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मन के हारे हार है, मन के जीते जीत Man Ke Haare Haar – Man ke Jeete Jeet

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत Man Ke Haare Haar - Man ke Jeete Jeet

इस लेख में जानें और पढ़ें ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ पंक्ति पर निबंध Essay on ‘Man Ke Haare Haar, Man ke Jeete Jeet’.

लम्बी टाँगे हो जाने से, सफर नहीं कटता है जो मन से लंगड़ा हो जाये, उसे कौन चला सकता है

मनुष्य जीवन में विभिन्न तरह की परिस्थितियां आ सकती हैं। जिनका मनुष्य को सामना करना ही पड़ता है। परिस्थितियां कई तरह की हो सकती हैं – अच्छी या बुरी, हार या जीत आदि। मनुष्य जीवन भर अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु लगा रहता है। लेकिन वे उद्देश्य पूरे न हो पाएं तो वह निराश हो जाता है और वह अपने आप को असफल मान लेता है।

लोगों की सोच का सीधा सम्बन्ध उसके मस्तिष्क से होता है। अगर वह नकारात्मक सोच रखता है तो परिणाम भी नकारात्मक होते हैं और स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसी के विपरीत यदि मनुष्य ये सोचे कि वह सारे कार्यों को साकार कर सकता है, सकारात्मक सोच रखता है तो कई सारी समस्याएं हल हो सकती हैं।

मनुष्य के जीवन में कई सारी ऐसी अवस्थाएं आती हैं जिसमें वह हताश हो जाता है। ऐसी स्थिति में वह बिना किसी प्रयास के ही हार मान लेता है। किसी भी समस्या का हल हार मान लेने से तो नहीं निकलता। इसीलिए हमें हमेशा अपने कार्यों को सुचारु रूप से करते रहना चाहिए चाहे हमें जितनी भी असफलताएं मिले।

बार-बार असफल होने वाला व्यक्ति ही कोशिश करने पर सबसे बड़ी सफलता प्राप्त कर सकता है। अगर आप इस सोच के साथ जीते हो कि सफलता अवश्य मिलेगी तो आपको सफलता जरूर मिलेगी, लेकिन आप पहले से ही अगर हार मान लोगे तो आप अपना बेस्ट देने में भी असक्षम हो जाओगे।

राष्ट्र कवि स्व. श्री मैथली शरण गुप्त जी ने भी कहा है कि “नर हो न निराश करो मन को”

अर्थात यह जीवन अमूल्य है, जीवन में अगर कोई विपत्ति या परेशानी आ भी जाए तो निराश होने की आवश्यकता नहीं है। इस तरह हार मान लेने से आप अगर निराश होते हो तो यह मानव जीवन व्यर्थ चला जाता है। अपने मानव मूल्यों को आपको समझना चाहिए। अगर आप हार मान कर बैठ जायेंगे तो आप कार्यो को सही ढंग से नहीं कर पाएंगे।

अगर आपको यह मानव शरीर मिला है तो आपको अवश्य ही कुछ अच्छे कार्य करना चाहिए ऐसे ही व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। जीवन में बड़ी सी बड़ी असफताए ही क्यों न आये लेकिन आपको हार नहीं मानना चाहिए। आपके कार्य दूसरों को प्रेरित करने के लिए हैं नाकि आप से लोगों को यह निराश होने की प्रेरणा मिले। इसीलिए लोगों के लिए आप प्रेरणा बने। जिससे एक अच्छे समाज का निर्माण हो सके।

सोचना एक स्टेट ऑफ़ माइंड है। कुछ ऐसी घटनाओं को यहाँ बताया जा रहा है जिससे आप समझ सकते हैं कि ये सिर्फ आपकी मनोवृत्ति है। आप सोचिये कि आप गहरी नींद में हैं और एक सांप आपके पास से होकर निकल गया है।

तब आपको डर नहीं लगेगा क्योंकि आप सो रहे थे और सांप ने भी कुछ नहीं किया। लेकिन दूसरी तरफ जब आप जाग रहे हो और आपके काफी दूरी पर कोई सांप आ जाये तो आपकी डर के कारण हालत खराब हो जाएगी। जबकि सांप तो दूर है और उसने कुछ नहीं किया तब भी आप सोच कर परेशान हो गए।

अब दूसरा उदहारण – एक बार की बात है किसी बस में बहुत से यात्री सफर कर रहे थे। बस ठसा – ठस यात्रियों से भरी हुई थी। उसमें एक ब्राह्मण भी था जो खड़े होकर सफर कर रहा था। चूँकि बस बहुत भरी हुई थी तो उन्ही से सट कर खड़े हुए सह यात्री को किसी ने उसके नाम से आवाज़ लगाई।

ब्राह्मण ने वह नाम सुना और छी-छी करने लगा। क्योंकि उसके नाम से ब्राह्मण को लगा कि वह कोई नीची जाति का व्यक्ति है और वह उससे स्पर्श हो गया और वह अपवित्र हो गया। जबकि दोनों मानव शरीर ही हैं। जबकि कुछ देर पहले ब्राह्मण को उस व्यक्ति से कोई परेशानी नहीं थी। यह तो केवल लोगों की सोच का फर्क है। इसीलिए जैसा आप सोच लेते हो वैसा असर आप पर पड़ता है।

अगर जीवन में कभी आप हार जाये तो निराश होने की आवश्यकता नहीं क्योंकि हार और जीत लगी ही रहती है। सफलता के साथ-साथ आपको असफलता का अनुभव होना भी जरुरी है। क्योंकि तभी आप एक पूर्ण व्यक्ति बन सकते हैं। और वैसे भी सफल-असफल जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं है। सिर्फ एक मन का सोचना है इसीलिए सदा अपने अंदर सकारात्मक सोच को बनाये रखिये।

कहानी से समझें – कैसे (मन के हारे हार है, मन के जीते जीत) है

एक बार की बात है दो राज्यों के बीच युद्ध छिड़ गया। जो छोटा राज्य था वह बहुत डरा हुआ था। क्योंकि उन्हें लग रहा था कि वे हार जायेंगे क्योंकि उनके पास कम सैनिक थे। जबकि दूसरे राज्य के पास बहुत सारे सैनिक थे। इसी कारण से छोटे राज्य के सेनापतियों ने युद्ध में जाने से मना कर दिया। उनका कहना था कि जब हार निश्चित ही है तो क्यों युद्ध लड़ने के लिए जाएँ और उन्होंने पहले से ही हार मान ली। ऐसी स्थिति को देखकर राजा सोच में पड़ गया। लेकिन वह हार मानने वालों में से नहीं था। तब राजा एक गांव में गया और एक फ़कीर से प्रार्थना की कि क्या आप मेरे युद्ध में मेरे सेनापति बनकर जा सकते हैं। तभी वहां खड़े सेनापति को आश्चर्य हुआ कि राजा एक ऐसे फ़कीर से युद्ध लड़ने को कह रहा है जिसने कभी युद्ध लड़ा ही नहीं न उसे युद्ध का कोई ज्ञान है। लेकिन फ़कीर ने राजा की बात मान ली। लेकिन सैनिकों को युद्ध में उस फ़कीर के साथ जाने में डर लग रहा था। लेकिन फ़कीर में युद्ध के प्रति जोश भरा था  और सैनिकों को उसके साथ जाना ही पड़ा। युद्ध में जाते हुए बीच में ही एक मंदिर में फ़कीर ने सबको रोका और कहा कि युद्ध में जाने से पहले भगवान की भी मर्ज़ी जान ले। उसने अपनी जेब में से एक सिक्का निकला और बोला मैं ये सिक्का उछालूँगा अगर ये सीधा आया तो जीत अपनी अगर उल्टा आया तो जीत दुश्मनों की होगी। उसने सिक्का उछाला और वह सीधा आया। तब फ़कीर ने सबसे कहा कि अब आप सभी निश्चिन्त हो जाओ। जीत हमारी ही होगी। हार के बारे में भूल जाओ क्योंकि सिक्का सीधा गिरा है और ईश्वर हमारे साथ है । फिर क्या था सभी ने मान लिया कि अब तो जीत पक्की है और युद्ध के लिए निकल पड़े और सभी को परास्त कर दिया। युद्ध जीत कर जब वे सभी लौट रहे थे तब वही मंदिर बीच में आया और सभी वहां रुक कर ईश्वर को धन्यवाद करने लगे कि आपकी कृपा से हम युद्ध जीत गए। तब फ़कीर बोला कि चलते – चलते जरा एक बार इस सिक्के को भी देख लो। फ़कीर ने सिक्का सबको दिखाया तब सबने देखा कि वह सिक्का तो दोनों तरफ से सीधा ही है। तब फ़कीर बोला कि तुम्हे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी सोच ने जिताया है क्योंकि तुम जीत की आशा से भर गए थे। हार को भूल गए थे। तो अब आप सभी को समझ में आ गया होगा कि हम जैसा सोचेंगे वैसा हमारे साथ होने लगेगा। हमने जीत के बारे में सोचा तो हमे जीत हासिल हुई। इसीलिए कहा जाता है कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’।

जीवन में सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम कितना सकारात्मक सोचते हैं। इसीलिए कभी हताश मत होइए, हमेशा सकारात्मक सोच रखिये जिससे आप सदा सफलता प्राप्त करेंगे। इसीलिए कहा जाता है – “ मन के हारे हार है , मन के जीते जीत ।”

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It is the Mind which Wins and Defeats Essay In Hindi

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – It is the Mind which Wins and Defeats Essay In Hindi

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – essay on it is the mind which wins and defeats” in hindi.

  • प्रस्तावना,
  • उक्ति का आशय,
  • मन की दृढ़ता के कुछ उदाहरण,
  • कर्म के सम्पादन में मन की शक्ति,
  • सफलता की कुंजी : मन की स्थिरता, धैर्य एवं सतत कर्म,
  • मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए?

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – Man Ke Haare Haar Hai Man Ke Jeete Jeet Par Nibandh

प्रस्तावना– संस्कृत की एक कहावत है–’मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः’ अर्थात् मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है। तात्पर्य यह है कि मन ही मनुष्य को सांसारिक बन्धनों में बाँधता है और मन ही बन्धनों से छुटकारा दिलाता है। यदि मन न चाहे तो व्यक्ति बड़े–से–बड़े बन्धनों की भी उपेक्षा कर सकता है। शंकराचार्य ने कहा है कि “जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत् को जीत लिया।” मन ही मनुष्य को स्वर्ग या नरक में बिठा देता है। स्वर्ग या नरक में जाने की कुंजी भगवान् ने हमारे हाथों में ही दे रखी है।

उक्ति का आशय–मन के महत्त्व पर विचार करने के उपरान्त प्रकरण सम्बन्धी उक्ति के आशय पर विचार किया जाना आवश्यक है। यह उक्ति अपने पूर्ण रूप में इस प्रकार है-

दुःख–सुख सब कहँ परत है, पौरुष तजहु न मीत।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत॥ अर्थात् दुःख और सुख तो सभी पर पड़ा करते हैं, इसलिए अपना पौरुष मत छोड़ो; क्योंकि हार और जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर है, अर्थात् मन के द्वारा हार स्वीकार किए जाने पर व्यक्ति की हार सुनिश्चित है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति का मन हार स्वीकार नहीं करता तो विपरीत परिस्थितियों में भी विजयश्री उसके चरण चूमती है। जय–पराजय, हानि–लाभ, यश–अपयश और दुःख–सुख सब मन के ही कारण हैं; इसलिए व्यक्ति जैसा अनुभव करेगा वैसा ही वह बनेगा।

