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मदर टेरेसा पर निबंध (Mother Teresa Essay in Hindi)

मदर टेरेसा

मदर टेरेसा एक महान महिला और “एक महिला, एक मिशन” के रुप में थी जिन्होंने दुनिया बदलने के लिये एक बड़ा कदम उठाया था। उनका जन्म मेसेडोनिया में 26 अगस्त 1910 में अग्नेसे गोंकशे बोजशियु के नाम से हुआ था। 18 वर्ष की उम्र में वो कोलकाता आयी थी और गरीब लोगों की सेवा करने के अपने जीवन के मिशन को जारी रखा। कुष्ठरोग से पीड़ित कोलकाता के गरीब लोगों की उन्होंने खूब मदद की। उन्होंने उनको आश्वस्त किया कि ये संक्रामक रोग नहीं है और किसी भी दूसरे व्यक्ति तक नहीं पहुंच सकता। मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिये उन्हें सितंबर 2016 में ‘संत’ की उपाधि से नवाजा जाएगा जिसकी आधिकारिक पुष्टि वेटिकन से हो गई है।

मदर टेरेसा पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Mother Teresa in Hindi, Mother Teresa par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (250 शब्द).

मदर टेरेसा एक महान महिला थी जिनको हमेशा उनके अद्भुत कार्यों और उपलब्धियों के लिये पूरे विश्वभर के लोगों द्वारा प्रशंसा और सम्मान दिया जाता है। वो एक ऐसी महिला थी जिन्होंने उनके जीवन में असंभव कार्य करने के लिये बहुत सारे लोगों को प्रेरित किया है। वो हमेशा हम सभी के लिये प्रेरणास्रोत रहेंगी। महान मनावता लिये हुए ये दुनिया अच्छे लोगों से भरी हुयी है लेकिन हरेक को आगे बढ़ने के लिये एक प्रेरणा की जरुरत होती है। मदर टेरेसा एक अनोखी इंसान थी जो भीड़ से अलग खड़ी दिखाई देती थी।

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसेडोनिया गणराज्य के सोप्जे में हुआ था। जन्म के बाद उनका वास्तविक नाम अग्नेसे गोंकशे बोजाशियु था लेकिन अपने महान कार्यों और जीवन में मिली उपलब्धियों के बाद विश्व उन्हें एक नये नाम मदर टेरेसा के रुप में जानने लगा। उन्होंने एक माँ की तरह अपना सारा जीवन गरीब और बीमार लोगों की सेवा में लगा दिया।

वो अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी। वो अपने माता-पिता के दान-परोपकार से अत्यधिक प्रेरित थी जो हमेशा समाज में जरुरतमंद लोगों की सहायता करते थे। उनकी माँ एक साधारण गृहिणी थी जबकि पिता एक व्यापारी थे। राजनीति में जुड़ने के कारण उनके पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी। ऐसी स्थिति में, उनके परिवार के जीवनयापन के लिये चर्च बहुत ही महत्वपूर्ण बना।

18 वर्ष की उम्र में उनको महसूस हुआ कि धार्मिक जीवन की ओर से उनके लिये बुलावा आया है और उसके बाद उन्होंने डुबलिन के लौरेटो सिस्टर से जुड़ गयी। इस तरह से गरीब लोगों की मदद के लिये उन्होंने अपने धार्मिक जीवन की शुरुआत की। मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिये उन्हें सितंबर 2016 में ‘संत’ की उपाधि से नवाजा जाएगा जिसकी आधिकारिक पुष्टि वेटिकन से हो गई है।

निबंध 2 (300 शब्द)

मदर टेरेसा एक बहुत ही धार्मिक और प्रसिद्ध महिला थी जो “गटरों की संत” के रुप में भी जानी जाती थी। वो पूरी दुनिया की एक महान शख्सियत थी। भारतीय समाज के जरुरतमंद और गरीब लोगों के लिये पूरी निष्ठा और प्यार के परोपकारी सेवा को उपलब्ध कराने के द्वारा एक सच्ची माँ के रुप में हमारे सामने अपने पूरे जीवन को प्रदर्शित किया। उन्हें “हमारे समय की संत” या “फरिश्ता” या “अंधेरे की दुनिया में एक प्रकाश” के रुप में भी जनसाधारण द्वारा जाना जाता है। मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिये उन्हें सितंबर 2016 में ‘संत’ की उपाधि से नवाजा जाएगा जिसकी आधिकारिक पुष्टि वेटिकन से हो गई है।

उनका जन्म के समय अग्नेसे गोंकशे बोज़ाशियु नाम था जो बाद में अपने महान कार्यों और जीवन की उपलब्धियों के बाद मदर टेरेसा के रुप में प्रसिद्ध हुयी। एक धार्मिक कैथोलिक परिवार में मेसेडोनिया के सोप्जे में 26 अगस्त 1910 को उनका जन्म हुआ था। अपने शुरुआती समय में मदर टेरेसा ने नन बनने का फैसला कर लिया था। 1928 में वो एक आश्रम से जुड़ गयी और उसके बाद भारत आयीं (दार्जिलिंग और उसके बाद कोलकाता)।

एक बार, वो अपने किसी दौरे से लौट रही थी, वो स्तंभित हो गयी और उनका दिल टूट गया जब उन्होंने कोलकाता के एक झोपड़-पट्टी के लोगों का दुख देखा। उस घटना ने उन्हें बहुत विचलित कर दिया था और इससे कई रातों तक वो सो नहीं पाई थीं। उन्होंने झोपड़-पट्टी में दुख झेल रहे लोगों को सुखी करने के तरीकों के बारे में सोचना शुरु कर दिया। अपने सामाजिक प्रतिबंधों के बारे में उन्हें अच्छे से पता था इसलिये सही पथ-प्रदर्शन और दिशा के लिये वो ईश्वर से प्रार्थना करने लगी।

10 सितंबर 1937 को दार्जिलिंग जाने के रास्ते पर ईश्वर से मदर टेरेसा को एक संदेश (आश्रम छोड़ने के लिये और जरुरतमंद लोगों की मदद करें) मिला था। उसके बाद उन्होंने कभी-भी पीछे मुड़ के नहीं देखा और गरीब लोगों की मदद करने की शुरुआत कर दी। एक साधारण नीले बाडर्र वाली सफेद साड़ी को पहनने के लिये को उन्होंने चुना। जल्द ही, निर्धन समुदाय के पीड़ित व्यक्तियों के लिये एक दयालु मदद को उपलब्ध कराने के लिये युवा लड़कियाँ उनके समूह से जुड़ने लगी। मदर टेरेसा सिस्टर्स की एक समर्पित समूह बनाने की योजना बना रही थी जो किसी भी परिस्थिति में गरीबों की सेवा के लिये हमेशा तैयार रहेगा। समर्पित सिस्टरों के समूह को बाद में “मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी” के रुप में जाना गया।

Essay on Mother Teresa in Hindi

निबंध 3 (400 शब्द)

मदर टेरेसा एक महान व्यक्तित्व थी जिन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों की सेवा में लगा दिया। वो पूरी दुनिया में अपने अच्छे कार्यों के लिये प्रसिद्ध हैं। वो हमारे दिलों में हमेशा जीवित रहेंगी क्योंकि वो एक सच्ची माँ की तरह थीं। वो एक महान किंवदंती थी तथा हमारे समय की सहानुभूति और सेवा की प्रतीक के रुप में पहचानी जाती हैं। वो एक नीले बाडर्र वाली सफेद साड़ी पहनना पसंद करती थीं। वो हमेशा खुद को ईश्वर की समर्पित सेवक मानती थी जिसको धरती पर झोपड़-पट्टी समाज के गरीब, असहाय और पीड़ित लोगों की सेवा के लिये भेजा गया था। उनके चेहरे पर हमेशा एक उदार मुस्कुराहट रहती थी।

उनका जन्म मेसेडोनिया गणराज्य के सोप्जे में 26 अगस्त 1910 में हुआ था और अग्नेसे ओंकशे बोजाशियु के रुप में उनके अभिवावकों के द्वारा जन्म के समय उनका नाम रखा गया था। वो अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी। कम उम्र में उनके पिता की मृत्यु के बाद बुरी आर्थिक स्थिति के खिलाफ उनके पूरे परिवार ने बहुत संघर्ष किया था। उन्होंने चर्च में चैरिटी के कार्यों में अपने माँ की मदद करनी शुरु कर दी थी। वो ईश्वर पर गहरी आस्था, विश्वास और भरोसा रखनो वाली महिला थी। मदर टेरेसा अपने शुरुआती जीवन से ही अपने जीवन में पायी और खोयी सभी चीजों के लिये ईश्वर का धन्यवाद करती थी। बहुत कम उम्र में उन्होंने नन बनने का फैसला कर लिया और जल्द ही आयरलैंड में लैरेटो ऑफ नन से जुड़ गयी। अपने बाद के जीवन में उन्होंने भारत में शिक्षा के क्षेत्र में एक शिक्षक के रुप में कई वर्षों तक सेवा की।

दार्जिलिंग के नवशिक्षित लौरेटो में एक आरंभक के रुप में उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत की जहाँ मदर टेरेसा ने अंग्रेजी और बंगाली (भारतीय भाषा के रुप में) का चयन सीखने के लिये किया इस वजह से उन्हें बंगाली टेरेसा भी कहा जाता है। दुबारा वो कोलकाता लौटी जहाँ भूगोल की शिक्षिका के रुप में सेंट मैरी स्कूल में पढ़ाया। एक बार, जब वो अपने रास्ते में थी, उन्होंने मोतीझील झोपड़-पट्टी में रहने वाले लोगों की बुरी स्थिति पर ध्यान दिया। ट्रेन के द्वारा दार्जिलिंग के उनके रास्ते में ईश्वर से उन्हें एक संदेश मिला, कि जरुरतमंद लोगों की मदद करो। जल्द ही, उन्होंने आश्रम को छोड़ा और उस झोपड़-पट्टी के गरीब लोगों की मदद करनी शुरु कर दी। एक यूरोपियन महिला होने के बावजूद, वो एक हमेशा बेहद सस्ती साड़ी पहनती थी।

अपने शिक्षिका जीवन के शुरुआती समय में, उन्होंने कुछ गरीब बच्चों को इकट्ठा किया और एक छड़ी से जमीन पर बंगाली अक्षर लिखने की शुरुआत की। जल्द ही उन्हें अपनी महान सेवा के लिये कुछ शिक्षकों द्वारा प्रोत्साहित किया जाने लगा और उन्हें एक ब्लैकबोर्ड और कुर्सी उपलब्ध करायी गयी। जल्द ही, स्कूल एक सच्चाई बन गई। बाद में, एक चिकित्सालय और एक शांतिपूर्ण घर की स्थापना की जहाँ गरीब अपना इलाज करा सकें और रह सकें। अपने महान कार्यों के लिये जल्द ही वो गरीबों के बीच में मसीहा के रुप में प्रसिद्ध हो गयीं। मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिये उन्हें सितंबर 2016 में संत की उपाधि से नवाजा जाएगा जिसकी आधिकारिक पुष्टि वेटिकन से हो गई है।

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मदर टेरेसा पर निबंध (Mother Teresa Essay in Hindi) 100, 200, 300, 500, शब्दों मे -10 lines

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Mother Teresa Essay in Hindi – मदर टेरेसा दुनिया की अब तक की सबसे महान मानवतावादियों में से एक हैं। उनका पूरा जीवन गरीबों और जरूरतमंद लोगों की सेवा के लिए समर्पित था। गैर-भारतीय होने के बावजूद उन्होंने अपना लगभग पूरा जीवन भारत के लोगों की मदद करने में बिताया। मदर टेरेसा को अपना नाम चर्च से सेंट टेरेसा के नाम पर मिला। वह जन्म से ईसाई और आध्यात्मिक महिला थीं। वह अपनी पसंद से नन थीं। वह निःसंदेह एक पवित्र महिला थीं जिनमें कूट-कूट कर भरी दया और करुणा थी।  

मदर टेरेसा पर 10 पंक्तियों का निबंध (10 Lines Essay On Mother Teresa in Hindi)

  • 1) मदर टेरेसा एक रोमन-कैथोलिक चर्च की नन और एक परोपकारी महिला थीं।
  • 2) उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को ओटोमन साम्राज्य में हुआ था।
  • 3) बचपन से ही उनमें धार्मिक जीवन जीने की ललक थी।
  • 4) 1929 में वह भारत पहुंची और यहां की नागरिकता अपना ली।
  • 5) अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह दिल के दौरे से पीड़ित थीं।
  • 6) भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1962 में पद्मश्री से सम्मानित किया।
  • 7) उन्हें 1980 में सर्वोच्च भारतीय नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न भी मिला।
  • 8) 5 सितंबर 1997 वह दिन था जब उन्होंने आखिरी सांस ली।
  • 9) मदर टेरेसा गरीबों और बीमार लोगों के प्रति अपनी सेवा के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्ध थीं।
  • 10) उनके नाम पर सड़क, अस्पताल, हवाई अड्डे और सड़कों सहित वैश्विक वास्तुकलाएं हैं।

मदर टेरेसा पर 100 शब्द निबंध (100 words Essay On Mother Teresa in Hindi)

कैथोलिक नन मदर टेरेसा का जीवन पूरी दुनिया में गरीब और कमजोर लोगों की मदद करने के लिए समर्पित था। उनका जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कोप्जे, मैसेडोनिया में हुआ था। वह 18 साल की उम्र में नन बन गईं और 1929 में भारत आ गईं। वह सेंट मैरी हाई स्कूल में भूगोल पढ़ाने के लिए कलकत्ता आ गईं।

मदर टेरेसा वंचितों और झुग्गी-झोपड़ियों के निवासियों की दुर्दशा से व्यथित थीं। उन्होंने 1950 में अपने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की। जरूरतमंदों की मदद के लिए उन्होंने “निर्मल हृदय” की शुरुआत की। उन्हें 1979 का नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 का भारत रत्न मिला। 5 सितंबर 1997 को 87 वर्ष की आयु में मदर टेरेसा का निधन हो गया।

मदर टेरेसा पर 200 शब्द निबंध (200 words Essay On Mother Teresa in Hindi)

मदर टेरेसा एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शख्सियत हैं जो अपनी करुणा के लिए प्रसिद्ध हैं। जन्म के समय उसका नाम अंजेज़े गोंक्सहे बोजाक्सिउ रखा गया था। उनका जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कोप्जे, मैसेडोनिया में हुआ था और 18 साल की उम्र में, वह एक भिक्षुणी विहार में शामिल होने के लिए आयरलैंड चली गईं। 1929 में, 19 वर्ष की आयु में, मदर टेरेसा भारत के कलकत्ता आ गईं। वह समाज के वंचित और परित्यक्त सदस्यों की सहायता करना चाहती थी।

योगदान | जब मदर टेरेसा ने 1950 में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की, तो उन्होंने गरीबों, विकलांगों और असहायों की सेवा करने की पहल की। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को लौटाने में बिताया। वह दुनिया भर में मानवतावादी उद्देश्य में अपने अद्वितीय योगदान के लिए जानी जाती हैं, जिसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि व्यक्तियों की उनके अंतिम दिनों में देखभाल की जाए और वे सम्मान के साथ इस ग्रह से बाहर निकलें।

सम्मान | मदर टेरेसा को कुछ सबसे प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए। भारत में उन्हें 1962 में पद्मश्री सम्मान दिया गया। 1979 में वह नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय बनीं। 1980 में उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान भारत रत्न भी दिया गया। कलकत्ता की सेंट टेरेसा को 2016 में पोप फ्रांसिस द्वारा मरणोपरांत दिया गया था।

मदर टेरेसा ने अपने कार्यों से प्रेम और सद्भावना फैलायी। उन्होंने अपना सारा जीवन एक साधारण जीवन व्यतीत किया। उसके मन में अपने विश्वास के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता और यीशु मसीह के प्रति भावुक प्रेम था। मदर टेरेसा हर किसी के लिए दयालु होने और जरूरतमंद लोगों की देखभाल करने की प्रेरणा हैं।

मदर टेरेसा पर 300 शब्द निबंध (300 words Essay On Mother Teresa in Hindi)

मदर टेरेसा एक बहुत ही धार्मिक और प्रसिद्ध महिला थीं जिन्हें “गटर की संत” के नाम से भी जाना जाता है। वह दुनिया भर की महान हस्तियों में से एक हैं। उन्होंने भारतीय समाज के जरूरतमंद और गरीब लोगों को पूर्ण समर्पण और प्रेम की सेवा प्रदान करके एक सच्ची माँ के रूप में अपना पूरा जीवन हमारे सामने प्रस्तुत किया था। उन्हें लोकप्रिय रूप से “हमारे समय की संत” या “देवदूत” या “अंधेरे की दुनिया में एक प्रकाशस्तंभ” के रूप में भी जाना जाता है।

उनका जन्म नाम एग्नेस गोंक्सा बोजाक्सीहु था जो बाद में अपने महान कार्यों और जीवन की उपलब्धियों के बाद मदर टेरेसा के नाम से प्रसिद्ध हुईं। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोप्जे, मैसेडोनिया में एक धार्मिक कैथोलिक परिवार में हुआ था। मदर टेरेसा ने कम उम्र में ही नन बनने का निर्णय ले लिया था। वह वर्ष 1928 में एक कॉन्वेंट में शामिल हो गईं और फिर भारत (दार्जिलिंग और फिर कोलकाता) आ गईं।

एक बार, जब वह अपनी यात्रा से लौट रही थीं, तो कोलकाता की एक झुग्गी बस्ती में लोगों की उदासी देखकर उन्हें झटका लगा और उनका दिल टूट गया। उस घटना ने उसके मन को बहुत परेशान कर दिया और कई रातों की नींद हराम कर दी। वह झुग्गी बस्ती में लोगों की तकलीफें कम करने के लिए कुछ उपाय सोचने लगी। वह अपने सामाजिक प्रतिबंधों से अच्छी तरह परिचित थी इसलिए उसने कुछ मार्गदर्शन और दिशा पाने के लिए भगवान से प्रार्थना की।

अंततः 10 सितंबर 1937 को दार्जिलिंग जाते समय उन्हें भगवान से एक संदेश (कॉन्वेंट छोड़ने और जरूरतमंद लोगों की सेवा करने का) मिला। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और गरीब लोगों की सेवा करना शुरू कर दिया। उन्होंने नीले बॉर्डर वाली सफेद साड़ी की एक साधारण पोशाक पहनने का फैसला किया। जल्द ही, गरीब समुदाय के पीड़ित लोगों को सहायता प्रदान करने के लिए युवा लड़कियाँ उनके समूह में शामिल होने लगीं। उन्होंने बहनों का एक समर्पित समूह बनाने की योजना बनाई जो किसी भी परिस्थिति में गरीबों की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहे। समर्पित बहनों का समूह बाद में “मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी” के नाम से जाना गया।

मदर टेरेसा पर 500 शब्दों का निबंध (500 words Essay On Mother Teresa in Hindi)

विश्व के इतिहास में अनेक मानवतावादी हैं। अचानक मदर टेरेसा लोगों की उस भीड़ में खड़ी हो गईं। वह एक महान क्षमता वाली महिला हैं जो अपना पूरा जीवन गरीबों और जरूरतमंद लोगों की सेवा में बिताती हैं। हालाँकि वह भारतीय नहीं थी फिर भी वह भारत के लोगों की मदद करने के लिए भारत आई थी। सबसे बढ़कर, मदर टेरेसा पर इस निबंध में हम उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने जा रहे हैं।

मदर टेरेसा उनका वास्तविक नाम नहीं था लेकिन नन बनने के बाद उन्हें सेंट टेरेसा के नाम पर चर्च से यह नाम मिला। जन्म से, वह एक ईसाई और ईश्वर की महान आस्तिक थी। और इसी वजह से वह नन बनना चुनती है।

मदर टेरेसा की यात्रा की शुरुआत

चूँकि उनका जन्म एक कैथोलिक ईसाई परिवार में हुआ था, इसलिए वह ईश्वर और मानवता में बहुत बड़ी आस्था रखती थीं। हालाँकि वह अपना अधिकांश जीवन चर्च में बिताती है लेकिन उसने कभी नहीं सोचा था कि वह एक दिन नन बनेगी। डबलिन में अपना काम पूरा करने के बाद जब वह भारत के कोलकाता (कलकत्ता) आईं तो उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। लगातार 15 वर्षों तक उन्हें बच्चों को पढ़ाने में आनंद आया।

स्कूली बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ उन्होंने उस क्षेत्र के गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए भी कड़ी मेहनत की। उन्होंने अपनी मानवता की यात्रा एक ओपन-एयर स्कूल खोलकर शुरू की, जहाँ उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। वर्षों तक उन्होंने बिना किसी धन के अकेले काम किया लेकिन फिर भी छात्रों को पढ़ाना जारी रखा।

उसकी मिशनरी

गरीबों को पढ़ाने और जरूरतमंद लोगों की मदद करने के इस महान कार्य के लिए वह एक स्थायी स्थान चाहती हैं। यह स्थान उनके मुख्यालय और एक ऐसी जगह के रूप में काम करेगा जहां गरीब और बेघर लोग आश्रय ले सकेंगे।

इसलिए, चर्च और लोगों की मदद से, उन्होंने एक मिशनरी की स्थापना की, जहाँ गरीब और बेघर लोग शांति से रह सकते हैं और मर सकते हैं। बाद में, वह अपने एनजीओ के माध्यम से भारत और विदेशी देशों में कई स्कूल, घर, औषधालय और अस्पताल खोलने में सफल रहीं।

मदर टेरेसा की मृत्यु एवं स्मृति

वह लोगों के लिए आशा की देवदूत थी लेकिन मौत किसी को नहीं बख्शती। और यह रत्न कोलकाता (कलकत्ता) में लोगों की सेवा करते हुए मर गया। साथ ही उनके निधन पर पूरे देश ने उनकी याद में आंसू बहाये. उनकी मृत्यु से गरीब, जरूरतमंद, बेघर और कमजोर लोग फिर से अनाथ हो गये।

भारतीय लोगों द्वारा उनके सम्मान में कई स्मारक बनाये गये। इसके अलावा विदेशों में भी उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए कई स्मारक बनाए जाते हैं।

निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि शुरुआत में गरीब बच्चों को संभालना और पढ़ाना उनके लिए एक कठिन काम था। लेकिन, वह उन कठिनाइयों को बड़ी ही समझदारी से संभाल लेती है। अपने सफर की शुरुआत में वह गरीब बच्चों को जमीन पर छड़ी से लिखकर पढ़ाती थीं। लेकिन वर्षों के संघर्ष के बाद, वह अंततः स्वयंसेवकों और कुछ शिक्षकों की मदद से शिक्षण के लिए आवश्यक चीजों की व्यवस्था करने में सफल हो जाती है।

बाद में, उन्होंने गरीब लोगों को शांति से मरने के लिए एक औषधालय की स्थापना की। अपने अच्छे कामों के कारण वह भारतीयों के दिल में बहुत सम्मान कमाती हैं।

मदर टेरेसा निबंध पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

मदर टेरेसा ने दुनिया को कैसे बदला.

