदतों में भी समा चुकी है।

किसी भी चीज को पूरी तरह से नकार देना यह सही बात नहीं है। हम जानते हैं कि सिनेमा जगत में ऐसी हजारों फिल्में बनाई गई हैं, जो लोगों को उत्साहित और संघर्ष करने के लिए प्रेरणा देती हैं। 

लेकिन यह भी असलियत है कि आज का सिनेमा जगत लोगों को गुमराह कर रहा है। चंद मुनाफे के लिए यही तथा कथित आदर्श जन युवाओं को किसी मदारी की तरह नचा रहे हैं। 

उदाहरण के तौर पर कई फिल्मी अभिनेता जिनकी फैन फॉलोइंग करोड़ों में है, लेकीन वे विमल गुटखा और नशीली खाद्य सामग्रियों का प्रचार प्रसार करते हुए साफ़ देखे जा सकते हैं। यह आम बात है कि ऐसे कलाकारों को आदर्श मानने वाले युवाओं को उनके जैसे बर्ताव करने में गर्व महसूस होगा।

सिनेमा देखने के फायदे व नुकसान Advantages and Disadvantages of Watching Movies in Hindi

सिनेमा देखने के फायदे advantages of watching movies in hindi, रचनात्मक विचार.

अपनी कल्पना शक्ति बढ़ाने की इच्छा रखने वाले लोगों को अच्छी फिल्में जरूर देखना चाहिए। यह सिर्फ मनोरंजन का साधन ही नहीं, बल्कि ऐसी मजेदार चीजों को प्रस्तुत करता है जिनसे हमारे स्वयं के विचारों में भी बदलाव आते हैं। 

अक्सर यह देखा गया है की बेहतरीन और शिक्षा देने वाली फिल्में देखने से लोगों के विचार शक्ति में सकारात्मक बदलाव आता है, जो रचनात्मकता को बढ़ावा देता है।

सामाजिक समस्याओं का आइना 

लोगों के पास आज के समय में अलग से समय निकालकर सामाजिक मुद्दों पर बातचीत करने का जरा भी समय नहीं है। ऐसे में सिनेमा किसी रामबाण की तरह कार्य करता है, जो मनोरंजन के साथ ही लोगों को सामाजिक समस्याओं से भी रूबरू कराता है। 

टॉयलेट एक प्रेम कथा, पैडमैन, और छपाक जैसे ढेरों ऐसी फिल्में है, जो समाज का प्रतिबिंब बनकर लोगों को इसके विषय में जागरूक बनाती है।

मनोरंजन का साधन

दुनिया की अधिकतर आबादी के लिए मनोरंजन का सबसे अच्छा विकल्प सिनेमा ही माना जाता है। लोग नई फिल्में रिलीज होने के लिए लंबे समय से इंतजार करते हैं। बच्चे, बड़े और बूढ़ो सभी उम्र के लोगों को फिल्म देखना बेहद पसंद होता है।

लोगों के लिए रोजगार

सिनेमा हमारे मनोरंजन के साथ ही लाखों लोगों के लिए रोजगार का काम भी करता है। एक फिल्म के निर्माण में कई लोग साथ मिलकर काम करते हैं, इसके लिए उन्हें उनके काम के अनुसार पैसे भी दिए जाते हैं। 

इसके अलावा ही जब भी कोई नई फिल्म रिलीज होती है, तो सिनेमा घर के बाहर प्रतिदिन हजारों लोगों का आवागमन बना रहता है, जिससे वहां के स्थानीय  विक्रेताओं को भी मुनाफा मिलता है।

विभिन्न संस्कृतियों का परिचय

सिनेमा एक नहीं बल्कि विभिन्न पहलुओं से लाभदायक है। क्योंकि इससे हमें ऐसी नई संस्कृतियों व भाषाओं के बारे में पता चलता है, जिसके विषय में शायद आपने कभी नहीं सुना होगा। इस प्रकार सिनेमा विभिन्न संस्कृतियों का परिचय कराने के लिए भी फायदेमंद है।

नए समाज के निर्माण में भूमिका

फिल्मों में किरदार निभाने वाले कलाकारों का जितना प्रभाव बच्चों और युवाओं पर पड़ता है, उतना शायद किसी दूसरे का नहीं होता। वर्तमान पीढ़ी अधिकतर सिनेमा को अपना आदर्श बनाए बैठी है। 

ऐसे में यह सबसे बड़ा अवसर है कि इन बड़े कलाकारों द्वारा समाज को एक सही राह दिखाया जाए, जिससे भटकी हुई पीढ़ी भी अपनी राह पर चलने लगे।

प्रेरणादायक कहानियां

महापुरुषों की प्रेरणादायक जीवनी से लेकर संघर्ष करके लोगों के सामने एक मिसाल पेश करने वाले लोगों के ऊपर सिनेमा में कई फिल्में बनाई जाती है। यह न केवल दिलचस्प होती है, बल्कि प्रेरणादायक भी होती हैं।

नए स्थलों की जानकारियाँ

एक फिल्म की शूटिंग के लिए अलग-अलग जगहों को चुना जाता है। अक्सर हम फिल्मों में नई नई जगह के बारे में सुनते और देखते हैं। इससे हमें उन स्थलों के बारे में पता चलता है। इस तरह नए स्थलों की जानकारियों के लिए सिनेमा देखना बहुत ही अच्छा विकल्प हो सकता है।

तनाव को कम करने में सहायक

आज इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में हर कोई किसी न किसी कारण से तनाव में रहता है। ऐसे में मन को फ्रेश और ऊर्जावान महसूस करवाने के लिए फिल्में देखना असरदार हो सकता है। 

कॉमेडी, थ्रिलर और सस्पेंस से भरी हुई मजेदार फिल्में हमारे मन को शांत कर देती हैं और कुछ देर के लिए ही सही तनाव को भी पूरी तरह से मिटा देती हैं।

जागरूकता बढ़ाने में सक्षम

फिल्में देखना तो हर किसी को पसंद होता है। यह आश्चर्य की बात है की वर्तमान पीढ़ी पर सिनेमा उतना ही प्रभाव छोड़ती हैं, जितना कि किसी स्थल पर प्राकृतिक आपदाएं। समाज में जागरूकता फैलाने के लिए सिनेमा किसी ब्रह्मास्त्र से कम नहीं है।

सिनेमा देखने के नुकसान Disadvantages of Watching Cinemas in Hindi

अपराध का कारण.

पहले बताया गया की आधुनिक युवा पीढ़ी सिनेमा से सबसे ज्यादा प्रभावित रहती है। इस कारण फिल्मों में अच्छी चीजों के अलावा चोरी, डकैती, लूटमार, हत्या, इत्यादि जैसे अनगिनत अपराध भी दिखाई जाते हैं। 

जाहिर सी बात है की ऐसी चीजें भी लोगों के दिमाग में वेग की त्रिविता से घर कर जाती हैं, जो उनके जीवन की आदत बन जाती हैं। आज बढ़ते अपराध का एक कारण सिनेमा को भी माना जा सकता है।

शिक्षा पर नाकारात्मक प्रभाव

यह एक कड़वी सच्चाई है कि छात्रों को अपने पाठ्यक्रम का अता पता हो, कि नहीं लेकिन फिल्मों के डायलॉग्स जरूर याद होता है। अभद्रता और गालियों से भरी हुई फिल्मों को युवा पीढ़ी द्वारा देखा जा रहा है। ऐसे में सिनेमा के कारण शिक्षा की दुनिया धुंधली पड़ती जा रही है।

संस्कारों का नाश

एक समय हुआ करता था जब फिल्में लोगों की भावनाओं के रंग में रंग जाती थी। जहां बड़े ही सभ्यता और मजेदार तरीके से फिल्में परोसी जाती थी। लेकिन आज का वक्त बिल्कुल विपरीत है। 

आज की फिल्मों में जितने अभद्र भाषा, अश्लीलता को प्रस्तुत किया जाता है वो फिल्में उतनी ही लोगों द्वारा पसंद की जाती हैं। यह सीधे तौर पर संस्कारों का नाश है।

सिनेमा देखने की लत

सिनेमा देखने का यह एक नकारात्मक पहलू है कि जब भी कोई फिल्म या सीरीज दर्शक देखने लगते हैं, तो उन्हें इसकी लत लग जाती है। सुनने में तो यह किसी आम शब्द के जैसा है, लेकिन यह कब आपका जीवन और स्वास्थ्य खराब कर दे कोई भी गारंटी नहीं है।

समय, धन और ऊर्जा का व्यय

ऐसी फिल्में देखना एक प्रकार से समय , धन और ऊर्जा का बेफिजूल खर्च ही होगा, जिससे आपको कुछ सीखने और नया जानने को ना मिले। आज की अधिकतर फिल्में इसी रोड मैप को अपनाकर काम कर रहे हैं।

भारतीय संस्कृति का परित्याग

यह खेद की बात है कि जहां भारतीय फिल्में अपनी संस्कृति को बनाए रखकर प्रस्तुत किए जाते थे, वही आज पाश्चात्य संस्कृति की तौर-तरीकों पर बनाए जा रहे हैं। सिनेमा जगत में बनाई जा रही अधिकतर फिल्में पाश्चात्य सभ्यता के नक्शे कदम पर चल रहे हैं।

वयस्क सामग्री का प्रदर्शन

इस दूषित युग में सिनेमा इंडस्ट्री भी पूरी तरह से दूषित हो चुकी है। यहां संगीत के नाम पर कर्कश, असंगत, और भड़कीले गाने बनाए जाते हैं, जिन्हें लोग भी ख़ूब पसंद करते हैं। 

वयस्क सामग्रीयों को आज मनोरंजन के नाम पर खुलेआम प्रस्तुत किया जा रहा है। यह किसी भी मायने में एक अच्छे समाज के निर्माण में कामगार नहीं साबित हो सकता।

झूठी धारणाओं का प्रचलन

सिनेमा के शौकीन लोगों को इसके द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले झूठे धारणाओं से बचने की सख्त आवश्यकता है। कई बार इसी कारण देश में हिंसक वातावरण भी बन जाते हैं। इस तरह सिनेमा के सबसे नकारात्मक पहलुओं में झूठी धारणाओं का प्रचलन भी शामिल है।

नशीली सामग्रियों का खुला प्रचार

अक्सर फिल्मों में कई ऐसे किरदार होते हैं, जो नशीली पदार्थों का सेवन करते हुए दिखाई जाते हैं। इसकी पूरी संभावना है कि युवा जो उन किरदार को निभाने वाले अभिनेता या अभिनेत्रियों को आदर्श मानते हैं वह भी उनकी तरह वास्तविक जिंदगी में नशीली सामग्रियों का सेवन करेंगे। 

चंद पैसों के लिए तथाकथित मनोरंजन करने वाले ऐसे लोगों को ऐसी सामग्रियों का खुला प्रचार बंद करना चाहिए।

धर्म विशेष का आपत्तिजनक प्रदर्शन

यह एक ट्रेंड बन गया है कि फिल्म इंडस्ट्री में किसी समुदाय अथवा धर्म विशेष के ऊपर आपत्तिजनक दृश्य या वाक्य को प्रदर्शित करके प्रसिद्धि बटोरी जा रही है, भले ही वह नकारात्मक ही क्यों न हो। सिनेमा जगत को ऐसे संवेदनशील मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और अपने सीमा में रहते हुए अपना कार्य करना चाहिए।

किस प्रकार के सिनेमा बनाए जाने चाहिए? What Kind of Cinema Should be Made?