मन की दृढ़ता के कुछ उदाहरण हमारे सामने ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें मन की संकल्प–शक्ति के द्वारा व्यक्तियों ने अपनी हार को विजयश्री में परिवर्तित कर दिया। महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की जीत का कारण यही था कि श्रीकृष्ण ने उनके मनोबल को दृढ़ कर दिया था। नचिकेता ने न केवल मृत्यु को पराजित किया, अपितु यमराज से अपनी इच्छानुसार वरदान भी प्राप्त किए। सावित्री के मन ने यमराज के सामने भी हार नहीं मानी और अन्त में अपने पति को मृत्यु के मुख से निकाल लाने में सफलता प्राप्त की।

अल्प साधनोंवाले महाराणा प्रताप ने अपने मन में दृढ़–संकल्प करके मुगल सम्राट अकबर से युद्ध किया। शिवाजी ने बहुत थोड़ी सेना लेकर ही औरंगजेब के दाँत खट्टे कर दिए। द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा किए गए अणुबम के विस्फोट ने जापान को पूरी तरह बरबाद कर दिया था, किन्तु अपने मनोबल की दृढ़ता के कारण आज वही जापान विश्व के गिने–चुने शक्तिसम्पन्न देशों में से एक है। दुबले–पतले गांधीजी ने अपने दृढ़ संकल्प से ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया था। इस प्रकार के कितने ही उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जिनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हार–जीत मन की दृढ़ता पर ही निर्भर है।

Man Ke Haare Haar Hai Man Ke Jeete Jeet Par Nibandh

कर्म के सम्पादन में मन की शक्ति– प्राय: देखा गया है कि जिस काम के प्रति व्यक्ति का रुझान अधिक होता है, उस कार्य को वह कष्ट सहन करते हुए भी पूरा करता है। जैसे ही किसी कार्य के प्रति मन की आसक्ति कम हो जाती है, वैसे–वैसे ही उसे सम्पन्न करने के प्रयत्न भी शिथिल हो जाते हैं। हिमाच्छादित पर्वतों पर चढ़ाई करनेवाले पर्वतारोहियों के मन में अपने कर्म के प्रति आसक्ति रहती है। आसक्ति की यह भावना उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है।

सफलता की कुंजी : मन की स्थिरता, धैर्य एवं सतत कर्म–वस्तुत: मन सफलता की कुंजी है। जब तक न में किसी कार्य को करने की तीव्र इच्छा रहेगी, तब तक असफल होते हुए भी उस काम को करने की आशा बनी रहेगी। एक प्रसिद्ध कहानी है कि एक राजा ने कई बार अपने शत्रु से युद्ध किया और पराजित हुआ। पराजित होने पर वह एकान्त कक्ष में बैठ गया। वहाँ उसने एक मकड़ी को ऊपर चढ़ते देखा।

मकड़ी कई बार ऊपर चढ़ी, किन्तु वह बार–बार गिरती रही। अन्तत: वह ऊपर चढ़ ही गई। इससे राजा को अपार प्रेरणा मिली। उसने पुनः शक्ति का संचय किया और अपने शत्रु को पराजित करके अपना राज्य वापस ले लिया। इस छोटी–सी कथा में यही सार निहित है कि मन के न हारने पर एक–न–एक दिन सफलता मिल ही जाती है।

मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए?–प्रश्न यह उठता है कि मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए? मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए सबसे पहले उसे अपने वश में रखना होगा।

अर्थात् जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसने संसार को वश में कर लिया, किन्तु जो मनुष्य मन को न जीतकर स्वयं उसके वश में हो जाता है, उसने मानो सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली।

मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना को दूर करना भी आवश्यक है। जब व्यक्ति यह सोचता है कि मैं अशक्त हूँ, दीन–हीन हूँ, शक्ति और साधनों से रहित हूँ तो उसका मन कमजोर हो जाता है। इसीलिए इस हीनता की भावना से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मन को शक्तिसम्पन्न बनाना आवश्यक है।

उपसंहार– मन परम शक्तिसम्पन्न है। यह अनन्त शक्ति का स्रोत है। मन की इसी शक्ति को पहचानकर ऋग्वेद में यह संकल्प अनेक बार दुहराया गया है–”अहमिन्द्रो न पराजिग्ये” अर्थात मैं शक्ति का केन्द्र हैं और जीवनपर्यन्त मेरी पराजय नहीं हो सकती है। यदि मन की इस अपरिमित शक्ति को भूलकर हमने उसे दुर्बल बना लिया तो सबकुछ होते हुए भी हम अपने को असन्तुष्ट और पराजित ही अनुभव करेंगे और यदि मन को शक्तिसम्पन्न बनाकर रखेंगे तो जीवन में पराजय और असफलता का अनुभव कभी न होगा।

वाघा बार्डर Summary in Hindi

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत पर निबंध | Essay on “It is the Mind which Wins and Defeats” in Hindi

essay on man ke haare haar

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत पर निबंध | Essay on “It is the Mind which Wins and Defeats” in Hindi!

ADVERTISEMENTS:

“जो भी परिस्थितियाँ मिलें , काँटे चुभें कलियाँ खिले,

हारे नहीं इंसान , है संदेश जीवन का यही ।”

मनुष्य का जीवन चक्र अनेक प्रकार की विविधताओं से भरा होता है जिसमें सुख- दु:खु, आशा-निराशा तथा जय-पराजय के अनेक रंग समाहित होते हैं । वास्तविक रूप में मनुष्य की हार और जीत उसके मनोयोग पर आधारित होती है । मन के योग से उसकी विजय अवश्यंभावी है परंतु मन के हारने पर निश्चय ही उसे पराजय का मुँह देखना पड़ता है ।

मनुष्य की समस्त जीवन प्रक्रिया का संचालन उसके मस्तिष्क द्‌वारा होता है । मन का सीधा संबंध मस्तिष्क से है । मन में हम जिस प्रकार के विचार धारण करते हैं हमारा शरीर उन्हीं विचारों के अनुरूप ढल जाता है । हमारा मन-मस्तिष्क यदि निराशा व अवसादों से घिरा हुआ है तब हमारा शरीर भी उसी के अनुरूप शिथिल पड़ जाता है। हमारी समस्त चैतन्यता विलीन हो जाती है ।

परंतु दूसरी ओर यदि हम आशावादी हैं और हमारे मन में कुछ पाने व जानने की तीव्र इच्छा हो तथा हम सदैव भविष्य की ओर देखते हैं तो हम इन सकारात्मक विचारों के अनुरूप प्रगति की ओर बढ़ते चले जाते हैं ।

हमारे चारों ओर अनेकों ऐसे उदाहरण देखने को मिल सकते हैं कि हमारे ही बीच कुछ व्यक्ति सदैव सफलता पाते हैं । वहीं दूसरी ओर कुछ व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में असफल होते चले जाते हैं । दोनों प्रकार के व्यक्तियों के गुणों का यदि आकलन करें तो हम पाएँगे कि असफल व्यक्ति प्राय: निराशावादी तथा हीनभावना से ग्रसित होते हैं ।

ऐसे व्यक्ति संघर्ष से पूर्व ही हार स्वीकार कर लेते हैं । धीरे-धीरे उनमें यह प्रबल भावना बैठ जाती है कि वे कभी भी जीत नहीं सकते हैं । वहीं दूसरी ओर सफल व्यक्ति प्राय: आशावादी व कर्मवीर होते हैं । वे जीत के लिए सदैव प्रयास करते हैं ।

कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे जीत के लिए निरंतर संघर्ष करते रहते हैं और अंत में विजयश्री भी उन्हें अवश्य मिलती है । ऐसे व्यक्ति भाग्य पर नहीं अपितु अपने कर्म में आस्था रखते हैं । वे अपने मनोबल तथा दृढ़ इच्छा-शक्ति से असंभव को भी संभव कर दिखाते हैं ।

मन के द्‌वारा संचालित कर्म ही प्रधान और श्रेष्ठ होता है । मन के द्‌वारा जब कार्य संचालित होता है तब सफलताओं के नित-प्रतिदिन नए आयाम खुलते चले जाते हैं । मनुष्य अपनी संपूर्ण मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं का अपने कार्यों में उपयोग तभी कर सकता है जब उसके कार्य मन से किए गए हों ।

अनिच्छा या दबाववश किए गए कार्य में मनुष्य कभी भी अपनी पूर्ण क्षमताओं का प्रयोग नहीं कर पाता है । अत: मन के योग से ही कार्य की सिद्‌धि होती है मन के योग के अभाव में अस्थिरता उत्पन्न होती है । मनुष्य यदि दृढ़ निश्चयी है तथा उसका आत्मविश्वास प्रबल है तब वह सफलता के लिए पूर्ण मनोयोग से संघर्ष करता है ।

सफलता प्राप्ति में यदि विलंब भी होता है अथवा उसे अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है तब भी वह क्षण भर के लिए भी अपना धैर्य नहीं खोता है । एक-दो चरणों में यदि उसे आशातीत सफलता नहीं मिलती है तब भी वह संघर्ष करता रहता है और अंतत: विजयश्री उसे ही प्राप्त होती है ।

इसलिए सच ही कहा गया है कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ । हमारी पराजय का सीधा अर्थ है कि विजय के लिए पूरे मन से प्रयास नहीं किया गया । परिस्थितियाँ मनुष्य को तभी हारने पर विवश कर सकती हैं जब वह स्वयं घुटने टेक दे ।

हालाकि कई बार परिस्थितियाँ अथवा जमीनी सचाइयों इतनी भयावह होती हैं कि व्यक्ति चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता परंतु दृढ़निश्चयी बनकर वह धीरे-धीरे ही सही परिस्थितियों को अपने वश में कर सकता है । अत: संकल्पित व्यक्ति समय की अनुकूलता का भी ध्यान रखता है ।

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‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ पर अनुच्छेद – Man Ke Hare Har Hai Essay In Hindi

‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ पर निबंध ( man ke hare har hai essay in hindi).

Man Ke Hare Har Hai Essay

Man Ke Hare Har Hai Essay In Hindi – मन ही वह सबसे बलवान तत्व है जिसे शरीर के सब अंगों हाथ पैर, नाक – कान आदि तथा जड़ चेतन सभी इन्द्रियों का राजा और प्रशासक स्वीकार किया गया है । हम या हमारी इन्द्रियाँ जो कुछ भी करती – कहती है, उन्हें करने – कहने का इरादा या विचार पहले मन ही में बनता है । उसके बाद, उसकी प्रेरणा से अन्य इन्द्रियां इच्छित कार्य की ओर सक्रिय हुआ करती है । अच्छा – बुरा जो कुछ भी होता है या किया जाता है वह सब मन की इच्छा और प्रेरणा से ही हो पाता है ।

मन को जितना बलवान अथवा ताकतवर समझा जाता है उतना ही इसे चंचल, जागरूक और चेतन अंग भी माना जाता है । तभी तो जब मन में शक्ति, उत्साह और उमंग होता है तो शरीर भी तेजी से कार्य करता है तथा जब मन हतोत्साहित होता है तो दुर्बलता का कारण बनता है ।

‘मन के हांरे हार है, मन के जीते जीत’ यह युक्ति मन के संदर्भ में ही किसी विचारवान  व्यक्ति ने अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर कहा है । यह सौ आने सच है व्यक्ति तब तक नहीं हारता जब तक कि उसका मन किसी काम से हार नहीं मान लेता । हो सकता है की एक – दो या चार बार कोई काम करते हुए व्यक्ति को असफल भी होना पड़ जाए पर यदि वह अपना यह विचार बनाए रखकर कि “हार नहीं मानना है” और निरंतर प्रयत्न करता रहता है कि मुझे अवश्य सफलता या जीत हासिल करना ही करना है तो कोई कारण नहीं कि उसे सफलता एवं विजय प्राप्त न हो ।