मदर टेरेसा ने अपने विभिन्न मानवीय प्रयासों से दुनिया को बदल दिया और सभी को दान का सही अर्थ दिखाया।

मदर टेरेसा ने समाज में कैसे योगदान दिया?

मदर टेरेसा ने अपना जीवन मानव जाति की सेवा के लिए समर्पित कर दिया और उन्होंने गरीबों और बीमार लोगों की मदद के लिए मिशनरीज ऑफ चैरिटी, एक रोमन कैथोलिक मण्डली की स्थापना की।

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Mother Teresa Essay in Hindi- मदर टेरेसा पर निबंध

In this article, we are providing Mother Teresa Essay in Hindi. In this essay, you get to know about Mother Teresa in Hindi. इस निबंध में आपको मदर टेरेसा के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी।

भूमिका- देश और काल की परिधि को तोड़कर, जात-पांत के बन्धनों से अलग ऊंच और नीच की भावना से रहित दिव्य आत्माएँ विश्व में दरिद्र-नारायण की सेवा कर परमपिता परमात्मा की सच्ची सेवा करते हैं। उनके जीवन का उद्देश्य साधारण मानवों की भान्ति निजी शरीर और जीवन नहीं होता, यश और धन की कामना उन्हें नहीं होती है अपितु वे विशुद्ध और नि:स्वार्थ हृदय से दीन-दुखियों, दलित और पीड़ितों की सेवा करते हैं। इस प्रकार की दिव्य-आत्माओं में आज ममतामयी मूर्ति मदर टेरेसा है जिन्हें अपनी अनथक सेवा, मानवता के लिए सेवा और प्यार भरे हृदय के कारण ‘मदर’ कहा जाता है क्योंकि वे उपेक्षितों अनाथों, असहायों के लिए ‘मदर हाउस’ बनवाती हैं और उन्हें आश्रय देती हैं।

जीवन परिचय- मदर टेरेसा का जन्म 27 अगस्त 1910 ई. को यूगोस्लाविया के स्कोपले नामक स्थान में हुआ था। इनके बचपन का नाम आगनेस गोंवसा बेयायू था। माता-पिता अल्बानियम जाति के थे। इनके पिता एक स्टोर में स्टोर कीपर थे। बारह वर्ष की अल्प अवस्था में जब इन्होंने मिशनरियों द्वारा किए गए परोपकार और सेवा के कार्यों के सम्बन्ध में सुना तो उनके बाल-हृदय ने यह कठोर और दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह भी अपने जीवन का मार्ग लोक सेवा ही चुनेंगी। अठारह वर्ष की आयु में वे आईरेश धर्म परिवार लोरेटों में सम्मिलित हुई और इसके साथ ही आरम्भ हुआ उनके जीवन के महान् यज्ञ का आरम्भ जिसमें वे निरन्तर अनथक भाव से सेवा की आहुतियां दे रही हैं। दार्जिलिंग के सुरम्य पर्वतीय वातारवरण से वे बहुत प्रभावित हुई और सन् 1929 ई. में उन्होने कलकत्ता के सेण्टमेरी हाई स्कूल में शिक्षण कार्य आरम्भ कर दिया। इसी स्कूल में वे कुछ समय बाद  प्रधानाचार्य बनीं और स्कूल की सेवा करती रहीं। लेकिन स्कूल की छोटी सी चार दीवारी में उनका हृदय असीमित सेवा की बलवती भावना से व्याकुल रहता। वे अधिक से अधिक लोगों की सेवा के व्यापक क्षेत्र को अपनाना चाहती थी। आजीवन ही स्वयं को मानव की सेवा में समर्पित कर देने की भावना निरन्तर प्रबल और विशेष होती गई। फलस्वरूप, उन्हीं के शब्दों में-10 सितम्बर, सन् 1946 का दिन था जब मैं अपने वार्षिक अवकाश पर दार्जिलिंग जा रही थी-उस समय मेरी अन्तरात्मा से आवाज़ उठी कि मुझे सब कुछ त्याग कर देना चाहिए और अपना जीवन ईश्वर और दरिद्र नारायण की सेवा करके कंगाल तन को समर्पित कर देना चाहिए।

जीवन लक्ष्य- इस सेवा भाव की भावना और अन्तरात्मा की आवाज़ को वे प्रभु यीशु की प्रेरणा और इस दिवस को प्रेरणा दिवस’ मानती हैं। प्रभु-यीशु के इस पावन संदेश को उन्होंने जीवन का लक्ष्य मान लिया और पोप से कलकत्ता महानगर की उपेक्षित गन्दी बस्तियों में रहकर दलितों की सेवा करने का आदेश प्राप्त कर लिया। अब पूर्ण समर्पित दृढ़ प्रतिज्ञ और अविचल रहकर उन्होंने उपेक्षित, तिरस्कृत, दलितों और पीड़ितों की सेवा का कार्य आरम्भ कर लिया। उनकी धारणा है कि मनुष्य का मन ही बीमार होता है। अनचाहा, तिस्कृत एवं उपेक्षित व्यक्ति मन से रोगी हो जाता है और जब वह मन का रोगी हो जाता है तो शारीरिक रूप से कभी भी ठीक नहीं हो पाता। जो दरिद्र है, बीमार है, तिरस्कृत और उपेक्षित है, उन्हें प्रेम और सौहार्द की आवश्यकता है। उनके प्रति प्रेम करना ही ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम है। उन्होंने एक बार एक सभा में कहा था-“लोगों में 20 वर्ष काम करके मैं अधिकधिक यह अनुभव करने लगी हूँ कि अनचाहा होना सबसे बुरी बीमारी है जो कोई भी व्यक्ति महसूस कर सकता है।”

उनकी सेवा के परिणामस्वरूप कलकत्ता में एक ‘निर्मल हृदय होम स्थापित किया गया और स्लम विद्यालय खोला गया।

कलकत्ता में मौलाली क्षेत्र में जगदीश चन्द्र बसु सड़क पर अब मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी का कार्यालय है जो दिन रात चौबीसों घण्टे उन व्यक्तियों की सेवा में समर्पित है जो दु:खी हैं, अपाहिज हैं, जो निराश्रित और उपेक्षित हैं, वृद्ध हैं और मृत्यु के निकट है। जिन्हें कोई नहीं चाहता हैं उन्हें मदर टेरेसा चाहती हैं जिनको लोग उपेक्षित करते हैं उन्हें उनका प्यार भरा विशाल हृदय अपना लेता है।

सन् 1950 में आरम्भ किए गये ‘मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी’ की आज विश्व के लगभग 83 देशों में 244 केन्द्र हैं जिनमें लगभग 3000 सिस्टर और ‘ब्रदर निरन्तर नियमित रूप में सेवा का कार्य कर रहे हैं। भारत में स्थापित लगभग 215 अस्पताल और चिकित्सा केन्द्रों में लाखों बीमार व्यक्तियों की नि:शुल्क चिकित्सा की जाती है। विश्व में गन्दी बस्तियों में चलाए जाने वाले स्कूलों में भारत में साठ स्कूल हैं। अनाथ बच्चों की देखभाल और पालन-पोषण के लिए 70 केन्द्र, वृद्ध व्यक्तियों की सेवा के लिए 81 घर संचालित किए जाते हैं। कलकत्ता के कालीघाट क्षेत्र में स्थापित ‘निर्मल हृदय’ जैसी अन्य संस्थाओं में लगभग पैंतालीस हजार वृद्ध लोग रहते हैं जो जीवन के दिवस की सन्धया को सुख और शान्ति से  गुजारते हैं। मिशनरीज़ आफ चैरिटी के माध्यम से सैकड़ों केन्द्र संचालित होते हैं जिनमें हज़ारों की संख्या में बेसहारों के लिए मुफ्त भोजन व्यवस्था की जाती है। इन सभी केन्द्रों से प्रतिदिन लाखों रुपए की दवाइयों और भोजन सामग्री का वितरण किया जाता है।

पुरस्कार एवं सम्मान- पीड़ित मानवता की सेवा के अखण्ड यज्ञ को चलाने वाली मदर टेरेसा को पुरस्कार और अन्य सम्मान सम्मानित नहीं करते अपितु उनके हाथों में और उनके नाम से जुड़ कर पुरस्कार और सम्मान ही सम्मानित होते हैं। उनके द्वारा किए गए इस कार्य के लिए उन्हें विश्व भर के अनेक संस्थानों ने उन्हें सम्मान दिए हैं। सन् 1931 में उन्हें पोपजान 23वें का शान्ति पुरस्कार प्रदान किया गया। विश्व भारती विश्वविद्यालय ने सर्वोच्च पदवी देशीकोत्तम’ प्रदान की। अमेरिका के कैथोलिक विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की उपाधि से उन्हें विभूषित किया। सन् 1962 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया। सन् 1964 में पोप पाल ने भारत यात्रा के दौरान उन्हें अपनी कार सौंपी जिसकी नीलामी कर उन्होंने कुष्ट कालोनी की स्थापना की। इस सूची में फिलिपाइन का रमन मैग साय पुरस्कार, पुनः पोप शान्ति पुरस्कार, गुट समारिटन एवार्ड, कनेडी फाउंडेशन एवार्ड, टेम्पलटन फाउंडेशन एवार्ड आदि पुरस्कार हैं जिनसे प्राप्त होने वाली धनराशि को उन्होंने कुष्ट आश्रम, अल्प विकसित बच्चों के लिए घर तथा वृद्ध आश्रम बनवाने में खर्च की। 19 दिसम्बर सन् 1979 में उन्हें मानव कल्याण के लिए किए गए कार्यों के लिए विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। सन् 1993 में उन्हें राजीव गांधी सद्भावन, पुरस्कार दिया गया। सेवा की साक्षात् प्रतिमा विश्व को रोता छोड़कर 6 सितम्बर, 1997 को देवलोक सिधार गई।

उपसंहार- देव-दूत, प्रभु-पुत्री, मदर टेरेसा का जीवन यज्ञ-समाधि की भान्ति है जो निरन्तर जलती है पर जिसकी ज्वाला से प्रकाश बिखरता है। मानवता की सेवा की नि:स्वार्थ साधिका ‘मदर’ माँ की ममता की ज्वलंत गाथा को प्रमाणित करती है। वह एक ही नहीं असंख्य लोगों को आश्रय और ममता, प्यार और अपनत्व देने वाली ममतामयी माँ है। ईश्वर की आराधना में वह विश्वास करती है, उसका ध्यान करती है परन्तु उसकी पूजा उसकी ही संतानों की सेवा के रूप में करती है। उनकी पवित्र प्रेरणा से प्रेरित होकर देश-विदेश से अनेक युवक और युवतियाँ उन के साथ इस सेवा-कार्य में जुट जाती हैं। आलौकिक शक्ति एवं तेज से सम्पन्न यह दिव्य आत्मा सदैव ही मानवता की सेवा के इतिहास का आकाशदीप बनी रहेगी।

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मदर टेरेसा पर निबन्ध | Mother Teresa Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Mother Teresa in Hindi

By: savita mittal

मदर टेरेसा पर निबन्ध | Mother Teresa Essay in Hindi | जीवन परिचय

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ऐसा कहा जाता है कि जब ईश्वर का धरती पर अवतरित होने का मन हुआ, तो उन्होंने माँ का रूप धारण कर लिया। ऐसा माने जाने का कारण भी बिल्कुल स्पष्ट है दुनिया की कोई भी माँ अपने बच्चों की न केवल जन्मदात्री होती हैं, उनके लिए उसका प्रेम अलौकिक एवं ईश्वरीय होता है, इसलिए माँ को ईश्वर का सच्चा रूप कहा जाता है। दुनिया में बहुत कम ऐसी माँ हुई हैं, जिन्होंने अपने बच्चों के अतिरिक्त भी दूसरों को अपनी ममतामयी छाँप प्रदान की।

किसी से इस सम्पूर्ण जगत की एक ऐसी माँ का नाम पूछा जाए, जिसने बिना भेदभाव के सबको मातृषत्-स्नेह प्रदान किया, तो प्रत्येक की जुबाँ पर केवल एक ही नाम आएगा- ‘मदर टेरेसा’ मदर टेरेसा एक ऐसा नाम है, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन सेवा हेतु समर्पित कर दिया।

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मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को एक अल्बानियाई परिवार में कुल नामक स्थान पर हुआ था, जो अब मेसिडोनिया गणराज्य में है। उनके बचपन का नाम अगनेस गाोंजा बोयाजिजू था। जब ये मात्र 9 वर्ष की थीं, उनके पिता निकोला बोयाजू के देहान्त के पश्चात् उनकी शिक्षा की जिम्मेदारी उनकी माँ के ऊपर आ गई।

उन्हें बचपन में पढ़ना, प्रार्थना करना और चर्च में जाना अच्छा लगता था, इसलिए वर्ष 1928 में वे आयरलैण्ड की संस्था ‘सिटर्स ऑफ लॉरेटो में शामिल हो गई, जहाँ सोलहवीं सदी के एक प्रसिद्ध सन्त के नाम पर उनका नाम टेरेसा रखा गया और बाद में लोगों के प्रति ममतामयी व्यवहार के कारण जब दुनिया ने उन्हें ‘मदर’ कहना शुरू किया, तब वे ‘मदर टेरेसा’ के नाम से प्रसिद्ध हुई।

धार्मिक जीवन की शुरुआत के बाद वे इससे सम्बन्धित कई विदेश यात्राओं पर गईं। इसी क्रम में वर्ष 1929 की शुरुआत में वे मद्रास (भारत) पहुंची। फिर उन्हें कलकत्ता में शिक्षिका बनने हेतु अध्ययन करने के लिए भेजा गया। अध्यापन का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद वे कलकत्ता के लोरेटो एटली स्कूल में अध्यापन कार्य करने लगी तथा अपनी कर्तव्यनिष्ठा एवं योग्यता के बल पर प्रधानाध्यापिका के पद पर प्रतिष्ठित हुई। प्रारम्भ में कलकत्ता में उनका निवास फिक लेन में था, किन्तु बाद में वे सर्कुलर रोड स्थित आवास में रहने लगी। वह आवास आज विश्वभर में ‘मदर हाउस’ के नाम से जाना जाता है।

अध्यापन कार्य करते हुए मदर टेरेसा को महसूस हुआ कि ये मानवता की सेवा के लिए इस पृथ्वी पर अवतरित हुई है। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन मानव-सेवा हेतु समर्पित करने का निर्णय लिया। मदर टेरेसा किसी भी गरीब, असहाय लाचार को देखकर उसकी सेवा करने के लिए तत्पर हो जाती थी तथा आवश्यकता पड़ने पर वे बीमार एवं लाचारों की स्वास्थ्य सेवा एवं मदद करने से भी नहीं चूकती थी, इसलिए उन्होंने बेसाहारा लोगों के दुःख दूर करने का महान् व्रत लिया। बाद में ‘नन’ के रूप में उन्होंने मानव सेवा की शुरुआत की एवं भारत की नागरिकता भी प्राप्त की।

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Mother Teresa Essay in Hindi

मदर टेरेसा ने कलकत्ता को अपनी कार्यस्थली के रूप में चुना और निर्धनों एवं बीमार लोगों की सेवा करने के लिए। वर्ष 1950 में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ नामक संस्था की स्थापना की। इसके बाद वर्ष 1952 में कुष्ठ रोगियों, नशीले पदार्थों की लत के शिकार लोगों तथा दीन-दुखियों की सेवा के लिए कलकत्ता में काली घाट के पास ‘निर्मल हृदय’ तथा ‘निर्मला शिशु भवन’ नामक संस्था बनाई। यह संस्था उनकी गतिविधियों का केन्द्र बनी। विश्व के 120 से अधिक देशों में इस संस्था की कई शाखाएँ हैं, जिनके अन्तर्गत लगभग 200 विद्यालय, एक हज़ार से अधिक उपचार केन्द्र तथा लगभग एक हजार आश्रय गृह संचालित है।

दीन-दुखियों के प्रति उनकी सेवा-भावना ऐसी थी कि इस कार्य के लिए वे सड़कों एवं गली-मुहल्लों से उन्हें खुद ढूंढकर लाती थीं। उनके इस कार्य में उनकी सहयोगी अन्य सिस्टर्स भी मदद करती थी। जब उनकी सेवा भावना की बात दूर-दूर तक पहुँची, तो लोग खुद उनके पास सहायता के लिए पहुँचने लगे। अपने जीवनकाल में उन्होंने लाखों दरिद्रों, असहायों एवं बेसाहारा बच्चों व बूढ़ों को आश्रय एवं सहारा दिया।

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मदर टेरेसा को उनकी मानव-सेवा के लिए विश्व के कई देशों एवं संस्थाओं ने सम्मानित किया। वर्ष 1962 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया। वर्ष 1973 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने उन्हें टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया। वर्ष 1979 में उन्हें ‘शान्ति का नोबेल पुरस्कार’ प्रदान किया गया। वर्ष 1980 में भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। वर्ष 1988 में ब्रिटेन की महारानी द्वारा उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ मेरिट’ प्रदान किया गया।

वर्ष 1992 में उन्हें भारत सरकार ने ‘राजीव गाँधी सद्भावना पुरस्कार से सम्मानित किया। वर्ष 1998 में उन्हें ‘यूनेस्को शान्ति पुरस्कार’ प्रदान किया गया। वर्ष 1962 में मदर टेरेसा को ‘रैमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त हुआ। इन पुरस्कारों के अतिरिक्त भी उन्हें अन्य कई पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुए।

यद्यपि उनके जीवन के अन्तिम समय में कई बार क्रिस्टोफर हिचेन्स, माइकल परेंटी, विश्व हिन्दू परिषद् आदि द्वारा उनकी आलोचना की गई तथा आरोप लगाया गया कि वह गरीबों की सेवा करने के बदले उनका धर्म बदलवाकर ईसाई बनाती है।

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पश्चिम बंगाल में उनकी निन्दा की गई। मानवता की रखवाली की आड़ में उन्हें ईसाई धर्म का प्रचारक भी कहा जाता था। उनकी धर्मशालाओं में दी जाने वाली चिकित्सा सुरक्षा के मानकों की आलोचना की गई तथा उस अपारदर्शी प्रकृति के बारे में सवाल उठाए गए, जिसमें दान का धन खर्च किया जाता था, किन्तु यह सत्य है कि जहाँ सफलता होती है, वहाँ आलोचना होती ही है। वस्तुतः मदर टेरेसा आलोचनाओं से परे थी।

वर्ष 1983 में 73 वर्ष की आयु में मदर टेरेसा रोम में पोप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने गई, उन्हें वहीं पहला हृदयाघात आया। वर्ष 1989 में दूसरा हृदयाघात आया 5 सितम्बर, 1997 को 87 वर्ष की अवस्था में उनकी कलकत्ता में मृत्यु हो गई। आज वे हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं में आज भी उनके ममतामयी स्नेह को महसूस किया जा सकता है।

वहां होते हुए ऐसा लगता है मानो मदर हमें छोड़कर गई नहीं है, बल्कि अपनी संस्थाओं और अनुयायियों के रूप में हम सबके साथ है। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए दिसम्बर, 2002 में पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें धन्य घोषित करने की स्वीकृति दी तथा 19 अक्टूबर, 2003 को रोम में सम्पन्न एक समारोह में उन्हें धन्य घोषित किया गया। इसी प्रकार पोप फ्रांसिस ने इन्हें वर्ष 2016 में सन्त घोषित किया।

वर्ष 2017 में इनकी साड़ी को बौद्धिक सम्पदा किया गया तथा वर्तमान में इनकी जीवनी पर फिल्में भी बनाने की बात कही जा रही है। अतः यह कहा जा सकता है कि उन्होंने पूरी निष्ठा से न केवल बेसाहारा लोगों की निःस्वार्थ सेवा की, बल्कि विश्व शान्ति के लिए भी सदा प्रयत्नशील रहीं। उनका सम्पूर्ण जीवन मानव-सेवा में बीता। वे स्वभाव में ही अत्यन्त स्नेहमयी, ममतामयी एवं व्यक्तित्व थी। वह ऐसी शख्सियत थीं, जिनका जन्म लाखों-करोड़ों वर्षों में एक बार होता है।

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reference Mother Teresa Essay in Hindi

mother teresa essay hindi

मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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मदर टेरेसा पर निबंध

Essay On Mother Teresa In Hindi : मदर टेरेसा द्वारा किये गये कार्य सहारनीय है। मदर टेरेसा हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहती थी। हम यहां पर मदर टेरेसा पर पर निबंध शेयर कर रहे है। इस निबंध में मदर टेरेसा के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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Essay On Mother Teresa In Hindi

मदर टेरेसा पर निबंध | Essay On Mother Teresa In Hindi

मदर टेरेसा पर निबंध (200 word).