  • ऐसी फिल्में जो शिक्षा को बढ़ावा दे
  • महिलाओं के अधिकारों के संबंध में जागरूकता फैलाएं
  • सामाजिक मुद्दों पर खुलकर बात करे
  • पुरानी रूढ़िवादी प्रथाओं के विरुद्ध जागरूकता बढ़ाए
  • भारतीय संस्कृति को बढ़ावा दे
  • नशीली सामग्रियों के खिलाफ उदाहरण पेश करे

निष्कर्ष Conclusion

इस लेख में आपने सिनेमा का जीवन पर प्रभाव निबंध (Essay on impact of cinema on life in Hindi) को पढ़ा। आशा है यह लेख आपको जानकारी से भरपूर लगा होगा। अगर यह लेख आपको अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें।

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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Your Favorite Movie” , ”मेरी पसंदीदा फिल्म” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.

मेरी पसंदीदा फिल्म

Your Favorite Movie

भारत में फिल्म उद्योग हर वर्ष अनेकों फिल्में बनाने के लिए प्रसिद्ध है। ये फिल्में अलग-अलग विषयों से सम्बन्धित होती हैं। कई धार्मिक, सामाजिक तथा कई ऐतिहासिक होती हैं। मैं फिल्मों का बड़ा फैन नहीं हूँ किन्तु मुझे सामाजिक फिल्में पसन्द हैं। मैंने अनेक ऐसी फिल्में देखी हैं। मेरी पसन्दीदा फिल्म का नाम है जिस देश में गंगा बहती है। यह राज कपूर द्वारा निर्मित तथा निर्देश की गई है। इसका संगीत बहुत मधुर है। राज कपूर, पद्मिनी तथा प्राण इसके मुख्य कलाकार थे। इसका विषय डाकओं को प्रोत्साहित कर के अच्छे इंसान में बदलना है। फिल्म के गीत मनोरंजन करने वाले हैं। पद्मिनी का नृत्य देखने वालों का मन मोह लेता है। हम इसे एक शुद्ध फिल्म कह सकते हैं। इसमें किसी प्रकार की कोई अश्लीलता नहीं है। यह एक सदाबहार फिल्म है। मैं जब भी इसे देखता हूँ मुझे अच्छा लगता है। यह जवान तथा बूढ़ों सबके देखने लायक है। मैंने इसे कई बार देखा है। ऐसी फिल्में बहुत कम ही निर्मित होती हैं।

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Essay on cinema in hindi सिनेमा पर निबंध.

Essay on Cinema in Hindi. Students today we are going to discuss very important topic i.e essay on Indian cinema in Hindi. Essay on cinema in Hindi language is asked in many exams so you should know all about cinema in Hindi. The essay on 100 years of Indian cinema in Hindi language. Learn essay on cinema in Hindi 1000 words. सिनेमा या चलचित्र पर निबंध / चलचित्रों का महत्त्व व उपयोगिता

hindiinhindi Essay on Cinema in Hindi

Essay on Cinema in Hindi 500 Words

सिनेमा पर निबंध

मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ भौतिक सख-साधनों में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई। छाया चित्रों का भी क्रमिक विकास हुआ। फिर इन चित्रों में गति उत्पन्न हुई। धीरे-धीरे ये मूक चित्र बोलने व चलने-फिरने लगे और चलचित्रों का जन्म हुआ। इस आविष्कार ने संसारभर की मनुष्य जाति के मन-मस्तिष्क पर अपना साम्राज्य बना लिया और आज चलचित्रों के प्रभाव से कोई भी अछूता नहीं है।

प्रकाश, ध्वनि व चित्रों की सहायता से किया गया यह अनुपम आविष्कार आज मनोरंजन का प्रमुख साधन है। आरंभ में मूक चित्रों का निर्माण किया गया। फिर श्वेत-श्याम ध्वनियुक्त चलचित्र प्रकाश में आए। भारत में प्रथम महायुद्ध के समय इस आविष्कार ने अपना प्रभाव जमाना आरंभ किया। नाटक, कहानी, प्रहसन का आनंद लोगों को चलचित्र में मिलने लगा। धीरे-धीरे छोटे-बड़े सभी शहरों और कस्बों में चलचित्रों की लोकप्रियता बढ़ती गई।

चलचित्र मनोरंजन का उत्तम साधन है। इसके द्वारा अपने देश की संस्कृति व सभ्यता को जीवित रखा जा सकता है। पौराणिक कथाओं पर आधारित चलचित्रों के माध्यम से समाज में आदर्शात्मक गुणों की स्थापना की जा सकती है।

चलचित्रों के माध्यम से देश की कठिन-से-कठिन समस्याओं को सुलझाने में मदद मिल सकती है। सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध अभियान छेड़ने में चलचित्र प्रमुख भूमिका निभाते हैं। भावात्मक कथाप्रधान चलचित्रों के माध्यम से समाज की बुराइयों व कुप्रथाओं को दूर किया जा सकता है। चलचित्रों द्वारा किसी भी प्रथा के कारण, कार्य व परिणाम दिखाकर दर्शकों के विवेक को झकझोरा जा सकता है। अनेक गंभीर समस्याओं को कथाओं के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाकर उन्हें जागरूक व सचेष्ट किया जा सकता है। वर्तमान में बढ़ रही मद्यपान, मादक द्रव्यों का सेवन, दहेज-प्रथा, रिश्वत, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं के प्रति जनमानस की विचारधारा को आंदोलित करने में चलचित्रों की भूमिका सराहनीय हो सकती है।

चलचित्र जीवन का व्यावहारिक ज्ञान देते हैं। किसी भी विषय पर बना चलचित्र दर्शकों को उनकी रुचि के अनुकूल आनंद व शिक्षा प्रदान करता है। देश-विदेश के चलचित्रों को देखकर लोग न केवल दूसरों के रहन-सहन से परिचित होते हैं अपितु उनकी जीवन-शैली और विचारधारा प्रेक्षकों की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है। देशभक्ति की भावना से पूर्ण चलचित्रों का युवाओं के मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वे देशसेवा के कार्यों में जुटने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

चलचित्रों का प्रयोग शिक्षा के प्रसार हेतु भी किया जा सकता है। आजकल गणित, भूगोल, इतिहास तथा तकनीकी शिक्षा देने के लिए भी चलचित्र उत्तम माध्यम माने जा रहे हैं। दृश्य व श्रव्य होने के कारण ये छात्रों के मन में ज्ञान व व्यवहार संबंधी अमिट प्रभाव छोड़ते हैं। डॉक्यूमेंट्री चलचित्रों द्वारा देश की विभिन्न समस्याओं, दुर्गम दर्शनीय स्थलों, विभिन्न कार्य योजनाओं के विषय में विस्तृत जानकारी दी जा रही है।

देश में आर्थिक संपन्नता लाने में भी चलचित्रों का बड़ा योगदान है। विश्वभर में भारतीय विचारधारा, कला, संस्कृति, धर्म, दर्शन का प्रचार-प्रसार करने में चलचित्रों की विशेष भूमिका है। प्रचारको व विज्ञापनदाताओं के लिए तो चलचित्र वरदान सिद्ध हुए हैं।

चलचित्र मनोरजन तथा ज्ञान-वृधि के उत्तम साधन हैं। कछ लोगों का मानना है कि मनोरंजन के लिए विकसित इस कला ने अब विकृत रूप धारण कर लिया है। हिंसा से भरे, अश्लील व भौंडे दृश्यों के माध्यम से चलाचत्र-निर्माता सस्ती लोकप्रियता व धनार्जन करना चाहते हैं। इस प्रकार से बने चलचित्र युवाओं में अनेक मानसिक विकृतियों को जन्म देते हैं।

चलचित्रों के पक्ष व विपक्ष में अनेक प्रकार के विचार समाज में उपलब्ध हैं। चलचित्रों के लाभ सैद्धांतिक हैं, परंतु व्यावहारिक रूप में इसकी हानियाँ ही अधिक प्रकाश में आ रही हैं। कला की उन्नति व चलचित्रों की विधा का समाज को भरपूर लाभ मिले, इसके लिए सामाजिक, सरकारी व व्यक्तिगत प्रत्येक स्तर पर भरपूर प्रयास की आवश्यकता है ताकि मनोरंजन के इस उत्तम साधन का समाज व राष्ट्रहितार्थ सदुपयोग संभव हो सके।

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Essay on Cinema in Hindi 600 Words

सिनेमा बनाम समाज

आज हम जिस समाज में रह रहे हैं वह सूचना का सजग युग है। यह शताब्दी संचार-क्रांति की महान शताब्दी है। आज पूरे विश्व को सूचना एवं संचार के एक सूत्र में पूर्णत: पिरोया जा चुका है। आज हर देश, बाकी देशों से इसी के माध्यम से जुड़ा हुआ है। विश्व के किसी भी कोने में अगर कोई घटना घटती है तो वह क्षणभर में पूरे विश्व में फैल जाती है। विश्व के किसी भी कोने में प्रायोजित किए जाने वाले कार्यक्रम आज हम घर बैठे देख सकते हैं। यह मानव सभ्यता की जितनी बड़ी उपलब्धि है, उतनी ही महान एक क्रांति भी है।

आज मनुष्य अपनी वैचारिक एवं भावनात्मक जरुरतों को पूरा करने के लिए टी-वी अथवा सिनेमा के साथ जुड़ा हुआ है। उस पर दिखाये जाने वाले कार्यक्रम उसकी मनोरंजन की चेष्टा एवं जरुरत को पूर्ण करते हैं। सिनेमा आज आदमी के जीवन का नितांत अनिवार्य और अपरिहार्य अंग बन गया है’: यह कहना समसामयिक प्रवृतियां एवं सिनेमा की सामाजिकभूमिका को देखने के उपरांत, कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा। सिनेमा आज आदमी की औसतन आवश्यकताओं को पूरा करता है। उसे विश्व की अनेक जानकारियों की प्राप्ति तो सिनेमा के ही माध्यम से होती है।