मानव मन में आई निराशा की भावना अकसर तन और मन दोनों को कमजोर बनाती है इसी कारण हर स्थिति में ‘मन बनाए रखने’, ‘मन को चंचल, अस्थिर, या डांवाडोल न होने देने’ की प्रेरणा दी जाती है क्योंकि मन मानव की समस्त इच्छाओं का केंद्र होता है जो वास्तविक हार और सच्ची जीत के रूप में व्यावहार में दिखाई पड़ता है ।

हर मनुष्य शारीरिक शक्ति की दृष्टि से लगभग बराबर होता है लेकिन उनमें मन की सबलता या मानसिक शक्ति की दृष्टि से अंतर होता है । शरीर तो केवल एक यन्त्र होता है जो भौतिक तत्वों से प्रभावित होता रहता है परन्तु मन, तन को शक्ति प्रदान करता है । जब तन थक जाता है तो मन उसे शक्ति प्रदान कर पुन: खड़ा कर देता है ।

इसलिए मनुष्य को अपनी मानसिक शक्ति बनाए रखने के लिए सदैव यह विचार करना चाहिए कि मन को दुर्बल करने वाले विचार न आने पाए क्योंकि मनुष्य की मानसिक शक्ति उसकी इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है ।  जिस मनुष्य में जितनी इच्छाशक्ति बलवती होती है उसका मन उतना ही दृढ़ और संकल्पवान होता है ।

मनुष्य जीवन ही ऐसा जीवन है जहाँ परिस्थितियाँ पल – पल बदलती रहती है । ये परिस्थितियाँ सफलता – असफलता, जय – पराजय, हानि – लाभ किसी भी रूप में हो सकती है लेकिन जब ये  जीवन के मार्ग में विध्न – बाधाएँ या रूकावटे बनकर आती है तो साधारण मनुष्य का मन इन विपत्तियों को देखकर बहुत जल्दी हार स्वीकार कर लेता है जबकि प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने मानसिक बल के आधार पर उन पर विजय प्राप्त कर लेता है । विषम परिस्थितियों में और उन पर मानसिक दृढ़ता के कारण विजय प्राप्त करना, उसे महान बना देती है ।

कहने का मतलब है कि जो भी परिस्थितियाँ मिले पर हारे नहीं इंसान । मनुष्य जीवन का तो सन्देश यही है कि किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति का मन की दृढ़ता का होना बेहद जरुरी है । गुलामी और आतंकवाद के वातावरण में भी जब क्रांतिकारी विद्रोह का विगुल बजा लेते है और मुट्ठी भर हड्डियों वाले महात्मा गांधी विश्व विजयी जिन अंग्रेजों को देश से बाहर कर लेते है तो आखिर वह कौन सा बल था ? निश्चय ही यह थी मन की सबलता यानि मन से हार न मानने की सबलता ।

अगर मनुष्य अपने मन को किसी भी स्थिति में मरने न दे तो वह दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर एक बार मृत्यु को भी टाल सकता है । वास्तव में मन की दृढ़ता असंभव को भी संभव बना सकती है । अघटित को घटा सकती है ।

मनस्वी व्यक्ति का तो यही गुण होता है कि वह विषम परिस्थियों में भी कभी हारता नहीं । लक्ष्य तक न पहुँच पाकर भी वह मन में यह संतोष लेकर प्राण त्यागा करता है कि उसने अंत तक पहुँचने का प्रयत्न तो किया । यह संतोष भी निश्चय ही एक बहुत बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है, जो किसी-किसी को ही प्राप्त हो पाती है ।

आम जीवन में भी एक कहावत है – “जी है, तो जहान है । ” वास्तव में यह कहावत उचित है । जिसका जी या मन ही बुझ जाता है, सब प्रकार की सुख सुविधाएँ पाकर भी उसका जीवन अपने लिए भी बोझ समान हो जाया करता है । इसके विपरीत जिसका मन दृढ़ रहता है, हर हाल में तरो ताजगी का अनुभव कर सकता है, वह कठोर अभावों में भी जी लेता है । एक न एक दिन सफलता भी पा लेता है । अत: जहान और जीवन को बनाए रखने के लिए सुखी – समृद्ध बनाने के जी को कभी भी पतला या क्षीण नहीं पड़ने देना चाहिए ।

मनुष्य जीवन में तो न चाहते हुए भी कठिन परिस्थितयाँ आ ही जाती है और मन भी एक बार को घबराने लगता है पर इसका कत्तई ये मतलब नहीं की हम हार मान ले बल्कि हमें ये सोच कर आगे बढ़ना चाहिए कि यह हमारी परीक्षा की घड़ी है । मानव इतिहास भी तो हमें यही प्रेरणा देता है कि ‘हिम्मते मर्दा मद्दे खुदा’ । अर्थात जो ब्यक्ति हिम्मत नहीं हारता, ईश्वर भी उसकी सहायता करता है । मन को सबल बनाएं रखने वाला सदैव विजयी होता है ।

नीति – शास्त्र ने भी कहा है – “मनस्विन: सिंहमुपैति लक्ष्मी:” अर्थात दृढ़ एवं स्थिर मन वाले वीर सिंहों का ही लक्ष्मी वरण किया करती है । गीता में श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को यही उपदेश दिया था कि मन को कभी बुझने या मरने नहीं देना चाहिए । उसकी जाग्रति ही सक्रीयता की पर्याय है ।

अत: सफलता या जिंदादिली के लिए मन की दृढता आवश्यक है । हारा हुआ मन कभी कुछ नहीं कर पाता । जीता हुआ मन ही अंत में सफल हुआ करता है । इसलिए मन को हार के निकट तक भी नहीं फटकने देना चाहिए क्योंकि –

“जिंदगी जिन्दादिली का नाम है,

मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते है । ”

सांच बराबर तप नहीं Click Here

संतोष ही सच्चा धन Click Here

जाको राखे साइयां मार सके न कोय Click Here

कल करे सो आज कर Click Here

जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं Click Here

घर का भेदी लंका ढाए Click Here

दोस्तों ! उम्मीद है उपर्युक्त ‘ मन के हारे हार है ‘ पर निबन्ध (Man Ke Hare Har Hai Essay In Hindi)  छोटे और बड़े सभी लोगों के लिए उपयोगी साबित होगा। गर आपको हमारा यह पोस्ट अच्छा लगा हो तो इसमें निरंतरता बनाये रखने में आप का सहयोग एवं उत्साहवर्धन अत्यंत आवश्यक है। आशा है कि आप हमारे इस प्रयास में सहयोगी होंगे साथ ही अपनी प्रतिक्रियाओं और सुझाओं से हमें अवगत अवश्य करायेंगे ताकि आपके बहुमूल्य सुझाओं के आधार पर इस निबंध को और अधिक सारगर्भित और उपयोगी बनाया जा सके।

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मन के हारे हार मन के जीते जीत पर निबंध for Class 6, 7, 8, 9, 10

Essay on The Defeat of the mind, the Victory of the Heart in Hindi for Class 6, 7, 8, 9, & 10 Class Board Students. This Essay on The Defeat of the mind, the Victory of the Heart in Hindi also named as मन के हारे हार मन के जीते जीत पर निबंध. This essay will help You for exams.

Essay in Hindi – The Defeat of the mind, the Victory of the Heart for Class 6 – 10 Class Students

जिंदगी में हार जीत तो चलती रहती है। मगर वह व्यक्ति जो हारने से पहले ही मन में हार जाता है वह जीवन में कभी जीत नहीं सकता। हमारे द्रुढ मन की शक्ति हमें कुछ भी करवा सकती है। यदि हम निश्चय कर ले तो हम पहाड़ पर भी विजय प्राप्त कर सकते हैं l कभी कभी हमें छोटी सी राई भी पहाड़ की तरह मालूम होती है। हम हारने से पहले ही अपनी हार मान लेते हैं। जिस व्यक्ति ने रणभूमि में शत्रु को देख हार मान ली वह व्यक्ति कभी युद्ध नहीं जीत सकता। हर क्षेत्र में जीत हासिल करने के लिए हमें कुशल ज्ञान के साथ-साथ खुद पर आत्मविश्वास का होना जरूरी है। यदि हम हार का अनुभव करेंगे तो हम निश्चित ही हारेंगे। यदि हम जीत का अनुभव करते हैं तो हमारे जीतने के अवसर बढ़ जाएंगे। हार और जीत किसी के हाथों में नहीं होती पर हमें हार से पहले ही हार नहीं माननी चाहिए। जिससे खुद पर भरोसा हो वह हार को जीत में बदल सकता है। विजय का मुख्य कारण मेहनत के साथ उत्साह तथा द्रुढ निश्चय होता है। जीवन में लक्ष्य प्राप्त करने के लिए द्रुढ निश्चय होना जरूरी है। यदि हमारा मन कमजोर पड़ जाए तो निराशा हम पर हावी हो जाती है।

हमारे दुख सुख सारे हमारे मन पर निर्भर करते हैं। यदि हमारे मन पर नियंत्रण हो तो हम बड़े से बड़ा दुख मुस्कुराकर सहन कर जाते हैं। इसीलिए तो कहते हैं मन के हारे हार और मन के जीते जीत। यदि कोई मनुष्य अपने मन में अपनी हार नीचे समझता है तो इस धरती पर उस व्यक्ति को कोई नहीं जिता सकता। यदि हमें सांसारिक बंधनों से छुटकारा पाना है तो अपने मन पर नियंत्रण करना जरूरी है। यदि हमारे मन पर संयम ना हो तो इसके हमें विपरीत परिणाम मिलते हैं। इसलिए हमें सकारात्मक विचार रखना चाहिए। हमें अपने चंचल मन को स्थिर बनाना चाहिए। ताकि हम जीत के और अपने लक्ष्य के करीब जा सके। यदि हमारा मन चंचल है तो लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना कठिन हो जाता है। मनुष्य के विचारों का परिणाम उसके कार्य पर पड़ता है। इसीलिए हमें अपने विचार सकारात्मक रखनी चाहिए। ताकि हमारे हर कार्य का परिणाम भी सकारात्मक आ सके।

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Hindi Essay on “Man Ke Hare Haar Hai, Man ke Jite Jeet”, “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

मन के हारे हार है , मन के जीते जीत

Man Ke Hare Haar Hai, Man ke Jite Jeet

निबंध नंबर :- 01

मनुष्य का जीवन विविध प्रकार के संकल्पों और विकल्पों से क्रियाशील होता ! रहता है। कुछ मानव के जीवन में कभी सफलता आती है, तो कभी असफलता। हम देखते हैं कि कछ ऐसे मनुष्य हैं जिन्हें जीवन में निरन्तर सफलता ही चूमती है। ऐसे भी मनुष्य होते हैं, जिन्हें बार-बार असफलता और पराजय के ही मुंह देखने पड़ते हैं। जिन्हें सफलताओं का हार पहनने को मिलता है, वे सामान्य व्यक्ति नहीं होते हैं। वे आलसी और बुजदिल नहीं होते हैं, अपित वे बहुत ही अधिक साहसी और दिलेर होते हैं। जिन्हें अपार मनोबल प्राप्त होता है और जो बाधाओं पर छा। जाने होते हैं, वे ही विजयी और भाग्य-विधाता होते हैं।

हमारी जीवन प्रक्रिया का संचालक केवल मन और आत्मा है। मन कभी आत्मा को वश में कर लेता है तो कभी आत्मा मन को, इस प्रकार मन और आत्मा पर। परस्पर सम्बन्ध बहत गहरा और घनिष्ठ सम्बन्ध है। मन और आत्मा के सहयोग से मनष्य अपने उद्देश्य की प्राप्ति करने में सफल हो जाता है। जो भी व्यक्ति मन लगाकर किसी भी असंभव कार्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील होने लगता है तो वह निश्चित रूप से उसे संभव कर ही लेता है। इस प्रसंग में महाकवि रहीमदास का यह कथन उद्धृत किया जा सकता है–

रहिमन मनहिं लगाइके, देखि लेहुँ किन कोय।

नर को वस कर वो कहाँ, नारायण वश होय।।

मन का योग ही सब प्रकार की शक्तियों को योग केन्द्र होता है। मन ही मनुष्य की उन्नति और बंधन का कारण है–

‘ मन एच मनुष्याणां कारणं बन्धन मोक्षयोः।’

हम यह भली-भांति जानते हैं कि संघर्ष ही जीवन है। बिना संघर्ष के किसी प्रकार की सफलता की आशा नहीं की जा सकती है। वीर पुरुष हमेशा संघर्षरत जीवन जीते हैं। संघर्ष की बुनियाद पर ही नेपोलियन ने अदम्य उत्साह से कहा था कि असफलता शब्द मेरे शब्दकोश में नहीं है। संघर्ष ही कर्म है और कर्म ही जीवन। किसी प्रकार का संघर्ष या कर्म हो। उसमें मनोयोग होन नितान्त आवश्यक है। मन के योग से किसी प्रकार की कार्यसिद्धि होती है। बिना मनोयोग के सभी प्रकार की अटक-भटक शुरू हो जाती है। इसीलिए पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ने साहसपूर्ण कथन प्रस्तुत करते हुए कहा था–

सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ?

जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा।।

कर्म तभी प्रधान और श्रेष्ठ होता है जब वह मन के द्वारा संचालित होता है। जब कर्म मन के द्वारा संचालित होने लगता है, तब वह विविध प्रकार की सिद्धियों का द्वार खोलने लगता है। इसीलिए भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को मनोयोगपूर्वक कर्म करने का उपदेश दिया था–

‘ कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्।

माँ कर्मफलतेहुर्भुमां से संयोऽस्वकर्मणि।।

जिराने मन से, लगन और पूरी भावना से किसी कार्य को आरम्भ किया, उसे सफलता मिलने में देर नहीं लगती है। धैर्य और विश्वासपूर्वक कार्य के प्रति सचेष्ट होने की आवश्यकता के द्वारा ही सुपरिणाम मिलने लगते हैं, कभी-कभी सफलता या सुपरिणाम में कुछ विलम्ब भी हो जाता है। लेकिन कार्यपूर्ण न होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। अतएव धैर्य और आशा का सम्बल होना इसके लिए अत्यन्त आवश्यक होता है। किसी कवि का यह कहना बहुत ही सार्थक और उपयुक्त सिद्ध होता है–

धीरे-धीरे रे मना, धीरे-धीरे सब कुछ होय।।

माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आवे फल होय।।

अतएव मन के योग से विजय निश्चित है और मन के हार जाने से पराजय का ही मुँह देखना पड़ता है। अतः मनोयोगपूर्वक कार्य करना चाहिए।

निबंध नंबर:- 02

एक बार दो मेढ़क तालाब में पानी सूख जाने पर भटकते-भटकते वे एक हलवाई की दुकान पर पहुंचे जहां वे एक दूध की बाल्टी में गिर गए। दोनों बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने लगे और तैरते रहे लेकिन वे किसी भी प्रकार बाहर न निकल सके। इससे निराश होकर एक मेढक सोचने लगा कि यहाँ से बाहर निकलना सम्भव नहीं है। अत: प्रयत्ल करना व्यर्थ है। प्रातः काल जब हलवाई आएगा तो हमें मार देगा। इस प्रकार अब मौत निश्चित है। उसने तैरना छोड़ दिया। अन्त में वह दूध में डूब कर मर गया। दूसरा मेंढक नहीं हारा। यद्यपि वह थक भी गया था। वह तैरता ही रहा और बाल्टी में चक्कर काटता रहा। चक्कर काटने से दध मथने लगा और मक्खन बनने लगा। अन्त में मक्खन के ढेलों पर चढ़कर छलांग लगा कर वह बाल्टी से बाहर आ गया। भाग कर उसने अपनी जान बचा ली। इस प्रकार उसकी शक्ति ने उसकी जान बचा दी।

शिक्षा- मन के हारे हार है मन के जीते जीत।

निबंध नंबर:- 03

विचार-बिन्दु- • मन से हारा व्यक्ति असफलता के भय से ग्रस्त • उसकी शक्ति मंद • कर्म शिथिल •आत्मविश्वासी के काम सँवरते हैं  •विजय का मार्ग खुल जाता है।

मन से हारा हुआ व्यक्ति कोई भी कार्य या संघर्ष करने से पहले हार जाता है। वह अपनी सफलता का विश्वास नहीं सँजी पाता। मन में हारने का भय मनुष्य को भयभीत बना देता है। भयभीत आदमी हिचक-हिचक कर, रुक-रुक कर काम करता है। वह अपने आप को पूरी शक्ति से लक्ष्य में झौंक नहीं पाता। परिणाम यह होता है कि उसके हाथ ढीले पड़ जाते हैं, पैरों की गति मंद हो जाती है। अत: व्यक्ति अपेक्षित सफलता नहीं पा पाता। इसके विपरीत जो व्यक्ति आत्मविश्वास के साथ मैदान में उतरता है, उसके बिगड़े काम सँवर जाते हैं। उसे मार्ग की कोई मुसीबत, मुसीबत नहीं लगती। सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि आत्मविश्वासी मनुष्य राह के कष्टों को कष्ट मानता ही नहीं। इस प्रकार उसकी विजय निश्चित हो जाती है। इसीलिए प्रभु से प्रार्थना की गई है-

हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें।

दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें।

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मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – It is the Mind which Wins and Defeats Essay In Hindi

Hindi Essay प्रत्येक क्लास के छात्र को पढ़ने पड़ते है और यह एग्जाम में महत्वपूर्ण भी होते है इसी को ध्यान में रखते हुए hindilearning.in में आपको विस्तार से essay को बताया गया है |

Table of Contents

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – Essay On It is the Mind which Wins and Defeats” in Hindi

  • प्रस्तावना,
  • उक्ति का आशय,
  • मन की दृढ़ता के कुछ उदाहरण,
  • कर्म के सम्पादन में मन की शक्ति,
  • सफलता की कुंजी : मन की स्थिरता, धैर्य एवं सतत कर्म,
  • मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए?

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – Man Ke Haare Haar Hai Man Ke Jeete Jeet Par Nibandh

प्रस्तावना :.

संस्कृत की एक कहावत है–’मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः’ अर्थात् मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है। तात्पर्य यह है कि मन ही मनुष्य को सांसारिक बन्धनों में बाँधता है और मन ही बन्धनों से छुटकारा दिलाता है। यदि मन न चाहे तो व्यक्ति बड़े–से–बड़े बन्धनों की भी उपेक्षा कर सकता है। शंकराचार्य ने कहा है कि “जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत् को जीत लिया।” मन ही मनुष्य को स्वर्ग या नरक में बिठा देता है। स्वर्ग या नरक में जाने की कुंजी भगवान् ने हमारे हाथों में ही दे रखी है।

उक्ति का आशय–मन के महत्त्व पर विचार करने के उपरान्त प्रकरण सम्बन्धी उक्ति के आशय पर विचार किया जाना आवश्यक है। यह उक्ति अपने पूर्ण रूप में इस प्रकार है-

दुःख–सुख सब कहँ परत है, पौरुष तजहु न मीत।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत॥ अर्थात् दुःख और सुख तो सभी पर पड़ा करते हैं, इसलिए अपना पौरुष मत छोड़ो; क्योंकि हार और जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर है, अर्थात् मन के द्वारा हार स्वीकार किए जाने पर व्यक्ति की हार सुनिश्चित है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति का मन हार स्वीकार नहीं करता तो विपरीत परिस्थितियों में भी विजयश्री उसके चरण चूमती है। जय–पराजय, हानि–लाभ, यश–अपयश और दुःख–सुख सब मन के ही कारण हैं; इसलिए व्यक्ति जैसा अनुभव करेगा वैसा ही वह बनेगा।

मन की दृढ़ता के कुछ उदाहरण हमारे सामने ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें मन की संकल्प–शक्ति के द्वारा व्यक्तियों ने अपनी हार को विजयश्री में परिवर्तित कर दिया। महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की जीत का कारण यही था कि श्रीकृष्ण ने उनके मनोबल को दृढ़ कर दिया था। नचिकेता ने न केवल मृत्यु को पराजित किया, अपितु यमराज से अपनी इच्छानुसार वरदान भी प्राप्त किए। सावित्री के मन ने यमराज के सामने भी हार नहीं मानी और अन्त में अपने पति को मृत्यु के मुख से निकाल लाने में सफलता प्राप्त की।

अल्प साधनोंवाले महाराणा प्रताप ने अपने मन में दृढ़–संकल्प करके मुगल सम्राट अकबर से युद्ध किया। शिवाजी ने बहुत थोड़ी सेना लेकर ही औरंगजेब के दाँत खट्टे कर दिए। द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा किए गए अणुबम के विस्फोट ने जापान को पूरी तरह बरबाद कर दिया था, किन्तु अपने मनोबल की दृढ़ता के कारण आज वही जापान विश्व के गिने–चुने शक्तिसम्पन्न देशों में से एक है। दुबले–पतले गांधीजी ने अपने दृढ़ संकल्प से ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया था। इस प्रकार के कितने ही उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जिनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हार–जीत मन की दृढ़ता पर ही निर्भर है।

कर्म के सम्पादन में मन की शक्ति :

प्राय: देखा गया है कि जिस काम के प्रति व्यक्ति का रुझान अधिक होता है, उस कार्य को वह कष्ट सहन करते हुए भी पूरा करता है। जैसे ही किसी कार्य के प्रति मन की आसक्ति कम हो जाती है, वैसे–वैसे ही उसे सम्पन्न करने के प्रयत्न भी शिथिल हो जाते हैं। हिमाच्छादित पर्वतों पर चढ़ाई करनेवाले पर्वतारोहियों के मन में अपने कर्म के प्रति आसक्ति रहती है। आसक्ति की यह भावना उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है।

सफलता की कुंजी : मन की स्थिरता, धैर्य एवं सतत कर्म–वस्तुत: मन सफलता की कुंजी है। जब तक न में किसी कार्य को करने की तीव्र इच्छा रहेगी, तब तक असफल होते हुए भी उस काम को करने की आशा बनी रहेगी। एक प्रसिद्ध कहानी है कि एक राजा ने कई बार अपने शत्रु से युद्ध किया और पराजित हुआ। पराजित होने पर वह एकान्त कक्ष में बैठ गया। वहाँ उसने एक मकड़ी को ऊपर चढ़ते देखा।

मकड़ी कई बार ऊपर चढ़ी, किन्तु वह बार–बार गिरती रही। अन्तत: वह ऊपर चढ़ ही गई। इससे राजा को अपार प्रेरणा मिली। उसने पुनः शक्ति का संचय किया और अपने शत्रु को पराजित करके अपना राज्य वापस ले लिया। इस छोटी–सी कथा में यही सार निहित है कि मन के न हारने पर एक–न–एक दिन सफलता मिल ही जाती है।

मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए?–प्रश्न यह उठता है कि मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए? मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए सबसे पहले उसे अपने वश में रखना होगा।

अर्थात् जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसने संसार को वश में कर लिया, किन्तु जो मनुष्य मन को न जीतकर स्वयं उसके वश में हो जाता है, उसने मानो सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली।

मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना को दूर करना भी आवश्यक है। जब व्यक्ति यह सोचता है कि मैं अशक्त हूँ, दीन–हीन हूँ, शक्ति और साधनों से रहित हूँ तो उसका मन कमजोर हो जाता है। इसीलिए इस हीनता की भावना से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मन को शक्तिसम्पन्न बनाना आवश्यक है।

मन परम शक्तिसम्पन्न है। यह अनन्त शक्ति का स्रोत है। मन की इसी शक्ति को पहचानकर ऋग्वेद में यह संकल्प अनेक बार दुहराया गया है–”अहमिन्द्रो न पराजिग्ये” अर्थात मैं शक्ति का केन्द्र हैं और जीवनपर्यन्त मेरी पराजय नहीं हो सकती है। यदि मन की इस अपरिमित शक्ति को भूलकर हमने उसे दुर्बल बना लिया तो सबकुछ होते हुए भी हम अपने को असन्तुष्ट और पराजित ही अनुभव करेंगे और यदि मन को शक्तिसम्पन्न बनाकर रखेंगे तो जीवन में पराजय और असफलता का अनुभव कभी न होगा

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Hindi Essay on “Man ke Hare Har Hai, Man ke Jeete Jeet”, “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत हिंदी निबंध”, for Class 6, 7, 8, 9, and 10, B.A Students and Competitive Examinations.