उनका जन्म 26 अगस्त 1910 मेसेडोनिया में हुआ था। मदर टेरेसा की पिताजी जी का नाम निकोला बोयाजू और उनकी माताजी का नाम द्राना बोयाजू था। कोलकाता में जो लोग गरीब लोग कुष्ठरोग से पीड़ित थे,उन लोगों की मदर टेरेसा ने बहुत सहायता की और उन्होंने सबको यकीन दिलाया की कुष्ठरोग कोई संक्रमित रोग नहीं है। उनको अग्नेसे गोंकशे बोजाशियु के नाम से भी जाना जाता है।

मदर टेरेसा का जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ था, फिर भी वह हिन्दू लोगों की नि:श्वार्थ भावना से गरीब लोगों की मदद करती थी। मदर टेरेसा का भारत से कोई संबंध नहीं था फिर भी उन्होंने अपना जीवन अपने लिये नहीं ,दूसरों के मदद करने में समर्पित  कर दिया। वह बहुत ही महान दयालु, समाजसेवक महिला थी। वह अपने समाज के सभी गरीबों, पीड़ित, कमज़ोर लोगों की सहायता करने में अपना पूरा सहयोग दान देती थी। मदर टेरेसा ने हमारे लिये और हमारे देश के लिये बहुत अपना सब कुछ समर्पित करके लोगों की मदद की है।

12 वर्ष की उम्र ही में उन्होंने नन बनने का फैसला लिया और 18 वर्ष की उम्र होते ही वह कोलकाता पहुंची और कोलकाता मे आइरेश नौरेटो नन मिशनरी में पहली बार शामिल हुई। फिर इसके बाद मदर टेरेसा ने कोलकाता मे मैरी हाईस्कूल आध्यपिका का पद मिला और उन्होंने 20 साल तक आध्यपिका के पद पर पूरी ईमानदरी के साथ कार्य किया।

सन 1952 में मदर टेरेसा जी ने कोलकाता गये और वहां की गरीबों की हालत देख कर उन्होंने निर्मल ह्रदय और निर्मल शिशु भवन आश्रम खोला। आश्रम खोलने पीछे कारण यह है कि अनाथ बच्चों को रहने के लिये और बीमार लोगों कि सहायता के लिये टेरेसा जी ने निर्मल ह्रदय आश्रम की स्थापना की थी।

मदर टेरेसा पर निबंध (600 Word)

मदर टेरेसा एक महान व्यक्तित्व थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन गरीबों की सेवा में अर्पित कर दिया था। वह पूरी दुनिया में अपने अच्छे कार्यों के लिए आज भी प्रसिद्ध है और हमारे दिलों में हमेशा जीवित रहेगी क्योंकि वह एक सच्ची मां की तरह थी, जो एक महान किंवदंती थी। जिन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों की सेवा करने में लगा दिया था। एक नीले बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहनना उन्हें पसंद थी। वह हमेशा खुद को ईश्वर की समर्पित सेवक मानती थी, जिसको धरती पर झोपड़पट्टी समाज के गरीब असहाय और पीड़ित लोगों की सेवा के लिए भेजा गया था। उसके चेहरे पर हमेशा एक उधार मुस्कुराहट रहा करती थी।

मदर टेरेसा का प्रारंभिक जीवन

उनका जन्म मेसिडोनिया गणराज्य के सोप्जे में 26 अगस्त 1910 में हुआ था। अग्नेसे ओंकशे बोजाशियु के रुप में उनके अभिवावकों के द्वारा जन्म के समय उनका नाम रखा गया था। वो अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी। कम उम्र में उनके पिता की मृत्यु के बाद बुरी आर्थिक स्थिति के खिलाफ उनके पूरे परिवार ने बहुत संघर्ष किया था। वहां जांच में पार्टी के कार्य में अपने मां की मदद करनी शुरू कर दी और ईश्वर पर गहरी आस्था विश्वास और भरोसा रखने वाली महिला थी। मदर टेरेसा अपने शुरुआती जीवन से ही सभी चीजों के लिए ईश्वर का धन्यवाद करती थी। बहुत कम उम्र में उन्होंने नन बनने का फैसला कर लिया और जल्द ही आयरलैंड में लैट्रिन में जुड़ गई और अपने बाद के जीवन में उन्होंने भारत में शिक्षा के क्षेत्र और एक शिक्षक के रूप में कई वर्षों तक सेवा की थी।

मदर टेरेसा का दार्जिलिंग के नवशिक्षित लौरेटो मैं शामिल होना

दार्जिलिंग के नवशिक्षित लौरेटो में एक आरंभक के रुप में उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत की, जहाँ मदर टेरेसा ने अंग्रेजी और बंगाली (भारतीय भाषा के रुप में) का चयन सीखा। इस वजह से उन्हें बंगाली टेरेसा भी कहा जाता है। दुबारा वो कोलकाता लौटी, जहाँ भूगोल की शिक्षिका के रुप में सेंट मैरी स्कूल में पढ़ाया। एक बार जब वो अपने रास्ते में थी, उन्होंने मोतीझील झोपड़-पट्टी में रहने वाले लोगों की बुरी स्थिति पर ध्यान दिया। ट्रेन के द्वारा दार्जिलिंग के उनके रास्ते में ईश्वर से उन्हें एक संदेश मिला कि जरुरतमंद लोगों की मदद करो। जल्द ही उन्होंने आश्रम को छोड़ा और उस झोपड़-पट्टी के गरीब लोगों की मदद करनी शुरु कर दी। एक यूरोपियन महिला होने के बावजूद वो एक हमेशा बेहद सस्ती साड़ी पहनती थी।

मदर टेरेसा एक शिक्षिका के रूप में

उन्होंने कुछ गरीब बच्चों को इकट्ठा किया और एक छड़ी से जमीन पर बंगाली अक्षर लिखने की शुरुआत की, इस तरह मदर टेरेसा ने अपने शिक्षिका जीवन की शुरुआत की। जल्द ही उन्हें अपनी महान सेवा के लिए कुछ शिक्षकों द्वारा प्रोत्साहित किया जाने लगा और उन्हें एक ब्लैक बोर्ड और कुर्सी उपलब्ध करवाई गई। धीरे धीरे उन्हें स्कूल के लिए मकान भी दिया गया। बाद में एक चिकित्सालय और एक शांतिपूर्ण घर की स्थापना की, जहां गरीब का इलाज होना आरंभ हुआ। वह अपने महान कार्य के लिए प्रसिद्ध हो गई। मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिए उन्हें सितंबर 2016 में संत की उपाधि से नवाजा गया ।

मदर टेरेसा अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया और उन्होंने मुख्य रूप से गरीब और झोपड़पट्टी में रहने वाले लोगों की बहुत मदद की। उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाया और वह हम सबके लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा की स्रोत बन गई।

मदर टेरेसा पर निबंध( Essay On Mother Teresa In Hindi) के बारे में जानकारी हमने इस आर्टिकल में आप तक पहुचाई है। मुझे उम्मीद है, की इस आर्टिकल में हमने जो जानकारी आप तक पहुंचाई है। वह आप को अच्छी लगी होगी। यदि किसी व्यक्ति को इस आर्टिकल से सम्बंधित कोई सवाल या सुझाव है। तो वह हमें कमेंट में बता सकता है।

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मदर टेरेसा पर निबंध (Mother Teresa Essay In Hindi)

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मदर टेरेसा पर निबंध (Mother Teresa Essay In Hindi)- इस धरती पर मनुष्य दो प्रकार के कर्म करता है। एक अच्छा कर्म होता है और दूसरा बुरा। कलयुग में अच्छाई की कहीं थोड़ी सी कमी आ गई है। आज थोड़ा सा छल कपट बढ़ गया है। जबकि कहते हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए। परोपकार से बढ़कर कोई दूसरी चीज नहीं है। दया और सेवा भाव से हम पूरी दुनिया को बदलने की ताकत रखते हैं। परोपकारी बनना बहुत जरूरी चीज है। हालांकि इस कलयुग में भी बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जो सच्चे दिल से किसी का भला चाहते हैं।

मदर टेरेसा (Essay On Mother Teresa In Hindi)

दयावान व्यक्ति सभी के लिए अच्छा सोचता है। वह कभी भी किसी का बुरा नहीं चाहता। वह हर पल लोगों की जिंदगी संवारने में लगा रहता है। किसी जरूरतमंद के प्रति सहानुभूति जताने से अच्छा और कुछ नहीं हो सकता है। आप पूरे दिन में किसी भी एक व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान लाकर देखो। ऐसा करके आपको बहुत अच्छा लगेगा। आपको अंदर से एक अलग प्रकार की अनुभूति महसूस होगी। जो दूसरों के लिए जीते हैं और जो दूसरों के हित के बारे में सोचते हैं उन्हें महापुरुष का दर्जा दिया जाता है। हमारे देश ने ऐसे कई महापुरुषों को जन्म दिया। सबसे अच्छा उदाहरण हम महात्मा गांधी या फिर सुभाष चंद्र बोस का ले सकते हैं। इन्होंने अपना सारा जीवन भारत देश के हित में बारे में सोचते हुए बिताया। क्या आपने कभी किसी महिला को महापुरुष के रूप में देखा है। जी हां, मदर टेरेसा एक ऐसी ही महिला थीं जो जीवनभर दूसरों के लिए काम करती रहीं। उन्होंने निस्वार्थ भावना से सभी की सेवा की।

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मदर टेरेसा पर निबंध

इस पोस्ट में हमने मदर टेरेसा पर निबंध एकदम सरल, सहज और स्पष्ट भाषा में लिखने का प्रयास किया है। मदर टेरेसा पर निबंध के माध्यम से आप जान पाएंगे कि मदर टेरेसा कौन थीं, उनका भारत से क्या नाता था, समाज के प्रति उनके विचार क्या रहे, उन्होंने अपने जीवन संघर्ष में कितनी उपलब्धियां हासिल कीं आदि। तो आइए हम मदर टेरेसा के जीवन पर आधारित निबंध पढ़ते हैं।

किसी जरूरतमंद व्यक्ति की मदद करने से अच्छा और क्या हो सकता है। इसी काम को अच्छे से निभाया ममता की मूर्ति मदर टेरेसा ने। मदर टेरेसा को आज पूरी दुनिया जानती है। उन्होंने अपने जीवनकाल में उल्लेखनीय कार्य किए। वह बदले में कुछ भी नहीं चाहती थीं। वह सभी गरीब लोगों के लिए एक मां के समान थीं। जैसे मां अपने बच्चों के लिए हर एक चीज का ख्याल रखती है ठीक उसी प्रकार मदर टेरेसा भी गरीब और असहाय लोगों का ख्याल रखती थीं। बहुत से लोग आज भी ये सोचते हैं कि मदर टेरेसा भारतीय थीं। लेकिन असल में वह विदेशी नागरिक थीं। क्योंकि मदर टेरेसा एक नन बनना चाहती थीं इसलिए वह मैसेडोनिया से भारत आ गईं। अगनेस गोंझा बोयाजिजू ही बाद में आगे चलकर मदर टेरेसा बनीं।

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मदर टेरेसा का बचपन

मदर टेरेसा का बचपन थोड़ा अलग था। निकोला बोयाजू के घर मदर टेरेसा ने जन्म लिया। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को हुआ था। मदर टेरेसा का जन्मस्थान स्काॅप्जे था। अब स्काॅप्जे को मैसेडोनिया कहते हैं। मदर टेरेसा का असली नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था। मदर टेरेसा की माता का नाम द्राना बोयाजू था। मदर टेरेसा अपने भाई बहन में सबसे छोटी थीं। मदर टेरेसा शांत स्वभाव की बच्ची थीं। वह मेहनती भी थीं। मदर टेरेसा के पिता एक व्यवसायी के रूप में काम करते थे। मदर टेरेसा के पिता को ईश्वर में बहुत अधिक विश्वास था। उनके पिता को चर्च जाना भी बहुत पसंद था। मदर टेरेसा के जीवन में सबसे मुश्किल घड़ी तब रही जब मदर टेरेसा के पिता अपनी पत्नी और अपने बच्चों को इस छोड़कर इस दुनिया से चल बसे।

मदर टेरेसा और चर्च से लगाव

मदर टेरेसा के पिता निकोला बोयाजू बहुत ही दयालु किस्म के व्यक्ति थे। वह धार्मिक भी थे। निकोला बोयाजू कभी भी चर्च जाना नहीं भूलते थे। चर्च जाकर वह शांति का अनुभव करते थे। अपने पिता के साथ मदर टेरेसा ने भी चर्च जाना शुरू कर दिया था। मदर टेरेसा भी धार्मिक ख्यालों की हो गईं। वह चर्च जाकर प्रार्थना करना नहीं भूलती थीं। और साथ ही साथ वह चर्च में ईसाई गीत भी गाया करती थीं। सभी उनकी आवाज की तारीफ किया करते थे। चर्च जाने के दौरान ही उनके मन में ईश्वर भक्ति के लिए आसक्ति पैदा हुई। वह ईश्वर को ही अपना सबकुछ मानने लगीं।

मदर टेरेसा की शिक्षा

मदर टेरेसा बचपन से ही बेहद मेहनती थीं। उनको स्कूली शिक्षा से ज्यादा धार्मिक शिक्षा पसंद आने लगी थी। उनको चर्च से लगाव हो गया था। चर्च में जाकर वह घंटों ईश्वर भक्ति में वक्त बिताया करती थीं। उनके पिता ने उनका दाखिला कैथोलिक स्कूल में करवाया था। कुछ समय कैथोलिक स्कूल जाने के बाद उन्होंने सरकारी स्कूल से भी शिक्षा प्राप्त की। कुछ समय स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनका मन केवल ईश्वर में रमने लगा। अब वह नन बनना चाहती थीं। इसी कारण के चलते वह सिस्टर ऑफ लैराटो से जुड़ गईं। 18 वर्ष के बाद उन्होंने अपना समस्त जीवन लोगों की सेवा में ही बीता दिया।

मदर टेरेसा का भारत दौरा

मदर टेरेसा आश्रितों के लिए काम करने लगीं। उनका मन लोगों की सेवा में ही लगता था। वह अपने देश के ही एक आश्रम से जुड़ गई थीं। एक दिन वह आश्रम की तरफ से भारत दौरे पर आईं। वह भारत की सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो गईं। वह सबसे पहले दार्जिलिंग के दौरे पर आईं। उसके बाद वह कोलकाता भी गईं। कोलकाता में उन्होंने लोगों में गरीबी और लाचारी देखी। लोगों की परेशानी देखकर वह अंदर से दुखी हो गईं। मदर टेरेसा को कोलकाता के स्कूल में पढ़ाने का काम दिया गया। जब वह स्कूल में पढ़ा रही थीं तो एक दिन उनको भगवान यीशु ने यह संदेश देते हुए कहा कि वह भारत के असहाय लोगों के जीवन को संवारने में अपनी जिंदगी निकाल दें। फिर तो मदर टेरेसा ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह फिर भारत की स्थायी नागरिक बन गईं और पूरे देशवासियों की सेवा की।

मदर टेरेसा के अनमोल विचार

(1) यदि हमारे बीच कोई शांति नहीं है, तो वह इसलिए क्योंकि हम भूल गए हैं कि हम एक दूसरे से संबंधित है।

(2) शांति की प्रक्रिया, एक मुस्कान के साथ शुरू होती है।

(3) प्रेम कभी कोई नापतोल नहीं करता, वो बस देता है।

(4) यदि लोग अवास्तविक, विसंगत और आत्मा केन्द्रित हैं फिर भी आप उन्हें प्रेम दीजिये।

(5) जो आपने कई वर्षों में बनाया है वह रात भर में नष्ट हो सकता है, यह जानकार भी आगे बढिए और उसे बनाते रहिये।

(6) प्यार के लिए भूख को मिटाना, रोटी के लिए भूख को मिटाने से कहीं ज्यादा मुश्किल है।

(7) जिस व्यक्ति को कोई चाहने वाला न हो, कोई ख्याल रखने वाला न हो, जिसे हर कोई भूल चुका हो, मेरे विचार से वह किसी ऐसे व्यक्ति की तुलना में जिसके पास कुछ खाने को न हो, कहीं बड़ी भूख, कही बड़ी गरीबी से ग्रस्त है।

(8) पेड़, फूल और पौधे शांति में विकसित होते हैं। सितारे, सूर्य और चंद्रमा शांति से गतिमान रहते हैं, शांति हमें नयी संभावनाएं देती है।

मदर टेरेसा को प्राप्त उपलब्धियां

(1) साल 1962 में मदर टेरेसा को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

(2) पद्मश्री पुरस्कार हासिल करने के बाद उनको 1980 में भारत रत्न दिया गया।

(3) अमेरिका में भी उन्हें सम्मानित किया गया। अमेरिका में उन्होंने मेडल ऑफ फ्रीडम का पुरस्कार प्राप्त किया।

(4) उनको नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। यह पुरस्कार उन्हें 1979 में मिला था।

मदर टेरेसा की मृत्यु

मदर टेरेसा ने अपने पूरे जीवनकाल में खूब काम किया। वह निस्वार्थ भाव से सभी की सेवा में लगी रहीं। कई साल तक बिना थके काम करने के पश्चात वह आखिरकार बीमार रहने लगीं। मदर टेरेसा को दिल की बीमारी लग गई थी। सन् 1983 में उनको पहला हार्ट अटैक आया। बाद में कई और साल बीमार रहने के बाद आखिरकार 5 सितंबर सन् 1997 को उन्होंने अंतिम सांस ली। वह दुनिया को अलविदा कह गईं।

मदर टेरेसा परोपकारी महिला थीं। उन्होंने जीवनभर असहाय लोगों की सहायता में अपना जीवन बीता दिया। परोपकारी लोग ही अपने जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। हमें मदर टेरेसा के जीवन से यह सीख लेनी चाहिए कि हम सभी निस्वार्थ भाव से असहाय लोगों की सेवा करें।

मदर टेरेसा पर निबंध 200 शब्दों में

मदर टेरेसा को कौन नहीं जानता है। हम सभी ने उनका नाम सुना है। वह महान लोगों में गिनी जाती हैं। मदर टेरेसा को मदर की ख्याति भी इसलिए प्राप्त हुई क्योंकि वह सच्चे संत के समान थीं। वह मैसेडोनिया में जन्मी थीं। उनके पिता का नाम निकोला बोयाजू था। उनकी माता का नाम द्राना बोयाजू था। वह होनहार और मेहनती थीं। उनका मन पढ़ाई से ज्यादा ईश्वर की भक्ति और असहाय मानवों की सेवा में लगता। सेवा भाव का ऐसा प्रभाव था कि उन्होंने शादी तक नहीं की। वह ताउम्र कुंवारी रहीं।

उन्होंने अपने पिता को बचपन में ही खो दिया था। मदर टेरेसा ने अपने पिता से दयालुता और धार्मिकता सीखी। वह बचपन से ही अपने पिता के संग चर्च जाया करती थीं। चर्च में वह मधुर संगीत भी गाती थीं। चर्च में ही उन्होंने यह प्रतिज्ञा ले ली थी कि वह नन बन जाएंगी। नन बनकर वह भारत के दौरे पर आईं। भारत में गरीबी और बीमार लोगों को देखकर वह बेहद दुखी हो उठीं। उन्होंने तय किया कि वह भारत में रहकर ही सभी जरूरतमंद लोगों की सेवा करेंगी। उनके सराहनीय काम के लिए उनको नोबेल पुरस्कार भी मिला था।

मदर टेरेसा पर 10 लाइनें

(1) मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, सन् 1910 को हुआ था।

(2) मदर टेरेसा एक महान संत के समान थीं।

(3) मदर टेरेसा को उनके सामाजिक कार्यों के लिए नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था।

(4) उन्होंने पांच भाषाओं पर अपनी पकड़ मजबूत बना ली थी।

(5) मदर टेरेसा भारतीय नागरिक नहीं थीं। वह मैसेडोनिया की नागरिक थीं।

(6) मदर टेरेसा ने कुष्ठ रोगियों के लिए बहुत ज्यादा काम किया।

(7) वह सभी जीवों को एकसमान नजरों से देखती थीं।

(8) मदर टेरेसा द्वारा मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की शुरुआत की गई थी।

(9) मदर टेरेसा परोपकारी महिला थीं।

(10) मदर टेरेसा ने ताउम्र लोगों की सेवा की।

उत्तर- मदर टेरेसा का वास्तविक नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था।

उत्तर- मदर टेरेसा की माता का नाम द्राना बोयाजू था। और पिता का नाम निकोला बोयाजू था।

उत्तर- मदर टेरेसा के जन्मस्थान का नाम मैसेडोनिया था।

उत्तर- मदर टेरेसा को वर्ष 1979 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

उत्तर- मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर वर्ष 1997 को हुई थी।

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Essay on mother teresa in hindi मदर टेरेसा पर निबंध.

Hello, guys today we are going to discuss essay on Mother Teresa in Hindi. मदर टेरेसा पर निबंध। कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के बच्चों और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए मदर टेरेसा पर निबंध हिंदी में। Read an essay on Mother Teresa in Hindi to get better results in your exams.