हम ‘दूरदूर्शन’ देखते हैं, उसके चैनल पर प्रायोजित होने वाले कार्यक्रम प्रमुखत: ज्ञान-विज्ञान, सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक विषय, नवीनतम सूचना एवं जानकारियों आदि से संबंध रखने के साथ ही बालकों, वयस्कों आदि के मनोरंजन से भी संबध रखते हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सिनेमा आज अपने व्यापक प्रसार में मानवीय जीवन के बहुतांश को अपने में समेट लेता है। वस्तुत: सिनेमा का समाज पर पड़ने वाला प्रभाव अत्यधिक व्यापक होता है। अगर कहा जाए कि सिनेमा आज हमारे समाज का न केवल प्रतिबिंब बन गया है। अपितु वह हमारे समाज का सजग प्रतिनिधित्व भी करता है – तो कुछ गलत न होगा और न ही यह कोई अतिशयोक्ति होगी। सिनेमा से समाज में आने वाले परिवर्तनों एवं प्रभावों को कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है।

एक समय था, जब समाज अथवा समस्त मानव-समुदाय सामान्य जानकारियाँ प्राप्त करने के लिए कुछ एक गिने-चुने माध्यमों पर ही अवलम्बित रहता था। समाज के कुछ एक जागरुक लोग सम्पूर्ण समाज को सम्बोधित किया करते थे। वे उन्हें जिस प्रकार से बातें बताते अथवा सिखाते थे वे उन्हें वैसा ही मानते थे। किन्तु आज सिनेमा ने मानव-समाज को प्रत्यक्ष रूप से सम्बोधित करना आरम्भ कर दिया है। वह जनता को राजनीति की तमाम घटनाओं, उनके कारणों एवं उन घटनाओं के फलस्वरुप उत्पन्न होने वाले परिणामों को सीधे जनता के सामने रख देता है। इससे जनता में गहरी राजनैतिक-चेतना पैदा होती है। जनता में राजनैतिक चेतना पैदा करना सिनेमा का समाज पर पड़ने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव कहा जाना चाहिए।

इसी के साथ सिनेमा आदमी को उसके आस-पास के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश एव वातावरण की सूक्ष्मता से जानकारी प्रदान करता है। इससे उसमें समाजिकता का विकास होता है। वह अपने देश की सांस्कृतिक-परम्परा एवं उसके समग्र इतिहास से परिचित होता है। उसमे सामाजिक-चेतना का विकास होता है। इसी के साथ दूरदर्शन पर अनेक ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं जो अर्थव्यवस्था और हमारी कृषि-व्यवस्था आदि से संबंधित होते हैं। हम दूरदर्शन पर प्रस्तुत होने वाला कृषि-दर्शन कार्यक्रम भी देखते हैं। इस कार्यक्रम से किसानों को अपरिमित लाभ पहुंचा है। उन्होंने इस कार्यक्रम के माध्यम से अनेक ऐसे यंत्रों, साधनों एवं बीजों के बारे में जानकारियां को प्राप्त की हैं, जिनका उपयोग करके वे अपनी कृषि उत्पादन कई गुना बढ़ा सकते हैं।

इसी के साथ दूरदर्शन का एक और महत्वपूर्ण प्रभाव सामाजिक – पारिवारिक संबंधों पर भी पड़ता है। दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले मनोरंजन कार्यक्रम हमारा मनोरंजन करने के साथ-साथ हमारे भीतर नैतिक मूल्य और आदर्श भी भरते हैं।

इस प्रकार सिनेमा और दूरदर्शन ने हमारे समसामयिक जीवन को अत्यंत व्यापक रूप से प्रभावित किया है। इसलिए उसे हमारे समाज का सच्चा पथ प्रदर्शक कहना ही चाहिए।

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डिजिटल सिनेमा पर निबंध 600 Words

हमारे देश के सिनेमा जगत में पायरेसी एक बहुत बड़ी समस्या है। पायरेसी के द्वारा बॉलीवुड लगभग 50 प्रतिशत तक का नुकसान होता है।

फिल्म उद्योग से जुड़े लोग नई फिल्म को दूर-दराज के इलाको में इसलिए रिलीज नहीं करते कि वहां से उनकी नई फिल्म की पायरेसी हो जायेगी। पायरेसी से निपटने के लिए विकसित देशो में डिजिटल तकनीकि का प्रयोग किया जाता है, जिससे वहां एक साथ फिल्म के ढेर सारा प्रिंट रिलीज होते हैं और उनकी आमदनी भी अधिक होती है। अमेरिका में फिल्म के 2000 प्रिंट एक साथ रिलीज होते हैं और पहले ही सप्ताहांत (शनिवार-रविवार) में फिल्म 100 करोड़ डॉलर (करीब 500 करोड़ रुपये) तक का कारोबार कर डालती है। भारत के सालाना फिल्म कारोबार (4600 करोड़ रुपये) को अगर फिक्की के आकलन के अनुसार, 2009 तक 12,900 करोड़ रुपये तक पहुँचना है तो इसे भी डिजिटल तकनीक को अपनाना होगा। इस तकनीक को अपनाने की पैरवी कुछ कम्पनियां कर भी रही हैं। ये कम्पनियां डिजिटल सिनेमा के क्षेत्र में उतर चुकी हैं या जल्द उतरने वाली हैं। इनका दावा है कि पायरेसी का नामोनिशान मिटा देंगे और फिल्मों के प्रिंट बनाने के खर्च को इतना सस्ता कर देंगे कि हॉलीवुड की तरह बॉलीवुड भी नई फिल्म के 1000-2000 प्रिंट रिलीज कर के कम दिनों में ज्यादा कमाई कर सकेगा।

यह एक ऐसी केन्द्रीकृत तकनीक है, जिससे सिनेमा हॉल को जोड़ देने से सेटेलाइट के जरिए किसी फिल्म के प्रिंट को सिनेमा हॉल में जरूरत पड़ने पर किसी भी वक्त पहुँचाया जा सकता है।

इस तकनीक को अपनाने वाली कंपनी सबसे पहले फिल्म निर्माता से उनकी फिल्म को एमपीईजी 3 तकनीक से डिजिटल बनाने की अनुमति लेती है। फिर इनको वह कम्पनी अपने सेन्ट्रल मर्वर में अपलोड कर देती है। उसके बाद उसे उन सिनेमा हॉलों में ऑनलाइन वितरित कर देती है, जहाँ डिजिटल फिल्मों को रिसीव करने की तकनीक लगी हुई है। इस तकनीक में मारे सिस्टम को इनक्रिप्ट कर दिया जाता है, ताकि फिल्म की पायरेसी न हो सके।

मीडिया बजट (8 से 10 करोड़ रुपये) की फिल्में बनाने के लिए फिल्मकार नई फिल्म को औसतन 200 से 250 सिनेमाहॉल में रिलीज करते हैं। एक प्रिंट बनाने में 60,000 रुपये का खर्च आता है। अब अगर वे नई फिल्म को एक साथ 200 सिनेमाहॉल में लीज कर रहे हैं तो फिल्म के 200 प्रिंट बनाने का खर्च एक करोड़ बीस लाख रुपये हो जाता है। प्रिंट दिने ज्यादा होंगे बजट भी उसी हिसाब से आगे जायेगा। इसलिए ज्यादातर निर्माता अपनी फिल्मों को बड़े शहरों में पहले रिलीज करते हैं और फिर एक हफ्ते बाद उसी प्रिंट को छोटे शहरों में रिलीज करते हैं। लेकिन तब तक पायरेसी से उनकी फिल्में देश भर में सीडी-डीवीडी पर उपलब्ध हो जाती हैं। डिजिटल सिनेमा प्रिंट के इस खर्चे को एक चौथाई से भी कम कर देता है। कोई निर्माता जो अपने खर्चे बचाने के लिए अपनी नई फिल्म के कम प्रिंट रिलीज करता है, वह अब उसी खर्चे में चार गुना अधिक प्रिंट रिलीज कर सकता है। सामान्य सिनेमाहॉल को डिजिटल बनाने का खर्च 10 से 15 लाख तक आता है। डिजिटल तकनीक से बॉलीवड की कुछ फिल्म रिलीज भी की जा चुकी हैं।

डिजिटल तकनीक निश्चित रुप से बॉलीवट की तकदीर बदल सकती हैं। इससे बालीवु को कम खर्च में अधिक लाभ प्राप्त होगा तथा इस तरह के प्रिंट को सालों साल तक सुरक्षित रखा जा सकेगा। सेटेलाइट तकनीक से 100 से अधिक शहरों में बिना अतिरिक्त खर्च के फिल्म प्रिंट भेजे जा सकते हैं। कहा जा सकता है कि आने वाले समय में डिजिटल सिनेमा बॉलीवुड के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा।

सिनेमा पर निबंध Essay on Cinema in Hindi 700 Words

सिनेमा का प्रभाव

साहित्य और कला का रचनात्मक माध्यम और स्वरुप चाहे कैसा और कोई भी क्यों न हो; उसकी सफलता का मूल्याँकन समाज का दर्पण बन कर उसके अन्त:-बाह्य को प्रकट करने की क्षमता से ही किया जाता है। जो साहित्य और कला-रूप इस मापदंड पर खरा नहीं उतर पाता, उसे व्यर्थ की कोशिश से अधिक कुछ भी माना नहीं जाता। साहित्य और विविध कलाएँ अपनी वास्तविक सृजन-प्रक्रिया द्वारा जीवन और समाज का दर्पण तो बन ही सकती है, अपनी स्वभावगत मनोरंजन और आनंददायिनी प्रवृत्ति से जन-शिक्षण तथा जन-समस्याओं के निराकरण में भी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकती हैं, ऐसा प्रत्येक जन-हितैषी एवं समझदार व्यक्ति का स्पष्ट विचार है। लेकिन आज का सर्वाधिक सुलभ, सस्ता और लोकप्रिय दृश्य-श्रव्य माध्यम, कला-रूप सिनेमा तकनीकी स्तर पर बहुत आगे बढ़ कर भी समाजिक जीवन का हित-साधन तो क्या, उसके वास्तविक स्वरुप का दर्पण तक बन पाने में असमर्थ हो रहा है।

भारत में पहले मूक और फिर बोलते चित्र के रूप में सिनेमा की शुरुआत बींसवी शताब्दी के लगभग तीसरे दशक से शुरू हो सकी। तब से लेकर लगभग पांचवे-छठे दशक तक वह वास्तव में जीवन और समाज के व्यावहारिक एवं आवश्यक पक्षों का रोचक चित्रण करता रहा। यही नहीं, स्वतंत्रता-संघर्ष के दिनों में सिनेमा जनमानस को स्वतंत्रता संघर्ष में सम्मिलत करने, भाईचारा, पारस्परिक प्रेम ओर एकता का प्रचार-प्रसार करने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रदान करता रहा। लगभग सातवें दशक के सिनेमा में भी सामाजिक संबंधों का न्यूनाधिक उभार देखने को मिल जाता है। उसके बाद से संसार का वह सबसे लोकप्रिय और मजबूत माध्यम जन-समाज के वास्तविक आयामों से लगातार अलग होता गया, आधुनिक सिनेमा का तो हमारे व्यावहारिक जीवन-समाज से कहीं दूर का भी कोई संबंध नहीं रह गया है, यह तथ्य दु:ख के साथ स्वीकारना पड़ता है।