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत हिंदी निबंध. Man ke Hare Har Hai, Man ke Jeete Jeet. मन ही बन्धन का कारण बनता है, मन ही मोक्ष का। मन को ऊंचा रखने वाला अवश्य विजयी होता है; अतः हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।' हमें हार की ओर नहीं; हमेशा जीत की ओर ही बढ़ना है और मन कोदृढ़-निश्चयी बनाकर बढ़ते जाना है। सफल-सार्थक जीवन व्यतीत करने का अन्य कोई उपाय नहीं है। मन क्योंकि सभी इच्छाओं का केन्द्र है, सभी दृश्य-अदृश्य इन्द्रियों का नियामक और स्वामी है; अत: व्यवहार के स्तर पर उसकी हार को वास्तविक हार और जीत को सच्ची जीत माना जाता है। इसीलिए मन पर नियंत्रण और मन की दृढ़ता की बात भी बात कही जाती है।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत हिंदी निबंध

Man ke Hare Har Hai, Man ke Jeete Jeet

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मन के हारे हार हैं

Man ke hare haar hain.

कबीर

और अधिक कबीर

मन के हारे हार हैं, मन के जीते जीति।

कहै कबीर हरि पाइए, मन ही की परतीति॥

मन के हारने से हार होती है, मन के जीतने से जीत होती है (मनोबल सदैव ऊँचा रखना चाहिए)। मन के गहन विश्वास से ही परमात्मा की प्राप्ति होती है।

man ke haare haar hai.n, man ke jiite jiiti।

kahai kabiir hari paa.i.e, man hii kii partiiti||

  • पुस्तक : कबीर ग्रंथावली (पृष्ठ 194)
  • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
  • संस्करण : 2013

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मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध | Man Ke Hare Har Hai Man Ke Jeete Jeet Essay In Hindi

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध | man ke hare har hai man ke jeete jeet essay in hindi:-  मनोविज्ञान का मानना है कि वनस्पति जाग्रत रहती है पशु सोते है पत्थर में भी चेतना सोती है.

और मनुष्य विचार चिन्तन करता है इसलिए इन अन्य सजीवों तथा निर्जीवों से भिन्न हैं. चिन्तन एवं मनन करना इन्सान की विशेषता है जिनका सीधा सम्बन्ध मन से होता है.

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध

man ke hare har hai man ke jeete jeet essay in hindi

मन लगने पर अस्म्भव एवं कठिन लगने वाले कार्य भी संकल्प के साथ सहज हो जाते है तथा बेहद सरल लगने वाले कार्य भी मन टूटने से नही हो पाते है.

मन की इसी बला पर आज हम आपके लिए man ke hare har hai man ke jeete का हिंदी निबंध अनुच्छेद भाषण प्रस्तुत कर रहे हैं.

मन के हारे हार है मन के जीते जीत essay in hindi

मनुष्य के पास संकल्प शक्ति एक महत्वपूर्ण हथियार है जिसके दम पर बड़े से बड़े शत्रु को आसानी से हराया जा सकता है. संकल्प की शक्ति के आगे बड़ी बड़ी फौज एवं अस्त्र शस्त्र भी निष्प्रभावी हो जाते है.

मन का संकल्प व्यक्ति की आंतरिक वस्तु हैं. मानव की इस अद्भुत क्षमता के आगे देवता भी घबराते है. व्यक्ति के मन की इस ताकत के बल पर उसने आज प्रकृति पर शासन स्थापित करने में सफलता अर्जित की हैं.

मानव के मन की ताकत ने ही आज आकाश की उंचाई तथा जमीन की गहराई को नाप डाला हैं. अपनी कल्पना शक्ति में मानव में सुखी जीवन के जो जो सपने देखे थे उन्हें पूरा करने का साधन उसनें जुटा लिए हैं.

जीवन रुपी अनवरत चलने वाले इस संघर्ष के साथ ही मानव जीवन की यही लालसा निरंतर आगे बढ़ रही हैं. निर्बाध जीवन में कई सारी बाधाओं ने इसको घेरने का साहस भी किया, मगर इन्ही अवरोधों को मानव ने पराजित कर अपनी राह को अधिक मजबूत बनाया हैं.

जीवन कर्म का पथ है यहाँ उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कड़ी एवं लम्बी साधना की आवश्यकता पड़ती हैं. कई बार विकट स्थितियों में जीवन को असहाय होने की स्थिति में पाया हैं.

जब वह टूटने बिखरने लगा, समस्याओं से जूझते थक गया, तथा मन में लक्ष्य के प्रति निराशा के भाव जन्म लेने लगे, तो इस स्थिति में खुद को संभालकर आगे कदम बढ़ाने की आवश्यकता आन पड़ी.

हरेक व्यक्ति का जीवन एक संघर्ष है मगर इससे भागकर या पलायन कर कोई नहीं बच पाया हैं. सार्थक दिशा में किये गये कर्म ही मनुष्य को इन जटिलताओं से निकाल पाते हैं.

हरेक के जीवन में संघर्ष तो आने निश्चित है मगर जिन्होंने दृढ संकल्प के साथ काम किया तथा स्वयं की योग्यता का सौ प्रतिशत योगदान इन विकट परिस्थियों में विश्वास के साथ दिया तो निश्चय ही वह संघर्ष को पार कर एक नये साहस, ताजगी और अपनी क्षमताओं में पहले से अधिक विश्वास के साथ वह आगे बढ़ सकेगा.

essay on It is the Mind which Wins and Defeats’ in Hindi language

यहाँ आपकों एक कहानी के जरिये मन के हारे हार है मन के जीते जीत का अर्थ समझाने का प्रयत्न करते हैं. आपने बचपन में मकड़ी वाली कहानी तो सुनी ही होगी. जो सीधी दीवार पर सैकड़ों बार चढती है गिरती है फिर हिम्मत जुटाकर फिर चढ़ती है.

अंत में वह उस दीवार पर चढने में सफलता अर्जित कर ही लेती है. भले ही यह कहानी छोटी व छोटे बच्चों के लिए ही हो. मगर जो सीख देती हैं वह विचारने योग्य हैं.

यदि चींटी की तरह हम अपने मन को कभी भी कमजोर न होने दे, मन ही हमारी सम्पूर्ण शक्ति का स्रोत है जितना साहस हम सींच सकते है सींचे.

हमें उस शक्ति की संभावना को महसूस करना होगा. बस हम इसे कितना मानते है और कितना नहीं यही हमारी सफलता और असफलता का निर्धारण करती हैं. .

जैसा कि हमने पूर्व में कहा जीवन एक संघर्ष है, कई बार हमे अपनी आशाओं अपेक्षाओं के अनुसार परिणाम मिल जाते है मगर कई बार ऐसा नहीं होता है, हम असफलता से घबरा जाते हैं तथा मन को निराशा के भाव से भर देते हैं.

ऐसे अवसरों पर साहस के साथ काम लेना चाहिए तथा अपना मन छोटा करने की बजाय हमारे मन से और शक्ति सींचते हुए संघर्ष में कूद पड़ना है क्योंकि अभी कहानी खत्म नहीं हुई हैं.

यदि हम छोटी छोटी निराशाओं को अपनी पराजय मान लेते है तो जीवन में उत्साह समाप्त हो जाता है तथा जीवन बोझ की तरह प्रतीत होता है, इसीलिए कहा गया है मन का हारना ही वास्तविक हार है तथा मन का जीतना ही जीत,

एक बार जब इन्सान मन हार जाता है तो उसकी समस्त ऊर्जा,उत्साह, उमंग, दृढ इच्छाशक्ति जैसी कई शक्तियाँ एक साथ ही समाप्त हो जाती है जिसके चलते वह दुबारा उठकर प्रयास ही नहीं कर पाता हैं.

मन के हारे हार है मन के जीते जीत विषय पर निबंध

प्रस्तावना – मनुष्य मन आधारित प्राणी है. वह मन के बल पर ही चलता है और विपरीत परिस्थतियों से संघर्ष कर विजयी होता है,

उसकी विजय के पीछे उसका उत्साह और दृढता संजीवनी का काम करती हैं. यदि मन कमजोर पड़ जाता है तो ऊस्में निराशा का भाव प्रबल हो जाता है और वह अपनी लक्ष्य सिद्धि में हार जाता हैं.

यह हार उसके जीवन में निराशा ला देती हैं.  जीवन में आगे बढ़ने के लिए, लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मन का दृढ संकल्पित होना आवश्यक हैं. क्योंकि हार और जीत मन पर ही आधारित होती हैं.

मन की प्रबलता को दृष्टिगत करके ही संस्कृत में कहा गया है, मन एवं मनुष्याणां कारण बंध मोक्ष्यों अर्थात मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण हैं. कहने का अभिप्रायः यह है कि मन ही मनुष्य को संसारिक बन्धनों में बांधता हैं.

और मन ही सांसारिक बन्धनों से छुटकारा दिलाता हैं. इसीलिए कहा गया है कि जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत को जीत लिया.

उक्ति का आशय – उक्ति का आशय जानने से पूर्व हमें सबसे पहले उक्ति को पूर्ण रूप में जान लेना भी आवश्यक प्रतीत होता है यह उक्ति अपने पूर्ण रूप में इस प्रकार हैं.

दुःख सुख सब कहँ परत हैं, पौरुष तजहु न मीत, मन के हारे हार है, मन के जीते जीत.

अर्थात इस संसार में दुःख और सुख तो सभी पर पड़ते हैं, इसलिए मनुष्य को अपना पौरुष नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि हार और जीत मन के मानने और न मानने पर ही निर्भर करती हैं.

अर्थात मन के द्वारा हार स्वीकार किये जाने पर व्यक्ति की हार होती है इसके विपरीत मन के द्वारा हार न स्वीकार किये जाने पर विपरीत परिस्थतियों में भी विजयश्री उसके चरण चूमती है,

जय- पराजय, यश- अपयश, दुःख-सुख और लाभ- हानि सब मन के कारण ही हैं. अतः जैसा मनुष्य मन से सोचेगा, वैसा ही बनेगा. इसलिए कहा गया है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत.

मन के सम्बन्ध में विचार – गुरु नानक ने मन के सम्बन्ध में कहा है कि मन जीते, जग जीते, उन्होंने मन की जीत को महत्व दिया हैं. मन को जीतने का अर्थ है संसार को जीतना.