Essay on Mother Teresa in Hindi – ममतामयी मदर टेरेसा पर निबंध

hindiinhindi Essay on Mother Teresa in Hindi

Essay on Mother Teresa in Hindi 200 Words मदर टेरेसा पर निबंध

मदर टेरेसा एक महान महिला थी जिन्होने अपनी सारी जिन्दगी गरीबों ओर जरूरतमंद लोगों की सेवा करने में लगायी। उनका जन्म मेसेडोनिया में 26 अगस्त 1910 को हुआ था। मदर टेरेसा भगवान में विश्वास रखने वाली महिला थी। उन्होने अपने जीवन का अधिकतम समय चर्च में बिताया था। कुछ समय बाद वह चर्च की नन बन गयी। जब मदर टेरेसा कोलकत्ता आयी तब उनकी उम्र 18 वर्ष थी। उन्होंने गरीब व जरूरतमंदो की मदद करने का मिशन यहाँ पर भी जारी रखा। उन्होने कुष्ठ रोगो से पीड़ित गरीबो की सेवा की और उन्हें यह भी बताया कि कुष्ठ रोग कोई संक्रामक रोग नहीं है और यह एक दूसरे को छूने से नही फैलता।

मानव जाति की सेवा के लिये सन् 2016 में उन्हे ‘संत’ की उपाधि दी गयी थी। मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन दूसरों की भलाई के लिये बिताया था। उनका भरोसा भगवान पर बहुत था। वह कई घंटो तक भगवान की प्रार्थना करती थी। उनका मानना था कि प्रार्थना ही उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है उन्होने 15 वर्षों तक इतिहास और भूगोल पढाया। उनका सारा जीवन मानव सेवा में ही बीता।

Essay on Motherland in Hindi

Letter to Grandmother in Hindi

Essay on Mother Teresa in Hindi 500 Words

वे दूसरों के दुःख-तकलीफ को अपना समझती थीं। किसी को कोई दर्द या पीड़ा होती, तो उनकी आँखों में आँसू छलक आते थे। ऐसी थीं, पूरी दुनिया की माँ, मदर टेरेसा। वे 20वीं सदी की वो शख्सियत थीं, जिन्होंने देश-धर्म की सीमाओं से आजाद रहते हुए अपनी पूरी जिंदगी मानवता की सेवा में लगा दी। वे सही मायने में विश्व – नागरिक थीं। यह हमारा सौभाग्य है कि उन्होंने भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया।

मदर टेरेसा का जन्म मकदूनिया के स्कोपजे में 26 अगस्त, 1910 को हुआ था। जब वे महज़ आठ साल की थीं, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। वे बचपन से ही बहुत संवेदनशील थीं। 12 वर्ष की खेलने-कूदने की उम्र में ही उन्होंने नन बनने का फैसला कर लिया। 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने इस फैसले को अमल में लाने के लिए पहला कदम बढ़ाया और सिस्टर्स ऑफ लारेट नामक संस्था में शामिल हो गईं।

6 जनवरी, 1929 को मदर टेरेसा पहली बार भारत आईं और फिर यहीं की होकर रह गईं। 1931 से 1948 तक उन्होंने कोलकाता के सेंट मेरी हाई स्कूल में शिक्षिका के रूप में कार्य किया। कोलकाता में रहते हुए उन्होंने गरीबी, बीमारी और पीड़ा को बहुत पास से देखा। उन्होंने अध्यापन का कार्य तो अपना लिया था, लेकिन वे शहर की गंदी बस्तियों में रहने वाले लोगों की हालत के बारे में ही सोचती रहती थीं। उन्होंने 1948 में पटना में एक कम अवधि वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया। इसके बाद वे कोलकाता लौटकर लोगों की सेवा में जुट गईं। सेवा का यह मिशन आगे बढ़ाते हुए उन्होंने 1950 में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की शुरुआत की। आज यह संस्था दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बेसहारा और बीमार लोगों तथा अनाथ बच्चों की देखभाल कर रही है।

मदर टेरेसा ने झुग्गी-झोंपड़ियों में जाकर कुष्ठ, तपेदिक, एड्स जैसी भयंकर बीमारियों से ग्रस्त लोगों की जैसी सेवा की, वैसी शायद ही कोई कर सकता था। उनके इसी सेवाभाव के कारण रोमन कैथोलिक पंथ ने उन्हें संत की पदवी दी है। मदर टेरेसा को बहुत-से राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और धार्मिक पुरस्कारों से नवाजा गया। उनकी सेवाओं को देखते हुए 1979 में उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया। 1980 में वे भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से भी सम्मानित की गईं। पोप जॉन पॉल द्वितीय ने 2003 में मदर टेरेसा को ब्लेस्ड टेरेसा ऑफ कोलकाता की उपाधि प्रदान की। 5 सितंबर, 1997 को मदर टेरेसा अपने न जाने कितने ही बच्चों को अनाथ कर दुनिया से विदा हो गईं।

Essay on Mother in Hindi

Essay on grandmother in Hindi

Essay on Mother Teresa in Hindi 1000 Words

शांति की दूत, गरीबों का मसीहा, निराश्रितों, रुग्ण, मरणासन्न व अनाथों की सच्ची माँ टेरेसा का जन्म अल्बानिया (यूगोस्लाविया) में 29 अगस्त, 1910 को हुआ था। उनके पिता एक साधारण व्यक्ति थे और माता धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। प्रारम्भ से ही उन्हें सेवा कार्यों और रोमन कैथोलिक ईसाई धर्म में बड़ी रुचि थी। 18 वर्ष की आयु में वे एक नन (भिक्षुणी) बन कर आयरलैंड चली गईं। कुछ समय उपरांत वे भारत में सेवाकार्य के लिए चली आईं और कलकत्ता के सेंट मेरी स्कूल में अध्यापन करने लगीं। बाद में वे इसकी प्रधानअध्यापिका बन गईं।

ईश्वरीय प्रेरणा और संदेश ने उनके जीवन को एक नया मोड़ दिया। 1937 में वे जब एक दिन दार्जिलिंग जा रही थीं तभी उन्हें ईश्वरीय संदेश की अनुभूति हुई और वे निर्धन, अपाहिजों, निराश्रितों, मरणासन्न व्यक्तियों की सेवा में लग गईं। लावारिस मृत व्यक्तियों को सम्मानजनक अंतिम संस्कार देने का भी उन्होंने बीड़ा उठाया। कुष्ठ पीड़ित लोगों की सेवा को भी उन्होंने अपना धर्म समझा। 10 सितम्बर आज भी प्रतिवर्ष “प्रेरणा दिवस” के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन मदर को ईश्वरीय प्रेरणा और संदेश प्राप्त हुए थे। 1948 में वे भारत की नागरिक बन गईं।

कलकत्ता की गंदी बस्तियों, झुग्गी-झोंपड़ियों आदि को उन्होंने अपने कार्यक्षेत्र के रूप में अपनाया। अनाथ बच्चों, बेघर व्यक्तियों, बीमार लोगों, अपाहिजों तथा कुष्ठपीड़ित लोगों की सेवा ने लोगों और उनके बीच प्रेम, सेवा और स्नेह का एक अटूट रिश्ता बना दिया। यह रिश्ता आगे आने वाले लगभग 50 वर्षों तक बना रहा। धीरे-धीरे उनकी ख्याति सारे कलकत्ता नगर में फैल गई और वे ‘माँ’ (मदर) नाम से प्रसिद्ध हो गईं। कलकत्ता के असंख्या गरीब, बेसहारा, रुग्ण, स्त्री-पुरूष, उनके पुत्र-पुत्रियां और संतान बन गये। माँ के विभिन्न सद्गुणों-ममता, स्नेह, करुणा, त्याग, तपस्या और सेवाभाव से भरपूर वे ईश्वर की साक्षात प्रतिनिधि बन गईं। सन् 1948 में रोम के सबसे बड़े रोमन कैथोलिक धर्मगुरू पोप ने उनको इस पवित्र कार्य की स्वीकृति दे दी थी।

सन् 1950 में मदर ने कुछ अन्य भिक्षुणियों की सहायता से भीड़भाड़ भरे स्थान-जगदीश चन्द्र बोस मार्ग पर ‘‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी” नामक संस्था की स्थापना की। इससे सेवा कार्य में और अधिक तेजी आ गई और यह कार्य अधिक संगठित व सुचारू हो गया। आगे चलकर 1955 में मदर ने कलकत्ता कोरपोरेशन प्रदत्त एक स्थान पर ‘‘निर्मल हृदय” नामक प्रथम संस्था और गृह की स्थापना की। धीरे-धीरे उन्होंने और कई आश्रम और गृह अनाथों निर्धनों व निराश्रितों के लिए खोले और देखते-ही-देखते सेवाश्रमों का एक जाल-सा बिछ गया।

जो व्यक्ति निराश्रित, भूखे-नंगे, बदहाल, रुग्ण, मरणासन्न या कुष्ठ पीड़ित थे उन्हें उन आश्रमों और गृहों में शरण दी जाती थी, उनकी सेवा सुश्रूषा की जाती थी तथा उन्हें माँ का स्नेह प्रदान किया जाता था। इस स्वार्थहीन सेवाभाव व असीमित करुणा ने सारे कलकत्ता वासियों को अभिभूत कर दिया और माँ की ख्याति व यश देश-विदेश में तीव्रता से फैलने लगा। आज सारे विश्व में मदर द्वारा स्थापित 240 से अधिक आश्रम, सेवागृह, अस्पताल, स्कूल, अनाथालय आदि हैं। ऐसे कई आश्रम और आश्रय स्थल अपाहिजों, निराश्रितों, अनाथ बच्चों, महिलाओं, कुष्ठ पीड़ितों आदि के लिए खोले जा रहे हैं। ये सारे संसार में प्यार, सेवा, करुणा और वात्सल्य का संदेश कोने-कोने में पहुंचा रहे हैं तथा हमारे जीवन से भुखमरी, बदहाली, गरीबी, बीमारी आदि दूर करने का सराहनीय प्रयत्न कर रहे हैं।

अकेले भारत में ही 215 से अधिक चिकित्सालयों में आज लगभग 10 लाख रोगियों की चिकित्सा व देखभाल की जा रही है। सेवाश्रमों, वृद्ध गृहों, अनाथालयों आदि की संख्या भी निरन्तर वृद्धि पर है और विशेष बात यह है कि सभी कार्य बिना सरकारी सहायता के चल रहे हैं। निर्मल हृदय” व‘‘फर्स्ट लव” नामक ये सेवाश्रम परहित, सेवा व करुणा के अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। सेवारत भिक्षुणियों की निष्काम कार्य परायणता, निष्ठा, त्याग, तपस्या, लगन और समर्पण भाव देखते ही बनते हैं।

मदर टेरेसा पहली बार 1980 में अमेरिका गईं और वहां उनका भव्य आदर हुआ तथा लोगों ने जी खोलकर उनकी आर्थिक सहायता की। उनके द्वारा सम्पन्न सेवा कार्यों ने उन्हें विश्वविख्यात बना दिया और उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार दिये गये। 1962 में भारत स. कार ने उन्हें पदमश्री की उपाधि से विभूषित किया। 1962 में उन्हें मैगसेसे पुरस्कार फिलिपींस सरकार की ओर से दिया गया। इसमें प्राप्त धन राशि से मदर ने आगरा में एक कुष्ठगृह व आवास का निर्माण करवाया।

1968 में ब्रिटेन की जनता ने अपना प्रेम व आदरभाव प्रदर्शित करते हुए मदर को 19000 पाऊंड दिये। 1970 में वेटिकन पोप ने 1 लाख 30 हजार रुपये की राशि उन्हें भेंट की। यह धन ‘पीस प्राइज’ एक शांति पुरस्कार के रूप में दिया गया था। फिर 1971 में उन्हें कैनेडी पुरस्कार से सम्मानित किया गया और इसमें उन्हें, 1,00,000 डालर प्राप्त हुए। 1972 में नेहरू अवार्ड तथा टेम्पलटन अवार्ड से उन्हें विभूषित किया गया। इतने सारे पुरस्कार, सम्मान व उपाधियां आज तक किसी विभूति को शायद ही मिले हों। 1979 में उन्हें विश्वप्रसिद्ध नॉबेल शाँति पुरस्कार दिया गया तो 1980 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से विभूषित किया। मदर का देहांत 5 सितम्बर, 1997 को कलकत्ता में हृदयगति रुक जाने से हो गया। सारे विश्व में दु:ख की लहर दौड़ गई।

Mothers Day Essay in Hindi

Bal Diwas par Nibandh

Essay on Mother Teresa in Hindi 1200 Words

देश और काल की परिधि को तोड़कर, जात-पांत के बन्धनों से अलग ऊंच और नीच की भावना से रहित दिव्य आत्माएँ विश्व में दरिद्र-नारायण की सेवा कर परमपिता परमात्मा की सच्ची सेवा करते हैं। उनके जीवन का उद्देश्य साधारण मानवों की भान्ति निजी शरीर और जीवन नहीं होता, यश और धन की कामना उन्हें नहीं होती है अपितु वे विशुद्ध और नि:स्वार्थ हृदय से दीन-दु:खियों, दलित और पीड़ितों की सेवा करते हैं। इस प्रकार की दिव्य-आत्माओं में आज ममतामयी मूर्ति मदर टेरेसा है जिन्हें अपनी अनथक सेवा, मानवता के लिए सेवा और प्यार भरे हृदय के कारण ‘मदर’ कहा जाता है क्योंकि वे उपेक्षितों अनाथों, असहायों के लिए ‘मदर हाउस’ बनवाती हैं और उन्हें आश्रय देती हैं।

मदर टेरेसा का जन्म 27 अगस्त 1910 ई. को यूगोस्लाविया के स्कोपले नामक स्थान में हुआ था। इनके बचपन का नाम आगनेस गोंवसा बेयायू था। माता-पिता अल्बानियम जाति के थे। इनके पिता एक स्टोर में स्टोर कीपर थे। बारह वर्ष की अल्प अवस्था में जब इन्होने मिशनरियों द्वारा किए गए परोपकार और सेवा के कार्यों के सम्बन्ध में सुना तो उनके बाल-हृदय ने यह कठोर और दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह भी अपने जीवन का मार्ग लोक सेवा ही चुनेंगी। अठारह वर्ष की आयु में वे आईरिश धर्म परिवार लोरेटों में सम्मिलित हुई और इसके साथ ही आरम्भ हुआ उनके जीवन के महान् यज्ञ का आरम्भ जिसमें वे निरन्तर अनथक भाव से सेवा की आहुतियां दे रही हैं। दार्जिलिंग के सुरम्य पर्वतीय वातावरण से वे बहुत प्रभावित हुईं और सन् 1929 ई. में उन्होंने कलकत्ता के सेण्टमेरी हाई स्कूल में शिक्षण कार्य आरम्भ कर दिया। इसी स्कूल में वे कुछ समय बाद प्रधानाचार्य बनीं और स्कूल की सेवा करती रहीं। लेकिन स्कूल की छोटी सी चार दीवारी में उनका हृदय असीमित सेवा की बलवती भावना से व्याकुल रहता। वे अधिक से अधिक लोगों की सेवा के व्यापक क्षेत्र को अपनाना चाहती थी। आजीवन ही स्वयं को मानव की सेवा में समर्पित कर देने की भावना निरन्तर प्रबल और विशेष होती गई। फलस्वरूप, उन्हीं के शब्दों में 10 सितम्बर, सन् 1946 का दिन था जब मैं अपने वार्षिक अवकाश पर दार्जिलिंग जा रही थी – उस समय मेरी अन्तरात्मा से आवाज़ उठी कि मुझे सब कुछ त्याग कर देना चाहिए और अपना जीवन ईश्वर और दरिद्र नारायण की सेवा करके कंगाल तन को समर्पित कर देना चाहिए।

जीवन लक्ष्य

इस सेवा भाव की भावना और अन्तरात्मा की आवाज़ को वे प्रभु यीशु की प्रेरणा और इस दिवस को ‘प्रेरणा दिवस’ मानती हैं। प्रभु-यीशु के इस पावन संदेश को उन्होंने जीवन का लक्ष्य मान लिया और पोप से कलकत्ता महानगर की उपेक्षित गन्दी बस्तियों में रहकर दलितों की सेवा करने का आदेश प्राप्त कर लिया। अब पूर्ण समर्पित दृढ़ प्रतिज्ञ और अविचल रहकर उन्होंने उपेक्षित, तिरस्कृत, दलितों और पीड़ितों की सेवा का कार्य आरम्भ कर लिया। उनकी धारणा है कि मनुष्य का मन ही बीमार होता है। अनचाहा, तिस्कृत एवं उपेक्षित व्यक्ति मन से रोगी हो जाता है और जब वह मन का रोगी हो जाता है तो शारीरिक रूप से कभी भी ठीक नहीं हो पाता। जो दरिद्र है, बीमार है, तिरस्कृत और उपेक्षित है, उन्हें प्रेम और सौहार्द की आवश्यकता है। उनके प्रति प्रेम करना ही ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम है। उन्होंने एक बार एक सभा में कहा था – लोगों में 20 वर्ष काम करके मैं अधिकधिक यह अनुभव करने लगी हैं कि अनचाहा होना सबसे बुरी बीमारी है जो कोई भी व्यक्ति महसूस कर सकता है।”

उनकी सेवा के परिणामस्वरूप कलकत्ता में एक ‘निर्मल हृदय होम’ स्थापित किया गया और स्लम विद्यालय खोला गया।

कलकत्ता में मोलाली क्षेत्र में जगदीश चन्द्र बसु सड़क पर अब मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी का कार्यालय है जो दिन रात चौबीसों घण्टे उन व्यक्तियों की सेवा में समर्पित है जो दुःखी हैं, अपाहिज हैं, जो निराश्रित और उपेक्षित हैं, वृद्ध हैं और मृत्यु के निकट है। जिन्हें कोई नहीं चाहता हैं उन्हें मदर टेरेसा चाहती हैं जिनको लोग उपेक्षित करते हैं उन्हें उनका प्यार भरा विशाल हृदय अपना लेता है।

सन् 1950 में आरम्भ किए गये ‘मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी’ की आज विश्व के लगभग 63 देशों में 244 केन्द्र हैं जिनमें लगभग 3000 ‘सिस्टर’ और ‘ब्रदर’ निरन्तर नियमित रूप में सेवा का कार्य कर रहे हैं। भारत में स्थापित लगभग 215 अस्पताल और चिकित्सा केन्द्रो में लाखों बीमार व्यक्तियों की नि:शुल्क चिकित्सा की जाती है। विश्व में गन्दी बस्तियों में चलाए जाने वाले स्कूलों में भारत में साठ स्कूल हैं। अनाथ बच्चों की देखभाल और पालन-पोषण के लिए 70 केन्द्र, वृद्ध व्यक्तियों की सेवा के लिए 81 घर संचालित किए जाते हैं। कलकत्ता के कालीघाट क्षेत्र में स्थापित ‘निर्मल हृदय’ जैसी अन्य संस्थाओं में लगभग पैंतालीस हजार वृद्ध लोग रहते हैं जो जीवन के दिवस की सन्धया को सुख और शान्ति से गुजरते हैं। मिशनरीज़ आफ चैरिटी के माध्यम से सैकड़ों केन्द्र संचालित होते हैं जिनमें हज़ारों की संख्या में बेसहारों के लिए मुफ्त भोजन व्यवस्था की जाती है। इन सभी केन्द्रों से प्रतिदिन लाखों रुपए की दवाइयों और भोजन सामग्री का वितरण किया जाता है।

पुरस्कार एवं सम्मान

पीड़ित मानवता की सेवा के अखण्ड यज्ञ को चलाने वाली मदर टेरेसा को पुरस्कार और अन्य सम्मान सम्मानित नहीं करते अपितु उनके हाथों में और उनके नाम से जुड़ कर पुरस्कार और सम्मान ही सम्मानित होते हैं। उनके द्वारा किए गए इस कार्य के लिए उन्हें विश्व भर के अनेक संस्थानों ने उन्हें सम्मान दिए हैं। सन् 1931 में उन्हें पोपजान 23वें का शान्ति पुरस्कार प्रदान किया गया। विश्व भारती विश्वविद्यालय ने सर्वोच्च पदवी ‘देशीकोत्तम’ प्रदान की। अमेरिका के कैथोलिक विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की उपाधि से उन्हें विभूषित किया। सन् 1962 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया। सन् 1964 में पोप पाल ने भारत यात्रा के दौरान उन्हें अपनी कार सौंपी जिसकी नीलामी कर उन्होंने कुष्ट कालोनी की स्थापना की। इस सूची में फिलिपाइन का रमन मैग साय पुरस्कार, पुनः पोप शान्ति पुरस्कार, गुट समारिटन एवार्ड, कनेडी फाउंडेशन एवार्ड, टेम्पलटन फाउंडेशन एवार्ड आदि पुरस्कार हैं जिनसे प्राप्त होने वाली धनराशि को उन्होंने कुष्ट आश्रम, अल्प विकसित बच्चों के लिए घर तथा वृद्ध आश्रम बनवाने में खर्च की। 19 दिसम्बर सन् 1979 में उन्हें मानव कल्याण के लिए किए गए कार्यों के लिए विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। सन् 1993 में उन्हें राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार दिया गया। सेवा की साक्षात् प्रतिमा विश्व को रोता छोड़कर 6 सितम्बर, 1997 को देवलोक सिधार गईं।

देव-दूत, प्रभु-पुत्री, मदर टेरेसा का जीवन यज्ञ-समाधि की भान्ति है जो निरन्तर जलती है पर जिसकी ज्वाला से प्रकाश बिखरता है। मानवता की सेवा की नि:स्वार्थ साधिका ‘मदर’ माँ की ममता की ज्वलंत गाथा को प्रमाणित करती है। वह एक ही नहीं असंख्य लोगों को आश्रय और ममता, प्यार और अपनत्व देने वाली ममतामयी माँ है। ईश्वर की आराधना में वह विश्वास करती है, उसका ध्यान करती है परन्तु उसकी पूजा उसकी ही संतानों की सेवा के रूप में करती है। उनकी पवित्र प्रेरणा से प्रेरित होकर देश-विदेश से अनेक युवक और युवतियाँ उन के साथ इस सेवा-कार्य में जुट जाती हैं। आलौकिक शक्ति एव तेज से सम्पन्न यह दिव्य आत्मा सदैव ही मानवता की सेवा के इतिहास का आकाशदीप बनी रहेगी।

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मदर टेरेसा पर निबंध (Mother Teresa Essay In Hindi)

मदर टेरेसा पर निबंध (Mother Teresa Essay In Hindi Language)

आज के इस लेख में हम मदर टेरेसा पर निबंध (Essay On Mother Teresa In Hindi) लिखेंगे। मदर टेरेसा पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

मदर टेरेसा पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Mother Teresa In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।

मदर टेरेसा उन महान लोगो मे से एक है, जो धरती पर जन्म लेते है तो धरती के लोगो का उद्धार कर देते है। वे अपना सारा जीवन उन् प्राणियो पर निछावर कर देते है जो कहते है कि हमने भगवान तो नही देखा पर हां भगवान कैसे होंगे ये हमें पता है।

उन्ही नेक ओर पवित्र आत्मा में से मदर टेरेसा का नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखे जाने वाला नाम है। ऐसी सच्ची नेक दिल विभूतियों को मेरा शत शत नमन जिन्होंने मानवता की सेवा को ही सबसे बड़ा धर्म समझा और बिना किसी स्वार्थ के सबकी सेवा की।

मदर टेरेसा जी का जन्म

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कापजे मसेदोनिया में हुआ था। उनके पिता का नाम निकोला बोयाजू था, जो एक साधारण तरह के व्यवसायी थे। उनकी माँ का नाम द्राना बोयाजू था। मदर टेरेसा का वास्तविक नाम अगनेस गोंझा बोयाजीजु था। अलबेनियन भाषा मे गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है।

जव ये केवल आठ साल की थी तभी इनके पिता का देहांत हो गया था। जिसके बाद इनकी माँ ने ही इनका पालन-पोषण किया। इस तरह सारी जिम्मेदारी इनकी माँ द्राना बोयाजू के उप्पर आ गयी। मदर टेरेसा पांच भाई बहनों में सबसे छोटी थी। उनके जन्म के समय इनकी बड़ी बहन की उम्र 7 वर्ष थी और भाई की उम्र 2 वर्ष थी।

बाकी दो बच्चे बचपन मे ही गुजर गए थे। वह एक सुंदर पढ़ने लिखने में दक्ष ओर परिश्रमी लड़की थी। पढ़ाई के साथ -साथ उन्हें गाना गाना बहुत पसंद था। वह ओर उनकी बहन उनके घर के पास के गिरिजाघर में मुख्य गायिका थी।

माना जाता है कि मदर टेरेसा जब मात्र 12 साल की थी, तभी उन्हें ये अनुभव हो गया था कि वो अपना सारा जीवन मानव सेवा में ही लागाएँगी ओर 18 साल की उम्र में उन्होंने सिस्टर ऑफ लोरेटो में शामिल होने का फ़ैसला ले लिया था। त्तपश्चात वह आयरलैंड गयी, जहाँ उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी।