आधुनिक सिनेमा में जिस तरह के कृत्रिम लोग, कृत्रिम कहानियाँ, कृत्रिम वातावरण प्रस्तुत, किया जाता है और जो बनावटी परिणाम सामने लाए जाते हैं, इन सबका समाज के व्यवहारिक, जीवन से कहीं दूर का भी संबंध नहीं होता और भविष्य में भी कभी समाज वैसा बन सकेगा इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। अश्लीलता, नग्नता, हिंसा, खाली सपनों की बनावट और विकृति जिस आयातित अपसंकृति का प्रचार-प्रसार आज का सिनेमा कर रहा है वह भारतीय जीवन-समाज को पतन के किस गर्त में ले जायेगा, आज उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। कोरे सपनों के सौदागर सिनेमा, ने आज के भारतीय समाज को अपराधी मनोवृत्तियों वाला बना कर रख दिया है। आधुनिकता के नाम पर वह घर-परिवार से कटता हुआ मात्र सिनेमाई बनता जा रहा है। किशोरों की बात तो दूर नन्हें-मुन्ने बच्चे तक सिनेमाई अपसंस्कृति के प्रभाव से बुरी तरह प्रभावित होकर अनेक प्रकार के दोषों-बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं। जो मजबूत दृश्य-श्रव्य मीडिया संक्रमण करके इस दौर में जीवन और समाज के नव निर्माण में सहयोगी हो सकता था वही उसे उजाड़ कर किसी घोर अमानवीय बियावान में ले जाकर जंगली दरिंदों की हिंसा का शिकार हो जाने के लिए छोड़ देना चाहता है।

आज के सिनमा में कुछ भी तो स्वाभाविक नहीं होता। गाँव-खेत हर चीज बनावटी होती है – महल, झाड़ियों और बनावटी घिनौने फार्मूले, बनावटी अस्पताल, डॉक्टर, नर्से ओर बनावटी ही पुलिस यहां तक कि नायक-नायिका का बातें और व्यवहार तक बनावटी और अनैतिक। ऐसे में सिनेमा से भला जीवन-समाज के लाभ या भले की आशा क्या और कैसे की जा सकती है? अकेला दबला-पतला नायक, पहलवान टाईप के बीसियों आदमियों को मार गिराता है। क्या जीवन और समाज में कभी ऐसा हुआ या हो सकता है? सिनेमा में डॉक्टरों नर्सी, पुलिस वालों को जितना स्वाभाविक और सहृदय दिखाया जाता है, यदि व्यवहार में भी वे वेसे हो जाएँ, तो हमारा सामाजिक ढाँचा वास्तव में स्वर्ग बन जाए।

आज का प्रत्येक चलचित्र प्रायः एक जैसी हिंसा, अश्लील और नग्न, मारधाड़, बलात्कार, नृत्य द्विअर्थक गंदी भाषा आदि दिखाकर आखिर किस तरह के समाज का निर्माण करना चाहता है? घिनौने और भौडे मनोरंजन के नाम पर वह हमें दे ही क्या रहा है – वह भी जनता की माँग पर उसी के माथे पर अपनी कुरुचियों का भाँडा फोड़कर, यह सोचने-विचारने की बात है। यदि यही सब जीवन और समाज के लिए परोसे जाते रहना है, तो उचित यही है कि इस माध्यम को बंद ही कर दिया जाए या फिर इसका दुरुपयोग रोकने के लिए नियमों की सख्त पाबंदी लगाई जाए। तभी यह कलात्मक माध्यम शायद समाज और जीवन का वास्तविक दर्पण बन सके।

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सिनेमा पर निबंध Essay on Cinema in Hindi 1000 Words

सिनेमा का समाज पर प्रभाव 

सिनेमा चलचित्र विज्ञान की देन है। कैमरे और बिजली के आविष्कार ने इसके जन्म में सहायता दी है। 1860 के लगभग इस दिशा में प्रयत्न आरम्भ हो गए है। सर्वप्रथम मूक चलचित्र आरम्भ हुए। छोटी-छोटी फिल्में होती थीं जिन में संवाद नहीं होते थे। 1917 में पहली बोलने वाली फिल्म बनी। अभी भी इस क्षेत्र में नए नए प्रयोग चल रहे हैं। रंगदार और सिनेमास्कोप तो अब आम हो चुके हैं। ‘थ्री डाइमॅशनल’ फिल्मों का प्रयोग भी हुआ है जो पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया।

पुराने समय में नाटक, नाच-गाना, बाजीगरों और मदारियों के तमाशे जनता के मनोरंजन का मुख्य साधन थे। आज ये सब पीछे छूट गये हैं और सिनेमा मनोरंजन का मुख्य साधन बन चुका है। छोटे-छोटे नगरों में भी सिनेमा हाल हैं। गांवों में भी चलती-फिरती टाकियां पहुंच जाती हैं। बड़े-बड़े शहरों में तो अनेक एयरकंडीशंड सिनेमा हाल होते हैं। हर बच्चा, बूढ़ा, जवान सिनेमा में रुचि रखता है। आज जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं, जहां चलचित्रों का प्रभाव न पड़ा हो। रहनसहन, खान-पान, वेश-भूषा, साज-सज्जा, सब कुछ सिनेमा से प्रभावित हैं।

रेडियो से प्रसारित हो रहे अन्य कार्यक्रमों को शायद ही युवक पसन्द करते हों। वे विविध भारती या कोई और ऐसा स्टेशन ढूंढते हैं, जहां से फिल्म संगीत और फिल्मी कहानी का प्रसारण हो रहा हो। फिल्मी गानों की लोकप्रियता को देख कर मन्दिरों और जागरणों में उन्हीं की तर्ज पर लिखे गये धार्मिक गीत या भेटें गाई जाती हैं। पुराने समय में सामाजिक तथा पारिवारिक उत्सवों पर लोक गीत गाने का रिवाज था। सिनेमा के प्रभाव ने इस रिवाज को भी मिटा दिया है। अब मुंडन हो या सगाई, यज्ञोपवीत हो या विवाह, वहां फिल्मी गानों के रिकार्ड ही सुनाई देते हैं। सामाजिक सभा या राजनीतिक जलसा आरम्भ करने से पूर्व भीड़ इकट्ठी करने के लिए फिल्मी गाने बजाये जाते हैं। जनता की संगीत सम्बन्धी रुचि को सिनेमा ने प्रभावित किया है।

फिल्म में किसी अभिनेता या अभिनेत्री ने यदि कोई नए डिजाइन का कपड़ा पहन लिया तो रातों-रात वह फैशन चल पड़ता है। मिलें धड़ाधड़ वैसा कपड़ा बनाने लगती हैं और दर्जी भी नये कपड़े सीने में लग जाते हैं। किसी अभिनेता ने बाल बढ़ा लिए, दाढ़ी-मूंछ रख ली तो सभी युवक उसके पीछे विश्वास पात्र चेलों की तरह चल पड़ते हैं। किसी फिल्म सुन्दरी ने माथे पर लट डाल ली, एक ओर बाल कुछ कटवा लिए या बाल छोटे करवा लिए या खुले छोड़ लिए तो नगरों की किशोरियां कुछ दिनों में उसी रंग ढंग को अपनाए दिखाई देंगी। कहने का भाव यह है कि रहन-सहन और वेश-भूषा पर सिनेमा का प्रभाव पड़ता है।

आजकल प्राय: प्रेम की भावुकतापूर्ण कहानियों पर फिल्में बनती हैं और हमारे युवक-युवतियों के मन पर उनकी गहरी छाप पड़ती है। वे पारिवारिक जीवन की जगह वैसा ही अनिश्चित और निठल्ला जीवन चाहते हैं। फिल्मों के संवाद उनके लिए शास्त्रों के वाक्य बन जाते हैं। आजकल बनने वाली फिल्मों में तस्कर व्यापार, हिंसक और नग्नता का प्रदर्शन होता है। अनेक प्रकार के अपराध दिखाए जाते हैं। इन सब बुराइयों का युवा मन पर प्रभाव पड़ता है। ऐसी खबरें आई हैं जहां अपराधियों ने स्वयं स्वीकार किया है उन्होंने अमुक फिल्म से सीख कर यह अपराध किया था। इसका अभिप्राय यह नहीं कि सिनेमा बुरा है और बुरा प्रभाव ही डालता है। वस्तुत: दृश्य होने के कारण चित्रों और शब्दों का मिला जुला प्रभाव हर बात को मन मस्तिष्क तक पहुंचा देता है। अच्छी फिल्में अच्छे आदर्शों की शिक्षा भी दे सकती हैं।

सिनेमा के इस प्रभाव तथा वर्तमान दशा को देखते हुए अब भारतीय सैंसर बोर्ड ने कुछ कठोर नियम बनाए हैं। नग्नता, मद्यपान, निरर्थक आलिंगन, चुम्बन, क्रूरतापूर्ण हत्या तथा अन्य अनेक अपराधों आदि को फिल्मों में दिखाना वर्जित कर दिया गया है। हां, यदि कहानी की आवश्यकता के अनुसार ऐसे प्रसंग जरूरी हों तो उन्हें शिष्टता और संयम से दिखाया जाना चाहिए।

सिनेमा जगत के लोगों को व्यवसाय के साथ-साथ जनता और कला का भी ध्यान रखना चाहिए। फिल्म को हिट बनाने के लिए कई तरह के टोटकों का उपयोग किया जाता है जो कुरुचि को बढ़ाते हैं। लेखकों और निर्देशकों को इस सम्बन्ध में सचेत रहना चाहिए। समाजवादी देशों में सिनेमा द्वारा जनता को शिक्षित बनाने का काम लिया गया है, वही ध्येय हमारे सामने भी होना चाहिए। उस अवस्था में सिनेमा समाज पर स्वस्थ प्रभाव डालेगा और हितकारी सिद्ध होगा।

कई फिल्में अच्छी होते हुए भी सफल नहीं होतीं। लेकिन चरित्र प्रधान फिल्में समाज को नई दिशा देती हैं। भारत सरकार को चाहिए कि अच्छी फिल्में बनाने वालों को पुरस्कार दे और आर्थिक सहायता भी दे। प्रयत्न यही करना चाहिए कि बेकार, उद्देश्यहीन फिल्मों को प्रोत्साहन न दिया जाए। शिक्षित व्यक्तियों को तथा अच्छे नेताओं को चाहिए कि वे अच्छी फिल्मों को प्रोत्साहन दें। बुरी फिल्मों की कटु आलोचना करना और अच्छी फिल्मों की अच्छी आलोचना करना, यह कार्य पत्रकारों का है।

चीन और पाकिस्तान के आक्रमण के पश्चात् फिल्मों का उत्तरदायित्व और भी बढ़ गया है। अब उचित यही है कि ऐसी फिल्में बनें जो समाज का चरित्र-निर्माण करें, गृहस्थ धर्म की शिक्षा दें और भारतीय संस्कृति के अनुसार आदर्श युक्त हों। स्वतन्त्र भारत में जहां एक ओर लोगों का उत्तरदायित्व है, वहां निर्माताओं का भी उत्तरदायित्व है। उनका कर्तव्य है कि वे केवल व्यावसायिक दृष्टि को मद्दे नजर रख कर ही फिल्मों का निर्माण न करें बल्कि राष्ट्रीय चरित्र और देश प्रेम, मानवता एवं समाज सेवा, पर आधारित फिल्मों का भी निर्माण करें।

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HT

Essay: Viewing Sholay as a road movie on its 45th anniversary

Looking afresh at one of mainstream hindi cinema’s iconic films as it approaches a milestone anniversary on august 15.