अतः मनुष्य को सबसे पहले अपने मन पर विजय प्राप्त करनी चाहिए तभी वह दूसरों के मन को भी जीत सकता हैं. दिनकरजी ने कहा भी है कि हम तलवार से मनुष्य को पराजित कर सकते है उसे जीत नहीं सकते.

सच्ची जीत तो उसके मन पर अधिकार प्राप्त करना हैं. नीतिशास्त्र में लिखा है- मनस्विन सिंहमुपैति लक्ष्मी अर्थात दृढ एवं स्थिर मन वाले वीर सिंहो का ही लक्ष्मी वरण करती हैं. अतः मन की संकल्प शक्ति की सफलता की कुंजी हैं.

कार्य सम्पादन में मन की स्थिति – यदि मन स्थिर एवं विचारशील नहीं है तो हमारे लिए कर्म हमें विपरीत परिणाम देते हैं. मन की इच्छा और प्रेरणा से ही अच्छा बुरा फल मिलता हैं.

अतः इस चंचल मन को स्थिर व नियंत्रण में रखने का अभ्यास करना आवश्यक हैं. मन की चंचलता की ओर संकेत करते हुए कबीर ने कहा है मन के मते न चालिए मन के मते अनेक.

मन भौतिक वस्तुओं की ओर भागता हैं, पर भौतिक वस्तुएं तो तृष्णा है तृप्ति नहीं. अतः तृप्ति के लिए मन को जीतना आवश्यक हैं.

श्रीकृष्ण ने अर्जुन के दुर्बल मन को धैर्यशाली बनने का उपदेश दिया था. मन की संकल्प शक्ति और दृढता के कारण ही महात्मा गांधी ने अंग्रेजों की दमन नीति का मुकाबला किया था, मन के हार जाने पर मनुष्य ही नहीं राष्ट्र तक पराजित हो जाता हैं.

मन विचारों का उत्पादक – हमारे विचारों का उत्पादक मन ही है इसलिए मनुष्य मन के विचारों से प्रभावित होकर कार्य करता है जैसा कि तुलसीदास ने लिखा हैं.

कर्म प्रधान विश्व रूचि राखा जो जस करहि सो तस फल चाखा

शुभ अशुभ, सत असत विचार मन में ही उत्पन्न होते हैं. उसी विचार भेद से कामी व्यक्ति के स्वभाव व कार्यों में अंतर आता हैं. जिस प्रकार यह संसार द्वंदात्मक है उसी प्रकार मन भी द्वंदात्मक हैं. कुविचारों से, असत से उसे सुविचारों, सत की ओर मोड़ना चाहिए.

उपसंहार – मन परम शक्ति सम्पन्न है. मन को शक्ति सम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना का दूर करना भी आवश्यक हैं. यदि मन को अपरिमित शक्ति को भूलकर हमने उसे कमजोर बना लिया तो हम अपने आप को असंतुष्ट और पराजित ही अनुभव करेंगे.

यदि मन को शक्ति सम्पन्न बनाकर रखेगे तो जीवन में पराजय और असफलता का अनुभव कभी नहीं होगा. इसलिए कहा गया है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत.

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उम्मीद करता हूँ फ्रेड्स मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध Man Ke Hare Har Hai Man Ke Jeete Jeet Essay In Hindi का यह निबंध आपको पसंद आया होगा.

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One comment

mujhe bachpan ki yaad dila di joमेरे पित! जी कha karte the

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essay on man ke haare haar

मन के हारे हार है मन के जीते जीत Try Try Try Never Give Up

एक बार की बात है कि किसी तालाब में दो मेंढक रहते थे जिनमें से एक बहुत मोटा था और दूसरा पतला| सुबह सवेरे जब वे दोनों खाने की तलाश में निकले थे, अचानक वे दोनों एक दूध के बड़े बर्तन में गिर गये, जिसके किनारे बहुत चिकने थे और इसी वजह से वो उसमें से बाहर नहीं निकल पा रहे थे|

दोनों काफ़ी देर तक दूध में तैरते रहे उन्हें लगा कि कोई इंसान आएगा और उनको वहाँ से निकाल देगा लेकिन घंटों तक वहाँ कोई नहीं आया अब तो उनकी जान निकली जा रही थी |

nevergiveup

मोटा मेढक जो अब पैर चलाते चलाते थक गया था, बोला कि मेरे से अब तैरा नहीं जा रहा और कोई बचाने भी नहीं आ रहा है| अब तो डूबने के अलावा और कोई चारा ही नहीं बचा है|

पतले वाले ने उसे थोड़ा ढाँढस बंधाते हुए कहा कि मित्र कुछ देर और मेहनत से तैरते रहो ज़रूर कुछ देर बाद कोई ना कोई हल निकलेगा|

इसी तरह फिर से कुछ घंटे बीत गये, मोटे मेंढक ने अब बिल्कुल उम्मीद छोड़ दी और बोला मित्र मैं अब पूरी तरह थक चुका हूँ और अब नहीं तैर सकता मैं तो डूबने जा रहा हूँ|

दूसरे मेंढक ने उसे बहुत रोका लेकिन वह जिंदगी से हार चुका था और खुद ही तैरना छोड़ दिया और डूब कर मर गया|

पतले मेंढक ने अभी तक हार नहीं मानी थी और वो पैर चलाता रहा कुछ देर बाद उसने महसूस कि ज्यादा देर दूध के मथे जाने से उसका मक्खन बन चुका है|

और अब उसके पैरों के नीचे ठोस जगह हो चुकी थी| उसी का सहारा लेकर मेंढक ने छलाँग मारी और बाहर आ गया और अंत में उसकी जान बच गयी| अपने मित्र की मौत का उसे बड़ा दुख था, काश कुछ देर और संघर्ष करता तो वे दोनों बच सकते थे|

तो मित्रों, परेशानियाँ हर इंसान की जिन्दगी में आती हैं और कई बार तो हमारे सामने इतनी कठिन परिस्थितियां होती हैं जिनसे बाहर निकलना असंभव सा प्रतीत होता है, लेकिन यकीन मानिये हालात चाहे कितने भी बुरे क्यों ना हों, अगर आप हिम्मत ना हारें तो कोई ना कोई हल जरुर निकल सकता है|

इसलिए कभी उम्मीद ना छोड़ें और समस्या कितनी भी बड़ी हो कभी उससे हारना नहीं चाहिए, प्रयास करते रहिए एक ना एक बार आप ज़रूर सफल होंगे यही इस कहानी की शिक्षा है|

कुछ कहानियां जो बदल सकती हैं आपका जीवन :- जीत आपकी – सोच आपकी भगवान उन्हीं लोगों की मदद करते हैं जो स्वयं की मदद करते हैं नए विचार Zen Stories in Hindi रजत शर्मा की जीवनी और सफलता की कहानी माँ की ममता पर कहानी

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Man Ke Hare Har Hai Man Ke Jeete Jeet Essay in Hindi- मन के हारे हार है, मन के जीते जीत पर निबंध

In this article, we are providing Man Ke Hare Har Hai Man Ke Jeete Jeet Essay in Hindi. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत पर निबंध

निराश मन सफलता से दूर होता जाता है तथा उत्साह और आशा से भरा मन अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त करता है। दूध की बाल्टी में गिरे मेंढ़को की कहानी इस तथ्य को प्रमाणित करती है।

एक बार दो मेंढक तालाब के सुख जाने पर पानी की ढूंढमें भटकने लगे। भटकते-भटकते वे सयोंवश एक हलवाई की दुखन पर पहुंचे जहाँ वे एक बाल्टी में गिर पड़े। इस बाल्टी में दूध भरा हुआ था। दोनों बहार निकलने का रास्ता ढूंढ़ने लगे ओर चारोंओर तैरते रहे लेकिन वे किसी भी प्रकार बाहर न निकल सके। इस से निराश होकर एक मेंढक सोचने लगा कि यहाँ से बाहर निकलने अब संभव नहीं है। अंत:किसी भी प्रकार का यतन करना व्यर्थ ही है। प्रात: काल जब हलवाई आएगा ओर देखेगा तो हमें मार डालेगा। इस प्रकार अब मौत निस्चित है। हारकर उसने तैरना ही छोड़ दिया ओर वह दूध में डुब कर मर गया।

दूसरा मेंढ़क नहीं हारा। यद्यपि वह थक भी गया था, तथापि वह तैरता ही रहा और सारी बाल्टी में चक्कर काटता रहा। उसके इस प्रकार इधर-उधर तैरने से दूध मथने लग और मक्खन बनने लगा। अन्त में मक्खन का एक ढेला बन गया। अब वह मेंढ़क उस पर चढ़ा और वहां से छलांग लगाकर बाल्टी से बाहर आ गया। वह तुरन्त ही वहां से भाग गया और अपनी जान बचाने में सफल हो गया। इस प्रकार उसकी मानसिक शक्ति ने उसकी जान बचा दी।

शिक्षा – मन के हारे हार है मन के जीते जीत।

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Hindi Essay on “Man ke hare haar hai” , ”मन के हारे हार है” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

मन के हारे हार है

Man ke Hare Haar Hai

Best 4 Hindi Essay on ” Man Ke Hare Haar Hai”

निबंध नंबर : 01 

मन क्योंकि सभी इच्छाओं का केंद्र है, सभी दृश्य-अदृश्य इंद्रियों का नियामक और स्वामी है। अत: व्यवहार के स्तर पर उसकी हार के वास्तविक हार और जीत को सच्ची जीत माना जाता है। इसलिए मन पर नियंत्रण और मन की दृढ़ता की बात भी बार-बार कही जाती है।

विद्वानों के अनुसार हर प्रकार की मानसिक दुर्बलता का उपचार यह है कि मनुष्य विपरीत दिशा में सोचना शुरू कर दे। जैसे ‘मेरा व्यक्तित्व पूर्ण है। उसमें त्रुटि या कमजोरी कोई है, तो मैं उसे दूर करके हूंगा। यदि मुझमें कोई दुर्बलता है, जो उसका ध्यान छोडक़र निर्मल शरीर औन निर्मल मन का ध्यान करूंगा। मुझे ईश्वर ने अपना ही रूप बनाया है। उसने मुझे पूर्ण मनुष्य बनाने की आज्ञा दी है। पूर्ण पुरुष परमात्मा की मैं रचना हूं, फिर मैं अपूर्ण कैसे हो सकता हूं। मेरे मन में जो अपूर्णता का विचार आता है, वह वास्तविक कैसे हो सकता है? मेरे जीवन की पूर्णता ही सत्य है। मैं अपने अंदर कोई कमी नहीं आने दूंगा। बनाने वाले ने मुझे दीन, हीन, दुर्बल बनने के लिए पैदा नहीं किया। उसके संगीत में स्वर-भंग कैसे हो सकता है? इस प्रकार निरंतर एंव बारंबार अपने मन में विचार दोहराते रहने से मनुष्य कर्म से अपने को सबल बनाता जाता है।’

लज्जाशीलता या झेंप कईं बार रोग की सीमा तक पहुंच जाती है। इसे एक प्रकार का मानसिक रोग कहा गया है। परंतु है यह रोग केवल कल्पनाा की उपज ही। इस पर आसानी से विजय पाई जा सकती है। इसका उपाय यही है कि इस विचार को धकेलकर मन में बाहर कर दिया जाए और इसके विपरीत विचार को मन में स्थान दिया जाए ‘मुझे झेंपने की तनिक भी आवश्यकता नहीं। हर समय मेरी ही चेष्टाओं को देखने की फुर्सत लोगों के पास नहीं है।’ इस प्रकार के विचार मन की सारी दुर्बलतांए निकाल कर आदमी को निश्चय ही नया बल और स्फूर्ति देते हैं।