अंग्रेजी भाषा सीखना इनके लिए जरूरी था, क्योंकि लोरेटो की सिस्टर इसी भाषा मे भारत मे बच्चों को पढ़ाती थी। मदर टेरेसा को बचपन से ही ईसाई धर्म और उनके प्रचारक द्वारा किये जा रहे सेवा कार्य मे बहुत रुचि थी।

उन्होंने अपने किशोरावस्था में पड़ा था कि भारत के दजीलिंग नामक नगर में ईसाई मिशनरिया सेवा कार्य पूरी तत्प्रता से कर रही है। मदर टेरेसा 18 वर्ष की आयु में ही नन बन गयी और भारत आकर ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाये जा रहे सेवा कार्य मे जुट गई।

इसके साथ ही उन्होंने अपनी पढ़ाई करी ओर भारतीय भाषओं में भी रुचि लेना शुरू कर दिया और शिघ्र ही कलकत्ता में स्थित सेंट मेरी हाई स्कूल में अध्यापन का कार्य करने लगी। तब से ही इन्होंने अपना सारा जीवन दुसरो की सेवा और उनकी अवस्था को सुधारने में लगा दिया। मदर टेरेसा एक ऐसा नाम है, जिनका नाम लेते ही हमारा ह्रदय श्रद्धा से झुक जाता है।

मिशनरी ऑफ चैरिटी

मदर टेरेसा ने मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी और इन्होंने ये चेरिटी 120 देशो में स्थापित की है। 1950 में मदर टेरेसा ने मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना की, जो कि कलकत्ता में है। ये एक रोमन कैथोलिक स्वयंसेवी धार्मिक संगठन है, जो विभिन्न मानवीय कार्यो में योगदान दे रहा है।

इसकी 4500 से भी अधिक ईसाई मिशनरियों की मंडली है। इसमें शामिल होने के लिए नो वर्षो की सेवा और परीक्षण के बाद सारे ईसाई धार्मिक मूल्यों पर खरा उतरना पड़ता है, इस संगठन के विभिन्न कार्यो में अपनी सेवा देने के बाद ही आपको इसमें शामिल किया जाता है।

प्रत्येक सदस्यों को चार संकल्पो पर अडिग ओर पूरा विश्वास रखना होता है। जो है पवित्रता, दरिद्रता, आज्ञाकारिता ओर दिल से सेवा।

मिशनरी विश्व भर में गरीब, बीमार, शोषित ओर वंचित लोगो की सेवा और सहायता में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते है। उन्हें कुष्ठ पीड़ितों ओर एड्स पीड़ितों की सेवा में भी समर्पित रहना पड़ता है। मदर टेरेसा अनाथो की सहायिका बनी तथा अपंग-अपाहिजों की सरंक्षिका बन गयी, जिन्हें कोई अपनाना नही चाहता था।

उनके लिए मदर टेरेसा के दरवाजे सदा के लिए खुले रहते थे। मिशनरी ऑफ चैरिटी की सफलता का यही रहस्य था, जिसके कारण मदर टेरेसा भारत मे सम्मानित हुई और विश्व का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार नोबेल पुरस्कार भी इन्हें प्रदान किया गया।

खास बात इस संस्था की

ये संस्था अनाथ ओर बेघर बच्चों को शिक्षा और भोजन देती है। अनाथ-आश्रम, वृद्धाश्रम ओर अस्पताल भी चलाती है। मदर टेरेसा का यश विश्व विख्यात था, उनका सेवा का साम्राज्य बहुत विस्तृत था। संसार के छः देशो में उनके कार्यकर्ता सक्रिय थे।

मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना 1950 में हुई थी। तब से लेकर आज तक संसार मे इनके 244 केंद्र स्थापित हो चुके है। इस केंद्रों में 3000 सिस्टर तथा मदर कार्यरत है। इसके अलावा और भी हजारों लोग इस मिशन से जुड़े हुए है।

जो बिना किसी वेतन के सेवा कार्य करते है। भारत मे मदर टेरेसा द्वारा स्थापित 215 चिकित्सालय में 10 लाख लोगों से ज्यादा लोगो की चिकित्सा प्रायः नीशुल्क की जाती है।

मदर टेरेसा की पसंदीदा जगह

आप लोगों को शायद ही ये बात पता हो कि मदर टेरेसा की भी एक पसंदीदा जगह थी और इस जगह की जानकारी अमेरिका के न्यूज़ चैनलों में से किसी ने पूछी। उन्होंने पूछा कि आपकी सबसे पसंदीदा जगह कोन सी है, तो उन्होंने कहा मेरी पसंदीदा जगह कालीघाट है और वह जगह मुझे बहुत पसंद है।

ये जगह कलकत्ता की एक गली का नाम है जहाँ मदर टेरेसा का आश्रम है। जो व्यक्ति गरीब है, उनमें से भी वो गरीब व्यक्ति जिनके पास खाने -पीने का कोई साधन नही होता था, ना ही बीमारी के इलाज के लिए कोई दवा खरीद सकते थे, उन्हें मदर टेरेसा अपने आश्रम में लेकर आ जाती थी।

उन्होंने उस स्थान पर कोलकाता के इतिहास में 54 हजार लोगों को आश्रय दिया। इसमे से 23 हज़ार लोगो की मृतु हो गयी, क्योंकि वो वहुत समय से भूखे-प्यासे थे ओर किसी ना किसी बीमारी से ग्रस्त थे।

परन्तु फिर भी उन्हें वो जगह बहुत पसंद थी। वहाँ कार्य करके उन्हें सुख और खुशी का अनुभव होता था। गरीबो की सेवा करना यही उन्हें आनंद प्रदान करता था।

सम्मान और पुरस्कार

मानवता की सेवा के लिए मदर टेरेसा को अनेक अंतराष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हो चुके है। जिनमे पद्मश्री पुरुस्कार 1962 में, नोबेल पुरस्कार 1979, भारत का सर्वोच्च पुस्कार, भारत रत्न 1980 में, मेडल आफ फ्रीडम 1985।

सम्पूर्ण विश्व में फैले उनके मिशनरी के कार्यो के कारण मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। उन्हें ये पुरस्कार असहायों ओर गरीबो की सहायता करने के लिए दिया गया था।

उन्होंने नोबेल पुरस्कार की 192,000 डॉलर की धन राशि को गरीबो के लिए फंड के रूप में प्रयोग करने का निर्णय लिया। नोबेल पुरुस्कार विजेता भारत रत्न मदर टेरेसा उन चुनिंदा विभूति में से एक थी, जिन्होंने अपनी मातृभूमि यूगोस्लाविया को छोड़कर भारत को अपना कर्मस्थल बनाया।

उन्होंने यहाँ के दिन दलित बेसहारा जनता की निःस्वार्थ सेवा को ही अपना प्रमुख लक्ष्य बनाया। इन जैसी विभूतियों के लिए ये पुरुस्कार भी कम पड़ जाते है। जो कार्य करने की हिम्मत ये रखती है, ऐसे कार्यो को करने वाले दुनिया मे ऐसी विभूतिया कम ही दिखाई देती है।

मदर टेरेसा जी के सेवा भाव कार्य

मदर टेरेसा जी के सेवा भाव के क्षेत्र में किये गए कार्य विश्व के लिए एक प्रेरणादायक ओर सम्मानीय उदाहरण है। उन्होंने भारत देश के गरीबो, बीमारों के लिए एक माँ समान रूप में मद्त की ओर उनके द्वारा किये कार्य हमारे देश भारत के लिए अति सम्मानीय ओर आदर उतपन्न करता है।

मदर टेरेसा द्वारा कुल 140 विद्यालयो में से 80 विद्यालय भारत मे खोले गए। मिशनरी ऑफ़ चेरिटी द्वारा साठ हज़ार लोगो को मुफ्त भोजन कराना, अनाथ बच्चों के लिए सत्तर केंद्र स्थापित करना, वृध्दों के लिए इक्यासी वृद्धआश्रम की देखभाल करना तथा पन्द्रह लाख रुपये की ओषधियाँ प्रतिदिन गरीबो में वितरित करना इस संस्था के महत्वपूर्ण कार्यो में से एक है।

निर्मल ह्रदय ओर फर्स्ट लव जैसी संस्थाएं व्रद्ध के लिए बनाई गई। जिसमें अभी लगभग पैतालीस हजार लोग रह रहे है। मदर टेरेसा को सम्मानित करने के लिए जहाँ 1962 में भारत  सरकार द्वारा पदमश्री प्रदान किया गया है, वही फिलिपींस सरकार ने भी मैग्सेसे पुरस्कार दिया।

दसहजार डॉलर के इस पुरस्कार राशि से मदर टेरेसा द्वारा आगरा में कुष्ठआश्रम की स्थापना की गई। मदर टेरेसा का नाम हमारे देश मे हमेशा ही सम्मान ओर आदर के साथ लिया जायेगा।

मदर टेरेसा जी की मृतु

मदर टेरेसा जी रोम पॉप जान पॉल द्वित्तीय से मिलने 1983 में 73 वर्ष की आयु में मिलने गयी थी। वहां उन्हें पहला ह्रदयाघात आया, उसके पश्चात वर्ष 1989 में उन्हें दूसरा ह्रदयाघात आया, जिसके कारण उनका स्वास्थ्य निरंतर गिरता चला गया।

पांच सितंबर 1997 को उनकी मृतु हो गयी। मदर टेरेसा अपने जीवन के अंतिम क्षण के समय भी कलकत्ता में ही थी और उनके जीवन का अंत भी वही हुआ।

मदर टेरेसा जैसी विभूतिया धरती पर कम ही जन्म लेती है। हमे इनके दिखाए मार्गदर्शन में ही समय बिताना चाहिए। अगर हम ज्यादा कुछ नही कर सकते, तो किसी एक व्यक्ति को एक दिन का खाना दे।

क्योंकि गरीब व्यक्ति भले हमे कुछ दे या ना दे पर बदुआ भी नही देगा। हम मदर टेरेसा जैसे महान तो नहीँ बन सकते, किन्तु उनके जीवन के विचारों को अपने जीवन मे उतारकर अपने जीवन को अच्छा कर सकते है।

जिस तरह बिना किसी स्वार्थ के मदर टेरेसा ने अपना सर्वस्व लोगो की सेवा में लगा दिया था। उसी तरह हमें हमारे जीवन मे सहायता और मदद की भावना को जाग्रत करके अपने जीवन का उद्धार करना चाहिए।

इन्हे भी पढ़े :-

  • 10 Lines On Savitribai Phule In Hindi Language

तो यह था मदर टेरेसा पर निबंध, आशा करता हूं कि मदर टेरेसा  पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Mother Teresa) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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मदर टेरेसा पर निबंध – Mother Teresa Essay in Hindi

Mother Teresa Essay in Hindi

Mother Teresa Essay in Hindi: मदर टेरेसा एक बहुत ही महान महिला थी, जिन्होने अपना पूरा जीवन मानवता की भलाई में लगा दिया था। मदर टेरेसा का नाम लेते ही मन में मां की भावनाएं उमड़ पड़ती है। मदर टेरेसा मानवता की एक जीती-जागती मिसाल थी। उन्होने कुष्ठरोग से पीड़ित गरीब लोगों की बहुत मदद की। इसके अलावा गरीब बच्चों को पढ़ाने, और अनाथ बच्चों की देखभाल का काम भी किया।

मदर टेरेसा का जन्म मैसेडोनिया में हुआ था, लेकिन उन्हे पढ़ाई के लिए 1929 में, भारत के कोलकाता शहर में भेजा गया। इसके बाद 1948 में मदर टेरेसा ने स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ली। आज मदर टेरेसा को पूरी दुनिया में एक मां के रूप में याद किया जाता है।

इस आर्टिकल में, मैं आपको मदर टेरेसा के बारे में सभी जानकारी दूंगा, जिससे आप एक अच्छा Mother Teresa Essay in Hindi में लिख सकते है।

मदर टेरेसा पर निबंध – Mother Teresa Essay in Hindi

मदर टेरेसा एक बहुत ही महान महिला है जो पूरे विश्व के लिए मानवता की प्रेरणा स्रोत है। उन्होने अपने पूरे जीवन में केवल दूसरो की मदद की। उनका जन्म मैसेडोनिया में हुआ था, लेकिन उन्होने स्वेच्छा से 1948 में भारतीय नागरिकता प्राप्त की। उन्होने भारत के कोलकाता शहर में गरीब, असहाय और अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए “मिशनरी ऑफ चैरिटी” की स्थापना की थी।

मदर टेरेसा ने गरीब, असहाय और रोगी लोगों की काफी मदद की। उन्होने गरीब बच्चों के लिए स्कूल और अनाथ बच्चों के लिए अनाथालय भी खोले। मदर टेरेसा को मानवता के प्रति सेवाओं के लिए नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न भी दिया गया। मानवता के प्रति उनकी सेवाएं पूरे विश्व में सरहानिय थी।

मदर टेरेसा का जीवन परिचय

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 में मैसेडोनिया के स्कोप्जे शहर में एक अल्बेनियाई परिवार में हुआ था। मदर टेरेसा का पूरा और असली नाम “ अगनेस गोंझा बोयाजिजू ” है। इनके पिता का नाम “ निकोला बोयाजू ” और माता का नाम “ द्राना बोयाजू ” था।

मदर टेरेसा के परिवार में 5 भाई-बहन थे, जिसमें से सबसे छोटी मदर टेरेसा ही थी। टेरेसा एक सुन्दर, अध्ययनशील और परीश्रमी लड़की थीं, जिसे पढ़ना और गीत गाना काफी पसंद था। लेकिन बाद में उन्हे अनुभव हुआ वे अपना पूरा जीवन मानव सेवा में लगाएंगी। इसके बाद उन्होने मानवता के लिए सेवा शुरू कर दी और पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी पहनना भी शुरू कर दिया।

मदर टेरेसा की पढ़ाई – लिखाई

मदर टेरेसा ने अपनी स्कूली शिक्षा लोरेटो कान्वेंट , स्कोप्जे में प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होने 1928 में आयरलैंड के लोरेटो कान्वेंट में नन बनने के लिए प्रवेश लिया, तब उनका नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू नाम रखा गया। इसके बाद उन्हे भारत के कोलकाता शहर में भेज दिया गया, जहां उन्होने 1929 से 1931 तक सेंट टेरेसा स्कूल में शिक्षा के रूप में काम किया।

सन् 1931 में, मदर टेरेसा ने नोविसिएट में प्रवेश लिया, जो नन बनने के लिए ट्रेनिंग का पहला चरण है। उन्होने 1937 में अपनी पहली प्रतिज्ञा ली थी और फिर 1938 में सेंट मेरी हाई स्कूल में टिचर के रूप में काम शुरू किया।

1946 में, मदर टेरेसा को महसूस हुआ कि उन्हे गरीब और असहाय लोगों की मदद करनी चाहिए। इसके बाद उन्होने 1948 में कोलकाता में मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना की, जो एक कैथोलिक धार्मिक संस्थान है।

मदर टेरेसा का भारत में आगमन

सन् 1929 में मदर टेरेसा भारत आयी थी और उन्होने 1931 तक सेंट टेरेसा स्कूल में टिचर के रूप में काम किया। उन्होने 1938 में सेंट मेरी हाई स्कूल में भी टिचर का काम किया था। इसके बाद मदर टेरेसा ने 1948 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की, जो गरीबों, बीमारों, अनाथों और मरने वाले लोगों की सेवा करता है।

मदर टेरेसा की शिक्षा ने सभी लोगों को दूसरों की सेवा करने के लिए प्रेरित किया। उन्होने बहुत सारे स्कूल और अनाथालय बनाए, और लोगों की मदद की। उनकी मिशनरीज संस्था ने 1996 तक करीब 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले। टेरेसा ने “निर्मल हृद्य” और निर्मला शिशु भवन” के नाम आश्रम भी खोले।

मिशनरी ऑफ चैरिटी

मिशनरीज ऑफ चैरिटी (MoC) की स्थापना 7 अक्टूबर, 1950 में मदर टेरेसा ( Mother Teresa ) ने कोलकाता में किया था, जो एक रोमन कैथोलिक धार्मिक संस्थान है। यह संस्थान गरीब, अनाथ और बीमार लोगों की सेवा करने के लिए बनाई गयी थी।

यह एक धर्मनिरपेक्ष संस्थान है जो सभी धर्मों, जातियों और लिंगों के लोगों की सेवा करती है। यह संस्थान काफी सारी सेवाएं प्रदान करती हैं, जैसे- अनाथालय, वृद्धाश्रम, चिकित्सा सहायता, शिक्षा, गरीबों को भोजन और कपड़े प्रदान करना, बीमार लोगों की देखभाल आदि।

मदर टेरेसा के कार्य

मदर टेरेसा एक बहुत महान आत्मा थी, जिन्होने अपनी सेवाओं से पूरी दुनिया को बेहतर बनाने का प्रयास किया। उन्होने कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की, जिससे उन्होने पूरी दुनिया में अनेक स्कूल, हॉस्पीटल और अनाथालय बनाए। इस संस्था ने बहुत सारे गरीब, असहाय और अस्वस्थ लोगों की मदद की, जिसकी वजह से टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न मिला।

मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन गरीब और असहाय लोगों की मदद करने के लिए समर्पित कर दिया। उन्होने पूरी जिंदगी मानवता की सेवा की, और सभी धर्मों, जातियों और लिंगों के लोगों की मदद की। इसके अलावा टेरेसा ने दुनिया भर में यात्रा करके शांति और प्रेम का प्रचार भी किया।

मदर टेरेसा के सम्मान और पुरस्कार

मदर टेरेसा ने मानवता के लिए काफी सारे महान कार्य किए है जिसकी वजह से उन्हे अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार दिए गए हैं। सन् 1962 में भारत सरकार ने मदर टेरेसा को समाजसेवा और जनकल्याण के लिए ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया था।

सन् 1980 में, मदर टेरेसा को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया गया। इसके अलावा विश्वभर में फैले उनके मिशनरी कार्यों की वजह से उन्हे नोबेल शांति पुरस्कार भी दिया गया। इसके अलावा भी मदर टेरेसा को काफी सारे सम्मान और पुरस्कार दिए गए है, क्योंकि टेरेसा की सेवाएं दुनिया भर में सरहानिय योग्य हैं।

मदर टेरेसा का निधन

1983 में, मदर टेरेसा को पहली बार दिल का दौरा आया था, उस समय टेरेसा रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने गयी थी। इसके बाद टेरेसा को 1989 में दूसरा दिल का दौरा पड़ा था, और फिर बढ़ती उम्र के साथ स्वास्थ्य भी बिगड़ने लगा। उन्होने अपनी मौत से पहले ही 13 मार्च 1997 को मिशनरीज ऑफ चैरिटी के मुखिया पद को छोड़ दिया था। इसके बाद 5 सितंबर 1997 को उनका निधन हो गया।

मदर टेरेसा के बारे में 10 लाइन

  • मदर टेरेसा एक महान महिला थी जिसने अपना पूरा जीवन मनवता की भलाई के लिए समर्पित कर दिया।
  • मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को मैसेडोनिया के स्कॉप्जे शहर में एक अल्बेनियाई परिवार में हुआ।
  • मदर टेरेसा का पूरा और असली नाम “अगनेस गोंझा बोयाजिजू” है।
  • उनके पिता का नाम ‘निकोला बोयाजू’ और माता का नाम ‘द्राना बोयाजू’ था।
  • उन्होने 1928 में आयरलैंड के लोरेटो कान्वेंट में नन बनने के लिए एडमिशन लिया।
  • इसके बाद 1929 में टेरेसा को भारत भेजा गया, जहां उन्होने 1948 में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की।
  • मिशनरीज संस्था ने दुनिया भर में गरीब, असहाय और अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए कई आश्रम और अस्पताल बनाए।
  • मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया गया।
  • मदर टेरेसा की मृत्यु दिल के दौरे की वजह से 5 सितंबर, 1997 को हुई थी।
  • पोप फ्रांसिस ने 9 सितंबर 2016 को वेटिकन सिटी में मदर टेरेसा को “संत” की उपाधि दी।

उपसंहार

मदर टेरेसा एक महान महिला थी जिनका जीवन पूरी तरह से गरीब, असहाय और अस्वस्थ लोगों की सेवा के लिए समर्पित था। मदर टेरेसा सभी के लिए एक प्रेरणा स्रोत है कि सभी लोगों को मानवता की खातिर एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। उनका जीवन और कार्य हमें सिखाता है कि हमें लोगों की सहायता करनी चाहिए। हमें उन लोगों के लिए खड़ा होना चाहिए जो न्याय और समानता के लिए हकदार है।

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Essay on Cow in Hindi – गाय पर निबंध

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Mother Teresa Biography in Hindi | मदर टेरेसा की जीवनी

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  • Updated on  
  • अगस्त 18, 2023

Mother Teresa Biography in Hindi

अपने और अपने परिवार के लिए हर कोई सोचता है और बड़े-बड़े सपने देखता है, लेकिन जो लोग समाज और दूसरों के लिए सोचते है, उनकी दुनिया में अलग ही पहचान बनती है। दूसरों के लिए सोचने और कुछ करने वालो में मदर टेरेसा का नाम शामिल है। मदर टेरेसा किसी परिचय की ज़रूरत नहीं हैं। अपना जीवन दूसरों के नाम कर देना ही उनकी असली कमाई है। कई बार परीक्षाओं या इंटरव्यू के दौरान मदर टेरेसा के बारे में पूछा जाता है, इसलिए इस ब्लाॅग में हम Mother Teresa Biography in Hindi विस्तार से जानेंगे।

This Blog Includes:

मदर टेरेसा का शुरुआती जीवन, मदर टेरेसा के बारे में हिंदी में, मदर टेरेसा के कार्य, मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी की शुरुआत, मदर टेरेसा की वैश्विक प्रसिद्धि और पुरस्कार, मदर टेरेसा की मृत्यु, मदर टेरेसा के अनमोल विचार, क्या आप मदर टेरेसा के बारे में ये तथ्य जानते हैं.