Ramesh Sippy’s all-time hit Sholay (1975) is perhaps the most reviewed film in the history of Hindi mainstream cinema. But few critics have read it as a road movie. This is probably because the storyline has different layers with revenge, love, hate, male bonding, pride, solidarity, integrity, courage, greed, fun and happiness all woven in. The film covers such a range of human emotions that it is easy to miss the rootlessness, sense of casual adventure, and the essential loneliness of the central characters, the two small-time thieves, Veeru and Jai. Until Veeru and Jai reach Ramgarh to take on the Thakur’s assignment, they are constantly on the move. When their pockets are empty, they get themselves caught by the police and take respite in prison. They are thieves but they are good-natured, simple, bold, strong and extremely likeable.

Sholay, a blockbuster 45 years on.(HT Photo)

The duo has no home, family, or roots to hold on to. They are not given a social history. Nor do they demonstrate any desire to settle down in one place. They appear to be quite content with their lives being in a constant state of flux, geographically and financially.

The film opens with the friends singing Yeh dosti hum nahin todengey on a motor bike with a sidecar that comically detaches itself and rejoins the main vehicle during the course of the song. As the film moves in flashback, we find Veeru and Jai in a moving train where they meet Baldev Singh Thakur for the first time when he is still a police officer.

Not just a road movie, Sholay is also a journey film. The difference between the road movie and the journey film lies in the strong and concrete physicality of the former and the abstract, conceptual and sometimes ideological themes that dot the latter. The destination is uncertain, undefined, and infinite reminding viewers of their larger ambivalent destiny.

When they meet Baldev Singh Thakur again years later at Ramgarh, his hair has turned white but the two protagonists remain as young as they were when the film began. The shock of having his entire family except his younger bahu gunned down in cold blood by Gabbar Singh has grayed Thakur prematurely. Veeru and Jai’s rootlessness and living away from the mainstream appears to have stopped the ageing process for them.

The metaphors of wanting to belong and wanting to be loved are expressed when Veeru says he wants to get out of thieving, marry, and have kids. Jai’s mouth organ, a small musical instrument that can travel with its owner everywhere, is a symbol of his desire to be loved and to belong. Every night, he sits outside his quarter in the Thakur’s mansion playing the mouth organ, waiting for Radha, the widowed daughter-in-law to step out onto the balcony. The tune he plays is always the same possibly because that is the only tune he knows to play. It is melancholic reflecting the sadness of his life and that of the young widow. It is also a silent pointer to the tragic end of this love story. The film concludes inside a train with Basanti, the tongewalli , waiting to go away and begin a new life with Veeru. Will they settle down to domesticity? Or will they embark on a different journey with a different destination? The film keeps the question hanging in the air.

Amjad Khan as Gabbar Singh and Hema Malini as Basanti in a scene from Sholay. (HT Photo)

Modes of transport also describe the characters’ different journeys. The funny motor cycle Veeru and Jai ride indicates their bond and also hints at their eventual separation. Then, there is the train that Gabbar Singh’s dacoits want to loot; they are thwarted by the young police officer Thakur Baldev Singh. Gabbar Singh’s gang is on horseback. For Basanti, her horse Dhanno is not only her friend, guide and helper but the tonga he pulls is her way of life. Ahmed rides a yearling.

Gabbar alone does not move much from his den, the centre of his operations and also perhaps, his home. This isn’t a cave but an open hillock that he presides over, swinging his leather belt this way and that, chewing tobacco from his small pouch and spitting it out. He makes his men do all the riding and looting as he is confident that he holds even distant villages in a constant thrall of fear. He is bothered neither about a journey nor about a destination. He has a one-track mind and is focused solely on terrorizing and looting people.

The subtexts are also interwoven with journeys. Young Ahmed takes his journey on the back of a young horse, making his way to a job in the city. It turns out to be a journey of no return when the yearling slowly trots back to Ramgarh minus its rider. Basanti speeding away in her tonga pleading with Dhanno to take care of her izzat as Gabbar’s men are in hot pursuit is another action-filled journey. The flashbacks into Thakur’s past and that of the two good-hearted thieves are meshed together with journeys across time and space with the train and the railway track as a repeated metaphor. One beautiful scene has men on horseback running parallel to the moving train with the dacoits and the police pitted against each other.

Basanti’s tonga is a motif of her unusual characterization. The sound of Dhanno trotting as he pulls the tonga with Basanti wielding the whip interspersed with the jingle of the bells around the horse’s neck establishes her as a strong woman, courageous enough to carry male passengers from the nearest station to the village and back. Radha, Thakur Baldev Singh’s widowed daughter-in-law moves from being a bubbly girl fond of Holi to a shy bride to a young widow swathed not only in a white sari but also in silence. Here, the journey is also from speech to silence.

Though, in parts, the road per se , may be absent, Sholay , which also features the journey, the destination and the characters undertaking the journey, really is the textbook model for road movies, and perhaps that is what makes it a favourite across the highways of Time.

Shoma A Chatterji is an independent journalist. She lives in Kolkata.

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  • Gabbar Singh
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Essay on Bollywood

Students are often asked to write an essay on Bollywood in their schools and colleges. And if you’re also looking for the same, we have created 100-word, 250-word, and 500-word essays on the topic.

Let’s take a look…

100 Words Essay on Bollywood

Introduction to bollywood.

Bollywood is a big part of Indian culture. It is the nickname for the Indian film industry, located in Mumbai. Bollywood got its name from Bombay (now Mumbai) and Hollywood (the American film industry). It is one of the largest film producers in India and one of the largest centers of film production in the world.

History of Bollywood

Bollywood started over 100 years ago, in 1913. The first silent film was “Raja Harishchandra”. The first sound film, “Alam Ara”, was made in 1931. Since then, Bollywood has grown a lot and has made many popular movies.

Bollywood’s Unique Features

In Bollywood movies, you can often see song and dance. These are a special part of the movies. These songs are often released before the movie to increase interest. Bollywood movies are also known for their long length, usually three hours.

Impact of Bollywood

Bollywood has a big impact on Indian society. It influences fashion and trends. Many people look up to Bollywood actors and actresses. Bollywood also helps to spread the Indian culture around the world. It has fans in many different countries.

In conclusion, Bollywood is a very important part of India. It makes many movies every year. These movies are loved by people in India and all over the world. Bollywood is a symbol of Indian culture and creativity.

250 Words Essay on Bollywood

What is bollywood.

Bollywood is a big part of Indian culture. It is the name for the Hindi movie industry based in Mumbai, India. The name “Bollywood” comes from Bombay (the old name for Mumbai) and Hollywood (the center of the American film industry).

Bollywood started over 100 years ago. The first silent film, “Raja Harishchandra,” was shown in 1913. The first sound film, “Alam Ara,” came out in 1931. Since then, Bollywood has grown and changed a lot.

Features of Bollywood Movies

Bollywood movies are known for their long running time, usually around three hours. They often mix different genres like comedy, drama, and action. Music and dance are very important in these films. The songs are usually pre-recorded and the actors lip-sync the words.

Bollywood has a big impact on Indian society. The movies show ideas about love, family, and morality. They also influence fashion trends. Many people in India and around the world love Bollywood movies.

In short, Bollywood is a vibrant part of Indian culture. Its movies are enjoyed by millions of people, both in India and abroad. Bollywood’s mix of drama, music, and dance makes it unique and loved by many. It’s more than just an industry, it’s a world of its own.

[Word Count: 250]

500 Words Essay on Bollywood

Bollywood is a big part of Indian culture. It is the nickname for the Indian film industry, which is based in Mumbai. The name “Bollywood” comes from a mix of Bombay (the old name for Mumbai) and Hollywood, the center of the American film industry.

Bollywood started over 100 years ago. The first silent film in India was made in 1913 by Dadasaheb Phalke. The film was called ‘Raja Harishchandra.’ By the 1930s, the industry was producing over 200 films per annum. The first Indian sound film, Ardeshir Irani’s Alam Ara (1931), was a major hit. There was clearly a demand for Indian films, so the industry kept growing.

Bollywood Movies

Bollywood movies are known for their long duration, often running over two hours. They are full of song and dance. The stories often involve love, family problems, or social issues. They can be quite emotional. The songs from these movies are usually very popular and become a big part of Indian pop culture.

Bollywood Stars

There are many famous actors and actresses in Bollywood. Some of the most popular ones are Amitabh Bachchan, Shah Rukh Khan, Aishwarya Rai, and Priyanka Chopra. These stars are loved by millions of fans around the world. They often work in many movies each year.

Bollywood’s Global Influence

Bollywood films are not just popular in India. They are watched by millions of people all over the world. They have been translated into many languages. This has helped to spread Indian culture globally. Bollywood dances and music have become popular in many countries.

In conclusion, Bollywood is a vibrant part of Indian culture. It has a rich history and has a big influence, both in India and around the world. Bollywood offers a unique blend of entertainment through its films, music, and dance. Whether it’s the compelling stories, the charismatic actors, or the catchy songs, there’s something for everyone in Bollywood.

That’s it! I hope the essay helped you.

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सिनेमा पर निबंध

Essay on Cinema in Hindi: हम यहां पर सिनेमा पर निबंध शेयर कर रहे है। इस निबंध में सिनेमा के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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सिनेमा पर निबंध | Essay on Cinema in Hindi

सिनेमा पर निबंध (250 शब्द).