प्रत्येक व्यक्ति को सोचना चाहिए कि वह ईश्वर की मौलिक रचना है ओर उसमें कुछ दिव्यता है। उस दिव्यता को व्यक्त करने का उसे दृढ़ करने की एक सफल क्रिया कह सकते हैं।

हमें प्रत्येग संभव उपाय से बौद्धिक रूप में अपना सुधार करना आरंभ कर देना चाहिए। सर्वोत्तम लेखकों के ग्रंथों का अध्ययन करने से, विभिन्न विषयों की शिक्षा प्राप्त करने से हम अपनी कई प्रकार की त्रुटियां दूर कर सकते हैं। मन से हीनता की भावना निकल गई, तो समझो सार दुर्बलतांए समाप्त हो गई। अत: हमें हर संभव उपाय से मनोरंजक तथा आकर्षक व्यक्तित्व को प्राप्त करने की दिशा में अपने आपको अग्रसर करना चाहिए। तभी मन भी दृढ़ हो सकेगा।

अपनी वेशभूषा के प्रति, केश-श्रंगार के प्रति, बातचीत के प्रति, बर्ताव के प्रति उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि व्यक्तित्व के निर्माण तथा कार्यों में सहायक होती हैं। इनमें मन भी बढ़ता है।

कई बार हमारे सामने ऐसा कठिन काम आ जाता है कि हम मन हारने लगते हैं। हमें यह सोचना चाहिए कि यह वस्तुत: हमारी परीक्षा का अवसर है। इंसानियत का इतिहास और प्रेरणा यही है कि वह हिम्मत न हारे। कहा भी है- ‘हिम्मते मर्दा मददे खुदा’। जो व्यक्ति हिम्मत नहीं हारता, ईश्वर भी उसकी ही सहायता करता है। यह सोचकर उस कार्य को करने में तन-मन से डटे रहना चाहिए। देर-सबेर सफलता अवश्य मिलेगी।

हम जो कुछ भी करते हैं, पहले मन में उसका ध्यान करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि कार्य का प्रारूप हमारे मन में तैयार होता है। यदि हमारा मन दृढ़ता से उस पर विचार करता है तो हमारा चिंतन लाभकारी होता है। व्यवहार में भी दृढ़ता आती है और सफलता भी मिलती है।

निराशा की भावना मनुष्य के मन और तन दोनों को दुर्बल बनाती है। इसे पास नहीं आने देना चाहिए। इतिहास तथा वर्तमान काल की घटनाओं से शिक्षा लेकर हमें अपने मनोबल का निर्माण करना चाहिए। हमें उनका अनुकरण करना चाहिए, जो बड़े से बड़े संकट में भी न घबरांए बल्कि डटकर कठिनाई का सामना करते हुए विजयी हुए। उनका अनुकरण मानसिक दृढ़ता और विजय की सीढ़ी बन सकता है।

अंग्रेजी की एक कहावत का अर्थ है कि इच्छाशक्ति ही सब कार्यों को सफल बनाती है। मन ही बंधन का कारण बनता है, मन ही मोक्ष का। मन को ऊंचा रखने वाला अवश् विजयी होता है। अत: हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।’ हमें हार की ओर नहीं, हमेशा जीत की ओर ही बढऩा है औन मन को दृढ़-निश्चयी बनाकर बढ़ते जाना है। सफल-सार्थक जीवन व्यतीत कररने का अन्य कोई उपाय नहीं है।

निबंध नंबर : 02 

मन के हारे हार है 

मन, मन ही तो है जो जहां आ गया बस, आ ही गया। मन शरीर का सबसे अधिक चंचल, जागरूक और चेतन अंग है। इस हाथ-पैर, कान-नाम आदि जड़ चेतन सभी निष्ठावन व्यक्ति ही संतुष्ट एंव संतोष-रूपी धन का स्वामी कहा-समझा जाता है। ऐसा ही बनने-करने का हर व्यक्ति को प्रयत्न करना चाहिए। प्रयत्न से कुछ भी कर पाना कठिन या असंभव नहीं हुआ करता।

अकारण असंतुष्ट और इच्छाओं का गुलाम व्यक्ति अपने, अपने घर-परिवार के साथ-साथ समाज, देश और जाति के लिए भी  अनेक प्रकार की अंत-बाह्य मुसीबतों का कारण बन जाया करता है। ऐसा व्यक्ति ही लोभ-लालच में भटककर देश-जाति के साथ गद्दारी तक कर बैठता है-वह भी चंद सिक्कों के लिए। इतिहास में इस प्रकार के कई उदाहरण मिलते हैं कि जब व्यक्ति ने असंतुष्ट हो देश-द्रोह और मानवता के साथ विश्वासघात किया। इस प्रकार के निहित स्वार्थी गद्दारों के उदाहरण आजकल प्रतिदिन मिलने लगे हैं। इसे अच्छी स्थिति नहीं कहा जा सकता। संतोष रूपी धन ही इस प्रकार के कुकृत्यों और भटकावों से बचा सकता है। इसीलिए संतोष को मानवता का श्रंगार भी कहा गया है। हर हाल में उसे अपनाने की प्रेरणा दी गई है।

संतोषी जीव दयालु, स्वावलंबी और परोपकारी हुआ करता है। वह समय पडऩे पर देश, जाति और मानवता के हित में सभी कुछ त्याग सकता है। इसी कारण उसे मानवता का श्रंगार कहा जाता है। अत: अपनी वर्तमान परिस्थितियों से निरंतर संघर्ष करते हुए भी व्यक्ति को संतोष का दामन नहीं छोडऩा चाहिए। सुखी जीवन का यही अहम रहस्य है। संतोष न केवल परम धन है, उसे परम धम्र भी उपर्युक्त अच्छाइयों के कारण ही स्वीकारा जाता है। इस धन और धर्म को पाने, इसे बनाए रखने का सतत प्रयास हमेशा करते रहना चाहिए।

निबंध नंबर : 03

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

Man ke hare haar hai, man ke jite jeet .

‘‘ जो भी परिस्थितियाँ मिलें, काँटे चुभैं कलियाँ खिलें, हारे नहीं इसांन, है संदेश जीवन का यही।‘‘

मनुष्य का जीवन चक्र अनेक प्रकार की विविधताओं से भरा होता है जिसमें सुख-दुःख, आशा-निराशा  तथा जय-पराजय के अनेक रंग समाहित होेते हैं। वास्तविक रूप कें मनुष्य की हार और जीत उसके मनोयोग पर आधारित होती है। मन के योग से उसकी विजय अवश्यंभावी है परंतु मन के हारने पर निश्चय ही उसे पराजय का मुँह देखना पड़ता है।

मनुष्य की समस्त जीवन प्रक्रिया का संचालन उसके मस्तिष्क द्वारा होता है। मन का सीधा संबंध मस्तिष्क से हैं। मन में हम जिस प्रकार के विचार धारण करते  हैं, हमारा शरीर उन्हीं विचारों के अनुरूप ढल जाता हैं । हमारा मन-मस्तिष्क यदि निराशा व अवसादों से घिरा हुआ है तब हमारा शरीर भी उसी के अनुरूप शिथिल पड़ जाता है। हमारी समस्त चैतन्यता विलीन हो जाती है । परंतु दूसरी ओर यदि हम आशावादी  हैं और हमारे मन में कुछ पाने व जानने की तीव्र इच्छा हा तथा हम सदैव भविष्य की ओर देखते हैं तो इन सकारात्मक विचारों के अनुरूप प्रगति की ओर बढ़ते चले जाते हैं।

हमारे चारों ओर अनेकों ऐसे उदहारण देखने को मिल सकते हैं कि हमारे ही बीच कुछ व्यक्ति सदैव सफलता पाते हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में असफल होते चले जाते हैं। दोनों प्रकार के व्यक्तियों के गुणों का यदि आकलन करें तो हम पाएँगे कि असफल व्यकित प्रायः निराशावादी तथा हीनभावना से ग्रसित होते हैं । ऐसे व्यक्ति संघर्ष से पूर्व ही हार स्वीकार कर लेते हैं। धीरे- धीरे उनमें यह प्रबल भावना बैठ जाती है कि वे कभी भी जीत नहीं सकते हैं। वहीं दूसरी ओर सफल व्यक्ति प्रायः आशावादी ओर कर्मवीर होते हैं। वे जीत के लिए सदैव प्रयास करते हैं। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे जीत के लिए निरंतर संघर्ष करते रहते हैं और अंत में विजयश्री भी उन्हें अवश्य मिलती हैं। वे अपने मनोबल तथा दृढ़ इच्छा-शक्ति से असंभव को भी संभव कर दिखाते हैं।

मन के द्वारा संचालित कर्म ही प्रधान और श्रेष्ठ होता है। मन के द्वारा जब कार्य संचालित होता है तब सफलताओं के नित-प्रतिदिन नए आयाम खुलते चले जाते हैं। मनुष्य अपनी संपूर्ण मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं का अपने कार्यों में उपयोग तभी कर सकता है जब उसके कार्य मन से किए गए हों। अनिच्छा या दबाववश किए गए कार्य में मनुष्य कभी भी अपनी पूर्ण क्षमताओं का प्रयोग नहीं कर पाता हैं।

अतः मन के योग से ही कार्य की सिद्धि होती है। मन के योग के अभाव में अस्थिरता उत्पन्न होती है । मनुष्य यदि दृढ़ निश्चयी है तथा उसका आत्मविश्वास प्रबल है तब वह सफलता के लिए पूर्ण मनोयोग से संघर्ष करता है। सफलता प्राप्ति में यदि विलंब भी होता है अथवा उसे अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है तब भी वह क्षण भर के लिए भी अपना धैर्य नहीं खोता है। एक – दो चरणों में यदि उसे आशातीत सफलता नहीे मिलती है तब भी वह संघर्ष करता रहता है और अंततः विजयीश्री दसे ही प्राप्त होती है।

                                इसलिए सच ही कहा गया है कि ‘ मन के हारे हार हे, मन के जीते जीत ‘ । हमारी पराजय का सीधा अर्थ है कि विजय के लिए पूरे मन से प्रयास नहीं किया गया। परिस्थितियाँ मनुष्य को तभी हारने पर विवश कर सकती हैं जब वह स्वयं घुटने टेक दे। हालाँकि कई बार परिस्थितियाँ अथवा जमीनी सचाइयाँ इतनी भयावह होती हैं कि व्यक्ति चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता परंतु दृढ़रिश्चयी बनक रवह धीरे-धीरे ही सही, परिस्थितियों को अपने वश में कर सकता है। अतः संकल्पित व्यक्ति समय की अनुकूलता का भी ध्यान रखता हैं।

निबंध नंबर : 04

मन के हारे हार है , मन के जीते जीत

Mann ke haare haar hai, mann ke jite jeet.