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मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 में मैसेडोनिया गणराज्य की राजधानी स्कोप्जे में हुआ था। इनका नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू (Agnes Gonxha Bojaxhiu) था। उन्होंने अपने प्रारंभिक जीवन का बड़ा हिस्सा चर्च में बिताया। लेकिन शुरुआत में उन्होंने नन बनने के बारे में नहीं सोचा था। डबलिन में अपना काम ख़त्म करने के बाद मदर टेरेसा भारत के कोलकाता (कलकत्ता) आ गईं। उन्हें टेरेसा का नया नाम मिला। उनकी मातृ प्रवृत्ति के कारण उनका प्रिय नाम मदर टेरेसा पड़ा, जिससे पूरी दुनिया उन्हें जानती है। जब वह कोलकाता में थीं, तब वह एक स्कूल में शिक्षिका हुआ करती थीं। यहीं से उनके जीवन में जोरदार बदलाव आए और अंततः उन्हें “हमारे समय की संत” की उपाधि से सम्मानित किया गया।

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Mother Teresa Biography in Hindi में मदर टेरेसा के बारे में इस प्रकार बताया गया हैः

  • मदर टेरेसा सुरीली आवाज की धनी थीं और वह चर्च में अपनी मां और बहन के साथ गाया करती थीं।
  • 12 साल की उम्र में वह अपने चर्च के साथ एक धार्मिक यात्रा में गई थी, जिसके बाद उनका मन बदल गया।
  • 1928 में 18 साल के होने पर अगनेस ने बपतिस्मा लिया और क्राइस्ट को अपना लिया। इसके बाद वे डबलिन में जाकर रहने लगी, इसके बाद वे वापस कभी अपने घर नहीं गईं।
  • नन बनने के बाद उनका नया जन्म हुआ और उन्हें सिस्टर मेरी टेरेसा नाम मिला।
  • जब वह केवल 9 वर्ष की थीं, तब उनके पिता निकोला बोजाक्सीहु की मृत्यु हो गई थी। निकोला की मौत के बाद उसके बिजनेस पार्टनर सारा पैसा लेकर भाग गए। उस समय विश्व युद्ध भी चल रहा था, इन सभी कारणों से उनका परिवार भी आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। वह उनके और उनके परिवार के लिए सबसे दुखद समय था।

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1929 में मदर टेरेसा अपने इंस्टीट्यूट की बाकी नन के साथ मिशनरी के काम से भारत के दार्जिलिंग शहर आईं। यहां उन्हें मिशनरी स्कूल में पढ़ाने के लिए भेजा गया था। मई 1931 में उन्होंने नन के रूप में प्रतिज्ञा ली। इसके बाद उन्हें भारत के कलकत्ता शहर के ‘लोरेटो कॉन्वेंट आ गईं’। यहां उन्हें गरीब बंगाली लड़कियों को शिक्षा देने के लिए कहा गया। डबलिन की सिस्टर लोरेटो द्वारा सैंट मैरी स्कूल की स्थापना की गई, जहां गरीब बच्चे पढ़ते थे। मदर टेरेसा को बंगाली व हिंदी दोनों भाषा का बहुत अच्छे से ज्ञान था।

कलकत्ता में उन्होंने वहां की गरीबी, लोगों में फैलती बीमारी, लाचारी व अज्ञानता को करीब से देखा। ये सब बातें उनके मन में घर करने लगी और वे कुछ ऐसा करना चाहती थीं। 1937 में उन्हें मदर की उपाधि से सम्मानित किया गया और 1944 में वे सैंट मैरी स्कूल की प्रिंसीपल भी बन गईं।

वह एक अनुशासित शिक्षिका थीं और स्टूडेंट्स उनसे बहुत स्नेह करते थे। वर्ष 1944 में वह हेडमिस्ट्रेस बन गईं। उनका मन शिक्षण में पूरी तरह रम गया था पर उनके आस-पास फैली गरीबी, दरिद्रता और लाचारी उनके मन को बहुत अशांत करती थी।

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‘मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी’ की शुरुआत 13 लोगों के साथ हुई थी। 1946 में उन्होंने गरीबों, असहायों, बीमारों और लाचारों की मदद करने का मन बना लिया। इसके बाद मदर टेरेसा ने पटना के होली फॅमिली हॉस्पिटल से आवश्यक नर्सिंग ट्रेनिंग पूरी की और 1948 में वापस कोलकाता आ गईं और वहां से पहली बार तालतला गई, जहां वह गरीब बुजुर्गो की देखभाल करने वाली संस्था के साथ रहीं।

धीरे-धीरे उन्होंने अपने कार्य से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। इन लोगों में देश के उच्च अधिकारी और भारत के प्रधानमंत्री भी शामिल थे, जिन्होंने उनके कार्यों की सराहना की। 7 अक्टूबर 1950 को उन्हें वैटिकन सिटी से ‘मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी’ की स्थापना की अनुमति मिली। इस संस्था का उद्देश्य भूखों, निर्वस्त्र, बेघर, दिव्यांगों, चर्म रोग से ग्रसित और ऐसे लोगों की सहायता करना था जिनके लिए समाज में कोई जगह नहीं थी। मदर टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम भी खोले।

जब वह भारत आईं तो उन्होंने यहां बेसहारा और विकलांग बच्चों और सड़क के किनारे पड़े असहाय रोगियों की दयनीय स्थिति को अपनी आंखों से देखा। इसके बाद उन्होंने जनसेवा का जो व्रत लिया, उसका पालन लगातार करती रहीं।

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मदर टेरेसा के काम को दुनिया भर में मान्यता और सराहना मिली है। Mother Teresa Biography in Hindi में हम जानेंगे कि उन्हें विश्व स्तर पर कौन-कौन से अवार्ड दिए गएः

  • 1962 में भारत सरकार से पद्मश्री
  • 1980 में भारत रत्न (देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान)
  • 1985 में अमेरिका का मेडल आफ़ फ्रीडम 
  • 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार (मानव कल्याण के लिए किये गए कार्यों के लिए) 
  • मदर तेरस ने नोबेल पुरस्कार की 192,000 डॉलर की धन-राशि को गरीबों के लिए एक फंड के तौर पर इस्तेमाल करने का निर्णय लिया।
  • 2003 में पॉप जॉन पोल ने मदर टेरेसा को धन्य कहा, उन्हें ब्लेस्ड टेरेसा ऑफ़ कलकत्ता कहकर सम्मानित किया गया था।

वर्ष 1983 में 73 वर्ष की आयु में मदर टेरेसा को पहली बार दिल का दौरा पड़ा। उस समय मदर टेरेसा रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गई थीं। दूसरा दिल का दौरा उन्हें 1989 में आया और उन्हें पेसमेकर लगाया गया। 1991 में मैक्सिको में न्यूमोनिया के बाद उनके ह्रदय की परेशानी और बढ़ गयी। इसके बाद उनकी सेहत लगातार गिरती रही। 5 सितंबर 1997 को उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के समय तक ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में 4000 सिस्टर और 300 अन्य सहयोगी संस्थाएं काम कर रही थीं जो विश्व के 123 देशों में समाज सेवा में कार्यरत थीं।

यह भी पढ़ें: भारत के बैडमिंटन विश्व चैंपियन पीवी सिंधु की प्रेणादायक कहानी

Mother Teresa Biography in Hindi में मदर टेरेसा के अनमोल विचार नीचे बताए जा रहे हैं, जो आपका लोगों के प्रति नजरिया बदल सकते हैंः  

“मैं चाहती हूँ कि आप अपने पड़ोसी के बारे में चिंतित रहें। क्या आप अपने पड़ोसी को जानते हैं?”

“यदि हमारे बीच शांति की कमी है तो वह इसलिए क्योंकि हम भूल गए हैं कि हम एक दूसरे से संबंधित हैं।”

“यदि आप एक सौ लोगों को भोजन नहीं करा सकते हैं, तो कम से कम एक को ही करवाएं।”

Mother Teresa Biography in Hindi

“यदि आप प्रेम संदेश सुनना चाहते हैं तो पहले उसे खुद भेजें। जैसे एक चिराग को जलाए रखने के लिए हमें दिए में तेल डालते रहना पड़ता है।”

“अकेलापन सबसे भयानक ग़रीबी है।”

“अपने क़रीबी लोगों की देखभाल कर आप प्रेम की अनुभूति कर सकते हैं।”

Mother Teresa Biography in Hindi

“अकेलापन और अवांछित रहने की भावना सबसे भयानक ग़रीबी है।”

“अनुशासन लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का पुल है।”

“सादगी से जियें ताकि दूसरे भी जी सकें।”

“प्रत्येक वस्तु जो नहीं दी गयी है खोने के सामान है।”

“हम सभी महान कार्य नहीं कर सकते लेकिन हम कार्यों को प्रेम से कर सकते हैं।”

“हम सभी ईश्वर के हाथ में एक कलम के सामान है।”

मदर टेरेसा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैंः

  • मदर टेरेसा कहा करती थीं कि 12 साल की उम्र से ही उन्हें रोमन कैथोलिक नन बनने का आकर्षण महसूस होने लगा था। एक बच्ची के रूप में भी, उन्हें मिशनरियों की कहानियाँ पसंद थीं।
  • उनका असली नाम एग्नेस गोंक्सा बोजाक्सीहु था। हालाँकि, आयरलैंड में इंस्टीट्यूट ऑफ द ब्लेस्ड वर्जिन मैरी में समय बिताने के बाद उन्होंने मदर टेरेसा नाम चुना।
  • मदर टेरेसा अंग्रेजी, हिंदी, बंगाली, अल्बानियाई और सर्बियाई समेत पांच भाषाएं जानती थीं। यही कारण है कि वह दुनिया के विभिन्न हिस्सों के कई लोगों के साथ संवाद करने में सक्षम थी।
  • मदर टेरेसा को दान और गरीबों के प्रति उनकी मानवीय सेवाओं के लिए 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हालांकि, उन्होंने पूरा पैसा कोलकाता के गरीबों और दान में दान कर दिया।
  • धर्मार्थ कार्य शुरू करने से पहले वह कोलकाता के लोरेटो-कॉन्वेंट स्कूल में हेडमिस्ट्रेस थीं, जहां उन्होंने लगभग 20 वर्षों तक एक शिक्षिका के रूप में काम किया और स्कूल छोड़ दिया क्योंकि वह स्कूल के आसपास की गरीबी के बारे में अधिक चिंतित हो गईं।
  • मदर टेरेसा ने अपना अधिकांश समय भारत में गरीबों और अस्वस्थ लोगों के कल्याण के लिए बिताया।
  • कोलकाता में स्ट्रीट स्कूल और अनाथालय भी शुरू किए।
  • मदर टेरेसा ने 1950 में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के नाम से अपनी संस्था शुरू की। संगठन आज भी गरीबों और बीमारों की देखभाल करते हैं। साथ ही, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में संगठन की कई शाखाएँ हैं।
  • मदर टेरेसा ने वेटिकन और संयुक्त राष्ट्र में भाषण दिया जो एक ऐसा अवसर है जो केवल कुछ चुनिंदा प्रभावशाली लोगों को ही मिलता है।
  • मदर टेरेसा का भारत में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया, जिसे सम्मान स्वरूप सरकार द्वारा केवल कुछ महत्वपूर्ण लोगों को ही दिया जाता है।
  • 2015 में उन्हें रोमन कैथोलिक चर्च के पोप फ्रांसिस द्वारा संत बनाया गया था। इसे कैनोनेज़ेशन के रूप में भी जाना जाता है और अब उन्हें कैथोलिक चर्च में कलकत्ता की सेंट टेरेसा के रूप में जाना जाता है।

1979 में  नोबेल शांति पुरस्कार से।

मिशनरीज ऑफ चैरिटी की।

अगनेस गोंझा बोयाजिजू।

आशा है कि आपको Mother Teresa Biography in Hindi का यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों के   जीवन परिचय  के बारे पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें। 

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मदर टेरेसा पर निबंध – Mother Teresa Essay in Hindi

मदर टेरेसा पर निबंध हिंदी में – Mother Teresa Short Essay in Hindi

मदर टेरेसा का जीवन परिचय – 

‘मदर टेरेसा’ का जन्म 27 अगस्त 1910 ई. में अल्बानिया के स्कोप्य नगर में हुआ था। मदर टेरेसा का बचपन का नाम एगनेस गोजा बोजारिया था, लेकिन 1928 ई.में ‘लोरेटो आर्डर’ में जब इनकी शिक्षा शुरू हुई, तो वहाँ इनका नाम बदलकर ‘सिस्टर टेरेसा’ कर दिया गया।

बचपन से ही ये उदार, कोमल, दयालु और शान्त स्वभाव की थी। अध्ययन-काल में ही इनकी अध्यापिका ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह आगे चलकर संत, बनेगी और यह बात अक्षरसः सत्य साबित हुई।

मदर टेरेसा 1928 ई. में एक अध्यापिका के रूप में भारत आई और कोलकाता के सेंट मेरी हाई स्कूल में बच्चो को इतिहास एवं भूगोल का ज्ञान देने लगी।

भारत की धरती पर कदम रखते ही उनके ह्रदय में सेवा-कर्म करने का जो दीप प्रज्ज्वलित हुआ, उसकी रोशनी में उन्होंने निःस्वार्थ भावना से दिन-दुखियो एवं गरीबो का सहारा बनकर उनके दिलों में एक खास स्थान बना लिया और यही से प्रारंभ हुआ उनकी सेवाओं का वह दौर, जिसने उन्हें विष्व के लाखो-करोड़ो की माँ कहने का सौभाग्य प्राप्त कराया।

उन्हें गरीबो, अनाथो एवं दीन-दुखियो से इतना प्यार था की उनकी निः स्वार्थ सेवा को ‘मदर’ ने भगवान की सेवा कहा और माना। इसीलिए ‘मदर’ ने 1937 ई. में ‘नन’ के रूप में ही रहने का निशचय कर लिया, जिस निशचय पर वे जीवन भर दृढ़ रही।

जब वे 10 सितम्बर, 1946 ई.में दार्जिलिंग जा रही थीं, तो एक ईशवरीय प्रेरणा प्रादुर्भूत हुई। 1947 ई. में मदर ने अध्यापन कार्य छोड़ दिया और कोलकाता की गंदी बस्ती में प्रथम स्कूल की स्थापना की।

आगे इन्होने ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की। 1946 से जीवनपर्यन्त शुद्ध एवं पवित्र संकल्प सामने रखकर ‘मदर टेरेसा’ समाज-सेवा के पुनीत कार्य में तन-मन से जुटी रही।

1952 ई. में उन्होंने कोलकाता में ‘निर्मल ह्रदय होम’ की स्थापना की। 1957 ई. में उन्होंने ‘कुष्ठ रोगालय’ और आगे उन्होंने आसनसोल में “शान्ति गृह” की स्थापना की।

कोलकाता में लगभग 60 केन्द्र और विशव के विभिन्न भागो में 70 केन्द्र खोले गए। इन केन्द्रो में ‘मदर’ के साथ सेवा का व्रत लेने वाली लगभग 700 संन्यासिनियाँ कार्यरत रही।

सेवा करते हुए कभी भी ‘मदर टेरेसा’ ने रंग-भेद, वर्ण-भेद, जातिवाद, धर्म और देश का खयाल नहीं किया। उन्होंने केवल पीड़ितों को आराम देना, उनके कष्ट में हाथ बँटाना और उनकी सेवा करने का ही खयाल किया।

मदर टेरेसा को दिए जाने वाली पुरस्कार की जानकारी – 

उनके इन ईशवरीय कार्यो की चर्चा देश-विदेश में फैलती चली गई। इसके बाद तो इनपर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की झड़ी लग गई।

इन्हे सर्वप्रथम ‘पोप जॉन 23 वाँ’ पुरस्कार मिला, आगे इन्हे ‘टेम्पलटन फाउंडेशन पुरस्कार’ ‘देशिकोतम पुरस्कार’ ‘पद्मश्री’ की उपाधि, कैथोलिक विश्वविद्यालय से ‘डाक्टरेट की डिग्री’ और अन्त में बारी आई ‘नोबेल पुरस्कार’ की।

9 सितम्बर, 1979 ई.में इन्हे ‘नोबेल पुरस्कार’ प्रदान किया गया। भारत की सर्वोच्च उपाधि ‘भारत रत्न’ से भी इन्हे विभूषित किया गया। 5 सितम्बर, 1997 ई. की रात्रि में उनका देहावसान हो गया।

इस प्रकार विदा हो गई पूरे संसार को मानवता का अमृत पिलाने वाली प्रेम, करुणा और दया की देवी मदर टेरेसा, मगर इस अनोखी माँ को दुनिया सदा याद करती रहेगी।

Final Thoughts – 

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Mother Teresa Essay in Hindi: मदर टेरेसा पर निबंध

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Mother Teresa Essay in Hindi

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mother teresa par nibandh (मदर टेरेसा पर निबंध 100 शब्दों में)

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसेडोनिया गणराज्य के स्कोप्जे मे हुआ था. उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों की सेवा करने में गुजार दिया. मदर टेरेसा एक बहुत ही महान महिला की जिन्होंने हमेशा अपने अद्भुत कार्य और उपलब्धियों से दुनिया भर के लोगों का मन जीता है. मदर टेरेसा ने अपने जीवन काल में बहुत सारे लोगों को असंभव काम करने के लिए भी प्रेरित किया है.

मदर टेरेसा का लालन-पालन एग्नेश गोंझा बोयाजीजू नाम के एक अलबेनियाई परिवार में हुआ. मदर टेरेसा का असली नाम एग्नेश गोंझा बोयाजिजू बताया जाता है. मदर टेरेसा के 5 भाई-बहन थे जिसमें वह सबसे छोटी थी. मदर टेरेसा ने अपने कार्यों से सभी को बहुत ही प्रभावित किया है. लोग उनकी याद में 26 अगस्त को उनकी जयंती मनाते हैं.

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essay of mother teresa in hindi (मदर टेरेसा पर निबंध 200 शब्दों में)

गरीबों की सेवा करने के लिए मदर टेरेसा को जाना जाता है. मदर टेरेसा का नाम लेते ही मन में मां की ममता उमड़ने लगती है. असली मायने में मदर टेरेसा को मानवता की मिसाल माना जाता है. मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसेडोनिया गणराज्य के स्कोप्जे मे हुआ था. उनका असली नाम एग्नेश गोंझा बोयाजू बताया जाता है. मदर टेरेसा के माता का नाम द्राना बोयाजू और पिता का नाम निकोला बोयाजू था. 

उन्होंने अपने कार्यों के जरिए समाज में शांति और प्रेम बनाए रखने का काम किया. मदर टेरेसा वर्ष 1929 में भारत आई थी भारत आकर उन्होंने बेसहारा लोगों की सेवा करना शुरू कर दिया. वे कोढ(बीमारी) से पीड़ित लोगों की सेवा करती थी. वर्ष 1948 में मदर टेरेसा ने भारत की नागरिकता प्राप्त की. वही उनको वर्ष 1979 में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला और 1980 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया था. उनके द्वारा मिशनरीज ऑफ चैरिटी मिशन की स्थापना की गई थी. मदर टेरेसा की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने के कारण 5 सितंबर 1997 को हुई.

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essay about mother teresa in hindi (मदर टेरेसा पर निबंध 300 शब्दों में)

मदर टेरेसा अपने 5 भाई-बहनों में से सबसे छोटी थी. मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसेडोनिया गणराज्य के स्कोप्जे मे हुआ था. उनका असली नाम एग्नेश गोंझा बोयाजू बताया जाता है. मदर टेरेसा के माता का नाम द्राना बोयाजू और पिता का नाम निकोला बोयाजू था. उन्होंने बहुत ही कम उम्र में नन बनने का निर्णय लिया. जिसके बाद वह आयरलैंड में लेरेटो ऑफ नन जुड़ गई. साल 1929 में वहां भारत आई थी. उनकी सरलता इस बात से ही स्पष्ट होती है कि वह एक यूरोपियन महिला होने के बावजूद भी हमेशा एक सस्ती सफेद साड़ी की वेशभूषा में ही रहती थी.

मदर टेरेसा ने अपने जीवन की शुरुआत एक अध्यापक के रूप में की थी. उन्होंने कुछ गरीब बच्चों को इकट्ठा करके जमीन पर ही बंगाली वर्णमाला लिख लिख कर सिखाना शुरू कर दिया था. उनकी इस लगन और समर्पण को देखकर दूसरे शिक्षकों द्वारा उनकी सहायता की गई और उनके लिए एक ब्लैक बोर्ड और कुर्सी का इंतजाम कर दिया गया. जिसके कुछ समय बाद उन्हें पढ़ाने के लिए कमरा भी दे दिया गया. धीरे-धीरे करते ही वहां यह पूरे स्कूल के रूप में बदल गया.

स्कूल खोलने के बाद उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना 7 अक्टूबर 1950 को की जिसे बाद में रोमन कैथोलिक चर्च की मान्यता दे दी गई. उनकी संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी के द्वारा वर्ष 1996 तक लगभग 125 देशों में करीबन 755 अनाथालय खोले गए थे. जिनमें करीब 500000 गरीब और जरूरतमंद लोगों की भूख मिटाई जाती थी. 

73 वर्ष की उम्र में उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा था. जिसके बाद बढ़ती उम्र के कारण उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ता गया. अंत में 5 सितंबर 1997 को मदर टेरेसा की मृत्यु हो गई. मदर टेरेसा भारतीय नहीं है फिर भी हमारे मन में उनके प्रति वही सम्मान और प्रेम हैं जो किसी महान व्यक्ति के प्रति होता है. उन्होंने हमारे देश के लिए बहुत कुछ किया है. वे आज भी सभी लोगों के लिए पूरी दुनिया में मिसाल के रूप में जानी जाती है.