भारतीय सिनेमा मनोरंजन का एक बहुत अच्छा सस्ता और बढ़िया साधन है। इसमें मानव के जीवन के नाटक और हमारे समाज में हो रही बुराई अच्छाइयों का दृश्य देखने को मिलता है। फिल्म के दृश्य और गाने बहुत अधिक सुहावने लगते हैं। हमारे देश में बहुत बड़ी संख्या में हर साल बहुत फिल्में बनाई जाती है। भारतीय सिनेमा को विज्ञान के उपायों में एक बहुत ही सुंदर उपहार माना गया है इसीलिए आज भारतीय सिनेमा बहुत ही लोकप्रिय है।

जिस तरह सिनेमा जनसंसार मनोरंजन का एक लोकप्रिय माध्यम है, उसी प्रकार साहित्य समाज का दर्पण होता है। भारतीय सिनेमा में समाज को प्रतिबंधित किया है। भारतीय युवाओं के मन में प्रेम के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने की बात हो या सिनेमा के कलाकारों के पहनावे के अनुसार फैशन का प्रचलन। इन सभी का हमारे समाज पर सिनेमा के द्वारा ही प्रभाव पड़ता है।

सिनेमा उद्योग भारत का सबसे पुराना उद्योग रहा है और आज भी सिनेमा ने बहुत बड़ा रूप ले लिया है। सिनेमा के माध्यम से देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी करोड़ों लोगों की आजीविका चलती है। आज हमारे भारतीय सिनेमा की सबसे महत्वपूर्ण देन हिंदी फिल्में रही है। उन्होंने हिंदी को ना केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय सिनेमा ने बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।

भारत की आजादी के पश्चात सिनेमा जगत में देशभक्ति की जो भी फिल्में थी, उन्होंने लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना को जला कर रखा हुआ है। आज भी जब हम पुराने जितने भी देश भक्ति गाने सुनते हैं, उनसे हमारा मन देशभक्ति के लिए ओतप्रोत हो जाता है। भारतीय सिनेमा ने अपनी फिल्मों के माध्यम से ही देश की सभ्यता और संस्कृति को अभी तक जिंदा कर रखा है।

सिनेमा पर निबंध  (800 शब्द)

सिनेमा का आविष्कार आधुनिक समाज के दैनिक उपयोग और विलास की वस्तु है। हमारे सामाजिक जीवन में सिनेमा ने इतना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है कि, उसके बिना सामाजिक जो जीवन है वह अधूरा अधूरा सा लगता है। सिनेमा देखना लोगों के जीवन की दैनिक क्रिया की तरह हो गया है। जैसे शाम को सिनेमा घर के सामने एकत्रित होकर सब ही लोग सीरियल, धार्मिक नाटक, फिल्में एक साथ देखते हैं। उससे सिनेमा की उपयोगिता का अनुमान लगाया जा सकता है। मनोरंजन सिनेमा का मुख्य प्रयोजन रहा है। दूसरे मनोरंजन के अतिरिक्त भी जीवन में सिनेमा का बहुत महत्व है और इसके बहुत से लाभ भी है।

सिनेमा का इतिहास

19वीं शताब्दी में अमेरिका के थॉमस अल्वा एडिसन ने सिनेमा का आविष्कार किया था। इन्होंने सन 1890 में सिनेमा को हमारे सामने प्रस्तुत किया था। पहले सिनेमा लंदन में कुमार नामक वैज्ञानिक के द्वारा दिखाया गया था। भारत में 1913 में दादा साहेब फाल्के के द्वारा सिनेमा बनाया गया, जिसकी बहुत प्रशंसा हुई। फिर इसके बाद तो बहुत सारे सिनेमा बनते चले गए। लेकिन सबसे जरूरी बात इसमें यह रही कि भारत का स्थान सिनेमा के महत्व की दिशा में विश्व में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर आता है।

सिनेमा एक मनोरंजन का साधन

आज के समय में मानव अपने जीवन में इतना व्यस्त हो गया कि उसकी आवश्यकताएं भी बहुत बढ़ गई है। व्यस्तता के कारण मनुष्य के पास मनोरंजन के लिए बिल्कुल भी समय नहीं है। सभी लोग जानते हैं कि मनुष्य बिना भोजन के साथ कुछ समय तक स्वस्थ रह पाए। परंतु बिना मनोरंजन के साथ खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से बिल्कुल स्वस्थ नहीं रख सकता। सिनेमा मनुष्य की बहुत जरूरी आवश्यकता की पूर्ति करता है। मानव के जीवन की उदासीनता और तनाव को दूर कर उसके अंदर ताजगी और दिन भर की थकान को भी मिटा देता है।

सिनेमा के लाभ

भारत में फिल्म जगत में उद्योग का भी दर्जा प्राप्त है।सिनेमा इंसान के पैसे कमाने का एक बहुत अच्छा साधन है। सिनेमा को बनाने से लेकर उसके विवरण और प्रदर्शन तक हर स्थान पर व्यवसायिकता का नाम देखा गया है। सिनेमाघरों में व्यापारिक विज्ञापन भी बहुत दिखाए जाते हैं क्योंकि जब सिनेमाघरों में बड़ी संख्या में लोग फिल्मों को देखने के लिए पहुंचते हैं। इससे जो भी व्यापारिक  विज्ञापन दिखाए जाते हैं उनके बारे में जानकारी सभी लोगों को मिल जाती है। व्यापारी वर्ग अपने विज्ञापन देकर अपने अपने व्यापार को बढ़ाने में सफल हुए है।

सिनेमा की हानि

जहां लोगों को सिनेमा के द्वारा लाभ होते हैं, वहां सिनेमा के द्वारा बहुत सी हानियां भी देखने को मिलती है। जब हम सिनेमा देखते हैं, तो स्वास्थ्य की दृष्टि से आंखों के लिए बहुत हानिकारक होता है। इसकी वजह से व्यक्ति की आंखों की रोशनी को नुकसान होता है और साथ में धन और समय दोनों ही बर्बाद होते है। इसके अलावा सिनेमा में अश्लील और सस्ते उत्तेजना पूर्ण चित्रों को देखने पर खुद के चरित्र का भी नुकसान होता है।

दुर्भाग्यवश यह कहने में कोई बुराई नहीं है, कि आज सिनेमा का प्रभाव मानव के जीवन में बहुत गलत हो गया है। क्योंकि इससे मनुष्य के अंदर कामुकता बनाने वाले अश्लील चित्र संवाद और गंदे गाने आदि बहुत गलत चीजें होती हैं और भारतीय सिनेमा के द्वारा ही धोखाधड़ी, फैशन, शराब, जुआ, मारधाड़, हिंसा, अपहरण बलात्कार, तस्करी, लूटपाट आदि जो भी समाज विरोधी दृश्यों को इसमें दिखाया जाता हैं। उन सब से युवक, बच्चे सभी लोग अनुशासनहीनता हो गए हैं।

आज के युवा वर्ग की मांग यह है कि वह दर्शकों को अपने देश की सभ्यता संस्कृति और गौरवपूर्ण परंपरा के दर्शन सिनेमा के माध्यम से कराएं। अच्छे चित्रों का निर्माण करके उनमें भारतीय संस्कृति सामाजिकता और नैतिक परंपराएं दिखाई जाए। जिससे दर्शकों के मन में अच्छी भावनाएं समाज और देश के प्रति आएंगे । जो फिल्म सेंसर बोर्ड है, उसको अपना कठोर रुख अपनाना चाहिए, जिससे की अश्लील और कामुकता और विलास से भरी जो भी फिल्में है वह संपूर्ण जनमानस में अश्लीलता कामुकता और विलास की भावना को बढ़ावा ना दें और इसके साथ ही सही शब्दों में सिनेमा एक वरदान के रूप में सिद्ध हो।

आज के आर्टिकल में हमने  सिनेमा पर निबंध ( Essay on Cinema in Hindi) के बारे में बात की है। मुझे पूरी उम्मीद है की हमारे द्वारा इस आर्टिकल में जानकारी आप तक पहुंचाई गयी है, वह पसंद आई होगी। यदि किसी व्यक्ति को इस आर्टिकल से सम्बंधित कोई भी सवाल है। तो वह हमें कमेंट में बता सकता है।

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Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies Essay

Introduction, importance of a topic.

Today, people get a good opportunity to learn about Indian society and its cultural peculiarities from a well-developed Hindi commercial film industry. In the chapter under analysis, Hasan (2010) examines Bollywood and Indian popular culture, focusing on complex relationships between the Indian state and the indigenous people who live in North-East India. Several key points make up the argument about the impact of commercial films and the role of the local identity of filmmakers. The author investigates the historical relationships between different regions of India, cultural assimilation, personal identity, political implications, and the creativity of Bollywood. Hindi commercial cinema is predetermined by past achievements, while modern producers use Bollywood as their form of cultural survival.

The author of the chosen reading aims at discussing the role of commercial movies in understanding Indian cultures in several regions. The relationships between North-East India and other parts of the Indian state were complex and characterized by inequality and dominance, and locally produced films show the creativity of indigenous filmmakers. In Bollywood, the imagination of producers threatened peripheral indigenous cultures but also promoted the recognition of a national cultural identity (Hasan, 2010). People believed that there was no need to borrow methods from the world but develop local traditions and share stories about Indians from different parts of the state.

Several critical issues prove how influential Hindi popular culture can be concerning the film industry. In India, many ethnic groups exist, and their development depends on different historical achievements and political decisions. Jawaharlal Nehru, the first Prime Minister in India, believed that North-East India had its future based on the policy of integration for indigenous societies (Hasan, 2010). This territory was represented as an amorphous mass, which explained the differences between people. The cultural autonomy of the region was recognized, but it was necessary to create one cultural identity where the representatives of different regional groups could cooperate. According to Hasan (2010), commercial movies were a serious step in this direction because local producers and filmmakers wanted to combine their cultural standards with indigenous beliefs and open the discourse of entertainment through assimilation. It was planned to obtain a balance and use Bollywood as a mediator in such complex relationships. Hindi movies introduced North-East India, underling the principles of nationalism and patriotism and showing the power of nostalgic vision. The promotion of digital technologies was another means to tell stories with clear pictures and pleasant music.

In general, the impact of Hindi commercial cinema on Indian cultures remains great. The industry consists of Bollywood movies and regional works and becomes one of the most meaningful art spheres in the whole world. Although filmmakers continue producing thousands of films annually, questioning their quality and context, millions of people can watch Indian movies and investigate the complex world of India. Bollywood producers consider their opportunities to reveal traditions, respect cultures, and underline the worth of contemporary social issues on the screen.

Hasan, D. (2010). Talking back to ‘Bollywood’: Hindi commercial cinema in North-East India. In S. Banaji (Ed.), South Asian media cultures: Audiences, representations, contexts (pp. 29-50). Anthem Press.

  • Chicago (A-D)
  • Chicago (N-B)

IvyPanda. (2022, October 11). Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies. https://ivypanda.com/essays/hindi-commercial-cinema-bollywood-movies/

"Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies." IvyPanda , 11 Oct. 2022, ivypanda.com/essays/hindi-commercial-cinema-bollywood-movies/.

IvyPanda . (2022) 'Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies'. 11 October.

IvyPanda . 2022. "Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies." October 11, 2022. https://ivypanda.com/essays/hindi-commercial-cinema-bollywood-movies/.

1. IvyPanda . "Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies." October 11, 2022. https://ivypanda.com/essays/hindi-commercial-cinema-bollywood-movies/.

Bibliography

IvyPanda . "Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies." October 11, 2022. https://ivypanda.com/essays/hindi-commercial-cinema-bollywood-movies/.