परमात्मा की बनायी हुई इस सृष्टि में केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसको सोच विचार करने के लिए परमात्मा ने उसे बुद्धि चातुर्यता प्रदान की है। केवल बुद्धि ही है जिसके कारण मनुष्य और पशु में भेद किया जाता है। इस बुद्धि के सहारे ही मनुष्य वर्तमान भत और भविष्य के बारे में सोचता है। परन्तु कभी कभी मनुष्य के जीवन में ऐसे क्षण भी आते हैं जब उसे स्वयं किए गए कार्य के लिए दुःख भी होता है और पछताना भी पड़ता है। परन्तु बाद में पछताने का कोई लाभ नहीं होता, क्योंकि समय रहते, बुद्धि का प्रयोग नहीं किया, जो कुछ होना था वो तो हो गया-‘अब पछताए क्या होत, जब चिड़िया चुग गई खेत।

जब चिड़ियों ने सारा खेत चुग लिया, फिर पश्चाताप करने का क्या लाभ ? तात्पर्य यह है समय रूपी चिड़िया जब जीवन के सुनहरे पलों रूपी दानों को खाती रहती है, तब तो मनुष्य अपनी बुद्धि द्वारा कोई विचार नहीं करता, न ही उन दानों की रक्षा के लिए प्रयत्न करता है। जब खेत हरा भरा था, तब उसकी रक्षा का किसी प्रकार का प्रबन्ध नहीं किया लेकिन वही खेत चिड़ियों द्वारा नष्ट कर दिया गया । फिर आंसू बहाने या पश्चाताप करने का कोई लाभ नहीं होता। इसलिए मनुष्य को चाहिए जो भी वह काम करे बड़ा ही सोच समझकर करे। गिरिधर कविराय कहते हैं-

बिना विचारे जो करे , सो पाछे पछताए । काम बिगारे आपनों , जग में होत हंसाय ॥

अर्थात् मनुष्य को कोई भी काम बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिए क्योंकि अविवेक हज़ारों विपत्तियों की जड़ है। पहले ही सोच समझ कर कार्य करना चाहिए, नहीं तो बाद में पछतावे के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं लगता।

कबीर दास का कहना है-

करता था तो क्यों किया , अब करि क्यों पछताए । बोया पेड़ बबूल का , आम कहां से खाय ॥

अर्थात् जो तुमने करना था, सो कर दिया; अब तुम किस लिए पछताते हो। कांटेदार वृक्ष बबूल को बो कर, तुम अब आम खाने की इच्छा क्यों करते हो? आदमी अन्त में वही फसल काटता है, जिसके वह बीज बोता है।

समय को पहचान कर समयानुसार कार्य करना ही सफलता का रहस्य है। हम पहली गलती यह करते हैं कि हम न तो सोच समझकर कार्य करते हैं और न ही किसी की सलाह लेकर उस पर अमल करते हैं, फिर जब सारा काम बिगड़ जाता है तो बचा हुआ जीवन पश्चाताप की आग में जलाते रहते हैं। कवि रहीम ने भी इसी बात को स्पष्ट किया है कि समय रहते बुद्धि से विचार करके सारा काम कर लेना चाहिए और सावधान हो जाना चाहिए। जब तक दूध ठीक है, उसे मथ कर उसमें से मक्खन निकाल लेना चाहिए नहीं तो जब दूध खराब हो जाएगा, फट जाएगा, तब कोई कितना भी प्रयास क्यों न करे उस फटे हुए और खराब दूध से मक्खन नहीं निकाला जा सकता, फिर तो सिवाय पश्चाताप के कोई चारा नहीं। रहीम लिखते हैं-

‘ रहिमन बिगरे दूध को , मथे न माखन होय ‘ ॥

इतिहास साक्षी है पृथ्वी राज चौहान ने मुहम्मद गौरी को 17 बार हराया परन्तु इस आक्रमणकारी को ऐसा सबक नहीं सिखाया ताकि दुबारा भारत पर आक्रमण करन का दुःसाहस न करता। यही कारण है भारत शताब्दियों तक विदेशियों की गुलामी की जंजीरों में बंधा पड़ा रहा। आज भारतवासी पृथ्वी राज चौहान की ऐसी बुद्धि पर पश्चाताप करते है परन्तु सब व्यर्थ, उसका कोई लाभ नहीं।

इतिहास इस बात का भी गवाह है कि जितने भी महापुरुष हुए हैं उन्होंने जितने भी कार्य किए वह समय की गति को पहचान कर किए। यही कारण है कि आज भी उनके नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखे गए हैं। इसके विपरीत ऐसे भी पढे लिखे राजा मुहम्मद तुगलक के समान हुए हैं जिन्होंने बिना सोचे समझे पहले दिल्ली से राजधानी बदलकर तुगलकाबाद में बनाई। बच्चे, बूढ़ों, बीमारा को जबरदस्ती नई राजधानी ले जाने का प्रबन्ध किया परन्तु कुछ ही समय में उसका वह जगह पसन्द नहीं आयी और फिर सभी लोगों का वापस दिल्ली जाने का आदेश दे दिया गया। लोग सिर पीट कर रह गए।

विद्वानों का मत है कि लोहे को तभी पीटना चाहिए जब वह गरम हो, यदि लोहा ठंडा पड़ गया तो उससे अपनी मनोवांछित वस्तुएँ प्राप्त नहीं कर सकते। आपका हथौडा या छेनी भले ही टूट जाए परन्तु उस ठंडे लोहे से कुछ प्राप्त नहीं होगा। अंग्रेज़ी की कहावत में ऐसा ही आशय प्रकट किया गया है—

Strike the iron while it is hot.

अन्त में हम यह कह सकते हैं कि प्रत्येक बद्धिमान व्यक्ति को समय रहते ही सावधान हो जाना चाहिए। जो व्यक्ति प्यास लगने पर कुआं खुदवा कर अपनी प्यास बुझाना चाहता है, उसकी प्यास नहीं बुझती, वह व्यक्ति प्यासा ही मर जाता है। जो विद्यार्थी सारा वर्ष पढ़ता नहीं, दिन में सोता रहता है, मौज़ उड़ाता रहता है और परीक्षा के दिनों में परिश्रम नहीं करता, परिणामस्वरूप फेल हो जाता है और पछताता है कि हाय! मैं फेल हो गया। तब फिर पश्चाताप करना व्यर्थ है। जो व्यक्ति समय पर अपना कार्य करते हैं, सफलता उन्हीं को मिलती है। इसलिए हमें भी चाहिए हम समय रहते सावधान हो जाएँ ताकि हमें पछताना न पडे।

निबंध नंबर : 05

मन के दो पक्ष

मन की शक्ति असीम.

मनुष्य का मन ही उसे बलवान बनाता है तथा वही कायर। मनुष्य तब तक हारता नहीं है जब तक उसका मन सबल है। शरीर को काटा अथवा जलाया जा सकता है परंतु मन को नहीं। देखने में तो हाथी, सिंह से आकार-प्रकार में बहुत बड़ा है पर उसमें लडने की वह इच्छा शक्ति नहीं जो उसे विजय दिला सके। मन की क्षुद्रता को जीत कर ही अर्जुन अजेय बना था। शरीर की शक्ति सीमित है परंतु मन की शक्ति असीम होती है। प्रबल इच्छा शक्ति और दृढ निश्चय से मनुष्य असंभव को संभव कर दिखाता है। गुरु नानक ने कहा है-‘मन जीते जग जीत।’ किसी भी कार्य की सफलता के लिए साधनों की अपेक्षा मनोबल की अधिक आवश्यकता होती है। जय-पराजय, सुख-दुख, लाभ-हानि-ये सब मन की कल्पनाएँ हैं। मनोविज्ञान में मन की शक्ति के सहारे दूसरे को पूरी तरह वशीभूत किया जा सकता है। जिन व्यक्ति ने अपने मन को नियंत्रित कर लिया, वह सब को वश में कर सकता है। मृत्यु से जूझने का उत्साह, संकट में धैर्य तथा दुख के समय साहस मनोबल से ही मिलता है।

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मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर कहानी mann ki jeet hindi story.

Read Mann Ki Jeet Hindi Story. मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर कहानी। कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के बच्चों और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर कहानी हिंदी में।

Mann Ki Jeet Hindi Story

hindiinhindi Mann Ki Jeet Hindi Story

Mann Ki Jeet Hindi Story मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर कहानी

निराश मन सफलता से दूर होता जाता है तथा उत्साह और आशा से भरा मन अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त करता है। दूध की बाल्टी में गिरे मेंढ़को की कहानी इस तथ्य को प्रमाणित करती है।

एक बार दो मेंढ़क तालाब के सूख जाने पर पानी की ढूंढ में भटकने लगे। भटकते-भटकते वे संयोवश एक हलवाई की दुकान पर पहुंचे जहाँ वे एक बाल्टी में गिर पड़े। इस बाल्टी में दूध भरा हुआ था। दोनों बाहर निकलने का रास्ता ढूँढने लगे और चारों और तैरते रहे लेकिन वे किसी भी प्रकार बाहर न निकल सके। इस से निराश होकर एक मेंढ़क सोचने लगा कि यहाँ से बाहर निकलना अब सम्भव नहीं है। अतः किसी भी प्रकार का यत्न करना व्यर्थ ही है। प्रातः काल जब हवलाई आएगा और देखेगा तो हमें मार डालेगा। इस प्रकार अब मौत निश्चित है। हारकर उसने तैरना ही छोड़ दिया और वह दूध में डूब कर मर गया।

दूसरा मेंढ़क नहीं हारा। यद्यपि वह थक भी गया था, तथापि वह तैरता ही रहा और सारी बाल्टी में चक्कर काटता रहा। उसके इस प्रकार इधर-उधर तैरने से दूध मथने लगा और मक्खन बनने लगा। अन्त में मक्खन का एक ढेला बन गया। अब वह मेंढ़क उस पर चढ़ा और वहां से छलांग लगाकर बाल्टी से बाहर आ गया। वह तुरन्त ही वहां से भाग गया और अपनी जान बचाने में सफल हो गया। इस प्रकार उसकी मानसिक शक्ति ने उसकी जान बचा दी।

शिक्षा – मन के हारे हार है मन के जीते जीत।

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Man Ke Haare Haar Hai Man Ke Jeete Jeet . Kahe Kabeer Hari Paie Man Hee Kee Parateet .

Meaning: Jai defeat in life is only the feelings of the mind. If a man loses in the mind - is disappointed then there is defeat and if he wins the mind then he is the winner. You can also find God only with the confidence of the mind - if you do not have the confidence of attainment, then how will you get it?

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व्यक्ति अपने मन के बलबूते पर सफलता प्राप्त करता है। इसमें उत्साह एवं उमंग का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। जितने भी व्यक्तियों को हम महान् बना देखते हैं वे सभी अथाह उत्साह एवं विश्वास की पूंजी लिए उन्नति के पथ पर अग्रसर हए हैं। उनका दृढ़ संकल्प एवं इच्छाशक्ति व संकट के समय हार न मानने की जिद ने उन्हें शिखर पर पहुंचाया।

दो मेढ़कों की कहानी भी इसी तथ्य को प्रमाणित करती है।

एक बार दो मेढ़क तालाब के सूख जाने पर पानी की तलाश में भटकने लगे। वे भटकते भटकते एक हलवाई की दुकान में पहुँचे, जहां एक बाल्टी में गिर पड़े। जिसमें दूध भरा हुआ था। दोनों बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने लगे और चारों तरफ तैरते रहे किन्तु वे बाहर नहीं निकल सके। इससे निराश होकर एक मेढ़क सोचने में व्यस्त हो गया कि यहां से बाहर निकल पाना अब मुमकिन नहीं है अत: किसी प्रकार की कोशिश करनी बेकार ही है। सुबह जब हलवाई आकर हमें देखेगा तो हमें मार डालेगा। इस प्रकार अब हमें मृत्यु से कोई नहीं बचा सकता। हार कर उसने तैरना छोड़ दिया और दूध में डूबकर मर गया। किन्तु दूसरे मेढ़क ने हार न मानी। हालांकि वह थक गया था कि वह सारी बाल्टी के इर्द-गिर्द चक्कर लगाता रहा। इधर-उधर तैरने से मक्खन बनने लगा। अन्त में मक्खन का एक गोला बन गया। अब वह उस गोले पर चढ़ा और छलांग मार कर बाहर आ गया। इस प्रकार वह वहां से भाग जाने और जान बचाने में सफल रहा।

शिक्षा-मन के हारे हार है मन के जीते जीत।

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