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मदर टेरेसा एक शांतिप्रिय महिला थी जिसने अपने संपूर्ण जीवन में लोगों का शांति और सौहार्द का पाठ पढ़ाया। उन्होंने शांति दूत बनकर खुद भी अपना सारा जीवन मानवता की सेवा और उनकी भलाई करने में लगा दिया। वे एक कैथोलिक नन थी उन्होंने केवल 18 साल की उम्र में नन बनना स्वीकार किया।  टेरेसा विश्व प्रशंसनीय महिलाओं में से एक हैं वे प्रभु यीशु की अनुयायी थी और गरीबों की मसीहा। बचपन से ही टेरेसा के मन में दूसरों के प्रति प्रेम दया का भाव रहता था।

इसके बाद जब वे नन बनी तो उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन मानव सेवा में लगा दिया। उन्होंने मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना की जहां असहाय लोगों को आश्रय मिलता था, भोजन मिलता था। टेरेसा यूं तो विदेश में जन्मी और पली बड़ी थी लेकिन उन्होंने बाद में भारत की नागरिकता प्राप्त कर ली. जिसके बाद वे भारत में आकर रहने लगी। उन्होंने अपने कई संस्थान और आश्रम भारत में भी खोले और यहां भी लोगों के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव रखा। आज भी भारत में उनके प्रशंसक है जो उनके पूर्व में किए गए कार्यों की सराहना करते हैं।

मदर टेरेसा का जन्म

मदर टेरेसा का असली नाम एग्नेस गोंझा बोयाजिजू था। इनका जन्म 26 अगस्त सन 1910 को  मसेदोनिया के स्कोप्ज़े शहर में हुआ था। इनके पिता का नाम  निकोला बोयाजू और माता का नाम द्रना बोयाजू था। मदर टेरेसा के पिता बहुत धार्मिक और यीशु के अनुयायी थे जब टेरेसा केवल आठ वर्ष की थी तब इनके पिता का देहांत हो गया था।

जिसके बाद इनकी माता ने आर्थिक संकटों से जुंझते हुए मदर टेरेसा और इनके भाई बहन का भी पालन पोषण किया। उनकी माता उन्हें सदैव मिल बांट कर खाने और भाई चारे का पाठ पढ़ाती थी जो मदर टेरेसा ने काफी अच्छे से अपने जीवन में उतारा। टेरेसा अक्सर अपनी माता के साथ चर्च जाया करती थी जिसके बाद उन्होंने अपना मन और जीवन यीशु को समर्पित कर दिया और 18 वर्ष की उम्र में ही नन बन गई। नन बनने के बाद टेरेसा कभी अपने घर नहीं लौटी वे समाज हित के कार्यों में लग गई।

मदर टेरेसा का जीवन परिचय

मदर टेरेसा को एक ऐसी महिला के रूप में जाना जाता है जिन्होंने सम्पूर्ण विश्व और मानव जाति को शांति का संदेश दिया। अपना घर छोड़ने के बाद टेरेसा डबलिंग में रहने लगी। नन बनने की ट्रेनिंग के दौरान सन 1929 में टेरेसा अपने साथ की नन के साथ भारत आ गई। यहां दार्जलिंग में इन्होंने मिशनरी स्कूल से अपनी शिक्षा प्राप्त की और नन के तौर पर प्रतिज्ञा ली।

इसके बाद उन्हें कलकत्ता शहर में गरीब बंगाली लड़कियों को पढ़ाने के लिए भेजा गया। कलकत्ता में रहते हुए उन्होंने कई गरीब बच्चों को पढ़ाया जहां हर जगह गरीबी और भुखमरी फैली हुई थी। सन 1937 में टेरेसा को मदर शब्द की उपाधि दे दी गई जिसके बाद इन्हें मदर टेरेसा के रूप में जाना जाने लगा। 1944 से लेकर 1948 तक उन्होंने संत मैरी स्कूल की प्रिंसिपल के तौर पर काम किया। अपने प्रिंसिपल पद से इस्तीफा देने के बाद मदर टेरेसा ने पटना से नर्स की ट्रेनिंग ली। जिसके बाद वे दोबारा कलकत्ता लौटी और गरीब लोगों की सेवा में जुट गई।

अपनी आर्थिक तंगी के कारण उन्हें कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ा. लेकिन वे रुकी नहीं और जन सेवा कार्यों में लगी रही। अपने कई प्रयासों द्वारा 7 अक्टूबर 1950 को मदर टेरेसा को मिशनरी ऑफ चैरिटी खोलने की अनुमति मिल गई। इस संस्थान में गरीब, असहाय, लोगों की मदद की जाती थी। उस समय कलकत्ता में भयंकर प्लेग और कुष्ठ रोग को बीमारी फैली थी जिसके कारण लोग ऐसे रोगियों को समाज से बाहर कर देते थे। लेकिन इनकी मदद के लिए मदर टेरेसा आगे आई और उन्हें सहारा दिया। आज भी इन संस्थानों में गरीब लाचार और बीमार लोगों की सेवा की जाती है।

मदर टेरेसा नोबेल पुरस्कार

मदर टेरेसा को उनके कार्यों के लिए कई बार सम्मानित किया गया। उन्होंने निर्मल हृदय और निर्मल शिशु भवन जैसे आश्रम खोले जहां बीमार रोगियों की सेवा और अनाथ बच्चों का लालन पोषण किया जाता था। उन्हें भारत द्वारा सन 1962 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया इसके बाद उन्हें भारत द्वारा सबसे बड़े और सम्मानित रत्न भारत रत्न से नवाज़ा गया। वहीं साल 1985 द्वारा इन्हें अमेरिका में सरकार द्वारा मेडल ऑफ फ्रीडम अवार्ड मिला। इसके बाद टेरेसा को 1979 में नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ये पुरुस्कार उन्हें सरकार द्वारा गरीब और बीमार लोगो की मदद करने के लिए दिया गया था।

मदर टेरेसा एक समाज सेविका और मानवता वादी लोगों में जानी जाती थी। उन्होंने अपने जीवन काल में लोगों की सेवा करने हेतु 100 से अधिक आश्रम खोले। वे खुद भी बेहद शांतिप्रिय महिला थी और लोगों को भी प्रेम और शांति का संदेह दिया करती थी।

वे आज भी कई लोगों की आदर्श हैं और उनके जीवन से प्रेरित होकर कई लोग मानव सेवा कार्यों में अपना योगदान देते हैं। उन्होंने गरीब, असहाय, बीमार दुखी और अनाथ बच्चों के लिए आश्रमों की स्थापना कर उन्हें आश्रय दिया जहां उनके साथ कई और नन भी शामिल थी। अपनी लंबे समय से हो रही अस्वस्थता के कारण सन 1997, 5 सितम्बर के दिन कलकत्ता में मदर टेरेसा का निधन हो गया।

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  • निबंध ( Hindi Essay)

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Essay On Mother Teresa in Hindi

हमारे भारत के लिए कई महान पुरुषों ने अपने बडे़ बडे़ कदम उठाए हैं, उन्हीं के बीच थी एक महिला जिसका नाम था मदर टेरेसा। मदर टेरेसा (Essay on Mother Teresa in Hindi) एक बहुत ही महान महिला थीं जिनका नाम ही हमारे लिए प्रेरणा स्रोत का काम करता है। आज भी इन्हें इनके अद्भुत कार्यों द्वारा याद किया जाता है। इन्होंने दुनिया बदलने के लिए भी बहुत से कदम उठाए हैं। इनकी कार्यों और उपलब्धियों के लिए इन्हें पूरे विश्व भर के लोगों द्वारा प्रशंसा और सम्मान दिया जाता है।

मदर टेरेसा ने अपना सारा जीवन गरीबों की सेवा में लगा दिया। गरीबों और जरूरतमंदों के लिए वे एक सच्ची माँ की तरह थी। वह एक ईश्वर द्वारा भेजी गयी सेवक की भाँति थीं जिन्होंने अपना जीवन झोपड पट्टी समाज के गरीब, असहाय और पीड़ित लोगों पर न्योछावर कर दिया तथा वे एक सेवक की प्रतीक के रूप में पहचानी जाती है।

Table of Contents

मदर टेरेसा का जन्म (Birth Of Mother Teresa In Hindi)

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मैसेडोनिया गण राज्य के सोप्जे में हुआ था। जन्म के बाद उनका वास्तविक नाम अग्नेसे गोन्क्से बुजशीयु था। लेकिन इनके कार्यों और मिली उपलब्धियों के बाद विश्व भर में इन्हें मदर टेरेसा के नाम से जाना जाने लगा क्योंकि उन्होंने एक माँ की तरह अपना सारा जीवन गरीबों और बीमार लोगों की सेवा में लगा दिया।

परिवार और जीवन यापन :-

मदर टेरेसा अपने माता पिता की सबसे छोटी संतान थीं। उनके पिता का नाम ‘निकोला बोयजु’ और माता का नाम ‘द्राना बोयाजु’ था दोनों के सत्कर्म और दान परोपकार से क्रेडिट मदर टेरेसा भी सभी की सेवा में अपना जीवन यापन कर दिया। उनकी माँ एक साधारण गृहिणी थी जो अपना घर परिवार संभालती थी जबकि उनके पिता एक व्यापारी थे। राजनीति में जुट जाने से उनके पिता की मृत्यु हो गई उस समय मदर टेरेसा की उम्र बहुत कम थी पिता की मृत्यु के बाद उनके घर की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी इस दौरान पूरे परिवार ने मिलकर आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए खूब संघर्ष किया था।

उनकी माता चर्च में चैरिटी का कार्य करने लगी साथ ही उनका पूरा परिवार उनके कामो मे हाथ बंटाने लगा। वे ईश्वर पर गहरी आस्था विश्वास और भरोसा रखने वाली महिला थी। मानवता की जीती जागती मिसाल थी मदर टेरेसा। वह अपने घर के साथ साथ पूरे विश्व की मदद करती थी। वह दूसरे देश में कई होने के बावजूद भी भारत देश की भी की मदद व यहाँ के गरीबों की सेवा की थी।

18 वर्ष की उम्र में वो कोलकाता आई थी और गरीब लोगों की सेवा करना ही अपने जीवन का मिशन बना लिया था। कई उत्कृष्ट सेवा के लिए उन्हें सितंबर 2016 से संत की उपाधि से नवाजा जाएगा जिसकों अधिकारिक पुष्टि वैटिकन से हो गई थी ।

शिक्षित जीवन व अध्ययन (Mother Teresa Education Life and Study)

दार्जिलिंग के नवशिक्षित लोरेटों में एक आरंभक के रूप में उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत की जहाँ मदर टेरेसा ने अंग्रेजी और बंगाली का चयन सीखने के लिए किया इस वजह से उन्हें बंगाली टेरेसा भी कहा जाता है दोबारा वो कोलकाता लौटी जहाँ भूगोल की शिक्षक के रूप में सेंट मैरी स्कूल में पढ़ाया ट्रेन के द्वारा दार्जिलिंग के रास्ते में ईश्वर द्वारा उन्हें एक संकेत मिला कि जरूरतमंद लोगों की मदद करो। जल्द उन्होंने आश्रम को छोड़ दिया और झोपड़पट्टी मे रहनेवालो की मदद करने लगी।

मदर टेरेसा आयरलैंड से 6 जनवरी 1929 को कोलकाता में लॉरेटो कॉन्वेंट पहुंची। इसके बाद मदर टेरेसा (Essay on Mother Teresa in Hindi) ने पटना के होली फैमिली हॉस्पिटल छे अवश्यक नर्सिंग ट्रेनिंग पूरी की और 1948 में वापस कोलकाता आ गई। तभी उन्होंने वहाँ के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला और मदद में ‘मिश्नरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की जिसे सात अक्तूबर 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी।

बीमारी से पीड़ित रोगियों की सेवा करने के लिए इन्होंने आश्रम की स्थापना कि, जिसका नाम ‘निर्मल हृदय’ था। वही ‘निर्मला शिशु भवन’ आश्रम की स्थापना भी की और अनाथ और बेघरों बच्चों की सहायता के लिए वहाँ मदर टेरेसा पीड़ित रोगियों की सेवा स्वयं करती थी। मदर टेरेसा की मशीनरीज संस्थान ने 1996 तक करीब 125 देशों में 755 निरीक्षित गृह खोले जिससे करीबन पांच लाख लोगों की भूख मिटाई जाने लगी।

सम्मान व पुरस्कार (Mother Teresa Honors and Awards)

मदर टेरेसा को गरीबों की मदत वा मानवता की सेवा के लिए अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए जिनमें से कुछ पुरस्कार निम्न है :-

  • साल 1962 में भारत सरकार ने उनकी समाज सेवा और जनकल्याण की भावना की कद्र करते हुए उन्हें ‘पद्मश्री’ से नवाजा गया।
  • साल 1980 मे देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया गया।
  • विश्व भर में फैले उनके मशीनरी केक कार्यों की वजह से वाह गरीबों और असहायों की सहायता करने के लिए मदर टेरेसा को नोवेल शांति पुरस्कार दिया गया।

मृत्यु (Mother Teresa Death)

1983 मैं मदर टेरेसा रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गई थी उस समय 73 वर्ष की आयु में संत पहली बार दिल का दौरा पड़ा। बाद 1989 मैं उन्हें दूसरा दिल का दौरा आया। उम्र के साथ साथ उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ता गया। 13 मार्च संत 1997 को उन्होंने मिशन ऑफ चैरिटी के मुखिया पद को छोड़ दिया और पांच सितम्बर 1997 को उनकी मौत हो गई।

जिस आत्मियता के साथ उन्होंने दीन दुखियों की सेवा की उसे देखते हुए पॉप जॉन पॉल द्वितीय ने 19 अक्टूबर 2003 को रोम में मदर टेरेसा को धन्य घोषित किया था।

मदर टेरेसा दूसरे देश के होने के बाद भी उन्होंने हमारे देश को बहुत कुछ दिया है। आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं फिर भी पूरी दुनिया में उनके कार्य को एक मिसाल की तरह जाना जाता है। दुनिया के गरीबों के लिए एक मिसाल थी मदर टेरेसा (Essay on Mother Teresa in Hindi) अभी भी हमारे विश्व मैं इनका नाम पूरे गर्व और सम्मान से लिया जाता है।

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मदर टेरेसा पर निबंध – Mother Teresa Essay in Hindi, मदर टेरेसा पर निबंध: दुनिया के इतिहास में कई मानवतावादी हैं। अचानक से मदर टेरेसा लोगों की उस भीड़ में खड़ी हो गईं।

मदर टेरेसा का जीवन परिचय – Life introduction of Mother Teresa

‘मदर टेरेसा’ का जन्म 27 अगस्त 1910 ई. में अल्बानिया के स्कोप्य नगर में हुआ था। मदर टेरेसा का बचपन का नाम एगनेस गोजा बोजारिया था, लेकिन 1928 ई.में ‘लोरेटो आर्डर’ में जब इनकी शिक्षा शुरू हुई, तो वहाँ इनका नाम बदलकर ‘सिस्टर टेरेसा’ कर दिया गया।

बचपन से ही ये उदार, कोमल, दयालु और शान्त स्वभाव की थी। अध्ययन-काल में ही इनकी अध्यापिका ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह आगे चलकर संत, बनेगी और यह बात अक्षरसः सत्य साबित हुई।

मदर टेरेसा 1928 ई. में एक अध्यापिका के रूप में भारत आई और कोलकाता के सेंट मेरी हाई स्कूल में बच्चो को इतिहास एवं भूगोल का ज्ञान देने लगी।

Mother Teresa Essay in Hindi – मदर टेरेसा पर निबंध

जैसे ही उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा, सेवा करने के लिए उनके हृदय में जो दीप प्रज्ज्वलित हुआ, उस प्रकाश में उन्होंने निःस्वार्थ भाव से बीमार-गरीबों का सहारा बनकर उनके हृदय में विशेष स्थान बना लिया और इसी से उनकी सेवाएं शुरू हो गईं। वो जमाना, जिसने उन्हें दुनिया के करोड़ों करोड़ों की मां कहलाने का सौभाग्य दिया।

उन्हें गरीबों, अनाथों और शोषितों से इतना प्यार था कि उनकी निस्वार्थ सेवा को ‘मां’ ने भगवान की सेवा के रूप में बुलाया और स्वीकार किया। इसीलिए ‘माँ’ ने 1937 ई. में ‘नन’ के रूप में रहने का निश्चय किया, जिस पर वे जीवन भर अडिग रहीं।

10 सितंबर 1946 को जब वे दार्जिलिंग जा रही थीं, तो उन्हें एक दिव्य प्रेरणा मिली। 1947 में, माँ ने पढ़ाना छोड़ दिया और कोलकाता की झुग्गी में पहला स्कूल स्थापित किया।

उन्होंने आगे ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की। मदर टेरेसा 1946 से जीवन के सामने शुद्ध और शुद्ध संकल्प रखते हुए पूरे मन से समाज सेवा के नेक कार्य में लगी हुई हैं।

1952 ई. में उन्होंने कोलकाता में ‘निर्मल हृदय गृह’ की स्थापना की। 1957 में, उन्होंने ‘कुष्ठ रोगालय’ की स्थापना की और आगे उन्होंने आसनसोल में एक “शांति गृह” की स्थापना की।

कोलकाता में लगभग 60 केंद्र और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में 70 केंद्र खोले गए। इन केंद्रों में ‘मां’ के साथ सेवा का व्रत लेने वाले लगभग 700 संन्यासी कार्यरत थे।

मदर टेरेसा ने सेवा करते हुए कभी भी रंगभेद, जाति, जाति, धर्म और देश की परवाह नहीं की। वह केवल पीड़ितों को दिलासा देने, उनकी पीड़ा में उनकी मदद करने और उनकी सेवा करने की परवाह करता था।

मदर टेरेसा को दिए गए पुरस्कार की जानकारी –

उनके इन दिव्य कार्यों की चर्चा देश-विदेश में फैलती रही। इसके बाद उन पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों की झड़ी लग गई।

उन्हें पहले ‘पोप जॉन 23वां’ पुरस्कार मिला, आगे उन्हें ‘टेम्पलटन फाउंडेशन पुरस्कार’, ‘देशीकोटम पुरस्कार’, ‘पद्म श्री’, कैथोलिक विश्वविद्यालय से ‘डॉक्टरेट डिग्री’ और अंत में ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला।

9 सितंबर 1979 को उन्हें ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उन्हें भारत की सर्वोच्च उपाधि ‘भारत रत्न’ से भी नवाजा गया था। 5 सितंबर 1997 ई. की रात को उनका निधन हो गया।

पूरी दुनिया को मानवता का अमृत देने वाली प्रेम, करुणा और दया की देवी मदर टेरेसा इस तरह चली गईं, लेकिन इस अनोखी मां को दुनिया हमेशा याद रखेगी।

Final Thoughts –

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मदर टैरेसा की प्रेरणादायी जीवनी | Mother Teresa Biography in Hindi

Mother Teresa Biography in Hindi / कहा जाता है कि दुनिया में लगभग सारे लोग सिर्फ अपने लिए जीते हैं पर मानव इतिहास में ऐसे कई मनुष्यों के उदहारण हैं जिन्होंने अपना तमाम जीवन परोपकार और दूसरों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा भी ऐसे ही महान लोगों में एक हैं जो सिर्फ दूसरों के लिए जीते हैं। मदर टेरेसा एक ऐसी महान आत्मा थीं जिनका ह्रदय संसार के तमाम दीन-दरिद्र, बीमार, असहाय और गरीबों के लिए धड़कता था। और इसी कारण उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन उनके सेवा और भलाई में लगा दिया। उसके लिए देश सदैव उनका ऋणी रहेगा।

मदर टैरेसा की प्रेरणादायी जीवनी | Mother Teresa Biography in Hindi

मदर टैरेसा का संक्षिप्त परिचय – Mother Teresa Biography in Hindi

प्रेरणादायी मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। उन्होंने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी। उनका असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ (Agnes Gonxha Bojaxhiu ) था। अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है। सच ही तो है कि मदर टेरेसा एक ऐसी कली थीं जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही गरीबों और असहायों की जिन्दगी में प्यार की खुशबू भरी थी।

मदर टेरेसा का जन्म – Early Life of Mother Teresa 

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को मेसिडोनिया की राजधानी स्कोप्जे शहर (Skopje, capital of the Republic of Macedonia) में हुआ था। उनका जन्म 26 अगस्त को हुआ था पर वह खुद अपना जन्मदिन 27 अगस्त मानती थीं। मदर टेरेसा का असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ (Agnes Gonxha Bojaxhiu ) था। उनके पिता का नाम निकोला बोयाजू और माता का नाम द्राना बोयाजू था।

मदर टेरेसा के पिता उनके बचपन में ही मर गए, बाद में उनका लालन-पालन उनकी माता ने किया। पांच भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थीं और उनके जन्म के समय उनकी बड़ी बहन आच्च की उम्र 7 साल और भाई की उम्र 2 साल थी। बाकी दो बच्चे बचपन में ही गुजर गए थे।

मदर टेरेसा एक सुन्दर, अध्ययनशील एवं परिश्रमी लड़की थीं। पढाई के साथ-साथ, गाना उन्हें बेहद पसंद था। वह और उनकी बहन पास के गिरजाघर में मुख्य गायिका थीं। ऐसा माना जाता है की जब वह मात्र बारह साल की थीं तभी उन्हें ये अनुभव हो गया था कि वो अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगायेंगी और 18 साल की उम्र में उन्होंने ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल होने का फैसला ले लिया। तत्पश्चात वह आयरलैंड गयीं जहाँ उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी। अंग्रेजी सीखना इसलिए जरुरी था क्योंकि ‘लोरेटो’ की सिस्टर्स इसी माध्यम में बच्चों को भारत में पढ़ाती थीं।

मदर टेरेसा का भारत आगमन 

1925 में युगोस्लाविया की ईसाई मिशनरियों का एक दल सेवा कार्य हेतु भारत आया। उसने यहाँ की गरीबी और कष्टों के बारे मे अपने देश को एक ख़त लिखा। जिसमे सहायता की मांग की गयी थी। पत्र को पढ़कर अग्नेसे स्वयं को रोक नहीं सकी और सिस्टर टेरेसा तीन अन्य सिस्टरों के साथ आयरलैंड से एक जहाज में बैठकर 6 जनवरी, 1929 को कोलकाता में ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पंहुचीं।

वह बहुत ही अच्छी अनुशासित शिक्षिका थीं और विद्यार्थी उन्हें बहुत प्यार करते थे। वर्ष 1944 में वह सेंट मैरी स्कूल की प्रिंसिपल बन गईं। मदर टेरेसा ने आवश्यक नर्सिग ट्रेनिंग पूरी की और 1948 में वापस कोलकाता आ गईं और वहां से पहली बार तालतला गई, जहां वह गरीब बुजुर्गो की देखभाल करने वाली संस्था के साथ रहीं। उन्होंने मरीजों के घावों को धोया, उनकी मरहमपट्टी की और उनको दवाइयां दीं।

सन् 1949 में मदर टेरेसा ने गरीब, असहाय व अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की, जिसे 7 अक्टूबर, 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी। इसी के साथ ही उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी पहनने का फैसला किया। मदर टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले, जिनमें वे असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों की स्वयं सेवा करती थीं। जिन्हें समाज ने बाहर निकाल दिया हो, ऐसे लोगों पर इस महिला ने अपनी ममता व प्रेम लुटाकर सेवा भावना का परिचय दिया।

मदर टेरेसा का मृत्यु 

उम्र के साथ-साथ उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ता गया। वर्ष 1983 में 73 वर्ष की आयु में उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा। उस समय मदर टेरेसा रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गई थीं। इसके पश्चात वर्ष 1989 में उन्हें दूसरा हृदयाघात आया और उन्हें कृत्रिम पेसमेकर लगाया गया। साल 1991 में मैक्सिको में न्यूमोनिया के बाद उनके ह्रदय की परेशानी और बढ़ गयी। इसके बाद उनकी सेहत लगातार गिरती रही। 13 मार्च 1997 को उन्होंने ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के मुखिया का पद छोड़ दिया और 5 सितम्बर, 1997 को उनकी मौत हो गई।

उनकी मौत के समय तक ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में 4000 सिस्टर और 300 अन्य सहयोगी संस्थाएं काम कर रही थीं जो विश्व के 123 देशों में समाज सेवा में कार्यरत थीं। मानव सेवा और ग़रीबों की देखभाल करने वाली मदर टेरेसा को पोप जॉन पाल द्वितीय ने 19 अक्टूबर, 2003 को रोम में “धन्य” घोषित किया।

इसके बाद 4 सितंबर को मदर टेरेसा को संत की उपाधि प्रदान की गई। जीते-जी 124 बड़े पुरस्कारों से सम्मानित टेरेसा को निधन के बाद यह सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है। भारत रत्न और नोबेल पुरस्कार जीतने वाली वह पहली महिला हैं, जिन्हें वेटिकन में ईसाई समुदाय के धर्म गुरुओं ने संत घोषित किया है। टेरेसा को संत की उपाधि देने के बाद पोप फ्रांसिस ने कहा- “उन्हें संत टेरेसा कहने में कुछ मुश्किल है, उनकी पवित्रता और मासूमियत हमारे बेहद करीब है। इसलिए हम तो उन्हें मदर ही कहेंगे।

समाजसेवा – Mother Teresa

मदर टेरेसा जब भारत आईं तो उन्होंने यहाँ बेसहारा और विकलांग बच्चों तथा सड़क के किनारे पड़े असहाय रोगियों की दयनीय स्थिति को अपनी आँखों से देखा और फिर वे भारत से मुँह मोड़ने का साहस नहीं कर सकीं। वे यहीं पर रुक गईं और जनसेवा का व्रत ले लिया, जिसका वे अनवरत पालन करती रहीं। मदर टेरेसा ने भ्रूण हत्या के विरोध में सारे विश्व में अपना रोष दर्शाते हुए अनाथ एवं अवैध संतानों को अपनाकर मातृत्व-सुख प्रदान किया। उन्होंने फुटपाथों पर पड़े हुए रोत-सिसकते रोगी अथवा मरणासन्न असहाय व्यक्तियों को उठाया और अपने सेवा केन्द्रों में उनका उपचार कर स्वस्थ बनाया, या कम से कम उनके अन्तिम समय को शान्तिपूर्ण बना दिया। दुखी मानवता की सेवा ही उनके जीवन का व्रत है।

पुरस्कार और सम्मान  – Mother Teresa Awards 

1) पद्मश्री (1962) 2) सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’(1980) 3) संयुक्त राज्य अमेरिका ने उन्हें वर्ष 1985 में मेडल आफ़ फ्रीडम से नवाजा (1985) 4) मानव कल्याण के लिए किये गए कार्यों की वजह से मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार मिला (1979) 5) 4 सितंबर को मदर टेरेसा को संत की उपाधि प्रदान की गई

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2 thoughts on “मदर टैरेसा की प्रेरणादायी जीवनी | mother teresa biography in hindi”.