  • Bollywood Movies: History and the ‘Bollywood Movement’
  • Bollywood Film Industry Specifics
  • Bollywood Film Industry
  • Traffic Congestion and Hindi FM
  • "Bombay Talkies": The Celebration of Hindi Film Industry
  • Studio Frowns on Bollywood 'Button': Disregard for Copyright Issues in India
  • Globalization of Bollywood and Its Effects on the UAE
  • Bollywood's Cinema: Movies Marketing
  • Ethnicity Studies: Hindi Culture and Issues in the US
  • Pakistan: Culture and History
  • "V Is for Vendetta" Movie Analysis
  • Indiana Jones and the Raiders of the Lost Ark
  • Hirokazu Koreeda’s 'Nobody Knows' Movie Analysis
  • Love Conquers Everything: 'The Notebook' Movie by Cassavetes
  • Visual Screenwriting of Quentin Tarantino

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निबंध (Hindi Essay)

आजकल के समय में निबंध लिखना एक महत्वपूर्ण विषय बन चुका है, खासतौर से छात्रों के लिए। ऐसे कई अवसर आते हैं, जब आपको विभिन्न विषयों पर निबंधों की आवश्यकता होती है। निबंधों के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए हमने इन निबंधों को तैयार किया है। हमारे द्वारा तैयार किये गये निबंध बहुत ही क्रमबद्ध तथा सरल हैं और हमारे वेबसाइट पर छोटे तथा बड़े दोनो प्रकार की शब्द सीमाओं के निबंध उपलब्ध हैं।

निबंध क्या है?

कई बार लोगो द्वारा यह प्रश्न पूछा जाता है कि आखिर निबंध क्या है? और निबंध की परिभाषा क्या है? वास्तव में निबंध एक प्रकार की गद्य रचना होती है। जिसे क्रमबद्ध तरीके से लिखा गया हो। एक अच्छा निबंध लिखने के लिए हमें कुछ बातों का ध्यान देना चाहिए जैसे कि – हमारे द्वारा लिखित निबंध की भाषा सरल हो, इसमें विचारों की पुनरावृत्ति न हो, निबंध के विभिन्न हिस्सों को शीर्षकों में बांटा गया हो आदि।

यदि आप इन बातों का ध्यान रखगें तो एक अच्छा निबंध(Hindi Nibandh) अवश्य लिख पायेंगे। अपने निबंधों के लेखन के पश्चात उसे एक बार अवश्य पढ़े क्योंकि ऐसा करने पर आप अपनी त्रुटियों को ठीक करके अपने निबंधों को और भी अच्छा बना पायेंगे।

हम अपने वेबसाइट पर कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज विद्यार्थियों के लिए विभिन्न प्रकार के निबंध(Essay in Hindi) उपलब्ध करा रहे हैं| इस प्रकार के निबंध आपके बच्चों और विद्यार्थियों की अतिरिक्त पाठ्यक्रम गतिविधियों जैसे: निबंध लेखन, वाद-विवाद प्रतियोगिता और विचार-विमर्श में बहुत सहायक हो साबित होंगे।

ये सारे ‎हिन्दी निबंध (Hindi Essay) बहुत आसान शब्दों का प्रयोग करके बहुत ही सरल और आसान भाषा में लिखे गए हैं। इन निबंधों को कोई भी व्यक्ति बहुत ही आसानी से समझ सकता है। हमारे वेबसाइट पर स्कूलों में दिये जाने वाले निबंधों के साथ ही अन्य कई प्रकार के निबंध उपलब्ध है। जो आपके परीक्षाओं तथा अन्य कार्यों के लिए काफी सहायक सिद्ध होंगे, इन दिये गये निबंधों का आप अपनी आवश्यकता अनुसार उपयोग कर सकते हैं। ऐसे ही अन्य सामग्रियों के लिए भी आप हमारी वेबसाइट का प्रयोग कर सकते हैं।

Essay in Hindi

Question and Answer forum for K12 Students

Hindi Essay (Hindi Nibandh) 100 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन

Hindi Essay (Hindi Nibandh) | 100 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन – Essays in Hindi on 100 Topics

हिंदी निबंध: हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है। हमारे हिंदी भाषा कौशल को सीखना और सुधारना भारत के अधिकांश स्थानों में सेवा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। स्कूली दिनों से ही हम हिंदी भाषा सीखते थे। कुछ स्कूल और कॉलेज हिंदी के अतिरिक्त बोर्ड और निबंध बोर्ड में निबंध लेखन का आयोजन करते हैं, छात्रों को बोर्ड परीक्षा में हिंदी निबंध लिखने की आवश्यकता होती है।

निबंध – Nibandh In Hindi – Hindi Essay Topics

  • सच्चा धर्म पर निबंध – (True Religion Essay)
  • राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान निबंध – (Role Of Youth In Nation Building Essay)
  • अतिवृष्टि पर निबंध – (Flood Essay)
  • राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर निबंध – (Role Of Teacher In Nation Building Essay)
  • नक्सलवाद पर निबंध – (Naxalism In India Essay)
  • साहित्य समाज का दर्पण है हिंदी निबंध – (Literature And Society Essay)
  • नशे की दुष्प्रवृत्ति निबंध – (Drug Abuse Essay)
  • मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – (It is the Mind which Wins and Defeats Essay)
  • एक राष्ट्र एक कर : जी०एस०टी० ”जी० एस०टी० निबंध – (Gst One Nation One Tax Essay)
  • युवा पर निबंध – (Youth Essay)
  • अक्षय ऊर्जा : सम्भावनाएँ और नीतियाँ निबंध – (Renewable Sources Of Energy Essay)
  • मूल्य-वृदधि की समस्या निबंध – (Price Rise Essay)
  • परहित सरिस धर्म नहिं भाई निबंध – (Philanthropy Essay)
  • पर्वतीय यात्रा पर निबंध – (Parvatiya Yatra Essay)
  • असंतुलित लिंगानुपात निबंध – (Sex Ratio Essay)
  • मनोरंजन के आधुनिक साधन पर निबंध – (Means Of Entertainment Essay)
  • मेट्रो रेल पर निबंध – (Metro Rail Essay)
  • दूरदर्शन पर निबंध – (Importance Of Doordarshan Essay)
  • दूरदर्शन और युवावर्ग पर निबंध – (Doordarshan Essay)
  • बस्ते का बढ़ता बोझ पर निबंध – (Baste Ka Badhta Bojh Essay)
  • महानगरीय जीवन पर निबंध – (Metropolitan Life Essay)
  • दहेज नारी शक्ति का अपमान है पे निबंध – (Dowry Problem Essay)
  • सुरीला राजस्थान निबंध – (Folklore Of Rajasthan Essay)
  • राजस्थान में जल संकट पर निबंध – (Water Scarcity In Rajasthan Essay)
  • खुला शौच मुक्त गाँव पर निबंध – (Khule Me Soch Mukt Gaon Par Essay)
  • रंगीला राजस्थान पर निबंध – (Rangila Rajasthan Essay)
  • राजस्थान के लोकगीत पर निबंध – (Competition Of Rajasthani Folk Essay)
  • मानसिक सुख और सन्तोष निबंध – (Happiness Essay)
  • मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध नंबर – (My Aim In Life Essay)
  • राजस्थान में पर्यटन पर निबंध – (Tourist Places Of Rajasthan Essay)
  • नर हो न निराश करो मन को पर निबंध – (Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko Essay)
  • राजस्थान के प्रमुख लोक देवता पर निबंध – (The Major Folk Deities Of Rajasthan Essay)
  • देशप्रेम पर निबंध – (Patriotism Essay)
  • पढ़ें बेटियाँ, बढ़ें बेटियाँ योजना यूपी में लागू निबंध – (Read Daughters, Grow Daughters Essay)
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  • मेरा प्रिय पुस्तक पर निबंध – (My Favourite Book Essay)
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  • शिक्षा में खेलकूद का स्थान निबंध – (Shiksha Mein Khel Ka Mahatva Essay)a
  • खेल का महत्व पर निबंध – (Importance Of Sports Essay)
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इसलिए, यह जानना और समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि विषय के बारे में संक्षिप्त और कुरकुरा लाइनों के साथ एक आदर्श हिंदी निबन्ध कैसे लिखें। साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं। तो, छात्र आसानी से स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें, इसकी तैयारी कर सकते हैं। इसके अलावा, आप हिंदी निबंध लेखन की संरचना, हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखने के लिए टिप्स आदि के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। ठीक है, आइए हिंदी निबन्ध के विवरण में गोता लगाएँ।

हिंदी निबंध लेखन – स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें?

प्रभावी निबंध लिखने के लिए उस विषय के बारे में बहुत अभ्यास और गहन ज्ञान की आवश्यकता होती है जिसे आपने निबंध लेखन प्रतियोगिता या बोर्ड परीक्षा के लिए चुना है। छात्रों को वर्तमान में हो रही स्थितियों और हिंदी में निबंध लिखने से पहले विषय के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में जानना चाहिए। हिंदी में पावरफुल निबन्ध लिखने के लिए सभी को कुछ प्रमुख नियमों और युक्तियों का पालन करना होगा।

हिंदी निबन्ध लिखने के लिए आप सभी को जो प्राथमिक कदम उठाने चाहिए उनमें से एक सही विषय का चयन करना है। इस स्थिति में आपकी सहायता करने के लिए, हमने सभी प्रकार के हिंदी निबंध विषयों पर शोध किया है और नीचे सूचीबद्ध किया है। एक बार जब हम सही विषय चुन लेते हैं तो विषय के बारे में सभी सामान्य और तथ्यों को एकत्र करते हैं और अपने पाठकों को संलग्न करने के लिए उन्हें अपने निबंध में लिखते हैं।

तथ्य आपके पाठकों को अंत तक आपके निबंध से चिपके रहेंगे। इसलिए, हिंदी में एक निबंध लिखते समय मुख्य बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करें और किसी प्रतियोगिता या बोर्ड या प्रतिस्पर्धी जैसी परीक्षाओं में अच्छा स्कोर करें। ये हिंदी निबंध विषय पहली कक्षा से 10 वीं कक्षा तक के सभी कक्षा के छात्रों के लिए उपयोगी हैं। तो, उनका सही ढंग से उपयोग करें और हिंदी भाषा में एक परिपूर्ण निबंध बनाएं।

हिंदी भाषा में दीर्घ और लघु निबंध विषयों की सूची

हिंदी निबन्ध विषयों और उदाहरणों की निम्न सूची को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है जैसे कि प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, सामान्य चीजें, अवसर, खेल, खेल, स्कूली शिक्षा, और बहुत कुछ। बस अपने पसंदीदा हिंदी निबंध विषयों पर क्लिक करें और विषय पर निबंध के लघु और लंबे रूपों के साथ विषय के बारे में पूरी जानकारी आसानी से प्राप्त करें।