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Good job I am Indian but I relif to mother ‍ Teresa ❣☝☝☝☝☝☝ India ♥ ❤ ♥ ❤ ♥ ❤ ♥ ❤

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  • Mother Teresa Essay

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Essay on Mother Teresa

Mother Teresa is one of the greatest humanitarians the world has ever produced. Her entire life was devoted to serving the poor and needy people. Despite being a non-Indian she had spent almost her whole life helping the people of India. Mother Teresa received her name from the church after the name of St. Teresa. She was a Christian by birth and a spiritual lady. She was a nun by choice. She was undoubtedly a saintly lady with oodles of kindness and compassion in her.  

Mother Teresa is not just an inspiration for millions but also for the generations to come. Students must know about this kind soul who devoted her entire life to the well being of others. Therefore, Vedantu has provided the students with an essay on her which will help the students to learn about her life while also learning essential essay writing skills.

She was a deeply pious lady and a Catholic Christian. Her real name was Agnes Gonxhe Bojaxhiu. She was born in 1910 in Skopje, the capital city of the Republic of Macedonia. She spent a major part of her early life in the church. But in the beginning, she did not think about becoming a nun. Mother Teresa came to Kolkata (Calcutta), India after finishing her work in Dublin. She got the new name of Teresa. Her motherly instincts fetched her beloved name Mother Teresa, by which the whole world knows her. When in Kolkata, she used to be a teacher at a school. It is here from where her life went through vigorous changes and eventually she was bestowed with the title “Saint of Our Times”. 

Work of Mother Teresa

She gave education to the poor kids of her area along with her teaching profession. She began her era of humanity by opening an open-air school where she gave education to poor children. Her journey started without any aid from anyone.

Some days later she started to teach the poor kids and help them regularly. For this purpose, she required a permanent place. The place would be regarded as her headquarters and a place of shelter for the poor and homeless people. 

Mother Teresa had built up Missionaries of Charity where poor and homeless people could spend their entire lives with the help of the church and people. Later on, numerous schools, homes, dispensaries and hospitals were established by her both in and outside of India with the help of the people and the then government.

Death of Mother Teresa

For the people of India and across the borders she was an angel of hope. But the ultimate fate of a human being spares no one. She breathed her last serving people in Kolkata (Calcutta). She made the entire nation cry in her memory. After her death, many poor, needy, homeless and weak people lost their ‘mother’ for the second time. Several memorials were made in her name both in and outside the country.

The death of Mother Teresa was the end of an era. In the starting days of her work, it was quite a difficult task for her to manage and give education to poor children. But she managed those tough missions delicately. She used to teach poor children with the help of a stick by writing on the ground. But after several years of struggle, she ultimately managed to organize proper equipment for teaching with the help of volunteers and a few teachers. In the later part of her life, she built up a dispensary for poor and needy people for treatment. She acquires great respect from the people of India because of her good deeds. Mother Teresa will be remembered by all the Indians. 

Did You Know These Facts About Mother Teresa?

Mother Teresa was born in North Macedonia city on 26 August 1910. Her parents were Nikolle and Dranafile Bojaxhiu.

She had two sisters and was the youngest of three girls to her parents. After Mother Teresa left to join the Sisters of Loreto, she never visited her mother or sisters again.

Mother Teresa used to say that she felt drawn to being a Roman Catholic Nun since the age of 12 years. Even as a child, she loved the stories of missionaries who traveled the world to spread Catholicism. 

Her real name was Agnes Gonxha Bojaxhiu. However, she chose the name Mother Teresa after she spent time in Ireland at the Institute of the Blessed Virgin Mary.

Mother Teresa knew five languages including English, Hindi, Bengali, Albanian and Serbian. This is why she was able to communicate with many people from different parts of the world.

Mother Teresa was awarded the Nobel Peace Prize in 1979 for her humanitarian services to charity and the poor. However, she donated all the money to the poor of Kolkata and in charity.

Before starting with charitable work she was a Headmistress at the Loreto-Convent School in Kolkata where she worked as a teacher for almost 20 years and left the school as she became more concerned about the poverty surrounding the school.

Mother Teresa spent most of her time for the welfare of the poor and the unwell in India. Focusing on helping the people who lived in the slums of Kolkata. 

She focused a lot on helping children who were poor and unwell for which she also started street schools and orphanages to support them in Kolkata.

Mother Teresa started her organization in 1950 by the name of Missionaries of Charity.  The organizations still care for the poor and sick to this day. Also, there are many branches of the organization in different parts of the world.  

Mother Teresa spoke at the Vatican and at the UN which is an opportunity that only a few chosen influential people receive.

Mother Teresa had a state funeral in India, which is only given to a few important people by the government out of respect.

 She was made a Saint by Pope Francis of the Roman Catholic Church in 2015. Also known as canonization and she is now known as St Teresa of Calcutta in the Catholic Church. 

Many roads and buildings are named after her during her lifetime and even after her death. As Albania’s (Modern name for the country Mother Teresa was born in) international airport is named after her as Mother Teresa international airport.

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FAQs on Mother Teresa Essay

1. How did Mother Teresa advocate for the social justice held towards the poor and derived?

Mother Teresa during her lifetime tried bringing God's kingdom by ensuring that everyone was loved and taken great care for. She had her beliefs on inequality - no matter what the age, color or gender is, everyone should be treated equally by all. She spent her life as Jesus would live: To treat everyone as they would want to be treated. Mother Teresa helped the people by providing shelter for them, aiding the unwell, and much more to bring them peace.

2. Why should we learn about Mother Teresa as students?

The students must learn about Mother Teresa as she was the true inspiration of living your life based on your values. She had this belief that the conditions must never deter anyone from his/her personal goals and mission. She taught us that when we live our lives based on positive, time-honored and life-giving values of integrity, charity and compassion, we are blessed with energy and fulfillment that helps us stay positive and empathetic in life. So, students too must learn these values to become better individuals.

3. What are the biggest lessons that Mother Teresa teaches us?

Mother Teresa teaches us some of the greatest lessons of life including the one which says that everyone has a role and a different purpose to live. We all must strive to be the best at what we are gifted, and that should make something beautiful for God. She thought that the greatest poverty is that of being unloved, which is experienced by both the materially rich and the poor who know and experience it.  She truly believed that everyone deserved to be loved.

4. Why is Mother Teresa an inspiration for all?

Mother Teresa is an inspiration in herself as she served people from the schools and orphanages to the people and families she individually had an impact on, she was humble and compassionate, and persevering through the trials of her life. As a Catholic teenager, her life was complicated as one only prepared to be truly committed to the church and God through Confirmation. Even then the simplicity, empathy, and courage that she led her life with inspired billions of people across the globe. The students can learn more about her and other topics on Vedantu’s website for free.

5. How did Mother Teresa demonstrate courage as a strength?

Mother Teresa was a woman of courage as she displayed the strength to help the poor through the tough times in their lives at a time when people didn’t ever do these actions in their dreams also. Her courage is also reflected through her devotion to helping others and the mission to give them a better outlook towards life. She became a nun at an early age and devoted her entire life to the service of the people which shows her incredible strength and courage, this should also be learned by the people of the new age to help serve humanity in the best possible way.

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Francesca and Dorota Mani stand next to each other outside in front of foliage, both folding their hands at their waists.

Teen Girls Confront an Epidemic of Deepfake Nudes in Schools

Using artificial intelligence, middle and high school students have fabricated explicit images of female classmates and shared the doctored pictures.

After boys at Francesca Mani’s high school fabricated and shared explicit images of girls last year, she and her mother, Dorota, began urging schools and legislators to enact tough safeguards. Credit... Shuran Huang

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By Natasha Singer

Natasha Singer has covered student privacy for The Times since 2013. She reported this story from Westfield, N.J.

  • April 8, 2024

Westfield Public Schools held a regular board meeting in late March at the local high school, a red brick complex in Westfield, N.J., with a scoreboard outside proudly welcoming visitors to the “Home of the Blue Devils” sports teams.

But it was not business as usual for Dorota Mani.

In October, some 10th-grade girls at Westfield High School — including Ms. Mani’s 14-year-old daughter, Francesca — alerted administrators that boys in their class had used artificial intelligence software to fabricate sexually explicit images of them and were circulating the faked pictures. Five months later, the Manis and other families say, the district has done little to publicly address the doctored images or update school policies to hinder exploitative A.I. use.

“It seems as though the Westfield High School administration and the district are engaging in a master class of making this incident vanish into thin air,” Ms. Mani, the founder of a local preschool, admonished board members during the meeting.

In a statement, the school district said it had opened an “immediate investigation” upon learning about the incident, had immediately notified and consulted with the police, and had provided group counseling to the sophomore class.

A blue sign on manicured grounds says, “Westfield High School.” In the background, a large, low brick building sits under a blue sky.

“All school districts are grappling with the challenges and impact of artificial intelligence and other technology available to students at any time and anywhere,” Raymond González, the superintendent of Westfield Public Schools, said in the statement.

Blindsided last year by the sudden popularity of A.I.-powered chatbots like ChatGPT, schools across the United States scurried to contain the text-generating bots in an effort to forestall student cheating. Now a more alarming A.I. image-generating phenomenon is shaking schools.

Boys in several states have used widely available “nudification” apps to pervert real, identifiable photos of their clothed female classmates, shown attending events like school proms, into graphic, convincing-looking images of the girls with exposed A.I.-generated breasts and genitalia. In some cases, boys shared the faked images in the school lunchroom, on the school bus or through group chats on platforms like Snapchat and Instagram, according to school and police reports.

Such digitally altered images — known as “deepfakes” or “deepnudes” — can have devastating consequences. Child sexual exploitation experts say the use of nonconsensual, A.I.-generated images to harass, humiliate and bully young women can harm their mental health, reputations and physical safety as well as pose risks to their college and career prospects. Last month, the Federal Bureau of Investigation warned that it is illegal to distribute computer-generated child sexual abuse material, including realistic-looking A.I.-generated images of identifiable minors engaging in sexually explicit conduct.

Yet the student use of exploitative A.I. apps in schools is so new that some districts seem less prepared to address it than others. That can make safeguards precarious for students.

“This phenomenon has come on very suddenly and may be catching a lot of school districts unprepared and unsure what to do,” said Riana Pfefferkorn , a research scholar at the Stanford Internet Observatory, who writes about legal issues related to computer-generated child sexual abuse imagery .

At Issaquah High School near Seattle last fall, a police detective investigating complaints from parents about explicit A.I.-generated images of their 14- and 15-year-old daughters asked an assistant principal why the school had not reported the incident to the police, according to a report from the Issaquah Police Department. The school official then asked “what was she supposed to report,” the police document said, prompting the detective to inform her that schools are required by law to report sexual abuse, including possible child sexual abuse material. The school subsequently reported the incident to Child Protective Services, the police report said. (The New York Times obtained the police report through a public-records request.)

In a statement, the Issaquah School District said it had talked with students, families and the police as part of its investigation into the deepfakes. The district also “ shared our empathy ,” the statement said, and provided support to students who were affected.

The statement added that the district had reported the “fake, artificial-intelligence-generated images to Child Protective Services out of an abundance of caution,” noting that “per our legal team, we are not required to report fake images to the police.”

At Beverly Vista Middle School in Beverly Hills, Calif., administrators contacted the police in February after learning that five boys had created and shared A.I.-generated explicit images of female classmates. Two weeks later, the school board approved the expulsion of five students, according to district documents . (The district said California’s education code prohibited it from confirming whether the expelled students were the students who had manufactured the images.)

Michael Bregy, superintendent of the Beverly Hills Unified School District, said he and other school leaders wanted to set a national precedent that schools must not permit pupils to create and circulate sexually explicit images of their peers.

“That’s extreme bullying when it comes to schools,” Dr. Bregy said, noting that the explicit images were “disturbing and violative” to girls and their families. “It’s something we will absolutely not tolerate here.”

Schools in the small, affluent communities of Beverly Hills and Westfield were among the first to publicly acknowledge deepfake incidents. The details of the cases — described in district communications with parents, school board meetings, legislative hearings and court filings — illustrate the variability of school responses.

The Westfield incident began last summer when a male high school student asked to friend a 15-year-old female classmate on Instagram who had a private account, according to a lawsuit against the boy and his parents brought by the young woman and her family. (The Manis said they are not involved with the lawsuit.)

After she accepted the request, the male student copied photos of her and several other female schoolmates from their social media accounts, court documents say. Then he used an A.I. app to fabricate sexually explicit, “fully identifiable” images of the girls and shared them with schoolmates via a Snapchat group, court documents say.

Westfield High began to investigate in late October. While administrators quietly took some boys aside to question them, Francesca Mani said, they called her and other 10th-grade girls who had been subjected to the deepfakes to the school office by announcing their names over the school intercom.

That week, Mary Asfendis, the principal of Westfield High, sent an email to parents alerting them to “a situation that resulted in widespread misinformation.” The email went on to describe the deepfakes as a “very serious incident.” It also said that, despite student concern about possible image-sharing, the school believed that “any created images have been deleted and are not being circulated.”

Dorota Mani said Westfield administrators had told her that the district suspended the male student accused of fabricating the images for one or two days.

Soon after, she and her daughter began publicly speaking out about the incident, urging school districts, state lawmakers and Congress to enact laws and policies specifically prohibiting explicit deepfakes.

“We have to start updating our school policy,” Francesca Mani, now 15, said in a recent interview. “Because if the school had A.I. policies, then students like me would have been protected.”

Parents including Dorota Mani also lodged harassment complaints with Westfield High last fall over the explicit images. During the March meeting, however, Ms. Mani told school board members that the high school had yet to provide parents with an official report on the incident.

Westfield Public Schools said it could not comment on any disciplinary actions for reasons of student confidentiality. In a statement, Dr. González, the superintendent, said the district was strengthening its efforts “by educating our students and establishing clear guidelines to ensure that these new technologies are used responsibly.”

Beverly Hills schools have taken a stauncher public stance.

When administrators learned in February that eighth-grade boys at Beverly Vista Middle School had created explicit images of 12- and 13-year-old female classmates, they quickly sent a message — subject line: “Appalling Misuse of Artificial Intelligence” — to all district parents, staff, and middle and high school students. The message urged community members to share information with the school to help ensure that students’ “disturbing and inappropriate” use of A.I. “stops immediately.”

It also warned that the district was prepared to institute severe punishment. “Any student found to be creating, disseminating, or in possession of AI-generated images of this nature will face disciplinary actions,” including a recommendation for expulsion, the message said.

Dr. Bregy, the superintendent, said schools and lawmakers needed to act quickly because the abuse of A.I. was making students feel unsafe in schools.

“You hear a lot about physical safety in schools,” he said. “But what you’re not hearing about is this invasion of students’ personal, emotional safety.”

Natasha Singer writes about technology, business and society. She is currently reporting on the far-reaching ways that tech companies and their tools are reshaping public schools, higher education and job opportunities. More about Natasha Singer

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मदर टेरेसा पर निबंध

Essay on Mother Teresa in Hindi

मदर टेरेसा पर निबंध : Essay on Mother Teresa in Hindi :- आज के इस लेख में हमनें ‘मदर टेरेसा पर निबंध’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है। यदि आप मदर टेरेसा पर निबंध से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-

मदर टेरेसा पर निबंध : Essay on Mother Teresa in Hindi

प्रस्तावना :-

मदर टेरेसा एक महान महिला थी, जो कि इस संसार के लिए एक प्रेरणा है। वह इस संसार में मानवता का एक रूप बनकर रही। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन दूसरों की सहायता के लिए कुर्बान कर दिया।

उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में सिर्फ मानवता की सहायता करना ही लक्ष्य बना रखा था। उन्हें दूसरों की सहायता की सीख अपने माता-पिता से मिली। वह ‘एक महिला, एक मिशन’ के रूप में थी।

मदर टेरेसा का निजी जीवन :-

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 में मेसेडोनिया गणराज्य के सोप्जे में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ‘अग्नेसे गोंकशे बोजाशियु’ था। उनके पिता का नाम ‘निकोला बोयाजू’ था।

उनके पिता पेशे से एक व्यापारी थे और उनकी माता का नाम ‘द्राना’ था, उनकी माता एक गृहणी थी। वह कुल मिलाकर पांच भाई-बहन थे। मदर टेरेसा उनके माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी।

राजनीति में जुड़ने के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। जिस कारण उनके परिवार की आर्थिक स्थिति काफी ख़राब हो गयी थी। उनकी स्थिति इतनी अधिक ख़राब हो गई थी कि उन्हें चर्च पर निर्भर रहना पड़ा था।

मदर टेरेसा के कार्य :-

मात्र 18 वर्ष की आयु में उन्होंने धार्मिक कार्यों से जुड़ने का फैसला किया। जिसके बाद वह डुबलिन के लौरेटो सिस्टर से जुड़ गई। इस तरह उन्होंने दूसरों की सहायता करने के लिए अपने जीवन की शुरुआत की।

सन 1928 में वह एक आश्रम से जुड़ी और उनके साथ काम किया। इसके बाद वह 6 जनवरी 1929 को भारत के कोलकाता राज्य में लौरेटो कॉन्वेंट पहुंची। इसके बाद उन्होंने भारत के पटना राज्य में जाकर होली फैमिली हॉस्पिटल में अपनी नर्सिंग की ट्रेनिंग पूरी की।

जिसके बाद सन 1948 में कोलकता वापस आकर उन्होंने वहाँ पर बच्चों के लिए एक विद्यालय खोला। इसके कुछ समय के बाद ही उन्होंने लोगों की सहायता के लिए एक मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की और इसे चर्च रोमन केथोलिक से मान्यता मिली।

इसकी इस संस्था ने कईं हजारों लोगों की सहायता की और कईं लोगों की भूख मिटाई। उन्होंने 125 देशों में 755 निराश्रित गृहों की स्थापना की।

उन्होंने ‘निर्मल ह्रदय’ एवं ‘निर्मल शिशु भवन’ भी खोलें है, जिससे अनाथ बच्चों को घर व खाना मिल सके और गरीब बीमार लोगों का इलाज किया जा सके। उन्हें अपने कार्यों के लिए सितंबर 2016 को संत की उपाधि दी गई।

मदर टेरेसा के सम्मान :-

मदर टेरेसा के महान कार्यों को देखते हुए उन्हें कईं सम्मानों से नवाजा गया है। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। सम्पूर्ण विश्व में गरीबों की सहायता करने के लिए उन्हें नोबेल शांति पुरुष्कार दिया गया है।

सन 1962 में उनके कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसके बाद सन 1980 में भारत सरकार द्वारा उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न से सम्मानित किया गया था।

मदर टेरेसा ने इस संसार को महानता का एक नया संदेश दिया है। उनके महान कार्य हम सभी के लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने हमेशा प्रत्येक जरूरतमंद मनुष्य की सहायता की। 5 सितम्बर 1997 को मदर टेरेसा ने इस दुनिया को अलविदा कहा।

सन 1983 में उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा। इसके बाद सन 1989 में उन्हें दूसरी बार दिल का दौरा पड़ा। इसके बाद अंत में सन 1997 में मदर टेरेसा की मृत्यु हो गई। 13 मार्च 1997 को ही उन्होंने ‘मिशन ऑफ चैरिटी’ के मुखिया के पद को छोड़ दिया था।

अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।

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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।

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