विषय के बारे में समग्र जानकारी एकत्रित करने के बाद, अपनी लाइनें लागू करने का समय और हिंदी में एक प्रभावी निबन्ध लिखने के लिए। यहाँ प्रचलित सभी विषयों की जाँच करें और किसी भी प्रकार की प्रतियोगिताओं या परीक्षाओं का प्रयास करने से पहले जितना संभव हो उतना अभ्यास करें।

हिंदी निबंधों की संरचना

Hindi Essay Parts

उपरोक्त छवि आपको हिंदी निबन्ध की संरचना के बारे में प्रदर्शित करती है और आपको निबन्ध को हिन्दी में प्रभावी ढंग से रचने के बारे में कुछ विचार देती है। यदि आप स्कूल या कॉलेजों में निबंध लेखन प्रतियोगिता में किसी भी विषय को लिखते समय निबंध के इन हिस्सों का पालन करते हैं तो आप निश्चित रूप से इसमें पुरस्कार जीतेंगे।

इस संरचना को बनाए रखने से निबंध विषयों का अभ्यास करने से छात्रों को विषय पर ध्यान केंद्रित करने और विषय के बारे में छोटी और कुरकुरी लाइनें लिखने में मदद मिलती है। इसलिए, यहां संकलित सूची में से अपने पसंदीदा या दिलचस्प निबंध विषय को हिंदी में चुनें और निबंध की इस मूल संरचना का अनुसरण करके एक निबंध लिखें।

हिंदी में एक सही निबंध लिखने के लिए याद रखने वाले मुख्य बिंदु

अपने पाठकों को अपने हिंदी निबंधों के साथ संलग्न करने के लिए, आपको हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखते समय कुछ सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। कुछ युक्तियाँ और नियम इस प्रकार हैं:

  • अपना हिंदी निबंध विषय / विषय दिए गए विकल्पों में से समझदारी से चुनें।
  • अब उन सभी बिंदुओं को याद करें, जो निबंध लिखने शुरू करने से पहले विषय के बारे में एक विचार रखते हैं।
  • पहला भाग: परिचय
  • दूसरा भाग: विषय का शारीरिक / विस्तार विवरण
  • तीसरा भाग: निष्कर्ष / अंतिम शब्द
  • एक निबंध लिखते समय सुनिश्चित करें कि आप एक सरल भाषा और शब्दों का उपयोग करते हैं जो विषय के अनुकूल हैं और एक बात याद रखें, वाक्यों को जटिल न बनाएं,
  • जानकारी के हर नए टुकड़े के लिए निबंध लेखन के दौरान एक नए पैराग्राफ के साथ इसे शुरू करें।
  • अपने पाठकों को आकर्षित करने या उत्साहित करने के लिए जहाँ कहीं भी संभव हो, कुछ मुहावरे या कविताएँ जोड़ें और अपने हिंदी निबंध के साथ संलग्न रहें।
  • विषय या विषय को बीच में या निबंध में जारी रखने से न चूकें।
  • यदि आप संक्षेप में हिंदी निबंध लिख रहे हैं तो इसे 200-250 शब्दों में समाप्त किया जाना चाहिए। यदि यह लंबा है, तो इसे 400-500 शब्दों में समाप्त करें।
  • महत्वपूर्ण हिंदी निबंध विषयों का अभ्यास करते समय इन सभी युक्तियों और बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, आप निश्चित रूप से किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओं में कुरकुरा और सही निबंध लिख सकते हैं या फिर सीबीएसई, आईसीएसई जैसी बोर्ड परीक्षाओं में।

हिंदी निबंध लेखन पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. मैं अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार कैसे कर सकता हूं? अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक किताबों और समाचार पत्रों को पढ़ना और हिंदी में कुछ जानकारीपूर्ण श्रृंखलाओं को देखना है। ये चीजें आपकी हिंदी शब्दावली में वृद्धि करेंगी और आपको हिंदी में एक प्रेरक निबंध लिखने में मदद करेंगी।

2. CBSE, ICSE बोर्ड परीक्षा के लिए हिंदी निबंध लिखने में कितना समय देना चाहिए? हिंदी बोर्ड परीक्षा में एक प्रभावी निबंध लिखने पर 20-30 का खर्च पर्याप्त है। क्योंकि परीक्षा हॉल में हर मिनट बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए, सभी वर्गों के लिए समय बनाए रखना महत्वपूर्ण है। परीक्षा से पहले सभी हिंदी निबन्ध विषयों से पहले अभ्यास करें और परीक्षा में निबंध लेखन पर खर्च करने का समय निर्धारित करें।

3. हिंदी में निबंध के लिए 200-250 शब्द पर्याप्त हैं? 200-250 शब्दों वाले हिंदी निबंध किसी भी स्थिति के लिए बहुत अधिक हैं। इसके अलावा, पाठक केवल आसानी से पढ़ने और उनसे जुड़ने के लिए लघु निबंधों में अधिक रुचि दिखाते हैं।

4. मुझे छात्रों के लिए सर्वश्रेष्ठ औपचारिक और अनौपचारिक हिंदी निबंध विषय कहां मिल सकते हैं? आप हमारे पेज से कक्षा 1 से 10 तक के छात्रों के लिए हिंदी में विभिन्न सामान्य और विशिष्ट प्रकार के निबंध विषय प्राप्त कर सकते हैं। आप स्कूलों और कॉलेजों में प्रतियोगिताओं, परीक्षाओं और भाषणों के लिए हिंदी में इन छोटे और लंबे निबंधों का उपयोग कर सकते हैं।

5. हिंदी परीक्षाओं में प्रभावशाली निबंध लिखने के कुछ तरीके क्या हैं? हिंदी में प्रभावी और प्रभावशाली निबंध लिखने के लिए, किसी को इसमें शानदार तरीके से काम करना चाहिए। उसके लिए, आपको इन बिंदुओं का पालन करना चाहिए और सभी प्रकार की परीक्षाओं में एक परिपूर्ण हिंदी निबंध की रचना करनी चाहिए:

  • एक पंच-लाइन की शुरुआत।
  • बहुत सारे विशेषणों का उपयोग करें।
  • रचनात्मक सोचें।
  • कठिन शब्दों के प्रयोग से बचें।
  • आंकड़े, वास्तविक समय के उदाहरण, प्रलेखित जानकारी दें।
  • सिफारिशों के साथ निष्कर्ष निकालें।
  • निष्कर्ष के साथ पंचलाइन को जोड़ना।

निष्कर्ष हमने एक टीम के रूप में हिंदी निबन्ध विषय पर पूरी तरह से शोध किया और इस पृष्ठ पर कुछ मुख्य महत्वपूर्ण विषयों को सूचीबद्ध किया। हमने इन हिंदी निबंध लेखन विषयों को उन छात्रों के लिए एकत्र किया है जो निबंध प्रतियोगिता या प्रतियोगी या बोर्ड परीक्षाओं में भाग ले रहे हैं। तो, हम आशा करते हैं कि आपको यहाँ पर सूची से हिंदी में अपना आवश्यक निबंध विषय मिल गया होगा।

यदि आपको हिंदी भाषा पर निबंध के बारे में अधिक जानकारी की आवश्यकता है, तो संरचना, हिंदी में निबन्ध लेखन के लिए टिप्स, हमारी साइट LearnCram.com पर जाएँ। इसके अलावा, आप हमारी वेबसाइट से अंग्रेजी में एक प्रभावी निबंध लेखन विषय प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए इसे अंग्रेजी और हिंदी निबंध विषयों पर अपडेट प्राप्त करने के लिए बुकमार्क करें।

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Challengers

Zendaya, Mike Faist, and Josh O'Connor in Challengers (2024)

Tashi, a former tennis prodigy turned coach is married to a champion on a losing streak. Her strategy for her husband's redemption takes a surprising turn when he must face off against his f... Read all Tashi, a former tennis prodigy turned coach is married to a champion on a losing streak. Her strategy for her husband's redemption takes a surprising turn when he must face off against his former best friend and Tashi's former boyfriend. Tashi, a former tennis prodigy turned coach is married to a champion on a losing streak. Her strategy for her husband's redemption takes a surprising turn when he must face off against his former best friend and Tashi's former boyfriend.

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Mike Faist

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Josh O'Connor

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Bryan Doo

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Tashi Donaldson : I'm taking such good care of my little white boys.

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User reviews 27

  • wrobinson-92674
  • Apr 23, 2024
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    1) Swades, 2004. Source: IMDb. Watch it on: Netflix. Cast: Shah Rukh Khan, Gayatri Joshi & Kishori Ballal. Swades is a hard-hitting yet moving motivational Bollywood movies. Director Ashutosh Gowariker has effortlessly touched upon topics such as casteism and social irregularities through his story.

  21. हिंदी निबंध (Hindi Nibandh / Essay in Hindi)

    हिंदी निबंध (Hindi Nibandh/ Essay in Hindi) - हिंदी निबंध की तैयारी उम्दा होने पर न केवल ज्ञान का दायरा विकसित होता है बल्कि छात्र परीक्षा में हिंदी निबंध में अच्छे अंक ला ...

  22. ‎हिन्दी निबंध

    ये सारे ‎हिन्दी निबंध (Hindi Essay) बहुत आसान शब्दों का प्रयोग करके बहुत ही सरल और आसान भाषा में लिखे गए हैं। इन निबंधों को कोई भी व्यक्ति ...

  23. Hindi Essay (Hindi Nibandh)

    भ्रष्टाचार पर निबंध (Corruption Essay in Hindi) महिला सशक्तिकरण पर निबंध - (Women Empowerment Essay) बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध (Beti Bachao Beti Padhao) गरीबी पर निबंध (Poverty Essay in Hindi)

  24. List of Hindi films of 2024

    Bollywood Hungama. 16 February 2024. Retrieved 16 February 2024. ^ "Karan Johar announces Lakshya starrer Kill to release in theatres on July 5, 2024". Bollywood Hungama. 9 February 2024. Retrieved 9 February 2024. ^ "Janhvi Kapoor starrer Ulajh to release on July 5, claim reports".

  25. Manjummel Boys Hindi Dub OTT Release Details Confirmed

    Manjummel Boys Hindi Dub OTT Release Details Confirmed. April 24, 2024. By Aditi Rathi. The latest survival drama, Manjummel Boys, became one of the most successful movies in the Malayalam cinema ...

  26. Challengers (2024)

    Challengers: Directed by Luca Guadagnino. With Zendaya, Mike Faist, Josh O'Connor, Darnell Appling. Tashi, a former tennis prodigy turned coach is married to a champion on a losing streak. Her strategy for her husband's redemption takes a surprising turn when he must face off against his former best friend and Tashi's former boyfriend.

  27. List of Indian films of 2024

    Marflix Pictures. Viacom18 Studios. Hindi. ₹337.2 crore (US$42 million) [1] [2] 2. Hanu-Man. Prime Show Entertainment. Mythri Movie Makers.